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View Full Version : क्या अल्पसंख्यक लॉलीपॉप हैं, नीतीशजी?


Dark Saint Alaick
13-06-2013, 01:21 AM
इन दिनों नीतीश कुमार के तेवर देखने लायक हैं। इन दिनों ही क्यों, अरसे से उनके ही नहीं, उनकी समूची पार्टी के तेवर दर्शनीय हैं, ठीक उसी तरह, जब खुद नीतीशजी अथवा उनके जैसे तथाकथित धर्म-निरपेक्ष नेता नमाज़ अदा करते समय धारण की जाने वाली विशेष टोपी पहन कर अपनी छवि उजला रहे होते हैं। यह आश्चर्यजनक है कि यह दोनों पार्टियां आखिर किसलिए अथवा कहें कि आखिर क्यों एक-दुसरे के गठबंधन में हैं? ज़रा राष्ट्रपति चुनाव के समय से परिदृश्य पर ध्यान दीजिए। जनता दल (यू) क्या कभी भाजपा के साथ नज़र आया है? लगभग हर मुद्दे पर उसकी राय गठबंधन के सबसे बड़े दल (भाजपा) से अलग रही है, इसके बावजूद दोनों साथ हैं। आखिर यह कैसा रिश्ता है? जब सुविधा हुई श्री शरद यादव कह देते हैं, हम दोनों अलग पार्टियां हैं और यह उनका मसला है, राजग का नहीं और जब दूसरी सुविधा हुई, वही मसला अलग होने की धमकी का बन जाता है। लेकिन श्री नरेन्द्र मोदी को भाजपा के चुनाव प्रचार की कमान मिलते ही जदयू को लगने वाली मिर्च इतनी तीखी हो गई कि वे 'लालकृष्ण आडवाणी नहीं, तो राजग में बने रहना संभव नहीं।' ध्यान देने वाली बात है कि श्री आडवाणी अयोध्या का विवादित ढांचा उर्फ़ बाबरी मस्जिद ढहाने के मामले में एक आरोपी हैं। जदयू से सवाल यह कि आखिर आपको वे स्वीकार्य किस तरह हैं? आपको तो उसी दिन राजग से बाहर हो जाना चाहिए था, जब अटलजी ने बिस्तर पकड़ा था, लेकिन आप राजग से चिपके रहे। अब लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, तो आपको धर्मनिरपेक्षता याद आ रही है, लेकिन क्षमा करें, शरद यादवजी और नीतीशजी, इस देश का मुसलमान कोई लॉलीपॉप नहीं है। कांग्रेस की वोट-चूषण क्रिया ने उसे एक परिपक्व मतदाता में तब्दील कर दिया है और अब वह वोट-बैंक नहीं रह गया है। अतः ज़रा संभल कर, कहीं दांव उलटा न पड़ जाए।

abhisays
13-06-2013, 01:55 AM
मुझे तो लगता है सेकुलरिज्म तो बस दिखावा मात्र है, नितीश कुमार को नरेन्द्र मोदी से कोई निजी खुन्नस है. भला आप ही सोचिये आडवाणी सेक्युलर है और मोदी कम्युनल, यह लॉजिक कौन मान सकता है.

नितीश कुमार भाजपा से सम्बन्ध तोड़ कर एक बड़ी राजनैतिक भूल करने जा रहे हैं। अगले चुनाव में इनको इस बात का अंदाजा हो जाएगा।

abhisays
13-06-2013, 02:31 AM
और यकीन मानिए, जिस दिन नितीश बीजेपी से अलग हुए उस दिन पटना के लालू निवास पर घी के दिए जलाए जायेंगे।

khalid
13-06-2013, 10:19 AM
और यकीन मानिए, जिस दिन नितीश बीजेपी से अलग हुए उस दिन पटना के लालू निवास पर घी के दिए जलाए जायेंगे।

यह बात सत्य हैँ
पंचायत चुनाव मेँ जातिवाद सिरे से खारिज हो जाता हैँ लेकिन विधान सभा और लोक सभा मेँ सिर चढ कर बोलता हैँ
अगर नितीश जी यह सोचकर चल रहे हैँ भाजपा से अलग होकर वह cm बने रहेँगे तो भुल कर रहेँ हैँ

Dark Saint Alaick
08-06-2014, 11:17 PM
मित्रो, मैंने जब यह सूत्र बनाया था, तब इस पर ज्यादा चर्चा नहीं हुई, लेकिन क्या स्थितियां एकदम वही नहीं हैं, जैसी मैंने परिभाषित की थीं और क्या अब हमें फिर इस मुद्दे पर एक नए रूप में चर्चा नहीं करनी चाहिए कि इस बार इस देश ने तमाम जाति, धर्म, सम्प्रदाय से ऊपर उठ कर वोट किया है यानी इस देश से वोट बैंक की राजनीति का अंत। क्या ख़याल है आपका ?

rajnish manga
09-06-2014, 12:16 AM
पिछले वर्ष नितीश कुमार और उनकी पार्टी जेडीयू ने जो कुछ भी किया वह आत्मघाती नहीं तो और क्या है? आपने उस समय तमाम परिदृश्य की तर्कपूर्ण समीक्षा प्रस्तुत की थी और भविष्य का आकलन भी सही किया था. उत्तर प्रदेश और बिहार राज्य में जहां हर जाति प्रजाति, अल्पसंख्यक वर्ग तथा अन्यान्य तबकों के वोटरों की संख्या हर पार्टी के मुख्यालय में मौजूद रहती है और जिसके आधार पर राजनैतिक दल अपनी स्ट्रेटेजी तय करते हैं, इस बार जातीय समीकरणों से हक्के बक्के हैं.

हम यह कह सकते हैं कि यह भ्रष्टाचार के रूप में जारी सरकारी आतंकवाद के खिलाफ़ एक referendum था. इसमें जात पांत और धर्म जैसे मुद्दों से परे जा कर लोगों ने अपनी अंतरात्मा की आवाज़ के अनुसार एक साफ़ सुथरी व्यवस्था के लिये निर्णायक वोट दिया जिसने सभी जातिगत और धर्म-अल्पसंख्यक वर्गों के आधार पर बनाये गये समीकरण ध्वस्त कर दिये. निश्चय ही यह एक ऐतिहासिक मोड़ है जहां विषाक्त वातावरण से मुक्त ठंडी हवा के झकोरों से सभी वर्गों को आनन्द की अनुभूति हो रही है.

सूत्र में खालिद जी द्वारा की गयी भविष्यवाणी भी सत्य साबित हुयी है जिसके अनुसार नितीश जी को अपनी गद्दी छोड़नी पड़ी.

Dark Saint Alaick
15-06-2014, 09:38 PM
लीजिए, एक नई खबर। सुशासन बाबू ने अपनी बीस साला दुश्मनी को भुला दिया है और संभवतः अगला विधानसभा चुनाव वे लालू यादव से मिल कर लड़ सकते हैं।कहा जाता है कि घुटना पेट की तरफ ही मुड़ता है अर्थात सुशासन बाबू ने साबित कर दिया कि असल में वे वही हैं, जो लालू यादव हैं। सत्रह साल बीजेपी को धोखा देने के बाद यह तो होना ही था। … लेकिन सवाल यह है कि बिहार की जनता को आप कब तक धोखा देंगे सुशासन बाबू ? जनता अब सब समझ चुकी है कि आप सिर्फ कुर्सी के हैं, किसी और के नहीं। बेचारे शरद यादव का बुढ़ापा खराब कर दिया।

rajnish manga
15-06-2014, 11:23 PM
अगर यह कहा जाये कि सुशासन कुमार और वरद यादव मौसेरे भाई हैं तो गलत नहीं होगा.