PDA

View Full Version : रोचक तथ्य - धार्मिक


aspundir
18-04-2013, 07:29 PM
वाल्मीकि रामायण

http://i3.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/04/17/9560_b.jpg


1- रामायण महाकाव्य की रचना महर्षि वाल्मीकि ने की है। इस महाकाव्य में 24 हजार श्लोक, पांच सौ उपखंड तथा उत्तर सहित सात कांड हैं। जिस समय राजा दशरथ ने पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाया था उस समय उनकी आयु लगभग 60 हजार वर्ष थी।

aspundir
18-04-2013, 07:34 PM
http://i2.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/04/17/9561_c.jpg


2- रामायण के अनुसार राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाया था। इस यज्ञ को मुख्य रूप से ऋषि ऋष्यश्रृंग ने संपन्न किया था। ऋष्यश्रृंग के पिता का नाम महर्षि विभाण्डक था। एक दिन जब वे नदी में स्नान कर रहे थे तब नदी में उनका वीर्यपात हो गया।
उस जल को एक हिरणी ने पी लिया था, जिसके फलस्वरूप ऋषि ऋष्यश्रृंग का जन्म हुआ था।

aspundir
18-04-2013, 07:34 PM
http://i7.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/04/17/9562_d.jpg


3- वाल्मीकि रामायण के अनुसार भगवान श्रीराम का जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को, पुनर्वसु नक्षत्र में कर्क लग्न में हुआ था। उस समय सूर्य, मंगल, शनि, गुरु और शुक्र ग्रह अपने-अपने उच्च स्थान में विद्यामान थे तथा लग्न में चंद्रमा के साथ गुरु विराजमान थे।
भरत का जन्म पुष्य नक्षत्र तथा मीन लग्न में हुआ था जबकि लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म आश्वेषा नक्षत्र व कर्क लग्न में हुआ था। उस समय सूर्य अपने उच्च स्थान में विराजमान थे।

aspundir
18-04-2013, 07:35 PM
http://i4.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/04/17/9564_e.jpg


4- तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरित मानस में वर्णन है कि भगवान श्रीराम ने सीता स्वयंवर में शिव धनुष को उठाया और प्रत्यंचा चढ़ाते समय वह टूट गया जबकि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में स्वयंवर का वर्णन नहीं है। रामायण के अनुसार जब भगवान राम व लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्र के साथ मिथिल पहुंचे तो विश्वामित्र ने ही राजा जनक से श्रीराम को वह शिवधनुष दिखाने के लिए कहा।
तब भगवान श्रीराम ने खेल ही खेल में उस धनुष को उठा लिया और प्रत्यंचा चढ़ाते समय वह टूट गया। राजा जनक ने यह प्रण किया था कि जो भी इस शिव धनुष को उठा लेगा उसी से वे अपनी पुत्री सीता का विवाह कर देंगे।

aspundir
18-04-2013, 07:50 PM
http://i8.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/04/17/9565_f.jpg


5- श्रीरामचरित मानस के अनुसार सीता स्वयंवर के समय भगवान परशुराम वहां आए थे जबकि रामायण के अनुसार सीता से विवाह के बाद जब श्रीराम पुन: अयोध्या लौट रहे थे तब परशुराम वहां आए और उन्होंने श्रीराम से अपने धनुष पर बाण चढ़ाने के लिए कहा। श्रीराम के बाण चढ़ाने देने पर परशुराम वहां से चले गए थे।

aspundir
18-04-2013, 07:50 PM
http://i4.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/04/17/9566_g.jpg


6- जिस समय भगवान श्रीराम को वनवास गए, उस समय उनकी आयु लगभग 27 वर्ष की थी। राजा दशरथ श्रीराम को वनवास नहीं भेजना चाहते थे लेकिन वे वचनबद्ध थे। जब श्रीराम को रोकने का कोई उपाय नहीं सूझा तो उन्होंने श्रीराम से यह भी कह दिया कि तुम मुझे बंदी बनाकर स्वयं राजा बन जाओ।

aspundir
18-04-2013, 07:51 PM
http://i3.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/04/17/9567_h.jpg


7- जब लक्ष्मण को श्रीराम को वनवास दिए जाने का समाचार मिला तो वे बहुत क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने पिता दशरथ से ही युद्ध करने की ठान ली तब श्रीराम द्वारा समझाने पर ही वह शांत हो पाए।

aspundir
18-04-2013, 07:51 PM
http://i5.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/04/17/9571_i.jpg


8- राजा दशरथ ने जब श्रीराम को वनवास जाने को कहा तब उन्होंने धन-दौलत, ऐश्वर्य का सामान, रथ आदि भी श्रीराम को देना चाहा ताकि उन्हें वनवास में किसी प्रकार की तकलीफ न हो लेकिन कैकयी ने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया।

aspundir
18-04-2013, 07:51 PM
http://i7.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/04/17/9575_j.jpg


9- अपने पिता राजा दशरथ की मृत्यु का आभास भरत को पहले ही एक स्वप्न के माध्यम से हो गया था। सपने में भरत ने राजा दशरथ को काले वस्त्र पहने हुए देखा था। उनके ऊपर पीले रंग की स्त्रियां प्रहार कर रही थीं। सपने में राजा दशरथ लाल रंग के फूलों की माला पहने और लाल चंदन लगाए गधे जुते हुए रथ पर बैठकर तेजी से दक्षिण(यम की दिशा) की ओर जा रहे थे।

aspundir
18-04-2013, 07:52 PM
http://i8.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/04/17/9593_k.jpg


10- हिंदू धर्म में तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं की मान्यता है जबकि रामायण के अरण्यकांड के चौदहवे सर्ग के चौदहवे श्लोक में सिर्फ तैंतीस देवता ही बताए गए हैं। उसके अनुसार बारह आदित्य, आठ वसु, ग्यारह रुद्र और दो अश्विनी कुमार, ये ही कुल तैंतीस देवता हैं।

aspundir
18-04-2013, 07:52 PM
http://i7.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/04/17/9594_l.jpg


11- सीताहरण करते समय जटायु नामक गिद्ध ने रावण को रोकने का प्रयास किया था। रामायण के अनुसार ये जटायु के पिता अरुण बताए गए हैं। ये अरुण ही भगवान सूर्यदेव के रथ के सारथी हैं।

aspundir
18-04-2013, 07:53 PM
http://i2.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/04/17/9596_m.jpg


12- ये बात सभी जानते हैं कि लक्ष्मण द्वारा शूर्पणखा के नाक-कान काटे जाने से क्रोधित होकर ही रावण ने सीता का हरण किया था लेकिन स्वयं शूर्पणखा ने भी रावण का सर्वनाश होने का श्राप दिया था। क्योंकि रावण की बहन शूर्पणखा के पति का नाम विद्युतजिव्ह था। वो कालकेय नाम के राजा का सेनापति था। रावण जब विश्वयुद्ध पर निकला तो कालकेय से उसका युद्ध हुआ।
उस युद्ध में रावण ने विद्युतजिन्न का वध कर दिया। तब शूर्पणखा ने मन ही मन रावण को श्राप दिया कि मेरे ही कारण तेरा सर्वनाश होगा।

aspundir
18-04-2013, 07:53 PM
http://i8.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/04/17/9738_n.jpg


13- जिस दिन रावण सीता का हरण कर अपनी अशोक वाटिका में लाया। उसी रात को भगवान ब्रह्मा के कहने पर देवराज इंद्र माता सीता के लिए खीर लेकर आए, पहले देवराज ने अशोक वाटिका में उपस्थित सभी राक्षसों को मोहित कर सुला दिया उसके बाद माता सीता को खीर अर्पित की, जिसके खाने से सीता की भूख-प्यास शांत हो गई।

aspundir
18-04-2013, 07:53 PM
http://i4.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/04/17/9600_o.jpg


14- जब भगवान राम और लक्ष्मण वन में सीता की खोज कर रहे थे। उस समय कबंध नामक राक्षस का राम-लक्ष्मण ने वध कर दिया था। वास्तव में कबंध एक श्राप के कारण ऐसा हो गया।
जब श्रीराम ने उसके शरीर को अग्नि के हवाले किया तो वह श्राप से मुक्त हो गया। कबंध ने ही श्रीराम को सुग्रीव से मित्रता करने के लिए कहा था।

aspundir
18-04-2013, 07:54 PM
http://i2.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/04/17/9601_p.jpg


15- श्रीरामचरितमानस के अनुसार समुद्र ने लंका जाने के लिए रास्ता नहीं दिया तो लक्ष्मण बहुत क्रोधित हो गए थे जबकि रामायण में वर्णन है कि लक्ष्मण नहीं बल्कि भगवान श्रीराम समुद्र पर क्रोधित हुए थे और उन्होंने समुद्र को सुखा देने वाले बाण भी छोड़ दिए थे। तब लक्ष्मण व अन्य लोगों ने भगवान श्रीराम को समझाया था।

aspundir
18-04-2013, 07:54 PM
http://i2.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/04/17/9607_q.jpg


16- सभी जानते हैं कि समुद्र पर पुल का निर्माण नल नामक वानर ने किया था। क्योंकि उसे श्राप मिला था कि उसके द्वारा पानी में फैंकी गई वस्तु पानी में डूबेगी नहीं जबकि वाल्मीकि रामायण के अनुसार नल देवताओं के शिल्पी (इंजीनियर) विश्वकर्मा के पुत्र थे और वह स्वयं भी शिल्पकला में निपुण था। अपनी इसी कला से उसने समुद्र पर सेतु का निर्माण किया था।

aspundir
18-04-2013, 07:54 PM
http://i4.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/04/17/9607_r.jpg


17- रामायण के अनुसार समुद्र पर पुल बनाने में पांच दिन का समय लगा। पहले दिन वानरों ने 14 योजन, दूसरे दिन 20 योजन, तीसरे दिन 21 योजन, चौथे दिन 22 योजन और पांचवे दिन 23 योजन पुल बनाया था। इस प्रकार कुल 100 योजन लंबाई का पुल समुद्र पर बनाया गया। यह पुल 10 योजन चौड़ा था।

aspundir
18-04-2013, 07:55 PM
http://i6.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/04/17/9609_s.jpg


18- एक बार रावण जब भगवान शंकर से मिलने कैलाश गया। वहां उसने नंदीजी को देखकर उनके स्वरूप की हंसी उड़ाई और उन्हें बंदर के समान मुख वाला कहा। तब नंदीजी ने रावण को श्राप दिया कि बंदरों के कारण ही तेरा सर्वनाश होगा।

aspundir
18-04-2013, 07:55 PM
http://i4.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/04/17/9609_t.jpg


19- रामायण के अनुसार जब रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कैलाश पर्वत उठा लिया तब माता पार्वती भयभीत हो गई थी और उन्होंने रावण को श्राप दिया था कि तेरी मृत्यु किसी स्त्री के कारण ही होगी।

aspundir
18-04-2013, 07:55 PM
http://i9.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/04/17/9611_u.jpg


20- जिस समय राम-रावण का अंतिम युद्ध चल रहा था उस समय देवराज इंद्र ने अपना दिव्य रथ श्रीराम के लिए भेजा था। उस रथ में बैठकर ही भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया था।

aspundir
18-04-2013, 07:56 PM
http://i4.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/04/17/9611_v.jpg


21- जब काफी समय तक राम-रावण का युद्ध चलता रहा तब अगस्त्य मुनि ने श्रीराम से आदित्यह्रदय स्त्रोत का पाठ करने को कहा, जिसके प्रभाव से भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया।

aspundir
18-04-2013, 07:56 PM
http://i8.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/04/17/9612_w.jpg


22- रामायण के अनुसार रावण जिस सोने की लंका में रहता था वह लंका पहले रावण के भाई कुबेर की थी। जब रावण ने विश्व विजय पर निकला तो उसने अपने भाई कुबेर को हराकर सोने की लंका तथा पुष्पक विमान पर अपना कब्जा कर लिया।

aspundir
18-04-2013, 07:56 PM
http://i7.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/04/17/9614_x.jpg


23- रामायण के अनुसार एक बार रावण अपने पुष्पक विमान से कहीं जा रहा था तभी उसे एक सुंदर स्त्री दिखाई दी, उसका नाम वेदवती था। भगवान विष्णु को पति रूप में पाने के लिए तपस्या कर रही थी।
रावण ने उसके बाल पकड़े और अपने साथ चलने को कहा। उस तपस्विनी ने उसी क्षण अपनी देह त्याग दी और रावण को श्राप दिया कि एक स्त्री के कारण ही तेरी मृत्यु होगी। उसी स्त्री दूसरे जन्म में सीता के रूप में जन्म लिया।

aspundir
18-04-2013, 07:57 PM
http://i4.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/04/17/9615_y.jpg


24- रावण जब विश्व विजय पर निकला तो वह यमलोक भी जा पहुंचा। वहां यमराज और रावण के बीच भयंकर युद्ध हुआ। जब यमराज ने रावण के प्राण लेने के लिए कालदण्ड का प्रयोग करना चाहा तो ब्रह्मा ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया क्योंकि किसी देवता द्वारा रावण का वध संभव नहीं था।

aspundir
18-04-2013, 07:57 PM
http://i6.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/04/17/9557_z.jpg


25- रावण के पुत्र मेघनाद ने जब युद्ध में इंद्र को बंदी बना लिया तो ब्रह्माजी ने देवराज इंद्र को छोडऩे को कहा। इंद्र पर विजय प्राप्त करने के कारण ही मेघनाद इंद्रजीत के नाम से विख्यात हुआ।

aspundir
18-04-2013, 07:58 PM
यूनान, मिस्त्र, रोम आदि देशों में भी होती है देवी पूजा

http://i10.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/04/16/8450_b.jpg


- यूनान में नेमिशस व डायना नामक देवी की पूजा की जाती है। नेमिशस को वहां प्रतिशोध की देवी माना जाता है। मान्यता है कि यह शक्ति आसुरी प्रवृत्तियों का नाश करती हैं।
वहां डायना को दुर्गा मानते हैं। यूनान के राजा शक्ति पूजा के रूप में लाल वस्त्र पहन नारी का श्रृंगार कर यानी नारी रूप धारण करके नेमिशस और डायना की पूजा करते थे। यूनान के राजा फिसियाड के समय में तो समूचे देश में शक्ति पूजा की जाती थी। वहां के ओलम्पिक पर्वत पर शक्तिपीठ है।

aspundir
18-04-2013, 07:59 PM
http://i3.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/04/16/8451_c.jpg


- मिस्त्र की देवी का नाम आइसिस है। वे सर्पधारिणी रुद्राणी हैं। मान्यता है कि वे मिस्त्र पर आए संकटों को हरती हैं। मिस्त्रवासियों का मानना है कि उनकी महारानी हेप्त दुर्गा का अवतार थीं। रामयुग में भी इस क्षेत्र का वर्णन मिलता है। बताया जाता है सीताजी की खोज में वान जिस लोहित सागर तक गए थे, वह वर्तमान में लाल सागर है।

aspundir
18-04-2013, 07:59 PM
http://i8.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/04/16/8452_d.jpg


- चीन में कात्यायनी देवी के रूप में नील सरस्वती की उपासना होती है। नील सरस्वती दस महाविद्याओं में शामिल देवी तारा ही हैं।

aspundir
18-04-2013, 07:59 PM
http://i2.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/04/16/8453_e.jpg


- रोम में वेस्ता की मान्यता थी। वेस्ता के मंदिर की वेदी में सदैव अग्नि जलती थी। विवाह की कामना से कुमारियां वेस्ता की पूजा करती थीं। कोरिया में औषधि देवी की पूजा होती थी। वे कोरिया की शक्ति देवी हैं। उत्तरी कोरिया में सूर्यादेवी की पूजा होती थी।

aspundir
18-04-2013, 07:59 PM
http://i8.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/04/16/8454_f.jpg


- इटली में फेमिना सौंदर्य की देवी मानी जाती हैं। वे नारियों में उल्लास का संचार करती हैं। पर्व के अवसर पर देवी फेमिना की भव्य शोभायात्रा निकाली जाती हैं।

aspundir
18-04-2013, 08:00 PM
http://i9.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/04/16/8448_g.jpg


- फ्रांस की फ्लोरा देवी फूलों की देवी हैं। अफ्रीका में देवी कुशोदा की पूजा विभिन्न रूपों में होती है। पौराणिक कुश द्वीप आज के अफ्रीका को माना जाता है। वहां के आदिवासियों की प्रमुख देवी कुशोदा हैं।

jai_bhardwaj
18-04-2013, 08:26 PM
रोचक एवं ज्ञानवर्धक जानकारियों को साझा करने के लिए आपका हार्दिक आभार बन्धु ,,,

aspundir
28-04-2013, 10:54 PM
http://i9.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/04/28/7718_10avtaar.jpg


भगवान विष्णु के 10 अवतार कौन-कौन से हैं ?

हिन्दू धर्म मान्यताओं में भगवान विष्णु जगतपालक माने जाते हैं। धर्म की रक्षा के लिए हिन्दू धर्मग्रंथ श्रीमद्भागवतपुराण के मुताबिक सतयुग से लेकर कलियुग तक भगवान विष्णु के 24 अवतार माने गए हैं, जिनमें से दस प्रमुख अवतार 'दशावतार' के रूप में प्रसिद्ध हैं। ये दस अवतार हैं -

1. मत्स्य अवतार - मछली के रूप में
2. कूर्म अवतार - कछुए के रूप में
3. वराह अवतार - सुअर के रूप में
4. नरसिंह अवतार - आधे शेर और आधे इंसान के रूप में
5. वामन अवतार - बौने ब्राह्मण के रूप में
6. परशुराम अवतार - ब्राह्मण योद्धा के रूप में
7. श्रीराम अवतार - मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में
8. श्रीकृष्ण अवतार - 16 कलाओं के पूर्ण अवतार के रूप में
9. बुद्ध अवतार - क्षमा, शील और शांति के रूप में
10. कल्कि अवतार ( यह अवतार कलयुग के अंत में होना माना गया है) - सृष्टि के संहारक के रूप में

aspundir
28-04-2013, 10:56 PM
http://i4.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/04/28/7714_devdanav1.jpg


क्या है देव और दानवों के माता-पिता का नाम?

हिन्दू धर्मग्रंथों के मुताबिक देवता धर्म के तो दानव अधर्म के प्रतीक हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि पौराणिक मान्यताओं में देव-दानवों को एक ही पिता किंतु अलग-अलग माताओं की संतान बताया गया है।
इसके मुताबिक देव-दानवों के पिता ऋषि कश्यप हैं। वहीं, देवताओं की माता का नाम अदिति और दानवों की माता का नाम दिति है।

aspundir
28-04-2013, 10:57 PM
http://i10.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/04/28/7714_pujman.jpg


कौन है हिन्दू धर्म के पांच प्रमुख देवता?

हिन्दू धर्म मान्यताओं में पांच प्रमुख देवता पूजनीय है। ये एक ईश्वर के ही अलग-अलग रूप और शक्तियां हैं। जानिए इन पांच देवताओं के नाम और रोज उनकी पूजा से कौन-सी शक्ति व इच्छाएं पूरी होती हैं -

सूर्य - स्वास्थ्य, प्रतिष्ठा व सफलता

विष्णु - शांति व वैभव

शिव - ज्ञान व विद्या

शक्ति - शक्ति व सुरक्षा

गणेश - बुद्धि व विवेक

aspundir
09-05-2013, 08:16 PM
कद्रू का अपने पुत्रों को श्राप
महाभारत के अनुसार ऋषि कश्यप की कद्रू व विनता नाम की दो पत्नियां थीं। कद्रू सर्पों की माता थी व विनता गरुड़ की। एक बार कद्रू व विनता ने एक सफेद रंग का घोड़ा देखा और शर्त लगाई। विनता ने कहा कि ये घोड़ा पूरी तरह सफेद है और कद्रू ने कहा कि घोड़ा तो सफेद हैं लेकिन इसकी पूंछ काली है।
कद्रू ने अपनी बात को सही साबित करने के लिए अपने सर्प पुत्रों से कहा कि तुम सब सुक्ष्म रूप में जाकर घोड़े की पूछं से चिपक जाओ जिससे कि उसकी पूंछ काली दिखाई दे और मैं शर्त जीत जाऊं। कुछ सर्पों ने कद्रू की बात नहीं मानी तब कद्रू ने अपने उन पुत्रों को श्राप दिया कि तुम सभी जनमजेय के सर्प यज्ञ में भस्म हो जाओगे।

aspundir
09-05-2013, 08:28 PM
http://i6.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/05/08/3042_h.jpg


ऋषि किंदम का राजा पाण्डु को श्राप
महाभारत एक बार राजा पाण्डु शिकार खेलने वन में गए। उन्होंने वहां हिरण के जोड़े को मैथुन करते देखा और उन पर बाण चला दिया। वास्तव में वो हिरण व हिरणी ऋषि किंदम व उनकी पत्नी थी। तब ऋषि किंदम ने राजा पाण्डु को श्राप दिया कि जब भी आप किसी से मैथुन करेंगे उसी समय आपकी मृत्यु हो जाएगी।

aspundir
09-05-2013, 08:37 PM
http://i9.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/05/08/3041_c.jpg


नारद का भगवान विष्णु को श्राप
शिवमहापुराण के अनुसार एक बार देवऋषि नारद एक युवती पर मोहित हो गए। उस कन्या के स्वयंवर में वे भगवान विष्णु के रूप में पहुंचे लेकिन भगवान की माया से उनका मुंह वानर के समान हो गया। भगवान विष्णु भी स्वयंवर में पहुंचे। उन्हें देखकर उस युवती ने भगवान का वरण कर लिया।
यह देखकर नारद मुनि बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि जिस प्रकार तुमने मुझे स्त्री के लिए व्याकुल किया है उसी प्रकार तुम भी स्त्री विरह का दु:ख भोगेगे।

aspundir
09-05-2013, 08:37 PM
http://i1.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/05/08/3041_d.jpg


राजा अनरण्य का रावण को श्राप
वाल्मीकि रामायण के अनुसार रघुवंश में एक परम प्रतापी राजा हुए थे जिनका नाम अनरण्य था। जब रावण विश्वविजय करने निकला तो राजा अनरण्य से उसका भयंकर युद्ध हुई। उस युद्ध में राजा अनरण्य की मृत्यु हो गई लेकिन मरने से पहले उन्होंने रावण को श्राप दिया कि मेरे ही वंश में उत्पन्न एक युवक तेरी मृत्यु का कारण बनेगा। इन्हीं के वंश में आगे जाकर भगवान श्रीराम ने जन्म लिया और रावण का वध किया।

aspundir
09-05-2013, 08:37 PM
http://i10.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/05/08/3041_e.jpg


माण्डव्य ऋषि का यमराज को श्राप
महाभारत के अनुसार माण्डव्य नाम के एक ऋषि थे। राजा ने भूलवश उन्हें चोरी का दोषी मानकर सूली पर चढ़ाने की सजा दी। सूली पर कुछ दिनों तक चढ़े रहने के बाद भी जब उनके प्राण नहीं निकले तो राजा को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने ऋषि माण्डव्य से क्षमा मांगकर उन्हें छोड़ दिया।
तब ऋषि यमराज के पास पहुंचे और उनसे पूछा कि मैंने अपने जीवन में ऐसा कौन सा अपराध किया था कि मुझे इस प्रकार झूठे आरोप की सजा मिली। तब यमराज ने बताया कि जब आप 12 वर्ष के थे तब आपने एक फतींगे की पूंछ में सींक चुभाई थी, उसी के फलस्वरूप आपको कष्ट सहना पड़ा।
तब ऋषि माण्डव्य ने यमराज से कहा कि 12 वर्ष की उम्र में किसी को भी धर्म-अधर्म का ज्ञान नहीं होता। तुमने छोटे अपराध का बड़ा दण्ड दिया है इसलिए मैं तुम्हें श्राप देता हूं कि तुम्हें शुद्र योनि मे एक मानव के रूप में जन्म लेना पड़ेगा। ऋषि माण्डव्य के इसी श्राप के कारण यमराज ने विदुर के रूप में जन्म लिया।

aspundir
09-05-2013, 08:38 PM
http://i7.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/05/08/3041_f.jpg


श्रृंगी ऋषि का परीक्षित को श्राप
पाण्डवों के स्वर्गारोहण के बाद अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित ने राज्य की बागडौर संभाली। उसके राज्य में सभी सुखी और संपन्न थे। एक बार राजा परीक्षित शिकार खेलते-खेलते बहुत दूर निकल गए। तब उन्हें वहां शमीक नाम के ऋषि दिखाई दिए जो मौन अवस्था में थे। राजा परीक्षित ने उनसे बात करनी चाहिए लेकिन ध्यान में होने के कारण ऋषि ने कोई जबाव नहीं दिया।
ये देखकर परीक्षित बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने एक मरा हुआ सांप उठाकर ऋषि के गले में डाल दिया। यह बात जब शमीक ऋषि के पुत्र श्रृंगी को पता चली तो उसने श्राप दिया कि आज से सात दिन बात तक्षक नाग राजा परीक्षित को डंस लेगा जिससे उनकी मृत्यु हो जाएगी।

aspundir
09-05-2013, 08:38 PM
http://i5.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/05/08/3042_g.jpg


नंदी का रावण को श्राप
वाल्मीकि रामायण के अनुसार एक बार रावण भगवान शंकर से मिलने कैलाश गया। वहां उसने नंदीजी को देखकर उनके स्वरूप की हंसी उड़ाई और उन्हें बंदर के समान मुख वाला कहा। तब नंदीजी ने रावण को श्राप दिया कि बंदरों के कारण ही तेरा सर्वनाश होगा।

aspundir
09-05-2013, 08:38 PM
http://i9.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/05/08/3042_i.jpg


तुलसी का भगवान विष्णु को श्राप
शिवमहापुराण के अनुसार शंखचूड़ नाम का एक राक्षस था। उसकी पत्नी का नाम तुलसी था। तुलसी पतिव्रता थी, जिसके कारण देवता भी शंखचूड़ का वध करने में असमर्थ थे। देवताओं के उद्धार के लिए भगवान विष्णु ने शंखचूड़ का रूप लेकर तुलसी का शील भंग कर दिया।
तब भगवान शंकर ने शंखचूड़ का वध कर दिया। यह बात जब तुलसी को पता चली तो उसने भगवान विष्णु को पत्थर हो जाने का श्राप दिया।

aspundir
09-05-2013, 08:38 PM
http://i5.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/05/08/3042_j.jpg


उर्वशी का अर्जुन को श्राप
महाभारत के युद्ध से पहले जब अर्जुन दिव्यास्त्र प्राप्त करने स्वर्ग गए तो वहां उर्वशी नाम की अप्सरा उन पर मोहित हो गई। यह देख अर्जुन ने उन्हें अपनी माता के समान बताया। यह सुनकर क्रोधित उर्वशी ने अर्जुन को श्राप दिया कि तुम नपुंसक की भांति बात कर रहे हो इसलिए तुम नपुंसक हो जाओगे, तुम्हें स्त्रियों में नर्तक बन कर रहना पड़ेगा।
यह बात जब अर्जुन ने देवराज इंद्र को बताई तो उन्होंने कहा कि अज्ञात वास के दौरान यह श्राप तुम्हारी मदद करेगा और तुम्हें कोई पहचान नहीं पाएगा।

aspundir
09-05-2013, 08:39 PM
http://i1.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/05/08/3042_k.jpg


तपस्विनी का रावण को श्राप
वाल्मीकि रामायण के अनुसार एक बार रावण अपने पुष्पक विमान से कहीं जा रहा था तभी उसे एक सुंदर स्त्री दिखाई दी जो भगवान विष्णु को पति रूप में पाने के लिए तपस्या कर रही थी। रावण ने उसके बाल पकड़े और अपने साथ चलने को कहा। उस तपस्विनी ने उसी क्षण अपनी देह त्याग दी और रावण को श्राप दिया कि एक स्त्री के कारण ही तेरी मृत्यु होगी।

aspundir
09-05-2013, 08:39 PM
http://i1.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/05/08/3043_l.jpg


परशुराम का कर्ण को श्राप
महाभारत के अनुसार परशुराम भगवान विष्णु के ही अंशावतार थे। कर्ण भी उन्हीं का शिष्य था। कर्ण ने परशुराम को अपना परिचय एक सूतपुत्र के रूप में दिया था। एक बार जब परशुराम कर्ण की गोद में सिर रखकर सो रहे थे उसी समय कर्ण को एक भयंकर कीड़े ने काट लिया। गुरु की नींद में विघ्न न आए ये सोचकर कर्ण दर्द सहते रहे लेकिन उन्होंने परशुराम को नींद से नहीं उठाया।
नींद से उठने पर जब परशुराम ने ये देखा तो वे समझ गए कि कर्ण सूतपुत्र नहीं बल्कि क्षत्रिय है। तब क्रोधित होकर परशुराम ने कर्ण को श्राप दिया कि मेरी सिखाई हुई शस्त्र विद्या की जब तुम्हें सबसे अधिक आवश्यकता होगी उस समय तुम वह विद्या भूल जाओगे।

aspundir
09-05-2013, 08:39 PM
http://i9.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/05/08/3043_m.jpg


नलकुबेर का रावण को श्राप
वाल्मीकि रामायण के अनुसार विश्व विजय करने के लिए जब रावण स्वर्ग लोक पहुंचा तो उसे वहां रंभा नाम की अप्सरा दिखाई दी। अपनी वासना पूरी करने के लिए रावण ने उसे पकड़ लिया। तब उस अप्सरा ने कहा कि आप मुझे इस तरह से स्पर्श न करें, मैं आपके बड़े भाई कुबेर के बेटे नलकुबेर के लिए आरक्षित हूं इसलिए मैं आपकी पुत्रवधू के समान हूं।
लेकिन रावण नहीं माना और उसने रंभा से दुराचार किया। यह बात जब नलकुबेर को पता चली तो उसने रावण को श्राप दिया कि आज के बाद रावण बिना किसी स्त्री की इच्छा के उसको स्पर्श करेगा तो रावण कामस्तक सौ टुकड़ों में बंट जाएंगे।

aspundir
09-05-2013, 08:40 PM
http://i9.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/05/08/3043_n.jpg


गांधारी का श्रीकृष्ण को श्राप
महाभारत के युद्ध के बाद जब भगवान श्रीकृष्ण गांधारी के पास सांत्वना देने पहुंचे तो अपने पुत्रों का विनाश देखकर गांधारी ने श्रीकृष्ण को श्राप दिया कि जिस प्रकार जिस प्रकार पांडव और कौरव आपसी फूट के कारण नष्ट हुए हैं उसी प्रकार तुम भी अपने बंधु- बांधवों का वध करोगे। आज से छत्तीसवे वर्ष तुम अपने बंधु-बांधवों व पुत्रों का नाश हो जाने पर एक साधारण कारण से अनाथ की तरह मारे जाओगे।

aspundir
09-05-2013, 08:40 PM
http://i7.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/05/08/3043_o.jpg


शूर्पणखा का रावण को श्राप
वाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण की बहन शूर्पणखा के पति का नाम विद्युतजिव्ह था। वो कालकेय नाम के राजा का सेनापति था। रावण जब विश्वयुद्ध पर निकला तो कालकेय से उसका युद्ध हुआ। उस युद्ध में रावण ने विद्युतजिव्ह का वध कर दिया। तब शूर्पणखा ने मन ही मन रावण को श्राप दिया कि मेरे ही कारण तेरा सर्वनाश होगा।

aspundir
09-05-2013, 08:40 PM
http://i10.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/05/08/3043_p.jpg


ऋषियों का साम्ब को श्राप
महाभारत के मौसल पर्व के अनुसार एक बार महर्षि विश्वामित्र, कण्व आदि ऋषि द्वारका गए। तब उन ऋषियों का परिहास करने के उद्देश्य से सारण आदि वीर कृष्ण पुत्र साम्ब को स्त्री वेष में उनके पास ले गए और पूछा कि इस स्त्री के गर्भ से क्या उत्पन्न होगा।
क्रोधित होकर ऋषियों ने श्राप दिया कि श्रीकृष्ण का ये पुत्र वृष्णि और अंधकवंशी पुरुषों का नाश करने के लिए लोहे का एक भयंकर मूसल उत्पन्न करेगा, जिसके द्वारा समस्त यादव कुल का नाश हो जाएगा।

aspundir
09-05-2013, 08:41 PM
माया का रावण को श्राप
रावण ने अपनी पत्नी की बड़ी बहन माया के साथ भी छल किया था। माया के पति वैजयंतपुर के शंभर राजा थे। एक दिन रावण शंभर के यहां गया। वहां रावण ने माया को अपने वाक्जाल में फंसा लिया। इस बात का पता लगते ही शंभर ने रावण को बंदी बना लिया। उसी समय शंभर पर राजा दशरथ ने आक्रमण कर दिया।
शंभर की दशरथ से युद्ध में मृत्यु हो गई। जब माया सती होने लगी तो रावण ने उसे अपने साथ चलने को कहा। तब माया ने कहा कि तुमने वासनायुक्त होकर मेरा सतित्व भंग करने का प्रयास किया इसलिए मेरे पति की मृत्यु हो गई, अत: तुम्हारी मृत्यु भी इसी कारण होगी।

aspundir
09-05-2013, 08:41 PM
http://i8.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/05/08/3044_r.jpg


दक्ष का चंद्रमा को श्राप
शिवमहापुराण के अनुसार प्रजापति दक्ष ने अपनी सत्ताईस पुत्रियों का विवाह चंद्रमा से करवाया था। उन सभी पत्नियों में रोहिणी नाम की पत्नी चंद्रमा को सबसे अधिक प्रिय थी। यह बात अन्य पत्नियों को अच्छी नहीं लगती थी।
तब उन सभी ने ये बात अपने पिता दक्ष को बताई तो वे बहुत क्रोधित हुए और चंद्रमा को सभी के प्रति समान भाव रखने को कहा। लेकिन चंद्रमा नहीं माने तब क्रोधित होकर दक्ष ने चंद्रमा को क्षय रोग होने का श्राप दिया।

aspundir
09-05-2013, 08:42 PM
श्रीकृष्ण का अश्वत्थामा को श्राप
महाभारत युद्ध के अंत समय में जब अश्वत्थामा ने धोखे से पाण्डव पुत्रों का वध कर दिया तब पाण्डव भगवान श्रीकृष्ण के साथ अश्वत्थामा का पीछा करते हुए महर्षि व्यास के आश्रम तक पहुंच गए। तब अश्वत्थामा ने पाण्डवों पर ब्रह्मास्त्र का वार किया। ये देख अर्जुन ने भी अपना ब्रह्मास्त्र छोड़ा।
तब महर्षि व्यास ने दोनों अस्त्रों को टकराने से रोक लिया और अश्वत्थामा और अर्जुन से अपने-अपने ब्रह्मास्त्र वापस लेने को कहा। तब अर्जुन नेे तो अपना ब्रह्मास्त्र वापस ले लिया लेकिन अश्वत्थामा ये विद्या नहीं जानता था इसलिए उसने अपने अस्त्र की दिशा बदलकर अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ की ओर कर दी।
यह देख भगवान श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा को श्राप दिया कि तुम तीन हजार वर्ष तक इस पृथ्वी पर भटकते रहोगे और किसी भी जगह किसी पुरुष के साथ तुम्हारी बातचीत नहीं हो सकेगी। तुम्हारे शरीर से पीब और लहू की गंध निकलेगी इसलिए तुम मनुष्यों के बीच नहीं रह सकोगे। दुर्गम वन में ही पड़े रहोगे।

aspundir
09-05-2013, 08:42 PM
http://i5.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/05/08/3044_t.jpg


ब्राह्मण दंपत्ति का राजा दशरथ को श्राप
वाल्मीकि रामायण के अनुसार एक बार जब राजा दशरथ शिकार करने वन में गए तो गलती से उन्होंने एक ब्राह्मण पुत्र का वध कर दिया। उस ब्राह्मण पुत्र के माता-पिता अंधे थे। जब उन्हें अपने पुत्र की मृत्यु का समाचार मिला तो उन्होंने राजा दशरथ को श्राप दिया कि जिस प्रकार हम पुत्र वियोग में अपने प्राणों का त्याग कर रहे हैं उसी प्रकार तुम्हारी मृत्यु भी पुत्र वियोग के कारण ही होगी।

aspundir
09-05-2013, 08:42 PM
http://i2.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/05/08/3044_u.jpg


शुक्राचार्य का राजा ययाति को श्राप
महाभारत के एक प्रसंग के अनुसार राजा ययाति का विवाह शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी के साथ हुआ था। देवयानी की शर्मिष्ठा नाम की एक दासी थी। एक बार जब ययाति और देवयानी बगीचे में घुम रहे थे तब उसे पता चला कि शर्मिष्ठा के पुत्रों के पिता राजा ययाति हैं तो वह क्रोधित होकर अपने पिता शुक्राचार्य के पास चली गई और उन्हें पूरी बात बता दी। तब दैत्यगुरु शुक्रचार्य ने ययाति को बूढ़े होने का श्राप दिया।

aspundir
09-05-2013, 08:42 PM
http://i5.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/05/08/3045_v.jpg


नंदी का ब्राह्मणकुल को श्राप
शिवमहापुराण के अनुसार एक बार जब सभी ऋषिगण, देवता, प्रजापति, महात्मा आदि प्रयाग में एकत्रित हुए तब वहां दक्ष प्रजापति ने भगवान शंकर का तिरस्कार किया। यह देखकर बहुत से ऋषियों ने भी दक्ष का साथ दिया। तब नंदी ने श्राप दिया कि दुष्ट ब्राह्मण स्वर्ग को ही सबसे बढ़ा मानेंगे तथा क्रोध, मोह, लोभ से युक्त हो निर्लज्ज ब्राह्मण बने रहेंगे। शूद्रों का यज्ञ करवाने वाले व दरिद्र होंगे।

aspundir
09-05-2013, 08:42 PM
http://i5.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/05/08/3045_w.jpg


पिप्पलाद मुनि का शनिदेव को श्राप
धर्म ग्रंथों के अनुसार ऋषि दधीचि के पुत्र का नाम पिप्पलाद था। एक बार पिप्पलाद मुनि ने देवताओं से पूछा- क्या कारण है कि मेरे पिता दधीचि जन्म से पूर्व ही मुझे छोड़कर चले गए? देवताओं ने बताया शनिग्रह की दृष्टि के कारण ही ऐसा कुयोग बना। पिप्पलाद यह सुनकर बड़े क्रोधित हुए।
उन्होंने शनि को नक्षत्र मंडल से गिरने का श्राप दे दिया। शाप के प्रभाव से शनि उसी समय आकाश से गिरने लगे। देवताओं की प्रार्थना पर पिप्पलाद मुनि ने शनि को इस बात पर क्षमा किया कि शनि जन्म से लेकर 16 साल तक की आयु तक किसी को कष्ट नहीं देंगे।

aspundir
09-05-2013, 08:43 PM
http://i7.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/05/08/3040_x.jpg


महर्षि वशिष्ठ का वसुओं को श्राप
महाभारत के अनुसार भीष्म पितामह पूर्व जन्म में अष्ट वसुओं में से एक थे। एक बार इन अष्ट वसुओं ने ऋषि वशिष्ठ की गाय का बलपूर्वक अपहरण कर लिया। जब ऋ षि को इस बात का पता चला तो उन्होंने अष्ट वसुओं को श्राप दिया कि तुम आठों वसुओं को मृत्यु लोक में मानव रूप में जन्म लेना होगा और आठवें वसु को राज, स्त्री आदि सुखों की प्राप्ति नहीं होगी। यही आठवें वसु भीष्म पितामह के नाम से प्रख्यात हुए।

aspundir
09-05-2013, 08:44 PM
हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को भगवान परशुराम की जयंती मनाई जाती है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इसी दिन भगवान विष्णु के आवेशावतार परशुराम का जन्म हुआ था।ऐसी भी मान्यता है कि परशुराम अमर हैं और वे आज भी पृथ्वी पर तपस्या कर रहे हैं।

aspundir
09-05-2013, 08:44 PM
http://i3.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/05/09/5693_b.jpg


ऐसे हुआ भगवान परशुराम का जन्म
महर्षि भृगु के पुत्र ऋचिक का विवाह राजा गाधि की पुत्री सत्यवती से हुआ था। विवाह के बाद सत्यवती ने अपने ससुर महर्षि भृगु से अपने व अपनी माता के लिए पुत्र की याचना की। तब महर्षि भृगु ने सत्यवती को दो फल दिए और कहा कि ऋतुस्नान के बाद तुम गूलर के वृक्ष का तथा तुम्हारी माता पीपल के वृक्ष का आलिंगन करने के बाद ये फल खा लेना।
किंतु सत्यवती व उनकी मां ने भूलवश इस काम में गलती कर दी। यह बात महर्षि भृगु को पता चल गई। तब उन्होंने सत्यवती से कहा कि तूने गलत वृक्ष का आलिंगन किया है इसलिए तेरा पुत्र ब्राह्मण होने पर भी क्षत्रिय गुणों वाला रहेगा और तेरी माता का पुत्र क्षत्रिय होने पर भी ब्राह्मणों की तरह आचरण करेगा।
तब सत्यवती ने महर्षि भृगु से प्रार्थना की कि मेरा क्षत्रिय गुणों वाला न हो भले ही मेरा पौत्र ऐसा हो। कुछ समय बाद जमदग्नि मुनि ने सत्यवती के गर्भ से जन्म लिया। इनका आचरण ऋषियों के समान ही था। इनका विवाह रेणुका से हुआ। मुनि जमदग्नि के चार पुत्र हुए। उनमें से परशुराम चौथे थे। इस प्रकार एक भूल के कारण भगवान परशुराम का स्वभाव क्षत्रियों के समान था।

aspundir
09-05-2013, 08:45 PM
http://i1.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/05/09/5693_c.jpg


जानिए परशुराम के भाइयों के नाम
ऋषि जमदग्नि और रेणुका के चार पुत्र थे, जिनमें से परशुराम सबसे छोटे थे। भगवान परशुराम के तीन बड़े भाई थे, जिनके नाम क्रमश: रुक्मवान, सुषेण, वसु और विश्वावसु था।

aspundir
09-05-2013, 08:45 PM
http://i4.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/05/09/5693_d.jpg


क्यों किया माता का वध
एक बार परशुराम की माता रेणुका स्नान करके आश्राम लौट रही थीं। तब संयोग से राजा चित्ररथ भी वहां जलविहार कर रहे थे। राजा को देखकर रेणुका के मन में विकार उत्पन्न हो गया। उसी अवस्था में वह आश्रम पहुंच गई। जमदग्नि ने रेणुका को देखकर उसके मन की बात जान ली अपने पुत्रों से माता का वध करने को कहा। किंतु मोहवश किसी ने उनकी आज्ञा का पालन नहीं किया तब परशुराम ने बिना सोचे-समझे अपने फरसे से उनका सिर काट डाला। ये देखकर मुनि जमदग्नि प्रसन्न हुए और उन्होंने परशुराम से वरदान मांगने को कहा। तब परशुराम ने अपनी माता को पुनर्जीवित करने और उन्हें इस बात का ज्ञान न रहे ये वरदान मांगा। इस वरदान के फलस्वरूप उनकी माता पुनर्जीवित हो गईं।

aspundir
09-05-2013, 08:45 PM
http://i6.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/05/09/5693_e.jpg


क्यों किया कार्तवीर्य अर्जुन का वध
एक बार महिष्मती देश का राजा कार्तवीर्य अर्जुन युद्ध जीतकर जमदग्नि मुनि के आश्रम से निकला। तब वह थोड़ा आराम करने के लिए आश्रम में ही रुक गया। उसने देखा होमधेनु ने बड़ी ही सहजता से पूरी सेना के लिए भोजन की व्यवस्था कर दी है तो वह होमधेनु के बछडऩे को अपने साथ बलपूर्वक ले गया। जब यह बात परशुराम को पता चली तो उन्होंने कार्तवीर्य अर्जुन की एक हजार भुजाएं काट दी और उसका वध कर दिया।

aspundir
09-05-2013, 08:46 PM
http://i9.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/05/09/5694_f.jpg


क्यों किया क्षत्रियों का संहार
कार्तवीर्य अर्जुन के वध का बदला उसके पुत्रों ने जमदग्नि मुनि का वध करके लिया। क्षत्रियों का ये नीच कर्म देखकर भगवान परशुराम बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने कार्तवीर्य अर्जुन के सभी पुत्रों का वध कर दिया। जिन-जिन क्षत्रिय राजाओं ने उनका साथ दिया, परशुराम ने उनका भी वध कर दिया। इस प्रकार भगवान परशुराम ने 21 बार धरती को क्षत्रियविहिन कर दिया।

aspundir
09-05-2013, 08:46 PM
http://i7.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/05/09/5694_g.jpg


ब्राह्मणों को दान कर दी संपूर्ण पृथ्वी
महाभारत के अनुसार परशुराम का ये क्रोध देखकर महर्षि ऋचिक ने साक्षात प्रकट होकर उन्हें इस घोर कर्म से रोका। तब उन्होंने क्षत्रियों का संहार करना बंद कर दिया और सारी पृथ्वी ब्राह्मणों को दान कर दी और स्वयं महेंद्र पर्वत पर निवास करने लगे।

aspundir
09-05-2013, 08:46 PM
http://i7.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/05/09/5694_h.jpg


भगवान राम ने किया तेजहीन
वाल्मीकि रामायण के अनुसार सीता से विवाह के बाद जब श्रीराम पुन: अयोध्या लौट रहे थे तब परशुराम वहां आए और उन्होंने श्रीराम से अपने धनुष पर बाण चढ़ाने के लिए कहा। श्रीराम ने बाण धनुष पर चढ़ा कर छोड़ दिया। वह बाण परशुरामजी का तेज हरकर पुन: श्रीराम के पास आ गया। जब परशुराम के पितरों ने उन्हें तेजहीन देखा तो कहा कि तुम वधूसरकृता नदी में स्नान करो, इससे तुम पुन: तेजोमय हो जाओगे। इस प्रकार भगवान परशुराम ने पुन: अपने तेज प्राप्त किया।

aspundir
09-05-2013, 08:46 PM
किया श्रीकृष्ण के प्रस्ताव का समर्थन
महाभारत के युद्ध से पहले जब भगवान श्रीकृष्ण संधि का प्रस्ताव लेकर धृतराष्ट्र के पास गए थे, उस समय श्रीकृष्ण की बात सुनने के लिए भगवान परशुराम भी उस सभा में उपस्थित थे। परशुराम ने भी धृतराष्ट्र को श्रीकृष्ण की बात मान लेने के लिए कहा था।

aspundir
09-05-2013, 08:47 PM
क्यों किया भीष्म से युद्ध
महाभारत के अनुसार भीष्म काशी में हो रहे स्वयंवर से काशीराज की पुत्रियों अंबा, अंबकिा और अंबालिका को अपने छोटे भाई विचित्रवीर्य के लिए उठा लाए थे। तब अंबा ने भीष्म को बताया कि मन ही मन किसी और का अपना पति मान चुकी है तब भीष्म ने उसे ससम्मान छोड़ दिया लेकिन हरण कर लिए जाने पर उसने अंबा को अस्वीकार कर दिया। तब अंबा भीष्म के गुरु परशुराम के पास पहुंची और उन्हें अपनी व्यथा सुनाई।
अंबा की बात सुनकर भगवान परशुराम ने भीष्म को उससे विवाह करने के लिए कहा लेकिन ब्रह्मचारी होने के कारण भीष्म ने ऐसा करने से इंकार कर दिया। तब परशुराम और भीष्म में भीषण युद्ध हुआ और अंत में अपने पितरों की बात मानकर भगवान परशुराम ने अपने अस्त्र रख दिए। इस प्रकार इस युद्ध में न किसी की हार हुई न किसी की जीत।

aspundir
09-05-2013, 08:47 PM
परशुराम का कर्ण को श्राप
महाभारत के अनुसार परशुराम भगवान विष्णु के ही अंशावतार थे। कर्ण भी उन्हीं का शिष्य था। कर्ण ने परशुराम को अपना परिचय एक सूतपुत्र के रूप में दिया था। एक बार जब परशुराम कर्ण की गोद में सिर रखकर सो रहे थे उसी समय कर्ण को एक भयंकर कीड़े ने काट लिया। गुरु की नींद में विघ्न न आए ये सोचकर कर्ण दर्द सहते रहे लेकिन उन्होंने परशुराम को नींद से नहीं उठाया।
नींद से उठने पर जब परशुराम ने ये देखा तो वे समझ गए कि कर्ण सूतपुत्र नहीं बल्कि क्षत्रिय है। तब क्रोधित होकर परशुराम ने कर्ण को श्राप दिया कि मेरी सिखाई हुई शस्त्र विद्या की जब तुम्हें सबसे अधिक आवश्यकता होगी उस समय तुम वह विद्या भूल जाओगे। इस प्रकार परशुरामजी के श्राप के कारण ही कर्ण की मृत्यु हुई।

aspundir
09-05-2013, 08:47 PM
http://i4.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/05/09/5695_l.jpg


राम से कैसे बने परशुराम
बाल्यावस्था में परशुराम के माता-पिता इन्हें राम कहकर पुकारते थे। जब राम कुछ बड़े हुए तो उन्होंने पिता से वेदों का ज्ञान प्राप्त किया और पिता के सामने धनुर्विद्या सीखने की इच्छा प्रकट की। महर्षि जमदग्नि ने उन्हें हिमालय पर जाकर भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कहा। पिता की आज्ञा मानकर राम ने ऐसा ही किया। उस बीच असुरों से त्रस्त देवता शिवजी के पास पहुंचे और असुरों से मुक्ति दिलाने का निवेदन किया। तब शिवजी ने तपस्या कर रहे राम को असुरों को नाश करने के लिए कहा।
राम ने बिना किसी अस्त्र की सहायता से ही असुरों का नाश कर दिया। राम के इस पराक्रम को देखकर भगवान शिव ने उन्हें अनेक अस्त्र-शस्त्र प्रदान किए। इन्हीं में से एक परशु (फरसा) भी था। यह अस्त्र राम को बहुत प्रिय था। इसे प्राप्त करते ही राम का नाम परशुराम हो गया।

aspundir
09-05-2013, 08:47 PM
क्या अमर हैं परशुराम
हिंदू धर्म ग्रंथों में कुछ महापुरुषों का वर्णन है जिन्हें आज भी अमर माना जाता है। इन्हें अष्टचिरंजीवी भी कहा जाता है। इनमें से एक भगवान विष्णु के आवेशावतार परशुराम भी हैं-

अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनूमांश्च विभीषण।

कृप: परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविन।।

सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्।

जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।


इस श्लोक के अनुसार अश्वत्थामा, राजा बलि, महर्षि वेदव्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, भगवान परशुराम तथा ऋषि मार्कण्डेय अमर हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान परशुराम वर्तमान समय में भी कहीं तपस्या में लीन हैं।

aspundir
09-05-2013, 08:48 PM
- धर्म ग्रंथों के अनुसार अक्षय तृतीया से ही त्रेतायुग का आरंभ भी माना जाता है। इस दिन से ही भगवान बद्रीनारायण के पट खुलते हैं।

aspundir
09-05-2013, 08:49 PM
- वर्ष में एक बार वृंदावन के श्री बांकेबिहारीजी के मंदिर में श्री विग्रह के चरण दर्शन होते हैं। धर्म शास्त्रों के अनुसार इसी दिन भगवान नर-नारायण ने अवतार लिया था।

aspundir
20-05-2013, 10:27 PM
28वें वेदव्यास ने लिखी महाभारत: ज्यादातर लोगों को लगता है कि महाभारत वेदव्यास ने लिखी थी। यह पूरा सच नहीं है। वेदव्यास कोई नाम नहीं, बल्कि एक उपाधि थी, जो वेदों का ज्ञान रखने वाले लोगों को दी जाती थी। कृष्णद्वैपायन से पहले 27 वेदव्यास हो चुके थे, जबकि वह खुद 28वें वेदव्यास थे। उनका नाम कृष्णद्वैपायन इसलिए रखा गया, क्योंकि उनका रंग सांवला (कृष्ण) था और वह एक द्वीप पर जन्मे थे।

aspundir
20-05-2013, 10:29 PM
http://i6.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/www.bhaskar.com/2013/05/19/4646_3.jpg


गीता सिर्फ एक नहीं: माना जाता है कि श्रीमद्भगवद्गीता ही अकेली गीता है, जिसमें कृष्ण द्वारा दिए गए ज्ञान का वर्णन है। यह सच है कि श्रीमद्भगवद्गीता ही संपूर्ण और प्रामाणिक गीता है, लेकिन इसके अलावा कम से कम 10 गीता और भी हैं। व्याध गीता, अष्टावक्र गीता और पाराशर गीता उन्हीं में से हैं।

aspundir
20-05-2013, 10:30 PM
http://i7.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/www.bhaskar.com/2013/05/19/4646_4.jpg


द्रौपदी के लिए दुर्योधन के इशारे का मतलब: मौलिक महाभारत में यह प्रसंग आता है कि चौसर के खेल में युधिष्ठिर से जीतने के बाद दुर्योधन ने द्रौपदी को अपनी बाईं जांघ पर बैठने के लिए कहा था। ज्यादातर लोगों की नजर में इस वजह से भी दुर्योंधन खलनायक है। उसमें तमाम बुराइयां जरूर थीं, लेकिन उस समय की परंपरा के मुताबिक यह द्रौपदी का अपमान नहीं था। दरअसल, उस जमाने में बाईं जंघा पर या बाईं ओर पत्नी को और दाईं जंघा पर या दाईं ओर पुत्री को बैठाया जाता था। यही वजह है कि धार्मिक पोस्टरों या कैलेंडरों में देवियों को बाईं तरफ स्थान दिया जाता है। हिंदू रीति-रिवाजों में शादी के समय भी पत्नी, पति के बाईं ओर खड़ी होती है।

aspundir
20-05-2013, 10:32 PM
राशियां नहीं थीं ज्योतिष का आधार: महाभारत के दौर में राशियां नहीं हुआ करती थीं। ज्योतिष 27 नक्षत्रों पर आधारित था, न कि 12 राशियों पर। नक्षत्रों में पहले स्थान पर रोहिणी था, न कि अश्विनी। जैसे-जैसे समय गुजरा, विभिन्न सभ्यताओं ने ज्योतिष में प्रयोग किए और चंद्रमा और सूर्य के आधार पर राशियां बनाईं।

aspundir
20-05-2013, 10:33 PM
चार पटल वाला पासा: शकुनि ने जिस पासे से पांडवों को चौसर का खेल हराया था, कहते हैं उसके 4 पटल थे। आमतौर पर लोगों को 6 पटल वाले पासे के बारे में ही पता है। हालांकि, महाभारत में उस चार पटल वाले पासे की सटीक आकृति का जिक्र नहीं आता। यह भी नहीं बताया गया है कि वह किस धातु या पदार्थ का बना था। महाभारत के मुताबिक, उस पासे का हर एक पटल एक-एक युग का प्रतीक था। चार बिंदु वाले पटल का अर्थ सतयुग, तीन बिंदु वाले पटल का अर्थ त्रेतायुग, दो बिंदु वाले पटल का द्वापरयुग और एक बिंदु वाले पटल का अर्थ कलियुग था।

aspundir
20-05-2013, 10:36 PM
http://i10.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/www.bhaskar.com/2013/05/19/4649_9.jpg


विदेशी भी शामिल हुए थे लड़ाई में: भारतीय युद्धों में विदेशियों के शामिल होने का इतिहास बहुत पुराना है। महाभारत की लड़ाई में भी विदेशी सेनाएं शामिल हुई थीं। यह अलग बात है कि ज्यादातर लोगों को लगता है कि महाभारत की लड़ाई सिर्फ कौरवों और पांडवों की सेनाओं के बीच लड़ी गई थी।

लेकिन ऐसा नहीं है। मौलिक महाभारत में ग्रीक और रोमन या मेसिडोनियन योद्धाओं के लड़ाई में शामिल होने का प्रसंग आता है।

aspundir
20-05-2013, 10:38 PM
तीन चरणों में लिखी महाभारत: वेदव्यास की महाभारत को बेशक मौलिक माना जाता है, लेकिन वह तीन चरणों में लिखी गई। पहले चरण में 8,800 श्लोक, दूसरे चरण में 24 हजार और तीसरे चरण में एक लाख श्लोक लिखे गए। वेदव्यास की महाभारत के अलावा भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट, पुणो की संस्कृत महाभारत सबसे प्रामाणिक मानी जाती है। अंग्रेजी में संपूर्ण महाभारत दो बार अनूदित की गई थी। पहला अनुवाद, 1883-1896 के बीच किसारी मोहन गांगुली ने किया था और दूसरा मनमंथनाथ दत्त ने 1895 से 1905 के बीच। 100 साल बाद डॉ. देबरॉय तीसरी बार संपूर्ण महाभारत का अंग्रेजी में अनुवाद कर रहे हैं।

Dr.Shree Vijay
06-08-2013, 11:35 AM
पुंडीर जी आपका धन्यवाद........................................... .............

आपने बेहतरीन जानकारियां जो दी हैं............................................... ..............................

bindujain
06-08-2013, 10:25 PM
तीन चरणों में लिखी महाभारत: वेदव्यास की महाभारत को बेशक मौलिक माना जाता है, लेकिन वह तीन चरणों में लिखी गई। पहले चरण में 8,800 श्लोक, दूसरे चरण में 24 हजार और तीसरे चरण में एक लाख श्लोक लिखे गए। वेदव्यास की महाभारत के अलावा भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट, पुणो की संस्कृत महाभारत सबसे प्रामाणिक मानी जाती है। अंग्रेजी में संपूर्ण महाभारत दो बार अनूदित की गई थी। पहला अनुवाद, 1883-1896 के बीच किसारी मोहन गांगुली ने किया था और दूसरा मनमंथनाथ दत्त ने 1895 से 1905 के बीच। 100 साल बाद डॉ. देबरॉय तीसरी बार संपूर्ण महाभारत का अंग्रेजी में अनुवाद कर रहे हैं।



बहुत ही शानदार , रोचक और ज्ञान बर्धक सूत्र है . इसके लिए आपको साधुवाद

aspundir
23-08-2013, 07:45 PM
लंबी उम्र की कामना सभी करते हैं, मरना कोई नहीं चाहता। इसी वजह से हर व्यक्ति अपने स्वास्थ्य की चिंता करता है। अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त के लिए कई उपाय बताए गए हैं। इन्हीं में से एक है सुबह जल्दी उठना।


शास्त्रों में सुबह जल्दी उठना अनिवार्य बताया गया है। ब्रह्म मुहूर्त में उठने से हमारा स्वास्थ्य तो ठीक रहता है साथ ही इसका वैदिक महत्व भी है। इस संबंध में शास्त्रों में लिखा है-

ब्राह्मे मुहूर्ते या निद्रा सा पुण्यक्षयकारिणी।

तां करोति द्विजो मोहात् पादकृच्छेण शुद्धयति।।

इस श्लोक का अर्थ है कि ब्रह्म मुहूर्त में सोना पुण्य का नाश करता है और पाप को बढ़ाता है। जो भी व्यक्ति इस समय सोता है उसके पापों प्रभाव कम करने के लिए पादकृच्छ नाम का व्रत करना पड़ता है। लंबी आयु तथा स्वस्थ शरीर के लिए सूर्योदय के डेढ़ घंटे पहले जाग जाना चाहिए।

सूर्योदय से पहले उठने से महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है और ऐसे व्यक्ति को जीवन में कभी भी आर्थिक परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ता। ब्रह्म मुहूर्त में उठकर पूजन-कर्म करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है, जीवन सुखी होता है। दिनचर्या संयमित हो जाती है। सही समय पर खाना और सोना होगा तो निश्चित है व्यक्ति की उम्र लंबी और शरीर स्वस्थ रहेगा।

Dr.Shree Vijay
26-08-2013, 06:45 PM
यही सब तो हमारे पूर्वजो के अघाध ज्ञान का निचोड़ हें.......................

aspundir
30-09-2013, 08:02 PM
अपनी संस्कृति को पहचाने —


दो पक्ष – कृष्ण पक्ष एवं शुक्ल पक्ष !
तीन ऋण – देव ऋण, पित्र ऋण एवं ऋषि त्रण !
चार युग – सतयुग , त्रेता युग , द्वापरयुग एवं कलयुग !
चार धाम – द्वारिका , बद्रीनाथ, जगन्नाथ पूरी एवं रामेश्वरम धाम !
चारपीठ – शारदा पीठ ( द्वारिका ), ज्योतिष पीठ ( जोशीमठ बद्रिधाम), गोवर्धन पीठ ( जगन्नाथपुरी ) एवं श्रन्गेरिपीठ !
चर वेद- ऋग्वेद , अथर्वेद, यजुर्वेद एवं सामवेद !
चार आश्रम – ब्रह्मचर्य , गृहस्थ , बानप्रस्थ एवं संन्यास !
चार अंतःकरण – मन , बुद्धि , चित्त , एवं अहंकार !
पञ्च गव्य – गाय का घी, दूध, दही, गोमूत्र एवं गोबर, !
पञ्च देव – गणेश , विष्णु , शिव , देवी और सूर्य !
पंच तत्त्व – प्रथ्वी , जल , अग्नि , वायु एवं आकाश !
छह दर्शन – वैशेषिक, न्याय, सांख्य, योग, पूर्व मिसांसा एवं उत्तर मिसांसा !
सप्त ऋषि – विश्वामित्र, जमदाग्नि, भरद्वाज, गौतम, अत्री, वशिष्ठ और कश्यप !
सप्त पूरी – अयोध्या पूरी , मथुरा पूरी , माया पूरी ( हरिद्वार ) , कशी , कांची ( शिन कांची – विष्णु कांची ) , अवंतिका और द्वारिका पूरी !
आठ योग – यम, नियम, आसन, प्राणायाम , प्रत्याहार, धारणा, ध्यान एवं समाधी !
आठ लक्ष्मी – आग्घ , विद्या , सौभाग्य , अमृत , काम , सत्य , भोग , एवं योग लक्ष्मी !
नव दुर्गा – शैल पुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी एवं सिद्धिदात्री !
दस दिशाएं – पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, इशान, नेत्रत्य, वायव्य आग्नेय,आकाश एवं पाताल !
मुख्या दस अवतार – मत्स्य, कच्छप, बराह, नरसिंह, बामन, परशुराम, श्री राम, कृष्ण, बलराम एवं कल्कि !
ब्रह्मास्त्र, नारायणास्त्र पाशुपत, आग्नेय अस्त्र, पर्जन्य अस्त्र, पन्नग अस्त्र या सर्प अस्त्र,गरुड़ अस्त्र, शक्ति अस्त्र, फरसा, गदा एवं चक्र l
ग्यारह कौमार ऋषि – सनक, सनन्दन, सनातन और सनत कुमार, मरीचि, अत्री, अंगीरा, पुलह, क्रतु, पुलस्त्य एवं वशिष्ठ l
बारह मास – चेत्र, वैशाख, ज्येष्ठ,अषाड़, श्रावन, भाद्रपद, अश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष. पौष, माघ एवं फागुन !
बारह राशी – मेष, ब्रषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, तुला, ब्रश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ, कन्या एवं मीन !
बारह ज्योतिर्लिंग – सोमनाथ, मल्लिकर्जुना, महाकाल, ओमकालेश्वर, बैजनाथ, रामेश्वरम, विश्वनाथ, त्रियम्वाकेश्वर, केदारनाथ, घुष्नेश्वर, भीमाशंकर एवं नागेश्वर !
बारह विश्व की प्रारम्भिक जातियां – देवऋषि, देवता, गन्धर्व, किन्नर, रूद्र, खस, नाग, गरुड व अरुण, दानव, दैत्य, असुर एवं वसु l
चौदह मनु – स्वायंभुव, स्वारोचिष, उत्तम, तामस, रैवत, चाक्षुष, वैवस्वत, अर्क सावर्णि, दक्ष सावर्णि, ब्रह्म सावर्णि, धर्म सावर्णि, रुद्र सावर्णि, रौच्य एवं भौत्य।
पंद्रह तिथियाँ – प्रतिपदा, द्वतीय, तृतीय, चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा, अमावश्या !
स्म्रतियां – मनु, विष्णु, अत्री, हारीत, याज्ञवल्क्य, उशना, अंगीरा, यम, आपस्तम्ब, सर्वत, कात्यायन, ब्रहस्पति, पराशर, व्यास, शांख्य, लिखित, दक्ष, शातातप, वशिष्ठ !

rajnish manga
01-10-2013, 12:24 PM
ज्ञानवर्धक तथा संग्रहणीय जानकारी प्रस्तुत करने हेतु आपका धन्यवाद, पुंडीर जी.

aspundir
19-11-2013, 04:28 PM
महाभारत में कौन किसका अवतार था?

महर्षि वेदव्यास द्वारा लिखे गए महाभारत जैसा अन्य कोई ग्रंथ नहीं है। यह ग्रंथ बहुत ही वित्रिच और रोचक है। विद्वानों ने इसे पांचवा वेद भी कहा है। महाभारत में अनेक पात्र हैं लेकिन बहुत कम लोग ये जानते हैं कि वे सभी पात्र देवता, गंधर्व, यक्ष, रुद्र, वसु, अप्सरा, राक्षस तथा ऋषियों के अंशावतार थे।
भगवान विष्णु की आज्ञानुसार ही उन्होंने धरती पर मनुष्य रूप में अवतार लिया था। महाभारत के आदिपर्व में इसका विस्तृत वर्णन किया गया है। उस समय धरती पर क्षत्रिय बहुत शक्तिशाली हो गए थे और अधर्म से शासन कर रहे थे। अधर्म का नाश करने के लिए ही भगवान विष्णु ने ये लीला रची थी।
http://i1.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/11/18/2778_b.jpg


- धर्म ग्रंथों के अनुसार तैंतीस देवता प्रमुख माने गए हैं। इनमें अष्ट वसु भी हैं। ये ही अष्ट वसु शांतनु व गंगा के पुत्र के रूप में अवतरित हुए क्योंकि इन्हें वशिष्ठ ऋषि ने मनुष्य योनि में जन्म लेने का श्राप दिया था। गंगा ने अपने सात पुत्रों को जन्म लेते ही नदी में बहा कर उन्हें मनुष्य योनि से मुक्त कर दिया था। राजा शांतनु व गंगा का आठवां पुत्र भीष्म के रूप में प्रसिद्ध हुआ।

aspundir
19-11-2013, 04:28 PM
http://i5.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/11/18/2778_c.jpg


- भगवान विष्णु श्रीकृष्ण के रूप में अवतीर्ण हुए। महाबली बलराम शेषनाग के अंश थे। देवगुरु बृहस्पति के अंश से द्रोणाचार्य का जन्म हुआ जबकि अश्वत्थामा महादेव, यम, काल और क्रोध के सम्मिलित अंश से उत्पन्न हुए। रुद्र के एक गण ने कृपाचार्य के रूप में अवतार लिया।

aspundir
19-11-2013, 04:29 PM
- द्वापर युग के अंश से शकुनि का जन्म हुआ। अरिष्टा का पुत्र हंस नामक गंधर्व धृतराष्ट्र तथा उसका छोटा भाई पाण्डु के रूप में जन्में। सूर्य के अंश धर्म ही विदुर के नाम से प्रसिद्ध हुए। कुंती और माद्री के रूप में सिद्धि और घृतिका का जन्म हुआ था।

http://i9.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/11/18/2779_e.jpg


- मति का जन्म राजा सुबल की पुत्री गांधारी के रूप में हुआ था। कर्ण सूर्य का अंशवतार था। युधिष्ठिर धर्म के, भीम वायु के, अर्जुन इंद्र के तथा नकुल व सहदेव अश्विनीकुमारों के अंश से उत्पन्न हुए थे।

aspundir
19-11-2013, 04:29 PM
http://i1.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/11/18/2779_f.jpg


- राजा भीष्मक की पुत्री रुक्मिणी के रूप में लक्ष्मीजी व द्रोपदी के रूप में इंद्राणी उत्पन्न हुई थी। दुर्योधन कलियुग का तथा उसके सौ भाई पुलस्त्यवंश के राक्षस के अंश थे।

aspundir
19-11-2013, 04:29 PM
http://i2.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/11/18/2780_g.jpg



- मरुदगण के अंश से सात्यकि, द्रुपद, कृतवर्मा व विराट का जन्म हुआ था। अभिमन्यु, चंद्रमा के पुत्र वर्चा का अंश था। अग्नि के अंश से धृष्टधुम्न व राक्षस के अंश से शिखण्डी का जन्म हुआ था।

aspundir
19-11-2013, 04:30 PM
http://i1.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/11/18/2780_h.jpg



- विश्वदेवगण द्रोपदी के पांचों पुत्र प्रतिविन्ध्य, सुतसोम, श्रुतकीर्ति, शतानीक और श्रुतसेव के रूप में पैदा हुए थे। दानवराज विप्रचित्ति जरासंध व हिरण्यकशिपु शिशुपाल का अंश था।

aspundir
19-11-2013, 04:30 PM
http://i1.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/11/18/2780_i.jpg


- कालनेमि दैत्य ने ही कंस का रूप धारण किया था। इंद्र की आज्ञानुसार अप्सराओं के अंश से सोलह हजार स्त्रियां उत्पन्न हुई थीं। इस प्रकार देवता, असुर, गंधर्व, अप्सरा और राक्षस अपने-अपने अंश से मनुष्य के रूप में उत्पन्न हुए थे।

aspundir
19-11-2013, 04:31 PM
http://i1.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/11/18/2781_j.jpg


महर्षि वेदव्यास के कथनानुसार गांधारी के पेट से निकले मांस पिण्ड से सौ पुत्र व एक पुत्री ने जन्म लिया। महाभारत के आदिपर्व के अनुसार उनके नाम यह हैं-
गांधारी का सबसे बड़ा पुत्र था 1- दुर्योधन। उसके बाद 2- दु:शासन, 3- दुस्सह, 4- दुश्शल, 5- जलसंध, 6- सम, 7- सह, 8- विंद, 9- अनुविंद, 10- दुद्र्धर्ष, 11- सुबाहु, 12- दुष्प्रधर्षण, 13- दुर्मुर्षण, 14- दुर्मुख, 15- दुष्कर्ण, 16- कर्ण, 17- विविंशति, 18- विकर्ण, 19- शल, 20- सत्व, 21- सुलोचन, 22- चित्र, 23- उपचित्र, 24- चित्राक्ष, 25- चारुचित्र, 26- शरासन, 27- दुर्मुद, 28- दुर्विगाह, 29- विवित्सु, 30- विकटानन, 31- ऊर्णनाभ, 32- सुनाभ, 33- नंद, 34- उपनंद, 35- चित्रबाण, 36- चित्रवर्मा, 37- सुवर्मा, 38- दुर्विमोचन, 39- आयोबाहु, 40- महाबाहु, 41- चित्रांग, 42- चित्रकुंडल, 43- भीमवेग, 44- भीमबल, 45- बलाकी, 46- बलवद्र्धन, 47- उग्रायुध, 48- सुषेण, 49- कुण्डधार, 50- महोदर, 51- चित्रायुध, 52- निषंगी, 53- पाशी, 54- वृंदारक, 55- दृढ़वर्मा, 56- दृढ़क्षत्र, 57- सोमकीर्ति, 58- अनूदर, 59- दृढ़संध, 60- जरासंध

aspundir
19-11-2013, 04:32 PM
http://i5.dainikbhaskar.com/thumbnail/600x519/web2images/religion.bhaskar.com/2013/11/18/2782_m.jpg


61- सत्यसंध, 62- सद:सुवाक, 63- उग्रश्रवा, 64- उग्रसेन, 65- सेनानी, 66- दुष्पराजय, 67- अपराजित, 68- कुण्डशायी, 69- विशालाक्ष, 70- दुराधर, 71- दृढ़हस्त, 72- सुहस्त, 73- बातवेग, 74- सुवर्चा, 75- आदित्यकेतु, 76- बह्वाशी, 77- नागदत्त, 78- अग्रयायी, 79- कवची, 80- क्रथन, 81- कुण्डी, 82- उग्र, 83- भीमरथ, 84- वीरबाहु, 85- अलोलुप, 86- अभय, 87- रौद्रकर्मा, 88- दृढऱथाश्रय, 89- अनाधृष्य, 90- कुण्डभेदी, 91- विरावी, 92- प्रमथ, 93- प्रमाथी, 94- दीर्घरोमा, 95- दीर्घबाहु, 96- महाबाहु, 97- व्यूढोरस्क, 98- कनकध्वज, 99- कुण्डाशी, और 100- विरजा। 100 पुत्रों के अलावा गांधारी की एक पुत्री भी थी जिसका नाम दुश्शला था, इसका विवाह राजा जयद्रथ के साथ हुआ था।