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View Full Version : जानें धर्म को


aspundir
18-03-2013, 08:00 PM
जानें वूडू धर्म को
जादूगरों का धर्म वूडू....

वूडू...इसे आप कोई भी नाम दे सकते हैं क्योंकि यह *दुनिया भर की आदिम जातियों, आदिवासियों का प्रारंभिक धर्म रहा है। हर देश में इसका नाम और थोड़े बहुत फेरबदल के साथ तरीका अलग हो सकता है, लेकिन यह है झाड़-फूंक, जादू-टोने, काल्पनिक देवता और कबीले की प्राचीन परंपरा का धर्म।

इसे पूरे अफ्रीका का धर्म माना जा सकता है, लेकिन केरीबी द्वीप समूह में आज भी यह जादू की धार्मिक परंपरा जिंदा है। इसे यहां वूडू कहा जाता है। हाल-फिलहाल बनीन देश का उइदा गांव वूडू बहुल क्षेत्र है। यहां सबसे बड़ा वूडू मंदिर है, जहां *विचित्र देवताओं के साथ रखी है जादू-टोने की वस्तुएं। धन-धान्य, व्यापार और प्रेम में सफलता की कामना लिए अफ्रीका के कोने-कोने से यहां लोग आते हैं।

वूडू प्रकृति के पंचतत्वों पर विश्वास करते हैं। जैसा की भारत के आदिवासियों में समूह में गाने और नाचने की परंपरा है वैसा ही वूडू नर्तक परंपरागत ढोल-डमरूओं की ताल पर नाच कर देवताओं का आह्वान करते हैं। ये प्रार्थनागत नाच गाना कई घंटों तक चलता है।

इस तरह की परंपरा को अंग्रेजी में टेबू कह सकते हैं। यह आज भी दुनिया भर में जिंदा है। नाम कुछ भी हो पर इसे आप आदिम धर्म कह सकते हैं। इसे लगभग 6000 वर्ष से भी ज्यादा पुराना धर्म माना जाता है।

ईसाई और इस्लाम धर्म के प्रचार-प्रसार के बाद इसके मानने वालों की संख्या घटती गई और आज यह पश्चिम अफ्रीका के कुछ इलाकों में ही सिमट कर रह गया है।

हालांकि वूडू को आप बंजारों, आदिवासियों, जंगल में रहने वालों का काल्पनिक या पिछड़ों का धर्म मानते हैं, लेकिन गहराई से अध्ययन करने पर पता चलता है कि वूडू की परंपरा आज के आधुनिक धर्म में भी न्यू लुक के साथ मौजूद है। भारत में तांत्रिकों और शाक्तों का धर्म कुछ-कुछ ऐसा ही माना जा सकता है। क्या चर्च में भूत भगाने के उपक्रम नहीं किए जाते?

बहुत-सी बातें काल्पनिक और अवैज्ञानिक हो सकती है, लेकिन वूडू के रहस्यमय ज्ञान की ताकत से आप बच नहीं सकते।

aspundir
18-03-2013, 08:02 PM
शिंतो धर्म को जानें
बना जापान का 'राज धर्म'


जापान के शिंतो धर्म की ज्यादातर बातें बौद्ध धर्म से ली गई थी फिर भी इस धर्म ने अपनी एक अलग पहचान कायम की थी। इस धर्म की मान्यता थी कि जापान का राज परिवार सूर्य देवी अमातिरासु ओमिकामी से उत्पन्न हुआ है। उक्त देवी शक्ति का वास नदियों, पहाड़ों, चट्टानों, वृक्षों कुछ पशुओं तथा विशेषत: सूर्य और चंद्रमा आदि किसी में भी हो सकता है।

इसीलिए कालांतर में प्राकृतिक शक्तियों, महान व्यक्तियों, पूर्वजों तथा सम्राटों की भी उपासना की जाती थी। किंतु बौद्ध धर्म के प्रभाव से सारी रूढि़याँ छूट गई लेकिन 1868-1912 में शिंतो धर्म ने बौद्ध विचारों से स्वतंत्र होकर अपने धार्मिक मूल्यों की पुन: व्याख्*या और स्थापना कर इसे जापान का 'राज धर्म' बना दिया गया।
शिंतों धर्म में नीति और नियमों का कोई उल्लेख नहीं मिलता और ना ही इसके विधि-विधान या क्रियाकांड के कोई ग्रंथ है। इसकी आवश्यकता इसलिए महसूस नहीं हुई क्योंकि उनके विचार से प्रत्येक जापानी नीति और अनुशासन के मार्ग पर चलता ही है। जापानी मानते थे कि उनका प्रत्येक कार्य या नियम ईश्*वर प्रदत्य है।

शिंतो तीर्थ स्थल व मंदिर भव्य होते हैं, क्योंकि मान्यता है कि इन भव्य मंदिरों में देवता वास करते है इसीलिए लोग प्रवेश द्वार के माध्यम से अपनी प्रार्थनाएँ करते थे। शिंतो तीर्थ स्थलों में सबसे महत्वपूर्ण 'आइस' में स्थित 'सूर्य देवी' का तीर्थस्थल था, जहाँ जून और दिसम्बर में एक बार राजकीय समारोह होता है।

शिंतो धर्मावलम्बियों की पूजा-पद्धति में प्रार्थनाएँ करना, तालियाँ बजाना शुद्धिकरण और देवताओं की श्रद्धा में कुछ अर्पण करना सम्मिलित है। पुरोहित प्रार्थनाएँ पढ़ते हैं, कामनाएँ करते हैं तथा पूर्वजों की स्मृति में भेटें चढ़ाई जाती है। संगीत, नृत्य के आयोजन के साथ ही धार्मिक उत्सवों वाले दिनों में जुलूस निकाले जाते हैं।

aspundir
18-03-2013, 08:03 PM
पेगन धर्म को जानें
दुनिया के जितने भी प्राचीन धर्म हैं उनमें तीन बातें सदा से रही- मूर्ति पूजा, प्रकृति पूजा और बहुदेववाद। वर्तमान में जो भी धर्म हैं उक्त धर्मों में यह तीनों ही बातें किसी न किसी रूप में विद्*यमान है। बहुत से धर्मानुयायी इन्हें बुराई मानते हैं, लेकिन इस पर विचार किए जाने की आवश्यकता है कि आखिर इसमें बुराई क्या है?

वैदिक धर्म के लोग प्रारंभ में ईश्वर, प्रकृति और बहुत सारे देवी-देवताओं की स्तुति करते थे बाद में जब इस धर्म में पुराणपंथी प्रवृतियों का प्रचलन बढ़ा तो मूर्ति पूजा भी शुरू हो गई। योरप में मूर्ति पूजकों के धर्म को पेगन धर्म कहा जाता था।

पेगन धर्म को मानने वालों को जर्मन के हिथ मूल का माना जाता है, लेकिन यह रोम, अरब और अन्य इलाकों में भी बहुतायत में थे। हालाँकि इसका विस्तार यूरोप में ही ज्यादा था। एक मान्यता अनुसार यह अरब के मुशरिकों के धर्म की तरह था और इसका प्रचार-प्रसार अरब में भी काफी फैल चुका था। यह धर्म ईसाई धर्म के पूर्व अस्तित्व में था।

ईसाई धर्म के प्रचलन के बाद इस धर्म के लोग या तो ईसाई बनते गए या यह अपने क्षेत्र विशेष से पलायन करने को मजबूर हो गए। माना जाता है कि उनके धार्मिक ग्रंथ को जला डाला गया। उन्होंने जो भी कहा, लिखा या भोगा आज वह किसी भी रूप में मौजूद नहीं है। यह इतिहासकारों की खोज का विषय बन गया है।
ईसाईयत से पहले पेगन धर्म के लोगों की ही तादाद ज्यादा थी और वे अग्नि और सूर्य आदि प्राकृतिक तत्वों के मंदिर बनाकर उसमें उनकी मूर्तियाँ स्थापित करते थे जहाँ विधिवत पूजा-पाठ वगैरह होता था।

पेगन धर्म के लोग यह मानते थे कि यह ब्रह्मांड ईश्*वर की प्रतिकृ*ति है इसीलिए वे प्रकृति के सभी तत्वों की आराधना करते थे। चाहे वृक्ष हो, पशु हो, पहाड़, नदी, पक्षी हो, औरत हो, महान मनुष्य हो या निर्जिव वस्तु। वे प्रकृति, मौसम, जीवन और मृत्यु के चक्र को मानकर उनके अनुसार ही जीवन जीते थे।

यह ठीक हिंदुओं के पौराणिक पार्ट की तरह है। यह भी हो सकता है कि यह हिंदू धर्म की एक शाखा रही हो। हालाँकि यह अभी शोध का विषय है।

aspundir
18-03-2013, 08:04 PM
यहूदी धर्म को जानें
प्राचीन धर्मों में से एक
आज से करीब 4000 साल पुराना यहूदी धर्म वर्तमान में इजराइल का राजधर्म है। दुनिया के प्राचीन धर्मों में से एक यहूदी धर्म से ही ईसाई और इस्लाम धर्म की उत्पत्ति हुई है। यहूदी एकेश्वरवाद में विश्वास करते हैं। मूर्ति पूजा को इस धर्म में पाप समझा जाता है।
अब्राहम : यहूदी धर्म की शुरुआत पैगंबर अब्राहम (अबराहम या इब्राहिम) से मानी जाती है, जो ईसा से 2000 वर्ष पूर्व हुए थे। पैगंबर अलै. अब्राहम के पहले बेटे का नाम हजरत इसहाक अलै. और दूसरे का नाम हजरत इस्माईल अलै. था। दोनों के पिता एक थे, किंतु माँ अलग-अलग थीं। हजरत इसहाक की माँ का नाम सराह था और हजरत इस्माईल की माँ हाजरा थीं।

पैगंबर अलै. अब्राहम के पोते का नाम हजरत अलै. याकूब था। याकूब का ही दूसरा नाम इजरायल था। याकूब ने ही यहूदियों की 12 जातियों को मिलाकर एक सम्मिलित राष्ट्र इजरायल बनाया था।

याकूब के एक बेटे का नाम यहूदा (जूदा) था। यहूदा के नाम पर ही उसके वंशज यहूदी कहलाए और उनका धर्म यहूदी धर्म कहलाया। हजरत अब्राहम को यहूदी, मुसलमान और ईसाई तीनों धर्मों के लोग अपना पितामह मानते हैं। आदम से अब्राहम और अब्राहम से मूसा तक यहूदी, ईसाई और इस्लाम सभी के पैगंबर एक ही है किंतु मूसा के बाद यहूदियों को अपने अगले पैंगबर के आने का अब भी इंतजार है।

यहोवा : यहूदी अपने ईश्वर को यहवेह या यहोवा कहते हैं। यहूदी मानते हैं कि सबसे पहले ये नाम ईश्वर ने हजरत मूसा को सुनाया था। ये शब्द ईसाईयों और यहूदियों के धर्मग्रंथ बाइबिल के पुराने नियम में कई बार आता है।

धर्मग्रंथ : यहूदियों की धर्मभाषा 'इब्रानी' (हिब्रू) और यहूदी धर्मग्रंथ का नाम 'तनख' है, जो इब्रानी भाषा में लिखा गया है। इसे 'तालमुद' या 'तोरा' भी कहते हैं। असल में ईसाइयों की बाइबिल में इस धर्मग्रंथ को शामिल करके इसे 'पुराना अहदनामा' अर्थात ओल्ड टेस्टामेंट कहते हैं। तनख का रचनाकाल ई.पू. 444 से लेकर ई.पू. 100 के बीच का माना जाता है।

मूसा (मोजेस) : ईसा से लगभग 1,500 वर्ष पूर्व अबराहम के बाद यहूदी इतिहास में सबसे बड़ा नाम 'पैगंबर मूसा' का है। मूसा ही यहूदी जाति के प्रमुख व्यवस्थाकार हैं। मूसा को ही पहले से ही चली आ रही एक परम्परा को स्थापित करने के कारण यहूदी धर्म का संस्थापक माना जाता है।

aspundir
18-03-2013, 08:04 PM
दस आदेश : मूसा मिस्र के फराओ के जमाने में हुए थे। ऐसा माना जाता है कि उनको उनकी माँ ने नील नदी में बहा दिया था। उनको फिर फराओ की पत्नी ने पाला था। बड़े होकर वे मिस्री राजकुमार बने। बाद में मूसा को मालूम हुआ कि वे तो यहूदी हैं और उनका यहूदी राष्ट्र त्याचार सह रहा है और यहाँ यहूदी गुलाम है तो उन्होंने यहूदियों को इकठ्ठाकर उनमें नई जाग्रती लाई।

मूसा को ईश्वर द्वारा दस आदेश मिले थे। मूसा का एक पहाड़ पर परमेश्वर से साक्षात्कार हुआ और परमेश्वर की मदद से उन्होंने फराओ को हराकर यहूदियों को आजाद कराया और मिस्र से पुन: उनकी भूमि इसराइल में यहूदियों को पहुँचाया। इसके बाद मूसा ने इसराइल में इस्राइलियों को ईश्वर द्वारा मिले 'दस आदेश' दिए जो आज भी यहूदी धर्म के प्रमुख सैद्धांतिक है।

सुलेमान : अब्राहम और मूसा के बाद दाऊद और उसके बेटे सुलेमान को यहूदी धर्म में अधिक आदरणीय माना जाता है। सुलेमान के समय दूसरे देशों के साथ इजरायल के व्यापार में खूब उन्नति हुई। सुलेमान का यदूदि जाति के उत्थान में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। 37 वर्ष के योग्य शासन के बाद सन 937 ई.पू. में सुलेमान की मृत्यु हुई।

यहूदी त्योहार : शुक्कोह, हुनक्का, पूरीम, रौशन-शनाह, पासओवर, योम किपुर।

यरुशलम : येरुशलम इसराइल देश की विवादित राजधानी है। इस पर यहूदी धर्म, ईसाई धर्म और इस्लाम धर्म, तीनों ही दावा करते हैं, क्योंकि यहीं यहूदियों का पवित्र सुलैमानी मन्दिर हुआ करता था, जो अब एक दीवार मात्र है। यही शहर ईसा मसीह की कर्मभूमि रहा है। यहीं से हजरत मुहम्मद स्वर्ग गए थे। इसीलिए यह विवाद का केंद्र है। लेकिन असल में येरुशलम प्राचीन यहूदी राज्य का केंद्र और राजधानी रहा है। यही पर मूसा ने यहूदियों को धर्म की शिक्षा दी थी।

अन्य पैंगबर : आदम, अब्राहम के अलावा मान्यता है कि राजा 'मनु' को ही यहूदियों ने 'नूह' माना है। नूह ने ईश्वर के आदेश पर जल प्रलय के समय बड़ी-सी किश्ती बनाई थी और उसमें सृष्टि के सभी प्राणियों को रखकर सृष्टि को बचाया था। राजा मनु की कहानी भी ऐसी ही है

aspundir
18-03-2013, 08:04 PM
महान यहूदी : ईसा मसीह के बाद कलाकार एंजेलो, चित्रकार पाब्लो पिकासो, कार्ल मार्क्स और अल्बर्ट आइंसटीन के अलावा ऐसे सैकड़ों प्रसिद्ध यहूदी हुए हैं जिनका विज्ञान और व्यापार में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। यहूदियों द्वारा मानव समाज के विकास में जो योगदान किया गया है उसे भूला नहीं जा सकता।

यहूदी इतिहास : यहूदी धर्म का इतिहास करीब 4000 साल पुराना माना जाता है। कहते हैं कि मिस्र के नील नदी से लेकर इराक के दजला-फरात नदी के बीच आरंभ हुआ यहूदी धर्म का इजराइल सहित अरब के अधिकांश हिस्सों पर राज था। मूसा से लेकर सुलेमान तक प्राचीन समय में ही यहूदियों का 'भारत' से गहरा संबंध रहा है इस बात के कई प्रमाण है।

मिस्र पर कुछ समय तक यदुवंशियों का भी राज रहा था। वैसे इसका प्रचीन धर्म इजिप्ट था। ऐसा माना जाता है कि पहले यहूदी मिस्र के बहुदेववादी इजिप्ट धर्म के राजा फराओ के शासन के अधिन रहते थे। बाद में मूसा के नेतृत्व में वे इजरायल आ गए। ईसा के 1100 साल पहले जैकब की 12 संतानों के आधार पर अलग-अलग यहूदी कबीले बने थे, जो दो गुटों में बँट गए। पहला 10 कबीलों का बना था वह इजरायल कहलाया और दूसरा जो बाकी के दो कबीलों से बना था वह जुडाया कहलाया। जुडाया पर बेबीलन का अधिकार हो गया। बाद में ई.पू. सन् 800 के आसपास यह असीरिया के अधीन चला गया। असीरिया प्राचीन मेसोपोटामिया का एक साम्राज्य था, जो यह दजला नदी के उपरी हिस्से में बसा था। 10 कबीलों का क्या हुआ पता नहीं चला।

फारस के हखामनी शासकों ने असीरियाइयों को ई.पू. 530 तक हरा दिया तो यह क्षेत्र फारसी शासन में आ गया। यूनानी विजेता सिकन्दर ने जब दारा तृतीय को ई.पू. 330 में हराया तो यहूदी लोग ग्रीक शासन में आ गए। सिकन्दर की मृत्यु के बाद सेल्यूकस के साम्राज्य और उसके बाद रोमन साम्राज्य के अधीन रहने के बाद ईसाईयत का उदय हुआ। इसके बाद यहूदियों को यातनाएँ दी जान लगी।

7वीं सदी में इस्लाम के आगाज के बाद यहूदियों की मुश्किलें और बड़ गई। तुर्क और मामलुक शासन के समय यहूदियों को इजराइल से पलायन करना पड़ा। अंतत: यहूदियों के हाथ से अपना राष्ट्र जाता रहा। मई 1948 में इजराइल को फिर से यहूदियों का स्वतंत्र राष्ट्र बनाया गया। दुनिया भर में इधर-उधर बिखरे यहूदी आकर इजरायली क्षेत्रों में बसने लगे। वर्तमान में अरबों और फिलिस्तिनियों के साथ कई युद्धों में उलझा हुआ है एकमात्र यहूदी राष्ट्र इजरायल।

aspundir
18-03-2013, 08:05 PM
जेन धर्म को जानें
जेन (zen) को झेन भी कहा जाता है। इसका शाब्दिक अर्थ 'ध्यान' माना जाता है। यह सम्प्रदाय जापान के सेमुराई वर्ग का धर्म है। सेमुराई समाज यौद्धाओं का समाज है। इसे दुनिया की सर्वाधिक बहादुर कौम माना जाता था।

जेन का विकास चीन में लगभग 500 ईस्वी में हुआ। चीन से यह 1200 ईस्वी में जापान में फैला। प्रारंभ में जापान में बौद्ध धर्म का कोई संप्रदाय नहीं था किंतु धीरे-धीरे वह बारह सम्प्रदायों में बँट गया जिसमें जेन भी एक था।

ऐसा माना जाता है कि सेमुराई वर्ग को अधिक आज्ञापालक तथा शूरवीर बनाने के लिए ही जेन संप्रदाय का सूत्रपात हुआ था। दरअसल जेन संप्रदाय शिंतो और बौद्ध धर्म का समन्वय था। माना यह भी जाता है कि बौद्ध धर्म को जापान ने सैनिक रूप देने की चेष्ठा की थी, इसीलिए उन्होंने शिंतो धर्म के आज्ञापालक और देशभक्ति के सिद्धांत को भी इसमें शामिल कर सेमुराइयों को मजबूत किया। सेमुराई जापान का सैनिक वर्ग था। 1868 में उक्त सैनिकों के वर्ग का अंत हो गया।

धर्म ग्रंथ और दर्शन : 'बुशिडो' नामक इनकी एक संहिता है, जिस पर यह विश्वास करते थे। 'बुशिडो' में व्यक्तिगत जीवन तथा सम्मान की अपेक्षा स्वामीभक्ति पर जोर दिया गया है। जेन संप्रदाय पर बौद्ध धर्म का बहुत असर था फिर भी उनकी कुछ मान्यताएँ बिलकुल अलग थीं।

उनके अनुसार धर्मग्रंथों के अध्ययन या कर्मकांडों से ज्ञान की उपलब्धि नहीं होती, बल्कि इसके लिए चिंतन और आत्म-निरीक्षण की आवश्यकता है। मनुष्य का जीवन क्षणिक और भ्रमपूर्ण है, इसीलिए प्रत्येक क्षेत्र में *शूरवीरता दिखाने की आवश्यकता है।