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View Full Version : समाचार


VARSHNEY.009
26-06-2013, 05:26 PM
संयुक्त राष्ट्र की जारी एक रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली के ५० मेट्रो स्टेशन जो कि प्रथम एवें द्र्तिये चरण मैं बने थे वे आठ रिक्टर स्केल तीव्रता के भूकम्प के आने पर जमीं मैं धंस जयेंगे।

गत तीन जून को यूनाइटेड नेशन ऑफिस ऑन डिजास्टर रिस्क रिडक्शन (यूएनआइएसडीआर) की ओर से जारी रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली मेट्रो में प्रतिदिन करीब 20 लाख लोग यात्र करते हैं। यह संख्या दुनिया के सौ देशों की कुल आबादी से भी अधिक है। ऐसे में यदि किसी तरह की प्राकृतिक आपदा की मार पड़ती है तो बड़ी तादाद में एक साथ लोग प्रभावित होंगे और इससे करीब 4100 करोड़ रुपये का नुकसान होगा। संयुक्त राष्ट्र के लिए यह रिपोर्ट बेंगलूर स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन सेटलमेंट ने अध्ययन कर तैयार की है। पूर्वी दिल्ली के शास्त्री पार्क, वेलकम तो पुरानी दिल्ली के चांदनी चौक, चावड़ी बाजार, कश्मीरी गेट आदि ऐसे मेट्रो स्टेशन हैं जो आठ रिएक्टर स्केल तीव्रता पर आए भूकंप में जमींदोज हो जाएंगे। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि प्राकृतिक आपदा जो अगले 10 सालों में आ सकती है, इसे भी नजरअंदाज किया गया है।

VARSHNEY.009
26-06-2013, 05:33 PM
आने वाली पहली जुलाई से रेलवे का टिकट वक्त रहते रद नहीं कराना और महंगा पड़ेगा। रेलवे ने 15 साल बाद रिफंड नियमों को सरल बनाने के बहाने मुसाफिरों पर और बोझ डाल दिया है। अब अनरिजर्व टिकट हो या रिजर्व, रद कराने की नौबत आने पर जल्द से जल्द ऐसा करने में ही समझदारी होगी।
अनरिजर्व टिकट रद कराने के लिए अवधि का निर्धारण अब ट्रेन की रवानगी के बजाय टिकट खरीदने के वक्त से किया जाएगा। अब ऐसे टिकट तीन घंटे के भीतर रद कराने पर क्लर्केज शुल्क (20 रुपये) काटकर बाकी किराया रिफंड होगा। यदि ऐसा टिकट काफी पहले खरीद लिया गया है तो यात्रा के 24 घंटे पहले तक रद कराने पर क्लर्केज शुल्क काटकर बाकी किराया रिफंड के रूप में मिलेगा।
रिजर्व टिकटों के मामले में अब ट्रेन रवानगी के नियत समय से 48 घंटे या उससे पहले (अभी 24 घंटे पहले) टिकट रद कराने पर न्यूनतम रद्दीकरण शुल्क फ*र्स्ट एसी टिकट पर 120 रुपये, सेकंड एसी पर 100 रुपये, थर्ड एसी पर 90 रुपये, स्लीपर क्लास पर 60 रुपये और द्वितीय श्रेणी साधारण पर 30 रुपये होगा। ये बढ़े शुल्क रेल बजट 2013-14 में घोषित हुए थे और पहली अप्रैल से लागू हैं।
अब ट्रेन छूटने के नियत समय से 48 से 6 घंटे पहले तक (अभी 24-4 घंटे पहले) रिजर्व टिकट रद कराने पर किराये की 25 फीसद राशि काटी जाएगी। जबकि छह घंटे के भीतर (मौजूदा चार घंटे) टिकट रद कराने पर 50 फीसद किराया कटेगा। ट्रेन छूटने के दो घंटे बाद कोई रिफंड नहीं मिलेगा।
एक से ज्यादा व्यक्तियों के लिए जारी टिकट के मामले में कंफर्म यात्रियों का टिकट रद कराने पर क्लर्केज शुल्क काटकर पूरा रिफंड मिलेगा। बशर्ते पूरा टिकट छह घंटे पहले (अभी चार घंटे) रद कराया गया हो। क्लर्केज शुल्क फ*र्स्ट एसी पर 30 रुपये, द्वितीय श्रेणी (साधारण-आरक्षित) पर 20 रुपये और बाकी सभी श्रेणियों के लिए 30 रुपये है।
200 किमी, 200-500 किमी, 500 किमी से अधिक दूरी की यात्रा वाले आरएसी टिकटों को ट्रेन छूटने के तीन घंटे पहले तक रद कराने पर सिर्फ क्लर्केज शुल्क काटा जाएगा। ट्रेन छूटने के तीन घंटे बाद आरएसी व वेटिंग टिकटों पर कोई भी रिफंड नहीं मिलेगा। सुदूरवर्ती व पर्वतीय इलाकों में शाम सात से सुबह छह बजे के बीच छूटने वाली ट्रेनों के मामले में रिफंड संबंधित स्टेशन पर रिजर्वेशन ऑफिस खुलने के दो घंटे तक लिया जा सकेगा।
लेट ट्रेन का टिकट रद कराने पर पूरा किराया वापस होगा और क्लर्केज शुल्क भी नहीं काटा जाएगा। बशर्ते टिकट ट्रेन छूटने से पहले रद कराया जाए। अभी 200, 200-500 और 500 किमी से अधिक दूरी की यात्रा के मामलों में ट्रेन छूटने पर क्रमश: 3, 6 या 12 घंटे बाद तक टिकट रद कराने पर पूरा किराया वापस मिलता है।
कंफर्म या आरएसी टिकट खोने, खराब होने या फटने पर रिजर्वेशन चार्ट बनने तक स्टेशन मास्टर डुप्लीकेट टिकट जारी कर सकता है। इसके लिए द्वितीय श्रेणी व स्लीपर क्लास पर प्रति यात्री 50 रुपये और इससे ऊपर की श्रेणियों के लिए 100 रुपये शुल्क वसूला जाएगा। बंद, धरना प्रदर्शन या बाढ़ की स्थिति में यदि ट्रेन छूट जाती है तो अब 90 दिनों के बजाय 10 दिन के भीतर चीफ कामर्शियल मैनेजर (रिफंड) को रिफंड का आवेदन करना होगा।

VARSHNEY.009
26-06-2013, 05:37 PM
जिंदगियां बचाने में जुटे वायुसेना के ये पायलट जोड़े

उत्तराखंड की तबाही में फंसे लोगों को बचाने के लिए सेना के जवान अपनी जान पर खेल रहे हैं। इस काम में एयरफोर्स की भूमिका और भी महत्वपूर्ण है क्योंकि हेलीकॉप्टरों के जरिए ही सबसे ज्यादा लोगों को बचाया जा रहा है।

इन्हीं जवानों में दो शादीशुदा जोड़े भी हैं जो दुर्गम परिस्थितियों और खराब मौसम के बीच उड़ान भरकर लोगों को बचा रहे हैं।

एक मिशन पर साथ रहते हुए भी ये पति-पत्नी बहुत कम समय के लिए एकदूसरे से मिल पाते हैं लेकिन बिना कोई शिकायत हौसले की उड़ान चलती रहती है।

इन जोड़ों में एक हैं स्क्वॉड्रन लीडर्स एसके प्रधान और खुशबू गुप्ता जो वायुसेना के बचाव कार्य में दिन रात जुटे हुए हैं।

इन्हीं की तरह एक ओर जांबाज जोड़ा है स्क्वॉड्रन लीडर्स विक्रम थियागरमन ओर फ्लाइट लेफ्टिनेंट तान्या श्रीनिवास का।



ये जोड़े वायुसेना में ही काम करते हुए मिले और चार साल पहले शादी के बंधन में बंधे। यह पहला मौका है जब कोई जोड़ा एक ही मिशन के लिए एक साथ साथ काम कर रहा है।



दिनभर के काम और थकान के बाद ये जोड़े केवल शाम के समय एक दूसरे से मिल पाते हैं लेकिन फिर भी इन्हें कोई शिकायत नहीं।

एसके प्रधान और खुशबू गुप्ता कहते हैं कि वे यहां कीमती जानों को बचाने आए हैं और भारतीय वायुसेना की तरफ से दिलाई गई अपनी शपथ को निभा रहे हैं।

विक्रम थियागरमन और तान्या श्रीनिवास भी बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में फंसे लोगों को बचाने के लिए दिनभर करीब 100 घंटे से ज्यादा की उड़ान भरते हैं।

फ्लाइट लेफ्टिनेंट तान्य श्रीनिवास ने बताया कि वह इस राहत अभियान का हिस्सा बनने के लिए बेहद इच्छुक थीं।

अलग रहती है निजी जिंदगी
एसके प्रधान कहते हैं कि वायुसेना के प्रति हमारी निष्ठा ही हमें अलग बनाती है। हम कभी नहीं सोचते की हमें एक ही मिशन मिले।

तान्य श्रीनिवास ने बताया कि हमें अपने काम से निजी जिंदगी को अलग रखने का प्रशिक्षण दिया जाता है।

पत्नियों की काबिलियत बनाती है बेफिक्र
प्रधान कहने हैं कि जब उनकी पत्नी खतरनाक इलाकों में उड़ान भरती हैं तो उन्हें उनकी काबिलियत पर पूरा भरोसा होता है। वहीं, थियागरामन का कहना है कि उनकी पत्नी टॉप पायलट में आती हैं और वो बस उनके लिए शुभकामनाएं देकर विदा कर देते हैं।

VARSHNEY.009
27-06-2013, 10:02 AM
उत्तराखंड में सरकारी अनदेखी पर बोले, क्या हमें चीन चले जाना चाहिए?

पूनम पाण्डे
देहरादून।। शाम के करीब 4 बजे मेरा मोबाइल फोन बजा। देखा तो नंबर कुछ अजीब सा था। मैं जौलीग्रांट में आपदा में लापता लोगों के परिजनों से बात कर रही थी, सोचा कि फोन न उठाऊं, लेकिन जब उठाया और बात की तो मैं सन्न रह गई। मेरे पास कोई जवाब नहीं रहा।

फोन उठाने पर आवाज आई, हेलो मैडम, आप पत्रकार हैं ना। मैंने कहा, हां... सामने से आवाज आई मैं नांगलिंग से हरीश भंडारी बोल रहा हूं। आप लोग केदारनाथ, बद्रीनाथ सबके बारे में तो बता रहे हैं लेकिन हम लोगों की तरफ किसी का ध्यान नहीं जा रहा। हम यहां 17 जून से फंसे हुए हैं। 400 लोग गांव के हैं और करीब 40 टूरिस्ट हैं। क्या हमारी जिंदगी की कोई कीमत नहीं है? हमारे पास खाने-पीने के लिए कुछ नहीं है। बूढ़े और बच्चे बीमार पड़ने लगे हैं। हमारा सारा अनाज खत्म हो गया है। सब रास्ते टूट गए हैं। हमें यहां हेलिकॉप्टर तो उड़ते हुए दिखते हैं, लेकिन कोई हमें लेने नहीं आता, न ही कोई खाने पीने का सामान गिराता है। क्या हम इस देश के नागरिक नहीं हैं... क्या हमें चीन चले जाना चाहिए?

मैंने पूछा कि अगर वहां कुछ साधन नहीं हैं तो आप फोन कैसे कर रहे हैं? हरीश ने बताया कि गांव में एक शख्स के पास सैटेलाइट फोन है तो मैं उसी से फोन कर रहा हूं। कहीं से आपका नंबर मिल गया तो ट्राई कर लिया। मेरे पास उसके सवालों का कोई जवाब नहीं था। बस इतना कह पाई कि जरूर आपके बारे में भी देश को बताएंगे। उसने आगे कहा कि आज हमें गांव वाला होने और साहब न होने पर तरस आ रहा है।

हरीश ने कहा कि गांव के एक आईपीएस को तो हेलिकॉप्टर भेज कर 4 दिन पहले ही बचा लिया गया लेकिन हमारे लिए कोई नहीं आया। क्या आप सब वीआईपी की ही सुनते हैं? उसकी बात सुनकर मैं कुछ देर के लिए भूल गई कि मैं जौलीग्रांट में खड़ी हूं।

नांगलिंग पिथौरागढ़ जिले में धारचूला से आगे चीन बॉर्डर पर बसा एक गांव है। नांगलिंग की तरह ही यहां चल गांव, सेला, बालिंग में भी सैकड़ों लोग फंसे हैं, जिन तक कोई मदद नहीं पहुंच पा रही है।

VARSHNEY.009
27-06-2013, 10:03 AM
3 दिन से अटकी है कांग्रेस की भेजी राहत सामग्री, पार्टी बेखबर

देहरादून।। सोमवार को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मीडिया की मौजूदगी में उत्तराखंड के लिए राहत सामग्री से भरे 100 ट्रकों को हरी झंडी दिखाई थी। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि खाने-पीने की चीज़ों और दवाइयों से भरे ये ट्रक 3 दिन से बीच रास्ते में अटके हुए हैं, लेकिन कोई भी इनकी सुध नहीं ले रहा। इन ट्रकों का डीज़ल खत्म हो चुका है और ड्राइवरों के पास खाने-पीने के लिए भी पैसे नहीं बचे। ड्राइवरों का कहना है कि अगर जल्द कुछ इंतज़ाम नहीं हुआ तो वे राहत सामग्री बेचने के लिए मजबूर हो जाएंगे।

राजनीतिक पार्टियों में उत्तराखंड में चल रहे बचाव और राहत कार्य का क्रेडिट लेने की होड़ मची हुई है। मीडिया में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 15 हजार गुजरातियों को बचाने की खबरें आने के बाद कांग्रेस की तरफ से सोमवार को उत्तराखंड के लिए राहत सामग्री से भरे ट्रकों का काफिला भेजा गया था। इस काफिले को कांग्रेस प्रेजिडेंट सोनिया गांधी ने हरी झंडी दिखाई थी। इस मौके पर राहुल गांधी और दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित समेत कांग्रेस के कुछ और सीनियर नेता भी वहीं मौजूद थे। 3 दिन से ये 100 ट्रक बीच रास्ते में अटके हैं, लेकिन सरकार और कांग्रेस पार्टी को इस बारे में कोई खबर नहीं है। एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक जब इस बारे में कांग्रेस प्रवक्ता संदीप दीक्षित से बात की गई, तो उन्हें नहीं मालूम था कि ट्रक बीच रास्ते में फंसे हुए हैं।

ट्रक ड्राइवरों का कहना है कि उन्हें दिल्ली से देहरादून के लिए रवाना किया गया था, लेकिन बाद में उन्हें और ऊपर श्रीनगर (उत्तराखंड) जाने के लिए कहा गया। ट्रक ड्राइवर श्रीनगर की तरफ बढ़ चले, लेकिन बीच रास्ते में तेल खत्म होने की वजह से ऋषिकेश में ही रुकना पड़ा। ड्राइवरों का कहना है कि अभी तक सरकार या कांग्रेस की तरफ से किसी ने भी उनसे संपर्क नहीं किया है। खाने-पीने में हुए खर्च की वजह से ड्राइवरों के पास पैसा भी खत्म हो चुका है। रिपोर्ट में एक ड्राइवर ने कहा, ' मालिक ने 2 हजार रुपये का डीज़ल भरवाया था, जो कि खत्म हो गया है। हमारे पास जो पैसे थे, वे भी खाने-पीने में खर्च हो गए। अब हमारे पास कुछ नहीं बचा है। हमसे कोई संपर्क भी नहीं कर रहा। अगर यही हालात बने रहे तो हम राहत सामग्री बेचने के लिए मजबूर हो जाएंगे'


मीडिया की मौजूदगी में ट्रकों को हरी झंडी दिखाने और बाद में उनकी सुध न लेने से कांग्रेस की और फजीहत होती दिख रही है। पार्टी पहले तो राहुल गांधी के विदेश में होने को लेकर बैकफुट पर थी और उससे कोई जवाब देते नहीं बन रहा था। बाद में राहुल गांधी जब भारत लौटे तो एक और बखेड़ा खड़ा हो गया। गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा था कि बचाव और राहत कार्य में कोई अड़चन न आए, इसलिए किसी भी वीवीआईपी को प्रभावित इलाके में जाने की इजाजत नहीं है। इस निर्देश के बावजूद राहुल गांधी विदेश से आने के बाद सोमवार को उत्तराखंड पहुंच गए थे। उनके इस कदम की चारों तरफ आलोचना होने के बाद कांग्रेस को यह सफाई देनी पड़ी कि राहुल गांधी एक आम नागरिक के रूप में वहां पहुंचे हैं।

इस बीच उत्तराखंड में आलम यह है कि देश के कोने-कोने से पहुंची राहत सामग्री गोदामों में पड़ी हुई है। बारिश और दूसरी कई वजहों से उसे प्रभावित इलाकों तक ले जाने में मुश्किलें आ रही हैं। समस्या यह भी है कि सामान को छोटी गाड़ियों में भरकर नहीं ले जाया जा सकता और बड़ी गाड़ियों के मालिक प्रभावित इलाके में जाने के लिए तैयार नहीं हो रहे।

bindujain
27-06-2013, 10:29 AM
3 दिन से अटकी है कांग्रेस की भेजी राहत सामग्री, पार्टी बेखबर

देहरादून।। सोमवार को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मीडिया की मौजूदगी में उत्तराखंड के लिए राहत सामग्री से भरे 100 ट्रकों को हरी झंडी दिखाई थी। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि खाने-पीने की चीज़ों और दवाइयों से भरे ये ट्रक 3 दिन से बीच रास्ते में अटके हुए हैं, लेकिन कोई भी इनकी सुध नहीं ले रहा। इन ट्रकों का डीज़ल खत्म हो चुका है और ड्राइवरों के पास खाने-पीने के लिए भी पैसे नहीं बचे। ड्राइवरों का कहना है कि अगर जल्द कुछ इंतज़ाम नहीं हुआ तो वे राहत सामग्री बेचने के लिए मजबूर हो जाएंगे।

राजनीतिक पार्टियों में उत्तराखंड में चल रहे बचाव और राहत कार्य का क्रेडिट लेने की होड़ मची हुई है। मीडिया में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 15 हजार गुजरातियों को बचाने की खबरें आने के बाद कांग्रेस की तरफ से सोमवार को उत्तराखंड के लिए राहत सामग्री से भरे ट्रकों का काफिला भेजा गया था। इस काफिले को कांग्रेस प्रेजिडेंट सोनिया गांधी ने हरी झंडी दिखाई थी। इस मौके पर राहुल गांधी और दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित समेत कांग्रेस के कुछ और सीनियर नेता भी वहीं मौजूद थे। 3 दिन से ये 100 ट्रक बीच रास्ते में अटके हैं, लेकिन सरकार और कांग्रेस पार्टी को इस बारे में कोई खबर नहीं है। एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक जब इस बारे में कांग्रेस प्रवक्ता संदीप दीक्षित से बात की गई, तो उन्हें नहीं मालूम था कि ट्रक बीच रास्ते में फंसे हुए हैं।

ट्रक ड्राइवरों का कहना है कि उन्हें दिल्ली से देहरादून के लिए रवाना किया गया था, लेकिन बाद में उन्हें और ऊपर श्रीनगर (उत्तराखंड) जाने के लिए कहा गया। ट्रक ड्राइवर श्रीनगर की तरफ बढ़ चले, लेकिन बीच रास्ते में तेल खत्म होने की वजह से ऋषिकेश में ही रुकना पड़ा। ड्राइवरों का कहना है कि अभी तक सरकार या कांग्रेस की तरफ से किसी ने भी उनसे संपर्क नहीं किया है। खाने-पीने में हुए खर्च की वजह से ड्राइवरों के पास पैसा भी खत्म हो चुका है। रिपोर्ट में एक ड्राइवर ने कहा, ' मालिक ने 2 हजार रुपये का डीज़ल भरवाया था, जो कि खत्म हो गया है। हमारे पास जो पैसे थे, वे भी खाने-पीने में खर्च हो गए। अब हमारे पास कुछ नहीं बचा है। हमसे कोई संपर्क भी नहीं कर रहा। अगर यही हालात बने रहे तो हम राहत सामग्री बेचने के लिए मजबूर हो जाएंगे'


मीडिया की मौजूदगी में ट्रकों को हरी झंडी दिखाने और बाद में उनकी सुध न लेने से कांग्रेस की और फजीहत होती दिख रही है। पार्टी पहले तो राहुल गांधी के विदेश में होने को लेकर बैकफुट पर थी और उससे कोई जवाब देते नहीं बन रहा था। बाद में राहुल गांधी जब भारत लौटे तो एक और बखेड़ा खड़ा हो गया। गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा था कि बचाव और राहत कार्य में कोई अड़चन न आए, इसलिए किसी भी वीवीआईपी को प्रभावित इलाके में जाने की इजाजत नहीं है। इस निर्देश के बावजूद राहुल गांधी विदेश से आने के बाद सोमवार को उत्तराखंड पहुंच गए थे। उनके इस कदम की चारों तरफ आलोचना होने के बाद कांग्रेस को यह सफाई देनी पड़ी कि राहुल गांधी एक आम नागरिक के रूप में वहां पहुंचे हैं।

इस बीच उत्तराखंड में आलम यह है कि देश के कोने-कोने से पहुंची राहत सामग्री गोदामों में पड़ी हुई है। बारिश और दूसरी कई वजहों से उसे प्रभावित इलाकों तक ले जाने में मुश्किलें आ रही हैं। समस्या यह भी है कि सामान को छोटी गाड़ियों में भरकर नहीं ले जाया जा सकता और बड़ी गाड़ियों के मालिक प्रभावित इलाके में जाने के लिए तैयार नहीं हो रहे।

राहत सामग्री का समय पर पहुँचना ही महत्वपुर्ण है

VARSHNEY.009
29-06-2013, 09:21 AM
एसएमएस से रेलवे आरक्षण सुविधा शुरू

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। रेलवे टिकट आरक्षण के लिए इंटरनेट सुविधा वाला स्मार्टफोन होना जरूरी नहीं है। अब आप साधारण मोबाइल हैंडसेट से भी एसएमएस भेजकर या डायल कर कहीं से भी रेलवे टिकट बुक करा सकते हैं। रेलमंत्री मल्लिकार्जुन खड़गे ने शुक्रवार को आइआरसीटीसी और निजी क्षेत्र की कुछ कंपनियों के सहयोग से तैयार की गई मोबाइल फोन से रेलवे टिकट बुक कराने की सुविधा शुरू कर दी।
रेलमंत्री खड़गे ने कहा कि अभी रोजाना करीब चार लाख टिकटों [45 फीसद] की ऑनलाइन बुकिंग होती है। मोबाइल पर एसएमएस या डायल से टिकट बुकिंग की सुविधा शुरू होने के बाद ऑनलाइन बुकिंग बढ़ने की संभावना है। इसलिए सर्वर की क्षमता बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं। रेलवे बोर्ड के चेयरमैन विनय मित्तल ने बताया कि बुकिंग क्षमता रोजाना नौ लाख करने की कोशिश की जा रही है। मोबाइल पर बुकिंग की सुविधा सुबह आठ से दोपहर 12 बजे तक बंद रहेगी। इस सुविधा के लिए आइआरसीटीसी ने कई कंपनियों से करार किया है। भारत बीपीओ सर्विसेज लिमिटेड के जरिए 139 पर सुविधा मिलेगी, जबकि 5676714 पर सुविधा फ्रीक्वेंसी वीकली मैनेजमेंट सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड के जरिए प्राप्त होगी। इसके अलावा इंटरबैंक मोबाइल, एयरटेल मनी और आंध्र बैंक कार्ड के साथ भी आइआरसीटीसी ने करार किए हैं।
जिन ग्राहकों के पास बीएसएनएल मोबाइल सेवा, जावा एनेबल्ड मोबाइल और आंध्र बैंक प्रीपेड कार्ड है, वे खास एप्लीकेशन से एसएमएस पर एमपिन के जरिए बुकिंग करा सकते हैं। एयरटेल के ग्राहकों के लिए यूएसएसडी आधारित सेवा से टिकटों की बुकिंग कराने का विकल्प है। इसके लिए एयरटेल मनी में रजिस्टर कराने के बाद स्टार 400 हैश डायल करना होगा और इस पर कैश लोड कराना होगा या किसी एयरटेल मनी आउटलेट से रिचार्ज कराना होगा। टिकट बुक कराने के लिए उपभोक्ता को दो एसएमएस करने होंगे। आइआरसीटीसी के एमडी राकेश टंडन के अनुसार दोनों एसएमएस पर प्रत्येक का 3 रुपये शुल्क लगेगा। अन्य सर्विस चार्ज वही होंगे जो ऑनलाइन टिकट बुकिंग पर लगते हैं।
मोबाइल नंबर कराना होगा रजिस्टर
एसएमएस से टिकट बुक कराने के लिए सबसे पहले आपको आइआरसीटीसी और अपने बैंक में मोबाइल नंबर रजिस्टर कराना होगा। बैंक आपको मोबाइल मनी आइडेंटीफायर [एमएमआइडी] और वनटाइम पासवर्ड देगा। इसके बाद आप 139 या 5676714 पर एसएमएस भेजकर टिकट बुक करा सकते हैं। मोबाइल पर अंग्रेजी में टाइप करें : बुक [ट्रेन नंबर] फ्रॉम [स्टेशन कोड] टू [स्टेशन कोड]-[यात्रा की तारीख]-[क्लास]-[यात्री का नाम]-[आयु]-[एम/एफ], इसके बाद इसे 139 पर भेज दें। आपको ट्रंाजेक्शन आइडी, आइएमपीएस और अन्य ब्योरे का एसएमएस मिलेगा। उसके आधार पर आप अगला एसएमएस इस प्रकार भेजें : पे [ट्रांजेक्शन आइडी]-आइएमपीएस-एमएमआइडी-ओटीपी-आइआरसीटीसी यूजर आइडी। इसके बाद आपको टिकट बुक होने का एसएमएस ब्योरे समेत प्राप्त होगा। यह पेपर टिकट का काम करेगा। 5676714 पर एसएमएस से बुकिंग के लिए अंग्रेजी में रेल लिखकर इस नंबर पर भेजना होगा और नियत प्रक्रिया का पालन करना होगा।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 09:22 AM
दुधारु गाय बनी आइआरसीटीसी (http://www.jagran.com/news/national-problems-in-irctc-booking-system-10518009.html)

अंबाला [दीपक बहल]। इंडियन रेलवे कैटरिंग एंड टूरिज्म कॉरपोरेशन [आइआरसीटीसी] रेलवे के लिए दुधारु गाय बन गई है। इसकी वेबसाइट से ई-टिकट बनता नहीं लेकिन मुसाफिर के बैंक खाते से रुपये ट्रांसफर हो जाते हैं। रिफंड लेने के लिए आइआरसीटीसी को सुबूत देना पड़ता है। अपना ही पैसा पाने में कई-कई दिन लग जाते हैं। ऐसे मामले रोजाना प्रकाश में आते हैं, जिनके रुपये के ब्याज के जरिये रेलवे लाखों कमा रहा है।
आइआरसीटीसी की वेबसाइट पर प्रतिदिन करीब एक लाख यात्री टिकट बनवाते हैं। ई-टिकट बनाते वक्त अक्सर उनके बैंक खाते से रुपये कट जाते हैं, लेकिन टिकट बनता नहीं। ऐसे में दोबारा टिकट तभी बनेगा जब बैंक खाते में और रुपये होंगे। कई बार दो-दो बार पैसे कट जाते हैं लेकिन टिकट एक बार भी नहीं बनता। ऐसे में मुसाफिर यदि कस्टमर केयर से संपर्क करता है तो वहां यूजर आइडी पूछकर रुपये आइआरसीटीसी के खाते में न आने की बात कहकर पल्ला झाड़ लिया जाता है। जब पैसे कटने और ई-टिकट न बनने की बात कही जाती है तो यात्री को सुबूत सहित ई-मेल करने की नसीहत दी जाती है। यह भी कहा जाता है वे अपने बैंक खाते की स्टेटमेंट स्कैन कर आइआरसीटीसी में भेज दें।
यदि मुसाफिर अपने स्तर पर बैंक जाकर पता लगाता है तो उसे वहां आश्वासन दिया जाता है कि रिफंड अपने आप खाते में चला जाएगा। इसके लिए 11 दिन का समय दिया जाता है। इसके बाद भी पैसे न वापस होने पर फिर से शिकायत करने की सलाह दी जाती है। गत 24 जून को दरभंगा से आनंद विहार के लिए दो मुसाफिरों की ई टिकट के 2452 रुपये काट लिए गए लेकिन आज तक रिफंड नहीं हुआ। इसी प्रकार 20 जून को चंडीगढ़ से पानीपत तक का किराया 482 रुपये काट लिया, लेकिन टिकट नहीं बना और न ही पैसा मिला।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 09:23 AM
नैनीताल भी असुरक्षित

कभी उत्तर प्रदेश की ग्रीष्मकालीन राजधानी मानी जाने वाला नैनीताल भी भूस्खलन के नजरिए से कतई सुरक्षित नहीं है। भूवैज्ञानिकों ने दो-तीन दशकों से यहां हो रहे अधाधुंध निर्माण पर चिंता व्यक्त करते हुए तत्काल रोक लगाने की सिफारिश की है। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआइ) के वैज्ञानिकों ने नैनीताल के लिए लैंड स्लाइड हैजार्ड जोनेशन मानचित्र तैयार किया है। शहर के विकास में इस मानचित्र का प्रयोग कर केदारनाथ जैसी त्रासदी से काफी हद तक बचा जा सकता है।
नैनीताल घाटी भू-तकनीकी दृष्टि से अस्थिर है। यह क्षेत्र भूस्खलन के नजरिए से काफी संवेदनशील है। यहां समय-समय पर हुए बड़े भूस्खलन की अनदेखी नैनी झील सहित खूबसूरत पर्यटक नगरी का अस्तित्व भी खत्म कर सकती है। करीब डेढ़ किमी. दायरे में फैली नैनी झील के पूर्व दिशा में मौजूद शेर का डांडा रिज, उत्तरी दिशा में नैना पीक, पश्चिमी क्षेत्र में स्थित अयारपाटा रिज भूस्खलन के प्रति जबरदस्त संवेदनशील है। 1867 से अब तक जो प्रमुख भूस्खलन हुए हैं वह इन्हीं पहाड़ियों पर हुए हैं।
जीएसआइ के निदेशक डॉ.वीके शर्मा ने नैनीताल में भूस्खलन के खतरों को देखते हुए लैंड स्लाइड हैजार्ड जोनेशन मानचित्र तैयार किया है। मानचित्र में शहर को चार परिक्षेत्रों में बांटकर भूस्खलन आपदा के प्रति संवेदनशील हिस्सों को चिह्नित किया गया है।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 09:26 AM
डीएमआरसी चलाएगी एयरपोर्ट मेट्रो

एयरपोर्ट मेट्रो लाइन का मामला सुलझाने के लिए हुई दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (डीएमआरसी) की बोर्ड बैठक के बाद यह लगभग तय हो गया है कि इसका ऑपरेशन दिल्ली मेट्रो ही संभालेगी। हालांकि बोर्ड ने आखिरी कोशिश के रूप में इस लाइन ऑपरेट करने वाली कंपनी दिल्ली एयरपोर्ट मेट्रो एक्सप्रेस प्रा. लि. (डीएएमईपीएल) का नोटिस खारिज करते हुए कहा है कि वह एग्रीमेंट के मुताबिक इस लाइन को चलाना जारी रखे। लेकिन बोर्ड ने यह भी कहा है कि अगर कंपनी ऐसा नहीं करती, तो दिल्ली मेट्रो जनहित में इस लाइन को टेकओवर करने के लिए कदम उठाए। डीएएमईपीएल ने इस बारे में कोई ऑफिशल बयान जारी नहीं किया।

गौरतलब है कि डीएएमईपीएल ने 13 जून को दिल्ली मेट्रो को नोटिस देकर कहा था कि वह मानती है कि दिल्ली मेट्रो और उसके बीच का एग्रीमेंट खत्म हो चुका है। इसके बाद ऑपरेटर कंपनी के ऑफिसरों ने मौखिक तौर पर मेट्रो को जानकारी दी कि वे 30 जून से इस लाइन को बंद कर रहे हैं। इस नोटिस को मानने से इनकार करना डीएमआरसी का कानूनी दांव माना जा रहा है, ताकि जब मामला आर्बिट्रेशन में पहुंचे तो वह इस एग्रीमेंट को आखिरी मिनट तक बचाने की कोशिश और यात्रियों के हित में इसे टेकओवर करने की दलील दे सके।

बोर्ड के फैसले के बाद दिल्ली मेट्रो को अब 30 जून तक इंतजार करना होगा। अगर ऑपरेट करने वाली कंपनी पीछे हटी, तो इससे न सिर्फ डीएमआरसी बल्कि सरकार के पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) कॉन्सेप्ट को भी जोरदार झटका लगेगा। इस स्थिति में इस लाइन को कुछ समय के लिए बंद भी करना पड़ सकता है। क्योंकि डीएमआरसी को जिम्मेदारियां संभालने में एक-दो दिन का वक्त लगेगा।

हालांकि दिल्ली मेट्रो के सूत्रों का कहना है कि अगले दो दिन में तैयारी पूरी कर ली जाएगी, जिससे चंद घंटों में टेकओवर किया जा सके। यह भी तय नहीं है कि डीएमआरसी इस लाइन को स्थायी तौर पर संभालेगी या किसी दूसरी कंपनी का इंतजार किया जाएगा, क्योंकि बोर्ड बैठक के एजेंडे में कहा गया है कि जब तक वैकल्पिक कंपनी नहीं आती, तब तक दिल्ली मेट्रो ही इसे ऑपरेट और मेंटेन करे।

कम होंगे किराये?
इस लाइन पर करीब 9 हजार पैसेंजर चलते हैं। दिल्ली मेट्रो के सामने यह संख्या बढ़ाने की चुनौती होगी। इसके लिए किराया कम करना हल हो सकता है। शहरी विकास मंत्रालय ने भी डीएएमईपीएल को पत्र लिखकर हाल ही में बढ़ाए गए किराए कम करने को कहा था। जाहिर है, यह लाइन डीएमआरसी के मातहत आने पर मंत्रालय किराये कम कराना चाहेगा।

rajnish manga
29-06-2013, 02:39 PM
पाठकों को अच्छी जानकारी दे रहा है आपका यह सूत्र. आपसे अनुरोध है कि हर समाचार को उचित शीर्षक के साथ प्रस्तुत किया जाये और जहां शीर्षक दिये भी गये हैं, वहां फॉण्ट साइज़ टेक्स्ट जितना ही रखा गया है. कृपया शीर्षक पर्याप्त साइज़ का और बोल्ड दीजिये. इससे सभी पाठकों को लाभ पहुंचेगा.

VARSHNEY.009
02-07-2013, 09:32 AM
उत्तराखंड: फिर तेज बारिश का खतरा, बदरीनाथ में अभी भी 150 फंसे



देहरादून। उत्तराखंड में आई प्राकृतिक आपदा (http://www.jagran.com/topics/flood) को 16 दिन बीत चुके हैं। लेकिन अब भी ये तस्वीर साफ नहीं हो पाई है कि आखिर इस त्रासदी में कितने चिराग बुझ गए। दर्द के उस मंजर को लोग अभी भूल भी नहीं पाए थे कि मौसम विभाग की ओर से फिर से चेतावनी आ गई है।
पढ़ें: आपदा पर सियासी जंग (http://www.jagran.com/news/national-uttarakhand-tragedy-bjp-congress-in-war-of-words-10526648.html)
उम्मीद है इस बार राज्य सरकार पिछली बार की तरह इस चेतावनी को अनसुना नहीं करेगी। मौसम विभाग ने चेताया है कि 4-7 जुलाई के बीच उत्तराखंड में भारी बारिश हो सकती है।
पढ़ें: तो उत्तराखंड नहीं लेगा गुजराती संस्था से मदद (http://www.jagran.com/news/national-uttarakhand-government-refused-to-take-service-of-gujarati-institution-10527927.html)
दिल्ली के मौसम विभाग ने बताया कि इस बारिश की मात्रा 70-130 मिलीमीटर तक रह सकती है, जो 16-17 जून को उत्तराखंड में आई बाढ़ की तुलना में कम होगी। विभाग की मानें तो 5 और 6 जुलाई को अधिक बारिश होने की संभावनाएं हैं।
दूसरी तरफ, आपदा प्रभावित क्षेत्रों में राहत कार्य तेज करने में प्रशासन को पसीने छूटने लगे हैं। टूटी सड़कें और ध्वस्त संपर्क मार्ग इस राह में बड़ी अड़चन साबित हो रहे हैं। हालांकि हेलीकाप्टर की मदद से गावों में राहत सामाग्री पहुंचाई जा रही है, लेकिन यह गिने-चुने इलाकों तक ही सीमित है। दूरस्थ क्षेत्र के गांवों के लिए हालात विकट होते जा रहे हैं। बदरीनाथ में बचाव अभियान जारी रहा। शासन और प्रशासन यात्रियों की संख्या पर बना भ्रम दूर नहीं कर पा रहे हैं। रविवार को यात्रियों की संख्या मात्र तीन सौ बता रहे प्रशासन के अनुसार सोमवार को बदरीनाथ से कुल 1041 यात्री निकाले गए। प्रशासन की मानें तो अभी बदरीनाथ से लगभग 150 लोगों को निकाला जाना बाकी है।
गौरतलब है कि 16-17 जून को उत्तराखंड में आई आपदा में हजारों लोगों की जान चली गई थी। कई गांव और घर तबाह हो गए थे। प्रशासन से मिले आंकड़ों के मुताबिक अब भी कई हजार लोग लापता हैं। इसलिए ये कहना मुश्किल हो रहा है कि आखिर इस त्रासदी में कितने मारे गए हैं।

VARSHNEY.009
02-07-2013, 09:32 AM
उत्तराखंड का गुजराती संस्था की सेवा लेने से इन्कार

ऋषिकेश [देवेंद्र सती/हरीश तिवारी]। केदार घाटी में शवों को तलाशने के लिए राज्य सरकार ने पहले तो सूरत, गुजरात की एक संस्था को बुलावा भेज दिया और जब वह संस्था लाव-लश्कर के साथ आ गई तो सरकार बुलावे से ही मुकर रही है। बगैर कोई शुल्क लिए सेवा के लिए देहरादून पहुंची 14 सदस्यीय इस टीम के पास कठिन परिस्थितियों में काम करने का खासा अनुभव है। टीम तीन दिन से सरकारी गलियारों की खाक छान रही है, लेकिन सरकार है कि उसे पास ही नहीं फटकने दे रही। यह तब है जब केदार घाटी में शवों को खोजना और उनका दाह संस्कार करना मुश्किल हो रहा है। यह संस्था मलबे में शव ढूंढ़ने के साथ ही उनका धार्मिक रीति रिवाज से अंतिम संस्कार भी करती है। संस्था में अलग-अलग धर्मो के सदस्य शामिल हैं।
उत्तराखंड में तबाही की खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें (http://www.jagran.com/topics/flood)
राज्य सरकार अब सूरत की संस्था को बुलावा न भेजने की बात भले कर रही हो, लेकिन खुद उसी ने टीम के खाने-ठहरने की व्यवस्था की हुई है। सरकार के रवैये से टीम आहत है, लेकिन अपनी उपेक्षा-अनदेखी पर खुल कर बोलने को तैयार नहीं। सियासी गलियारों में इसके पीछे गुजरात फैक्टर को देखा जा रहा है। केदार घाटी में तबाही का पता चलने पर सूरत की एकता ट्रस्ट ने 25 जून को मुख्यमंत्री को भेजे मेल के जरिये आपदा प्रभावित क्षेत्रों में मलबे में दबे शवों को तलाशने और उनका अंतिम संस्कार करने की इच्छा जताई। संस्था ने बताया कि उसके पास इस तरह के काम का अनुभव है। भुज में आए भूकंप और चेन्नई में सुनामी में मारे गए लोगों के शव ढूंढने में टीम के लोगों ने मदद की थी।
पढ़ें: आपदा पर कांग्रेस-भाजपा के बीच छिड़ी साइबर जंग (http://www.jagran.com/news/national-uttarakhand-tragedy-bjp-congress-in-war-of-words-10526648.html)
संस्था के प्रस्ताव पर गृह विभाग के प्रमुख सचिव ओम प्रकाश के कार्यालय से 26 जून को इस संबंध में मेल किया गया कि संस्था की सेवा लिए जाने की स्थिति में उसके सदस्यों को हवाई यात्रा और मानव संसाधन उपलब्ध कराया जाएगा। संस्था ने इस पर हामी भरी तो प्रमुख सचिव गृह के कार्यालय से 27 जून को एक और मेल किया गया कि टीम सदस्यों को देहरादून स्थित जौलीग्रांट हवाई अड्डे से आपदा प्रभावित क्षेत्र तक हवाई मार्ग से ले जाने के साथ वहां प्रवास के दौरान जरूरी सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी। विषम क्षेत्र का हवाला देकर संस्था को टीम सदस्यों के स्वास्थ्य पहलुओं पर भी गौर करने का सुझाव दिया गया।
पढ़ें: विघटनकारी हैं मोदी, फिर धूल चाटेगी भाजपा (http://www.jagran.com/news/national-gujarat-model-is-an-exaggeration-chidambaram-10525675.html)
संस्था के चेयरमैन अब्दुल रहमान बताते हैं कि उनकी टीम के सदस्य 29 जून को हवाई मार्ग से देहरादून पहुंचे। उन्होंने प्रमुख सचिव गृह को जौलीग्रांट पहुंचने की जानकारी दी तो उनसे वापस लौटने का आग्रह किया गया। रहमान के अनुसार शासन ने वापसी के लिए हेलीकॉप्टर का इंतजाम करने के साथ ही यहां आने पर हुआ खर्च लौटाने का ऑफर भी दे डाला। रहमान बताते हैं कि चूंकि वह पैसे के लिए नहीं, बल्कि सेवा भाव से अपने खर्चे पर यहां आए हैं, लिहाजा उन्होंने प्रमुख सचिव से सेवा का मौका देने की गुजारिश की। इस पर कुछ पुलिस कर्मी टीम के पाए आए और उसें ऋषिकेश में माता मंदिर धर्मशाला में ठहरा गए। 29 जून से टीम केदारघाटी में रवानगी के आदेश का इंतजार कर रही है।
पढ़ें: उत्तराखंड में नदी किनारे भवन निर्माण पर लगी रोक (http://www.jagran.com/news/national-uttarakhand-ban-on-construction-in-bank-of-river-10526336.html)
टीम में शामिल डॉ. इमरान मुल्ला दो दिन से सीएम व अधिकारियों से मिलने के लिए सचिवालय के गलियारों धक्के खा रहे हैं, लेकिन मुलाकात नहीं हो पा रही है। एक स्थानीय एनजीओ के माध्यम से भी संस्था ने सरकार तक अपनी बात पहुंचाने की कोशिश की, पर इंतजार खत्म नहीं हुआ। टीम लीडर अब्दुल का कहना है कि उनकी समझ में नहीं आ रहा कि बुलाने के बाद सरकार उन्हें केदारघाटी क्यों नहीं भेज रही?

VARSHNEY.009
02-07-2013, 09:35 AM
उत्तराखंड की तबाही राष्ट्रीय आपदा क्यों नहीं?

केंद्र सरकार की ओर से कुदरत के कहर को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने का कोई प्रावधान नहीं है।

यही वजह है कि सरकार ने उत्तराखंड की तबाही को राष्ट्रीय आपदा घोषित नहीं कर उसे गंभीर व भीषण संकट यानी कलैमिटी ऑफ सीरियस नेचर (सीएसएन) माना है।

सरकार के मुताबिक उत्तराखंड की तबाही को सीएसएन घोषित करने से केंद्र और राज्य के साथ मिलकर तत्काल और दूरगामी योजनाओं पर काम करने के कई तकनीकी रास्ते खुल जाते हैं। साथ ही इस त्रासदी से उबरने में सांसद निधि के फंड का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

सरकार ने उत्तराखंड की प्राकृतिक आपदा को कलैमिटी ऑफ सीरियस नेचर करार देने की जानकारी संसद के दोनों सदनों के सचिवालयों को भी भेज दी है, ताकि सांसद अपनी सांसद निधि से भी मदद कर सकें।

सांसद निधि के नियमों के मुताबिक सरकार की इस घोषणा से देश भर के सांसद अपने इलाके के लिए खर्च किए जाने वाले 50 लाख के फंड को उत्तराखंड के लिए दे सकते हैं।

सरकार को उम्मीद है कि इससे प्रधानमंत्री की ओर से 1000 करोड़ रुपये के राहत पैकेज के अलावा सांसदों की ओर से भारी रकम सहायता के तौर पर मिलेगी।



गृहमंत्रालय के आपदा प्रबंधन के उच्च अधिकारी के मुताबिक इस तबाही को तकनीकी तौर पर राष्ट्रीय आपदा नहीं कहा जा सकता क्योंकि सरकार के शब्दकोश में कुदरत के कहर के लिए राष्ट्रीय आपदा जैसा शब्द है ही नहीं।

अधिकारी के मुताबिक संघीय ढांचे में राहत व बचाव का असल दायित्व तो राज्य का है लेकिन उत्तराखंड जैसी आपात स्थिति में केंद्र के बिना यह संभव नहीं। यही वजह है कि इसे सीएसएन घोषित किया गया ताकि तकनीकी तौर पर केंद्र के मदद से रास्ते खुल जाएं।



हालांकि खाद्य व नागरिक आपूर्ति और स्वास्थ्य जैसे मंत्रालयों के लिए इसे सीएसएन जैसे प्रावधानों की भी जरूरत नहीं। ये मंत्रालय अपने बूते ही राहत और बचाव के लिए पहल कर सकते हैं।

अधिकारी के मुताबिक गृहमंत्रालय और वित्त मंत्रालय ने सुनामी और लेह के बादल फटने जैसी तबाही के बाद उठाए गए कदमों की तर्ज पर उत्तराखंड में भी अंतर मंत्रालयी समूह भेजने की हरी झंडी दे दी है।

वहां की स्थिति में थोड़ी सुधार आते ही यह समूह प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करेगी। यह समूह उत्तराखंड को इस तबाही से उबारने के लिए दूरगामी उपायों पर अपनी रिपोर्ट देगी। जहां तक तत्काल उपायों का सवाल है उसके लिए केंद्र हर उपाय कर रहा है।

VARSHNEY.009
02-07-2013, 09:36 AM
आकाश-4 के यह फीचर्स आपको दीवाना कर देंगे

कम कीमत वाले आकाश टैबलेट के चौथे संस्करण की नई विशेषताओं से पर्दा उठ गया है। नए फीचर्स में इसमें कॉलिंग सुविधा के साथ ही हाई स्पीड 4जी सेवा भी उपलब्ध कराई जाएगी।

सरकार द्वारा जारी विनिर्देश में कहा गया है कि इसमें बाहरी डोंगल की मदद से कॉलिंग सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी।

साथ ही 2जी या 3जी या 4जी डोंगल की मदद से डाटा काम करेगा।

महत्वाकांक्षी आकाश प्रोजेक्ट दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल के मानव संसाधन विकास मंत्री रहने के वक्त शुरू किया गया था।

आकाश टैबलेट का पहला संस्करण 5 अक्तूबर 2011 को लांच किया गया था। इसके बाद से आकाश टैबलेट को अपग्रेड किया जाता रहा है।