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View Full Version : Siri Guru Granth Sahib in Devanagari


aspundir
09-04-2013, 10:55 PM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=26446&stc=1&d=1365573891

ੴसति नामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु
अकाल मूरति अजूनी सैभं गुर प्रसादि॥

aspundir
09-04-2013, 10:59 PM
आदि सचु जुगादि सचु॥ है भी सचु नानक होसी भी सचु॥१॥

aspundir
09-04-2013, 11:17 PM
सोचै सोचि न होवई जे सोची लख वार ॥ चुपै चुप न होवई जे लाइ रहा लिव तार ॥ भुखिआ भुख
न उतरी जे बंना पुरीआ भार ॥ सहस सिआणपा लख होहि त इक न चलै नालि ॥ किव सचिआरा
होईऐ किव कूड़ै तुटै पालि ॥ हुकमि रजाई चलणा नानक लिखिआ नालि ॥१॥

aspundir
09-04-2013, 11:18 PM
आदि सचु जुगादि सचु ॥ है भी सचु नानक होसी भी सचु ॥१॥
हुकमी होवनि आकार हुकमु न कहिआ जाई ॥
हुकमी होवनि जीअ हुकमि मिलै वडिआई ॥
हुकमी उतमु नीचु हुकमि लिखि दुख सुख पाईअहि ॥
इकना हुकमी बखसीस इकि हुकमी सदा भवाईअहि ॥
हुकमै अंदरि सभु को बाहरि हुकम न कोइ ॥
नानक हुकमै जे बुझै त हउमै कहै न कोइ ॥२॥

aspundir
09-04-2013, 11:18 PM
गावै को ताणु होवै किसै ताणु ॥
गावै को दाति जाणै नीसाणु ॥
गावै को गुण वडिआईआ चार ॥
गावै को विदिआ विखमु वीचारु ॥
गावै को साजि करे तनु खेह ॥
गावै को जीअ लै फिरि देह ॥
गावै को जापै दिसै दूरि ॥
गावै को वेखै हादरा हदूरि ॥
कथना कथी न आवै तोटि ॥
कथि कथि कथी कोटी कोटि कोटि ॥
देदा दे लैदे थकि पाहि ॥
जुगा जुगंतरि खाही खाहि ॥
हुकमी हुकमु चलाए राहु ॥
नानक विगसै वेपरवाहु ॥३॥

aspundir
09-04-2013, 11:19 PM
साचा साहिबु साचु नाइ भाखिआ भाउ अपारु ॥
आखहि मंगहि देहि देहि दाति करे दातारु ॥
फेरि कि अगै रखीऐ जितु दिसै दरबारु ॥
मुहौ कि बोलणु बोलीऐ
जितु सुणि धरे पिआरु ॥
अमृत वेला सचु नाउ वडिआई वीचारु ॥
करमी आवै कपड़ा नदरी मोखु दुआरु ॥
नानक एवै जाणीऐ सभु आपे सचिआरु ॥४॥

aspundir
09-04-2013, 11:20 PM
थापिआ न जाइ कीता न होइ ॥
आपे आपि निरंजनु सोइ ॥
जिनि सेविआ तिनि पाइआ मानु ॥
नानक गावीऐ गुणी निधानु ॥
गावीऐ सुणीऐ मनि रखीऐ भाउ ॥
दुखु परहरि सुखु घरि लै जाइ ॥
गुरमुखि नादं गुरमुखि वेदं गुरमुखि रहिआ समाई ॥
गुरु ईसरु गुरु गोरखु बरमा गुरु पारबती माई ॥
जे हउ जाणा आखा नाही कहणा कथनु न जाई ॥
गुरा इक देहि बुझाई ॥
सभना जीआ का इकु दाता सो मै विसरि न जाई ॥५॥

aspundir
09-04-2013, 11:21 PM
तीरथि नावा जे तिसु भावा विणु भाणे कि नाइ करी ॥
जेती सिरठि उपाई वेखा विणु करमा कि मिलै लई ॥
मति विचि रतन जवाहर माणिक जे इक गुर की सिख सुणी ॥
गुरा इक देहि बुझाई ॥
सभना जीआ का इकु दाता सो मै विसरि न जाई ॥६॥

aspundir
09-04-2013, 11:21 PM
जे जुग चारे आरजा होर दसूणी होइ ॥
नवा खंडा विचि जाणीऐ नालि चलै सभु कोइ ॥
चंगा नाउ रखाइ कै जसु कीरति जगि लेइ ॥
जे तिसु नदरि न आवई त वात न पुछै के ॥
कीटा अंदरि कीटु करि दोसी दोसु धरे ॥
नानक निरगुणि गुणु करे गुणवंतिआ गुणु दे ॥
तेहा कोइ न सुझई जि तिसु गुणु कोइ करे ॥७॥

aspundir
09-04-2013, 11:22 PM
सुणिऐ सिध पीर सुरि नाथ ॥
सुणिऐ धरति धवल आकास ॥
सुणिऐ दीप लोअ पाताल ॥
सुणिऐ पोहि न सकै कालु ॥
नानक भगता सदा विगासु ॥
सुणिऐ दूख पाप का नासु ॥८॥

aspundir
09-04-2013, 11:22 PM
सुणिऐ ईसरु बरमा इंदु ॥
सुणिऐ मुखि सालाहण मंदु ॥
सुणिऐ जोग जुगति तनि भेद ॥
सुणिऐ सासत सिम्रिति वेद ॥
नानक भगता सदा विगासु ॥
सुणिऐ दूख पाप का नासु ॥९॥

aspundir
09-04-2013, 11:23 PM
सुणिऐ सतु संतोखु गिआनु ॥
सुणिऐ अठसठि का इसनानु ॥
सुणिऐ पड़ि पड़ि पावहि मानु ॥
सुणिऐ लागै सहजि धिआनु ॥
नानक भगता सदा विगासु ॥
सुणिऐ दूख पाप का नासु ॥१०॥

aspundir
09-04-2013, 11:23 PM
सुणिऐ सरा गुणा के गाह ॥
सुणिऐ सेख पीर पातिसाह ॥
सुणिऐ अंधे पावहि राहु ॥
सुणिऐ हाथ होवै असगाहु ॥
नानक भगता सदा विगासु ॥
सुणिऐ दूख पाप का नासु ॥११॥

aspundir
09-04-2013, 11:24 PM
मंने की गति कही न जाइ ॥
जे को कहै पिछै पछुताइ ॥
कागदि कलम न लिखणहारु ॥
मंने का बहि करनि वीचारु ॥
ऐसा नामु निरंजनु होइ ॥
जे को मंनि जाणै मनि कोइ ॥१२॥

aspundir
09-04-2013, 11:25 PM
मंनै सुरति होवै मनि बुधि ॥
मंनै सगल भवण की सुधि ॥
मंनै मुहि चोटा ना खाइ ॥
मंनै जम कै साथि न जाइ ॥
ऐसा नामु निरंजनु होइ ॥
जे को मंनि जाणै मनि कोइ ॥१३॥

aspundir
09-04-2013, 11:26 PM
मंनै मारगि ठाक न पाइ ॥
मंनै पति सिउ परगटु जाइ ॥
मंनै मगु न चलै पंथु ॥
मंनै धरम सेती सनबंधु ॥
ऐसा नामु निरंजनु होइ ॥
जे को मंनि जाणै मनि कोइ ॥१४॥

aspundir
09-04-2013, 11:26 PM
मंनै पावहि मोखु दुआरु ॥
मंनै परवारै साधारु ॥
मंनै तरै तारे गुरु सिख ॥
मंनै नानक भवहि न भिख ॥
ऐसा नामु निरंजनु होइ ॥
जे को मंनि जाणै मनि कोइ ॥१५॥

aspundir
09-04-2013, 11:27 PM
पंच परवाण पंच प्रधानु ॥
पंचे पावहि दरगहि मानु ॥
पंचे सोहहि दरि राजानु ॥
पंचा का गुरु एकु धिआनु ॥
जे को कहै करै वीचारु ॥
करते कै करणै नाही सुमारु ॥
धौलु धरमु दइआ का पूतु ॥
संतोखु थापि रखिआ जिनि सूति ॥
जे को बुझै होवै सचिआरु ॥
धवलै उपरि केता भारु ॥
धरती होरु परै होरु होरु ॥
तिस ते भारु तलै कवणु जोरु ॥
जीअ जाति रंगा के नाव ॥
सभना लिखिआ वुड़ी कलाम ॥
एहु लेखा लिखि जाणै कोइ ॥
लेखा लिखिआ केता होइ ॥
केता ताणु सुआलिहु रूपु ॥
केती दाति जाणै कौणु कूतु ॥
कीता पसाउ एको कवाउ ॥
तिस ते होए लख दरीआउ ॥
कुदरति कवण कहा वीचारु ॥
वारिआ न जावा एक वार ॥
जो तुधु भावै साई भली कार ॥
तू सदा सलामति निरंकार ॥१६॥

aspundir
09-04-2013, 11:29 PM
असंख जप असंख भाउ ॥
असंख पूजा असंख तप ताउ ॥
असंख गरंथ मुखि वेद पाठ ॥
असंख जोग मनि रहहि उदास ॥
असंख भगत गुण गिआन वीचार ॥
असंख सती असंख दातार ॥
असंख सूर मुह भख सार ॥
असंख मोनि लिव लाइ तार ॥
कुदरति कवण कहा वीचारु ॥
वारिआ न जावा एक वार ॥
जो तुधु भावै साई भली कार ॥
तू सदा सलामति निरंकार ॥१७॥

aspundir
09-04-2013, 11:29 PM
असंख मूरख अंध घोर ॥
असंख चोर हरामखोर ॥
असंख अमर करि जाहि जोर ॥
असंख गलवढ हतिआ कमाहि ॥
असंख पापी पापु करि जाहि ॥
असंख कूड़िआर कूड़े फिराहि ॥
असंख मलेछ मलु भखि खाहि ॥
असंख निंदक सिरि करहि भारु ॥
नानकु नीचु कहै वीचारु ॥
वारिआ न जावा एक वार ॥
जो तुधु भावै साई भली कार ॥
तू सदा सलामति निरंकार ॥१८॥

aspundir
09-04-2013, 11:30 PM
असंख नाव असंख थाव ॥
अगम अगम असंख लोअ ॥
असंख कहहि सिरि भारु होइ ॥
अखरी नामु अखरी सालाह ॥
अखरी गिआनु गीत गुण गाह ॥
अखरी लिखणु बोलणु बाणि ॥
अखरा सिरि संजोगु वखाणि ॥
जिनि एहि लिखे तिसु सिरि नाहि ॥
जिव फुरमाए तिव तिव पाहि ॥
जेता कीता तेता नाउ ॥
विणु नावै नाही को थाउ ॥
कुदरति कवण कहा वीचारु ॥
वारिआ न जावा एक वार ॥
जो तुधु भावै साई भली कार ॥
तू सदा सलामति निरंकार ॥१९॥

aspundir
09-04-2013, 11:31 PM
भरीऐ हथु पैरु तनु देह ॥
पाणी धोतै उतरसु खेह ॥
मूत पलीती कपड़ु होइ ॥
दे साबूणु लईऐ ओहु धोइ ॥
भरीऐ मति पापा कै संगि ॥
ओहु धोपै नावै कै रंगि ॥
पुंनी पापी आखणु नाहि ॥
करि करि करणा लिखि लै जाहु ॥
आपे बीजि आपे ही खाहु ॥
नानक हुकमी आवहु जाहु ॥२०॥

aspundir
09-04-2013, 11:34 PM
तीरथु तपु दइआ दतु दानु ॥
जे को पावै तिल का मानु ॥
सुणिआ मंनिआ मनि कीता भाउ ॥
अंतरगति तीरथि मलि नाउ ॥
सभि गुण तेरे मै नाही कोइ ॥
विणु गुण कीते भगति न होइ ॥
सुअसति आथि बाणी बरमाउ ॥
सति सुहाणु सदा मनि चाउ ॥
कवणु सु वेला वखतु कवणु कवण थिति कवणु वारु ॥
कवणि सि रुती माहु कवणु जितु होआ आकारु ॥
वेल न पाईआ पंडती जि होवै लेखु पुराणु ॥
वखतु न पाइओ कादीआ जि लिखनि लेखु कुराणु ॥
थिति वारु ना जोगी जाणै रुति माहु ना कोई ॥
जा करता सिरठी कउ साजे आपे जाणै सोई ॥
किव करि आखा किव सालाही किउ वरनी किव जाणा ॥
नानक आखणि सभु को आखै इक दू इकु सिआणा ॥
वडा साहिबु वडी नाई कीता जा का होवै ॥
नानक जे को आपौ जाणै अगै गइआ न सोहै ॥२१॥

aspundir
09-04-2013, 11:34 PM
पाताला पाताल लख आगासा आगास ॥
ओड़क ओड़क भालि थके वेद कहनि इक वात ॥
सहस अठारह कहनि कतेबा
असुलू इकु धातु ॥
लेखा होइ त लिखीऐ लेखै होइ विणासु ॥
नानक वडा आखीऐ आपे जाणै आपु ॥२२॥

aspundir
09-04-2013, 11:35 PM
सालाही सालाहि एती सुरति न पाईआ ॥
नदीआ अतै वाह पवहि समुंदि न जाणीअहि ॥
समुंद साह सुलतान गिरहा सेती मालु धनु ॥
कीड़ी तुलि न होवनी जे तिसु मनहु न वीसरहि ॥२३॥

aspundir
09-04-2013, 11:36 PM
अंतु न सिफती कहणि न अंतु ॥
अंतु न करणै देणि न अंतु ॥
अंतु न वेखणि सुणणि न अंतु ॥
अंतु न जापै किआ मनि मंतु ॥
अंतु न जापै कीता आकारु ॥
अंतु न जापै पारावारु ॥
अंत कारणि केते बिललाहि ॥
ता के अंत न पाए जाहि ॥
एहु अंतु न जाणै कोइ ॥
बहुता कहीऐ बहुता होइ ॥
वडा साहिबु ऊचा थाउ ॥
ऊचे उपरि ऊचा नाउ ॥
एवडु ऊचा होवै कोइ ॥
तिसु ऊचे कउ जाणै सोइ ॥
जेवडु आपि जाणै आपि आपि ॥
नानक नदरी करमी दाति ॥२४॥

aspundir
09-04-2013, 11:37 PM
बहुता करमु लिखिआ ना जाइ ॥
वडा दाता तिलु न तमाइ ॥
केते मंगहि जोध अपार ॥
केतिआ गणत नही वीचारु ॥
केते खपि तुटहि वेकार ॥
केते लै लै मुकरु पाहि ॥
केते मूरख खाही खाहि ॥
केतिआ दूख भूख सद मार ॥
एहि भि दाति तेरी दातार ॥
बंदि खलासी भाणै होइ ॥
होरु आखि न सकै कोइ ॥
जे को खाइकु आखणि पाइ ॥
ओहु जाणै जेतीआ मुहि खाइ ॥
आपे जाणै आपे देइ ॥
आखहि सि भि केई केइ ॥
जिस नो बखसे सिफति सालाह ॥
नानक पातिसाही पातिसाहु ॥२५॥

aspundir
09-04-2013, 11:38 PM
अमुल गुण अमुल वापार ॥
अमुल वापारीए अमुल भंडार ॥
अमुल आवहि अमुल लै जाहि ॥
अमुल भाइ अमुला समाहि ॥
अमुलु धरमु अमुलु दीबाणु ॥
अमुलु तुलु अमुलु परवाणु ॥
अमुलु बखसीस अमुलु नीसाणु ॥
अमुलु करमु अमुलु फुरमाणु ॥
अमुलो अमुलु आखिआ न जाइ ॥
आखि आखि रहे लिव लाइ ॥
आखहि वेद पाठ पुराण ॥
आखहि पड़े करहि वखिआण ॥
आखहि बरमे आखहि इंद ॥
आखहि गोपी तै गोविंद ॥
आखहि ईसर आखहि सिध ॥
आखहि केते कीते बुध ॥
आखहि दानव आखहि देव ॥
आखहि सुरि नर मुनि जन सेव ॥
केते आखहि आखणि पाहि ॥
केते कहि कहि उठि उठि जाहि ॥
एते कीते होरि करेहि ॥
ता आखि न सकहि केई केइ ॥
जेवडु भावै तेवडु होइ ॥
नानक जाणै साचा सोइ ॥
जे को आखै बोलुविगाड़ु ॥
ता लिखीऐ सिरि गावारा गावारु ॥२६॥

aspundir
09-04-2013, 11:40 PM
सो दरु केहा सो घरु केहा जितु बहि सरब समाले ॥
वाजे नाद अनेक असंखा केते वावणहारे ॥
केते राग परी सिउ कहीअनि केते गावणहारे ॥
गावहि तुहनो पउणु पाणी बैसंतरु गावै राजा धरमु दुआरे ॥
गावहि चितु गुपतु लिखि जाणहि लिखि लिखि धरमु वीचारे ॥
गावहि ईसरु बरमा देवी सोहनि सदा सवारे ॥
गावहि इंद इदासणि बैठे देवतिआ दरि नाले ॥
गावहि सिध समाधी अंदरि गावनि साध विचारे ॥
गावनि जती सती संतोखी गावहि वीर करारे ॥
गावनि पंडित पड़नि रखीसर जुगु जुगु वेदा नाले ॥
गावहि मोहणीआ मनु मोहनि सुरगा मछ पइआले ॥
गावनि रतन उपाए तेरे अठसठि तीर्थ नाले ॥
गावहि जोध महाबल सूरा गावहि खाणी चारे ॥
गावहि खंड मंडल वरभंडा करि करि रखे धारे ॥
सेई तुधुनो गावहि जो तुधु भावनि रते तेरे भगत रसाले ॥
होरि केते गावनि से मै चिति न आवनि नानकु किआ वीचारे ॥
सोई सोई सदा सचु साहिबु साचा साची नाई ॥
है भी होसी जाइ न जासी रचना जिनि रचाई ॥
रंगी रंगी भाती करि करि जिनसी माइआ जिनि उपाई ॥
करि करि वेखै कीता आपणा जिव तिस दी वडिआई ॥
जो तिसु भावै सोई करसी हुकमु न करणा जाई ॥
सो पातिसाहु साहा पातिसाहिबु नानक रहणु रजाई ॥२७॥

aspundir
09-04-2013, 11:42 PM
मुंदा संतोखु सरमु पतु झोली धिआन की करहि बिभूति ॥
खिंथा कालु कुआरी काइआ जुगति डंडा परतीति ॥
आई पंथी सगल जमाती मनि जीतै जगु जीतु ॥
आदेसु तिसै आदेसु ॥
आदि अनीलु अनादि अनाहति जुगु जुगु एको वेसु ॥२८॥

aspundir
09-04-2013, 11:42 PM
भुगति गिआनु दइआ भंडारणि घटि घटि वाजहि नाद ॥
आपि नाथु नाथी सभ जा की रिधि सिधि अवरा साद ॥
संजोगु विजोगु दुइ कार चलावहि लेखे आवहि भाग ॥
आदेसु तिसै आदेसु ॥
आदि अनीलु अनादि अनाहति जुगु जुगु एको वेसु ॥२९॥

aspundir
09-04-2013, 11:42 PM
एका माई जुगति विआई तिनि चेले परवाणु ॥
इकु संसारी इकु भंडारी इकु लाए दीबाणु ॥
जिव तिसु भावै तिवै चलावै जिव होवै फुरमाणु ॥
ओहु वेखै ओना नदरि न आवै बहुता एहु विडाणु ॥
आदेसु तिसै आदेसु ॥
आदि अनीलु अनादि अनाहति जुगु जुगु एको वेसु ॥३०॥

aspundir
23-04-2013, 04:48 PM
॥ जपु ॥
आसणु लोइ लोइ भंडार ॥
जो किछु पाइआ सु एका वार ॥
करि करि वेखै सिरजणहारु ॥
नानक सचे की साची कार ॥
आदेसु तिसै आदेसु ॥
आदि अनीलु अनादि अनाहति जुगु जुगु एको वेसु ॥३१॥

aspundir
23-04-2013, 04:48 PM
इक दू जीभौ लख होहि लख होवहि लख वीस ॥
लखु लखु गेड़ा आखीअहि एकु नामु जगदीस ॥
एतु राहि पति पवड़ीआ चड़ीऐ होइ इकीस ॥
सुणि गला आकास की कीटा आई रीस ॥
नानक नदरी पाईऐ कूड़ी कूड़ै ठीस ॥३२॥

aspundir
23-04-2013, 04:49 PM
आखणि जोरु चुपै नह जोरु ॥
जोरु न मंगणि देणि न जोरु ॥
जोरु न जीवणि मरणि नह जोरु ॥
जोरु न राजि मालि मनि सोरु ॥
जोरु न सुरती गिआनि वीचारि ॥
जोरु न जुगती छुटै संसारु ॥
जिसु हथि जोरु करि वेखै सोइ ॥
नानक उतमु नीचु न कोइ ॥३३॥

aspundir
23-04-2013, 04:49 PM
राती रुती थिती वार ॥
पवण पाणी अगनी पाताल ॥
तिसु विचि धरती थापि रखी धरम साल ॥
तिसु विचि जीअ जुगति के रंग ॥
तिन के नाम अनेक अनंत॥
करमी करमी होइ वीचारु ॥
सचा आपि सचा दरबारु ॥
तिथै सोहनि पंच परवाणु ॥
नदरी करमि पवै नीसाणु ॥
कच पकाई ओथै पाइ ॥
नानक गइआ जापै जाइ ॥३४॥

aspundir
23-04-2013, 04:49 PM
धरम खंड का एहो धरमु ॥
गिआन खंड का आखहु करमु ॥
केते पवण पाणी वैसंतर केते कान महेस ॥
केते बरमे घाड़ति घड़ीअहि रूप रंग के वेस ॥
केतीआ करम भूमी मेर केते केते धू उपदेस ॥
केते इंद चंद सूर केते केते मंडल देस ॥
केते सिध बुध नाथ केते केते देवी वेस ॥
केते देव दानव मुनि केते केते रतन समुंद ॥
केतीआ खाणी केतीआ बाणी केते पात नरिंद ॥
केतीआ सुरती सेवक केते नानक अंतु न अंतु ॥३५॥

aspundir
23-04-2013, 04:49 PM
गिआन खंड महि गिआनु परचंडु ॥
तिथै नाद बिनोद कोड अनंदु ॥
सरम खंड की बाणी रूपु ॥
तिथै घाड़ति घड़ीऐ बहुतु अनूपु ॥
ता कीआ गला कथीआ ना जाहि ॥
जे को कहै पिछै पछुताइ ॥
तिथै घड़ीऐ सुरति मति मनि बुधि ॥
तिथै घड़ीऐ सुरा सिधा की सुधि ॥३६॥

aspundir
23-04-2013, 04:49 PM
करम खंड की बाणी जोरु ॥
तिथै होरु न कोई होरु ॥
तिथै जोध महाबल सूर ॥
तिन महि रामु रहिआ भरपूर ॥
तिथै सीतो सीता महिमा माहि ॥
ता के रूप न कथने जाहि ॥
ना ओहि मरहि न ठागे जाहि ॥
जिन कै रामु वसै मन माहि ॥
तिथै भगत वसहि के लोअ ॥
करहि अनंदु सचा मनि सोइ ॥
सच खंडि वसै निरंकारु ॥
करि करि वेखै नदरि निहाल ॥
तिथै खंड मंडल वरभंड ॥
जे को कथै त अंत न अंत ॥
तिथै लोअ लोअ आकार ॥
जिव जिव हुकमु तिवै तिव कार ॥
वेखै विगसै करि वीचारु ॥
नानक कथना करड़ा सारु ॥३७॥

aspundir
23-04-2013, 04:50 PM
जतु पाहारा धीरजु सुनिआरु ॥
अहरणि मति वेदु हथीआरु ॥
भउ खला अगनि तप ताउ ॥
भांडा भाउ अमृतु तितु ढालि ॥
घड़ीऐ सबदु सची टकसाल ॥
जिन कउ नदरि करमु तिन कार ॥
नानक नदरी नदरि निहाल ॥३८॥

aspundir
23-04-2013, 04:50 PM
सलोकु ॥
पवणु गुरू पाणी पिता माता धरति महतु ॥
दिवसु राति दुइ दाई दाइआ खेलै सगल जगतु ॥
चंगिआईआ बुरिआईआ वाचै धरमु हदूरि ॥
करमी आपो आपणी के नेड़ै के दूरि ॥
जिनी नामु धिआइआ गए मसकति घालि ॥
नानक ते मुख उजले केती छुटी नालि ॥१॥

aspundir
23-04-2013, 04:50 PM
सो दरु रागु आसा महला १ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥

सो दरु तेरा केहा सो घरु केहा जितु बहि सरब समाले ॥
वाजे तेरे नाद अनेक असंखा केते तेरे वावणहारे ॥
केते तेरे राग परी सिउ कहीअहि केते तेरे गावणहारे ॥
गावनि तुधनो पवणु पाणी बैसंतरु गावै राजा धरमु दुआरे ॥
गावनि तुधनो चितु गुपतु लिखि जाणनि लिखि लिखि धरमु बीचारे ॥
गावनि तुधनो ईसरु ब्रह्मा देवी सोहनि तेरे सदा सवारे ॥
गावनि तुधनो इंद्र इंद्रासणि बैठे देवतिआ दरि नाले ॥
गावनि तुधनो सिध समाधी अंदरि गावनि तुधनो साध बीचारे ॥
गावनि तुधनो जती सती संतोखी गावनि तुधनो वीर करारे ॥
गावनि तुधनो पंडित पड़नि रखीसुर जुगु जुगु वेदा नाले ॥
गावनि तुधनो मोहणीआ मनु मोहनि सुरगु मछु पइआले ॥
गावनि तुधनो रतन उपाए तेरे अठसठि तीर्थ नाले ॥
गावनि तुधनो जोध महाबल सूरा गावनि तुधनो खाणी चारे ॥
गावनि तुधनो खंड मंडल ब्रहमंडा करि करि रखे तेरे धारे ॥
सेई तुधनो गावनि जो तुधु भावनि रते तेरे भगत रसाले ॥
होरि केते तुधनो गावनि से मै चिति न आवनि नानकु किआ बीचारे ॥
सोई सोई सदा सचु साहिबु साचा साची नाई ॥
है भी होसी जाइ न जासी रचना जिनि रचाई ॥
रंगी रंगी भाती करि करि जिनसी माइआ जिनि उपाई ॥
करि करि देखै कीता आपणा जिउ तिस दी वडिआई ॥
जो तिसु भावै सोई करसी फिरि हुकमु न करणा जाई ॥
सो पातिसाहु साहा पतिसाहिबु नानक रहणु रजाई ॥१॥

aspundir
23-04-2013, 04:50 PM
आसा महला १ ॥

सुणि वडा आखै सभु कोइ ॥
केवडु वडा डीठा होइ ॥
कीमति पाइ न कहिआ जाइ ॥
कहणै वाले तेरे रहे समाइ ॥१॥
वडे मेरे साहिबा गहिर ग्मभीरा गुणी गहीरा ॥
कोइ न जाणै तेरा केता केवडु चीरा ॥१॥

aspundir
23-04-2013, 04:50 PM
रहाउ ॥

सभि सुरती मिलि सुरति कमाई ॥
सभ कीमति मिलि कीमति पाई ॥
गिआनी धिआनी गुर गुरहाई ॥
कहणु न जाई तेरी तिलु वडिआई ॥२॥

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23-04-2013, 04:51 PM
सभि सत सभि तप सभि चंगिआईआ ॥
सिधा पुरखा कीआ वडिआईआ ॥
तुधु विणु सिधी किनै न पाईआ ॥
करमि मिलै नाही ठाकि रहाईआ ॥३॥

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23-04-2013, 04:51 PM
आखण वाला किआ वेचारा ॥
सिफती भरे तेरे भंडारा ॥
जिसु तू देहि तिसै किआ चारा ॥
नानक सचु सवारणहारा ॥४॥२॥

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23-04-2013, 04:51 PM
आसा महला १ ॥

आखा जीवा विसरै मरि जाउ ॥
आखणि अउखा साचा नाउ ॥
साचे नाम की लागै भूख ॥
उतु भूखै खाइ चलीअहि दूख ॥१॥

सो किउ विसरै मेरी माइ ॥
साचा साहिबु साचै नाइ ॥१॥

aspundir
23-04-2013, 04:51 PM
रहाउ ॥

साचे नाम की तिलु वडिआई ॥
आखि थके कीमति नही पाई ॥
जे सभि मिलि कै आखण पाहि ॥
वडा न होवै घाटि न जाइ ॥२॥

aspundir
23-04-2013, 04:51 PM
ना ओहु मरै न होवै सोगु ॥
देदा रहै न चूकै भोगु ॥
गुणु एहो होरु नाही कोइ ॥
ना को होआ ना को होइ ॥३॥

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23-04-2013, 04:52 PM
जेवडु आपि तेवड तेरी दाति ॥
जिनि दिनु करि कै कीती राति ॥
खसमु विसारहि ते कमजाति ॥
नानक नावै बाझु सनाति ॥४॥३॥

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23-04-2013, 04:52 PM
रागु गूजरी महला ४ ॥

हरि के जन सतिगुर सतपुरखा बिनउ करउ गुर पासि ॥
हम कीरे किर्म सतिगुर सरणाई करि दइआ नामु परगासि ॥१॥
मेरे मीत गुरदेव मो कउ राम नामु परगासि ॥
गुरमति नामु मेरा प्रान सखाई हरि कीरति हमरी रहरासि ॥१॥

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23-04-2013, 04:52 PM
रहाउ ॥
हरि जन के वड भाग वडेरे जिन हरि हरि सरधा हरि पिआस ॥
हरि हरि नामु मिलै त्रिपतासहि मिलि संगति गुण परगासि ॥२॥

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23-04-2013, 04:52 PM
जिन हरि हरि हरि रसु नामु न पाइआ ते भागहीण जम पासि ॥
जो सतिगुर सरणि संगति नही आए ध्रिगु जीवे ध्रिगु जीवासि ॥३॥

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23-04-2013, 04:52 PM
जिन हरि जन सतिगुर संगति पाई तिन धुरि मसतकि लिखिआ लिखासि ॥
धनु धंनु सतसंगति जितु हरि रसु पाइआ मिलि जन नानक नामु परगासि ॥४॥४॥

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23-04-2013, 04:52 PM
रागु गूजरी महला ५ ॥
काहे रे मन चितवहि उदमु जा आहरि हरि जीउ परिआ ॥
सैल पथर महि जंत उपाए ता का रिजकु आगै करि धरिआ ॥१॥

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23-04-2013, 04:53 PM
मेरे माधउ जी सतसंगति मिले सु तरिआ ॥
गुर परसादि परम पदु पाइआ सूके कासट हरिआ ॥१॥

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23-04-2013, 04:53 PM
रहाउ ॥
जननि पिता लोक सुत बनिता कोइ न किस की धरिआ ॥
सिरि सिरि रिजकु स्मबाहे ठाकुरु काहे मन भउ करिआ ॥२॥

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23-04-2013, 04:53 PM
ऊडे ऊडि आवै सै कोसा तिसु पाछै बचरे छरिआ ॥
तिन कवणु खलावै कवणु चुगावै मन महि सिमरनु करिआ ॥३॥

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23-04-2013, 04:53 PM
सभि निधान दस असट सिधान ठाकुर कर तल धरिआ ॥
जन नानक बलि बलि सद बलि जाईऐ तेरा अंतु न पारावरिआ ॥४॥५॥

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23-04-2013, 04:53 PM
रागु आसा महला ४
सो पुरखु ੴ सतिगुर प्रसादि ॥

सो पुरखु निरंजनु हरि पुरखु निरंजनु हरि अगमा अगम अपारा ॥
सभि धिआवहि सभि धिआवहि तुधु जी हरि सचे सिरजणहारा ॥
सभि जीअ तुमारे जी तूं जीआ का दातारा ॥
हरि धिआवहु संतहु जी सभि दूख विसारणहारा ॥
हरि आपे ठाकुरु हरि आपे सेवकु जी किआ नानक जंत विचारा ॥१॥

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23-04-2013, 04:54 PM
तूं घट घट अंतरि सरब निरंतरि जी हरि एको पुरखु समाणा ॥
इकि दाते इकि भेखारी जी सभि तेरे चोज विडाणा ॥
तूं आपे दाता आपे भुगता जी हउ तुधु बिनु अवरु न जाणा ॥
तूं पारब्रह्मु बेअंतु बेअंतु जी तेरे किआ गुण आखि वखाणा ॥
जो सेवहि जो सेवहि तुधु जी जनु नानकु तिन कुरबाणा ॥२॥

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23-04-2013, 04:54 PM
हरि धिआवहि हरि धिआवहि तुधु जी से जन जुग महि सुखवासी ॥
से मुकतु से मुकतु भए जिन हरि धिआइआ जी तिन तूटी जम की फासी ॥
जिन निरभउ जिन हरि निरभउ धिआइआ जी तिन का भउ सभु गवासी ॥
जिन सेविआ जिन सेविआ मेरा हरि जी ते हरि हरि रूपि समासी ॥
से धंनु से धंनु जिन हरि धिआइआ जी जनु नानकु तिन बलि जासी ॥३॥

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23-04-2013, 04:55 PM
तेरी भगति तेरी भगति भंडार जी भरे बिअंत बेअंता ॥
तेरे भगत तेरे भगत सलाहनि तुधु जी हरि अनिक अनेक अनंता ॥
तेरी अनिक तेरी अनिक करहि हरि पूजा जी तपु तापहि जपहि बेअंता ॥
तेरे अनेक तेरे अनेक पड़हि बहु सिम्रिति सासत जी करि किरिआ खटु करम करंता ॥ से भगत से भगत भले जन नानक जी जो भावहि मेरे हरि भगवंता ॥४॥

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23-04-2013, 04:56 PM
तूं आदि पुरखु अपर्मपरु करता जी तुधु जेवडु अवरु न कोई ॥
तूं जुगु जुगु एको सदा सदा तूं एको जी तूं निहचलु करता सोई ॥
तुधु आपे भावै सोई वरतै जी तूं आपे करहि सु होई ॥
तुधु आपे स्रिसटि सभ उपाई जी तुधु आपे सिरजि सभ गोई ॥
जनु नानकु गुण गावै करते के जी जो सभसै का जाणोई ॥५॥१॥

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23-04-2013, 04:57 PM
आसा महला ४ ॥
तूं करता सचिआरु मैडा सांई ॥
जो तउ भावै सोई थीसी जो तूं देहि सोई हउ पाई ॥१॥

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23-04-2013, 04:57 PM
रहाउ ॥
सभ तेरी तूं सभनी धिआइआ ॥
जिस नो क्रिपा करहि तिनि नाम रतनु पाइआ ॥
गुरमुखि लाधा मनमुखि गवाइआ ॥
तुधु आपि विछोड़िआ आपि मिलाइआ ॥१॥

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23-04-2013, 04:57 PM
तूं दरीआउ सभ तुझ ही माहि ॥
तुझ बिनु दूजा कोई नाहि ॥
जीअ जंत सभि तेरा खेलु ॥
विजोगि मिलि विछुड़िआ संजोगी मेलु ॥२॥

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23-04-2013, 04:57 PM
जिस नो तू जाणाइहि सोई जनु जाणै ॥
हरि गुण सद ही आखि वखाणै ॥
जिनि हरि सेविआ तिनि सुखु पाइआ ॥
सहजे ही हरि नामि समाइआ ॥३॥

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23-04-2013, 04:57 PM
तू आपे करता तेरा कीआ सभु होइ ॥
तुधु बिनु दूजा अवरु न कोइ ॥
तू करि करि वेखहि जाणहि सोइ ॥
जन नानक गुरमुखि परगटु होइ ॥४॥२॥

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23-04-2013, 04:57 PM
आसा महला १ ॥



तितु सरवरड़ै भईले निवासा पाणी पावकु तिनहि कीआ ॥
पंकजु मोह पगु नही चालै हम देखा तह डूबीअले ॥१॥

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23-04-2013, 04:58 PM
मन एकु न चेतसि मूड़ मना ॥
हरि बिसरत तेरे गुण गलिआ ॥१॥

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23-04-2013, 04:58 PM
रहाउ ॥
ना हउ जती सती नही पड़िआ मूरख मुग्धा जनमु भइआ ॥
प्रणवति नानक तिन की सरणा जिन तू नाही वीसरिआ ॥२॥३॥

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28-04-2013, 01:37 PM
आसा महला ५ ॥
भई परापति मानुख देहुरीआ ॥
गोबिंद मिलण की इह तेरी बरीआ ॥
अवरि काज तेरै कितै न काम ॥
मिलु साधसंगति भजु केवल नाम ॥१॥

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28-04-2013, 01:37 PM
सरंजामि लागु भवजल तरन कै ॥
जनमु ब्रिथा जात रंगि माइआ कै ॥१॥

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28-04-2013, 01:37 PM
रहाउ ॥
जपु तपु संजमु धरमु न कमाइआ ॥
सेवा साध न जानिआ हरि राइआ ॥
कहु नानक हम नीच करमा ॥
सरणि परे की राखहु सरमा ॥२॥४॥

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28-04-2013, 01:37 PM
सोहिला रागु गउड़ी दीपकी महला १ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥

जै घरि कीरति आखीऐ करते का होइ बीचारो ॥
तितु घरि गावहु सोहिला सिवरिहु सिरजणहारो ॥१॥
तुम गावहु मेरे निरभउ का सोहिला ॥
हउ वारी जितु सोहिलै सदा सुखु होइ ॥१॥

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28-04-2013, 01:37 PM
रहाउ ॥
नित नित जीअड़े समालीअनि देखैगा देवणहारु ॥
तेरे दानै कीमति ना पवै तिसु दाते कवणु सुमारु ॥२॥
स्मबति साहा लिखिआ मिलि करि पावहु तेलु ॥
देहु सजण असीसड़ीआ जिउ होवै साहिब सिउ मेलु ॥३॥
घरि घरि एहो पाहुचा सदड़े नित पवंनि ॥
सदणहारा सिमरीऐ नानक से दिह आवंनि ॥४॥१॥

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28-04-2013, 01:38 PM
रागु आसा महला १ ॥
छिअ घर छिअ गुर छिअ उपदेस ॥
गुरु गुरु एको वेस अनेक ॥१॥
बाबा जै घरि करते कीरति होइ ॥
सो घरु राखु वडाई तोइ ॥१॥

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28-04-2013, 01:38 PM
रहाउ ॥
विसुए चसिआ घड़ीआ पहरा थिती वारी माहु होआ ॥
सूरजु एको रुति अनेक ॥ नानक करते के केते वेस ॥२॥२॥

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28-04-2013, 01:38 PM
रागु धनासरी महला १ ॥

गगन मै थालु रवि चंदु दीपक बने तारिका मंडल जनक मोती ॥
धूपु मलआनलो पवणु चवरो करे सगल बनराइ फूलंत जोती ॥१॥
कैसी आरती होइ ॥
भव खंडना तेरी आरती ॥
अनहता सबद वाजंत भेरी ॥१॥

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28-04-2013, 01:38 PM
रहाउ ॥
सहस तव नैन नन नैन हहि तोहि कउ सहस मूरति नना एक तुही ॥
सहस पद बिमल नन एक पद गंध बिनु सहस तव गंध इव चलत मोही ॥२॥
सभ महि जोति जोति है सोइ ॥
तिस दै चानणि सभ महि चानणु होइ ॥
गुर साखी जोति परगटु होइ ॥
जो तिसु भावै सु आरती होइ ॥३॥
हरि चरण कवल मकरंद लोभित मनो अनदिनु मोहि आही पिआसा ॥
क्रिपा जलु देहि नानक सारिंग कउ होइ जा ते तेरै नाइ वासा ॥४॥३॥

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28-04-2013, 01:38 PM
रागु गउड़ी पूरबी महला ४ ॥

कामि करोधि नगरु बहु भरिआ मिलि साधू खंडल खंडा हे ॥
पूरबि लिखत लिखे गुरु पाइआ मनि हरि लिव मंडल मंडा हे ॥१॥
करि साधू अंजुली पुनु वडा हे ॥
करि डंडउत पुनु वडा हे ॥१॥

aspundir
28-04-2013, 01:39 PM
रहाउ ॥
साकत हरि रस सादु न जाणिआ तिन अंतरि हउमै कंडा हे ॥
जिउ जिउ चलहि चुभै दुखु पावहि जमकालु सहहि सिरि डंडा हे ॥२॥
हरि जन हरि हरि नामि समाणे दुखु जनम मरण भव खंडा हे ॥
अबिनासी पुरखु पाइआ परमेसरु बहु सोभ खंड ब्रहमंडा हे ॥३॥
हम गरीब मसकीन प्रभ तेरे हरि राखु राखु वड वडा हे ॥
जन नानक नामु अधारु टेक है हरि नामे ही सुखु मंडा हे ॥४॥४॥

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28-04-2013, 01:39 PM
रागु गउड़ी पूरबी महला ५ ॥

करउ बेनंती सुणहु मेरे मीता संत टहल की बेला ॥
ईहा खाटि चलहु हरि लाहा आगै बसनु सुहेला ॥१॥
अउध घटै दिनसु रैणारे ॥
मन गुर मिलि काज सवारे ॥१॥

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28-04-2013, 01:39 PM
रहाउ ॥
इहु संसारु बिकारु संसे महि तरिओ ब्रह्म गिआनी ॥
जिसहि जगाइ पीआवै इहु रसु अकथ कथा तिनि जानी ॥२॥
जा कउ आए सोई बिहाझहु हरि गुर ते मनहि बसेरा ॥
निज घरि महलु पावहु सुख सहजे बहुरि न होइगो फेरा ॥३॥
अंतरजामी पुरख बिधाते सरधा मन की पूरे ॥
नानक दासु इहै सुखु मागै मो कउ करि संतन की धूरे ॥४॥५॥

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28-04-2013, 01:39 PM
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥

रागु सिरीरागु महला पहिला १ घरु १ ॥
मोती त मंदर ऊसरहि रतनी त होहि जड़ाउ ॥
कसतूरि कुंगू अगरि चंदनि लीपि आवै चाउ ॥
मतु देखि भूला वीसरै तेरा चिति न आवै नाउ ॥१॥
हरि बिनु जीउ जलि बलि जाउ ॥
मै आपणा गुरु पूछि देखिआ अवरु नाही थाउ ॥१॥

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28-04-2013, 01:39 PM
रहाउ ॥
धरती त हीरे लाल जड़ती पलघि लाल जड़ाउ ॥
मोहणी मुखि मणी सोहै करे रंगि पसाउ ॥
मतु देखि भूला वीसरै तेरा चिति न आवै नाउ ॥२॥
सिधु होवा सिधि लाई रिधि आखा आउ ॥
गुपतु परगटु होइ बैसा लोकु राखै भाउ ॥
मतु देखि भूला वीसरै तेरा चिति न आवै नाउ ॥३॥
सुलतानु होवा मेलि लसकर तखति राखा पाउ ॥
हुकमु हासलु करी बैठा नानका सभ वाउ ॥
मतु देखि भूला वीसरै तेरा चिति न आवै नाउ ॥४॥१॥

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28-04-2013, 01:40 PM
सिरीरागु महला १ ॥

कोटि कोटी मेरी आरजा पवणु पीअणु अपिआउ ॥
चंदु सूरजु दुइ गुफै न देखा सुपनै सउण न थाउ ॥
भी तेरी कीमति ना पवै हउ केवडु आखा नाउ ॥१॥
साचा निरंकारु निज थाइ ॥
सुणि सुणि आखणु आखणा जे भावै करे तमाइ ॥१॥

aspundir
28-04-2013, 01:40 PM
रहाउ ॥
कुसा कटीआ वार वार पीसणि पीसा पाइ ॥
अगी सेती जालीआ भसम सेती रलि जाउ ॥
भी तेरी कीमति ना पवै हउ केवडु आखा नाउ ॥२॥
पंखी होइ कै जे भवा सै असमानी जाउ ॥
नदरी किसै न आवऊ ना किछु पीआ न खाउ ॥
भी तेरी कीमति ना पवै हउ केवडु आखा नाउ ॥३॥
नानक कागद लख मणा पड़ि पड़ि कीचै भाउ ॥
मसू तोटि न आवई लेखणि पउणु चलाउ ॥
भी तेरी कीमति ना पवै हउ केवडु आखा नाउ ॥४॥२॥

aspundir
28-04-2013, 01:41 PM
सिरीरागु महला १ ॥
लेखै बोलणु बोलणा लेखै खाणा खाउ ॥
लेखै वाट चलाईआ लेखै सुणि वेखाउ ॥
लेखै साह लवाईअहि पड़े कि पुछण जाउ ॥१॥
बाबा माइआ रचना धोहु ॥
अंधै नामु विसारिआ ना तिसु एह न ओहु ॥१॥

aspundir
28-04-2013, 01:41 PM
रहाउ ॥
जीवण मरणा जाइ कै एथै खाजै कालि ॥
जिथै बहि समझाईऐ तिथै कोइ न चलिओ नालि ॥
रोवण वाले जेतड़े सभि बंनहि पंड परालि ॥२॥
सभु को आखै बहुतु बहुतु घटि न आखै कोइ ॥
कीमति किनै न पाईआ कहणि न वडा होइ ॥
साचा साहबु एकु तू होरि जीआ केते लोअ ॥३॥
नीचा अंदरि नीच जाति नीची हू अति नीचु ॥
नानकु तिन कै संगि साथि वडिआ सिउ किआ रीस ॥
जिथै नीच समालीअनि तिथै नदरि तेरी बखसीस ॥४॥३॥

aspundir
28-04-2013, 01:43 PM
सिरीरागु महला १ ॥

लबु कुता कूड़ु चूहड़ा ठगि खाधा मुरदारु ॥
पर निंदा पर मलु मुख सुधी अगनि क्रोधु चंडालु ॥
रस कस आपु सलाहणा ए करम मेरे करतार ॥१॥
बाबा बोलीऐ पति होइ ॥
ऊतम से दरि ऊतम कहीअहि नीच करम बहि रोइ ॥१॥

aspundir
28-04-2013, 01:43 PM
रहाउ ॥
रसु सुइना रसु रुपा कामणि रसु परमल की वासु ॥
रसु घोड़े रसु सेजा मंदर रसु मीठा रसु मासु ॥
एते रस सरीर के कै घटि नाम निवासु ॥२॥
जितु बोलिऐ पति पाईऐ सो बोलिआ परवाणु ॥
फिका बोलि विगुचणा सुणि मूरख मन अजाण ॥
जो तिसु भावहि से भले होरि कि कहण वखाण ॥३॥
तिन मति तिन पति तिन धनु पलै जिन हिरदै रहिआ समाइ ॥
तिन का किआ सालाहणा अवर सुआलिउ काइ ॥
नानक नदरी बाहरे राचहि दानि न नाइ ॥४॥४॥

aspundir
28-04-2013, 01:43 PM
सिरीरागु महला १ ॥
अमलु गलोला कूड़ का दिता देवणहारि ॥
मती मरणु विसारिआ खुसी कीती दिन चारि ॥
सचु मिलिआ तिन सोफीआ राखण कउ दरवारु ॥१॥
नानक साचे कउ सचु जाणु ॥
जितु सेविऐ सुखु पाईऐ तेरी दरगह चलै माणु ॥१॥

aspundir
28-04-2013, 01:43 PM
रहाउ ॥
सचु सरा गुड़ बाहरा जिसु विचि सचा नाउ ॥
सुणहि वखाणहि जेतड़े हउ तिन बलिहारै जाउ ॥
ता मनु खीवा जाणीऐ जा महली पाए थाउ ॥२॥
नाउ नीरु चंगिआईआ सतु परमलु तनि वासु ॥
ता मुखु होवै उजला लख दाती इक दाति ॥
दूख तिसै पहि आखीअहि सूख जिसै ही पासि ॥३॥
सो किउ मनहु विसारीऐ जा के जीअ पराण ॥
तिसु विणु सभु अपवित्रु है जेता पैनणु खाणु ॥
होरि गलां सभि कूड़ीआ तुधु भावै परवाणु ॥४॥५॥

aspundir
28-04-2013, 01:48 PM
सिरीरागु महलु १ ॥
जालि मोहु घसि मसु करि मति कागदु करि सारु ॥
भाउ कलम करि चितु लेखारी गुर पुछि लिखु बीचारु ॥
लिखु नामु सालाह लिखु लिखु अंतु न पारावारु ॥१॥
बाबा एहु लेखा लिखि जाणु ॥
जिथै लेखा मंगीऐ तिथै होइ सचा नीसाणु ॥१॥

aspundir
28-04-2013, 01:49 PM
रहाउ ॥
जिथै मिलहि वडिआईआ सद खुसीआ सद चाउ ॥
तिन मुखि टिके निकलहि जिन मनि सचा नाउ ॥
करमि मिलै ता पाईऐ नाही गली वाउ दुआउ ॥२॥
इकि आवहि इकि जाहि उठि रखीअहि नाव सलार ॥
इकि उपाए मंगते इकना वडे दरवार ॥
अगै गइआ जाणीऐ विणु नावै वेकार ॥३॥
भै तेरै डरु अगला खपि खपि छिजै देह ॥
नाव जिना सुलतान खान होदे डिठे खेह ॥
नानक उठी चलिआ सभि कूड़े तुटे नेह ॥४॥६॥

aspundir
28-04-2013, 01:49 PM
सिरीरागु महला १ ॥
सभि रस मिठे मंनिऐ सुणिऐ सालोणे ॥
खट तुरसी मुखि बोलणा मारण नाद कीए ॥
छतीह अमृत भाउ एकु जा कउ नदरि करेइ ॥१॥
बाबा होरु खाणा खुसी खुआरु ॥
जितु खाधै तनु पीड़ीऐ मन महि चलहि विकार ॥१॥

aspundir
28-04-2013, 01:49 PM
रहाउ ॥
रता पैनणु मनु रता सुपेदी सतु दानु ॥
नीली सिआही कदा करणी पहिरणु पैर धिआनु ॥
कमरबंदु संतोख का धनु जोबनु तेरा नामु ॥२॥
बाबा होरु पैनणु खुसी खुआरु ॥
जितु पैधै तनु पीड़ीऐ मन महि चलहि विकार ॥१॥

aspundir
28-04-2013, 01:49 PM
रहाउ ॥
घोड़े पाखर सुइने साखति बूझणु तेरी वाट ॥
तरकस तीर कमाण सांग तेगबंद गुण धातु ॥
वाजा नेजा पति सिउ परगटु करमु तेरा मेरी जाति ॥३॥
बाबा होरु चड़णा खुसी खुआरु ॥
जितु चड़िऐ तनु पीड़ीऐ मन महि चलहि विकार ॥१॥

aspundir
28-04-2013, 01:49 PM
रहाउ ॥
घर मंदर खुसी नाम की नदरि तेरी परवारु ॥
हुकमु सोई तुधु भावसी होरु आखणु बहुतु अपारु ॥
नानक सचा पातिसाहु पूछि न करे बीचारु ॥४॥
बाबा होरु सउणा खुसी खुआरु ॥
जितु सुतै तनु पीड़ीऐ मन महि चलहि विकार ॥१॥

aspundir
28-04-2013, 01:50 PM
रहाउ ॥४॥७॥
सिरीरागु महला १ ॥
कुंगू की कांइआ रतना की ललिता अगरि वासु तनि सासु ॥
अठसठि तीर्थ
का मुखि टिका तितु घटि मति विगासु ॥
ओतु मती सालाहणा सचु नामु गुणतासु ॥१॥
बाबा होर मति होर होर ॥
जे सउ वेर कमाईऐ कूड़ै कूड़ा जोरु ॥१॥

aspundir
28-04-2013, 01:50 PM
रहाउ ॥
पूज लगै पीरु आखीऐ सभु मिलै संसारु ॥
नाउ सदाए आपणा होवै सिधु सुमारु ॥
जा पति लेखै ना पवै सभा पूज खुआरु ॥२॥
जिन कउ सतिगुरि थापिआ तिन मेटि न सकै कोइ ॥
ओना अंदरि नामु निधानु है नामो परगटु होइ ॥
नाउ पूजीऐ नाउ मंनीऐ अखंडु सदा सचु सोइ ॥३॥
खेहू खेह रलाईऐ ता जीउ केहा होइ ॥
जलीआ सभि सिआणपा उठी चलिआ रोइ ॥
नानक नामि विसारिऐ दरि गइआ किआ होइ ॥४॥८॥

aspundir
28-04-2013, 01:50 PM
सिरीरागु महला १ ॥
गुणवंती गुण वीथरै अउगुणवंती झूरि ॥
जे लोड़हि वरु कामणी नह मिलीऐ पिर कूरि ॥
ना बेड़ी ना तुलहड़ा ना पाईऐ पिरु दूरि ॥१॥
मेरे ठाकुर पूरै तखति अडोलु ॥
गुरमुखि पूरा जे करे पाईऐ साचु अतोलु ॥१॥

aspundir
28-04-2013, 01:50 PM
रहाउ ॥
प्रभु हरिमंदरु सोहणा तिसु महि माणक लाल ॥
मोती हीरा निरमला कंचन कोट रीसाल ॥
बिनु पउड़ी गड़ि किउ चड़उ गुर हरि धिआन निहाल ॥२॥
गुरु पउड़ी बेड़ी गुरू गुरु तुलहा हरि नाउ ॥
गुरु सरु सागरु बोहिथो गुरु तीरथु दरीआउ ॥
जे तिसु भावै ऊजली सत सरि नावण जाउ ॥३॥
पूरो पूरो आखीऐ पूरै तखति निवास ॥
पूरै थानि सुहावणै पूरै आस निरास ॥
नानक पूरा जे मिलै किउ घाटै गुण तास ॥४॥९॥

aspundir
28-04-2013, 01:50 PM
सिरीरागु महला १ ॥
आवहु भैणे गलि मिलह अंकि सहेलड़ीआह ॥
मिलि कै करह कहाणीआ सम्रथ कंत कीआह ॥
साचे साहिब सभि गुण अउगण सभि असाह ॥१॥
करता सभु को तेरै जोरि ॥
एकु सबदु बीचारीऐ जा तू ता किआ होरि ॥१॥

aspundir
28-04-2013, 01:51 PM
रहाउ ॥
जाइ पुछहु सोहागणी तुसी राविआ किनी गुणीं ॥
सहजि संतोखि सीगारीआ मिठा बोलणी ॥
पिरु रीसालू ता मिलै जा गुर का सबदु सुणी ॥२॥
केतीआ तेरीआ कुदरती केवड तेरी दाति ॥
केते तेरे जीअ जंत सिफति करहि दिनु राति ॥
केते तेरे रूप रंग केते जाति अजाति ॥३॥
सचु मिलै सचु ऊपजै सच महि साचि समाइ ॥
सुरति होवै पति ऊगवै गुरबचनी भउ खाइ ॥
नानक सचा पातिसाहु आपे लए मिलाइ ॥४॥१०॥

aspundir
28-04-2013, 01:51 PM
सिरीरागु महला १ ॥
भली सरी जि उबरी हउमै मुई घराहु ॥
दूत लगे फिरि चाकरी सतिगुर का वेसाहु ॥
कलप तिआगी बादि है सचा वेपरवाहु ॥१॥
मन रे सचु मिलै भउ जाइ ॥
भै बिनु निरभउ किउ थीऐ गुरमुखि सबदि समाइ ॥१॥

aspundir
29-04-2013, 09:53 PM
रहाउ ॥
केता आखणु आखीऐ आखणि तोटि न होइ ॥
मंगण वाले केतड़े दाता एको सोइ ॥
जिस के जीअ पराण है मनि वसिऐ सुखु होइ ॥२॥
जगु सुपना बाजी बनी खिन महि खेलु खेलाइ ॥
संजोगी मिलि एकसे विजोगी उठि जाइ ॥
जो तिसु भाणा सो थीऐ अवरु न करणा जाइ ॥३॥
गुरमुखि वसतु वेसाहीऐ सचु वखरु सचु रासि ॥
जिनी सचु वणंजिआ गुर पूरे साबासि ॥
नानक वसतु पछाणसी सचु सउदा जिसु पासि ॥४॥११॥

aspundir
29-04-2013, 09:53 PM
सिरीरागु महलु १ ॥
धातु मिलै फुनि धातु कउ सिफती सिफति समाइ ॥
लालु गुलालु गहबरा सचा रंगु चड़ाउ ॥
सचु मिलै संतोखीआ हरि जपि एकै भाइ ॥१॥
भाई रे संत जना की रेणु ॥
संत सभा गुरु पाईऐ मुकति पदार्थु धेणु ॥१॥

aspundir
29-04-2013, 09:53 PM
रहाउ ॥
ऊचउ थानु सुहावणा ऊपरि महलु मुरारि ॥
सचु करणी दे पाईऐ दरु घरु महलु पिआरि ॥
गुरमुखि मनु समझाईऐ आतम रामु बीचारि ॥२॥
त्रिबिधि करम कमाईअहि आस अंदेसा होइ ॥
किउ गुर बिनु त्रिकुटी छुटसी सहजि मिलिऐ सुखु होइ ॥
निज घरि महलु पछाणीऐ नदरि करे मलु धोइ ॥३॥
बिनु गुर मैलु न उतरै बिनु हरि किउ घर वासु ॥
एको सबदु वीचारीऐ अवर तिआगै आस ॥
नानक देखि दिखाईऐ हउ सद बलिहारै जासु ॥४॥१२॥

aspundir
29-04-2013, 09:53 PM
सिरीरागु महला १ ॥
ध्रिगु जीवणु दोहागणी मुठी दूजै भाइ ॥
कलर केरी कंध जिउ अहिनिसि किरि ढहि पाइ ॥
बिनु सबदै सुखु ना थीऐ पिर बिनु दूखु न जाइ ॥१॥
मुंधे पिर बिनु किआ सीगारु ॥
दरि घरि ढोई न लहै दरगह झूठु खुआरु ॥१॥

aspundir
29-04-2013, 09:54 PM
रहाउ ॥
आपि सुजाणु न भुलई सचा वड किरसाणु ॥
पहिला धरती साधि कै सचु नामु दे दाणु ॥
नउ निधि उपजै नामु एकु करमि पवै नीसाणु ॥२॥
गुर कउ जाणि न जाणई किआ तिसु चजु अचारु ॥
अंधुलै नामु विसारिआ मनमुखि अंध गुबारु ॥
आवणु जाणु न चुकई मरि जनमै होइ खुआरु ॥३॥
चंदनु मोलि अणाइआ कुंगू मांग संधूरु ॥
चोआ चंदनु बहु घणा पाना नालि कपूरु ॥
जे धन कंति न भावई त सभि अड्मबर कूड़ु ॥४॥
सभि रस भोगण बादि हहि सभि सीगार विकार ॥
जब लगु सबदि न भेदीऐ किउ सोहै गुरदुआरि ॥
नानक धंनु सुहागणी जिन सह नालि पिआरु ॥५॥१३॥

aspundir
29-04-2013, 09:54 PM
सिरीरागु महला १ ॥
सुंञी देह डरावणी जा जीउ विचहु जाइ ॥
भाहि बलंदी विझवी धूउ न निकसिओ काइ ॥
पंचे रुंने दुखि भरे बिनसे दूजै भाइ ॥१॥
मूड़े रामु जपहु गुण सारि ॥
हउमै ममता मोहणी सभ मुठी अहंकारि ॥१॥

aspundir
29-04-2013, 09:54 PM
रहाउ ॥
जिनी नामु विसारिआ दूजी कारै लगि ॥
दुबिधा लागे पचि मुए अंतरि त्रिसना अगि ॥
गुरि राखे से उबरे होरि मुठी धंधै ठगि ॥२॥
मुई परीति पिआरु गइआ मुआ वैरु विरोधु ॥
धंधा थका हउ मुई ममता माइआ क्रोधु ॥
करमि मिलै सचु पाईऐ गुरमुखि सदा निरोधु ॥३॥
सची कारै सचु मिलै गुरमति पलै पाइ ॥
सो नरु जमै ना मरै ना आवै ना जाइ ॥
नानक दरि प्रधानु सो दरगहि पैधा जाइ ॥४॥१४॥

aspundir
29-04-2013, 09:54 PM
सिरीरागु महल १ ॥
तनु जलि बलि माटी भइआ मनु माइआ मोहि मनूरु ॥
अउगण फिरि लागू भए कूरि वजावै तूरु ॥
बिनु सबदै भरमाईऐ दुबिधा डोबे पूरु ॥१॥
मन रे सबदि तरहु चितु लाइ ॥
जिनि गुरमुखि नामु न बूझिआ मरि जनमै आवै जाइ ॥१॥

aspundir
29-04-2013, 09:54 PM
रहाउ ॥
तनु सूचा सो आखीऐ जिसु महि साचा नाउ ॥
भै सचि राती देहुरी जिहवा सचु सुआउ ॥
सची नदरि निहालीऐ बहुड़ि न पावै ताउ ॥२॥
साचे ते पवना भइआ पवनै ते जलु होइ ॥
जल ते त्रिभवणु साजिआ घटि घटि जोति समोइ ॥
निरमलु मैला ना थीऐ सबदि रते पति होइ ॥३॥
इहु मनु साचि संतोखिआ नदरि करे तिसु माहि ॥
पंच भूत सचि भै रते जोति सची मन माहि ॥
नानक अउगण वीसरे गुरि राखे पति ताहि ॥४॥१५॥

aspundir
29-04-2013, 09:55 PM
सिरीरागु महला १ ॥
नानक बेड़ी सच की तरीऐ गुर वीचारि ॥
इकि आवहि इकि जावही पूरि भरे अहंकारि ॥
मनहठि मती बूडीऐ गुरमुखि सचु सु तारि ॥१॥
गुर बिनु किउ तरीऐ सुखु होइ ॥
जिउ भावै तिउ राखु तू मै अवरु न दूजा कोइ ॥१॥

aspundir
29-04-2013, 09:55 PM
रहाउ ॥
आगै देखउ डउ जलै पाछै हरिओ अंगूरु ॥
जिस ते उपजै तिस ते बिनसै घटि घटि सचु भरपूरि ॥
आपे मेलि मिलावही साचै महलि हदूरि ॥२॥
साहि साहि तुझु समला कदे न विसारेउ ॥
जिउ जिउ साहबु मनि वसै गुरमुखि अमृतु पेउ ॥
मनु तनु तेरा तू धणी गरबु निवारि समेउ ॥३॥
जिनि एहु जगतु उपाइआ त्रिभवणु करि आकारु ॥
गुरमुखि चानणु जाणीऐ मनमुखि मुगधु गुबारु ॥
घटि घटि जोति निरंतरी बूझै गुरमति सारु ॥४॥
गुरमुखि जिनी जाणिआ तिन कीचै साबासि ॥
सचे सेती रलि मिले सचे गुण परगासि ॥
नानक नामि संतोखीआ जीउ पिंडु प्रभ पासि ॥५॥१६॥

aspundir
29-04-2013, 09:55 PM
सिरीरागु महला १ ॥
सुणि मन मित्र पिआरिआ मिलु वेला है एह ॥
जब लगु जोबनि सासु है तब लगु इहु तनु देह ॥
बिनु गुण कामि न आवई ढहि ढेरी तनु खेह ॥१॥
मेरे मन लै लाहा घरि जाहि ॥
गुरमुखि नामु सलाहीऐ हउमै निवरी भाहि ॥१॥

aspundir
29-04-2013, 09:55 PM
रहाउ ॥
सुणि सुणि गंढणु गंढीऐ लिखि पड़ि बुझहि भारु ॥
त्रिसना अहिनिसि अगली हउमै रोगु विकारु ॥
ओहु वेपरवाहु अतोलवा गुरमति कीमति सारु ॥२॥
लख सिआणप जे करी लख सिउ प्रीति मिलापु ॥
बिनु संगति साध न ध्रापीआ बिनु नावै दूख संतापु ॥
हरि जपि जीअरे छुटीऐ गुरमुखि चीनै आपु ॥३॥
तनु मनु गुर पहि वेचिआ मनु दीआ सिरु नालि ॥
त्रिभवणु खोजि ढंढोलिआ गुरमुखि खोजि निहालि ॥
सतगुरि मेलि मिलाइआ नानक सो प्रभु नालि ॥४॥१७॥

aspundir
29-04-2013, 09:55 PM
सिरीरागु महला १ ॥
मरणै की चिंता नही जीवण की नही आस ॥
तू सरब जीआ प्रतिपालही लेखै सास गिरास ॥
अंतरि गुरमुखि तू वसहि जिउ भावै तिउ निरजासि ॥१॥
जीअरे राम जपत मनु मानु ॥
अंतरि लागी जलि बुझी पाइआ गुरमुखि गिआनु ॥१॥

aspundir
29-04-2013, 09:55 PM
रहाउ ॥
अंतर की गति जाणीऐ गुर मिलीऐ संक उतारि ॥
मुइआ जितु घरि जाईऐ तितु जीवदिआ मरु मारि ॥
अनहद सबदि सुहावणे पाईऐ गुर वीचारि ॥२॥
अनहद बाणी पाईऐ तह हउमै होइ बिनासु ॥
सतगुरु सेवे आपणा हउ सद कुरबाणै तासु ॥
खड़ि दरगह पैनाईऐ मुखि हरि नाम निवासु ॥३॥
जह देखा तह रवि रहे सिव सकती का मेलु ॥
त्रिहु गुण बंधी देहुरी जो आइआ जगि सो खेलु ॥
विजोगी दुखि विछुड़े मनमुखि लहहि न मेलु ॥४॥
मनु बैरागी घरि वसै सच भै राता होइ ॥
गिआन महारसु भोगवै बाहुड़ि भूख न होइ ॥
नानक इहु मनु मारि मिलु भी फिरि दुखु न होइ ॥५॥१८॥

aspundir
29-04-2013, 09:56 PM
सिरीरागु महला १ ॥
एहु मनो मूरखु लोभीआ लोभे लगा लुभानु ॥
सबदि न भीजै साकता दुरमति आवनु जानु ॥
साधू सतगुरु जे मिलै ता पाईऐ गुणी निधानु ॥१॥
मन रे हउमै छोडि गुमानु ॥
हरि गुरु सरवरु सेवि तू पावहि दरगह मानु ॥१॥

aspundir
29-04-2013, 09:56 PM
रहाउ ॥
राम नामु जपि दिनसु राति गुरमुखि हरि धनु जानु ॥
सभि सुख हरि रस भोगणे संत सभा मिलि गिआनु ॥
निति अहिनिसि हरि प्रभु सेविआ सतगुरि दीआ नामु ॥२॥
कूकर कूड़ु कमाईऐ गुर निंदा पचै पचानु ॥
भरमे भूला दुखु घणो जमु मारि करै खुलहानु ॥
मनमुखि सुखु न पाईऐ गुरमुखि सुखु सुभानु ॥३॥
ऐथै धंधु पिटाईऐ सचु लिखतु परवानु ॥
हरि सजणु गुरु सेवदा गुर करणी प्रधानु ॥
नानक नामु न वीसरै करमि सचै नीसाणु ॥४॥१९॥

aspundir
29-04-2013, 09:56 PM
सिरीरागु महला १ ॥
इकु तिलु पिआरा वीसरै रोगु वडा मन माहि ॥
किउ दरगह पति पाईऐ जा हरि न वसै मन माहि ॥
गुरि मिलिऐ सुखु पाईऐ अगनि मरै गुण माहि ॥१॥
मन रे अहिनिसि हरि गुण सारि ॥
जिन खिनु पलु नामु न वीसरै ते जन विरले संसारि ॥१॥

aspundir
29-04-2013, 09:56 PM
रहाउ ॥
जोती जोति मिलाईऐ सुरती सुरति संजोगु ॥
हिंसा हउमै गतु गए नाही सहसा सोगु ॥
गुरमुखि जिसु हरि मनि वसै तिसु मेले गुरु संजोगु ॥२॥
काइआ कामणि जे करी भोगे भोगणहारु ॥
तिसु सिउ नेहु न कीजई जो दीसै चलणहारु ॥
गुरमुखि रवहि सोहागणी सो प्रभु सेज भतारु ॥३॥
चारे अगनि निवारि मरु गुरमुखि हरि जलु पाइ ॥
अंतरि कमलु प्रगासिआ अम्रितु भरिआ अघाइ ॥
नानक सतगुरु मीतु करि सचु पावहि दरगह जाइ ॥४॥२०॥

aspundir
29-04-2013, 09:56 PM
सिरीरागु महला १ ॥
हरि हरि जपहु पिआरिआ गुरमति ले हरि बोलि ॥
मनु सच कसवटी लाईऐ तुलीऐ पूरै तोलि ॥
कीमति किनै न पाईऐ रिद माणक मोलि अमोलि ॥१॥
भाई रे हरि हीरा गुर माहि ॥
सतसंगति सतगुरु पाईऐ अहिनिसि सबदि सलाहि ॥१॥

aspundir
29-04-2013, 09:56 PM
रहाउ ॥
सचु वखरु धनु रासि लै पाईऐ गुर परगासि ॥
जिउ अगनि मरै जलि पाइऐ तिउ त्रिसना दासनि दासि ॥
जम जंदारु न लगई इउ भउजलु तरै तरासि ॥२॥
गुरमुखि कूड़ु न भावई सचि रते सच भाइ ॥
साकत सचु न भावई कूड़ै कूड़ी पांइ ॥
सचि रते गुरि मेलिऐ सचे सचि समाइ ॥३॥
मन महि माणकु लालु नामु रतनु पदार्थु हीरु ॥
सचु वखरु धनु नामु है घटि घटि गहिर ग्मभीरु ॥
नानक गुरमुखि पाईऐ दइआ करे हरि हीरु ॥४॥२१॥

aspundir
29-04-2013, 09:57 PM
सिरीरागु महला १ ॥
भरमे भाहि न विझवै जे भवै दिसंतर देसु ॥
अंतरि मैलु न उतरै ध्रिगु जीवणु ध्रिगु वेसु ॥
होरु कितै भगति न होवई बिनु सतिगुर के उपदेस ॥१॥
मन रे गुरमुखि अगनि निवारि ॥
गुर का कहिआ मनि वसै हउमै त्रिसना मारि ॥१॥

aspundir
29-04-2013, 09:57 PM
रहाउ ॥
मनु माणकु निरमोलु है राम नामि पति पाइ ॥
मिलि सतसंगति हरि पाईऐ गुरमुखि हरि लिव लाइ ॥
आपु गइआ सुखु पाइआ मिलि सललै सलल समाइ ॥२॥
जिनि हरि हरि नामु न चेतिओ सु अउगुणि आवै जाइ ॥
जिसु सतगुरु पुरखु न भेटिओ सु भउजलि पचै पचाइ ॥
इहु माणकु जीउ निरमोलु है इउ कउडी बदलै जाइ ॥३॥
जिंना सतगुरु रसि मिलै से पूरे पुरख सुजाण ॥
गुर मिलि भउजलु लंघीऐ दरगह पति परवाणु ॥
नानक ते मुख उजले धुनि उपजै सबदु नीसाणु ॥४॥२२॥

aspundir
29-04-2013, 09:57 PM
सिरीरागु महला १ ॥
वणजु करहु वणजारिहो वखरु लेहु समालि ॥
तैसी वसतु विसाहीऐ जैसी निबहै नालि ॥
अगै साहु सुजाणु है लैसी वसतु समालि ॥१॥
भाई रे रामु कहहु चितु लाइ ॥
हरि जसु वखरु लै चलहु सहु देखै पतीआइ ॥१॥

aspundir
29-04-2013, 09:57 PM
रहाउ ॥
जिना रासि न सचु है किउ तिना सुखु होइ ॥
खोटै वणजि वणंजिऐ मनु तनु खोटा होइ ॥
फाही फाथे मिरग जिउ दूखु घणो नित रोइ ॥२॥
खोटे पोतै ना पवहि तिन हरि गुर दरसु न होइ ॥
खोटे जाति न पति है खोटि न सीझसि कोइ ॥
खोटे खोटु कमावणा आइ गइआ पति खोइ ॥३॥
नानक मनु समझाईऐ गुर कै सबदि सालाह ॥
राम नाम रंगि रतिआ भारु न भरमु तिनाह ॥
हरि जपि लाहा अगला निरभउ हरि मन माह ॥४॥२३॥

aspundir
29-04-2013, 09:57 PM
सिरीरागु महला १ घरु २ ॥
धनु जोबनु अरु फुलड़ा नाठीअड़े दिन चारि ॥
पबणि केरे पत जिउ ढलि ढुलि जुमणहार ॥१॥
रंगु माणि लै पिआरिआ जा जोबनु नउ हुला ॥
दिन थोड़ड़े थके भइआ पुराणा चोला ॥१॥

aspundir
29-04-2013, 09:57 PM
रहाउ ॥
सजण मेरे रंगुले जाइ सुते जीराणि ॥
हं भी वंञा डुमणी रोवा झीणी बाणि ॥२॥
की न सुणेही गोरीए आपण कंनी सोइ ॥
लगी आवहि साहुरै नित न पेईआ होइ ॥३॥
नानक सुती पेईऐ जाणु विरती संनि ॥
गुणा गवाई गंठड़ी अवगण चली बंनि ॥४॥२४॥

aspundir
29-04-2013, 09:57 PM
सिरीरागु महला १ घरु दूजा २ ॥
आपे रसीआ आपि रसु आपे रावणहारु ॥
आपे होवै चोलड़ा आपे सेज भतारु ॥१॥
रंगि रता मेरा साहिबु रवि रहिआ भरपूरि ॥१॥

aspundir
29-04-2013, 09:58 PM
रहाउ ॥
आपे माछी मछुली आपे पाणी जालु ॥
आपे जाल मणकड़ा आपे अंदरि लालु ॥२॥
आपे बहु बिधि रंगुला सखीए मेरा लालु ॥
नित रवै सोहागणी देखु हमारा हालु ॥३॥
प्रणवै नानकु बेनती तू सरवरु तू हंसु ॥
कउलु तू है कवीआ तू है आपे वेखि विगसु ॥४॥२५॥

aspundir
29-04-2013, 09:58 PM
सिरीरागु महला १ घरु ३ ॥
इहु तनु धरती बीजु करमा करो सलिल आपाउ सारिंगपाणी ॥
मनु किरसाणु हरि रिदै जमाइ लै इउ पावसि पदु निरबाणी ॥१॥
काहे गरबसि मूड़े माइआ ॥
पित सुतो सगल कालत्र माता तेरे होहि न अंति सखाइआ ॥

aspundir
29-04-2013, 09:58 PM
रहाउ ॥
बिखै बिकार दुसट किरखा करे इन तजि आतमै होइ धिआई ॥
जपु तपु संजमु होहि जब राखे कमलु बिगसै मधु आस्रमाई ॥२॥
बीस सपताहरो बासरो संग्रहै तीनि खोड़ा नित कालु सारै ॥
दस अठार मै अपर्मपरो चीनै कहै नानकु इव एकु तारै ॥ ३॥२६॥

aspundir
29-04-2013, 09:58 PM
सिरीरागु महला १ घरु ३ ॥
अमलु करि धरती बीजु सबदो करि सच की आब नित देहि पाणी ॥
होइ किरसाणु ईमानु जमाइ लै भिसतु दोजकु मूड़े एव जाणी ॥१॥
मतु जाण सहि गली पाइआ ॥
माल कै माणै रूप की सोभा इतु बिधी जनमु गवाइआ ॥१॥

aspundir
29-04-2013, 09:58 PM
रहाउ ॥
ऐब तनि चिकड़ो इहु मनु मीडको कमल की सार नही मूलि पाई ॥
भउरु उसतादु नित भाखिआ बोले किउ बूझै जा नह बुझाई ॥२॥
आखणु सुनणा पउण की बाणी इहु मनु रता माइआ ॥
खसम की नदरि दिलहि पसिंदे जिनी करि एकु धिआइआ ॥३॥
तीह करि रखे पंज करि साथी नाउ सैतानु मतु कटि जाई ॥
नानकु आखै राहि पै चलणा मालु धनु कित कू संजिआही ॥४॥२७॥

aspundir
29-04-2013, 09:59 PM
सिरीरागु महला १ घरु ४ ॥
सोई मउला जिनि जगु मउलिआ हरिआ कीआ संसारो ॥
आब खाकु जिनि बंधि रहाई धंनु सिरजणहारो ॥१॥
मरणा मुला मरणा ॥
भी करतारहु डरणा ॥१॥

aspundir
29-04-2013, 09:59 PM
रहाउ ॥
ता तू मुला ता तू काजी जाणहि नामु खुदाई ॥
जे बहुतेरा पड़िआ होवहि को रहै न भरीऐ पाई ॥२॥
सोई काजी जिनि आपु तजिआ इकु नामु कीआ आधारो ॥
है भी होसी जाइ न जासी सचा सिरजणहारो ॥३॥
पंज वखत निवाज गुजारहि पड़हि कतेब कुराणा ॥
नानकु आखै गोर सदेई रहिओ पीणा खाणा ॥४॥२८॥

aspundir
29-04-2013, 09:59 PM
सिरीरागु महला १ घरु ४ ॥
एकु सुआनु दुइ सुआनी नालि ॥
भलके भउकहि सदा बइआलि ॥
कूड़ु छुरा मुठा मुरदारु ॥
धाणक रूपि रहा करतार ॥१॥
मै पति की पंदि न करणी की कार ॥
हउ बिगड़ै रूपि रहा बिकराल ॥
तेरा एकु नामु तारे संसारु ॥
मै एहा आस एहो आधारु ॥१॥

aspundir
29-04-2013, 09:59 PM
रहाउ ॥
मुखि निंदा आखा दिनु राति ॥
पर घरु जोही नीच सनाति ॥
कामु क्रोधु तनि वसहि चंडाल ॥
धाणक रूपि रहा करतार ॥२॥
फाही सुरति मलूकी वेसु ॥
हउ ठगवाड़ा ठगी देसु ॥
खरा सिआणा बहुता भारु ॥
धाणक रूपि रहा करतार ॥३॥
मै कीता न जाता हरामखोरु ॥
हउ किआ मुहु देसा दुसटु चोरु ॥
नानकु नीचु कहै बीचारु ॥
धाणक रूपि रहा करतार ॥४॥२९॥

aspundir
29-04-2013, 09:59 PM
सिरीरागु महला १ घरु ४ ॥
एका सुरति जेते है जीअ ॥
सुरति विहूणा कोइ न कीअ ॥
जेही सुरति तेहा तिन राहु ॥
लेखा इको आवहु जाहु ॥१॥
काहे जीअ करहि चतुराई ॥
लेवै देवै ढिल न पाई ॥१॥

aspundir
29-04-2013, 10:00 PM
रहाउ ॥
तेरे जीअ जीआ का तोहि ॥
कित कउ साहिब आवहि रोहि ॥
जे तू साहिब आवहि रोहि ॥
तू ओना का तेरे ओहि ॥२॥
असी बोलविगाड़ विगाड़ह बोल ॥
तू नदरी अंदरि तोलहि तोल ॥
जह करणी तह पूरी मति ॥
करणी बाझहु घटे घटि ॥३॥
प्रणवति नानक गिआनी कैसा होइ ॥
आपु पछाणै बूझै सोइ ॥
गुर परसादि करे बीचारु ॥
सो गिआनी दरगह परवाणु ॥४॥३०॥

aspundir
29-04-2013, 10:00 PM
सिरीरागु महला १ घरु ४ ॥
तू दरीआउ दाना बीना मै मछुली कैसे अंतु लहा ॥
जह जह देखा तह तह तू है तुझ ते निकसी फूटि मरा ॥१॥
न जाणा मेउ न जाणा जाली ॥
जा दुखु लागै ता तुझै समाली ॥१॥

aspundir
29-04-2013, 10:00 PM
रहाउ ॥
तू भरपूरि जानिआ मै दूरि ॥
जो कछु करी सु तेरै हदूरि ॥
तू देखहि हउ मुकरि पाउ ॥
तेरै कमि न तेरै नाइ ॥२॥
जेता देहि तेता हउ खाउ ॥
बिआ दरु नाही कै दरि जाउ ॥
नानकु एक कहै अरदासि ॥
जीउ पिंडु सभु तेरै पासि ॥३॥
आपे नेड़ै दूरि आपे ही आपे मंझि मिआनु ॥
आपे वेखै सुणे आपे ही कुदरति करे जहानु ॥
जो तिसु भावै नानका हुकमु सोई परवानु ॥४॥३१॥

aspundir
29-04-2013, 10:00 PM
सिरीरागु महला १ घरु ४ ॥
कीता कहा करे मनि मानु ॥
देवणहारे कै हथि दानु ॥
भावै देइ न देई सोइ ॥
कीते कै कहिऐ किआ होइ ॥१॥
आपे सचु भावै तिसु सचु ॥
अंधा कचा कचु निकचु ॥१॥

aspundir
29-04-2013, 10:00 PM
रहाउ ॥
जा के रुख बिरख आराउ ॥
जेही धातु तेहा तिन नाउ ॥
फुलु भाउ फलु लिखिआ पाइ ॥
आपि बीजि आपे ही खाइ ॥२॥
कची कंध कचा विचि राजु ॥
मति अलूणी फिका सादु ॥
नानक आणे आवै रासि ॥
विणु नावै नाही साबासि ॥३॥३२॥

aspundir
29-04-2013, 10:01 PM
सिरीरागु महला १ घरु ५ ॥
अछल छलाई नह छलै नह घाउ कटारा करि सकै ॥
जिउ साहिबु राखै तिउ रहै इसु लोभी का जीउ टल पलै ॥१॥
बिनु तेल दीवा किउ जलै ॥१॥

aspundir
29-04-2013, 10:01 PM
रहाउ ॥
पोथी पुराण कमाईऐ ॥
भउ वटी इतु तनि पाईऐ ॥
सचु बूझणु आणि जलाईऐ ॥२॥
इहु तेलु दीवा इउ जलै ॥
करि चानणु साहिब तउ मिलै ॥१॥

aspundir
29-04-2013, 10:01 PM
रहाउ ॥
इतु तनि लागै बाणीआ ॥
सुखु होवै सेव कमाणीआ ॥
सभ दुनीआ आवण जाणीआ ॥३॥
विचि दुनीआ सेव कमाईऐ ॥
ता दरगह बैसणु पाईऐ ॥
कहु नानक बाह लुडाईऐ ॥४॥३३॥

aspundir
30-04-2013, 09:55 PM
सिरीरागु महला ३ घरु १ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
हउ सतिगुरु सेवी आपणा इक मनि इक चिति भाइ ॥
सतिगुरु मन कामना तीरथु है जिस नो देइ बुझाइ ॥
मन चिंदिआ वरु पावणा जो इछै सो फलु पाइ ॥
नाउ धिआईऐ नाउ मंगीऐ नामे सहजि समाइ ॥१॥
मन मेरे हरि रसु चाखु तिख जाइ ॥
जिनी गुरमुखि चाखिआ सहजे रहे समाइ ॥१॥

aspundir
30-04-2013, 09:55 PM
रहाउ ॥
जिनी सतिगुरु सेविआ तिनी पाइआ नामु निधानु ॥
अंतरि हरि रसु रवि रहिआ चूका मनि अभिमानु ॥
हिरदै कमलु प्रगासिआ लागा सहजि धिआनु ॥
मनु निरमलु हरि रवि रहिआ पाइआ दरगहि मानु ॥२॥
सतिगुरु सेवनि आपणा ते विरले संसारि ॥
हउमै ममता मारि कै हरि राखिआ उर धारि ॥
हउ तिन कै बलिहारणै जिना नामे लगा पिआरु ॥
सेई सुखीए चहु जुगी जिना नामु अखुटु अपारु ॥३॥
गुर मिलिऐ नामु पाईऐ चूकै मोह पिआस ॥
हरि सेती मनु रवि रहिआ घर ही माहि उदासु ॥
जिना हरि का सादु आइआ हउ तिन बलिहारै जासु ॥
नानक नदरी पाईऐ सचु नामु गुणतासु ॥४॥१॥३४॥

aspundir
30-04-2013, 09:55 PM
सिरीरागु महला ३ ॥
बहु भेख करि भरमाईऐ मनि हिरदै कपटु कमाइ ॥
हरि का महलु न पावई मरि विसटा माहि समाइ ॥१॥
मन रे ग्रिह ही माहि उदासु ॥
सचु संजमु करणी सो करे गुरमुखि होइ परगासु ॥१॥

aspundir
30-04-2013, 09:55 PM
रहाउ ॥
गुर कै सबदि मनु जीतिआ गति मुकति घरै महि पाइ ॥
हरि का नामु धिआईऐ सतसंगति मेलि मिलाइ ॥२॥
जे लख इसतरीआ भोग करहि नव खंड राजु कमाहि ॥
बिनु सतगुर सुखु न पावई फिरि फिरि जोनी पाहि ॥३॥
हरि हारु कंठि जिनी पहिरिआ गुर चरणी चितु लाइ ॥
तिना पिछै रिधि सिधि फिरै ओना तिलु न तमाइ ॥४॥
जो प्रभ भावै सो थीऐ अवरु न करणा जाइ ॥
जनु नानकु जीवै नामु लै हरि देवहु सहजि सुभाइ ॥५॥२॥३५॥

aspundir
30-04-2013, 09:55 PM
सिरीरागु महला ३ घरु १ ॥
जिस ही की सिरकार है तिस ही का सभु कोइ ॥
गुरमुखि कार कमावणी सचु घटि परगटु होइ ॥
अंतरि जिस कै सचु वसै सचे सची सोइ ॥
सचि मिले से न विछुड़हि तिन निज घरि वासा होइ ॥१॥
मेरे राम मै हरि बिनु अवरु न कोइ ॥ सतगुरु सचु
प्रभु निरमला सबदि मिलावा होइ ॥१॥

aspundir
30-04-2013, 09:56 PM
रहाउ ॥
सबदि मिलै सो मिलि रहै जिस नउ आपे लए मिलाइ ॥
दूजै भाइ को ना मिलै फिरि फिरि आवै जाइ ॥
सभ महि इकु वरतदा एको रहिआ समाइ ॥
जिस नउ आपि दइआलु होइ सो गुरमुखि नामि समाइ ॥२॥
पड़ि पड़ि पंडित जोतकी वाद करहि बीचारु ॥
मति बुधि भवी न बुझई अंतरि लोभ विकारु ॥
लख चउरासीह भरमदे भ्रमि भ्रमि होइ खुआरु ॥
पूरबि लिखिआ कमावणा कोइ न मेटणहारु ॥३॥
सतगुर की सेवा गाखड़ी सिरु दीजै आपु गवाइ ॥
सबदि मिलहि ता हरि मिलै सेवा पवै सभ थाइ ॥
पारसि परसिऐ पारसु होइ जोती जोति समाइ ॥
जिन कउ पूरबि लिखिआ तिन सतगुरु मिलिआ आइ ॥४॥
मन भुखा भुखा मत करहि मत तू करहि पूकार ॥
लख चउरासीह जिनि सिरी सभसै देइ अधारु ॥
निरभउ सदा दइआलु है सभना करदा सार ॥
नानक गुरमुखि बुझीऐ पाईऐ मोख दुआरु ॥५॥३॥३६॥

aspundir
30-04-2013, 09:56 PM
सिरीरागु महला ३ ॥
जिनी सुणि कै मंनिआ तिना निज घरि वासु ॥
गुरमती सालाहि सचु हरि पाइआ गुणतासु ॥
सबदि रते से निरमले हउ सद बलिहारै जासु ॥
हिरदै जिन कै हरि वसै तितु घटि है परगासु ॥१॥
मन मेरे हरि हरि निरमलु धिआइ ॥
धुरि मसतकि जिन कउ लिखिआ से गुरमुखि रहे लिव लाइ ॥१॥

aspundir
30-04-2013, 09:56 PM
रहाउ ॥
हरि संतहु देखहु नदरि करि निकटि वसै भरपूरि ॥
गुरमति जिनी पछाणिआ से देखहि सदा हदूरि ॥
जिन गुण तिन सद मनि वसै अउगुणवंतिआ दूरि ॥
मनमुख गुण तै बाहरे बिनु नावै मरदे झूरि ॥२॥
जिन सबदि गुरू सुणि मंनिआ तिन मनि धिआइआ हरि सोइ ॥
अनदिनु भगती रतिआ मनु तनु निरमलु होइ ॥
कूड़ा रंगु कसु्मभ का बिनसि जाइ दुखु रोइ ॥
जिसु अंदरि नाम प्रगासु है ओहु सदा सदा थिरु होइ ॥३॥
इहु जनमु पदार्थु पाइ कै हरि नामु न चेतै लिव लाइ ॥
पगि खिसिऐ रहणा नही आगै ठउरु न पाइ ॥
ओह वेला हथि न आवई अंति गइआ पछुताइ ॥
जिसु नदरि करे सो उबरै हरि सेती लिव लाइ ॥४॥
देखा देखी सभ करे मनमुखि बूझ न पाइ ॥
जिन गुरमुखि हिरदा सुधु है सेव पई तिन थाइ ॥
हरि गुण गावहि हरि नित पड़हि हरि गुण गाइ समाइ ॥
नानक तिन की बाणी सदा सचु है जि नामि रहे लिव लाइ ॥५॥४॥३७॥

aspundir
30-04-2013, 09:56 PM
सिरीरागु महला ३
॥ जिनी इक मनि नामु धिआइआ गुरमती वीचारि ॥
तिन के मुख सद उजले तितु सचै दरबारि ॥
ओइ अमृतु पीवहि सदा सदा सचै नामि पिआरि ॥१॥
भाई रे गुरमुखि सदा पति होइ ॥
हरि हरि सदा धिआईऐ मलु हउमै कढै धोइ ॥१॥

aspundir
30-04-2013, 09:56 PM
रहाउ ॥
मनमुख नामु न जाणनी विणु नावै पति जाइ ॥
सबदै सादु न आइओ लागे दूजै भाइ ॥
विसटा के कीड़े पवहि विचि विसटा से विसटा माहि समाइ ॥२॥
तिन का जनमु सफलु है जो चलहि सतगुर भाइ ॥
कुलु उधारहि आपणा धंनु जणेदी माइ ॥
हरि हरि नामु धिआईऐ जिस नउ किरपा करे रजाइ ॥३॥
जिनी गुरमुखि नामु धिआइआ विचहु आपु गवाइ ॥
ओइ अंदरहु बाहरहु निरमले सचे सचि समाइ ॥
नानक आए से परवाणु हहि जिन गुरमती हरि धिआइ ॥४॥५॥३८॥

aspundir
30-04-2013, 09:57 PM
सिरीरागु महला ३ ॥
हरि भगता हरि धनु रासि है गुर पूछि करहि वापारु ॥
हरि नामु सलाहनि सदा सदा वखरु हरि नामु अधारु ॥
गुरि पूरै हरि नामु द्रिड़ाइआ हरि भगता अतुटु भंडारु ॥१॥
भाई रे इसु मन कउ समझाइ ॥
ए मन आलसु किआ करहि गुरमुखि नामु धिआइ ॥१॥

aspundir
30-04-2013, 09:57 PM
रहाउ ॥
हरि भगति हरि का पिआरु है जे गुरमुखि करे बीचारु ॥
पाखंडि भगति न होवई दुबिधा बोलु खुआरु ॥
सो जनु रलाइआ ना रलै जिसु अंतरि बिबेक बीचारु ॥२॥
सो सेवकु हरि आखीऐ जो हरि राखै उरि धारि ॥
मनु तनु सउपे आगै धरे हउमै विचहु मारि ॥
धनु गुरमुखि सो परवाणु है जि कदे न आवै हारि ॥३॥
करमि मिलै ता पाईऐ विणु करमै पाइआ न जाइ ॥
लख चउरासीह तरसदे जिसु मेले सो मिलै हरि आइ ॥
नानक गुरमुखि हरि पाइआ सदा हरि नामि समाइ ॥४॥६॥३९॥

aspundir
30-04-2013, 09:57 PM
सिरीरागु महला ३ ॥
सुख सागरु हरि नामु है गुरमुखि पाइआ जाइ ॥
अनदिनु नामु धिआईऐ सहजे नामि समाइ ॥
अंदरु रचै हरि सच सिउ रसना हरि गुण गाइ ॥१॥
भाई रे जगु दुखीआ दूजै भाइ ॥
गुर सरणाई सुखु लहहि अनदिनु नामु धिआइ ॥१॥

aspundir
30-04-2013, 09:57 PM
रहाउ ॥
साचे मैलु न लागई मनु निरमलु हरि धिआइ ॥
गुरमुखि सबदु पछाणीऐ हरि अमृत नामि समाइ ॥
गुर गिआनु प्रचंडु बलाइआ अगिआनु अंधेरा जाइ ॥२॥
मनमुख मैले मलु भरे हउमै त्रिसना विकारु ॥
बिनु सबदै मैलु न उतरै मरि जमहि होइ खुआरु ॥
धातुर बाजी पलचि रहे ना उरवारु न पारु ॥३॥
गुरमुखि जप तप संजमी हरि कै नामि पिआरु ॥
गुरमुखि सदा धिआईऐ एकु नामु करतारु ॥
नानक नामु धिआईऐ सभना जीआ का आधारु ॥४॥७॥४०॥

aspundir
30-04-2013, 09:57 PM
स्रीरागु महला ३ ॥
मनमुखु मोहि विआपिआ बैरागु उदासी न होइ ॥
सबदु न चीनै सदा दुखु हरि दरगहि पति खोइ ॥
हउमै गुरमुखि खोईऐ नामि रते सुखु होइ ॥१॥
मेरे मन अहिनिसि पूरि रही नित आसा ॥
सतगुरु सेवि मोहु परजलै घर ही माहि उदासा ॥१॥

aspundir
30-04-2013, 09:58 PM
रहाउ ॥
गुरमुखि करम कमावै बिगसै हरि बैरागु अनंदु ॥
अहिनिसि भगति करे दिनु राती हउमै मारि निचंदु ॥
वडै भागि सतसंगति पाई हरि पाइआ सहजि अनंदु ॥२॥
सो साधू बैरागी सोई हिरदै नामु वसाए ॥
अंतरि लागि न तामसु मूले विचहु आपु गवाए ॥
नामु निधानु सतगुरू दिखालिआ हरि रसु पीआ अघाए ॥३॥
जिनि किनै पाइआ साधसंगती पूरै भागि बैरागि ॥
मनमुख फिरहि न जाणहि सतगुरु हउमै अंदरि लागि ॥
नानक सबदि रते हरि नामि रंगाए बिनु भै केही लागि ॥४॥८॥४१॥

aspundir
30-04-2013, 09:58 PM
सिरीरागु महला ३ ॥
घर ही सउदा पाईऐ अंतरि सभ वथु होइ ॥
खिनु खिनु नामु समालीऐ गुरमुखि पावै कोइ ॥
नामु निधानु अखुटु है वडभागि परापति होइ ॥१॥
मेरे मन तजि निंदा हउमै अहंकारु ॥
हरि जीउ सदा धिआइ तू गुरमुखि एकंकारु ॥१॥

aspundir
30-04-2013, 09:58 PM
रहाउ ॥
गुरमुखा के मुख उजले गुर सबदी बीचारि ॥
हलति पलति सुखु पाइदे जपि जपि रिदै मुरारि ॥
घर ही विचि महलु पाइआ गुर सबदी वीचारि ॥२॥
सतगुर ते जो मुह फेरहि मथे तिन काले ॥
अनदिनु दुख कमावदे नित जोहे जम जाले ॥
सुपनै सुखु न देखनी बहु चिंता परजाले ॥३॥
सभना का दाता एकु है आपे बखस करेइ ॥
कहणा किछू न जावई जिसु भावै तिसु देइ ॥
नानक गुरमुखि पाईऐ आपे जाणै सोइ ॥४॥९॥४२॥

aspundir
30-04-2013, 09:58 PM
सिरीरागु महला ३ ॥
सचा साहिबु सेवीऐ सचु वडिआई देइ ॥
गुर परसादी मनि वसै हउमै दूरि करेइ ॥
इहु मनु धावतु ता रहै जा आपे नदरि करेइ ॥१॥
भाई रे गुरमुखि हरि नामु धिआइ ॥
नामु निधानु सद मनि वसै महली पावै थाउ ॥१॥

aspundir
30-04-2013, 09:58 PM
रहाउ ॥
मनमुख मनु तनु अंधु है तिस नउ ठउर न ठाउ ॥
बहु जोनी भउदा फिरै जिउ सुंञैं घरि काउ ॥
गुरमती घटि चानणा सबदि मिलै हरि नाउ ॥२॥
त्रै गुण बिखिआ अंधु है माइआ मोह गुबार ॥
लोभी अन कउ सेवदे पड़ि वेदा करै पूकार ॥
बिखिआ अंदरि पचि मुए ना उरवारु न पारु ॥३॥
माइआ मोहि विसारिआ जगत पिता प्रतिपालि ॥
बाझहु गुरू अचेतु है सभ बधी जमकालि ॥
नानक गुरमति उबरे सचा नामु समालि ॥४॥१०॥४३॥

aspundir
30-04-2013, 09:59 PM
सिरीरागु महला ३ ॥
त्रै गुण माइआ मोहु है गुरमुखि चउथा पदु पाइ ॥
करि किरपा मेलाइअनु हरि नामु वसिआ मनि आइ ॥
पोतै जिन कै पुंनु है तिन सतसंगति मेलाइ ॥१॥
भाई रे गुरमति साचि रहाउ ॥
साचो साचु कमावणा साचै सबदि मिलाउ ॥१॥

aspundir
30-04-2013, 09:59 PM
रहाउ ॥
जिनी नामु पछाणिआ तिन विटहु बलि जाउ ॥
आपु छोडि चरणी लगा चला तिन कै भाइ ॥
लाहा हरि हरि नामु मिलै सहजे नामि समाइ ॥२॥
बिनु गुर महलु न पाईऐ नामु न परापति होइ ॥
ऐसा सतगुरु लोड़ि लहु जिदू पाईऐ सचु सोइ ॥
असुर संघारै सुखि वसै जो तिसु भावै सु होइ ॥३॥
जेहा सतगुरु करि जाणिआ तेहो जेहा सुखु होइ ॥
एहु सहसा मूले नाही भाउ लाए जनु कोइ ॥
नानक एक जोति दुइ मूरती सबदि मिलावा होइ ॥४॥११॥४४॥

aspundir
30-04-2013, 09:59 PM
सिरीरागु महला ३ ॥
अमृतु छोडि बिखिआ लोभाणे सेवा करहि विडाणी ॥
आपणा धरमु गवावहि बूझहि नाही अनदिनु दुखि विहाणी ॥
मनमुख अंध न चेतही डूबि मुए बिनु पाणी ॥१॥
मन रे सदा भजहु हरि सरणाई ॥
गुर का सबदु अंतरि वसै ता हरि विसरि न जाई ॥१॥

aspundir
30-04-2013, 10:00 PM
रहाउ ॥
इहु सरीरु माइआ का पुतला विचि हउमै दुसटी पाई ॥
आवणु जाणा जमणु मरणा मनमुखि पति गवाई ॥
सतगुरु सेवि सदा सुखु पाइआ जोती जोति मिलाई ॥२॥
सतगुर की सेवा अति सुखाली जो इछे सो फलु पाए ॥
जतु सतु तपु पवितु सरीरा हरि हरि मंनि वसाए ॥
सदा अनंदि रहै दिनु राती मिलि प्रीतम सुखु पाए ॥३॥
जो सतगुर की सरणागती हउ तिन कै बलि जाउ ॥
दरि सचै सची वडिआई सहजे सचि समाउ ॥
नानक नदरी पाईऐ गुरमुखि मेलि मिलाउ ॥४॥१२॥४५॥

aspundir
30-04-2013, 10:00 PM
सिरीरागु महला ३ ॥
मनमुख करम कमावणे जिउ दोहागणि तनि सीगारु ॥
सेजै कंतु न आवई नित नित होइ खुआरु ॥
पिर का महलु न पावई ना दीसै घरु बारु ॥१॥
भाई रे इक मनि नामु धिआइ ॥
संता संगति मिलि रहै जपि राम नामु सुखु पाइ ॥१॥

aspundir
30-04-2013, 10:00 PM
रहाउ ॥
गुरमुखि सदा सोहागणी पिरु राखिआ उर धारि ॥
मिठा बोलहि निवि चलहि सेजै रवै भतारु ॥
सोभावंती सोहागणी जिन गुर का हेतु अपारु ॥२॥
पूरै भागि सतगुरु मिलै जा भागै का उदउ होइ ॥
अंतरहु दुखु भ्रमु कटीऐ सुखु परापति होइ ॥
गुर कै भाणै जो चलै दुखु न पावै कोइ ॥३॥
गुर के भाणे विचि अमृतु है सहजे पावै कोइ ॥
जिना परापति तिन पीआ हउमै विचहु खोइ ॥
नानक गुरमुखि नामु धिआईऐ सचि मिलावा होइ ॥४॥१३॥४६॥

aspundir
30-04-2013, 10:00 PM
सिरीरागु महला ३ ॥
जा पिरु जाणै आपणा तनु मनु अगै धरेइ ॥
सोहागणी करम कमावदीआ सेई करम करेइ ॥
सहजे साचि मिलावड़ा साचु वडाई देइ ॥१॥
भाई रे गुर बिनु भगति न होइ ॥
बिनु गुर भगति न पाईऐ जे लोचै सभु कोइ ॥१॥

aspundir
30-04-2013, 10:00 PM
रहाउ ॥
लख चउरासीह फेरु पइआ कामणि दूजै भाइ ॥
बिनु गुर नीद न आवई दुखी रैणि विहाइ ॥
बिनु सबदै पिरु न पाईऐ बिरथा जनमु गवाइ ॥२॥
हउ हउ करती जगु फिरी ना धनु स्मपै नालि ॥
अंधी नामु न चेतई सभ बाधी जमकालि ॥
सतगुरि मिलिऐ धनु पाइआ हरि नामा रिदै समालि ॥३॥
नामि रते से निरमले गुर कै सहजि सुभाइ ॥
मनु तनु राता रंग सिउ रसना रसन रसाइ ॥
नानक रंगु न उतरै जो हरि धुरि छोडिआ लाइ ॥४॥१४॥४७॥

aspundir
19-05-2013, 05:01 PM
सिरीरागु महला ३ ॥
गुरमुखि क्रिपा करे भगति कीजै बिनु गुर भगति न होई ॥
आपै आपु मिलाए बूझै ता निरमलु होवै सोई ॥
हरि जीउ साचा साची बाणी सबदि मिलावा होई ॥१॥
भाई रे भगतिहीणु काहे जगि आइआ ॥
पूरे गुर की सेव न कीनी बिरथा जनमु गवाइआ ॥१॥

aspundir
19-05-2013, 05:01 PM
रहाउ ॥
आपे जगजीवनु सुखदाता आपे बखसि मिलाए ॥
जीअ जंत ए किआ वेचारे किआ को आखि सुणाए ॥
गुरमुखि आपे देइ वडाई आपे सेव कराए ॥२॥
देखि कुट्मबु मोहि लोभाणा चलदिआ नालि न जाई ॥
सतगुरु सेवि गुण निधानु पाइआ तिस दी कीम न पाई ॥
हरि प्रभु सखा मीतु प्रभु मेरा अंते होइ सखाई ॥३॥
आपणै मनि चिति कहै कहाए बिनु गुर आपु न जाई ॥
हरि जीउ दाता भगति वछलु है करि किरपा मंनि वसाई ॥
नानक सोभा सुरति देइ प्रभु आपे गुरमुखि दे वडिआई ॥४॥ १५॥४८॥

aspundir
19-05-2013, 05:02 PM
सिरीरागु महला ३ ॥
धनु जननी जिनि जाइआ धंनु पिता प्रधानु ॥
सतगुरु सेवि सुखु पाइआ विचहु गइआ गुमानु ॥
दरि सेवनि संत जन खड़े पाइनि गुणी निधानु ॥१॥
मेरे मन गुर मुखि धिआइ हरि सोइ ॥
गुर का सबदु मनि वसै मनु तनु निरमलु होइ ॥१॥

aspundir
19-05-2013, 05:02 PM
रहाउ ॥
करि किरपा घरि आइआ आपे मिलिआ आइ ॥
गुर सबदी सालाहीऐ रंगे सहजि सुभाइ ॥
सचै सचि समाइआ मिलि रहै न विछुड़ि जाइ ॥२॥
जो किछु करणा सु करि रहिआ अवरु न करणा जाइ ॥
चिरी विछुंने मेलिअनु सतगुर पंनै पाइ ॥
आपे कार कराइसी अवरु न करणा जाइ ॥३॥
मनु तनु रता रंग सिउ हउमै तजि विकार ॥
अहिनिसि हिरदै रवि रहै निरभउ नामु निरंकार ॥
नानक आपि मिलाइअनु पूरै सबदि अपार ॥४॥१६॥४९॥

aspundir
19-05-2013, 05:03 PM
सिरीरागु महला ३ ॥
गोविदु गुणी निधानु है अंतु न पाइआ जाइ ॥
कथनी बदनी न पाईऐ हउमै विचहु जाइ ॥
सतगुरि मिलिऐ सद भै रचै आपि वसै मनि आइ ॥१॥
भाई रे गुरमुखि बूझै कोइ ॥
बिनु बूझे करम कमावणे जनमु पदार्थु खोइ ॥१॥

aspundir
19-05-2013, 05:03 PM
रहाउ ॥
जिनी चाखिआ तिनी सादु पाइआ बिनु चाखे भरमि भुलाइ ॥
अमृतु साचा नामु है कहणा कछू न जाइ ॥
पीवत हू परवाणु भइआ पूरै सबदि समाइ ॥२॥
आपे देइ त पाईऐ होरु करणा किछू न जाइ ॥
देवण वाले कै हथि दाति है गुरू दुआरै पाइ ॥
जेहा कीतोनु तेहा होआ जेहे करम कमाइ ॥३॥
जतु सतु संजमु नामु है विणु नावै निरमलु न होइ ॥
पूरै भागि नामु मनि वसै सबदि मिलावा होइ ॥
नानक सहजे ही रंगि वरतदा हरि गुण पावै सोइ ॥४॥१७॥५०॥

aspundir
19-05-2013, 05:03 PM
सिरीरागु महला ३ ॥
कांइआ साधै उरध तपु करै विचहु हउमै न जाइ ॥
अधिआतम करम जे करे नामु न कब ही पाइ ॥
गुर कै सबदि जीवतु मरै हरि नामु वसै मनि आइ ॥१॥
सुणि मन मेरे भजु सतगुर सरणा ॥
गुर परसादी छुटीऐ बिखु भवजलु सबदि गुर तरणा ॥१॥

aspundir
19-05-2013, 05:04 PM
रहाउ ॥
त्रै गुण सभा धातु है दूजा भाउ विकारु ॥
पंडितु पड़ै बंधन मोह बाधा नह बूझै बिखिआ पिआरि ॥
सतगुरि मिलिऐ त्रिकुटी छूटै चउथै पदि मुकति दुआरु ॥२॥
गुर ते मारगु पाईऐ चूकै मोहु गुबारु ॥
सबदि मरै ता उधरै पाए मोख दुआरु ॥
गुर परसादी मिलि रहै सचु नामु करतारु ॥३॥
इहु मनूआ अति सबल है छडे न कितै उपाइ ॥
दूजै भाइ दुखु लाइदा बहुती देइ सजाइ ॥
नानक नामि लगे से उबरे हउमै सबदि गवाइ ॥४॥१८॥५१॥

aspundir
19-05-2013, 05:04 PM
सिरीरागु महला ३ ॥
किरपा करे गुरु पाईऐ हरि नामो देइ द्रिड़ाइ ॥
बिनु गुर किनै न पाइओ बिरथा जनमु गवाइ ॥
मनमुख करम कमावणे दरगह मिलै सजाइ ॥१॥
मन रे दूजा भाउ चुकाइ ॥
अंतरि तेरै हरि वसै गुर सेवा सुखु पाइ ॥

aspundir
19-05-2013, 05:05 PM
रहाउ ॥
सचु बाणी सचु सबदु है जा सचि धरे पिआरु ॥
हरि का नामु मनि वसै हउमै क्रोधु निवारि ॥
मनि निर्मल नामु धिआईऐ ता पाए मोख दुआरु ॥२॥
हउमै विचि जगु बिनसदा मरि जमै आवै जाइ ॥
मनमुख सबदु न जाणनी जासनि पति गवाइ ॥
गुर सेवा नाउ पाईऐ सचे रहै समाइ ॥३॥
सबदि मंनिऐ गुरु पाईऐ विचहु आपु गवाइ ॥
अनदिनु भगति करे सदा साचे की लिव लाइ ॥
नामु पदार्थु मनि वसिआ नानक सहजि समाइ ॥४॥१९॥५२॥

aspundir
19-05-2013, 05:05 PM
सिरीरागु महला ३॥
जिनी पुरखी सतगुरु न सेविओ से दुखीए जुग चारि ॥
घरि होदा पुरखु न पछाणिआ अभिमानि मुठे अहंकारि ॥
सतगुरू किआ फिटकिआ मंगि थके संसारि ॥
सचा सबदु न सेविओ सभि काज सवारणहारु ॥१॥
मन मेरे सदा हरि वेखु हदूरि ॥
जनम मरन दुखु परहरै सबदि रहिआ भरपूरि ॥१॥

aspundir
26-05-2013, 02:24 PM
रहाउ ॥
सचु सलाहनि से सचे सचा नामु अधारु ॥
सची कार कमावणी सचे नालि पिआरु ॥
सचा साहु वरतदा कोइ न मेटणहारु ॥
मनमुख महलु न पाइनी कूड़ि मुठे कूड़िआर ॥२॥
हउमै करता जगु मुआ गुर बिनु घोर अंधारु ॥
माइआ मोहि विसारिआ सुखदाता दातारु ॥
सतगुरु सेवहि ता उबरहि सचु रखहि उर धारि ॥
किरपा ते हरि पाईऐ सचि सबदि वीचारि ॥३॥
सतगुरु सेवि मनु निरमला हउमै तजि विकार ॥
आपु छोडि जीवत मरै गुर कै सबदि वीचार ॥
धंधा धावत रहि गए लागा साचि पिआरु ॥
सचि रते मुख उजले तितु साचै दरबारि ॥४॥
सतगुरु पुरखु न मंनिओ सबदि न लगो पिआरु ॥
इसनानु दानु जेता करहि दूजै भाइ खुआरु ॥
हरि जीउ आपणी क्रिपा करे ता लागै नाम पिआरु ॥
नानक नामु समालि तू गुर कै हेति अपारि ॥५॥२०॥५३॥

aspundir
26-05-2013, 02:24 PM
सिरीरागु महला ३ ॥
किसु हउ सेवी किआ जपु करी सतगुर पूछउ जाइ ॥
सतगुर का भाणा मंनि लई विचहु आपु गवाइ ॥
एहा सेवा चाकरी नामु वसै मनि आइ ॥
नामै ही ते सुखु पाईऐ सचै सबदि सुहाइ ॥१॥
मन मेरे अनदिनु जागु हरि चेति ॥
आपणी खेती रखि लै कूंज पड़ैगी खेति ॥१॥

aspundir
26-05-2013, 02:24 PM
रहाउ ॥
मन कीआ इछा पूरीआ सबदि रहिआ भरपूरि ॥
भै भाइ भगति करहि दिनु राती हरि जीउ वेखै सदा हदूरि ॥
सचै सबदि सदा मनु राता भ्रमु गइआ सरीरहु दूरि ॥
निरमलु साहिबु पाइआ साचा गुणी गहीरु ॥२॥
जो जागे से उबरे सूते गए मुहाइ ॥
सचा सबदु न पछाणिओ सुपना गइआ विहाइ ॥
सुंञे घर का पाहुणा जिउ आइआ तिउ जाइ ॥
मनमुख जनमु बिरथा गइआ किआ मुहु देसी जाइ ॥३॥
सभ किछु आपे आपि है हउमै विचि कहनु न जाइ ॥
गुर कै सबदि पछाणीऐ दुखु हउमै विचहु गवाइ ॥
सतगुरु सेवनि आपणा हउ तिन कै लागउ पाइ ॥
नानक दरि सचै सचिआर हहि हउ तिन बलिहारै जाउ ॥४॥२१॥५४॥

aspundir
26-05-2013, 02:24 PM
सिरीरागु महला ३ ॥
जे वेला वखतु वीचारीऐ ता कितु वेला भगति होइ ॥
अनदिनु नामे रतिआ सचे सची सोइ ॥
इकु तिलु पिआरा विसरै भगति किनेही होइ ॥
मनु तनु सीतलु साच सिउ सासु न बिरथा कोइ ॥१॥
मेरे मन हरि का नामु धिआइ ॥
साची भगति ता थीऐ जा हरि वसै मनि आइ ॥१॥

aspundir
26-05-2013, 02:24 PM
रहाउ ॥
सहजे खेती राहीऐ सचु नामु बीजु पाइ ॥
खेती जमी अगली मनूआ रजा सहजि सुभाइ ॥
गुर का सबदु अमृतु है जितु पीतै तिख जाइ ॥
इहु मनु साचा सचि रता सचे रहिआ समाइ ॥२॥
आखणु वेखणु बोलणा सबदे रहिआ समाइ ॥
बाणी वजी चहु जुगी सचो सचु सुणाइ ॥
हउमै मेरा रहि गइआ सचै लइआ मिलाइ ॥
तिन कउ महलु हदूरि है जो सचि रहे लिव लाइ ॥३॥
नदरी नामु धिआईऐ विणु करमा पाइआ न जाइ ॥
पूरै भागि सतसंगति लहै सतगुरु भेटै जिसु आइ ॥
अनदिनु नामे रतिआ दुखु बिखिआ विचहु जाइ ॥
नानक सबदि मिलावड़ा नामे नामि समाइ ॥४॥२२॥५५॥

aspundir
26-05-2013, 02:25 PM
सिरीरागु महला ३ ॥
आपणा भउ तिन पाइओनु जिन गुर का सबदु बीचारि ॥
सतसंगती सदा मिलि रहे सचे के गुण सारि ॥
दुबिधा मैलु चुकाईअनु हरि राखिआ उर धारि ॥
सची बाणी सचु मनि सचे नालि पिआरु ॥१॥
मन मेरे हउमै मैलु भर नालि ॥
हरि निरमलु सदा सोहणा सबदि सवारणहारु ॥१॥

aspundir
26-05-2013, 02:25 PM
रहाउ ॥
सचै सबदि मनु मोहिआ प्रभि आपे लए मिलाइ ॥
अनदिनु नामे रतिआ जोती जोति समाइ ॥
जोती हू प्रभु जापदा बिनु सतगुर बूझ न पाइ ॥
जिन कउ पूरबि लिखिआ सतगुरु
भेटिआ तिन आइ ॥२॥
विणु नावै सभ डुमणी दूजै भाइ खुआइ ॥
तिसु बिनु घड़ी न जीवदी दुखी रैणि विहाइ ॥
भरमि भुलाणा अंधुला फिरि फिरि आवै जाइ ॥
नदरि करे प्रभु आपणी आपे लए मिलाइ ॥३॥
सभु किछु सुणदा वेखदा किउ मुकरि पइआ जाइ ॥
पापो पापु कमावदे पापे पचहि पचाइ ॥
सो प्रभु नदरि न आवई मनमुखि बूझ न पाइ ॥
जिसु वेखाले सोई वेखै नानक गुरमुखि पाइ ॥४॥२३॥५६॥

aspundir
26-05-2013, 02:25 PM
स्रीरागु महला ३ ॥
बिनु गुर रोगु न तुटई हउमै पीड़ न जाइ ॥
गुर परसादी मनि वसै नामे रहै समाइ ॥
गुर सबदी हरि पाईऐ बिनु सबदै भरमि भुलाइ ॥१॥
मन रे निज घरि वासा होइ ॥
राम नामु सालाहि तू फिरि आवण जाणु न होइ ॥१॥

aspundir
26-05-2013, 02:25 PM
रहाउ ॥
हरि इको दाता वरतदा
दूजा अवरु न कोइ ॥
सबदि सालाही मनि वसै सहजे ही सुखु होइ ॥
सभ नदरी अंदरि वेखदा जै भावै तै देइ ॥२॥
हउमै सभा गणत है गणतै नउ सुखु नाहि ॥
बिखु की कार कमावणी बिखु ही माहि समाहि ॥
बिनु नावै ठउरु न पाइनी जमपुरि दूख सहाहि ॥३॥
जीउ पिंडु सभु तिस दा तिसै दा आधारु ॥
गुर परसादी बुझीऐ ता पाए मोख दुआरु ॥
नानक नामु सलाहि तूं अंतु न पारावारु ॥४॥२४॥५७॥

aspundir
26-05-2013, 02:25 PM
सिरीरागु महला ३ ॥
तिना अनंदु सदा सुखु है जिना सचु नामु आधारु ॥
गुर सबदी सचु पाइआ दूख निवारणहारु ॥
सदा सदा साचे गुण गावहि साचै नाइ पिआरु ॥
किरपा करि कै आपणी दितोनु भगति भंडारु ॥१॥
मन रे सदा अनंदु गुण गाइ ॥
सची बाणी हरि पाईऐ हरि सिउ रहै समाइ ॥१

aspundir
26-05-2013, 02:25 PM
॥ रहाउ ॥
सची भगती मनु लालु थीआ रता सहजि सुभाइ ॥
गुर सबदी मनु मोहिआ कहणा कछू न जाइ ॥
जिहवा रती सबदि सचै अमृतु पीवै रसि गुण गाइ ॥
गुरमुखि एहु रंगु पाईऐ जिस नो किरपा करे रजाइ ॥२॥
संसा इहु संसारु है सुतिआ रैणि विहाइ ॥
इकि आपणै भाणै कढि लइअनु आपे लइओनु मिलाइ ॥
आपे ही आपि मनि वसिआ माइआ मोहु चुकाइ ॥
आपि वडाई दितीअनु गुरमुखि देइ बुझाइ ॥३॥
सभना का दाता एकु है भुलिआ लए समझाइ ॥
इकि आपे आपि खुआइअनु दूजै छडिअनु लाइ ॥
गुरमती हरि पाईऐ जोती जोति मिलाइ ॥
अनदिनु नामे रतिआ नानक नामि समाइ ॥४॥२५॥५८॥

aspundir
26-05-2013, 02:26 PM
सिरीरागु महला ३ ॥
गुणवंती सचु पाइआ त्रिसना तजि विकार ॥
गुर सबदी मनु रंगिआ रसना प्रेम पिआरि ॥
बिनु सतिगुर किनै न पाइओ करि वेखहु मनि वीचारि ॥
मनमुख मैलु न उतरै जिचरु गुर सबदि न करे पिआरु ॥१॥
मन मेरे सतिगुर कै भाणै चलु ॥
निज घरि वसहि अमृतु पीवहि ता सुख लहहि महलु ॥१॥

aspundir
26-05-2013, 02:26 PM
रहाउ ॥
अउगुणवंती गुणु को नही बहणि न मिलै हदूरि ॥
मनमुखि सबदु न जाणई अवगणि सो प्रभु दूरि ॥
जिनी सचु पछाणिआ सचि रते भरपूरि ॥
गुर सबदी मनु बेधिआ प्रभु मिलिआ आपि हदूरि ॥२॥
आपे रंगणि रंगिओनु सबदे लइओनु मिलाइ ॥
सचा रंगु न उतरै जो सचि रते लिव लाइ ॥
चारे कुंडा भवि थके मनमुख बूझ न पाइ ॥
जिसु सतिगुरु मेले सो मिलै सचै सबदि समाइ ॥३॥
मित्र घणेरे करि थकी मेरा दुखु काटै कोइ ॥
मिलि प्रीतम दुखु कटिआ सबदि मिलावा होइ ॥
सचु खटणा सचु रासि है सचे सची सोइ ॥
सचि मिले से न विछुड़हि नानक गुरमुखि होइ ॥४॥२६॥५९॥

aspundir
26-05-2013, 02:26 PM
सिरीरागु महला ३ ॥
आपे कारणु करता करे स्रिसटि देखै आपि उपाइ ॥
सभ एको इकु वरतदा अलखु न लखिआ जाइ ॥
आपे प्रभू दइआलु है आपे देइ बुझाइ ॥
गुरमती सद मनि वसिआ सचि रहे लिव लाइ ॥१॥
मन मेरे गुर की मंनि लै रजाइ ॥
मनु तनु सीतलु सभु थीऐ नामु वसै मनि आइ ॥१॥

aspundir
26-05-2013, 02:26 PM
रहाउ ॥
जिनि करि कारणु धारिआ सोई सार करेइ ॥
गुर कै सबदि पछाणीऐ जा आपे नदरि करेइ ॥
से जन सबदे सोहणे तितु सचै दरबारि ॥
गुरमुखि सचै सबदि रते आपि मेले करतारि ॥२॥
गुरमती सचु लाहणा जिस दा अंतु न पारावारु ॥
घटि घटि आपे हुकमि वसै हुकमे करे बीचारु ॥
गुर सबदी सालाहीऐ हउमै विचहु खोइ ॥
सा धन नावै बाहरी अवगणवंती रोइ ॥३॥
सचु सलाही सचि लगा सचै नाइ त्रिपति होइ ॥
गुण वीचारी गुण संग्रहा अवगुण कढा धोइ ॥
आपे मेलि मिलाइदा फिरि वेछोड़ा न होइ ॥
नानक गुरु सालाही आपणा जिदू पाई प्रभु सोइ ॥४॥२७॥६०॥

aspundir
26-05-2013, 02:26 PM
सिरीरागु महला ३ ॥
सुणि सुणि काम गहेलीए किआ चलहि बाह लुडाइ ॥
आपणा पिरु न पछाणही किआ मुहु देसहि जाइ ॥
जिनी सखींं कंतु पछाणिआ हउ तिन कै लागउ पाइ ॥
तिन ही जैसी थी रहा सतसंगति मेलि मिलाइ ॥१॥
मुंधे कूड़ि मुठी कूड़िआरि ॥
पिरु प्रभु साचा सोहणा पाईऐ गुर बीचारि ॥१॥

aspundir
26-05-2013, 02:27 PM
रहाउ ॥
मनमुखि कंतु न पछाणई तिन किउ रैणि विहाइ ॥
गरबि अटीआ त्रिसना जलहि दुखु पावहि दूजै भाइ ॥
सबदि रतीआ सोहागणी तिन विचहु हउमै जाइ ॥
सदा पिरु रावहि आपणा तिना सुखे सुखि विहाइ ॥२॥
गिआन विहूणी पिर मुतीआ पिरमु न पाइआ जाइ ॥
अगिआन मती अंधेरु है बिनु पिर देखे भुख न जाइ ॥
आवहु मिलहु सहेलीहो मै पिरु देहु मिलाइ ॥
पूरै भागि सतिगुरु मिलै पिरु पाइआ सचि समाइ ॥३॥
से सहीआ सोहागणी जिन कउ नदरि करेइ ॥
खसमु पछाणहि आपणा तनु मनु आगै देइ ॥
घरि वरु पाइआ आपणा हउमै दूरि करेइ ॥
नानक सोभावंतीआ सोहागणी अनदिनु भगति करेइ ॥४॥२८॥६१॥

aspundir
26-05-2013, 02:27 PM
सिरीरागु महला ३ ॥
इकि पिरु रावहि आपणा हउ कै दरि पूछउ जाइ ॥
सतिगुरु सेवी भाउ करि मै पिरु देहु मिलाइ ॥
सभु उपाए आपे वेखै किसु नेड़ै किसु दूरि ॥
जिनि पिरु संगे जाणिआ पिरु रावे सदा हदूरि ॥१॥
मुंधे तू चलु गुर कै भाइ ॥
अनदिनु रावहि पिरु आपणा सहजे सचि समाइ ॥१॥

aspundir
26-05-2013, 02:27 PM
रहाउ ॥
सबदि रतीआ सोहागणी सचै सबदि सीगारि ॥
हरि वरु पाइनि घरि आपणै गुर कै हेति पिआरि ॥
सेज सुहावी हरि रंगि रवै भगति भरे भंडार ॥
सो प्रभु प्रीतमु मनि वसै जि सभसै देइ अधारु ॥२॥
पिरु सालाहनि आपणा तिन कै हउ सद बलिहारै जाउ ॥
मनु तनु अरपी सिरु देई तिन कै लागा पाइ ॥
जिनी इकु पछाणिआ दूजा भाउ चुकाइ ॥
गुरमुखि नामु पछाणीऐ नानक सचि समाइ ॥३॥२९॥६२॥

aspundir
26-05-2013, 02:27 PM
सिरीरागु महला ३ ॥
हरि जी सचा सचु तू सभु किछु तेरै चीरै ॥
लख चउरासीह तरसदे फिरे बिनु गुर भेटे पीरै ॥
हरि जीउ बखसे बखसि लए सूख सदा सरीरै ॥
गुर परसादी सेव करी सचु गहिर ग्मभीरै ॥१॥
मन मेरे नामि रते सुखु होइ ॥
गुरमती नामु सलाहीऐ दूजा अवरु न कोइ ॥१॥

aspundir
26-05-2013, 02:27 PM
रहाउ ॥
धरम राइ नो हुकमु है बहि सचा धरमु बीचारि ॥
दूजै भाइ दुसटु आतमा ओहु तेरी सरकार ॥
अधिआतमी हरि गुण तासु मनि जपहि एकु मुरारि ॥
तिन की सेवा धरम राइ करै धंनु सवारणहारु ॥२॥
मन के बिकार मनहि तजै मनि चूकै मोहु अभिमानु ॥
आतम रामु पछाणिआ सहजे नामि समानु ॥
बिनु सतिगुर मुकति न पाईऐ मनमुखि फिरै दिवानु ॥
सबदु न चीनै कथनी बदनी करे बिखिआ माहि समानु ॥३॥
सभु किछु आपे आपि है दूजा अवरु न कोइ ॥
जिउ बोलाए तिउ बोलीऐ जा आपि बुलाए सोइ ॥
गुरमुखि बाणी ब्रह्मु है सबदि मिलावा होइ ॥
नानक नामु समालि तू जितु सेविऐ सुखु होइ ॥४॥३०॥६३॥

aspundir
26-05-2013, 02:27 PM
सिरीरागु महला ३ ॥
जगि हउमै मैलु दुखु पाइआ मलु लागी दूजै भाइ ॥
मलु हउमै धोती किवै न उतरै जे सउ तीर्थ नाइ ॥
बहु बिधि करम कमावदे दूणी मलु लागी आइ ॥
पड़िऐ मैलु न उतरै पूछहु गिआनीआ जाइ ॥१॥
मन मेरे गुर सरणि आवै ता निरमलु होइ ॥
मनमुख हरि हरि करि थके मैलु न सकी धोइ ॥१॥

aspundir
26-05-2013, 02:28 PM
रहाउ ॥
मनि मैलै भगति न होवई नामु न पाइआ जाइ ॥
मनमुख मैले मैले मुए जासनि पति गवाइ ॥
गुर परसादी मनि वसै मलु हउमै जाइ समाइ ॥
जिउ अंधेरै दीपकु बालीऐ तिउ गुर गिआनि अगिआनु तजाइ ॥२॥
हम कीआ हम करहगे हम मूरख गावार ॥
करणै वाला विसरिआ दूजै भाइ पिआरु ॥
माइआ जेवडु दुखु नही सभि भवि थके संसारु ॥
गुरमती सुखु पाईऐ सचु नामु उर धारि ॥३॥
जिस नो मेले सो मिलै हउ तिसु बलिहारै जाउ ॥
ए मन भगती रतिआ सचु बाणी निज थाउ ॥
मनि रते जिहवा रती हरि गुण सचे गाउ ॥
नानक नामु न वीसरै सचे माहि समाउ॥४॥३१॥६४॥

aspundir
26-05-2013, 02:28 PM
सिरीरागु महला ४ घरु १ ॥
मै मनि तनि बिरहु अति अगला किउ प्रीतमु मिलै घरि आइ ॥
जा देखा प्रभु आपणा प्रभि देखिऐ दुखु जाइ ॥
जाइ पुछा तिन सजणा प्रभु कितु बिधि मिलै मिलाइ ॥१॥
मेरे सतिगुरा मै तुझ बिनु अवरु न कोइ ॥
हम मूरख मुगध सरणागती करि किरपा मेले हरि सोइ ॥१॥

aspundir
26-05-2013, 02:28 PM
रहाउ ॥
सतिगुरु दाता हरि नाम का प्रभु आपि मिलावै सोइ ॥
सतिगुरि हरि प्रभु बुझिआ गुर जेवडु अवरु न कोइ ॥
हउ गुर सरणाई ढहि पवा करि दइआ मेले प्रभु सोइ ॥२॥
मनहठि किनै न पाइआ करि उपाव थके सभु कोइ ॥
सहस सिआणप करि रहे मनि कोरै रंगु न होइ ॥
कूड़ि कपटि किनै न पाइओ जो बीजै खावै सोइ ॥३॥
सभना तेरी आस प्रभु सभ जीअ तेरे तूं रासि ॥
प्रभ तुधहु खाली को नही दरि गुरमुखा नो साबासि ॥
बिखु भउजल डुबदे कढि लै जन नानक की अरदासि ॥४॥१॥६५॥

aspundir
26-05-2013, 02:28 PM
सिरीरागु महला ४ ॥
नामु मिलै मनु त्रिपतीऐ बिनु नामै ध्रिगु जीवासु ॥
कोई गुरमुखि सजणु जे मिलै मै दसे प्रभु गुणतासु ॥
हउ तिसु विटहु चउ खंनीऐ मै नाम करे परगासु ॥१॥
मेरे प्रीतमा हउ जीवा नामु धिआइ ॥
बिनु नावै जीवणु ना थीऐ मेरे सतिगुर नामु द्रिड़ाइ ॥१॥

aspundir
26-05-2013, 02:28 PM
रहाउ ॥
नामु अमोलकु रतनु है पूरे सतिगुर पासि ॥
सतिगुर सेवै लगिआ कढि रतनु देवै परगासि ॥
धंनु वडभागी वड भागीआ जो आइ मिले गुर पासि ॥२॥
जिना सतिगुरु पुरखु न भेटिओ से भागहीण वसि काल ॥
ओइ फिरि फिरि जोनि भवाईअहि विचि विसटा करि विकराल ॥
ओना पासि दुआसि न भिटीऐ जिन अंतरि क्रोधु चंडाल ॥३॥
सतिगुरु पुरखु अमृत सरु वडभागी नावहि आइ ॥
उन जनम जनम की मैलु उतरै निर्मल नामु द्रिड़ाइ ॥
जन नानक उतम पदु पाइआ सतिगुर की लिव लाइ ॥४॥२॥६६॥

aspundir
26-05-2013, 02:28 PM
सिरीरागु महला ४ ॥
गुण गावा गुण विथरा गुण बोली मेरी माइ ॥
गुरमुखि सजणु गुणकारीआ मिलि सजण हरि गुण गाइ ॥
हीरै हीरु मिलि बेधिआ रंगि चलूलै नाइ ॥१॥
मेरे गोविंदा गुण गावा त्रिपति मनि होइ ॥
अंतरि पिआस हरि नाम की गुरु तुसि मिलावै सोइ ॥१॥

aspundir
26-05-2013, 02:29 PM
रहाउ ॥
मनु रंगहु वडभागीहो गुरु तुठा करे पसाउ ॥
गुरु नामु द्रिड़ाए रंग सिउ हउ सतिगुर कै बलि जाउ ॥
बिनु सतिगुर हरि नामु न लभई लख कोटी करम कमाउ ॥२॥
बिनु भागा सतिगुरु ना मिलै घरि बैठिआ निकटि नित पासि ॥
अंतरि अगिआन दुखु भरमु है विचि पड़दा दूरि पईआसि ॥
बिनु सतिगुर भेटे कंचनु ना थीऐ मनमुखु लोहु बूडा बेड़ी पासि ॥३॥
सतिगुरु बोहिथु हरि नाव है कितु बिधि चड़िआ जाइ ॥
सतिगुर कै भाणै जो चलै विचि बोहिथ बैठा आइ ॥
धंनु धंनु वडभागी नानका जिना सतिगुरु लए मिलाइ ॥४॥३॥६७॥

aspundir
26-05-2013, 02:29 PM
सिरीरागु महला ४ ॥
हउ पंथु दसाई नित खड़ी कोई प्रभु दसे तिनि जाउ ॥
जिनी मेरा पिआरा राविआ तिन पीछै लागि फिराउ ॥
करि मिंनति करि जोदड़ी मै प्रभु मिलणै का चाउ ॥१॥
मेरे भाई जना कोई मो कउ हरि प्रभु मेलि मिलाइ ॥
हउ सतिगुर विटहु वारिआ जिनि हरि प्रभु दीआ दिखाइ ॥१॥

aspundir
26-05-2013, 02:29 PM
रहाउ ॥
होइ निमाणी ढहि पवा पूरे सतिगुर पासि ॥
निमाणिआ गुरु माणु है गुरु सतिगुरु करे साबासि ॥
हउ गुरु सालाहि न रजऊ मै मेले हरि प्रभु पासि ॥२॥
सतिगुर नो सभ को लोचदा जेता जगतु सभु कोइ ॥
बिनु भागा दरसनु ना थीऐ भागहीण बहि रोइ ॥
जो हरि प्रभ भाणा सो थीआ धुरि लिखिआ न मेटै कोइ ॥३॥
आपे सतिगुरु आपि हरि आपे मेलि मिलाइ ॥
आपि दइआ करि मेलसी गुर सतिगुर पीछै पाइ ॥
सभु जगजीवनु जगि आपि है नानक जलु जलहि समाइ ॥४॥४॥६८॥

aspundir
26-05-2013, 02:29 PM
सिरीरागु महला ४ ॥
रसु अमृतु नामु रसु अति भला कितु बिधि मिलै रसु खाइ ॥
जाइ पुछहु सोहागणी तुसा किउ करि मिलिआ प्रभु आइ ॥
ओइ वेपरवाह न बोलनी हउ मलि मलि धोवा तिन पाइ ॥१॥
भाई रे मिलि सजण हरि गुण सारि ॥
सजणु सतिगुरु पुरखु है दुखु कढै हउमै मारि ॥१॥

aspundir
26-05-2013, 02:29 PM
रहाउ ॥
गुरमुखीआ सोहागणी तिन दइआ पई मनि आइ ॥
सतिगुर वचनु रतंनु है जो मंने सु हरि रसु खाइ ॥
से वडभागी वड जाणीअहि जिन हरि रसु खाधा गुर भाइ ॥२॥
इहु हरि रसु वणि तिणि सभतु है भागहीण नही खाइ ॥
बिनु सतिगुर पलै ना पवै मनमुख रहे बिललाइ ॥
ओइ सतिगुर आगै ना निवहि ओना अंतरि क्रोधु बलाइ ॥३॥
हरि हरि हरि रसु आपि है आपे हरि रसु होइ ॥
आपि दइआ करि देवसी गुरमुखि अमृतु चोइ ॥
सभु तनु मनु हरिआ होइआ नानक हरि वसिआ मनि सोइ ॥४॥५॥६९॥

aspundir
26-05-2013, 02:30 PM
सिरीरागु महला ४ ॥
दिनसु चड़ै फिरि आथवै रैणि सबाई जाइ ॥
आव घटै नरु ना बुझै निति मूसा लाजु टुकाइ ॥
गुड़ु मिठा माइआ पसरिआ मनमुखु लगि माखी पचै पचाइ ॥१॥
भाई रे मै मीतु सखा प्रभु सोइ ॥
पुतु कलतु मोहु बिखु है अंति बेली कोइ न होइ ॥१॥

aspundir
26-05-2013, 02:30 PM
रहाउ ॥
गुरमति हरि लिव उबरे अलिपतु रहे सरणाइ ॥
ओनी चलणु सदा निहालिआ हरि खरचु लीआ पति पाइ ॥
गुरमुखि दरगह मंनीअहि हरि आपि लए गलि लाइ ॥२॥
गुरमुखा नो पंथु परगटा दरि ठाक न कोई पाइ ॥
हरि नामु सलाहनि नामु मनि नामि रहनि लिव लाइ ॥
अनहद धुनी दरि वजदे दरि सचै सोभा पाइ ॥३॥
जिनी गुरमुखि नामु सलाहिआ तिना सभ को कहै साबासि ॥
तिन की संगति देहि प्रभ मै जाचिक की अरदासि ॥
नानक भाग वडे तिना गुरमुखा जिन अंतरि नामु परगासि ॥४॥३३॥३१॥६॥७०॥

aspundir
26-05-2013, 02:30 PM
सिरीरागु महला ५ घरु १ ॥
किआ तू रता देखि कै पुत्र कलत्र सीगार ॥
रस भोगहि खुसीआ करहि माणहि रंग अपार ॥
बहुतु करहि फुरमाइसी वरतहि होइ अफार ॥
करता चिति न आवई मनमुख अंध गवार ॥१॥
मेरे मन सुखदाता हरि सोइ ॥
गुर परसादी पाईऐ करमि परापति होइ ॥१॥

aspundir
26-05-2013, 02:30 PM
रहाउ ॥
कपड़ि भोगि लपटाइआ सुइना रुपा खाकु ॥
हैवर गैवर बहु रंगे कीए रथ अथाक ॥
किस ही चिति न पावही बिसरिआ सभ साक ॥
सिरजणहारि भुलाइआ विणु नावै नापाक ॥२॥
लैदा बद दुआइ तूं माइआ करहि इकत ॥
जिस नो तूं पतीआइदा सो सणु तुझै अनित ॥
अहंकारु करहि अहंकारीआ विआपिआ मन की मति ॥
तिनि प्रभि आपि भुलाइआ ना तिसु जाति न पति ॥३॥
सतिगुरि पुरखि मिलाइआ इको सजणु सोइ ॥
हरि जन का राखा एकु है किआ माणस हउमै रोइ ॥
जो हरि जन भावै सो करे दरि फेरु न पावै कोइ ॥
नानक रता रंगि हरि सभ जग महि चानणु होइ ॥४॥१॥७१॥

aspundir
26-05-2013, 02:30 PM
सिरीरागु महला ५ ॥
मनि बिलासु बहु रंगु घणा द्रिसटि भूलि खुसीआ ॥
छत्रधार बादिसाहीआ विचि सहसे परीआ ॥१॥
भाई रे सुखु साधसंगि पाइआ ॥
लिखिआ लेखु तिनि पुरखि बिधातै दुखु सहसा मिटि गइआ ॥१॥

aspundir
26-05-2013, 02:31 PM
रहाउ ॥
जेते थान थनंतरा तेते भवि आइआ ॥
धन पाती वड भूमीआ मेरी मेरी करि परिआ ॥२॥
हुकमु चलाए निसंग होइ वरतै अफरिआ ॥
सभु को वसगति करि लइओनु बिनु नावै खाकु रलिआ ॥३॥
कोटि तेतीस सेवका सिध साधिक दरि खरिआ ॥
गिर्मबारी वड साहबी सभु नानक सुपनु थीआ ॥४॥२॥७२॥

aspundir
26-05-2013, 02:31 PM
सिरीरागु महला ५ ॥
भलके उठि पपोलीऐ विणु बुझे मुगध अजाणि ॥
सो प्रभु चिति न आइओ छुटैगी बेबाणि ॥
सतिगुर सेती चितु लाइ सदा सदा रंगु माणि ॥१॥
प्राणी तूं आइआ लाहा लैणि ॥
लगा कितु कुफकड़े सभ मुकदी चली रैणि ॥१॥

aspundir
26-05-2013, 02:31 PM
रहाउ ॥
कुदम करे पसु पंखीआ दिसै नाही कालु ॥
ओतै साथि मनुखु है फाथा माइआ जालि ॥
मुकते सेई भालीअहि जि सचा नामु समालि ॥२॥
जो घरु छडि गवावणा सो लगा मन माहि ॥
जिथै जाइ तुधु वरतणा तिस की चिंता नाहि ॥
फाथे सेई निकले जि गुर की पैरी पाहि ॥३॥
कोई रखि न सकई दूजा को न दिखाइ ॥
चारे कुंडा भालि कै आइ पइआ सरणाइ ॥
नानक सचै पातिसाहि डुबदा लइआ कढाइ ॥४॥३॥७३॥