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View Full Version : स्त्रियों के बारे में : ओशो .


bindujain
12-05-2013, 08:39 AM
स्त्रियों के बारे में सबसे अलग ही विचार व्यक्त किए थे ओशो ने....

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हमारे समाज में स्त्रियों को सम्मान देने की अनेक टिपिकल चर्चाएं अक्सर होती रहती हैं। शास्त्रो-ग्रंथों आदि में भी पुरुषों से ज्यादा स्त्रियों के हर पहलू पर चर्चा हुई है। महापुरुष हो या संत, वे भी स्त्रियों के बारे में बोलते ही हैं। लेकिन इस मामले में ओशो की अलग ही विचारधारा थी।

क्रांतिकारी विचारों के जनक और संभोग जैसे विषय को समाधि तक से जोड़ने वाले ओशो जब महिलाओं के बारे में अपने विचार रखते हैं, तो यहां पर भी कई रोचक विचारों का जन्म होता है।

bindujain
12-05-2013, 08:40 AM
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bindujain
12-05-2013, 08:41 AM
ओशो कहते हैं कि सहनशक्ति के मामले में पुरुष, महिलाओं के आगे कहीं नहीं टिकते। यानी की पुरुषों की सहनशक्ति स्त्रियों की तुलना में बहुत कम होती है। पुरुष तो सिर्फ अपने शरीर की ऊपरी शक्ति का हिसाब लगाते रहते हैं, यानी की मसल की शक्ति। पुरुषों को लगता है कि वे अपने बाहुबल से भारी पत्थर भी उठा लेते हैं, जबकि स्त्रियां ऐसा नहीं कर सकतीं। लेकिन वास्तव में ये शक्ति नहीं। शक्ति को मापने का यह पैमाना बिल्कुल नहीं। शक्ति का पैमाना तो सहनशक्ति से होता है और ताकतवर वही होता है, जिसमें सहनशक्ति ज्यादा होती है।

bindujain
12-05-2013, 08:41 AM
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bindujain
12-05-2013, 08:42 AM
इसी का कारण है कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में अधिक समय तक जवान व तंदुरुस्त रहती हैं। जबकि बच्चे पैदा न करने वाले पुरुष स्त्रियों की तुलना में जल्दी बूढ़े और कमजोर हो जाते हैं। स्त्रियां पुरुषों से अधिक समय तक जीवित रहती हैं

bindujain
12-05-2013, 08:42 AM
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bindujain
12-05-2013, 08:43 AM
ओशो कहते हैं कि स्त्री, पुरुष को संभालती है, लेकिन आक्रमण नहीं करती। वह पुरुष के साथ रहती है, लेकिन झगड़ा नहीं करती। स्त्री मोहक होती है, वह मौन रहते हुए भी पुरुष को अपनी ओर बुलाती है। वह पुरुष को चारों तरफ से घेर लेती है, लेकिन पुरुष को पता ही नहीं चल पाता कि किस तरह। उसकी जंजीर सूक्ष्म होती है और दिखाई नहीं देती।

bindujain
12-05-2013, 08:44 AM
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bindujain
12-05-2013, 08:45 AM
स्त्री खुद को ही पुरुष से नीचे रखती है। यह तो पुरुष का झूठा भ्रम होता है कि स्त्री उसकी दासी है। जबकि स्त्री में दासी बनने की कला है और उसकी यह कला महत्वपूर्ण है। मतलब साफ है कि स्त्री, पुरुष की दासी नहीं होती। सच तो यह है कि दुनिया के किसी भी कोने में जब कोई स्त्री किसी पुरुष से प्यार करती है तो उसी वक्त वह अपने आपको दासी बना लेती है। क्योंकि ऐसा करके वह अपने आपको मालकिन बना लेती है, वह जीवन का रहस्य समझती है।

bindujain
12-05-2013, 08:45 AM
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bindujain
12-05-2013, 08:46 AM
स्त्री अपने आपको नीचे रखती है, चरणों में रखती है। जबकि वह खुद को पुरुष के चरणों में रखकर पुरुष के सिर पर मुकुट की तरह बैठ जाती है। आप चौबीसों घंटों उसका ही चिंतन करते रहते हो। वह तुम्हारी छाया बन जाती है, लेकिन पुरुष को पता नहीं चलता कि कब यही छाया उसे चलानी लगती है, उसे अपने इशारे पर नचाने लगती है




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bindujain
12-05-2013, 08:47 AM
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bindujain
12-05-2013, 08:49 AM
http://hindi.changathi.com/Export/Preview.aspx

bindujain
12-05-2013, 08:50 AM
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bindujain
12-05-2013, 08:51 AM
यानी कि स्त्री, पुरुष की तुलना में बहुत शक्तिशाली है।

उसकी शक्ति का रहस्य पुरुष को समझ ही नहीं आता।

उसकी शक्ति अदृश्य है, जो दिखाई नहीं देती, लेकिन ताकतवर से ताकतवर पुरुष को इस कदर अपने वश में कर लेती है कि पुरुष एकदम अशक्त बन जाता है।



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bindujain
12-05-2013, 08:52 AM
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bindujain
12-05-2013, 08:53 AM
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bindujain
12-05-2013, 08:53 AM
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bindujain
12-05-2013, 08:54 AM
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