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VARSHNEY.009
27-06-2013, 11:46 AM
इमली के औषधीय गुण
(१) वीर्य – पुष्टिकर योग : इमली के बीज दूध में कुछ देर पकाकर और उसका छिलका उतारकर सफ़ेद गिरी को बारीक पीस ले और घी में भून लें, इसके बाद सामान मात्रा में मिश्री मिलाकर रख लें | इसे प्रातः एवं शाम को ५-५ ग्राम दूध के साथ सेवन करने से वीर्य पुष्ट हो जाता है | बल और स्तम्भन शक्ति बढ़ती है तथा स्व-प्रमेह नष्ट हो जाता है |
(२) शराब एवं भांग का नशा उतारने में : नशा समाप्त करने के लिए पकी इमली का गूदा जल में भिगोकर, मथकर, और छानकर उसमें थोड़ा गुड़ मिलाकर पिलाना चाहिए |
(३) इमली के गूदे का पानी पीने से वमन, पीलिया, प्लेग, गर्मी के ज्वर में भी लाभ होता है |
(४) ह्रदय की दाहकता या जलन को शान्त करने के लिये पकी हुई इमली के रस (गूदे मिले जल) में मिश्री मिलाकर पिलानी चाहियें |
(५) लू-लगना : पकी हुई इमली के गूदे को हाथ और पैरों के तलओं पर मलने से लू का प्रभाव समाप्त हो जाता है | यदि इस गूदे का गाढ़ा धोल बालों से रहित सर पर लगा दें तो लू के प्रभाव से उत्पन्न बेहोसी दूर हो जाती है |
(६) चोट – मोच लगना : इमली की ताजा पत्तियाँ उबालकर, मोच या टूटे अंग को उसी उबले पानी में सेंके या धीरे – धीरे उस स्थान को उँगलियों से हिलाएं ताकि एक जगह जमा हुआ रक्त फ़ैल जाए |
(७) गले की सूजन : इमली १० ग्राम को १ किलो जल में अध्औटा कर (आधा जलाकर) छाने और उसमें थोड़ा सा गुलाबजल मिलाकर रोगी को गरारे या कुल्ला करायें तो गले की सूजन में आराम मिलता है |
(८) खांसी : टी.बी. या क्षय की खांसी हो (जब कफ़ थोड़ा रक्त आता हो) तब इमली के बीजों को तवे पर सेंक, ऊपर से छिलके निकाल कर कपड़े से छानकर चूर्ण रख ले| इसे ३ ग्राम तक घृत या मधु के साथ दिन में ३-४ बार चाटने से शीघ्र ही खांसी का वेग कम होने लगता है | कफ़ सरलता से निकालने लगता है और रक्तश्राव व् पीला कफ़ गिरना भी समाप्त हो जाता है |
(९) ह्रदय में जलन : पकी इमली का रस मिश्री के साथ पिलाने से ह्रदय में जलन कम हो जाती है |
(१०) नेत्रों में गुहेरी होना : इमली के बीजों की गिरी पत्थर पर घिसें और इसे गुहेरी पर लगाने से तत्काल ठण्डक पहुँचती है |
(११) चर्मरोग : लगभग ३० ग्राम इमली (गूदे सहित) को १ गिलाश पानी में मथकर पीयें तो इससे घाव, फोड़े-फुंसी में लाभ होगा |
(१२) उल्टी होने पर पकी इमली को पाने में भिगोयें और इस इमली के रस को पिलाने से उल्टी आनी बंद हो जाती है |
(१३) भांग का नशा उतारने में : नशा उतारने के लिये शीतल जल में इमली को भिगोकर उसका रस निकालकर रोगी को पिलाने से उसका नशा उतर जाएगा |
(१४) खूनी बवासीर : इमली के पत्तों का रस निकालकर रोगी को सेवन कराने से रक्तार्श में लाभ होता है |
(१५) शीघ्रपतन : लगभग ५०० ग्राम इमली ४ दिन के लिए जल में भिगों दे | उसके बाद इमली के छिलके उतारकर छाया में सुखाकर पीस ले | फिर ५०० ग्राम के लगभग मिश्री मिलाकर एक चौथाई चाय की चम्मच चूर्ण (मिश्री और इमली मिला हुआ) दूध के साथ प्रतिदिन दो बार लगभग ५० दिनों तक लेने से लाभ होगा |
(१६) लगभग ५० ग्राम इमली, लगभग ५०० ग्राम पानी में दो घन्टे के लिए भिगोकर रख दें उसके बाद उसको मथकर मसल लें | इसे छानकर पी जाने से लू लगना, जी मिचलाना, बेचैनी, दस्त, शरीर में जलन आदि में लाभ होता है तथा शराब व् भांग का नशा उतर जाता है | हँ का जायेका ठीक होता है |
(१७) बहुमूत्र या महिलाओं का सोमरोग : इमली का गूदा ५ ग्राम रात को थोड़े जल में भिगो दे, दूसरे दिन प्रातः उसके छिलके निकालकर दूध के साथ पीसकर और छानकर रोगी को पिला दे | इससे स्त्री और पुरुष दोनों को लाभ होता है | मूत्र- धारण की शक्ति क्षीण हो गयी हो या मूत्र अधिक बनता हो या मूत्रविकार के कारण शरीर क्षीण होकर हड्डियाँ निकल आयी हो तो इसके प्रयोग से लाभ होगा |
(१८) अण्डकोशों में जल भरना : लगभग ३० ग्राम इमली की ताजा पत्तियाँ को गौमूत्र में औटाये | एकबार मूत्र जल जाने पर पुनः गौमूत्र डालकर पकायें | इसके बाद गरम – गरम पत्तियों को निकालकर किसी अन्डी या बड़े पत्ते पर रखकर सुहाता- सुहाता अंडकोष पर बाँध कपड़े की पट्टी और ऊपर से लगोंट कास दे | सारा पानी निकल जायेगा और अंडकोष पूर्ववत मुलायम हो जायेगें |
(१९) पीलिया या पांडु रोग : इमली के वृक्ष की जली हुई छाल की भष्म १० ग्राम बकरी के दूध के साथ प्रतिदिन सेवन करने से पान्डु रोग ठीक हो जाता है |
(२०) आग से जल जाने पर : इमली के वृक्ष की जली हुई छाल की भष्म गाय के घी में मिलाकर लगाने से, जलने से पड़े छाले व् घाव ठीक हो जाते है |
(२१) पित्तज ज्वर : इमली २० ग्राम १०० ग्राम पाने में रात भर के लिए भिगो दे | उसके निथरे हुए जल को छानकर उसमे थोड़ा बूरा मिला दे | ४-५ ग्राम इसबगोल की फंकी लेकर ऊपर से इस जल को पीने से लाभ होता है |
(२२) सर्प , बिच्छू आदि का विष : इमली के बीजों को पत्थर पर थोड़े जल के साथ घिसकर रख ले | दंशित स्थान पर चाकू आदि से छत करके १ या २ बीज चिपका दे | वे चिपककर विष चूसने लगेंगे और जब गिर पड़े तो दूसरा बीज चिपका दें | विष रहने तक बीज बदलते रहे |

VARSHNEY.009
27-06-2013, 11:49 AM
अम्बला के औषधीय गुण


पेशाब में जलन होने पर : हरे आंवले का रस 50 ग्राम , शहद 20 ग्राम दोनों को मिलाकर एक मात्रा तैयार करे | दिन में दो बार लेने से मूत्र पर्याप्त होगा और मूत्र मार्ग की जलन समाप्त हो जायेगी |
कृमि पड़ना – खान–पान की गडबडी के कारण यदि पेट में कीड़े पड़ गए हो तो थोड़ा–थोड़ा आंवले का रस एक सप्ताह तक पीने से वे समाप्त हो जाते है |
गर्मी के विकार – ग्रीष्म ऋतु में गर्मी की अधिकता के कारण कमजोरी प्रतीत हो , चक्कर आये, मूत्र का रंग पीला हो जाए तो प्रतिदिन सुबह के समय एक नाग आंवले का मुरब्बा खाकर ऊपर से शीतल जल पी ले गर्मी के विकार दूर हो जायेगें |
कट जाने पर - किसी कारण शरीर का कोई अंग कट जाए और उससे खून निकालने लगे तो आंवले का ताजा रस लगा देने से रक्तश्राव बन्द हो जाता है कटी हुई जगह जल्द ठीक हो जायेगी |
विष–अफीम का असर खत्म करना – आंवले की ताजा पत्तियाँ 100 ग्राम को 500 ग्राम पानी में उबालकर और छानकर पिलाने से शरीर में अधिक दिनों से रमा हुआ अफीम का विष भी शांत हो जाता है |
मुख , नाक, गुदा से या खून की गर्मी के कारण रक्तश्राव – ऐसा होने पर ताजा आंवले के रस में मधु (शहद) मिलाकर रोगी व्यक्ति को पिलाना चाहिये |
नकसीर – ताजा आंवले के सिथरे हुए रस की 3-4 बूदे रोगी के नथुनों (नासाछिद्रों) में डालें तथा इसी प्रकार प्रति 15-20 मिनट बाद नस्य देकर ऊपर को चढ़ाने को कहें, नकशीर बन्द हो जायेगी | साथ ही आंवले को भी भूनकर छाछ (मठ्ठा) या काँजी में पीसकर मस्तिष्क पर लेप करा देने से शीघ्र लाभ होगा |
बहुमूत्र – आंवले के पत्ते का रस २०० ग्राम में दारूहल्दी घिसकर और मिलाकर पिलाने से बहुमूत्र व्याधि से लाभ हो जाता हैं |
मूर्च्छा – पित्त की विकृति कारण हुई मूर्च्छा में आंवले के रस में आधी मात्रा गाय का घी मिलाकर, थोड़ा- थोड़ा दिन में कई बार देकर ऊपर से गाय का दूध पिला देना चाहिये | कुछ दिनों तक इसके इस्तेमाल से मूर्छा रोग हमेशा के लिए खत्म हो जाता है |
पीलिया , शरीर में खून की कमी – जीर्ण ज्वरादि से उत्पन्न पाण्डु-रोग को दूर करने के लिए ताजे आंवले के रस में गन्ने का ताजा रस और थोड़ा सा शहद मिलाकर पीना चाहिए, इससे लाभ होगा |
मिरगी या अपस्मार – ताजे आंवले के 4 किलो रस में मुलेठी 50 ग्राम तथा गोघृत 250 ग्राम मिला मन्दाग्नि पर पकाकर घृत सिद्ध कर ले | इस घृत के सेवन से मिरगी में लाभ हो जाता है |
अम्लपित्त , रक्तपित्त, ह्रदय की धड्कन, वातगुल्म, दाह – ताजे आवले का कपड़े से छना हुआ रस 25 ग्राम में सममात्रा में मधु मिलाकर (यह एक मात्रा है ) प्रातः एवं सायं पिलाने से सभी व्याधियों में आशातीत लाभ होता है |

आँवले के रस या चूर्ण का कोई भी प्रयोग मिट्टी , पत्थर या कांच के पात्र में रखकर ही सेवन करना चाहिये किसे अन्य धातु के पात्र में नहीं |


नेत्रों की लाली – (1) ताजे आँवले के रस को कलईदार पात्र में भरकर पकावें | गाढ़ा होने पर लंबी – लंबी गोलियां बनाकर रखा ले | इसे पानी में घिसकर सलाई से लगाते रहने से नेत्रों की लालिमा दूर हो जाती है | (2) आँख आना या नेत्राभिश्यन्द रोग की प्रारम्भिक अवस्था में भली प्रकार पके ताजा आँवले के रस की बूँद आँखों में टपकाते रहने से नेत्रों की जलन, दाहकता, पीड़ा व लालिमा दूर हो जाती है |
दाँत निकलना – बच्चों के दाँत निकलते समय आँवले के रस को मसूढ़ों पर मलने से आराम से और बिना कष्ट दाँत निकल आते है |
हिचकी , वमन , तृषा उबकाई – (1) आँवले के रस में शक्कर या मधु मिलाकर देने से पित्तजन्य वमन, हिचकी आदि बन्द हो जाती है | (2) किसी भी कारण से पित्त का प्रकोप हो और नेत्रों में धुधला सा छाने लगे तो आँवले के रस 20 ग्राम में सामान मात्रा में मिश्री मिलाकर पिलानी चाहिये |
केश श्वेत हो जाने पर – ताजे आँवले उबाल, मथ, रस छानकर बचे गूदे में चतुर्थांश घी मिलाकर भून ले | भली प्रकार भून जाने पर उसमे सामान मात्रा में कुटी हुई मिश्री मिलाकर किसे कलईदार पात्र में या अम्रतावान में भर कर रखें | 20-20 ग्राम मात्रा सुबह-शाम मधु के साथ सेवन करके ऊपर से गाय का दूध पिए | शरीर पुष्ठ होकर असमय पके सफ़ेद बाल काले और चिकने हो जायेगें | यह बाजीकरण का बहुत अच्छा रसायन है |

VARSHNEY.009
27-06-2013, 11:50 AM
नशा मुक्ति
शराब पीना और विशेषरूप से धूम्रपान के साथ शराब पीना बहुत ही खतरनाक है | इससे अनेकों रोग जैसे कैंसर (मुह का ), महिलाओं में स्तन कैंसर, आदि रोग होते है | ऐसे बुरे व्यसन (आदत) एक मानसिक बीमारी है और इसे को छुडाने के लिए मानसिक बीमारी जैसे इलाज की आवश्यकता होती है |
वात होने पर लोग चिंता और घबराहट को दबाने के लिए धूम्रपान का सहारा लेते है | पित्त बढने से शरीर के अन्दर गर्मी लेने की इच्छा होती है और धूम्रपान की इच्छा होती है | कफ बढने से शरीर के अन्दर डाली गयी तम्बाकू की शक्ति बढती है |
लेकिन आप इसका इलाज आयुर्वेद के माध्यम से कर सकते है और इसे बनाने के लिए १८-२० जड़ी – बूटियों का प्रयोग किया जाता है | सभी औषधियों को निश्चित मात्रा में मिलाकर यह दवा तैयार की जाती है | इस दवा का कोई बुरा प्रभाव नहीं है यदि इसे शरीर के वजन और स्वास्थ्य अनुसार दवा की मात्रा तयकर लिया जाता है | इस दवा का प्रयोग किसी का शराब का नशा छुड़ाने, धूम्रपान का नशा छुड़ाने, और अन्य का नशा छुड़ाने (जैसे गुटका, तम्बाकू) में प्रयोग किया जा सकता है |
जड़ी – बूटियों का विवरण और मात्रा निम्न है –


गुलबनफशा - 2 ग्राम
निशोध - 4 ग्राम
विदारीकन्द (कुटज) – 15 ग्राम
गिलोय – 4 ग्राम
नागेसर - 3 ग्राम
कुटकी - 2 ग्राम
कालमेघ - 1 ग्राम
भ्रिगराज – 6 ग्राम
कसनी - 6 ग्राम
ब्राम्ही – 6 ग्राम
भुईआमला - 4 ग्राम
आमला - 11 ग्राम
काली हरर - 11 ग्राम
लौंग - 1 ग्राम
अर्जुन - 6 ग्राम
नीम – 7 ग्राम
पुनर्नवा - 11 ग्राम
मेश्श्रीन्गी

कैसे प्रयोग करे – उपर दी गयी सभी जड़ी – बूटियों को कूट और पीसकर पाऊडर बना लें । एक चम्मच दवा पाऊडर को एक दिन में दो बार खाना खाने के बाद पानी के साथ ले | इस दवा को खाने में मिलाकर भी दिया जा सकता है | जैसे – जैसे नशे की लत कम होने लगे इस दवा की मात्रा धीरे – धीरे कम कर दे | इस दवा का असर फ़ौरन पता चलने लगता है और लगभग दो माह में पूरी तरह से नशे की लत खत्म हो जाती है लेकिन दवा को कम मात्रा में और २-३ दिन के अंतर के लगभग ६ माह दे जिससे नशे की लत जड़ से खत्म हो जाए |

VARSHNEY.009
27-06-2013, 11:51 AM
राई के औषधीय गुण

by Ghar Vaidya on July 27, 2012

राई के कई औषधीय गुण है और इसी कारण से इसे कई रोगों को ठीक करने में प्रयोग किया जाता है । कुछ रोगों पर इसका प्रभाव नीचे दिया जा रहा है -


हृदय की शिथिलता- घबराहत, व्याकुल हृदय में कम्पन अथवा बेदना की स्थिति में हाथ व पैरों पर राई को मलें। ऐसा करने से रक्त परिभ्रमण की गति तीव्र हो जायेगी हृदय की गति मे उत्तेजना आ जायेगी और मानसिक उत्साह भी बढ़ेगा।
हिचकी आना- 10 ग्राम राई पाव भर जल में उबालें फिर उसे छान ले एवं उसे गुनगुना रहने पर जल को पिलायें।
बवासीर अर्श- अर्श रोग में कफ प्रधान मस्से हों अर्थात खुजली चलती हो देखने में मोटे हो और स्पर्श करने पर दुख न होकर अच्छा प्रतीत होता हो तो ऐसे मस्सो पर राई का तेल लगाते रहने से मस्से मुरझाने ल्रगते है।
गंजापन- राई के हिम या फाट से सिर धोते रहने से फिर से बाल उगने आरम्भ हो जाते है।
मासिक धर्म विकार- मासिक स्त्राव कम होने की स्थिति में टब में भरे गुनगुने गरम जल में पिसी राई मिलाकर रोगिणी को एक घन्टे कमर तक डुबोकर उस टब में बैठाकर हिप बाथ कराये। ऐसा करने से आवश्यक परिमाण में स्त्राव बिना कष्ट के हो जायेगा।
गर्भाशय वेदना- किसी कारण से कष्ट शूल या दर्द प्रतीत हो रहा हो तो कमर या नाभि के निचें राई की पुल्टिस का प्रयोग बार-बार करना चाहिए।
सफेद कोढ़ (श्वेत कुष्ठ)- पिसा हुआ राई का आटा 8 गुना गाय के पुराने घी में मिलाकर चकत्ते के उपर कुछ दिनो तक लेप करने से उस स्थान का रक्त तीव्रता से घूमने लगता है। जिससे वे चकत्ते मिटने लगते है। इसी प्रकार दाद पामा आदि पर भी लगाने से लाभ होता है।
कांच या कांटा लगना- राई को शहद में मिलाकर काच काटा या अन्य किसी धातु कण के लगे स्थान पर लेप करने से वह वह उपर की ओर आ जाता है। और आसानी से बाहर खीचा जा सकता है।
अंजनी- राई के चूर्ण में घी मिलाकर लगाने से नेत्र के पलको की फुंसी ठीक हो जाती है।
स्वर बंधता- हिस्टीरिया की बीमारी में बोलने की शक्ति नष्ट हो गयी हो तो कमर या नाभि के नीचे राई की पुल्टिस का प्रयोग बार बार करना चाहिए।
गर्भ में मरे हुए शिशु को बाहर निकालने के लिए- ऐसी गर्भवती महिला को 3-4 ग्राम राई में थोंड़ी सी पिसी हुई हींग मिलाकर शराब या काजी में मिलाकर पिला देने से शिशु बाहर निकल आयेगा।
अफरा- राई 2 या 3 ग्राम शक्कर के साथ खिलाकर उपर से चूना मिला पानी पिलाकर और साथ ही उदर पर राई का तेल लगा देने से शीघ्र लाभ हो जाता है।
विष पान- किसी भी प्रकार से शरीर में विष प्रवेश कर जाये और वमन कराकर विष का प्रभाव कम करना हो तो राई का बारीक पिसा हुआ चूर्ण पानी के साथ देना चाहिए।
गठिया- राई को पानी में पीसकर गठिया की सूजन पर लगा देने से सूजन समाप्त हो जाती हैं। और गठिया के दर्द में आराम मिलता है।
हैजा- रोगी व्यक्ति की अत्यधिक वमन दस्त या शिथिलता की स्थिति हो तो राई का लेप करना चाहिए। चाहे वे लक्षण हैजे के हो या वैसे ही हो।
अजीर्ण- लगभग 5 ग्राम राई पीस लें। फिर उसे जल में घोल लें। इसे पीने से लजीर्ण में लाभ होता है।
मिरगी- राई को पिसकर सूघने से मिरगी जन्य मूच्र्छा समाप्त हो जाती है।
जुकाम- राई में शुद्ध शहद मिलाकर सूघने व खाने से जुकाम समाप्त हो जाता है।
कफ ज्वर- जिहृवा पर सफेद मैल की परते जम जाने प्यास व भूख के मंद पड़कर ज्वर आने की स्थिति मे राई के 4-5 ग्राम आटे को शहद में सुबह लेते रहने से कफ के कारण उत्पन्न ज्वर समाप्त हो जाता है।
घाव में कीड़े पड़ना- यदि घाव मवाद के कारण सड़ गया हो तो उसमें कीड़े पड जाते है। ऐसी दशा में कीड़े निकालकर घी शहद मिली राई का चूर्ण घाव में भर दे। कीड़े मरकर घाव ठीक हो जायेगा।
दन्त शूल- राई को किंचित् गर्म जल में मिलाकर कुल्ले करने से आराम हो जाता है।
रसौली, अबुर्द या गांठ- किसी कारण रसौली आदि बढ़ने लगे तो कालीमिर्च व राई मिलाकर पीस लें। इस योग को घी में मिलाकर करने से उसका बढ़ना निश्चित रूप से ठीक हो जाता है।
विसूचिका- यदि रोग प्रारम्भ होकर अपनी पहेली ही अवस्था में से ही गुजर रहा हो तो राई मीठे के साथ सेवन करना लाभप्रद रहता है।
उदर शूल व वमन- राई का लेप करने से तुरन्त लाभ होता है।
उदर कृमि- पेट में कृमि अथवा अन्श्रदा कृमि पड़ जाने पर थोड़ा सा राई का आटा गोमूत्र के साथ लेने से कीड़े समाप्त हो जाते है। और भविष्य में उत्पन्न नही होते।

rajnish manga
27-06-2013, 12:05 PM
वार्षनेय जी द्वारा दी जा रही जानकारी बहुत काम की है और भरोसेमंद है.

VARSHNEY.009
27-06-2013, 12:13 PM
दादी माँ के घरेलु नुस्खों से
गौरा रंग और चमकदार त्वचा सभी की चाहत होती है। ज्यादा सांवले रंग के कारण कई बार शादी में भी समस्या होती है। अगर आप भी गौरी-गौरी त्वचा चाहते हैं। तो कुछ आसान आयुर्वेद नुस्खे ऐसे हैं जिनसे आपका सांवलापन पूरी तरह नहीं मगर काफी हद तक दूर हो सकता है। साथ ही इन नुस्खों से स्कीन तो हेल्दी होती ही है और मिलती है दिलकश खूबसूरती।


- रात को सोने से पहले गुनगुने पानी के साथ नियमित रूप से त्रिफला चूर्ण का सेवन करें।

- एक बाल्टी ठण्डे या गुनगुने पानी में दो नींबू का रस मिलाकर गर्मियों में कुछ महीने तक नहाने से त्वचा का रंग निखरने लगता है (इस विधि को करने से त्वचा से सम्बन्धी कई रोग ठीक हो जाते हैं)।

- आंवला का मुरब्बा रोज एक नग खाने से दो तीन महीने में ही रंग निखरने लगते है।

- गाजर का रस आधा गिलास खाली पेट सुबह शाम लेने से एक महीने में रंग निखरने लगता है। रोजाना सुबह शाम खाना खाने के बाद थोड़ी मात्रा में सांफ खाने से खून साफ होने लगता है और त्वचा की रंगत बदलने लगती है।

- प्रतिदिन खाने के बाद सौंफ का सेवन करे

VARSHNEY.009
27-06-2013, 12:15 PM
जब सताए मुंहासे
आज मुंहासे सिर्फ किशोरों की समस्या नहीं रह गई। बढ़ते प्रदूषण, तनाव, असंतुलित आहार, कम पानी पीने और नशे की आदत के चलते यह आजकल हर उम्र के लोगों की समस्या बन चुका है। इनसे निजात पाने के लिए बाजार में उपलब्ध किसी पिंपल क्रीम को आजमाने के बजाय यह उपाय अपना कर देखें।


मुंहासों पर चंदन का पेस्ट लगाने से यह बैठ जाते हैं। इसके लगातार इस्तेमाल से इनके निशान भी खत्म हो जाते हैं।
नीम के पानी की भाप लेने से मुंहासे धीरे-धीरे कम हो जाते हैं।
बेसन और मट्ठे का पेस्ट व जाय फल और दूध का पेस्ट चेहरे पर लगाने से भी मुंहासे कम होते हैं।
नींबू, टमाटर का रस या कच्चा पपीता लगाने से भी फायदा होता है।
अजवाइन पाउडर को दही में मिला कर चेहरे पर लगाएं। मुंहासों से छुटकारा मिलेगा।

VARSHNEY.009
27-06-2013, 12:15 PM
सफेद बालों के लिए नुस्खे
टेंशन, भाग दौड़ भरी जिंदगी, बालों की ठीक से देखभाल न हो पाने और प्रदूषण के कारण बालों का सफेद होना एक आम समस्या बन गया है। बाल डाई करना या कलर करना इस समस्या का एकमात्र विकल्प नहीं। कुछ घरेलू उपचार आजमा कर भी सफेद बालों को काला किया जा सकता है।


कुछ दिनों तक, नहाने से पहले रोजाना सिर में प्याज का पेस्ट लगाएं। बाल सफेद से काले होने लगेंगे।
नीबू के रस में आंवला पाउडर मिलाकर सिर पर लगाने से सफेद बाल काले हो जाते हैं।
तिल खाएं। इसका तेल भी बालों को काला करने में कारगर है।
आधा कप दही में चुटकी भर काली मिर्च और चम्मच भर नींबू रस मिलाकर बालों में लगाए। 15 मिनट बाद बाल धो लें। बाल सफेद से काले होने लगेंगे।
प्रतिदिन घी से सिर की मालिश करके भी बालों के सफेद होने की समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है।

VARSHNEY.009
27-06-2013, 12:16 PM
बाल झड़ने की समस्या


नीम का पेस्ट सिर में कुछ देर लगाए रखें। फिर बाल धो लें। बाल झड़ना बंद हो जाएगा।
चाय पत्ती के उबले पानी से बाल धोएं। बाल कम गिरेंगे।
बेसन मिला दूध या दही के घोल से बालों को धोएं। फायदा होगा।
दस मिनट का कच्चे पपीता का पेस्ट सिर में लगाएं। बाल नहीं झड़ेंगे और डेंड्रफ (रूसी) भी नहीं होगी।

VARSHNEY.009
27-06-2013, 12:17 PM
कफ और सर्दी जुकाम में
सर्दी जुकाम, कफ आए दिन की समस्या है। आप ये घरेलू उपाय आजमाकर इनसे बचे रह सकते हैं।


नाक बह रही हो तो काली मिर्च, अदरक, तुलसी को शहद में मिलाकर दिन में तीन बार लें। नाक बहना रुक जाएगा।
गले में खराश या सूखा कफ होने पर अदरक के पेस्ट में गुड़ और घी मिलाकर खाएं। आराम मिलेगा।
नहाते समय शरीर पर नमक रगड़ने से भी जुकाम या नाक बहना बंद हो जाता है।
तुलसी के साथ शहद हर दो घंटे में खाएं। कफ से छुटकारा मिलेगा।

VARSHNEY.009
27-06-2013, 12:18 PM
शरीर व सांस की दुर्गध कैसे रोकें


नहाने से पहले शरीर पर बेसन और दही का पेस्ट लगाएं। इससे त्वचा साफ हो जाती है और बंद रोम छिद्र भी खुल जाते हैं।
गाजर का जूस रोज पिएं। तन की दुर्गध दूर भगाने में यह कारगर है।
पान के पत्ते और आंवला को बराबर मात्रा में पीसे। नहाने के पहले इसका पेस्ट लगाएं। फायदा होगा।
सांस की बदबू दूर करने के लिए रोज तुलसी के पत्ते चबाएं।
इलाइची और लौंग चूसने से भी सांस की बदबू से निजात मिलता है।

VARSHNEY.009
27-06-2013, 12:25 PM
आजकल की भागदौड भरी और अनियमित जीवनशैली (http://www.onlymyhealth.com/%E0%A4%AC%E0%A4%A6%E0%A4%B2%E0%A4%A4%E0%A5%80-%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%A8%E0%A4%B6%E0%A 5%88%E0%A4%B2%E0%A5%80-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%B9%E0%A5%80-%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%A8-1285152061) के कारण पेट की समस्या आम हो चली है। आमतौर पर तली-भुनी और मसालेदार खाने का सेवन करने के कारण एसिडिटी की समस्या होती है। खाने का एक समय निर्धारित भी नहीं होता है, जो एसिडिटी का कारण बनता है। पेट में जब सामान्य से अधिक मात्रा में एसिड निकलता है तो उसे एसिडिटी कहते हैं। आइए हम आपको कुछ ऐसे घरेलू उपाय बताते हैं जिनको अपनाकर आप एसिडिटी से छुटकारा पा सकते हैं।
एसिडिटी के लिए घरेलू नुस्खे –


एसिडिटी होने पर (http://www.onlymyhealth.com/kabj-se-bachane-ke-gharelu-upchar-1341987084) मुलेठी का चूर्ण या काढ़ा बनाकर उसका सेवन करना चाहिए। इससे एसिडिटी में फायदा होता है।
नीम की छाल का चूर्ण या रात में भिगोकर रखी छाल का पानी छानकर पीना चाहिए। ऐसा करने से अम्लापित्त या एसिडिटी ठीक हो जाता है।
एसिडिटी होने पर त्रिफला चूर्ण का प्रयोग करने से फायदा होता है। त्रिफला को दूध के साथ पीने से एसिडिटी समाप्त होती है।
दूध में मुनक्का डालकर उबालना चाहिए। उसके बाद दूध को ठंडा करके पीने से फायदा होता है और एसिडिटी ठीक होती है।
एसिडिटी के मरीजों को एक गिलास गुनगुने पानी में चुटकी भर काली मिर्च का चूर्ण तथा आधा नींबू निचोड़कर नियमित रूप से सुबह पीना चाहिए। ऐसा करने से पेट साफ रहता है और एसिडिटी में फायदा होता है।
सौंफ, आंवला व गुलाब (http://www.onlymyhealth.com/aamla-ke-faayde-1346048319) के फूलों को बराबर हिस्से में लेकर चूर्ण बना लीजिए। इस चूर्ण को आधा-आधा चम्मच सुबह-शाम लेने से एसिडिटी में फायदा होता है।
एसिडिटी होने पर सलाद के रूप में मूली खाना चाहिए। मूली काटकर उसपर काला नमक तथा कालीमिर्च छिडककर खाने से फायदा होता है।
जायफल तथा सोंठ को मिलाकर चूर्ण बना लीजिए। इस चूर्ण को एक-एक चुटकी लेने से एसिडिटी समाप्त होती है।
कच्चे चावल के 8-10 दानों को पानी के साथ सुबह खाली पेट गटक लीजिए।



एसिडिटी होने पर कच्ची सौंफ चबानी चाहिए। सौंफ चबाने से एसिडिटी समाप्त हो जाती है।
अदरक और परवल को मिलाकर काढा बना लीजिए। इस काढे को सुबह-शाम पीने से एसिडिटी की समस्या समाप्त होती है।
सुबह-सुबह खाली पेट गुनगुना पानी पीने से एसिडिटी में फायदा होता है।
नारियल का पानी पीने से एसिडिटी की समस्या से छुटकारा मिलता है।
लौंग एसिडिटी के लिए बहुत फायदेमंद है। एसिडिटी होने पर लौंग चूसना चाहिए।
गुड़, केला, बादाम और नींबू खाने से एसिडिटी जल्दी ठीक हो जाती है।
पानी में पुदीने की कुछ पत्तियां डालकर उबाल लीजिए। हर रोज खाने के बाद इन इस पानी का सेवन कीजिए। एसिडिटी में फायदा होगा।


एसिडिटी की समस्या खान-पान के कारण ज्यादा होती है। इसलिए ज्यादा गरिष्ठ भोजन करने से परहेज करना चाहिए। एसिडिटी के समय रात को सोने से तीन घंटे पहले डिनर कर लेना चाहिए, जिससे खाना अच्छे से पचे। इन नुस्खों को अपनाने के बाद भी एसिडिटी अगर ठीक न हो रही हो तो चिकित्सक से संपर्क अवश्य कीजिए

bindujain
27-06-2013, 02:26 PM
बहुत बढ़िया जानकारी

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:34 PM
FOR HAIR FALL


1 Bada chamach chai patti lekar ubal lein, aur baad mein thanda karke chan le or balo ki jado mein malish kare or bal sukhne par dho le. Ise 10-15 din lagatar karne se balo ka tutna kam ho jayega.
10 gm aam ka ras or 100 gm amle ka juice le or dono ko mix karke baalo me lagane se baalo ke tutne ko kam kar sakte hai or isse baal shiny bhi banenge.
100 gm Nimbu ka ras or 200 gm nariyal ka tel le or mix karle ise balo ki jado me lagaye aur ungliyo se malish kare. Isse bal bhari hote hain or bal tutna bhi kam ho jata hai.
20-20 gm Amla or shikakai le aur raat ko ½ litre pani mein bheego de. Subah chan le or balo me ½ ghante tak laga rehne de. Baalo ko dhone ke baad nariyal tel lagaye isse balo ka tutna kam ho jata hai.

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:34 PM
GHUTNO KA DARD


Ghutne Ka Dard kam karne ke liye Kaneer ki patti ubalkar pish le aur meethe tel me milakar leph kare Isse ghutno ke dard chala jata hai
Agar Ghutno mein dard jyada ho to Kadave tel me ajwain aur lehsun ko jalakar us tel ki malish karne se har prakar ke badan ka dard dur ho jata hai.

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:34 PM
Gharelu Nuskhe for Throat Infection


Agar Gale mein kharash ho to raat ko sote samay kali mirch ko chabane se aaram milega.
Agar gala kuch thanda ke upper garam ya grama ke uppar thanda khane ya pine ke wajah se hua hai to mulethi ko chabane se farak padega.

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:35 PM
FOR ACIDITY


Tarbooj ko khane or uske juice ko pine se acidity kam ho jati hai
Patagobhi ka juice rojh peena chahiye acidity se bachne ke liye
Kela or kheera roj khana chahiye
Khali pet rojh 1-2 glass pani peeye subah
Rojh dahi or lassi piye
½ glass thande dudh piye rojh
Khali pet nariyal pani piye
Ice cream khaye isse acidity se hone wali jalan kam hoti hai hoti
Peene ke pani me kuch boonde pudine ras dal ke peena chahiye
Khane ke badh thoda sa gur kha lene se acidity nahin hoti

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:35 PM
FOR ACNE


Pani adhik matra me pine se chehre par nikhar aata hai.
Muhase se bachne ke liye tale hue khane nahi khana chahiye.
Neem ke ras ko muh par lagane se muhase theak ho jate hain.
Gavarpatta(aloe vera) ka ras pine se muhase ghat jate hain.
Neem ke patto ko chabane se muhase theak ho jaate hain.
1 spoon dalchini powder me 1 spoon honey milakar use face par lagakar raat ko so jaye or subah muh dho le.
Lahsun ke paste ko 10-15 minute tak face par lagaye or fir muh dho le.
Aloo ke tukdo ko 10-15 minute tak muh par ghise or muh dhole.

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:35 PM
FOR STIFFNESS IN HANDS


Aduse ke phool aur phalo ko tel me jalakar chaan le. Is tel ki malish karne se hatho ki akadan kam hogi.
Akhroth ke tel ki malish karne se bhi hatho ki akadan kam hogi.

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:35 PM
FOR WEIGHT LOSS


Din mein kewal ek bar halka bhojan kare.
Hari sabjiyo ka sevan vishesh roop se kare.
Shaam ko sirf Fruits khaye.
Bhojan ke baad pani na piye.
Chaiye, coffee, charbi badane wali aur meethi cheezo ko kam se kam sevan karein.
Dono samay bhojan ke turant baad ek glass kosa garam pani piye aur jitna garam piya ja sake utna piye.

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:36 PM
FOR SPOT MARKS ON FACE


Chehre par nimbu ka chilka andar ki taraf se male. 5 minute badh thoda-sa gila besan bhi chere par mal le. 15 minute badh taze pani se dho le. Isse chere ki jhaiya, muhase katam ho jate hai tatha rang bhi saaf ho jata hai.
Kacche muhaso ko kabhi nahi nochna chahiye varna ve chere par stayi dagh chidh dege.
Reethe ka chilka pani me pishkar lagane se mukh-mandal ki jhayiya aur dag-dhabe dur ho jate hai.
Ek chammach sahadh, ek chammach kaccha doodh milakar lep kare. 5 minute badh pani se dho de.

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:36 PM
FOR STIFNESS


Aduse ke phool aur phalo ko tel me jalakar chaan le. Is tel ki malish karne se pairo ki akadan kam hogi.
Akhroth ke tel ki malish karne se bhi pero ki akadan kam hogi.

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:36 PM
FOR TEETH PAIN


Sendha namak aur sarso ka tel dono milakar manjan karein.
Payajh ke pani ko datto par malein.
Laung 5 gm, kapur 3 gm lekar dono ko barik peeskar datto par malne se aaram milega.

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:36 PM
FOR STAMERING



Hara dhania aur amaltash ke gude ko pani me pishkar usi pani se 21 din tak lagatar kulle karne se jibh patli hokar haklahat dur ho jati hai.
Hara amla bacche ko rojh ek khilane se haklane ko dur kiya ja sakta hai.
Subah makhaan me kali mirch ka churan milakar khane se kuch hi dino me haklahat dur ho jati hai.
Fula hua suhaga sahadh me milakar jibh par ragadhne se haqlana thik ho jata hai.

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:37 PM
FOR SNAKE BITE


Saap ke katne wali jagah ko kisi tej nashtar se chil de. Jab khun nikal aave, barik pisa potassium permanganate laga de. 3-4 bar lagane ke baad jab chabke lage to samajh le ki jahar uttar chukka hai. 2-4 din tak kali mirch milakar ghee ka khubh prayogh kare.
Do tola payajh ka ras, do tola sarso ka tel, 10gm pila de yah ek khurak hai. Har 15 minute badh de. 4-5 khurak se hi saph ka jahar ulti dyara nikal jayega.

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:37 PM
SNAKE BITE


Saap ke katne wali jagah ko kisi tej nashtar se chil de. Jab khun nikal aave, barik pisa potassium permanganate laga de. 3-4 bar lagane ke baad jab chabke lage to samajh le ki jahar uttar chukka hai. 2-4 din tak kali mirch milakar ghee ka khubh prayogh kare.
Do tola payajh ka ras, do tola sarso ka tel, 10gm pila de yah ek khurak hai. Har 15 minute badh de. 4-5 khurak se hi saph ka jahar ulti dyara nikal jayega.

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:37 PM
FOR SWELLING IN SPRAIN


Til aur mahua bandhane se haddi ki moach par aaram milega.
Tejhpath ko pees kar lagane se moch bhi thik ho jate hain.
Anar ke patte peeskar badhne se moch ki peeda kam hogi.

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:37 PM
FOR NOSE BLEEDING


Raat ko kuch kishmish bhigo de aur subah chabakar kha le.
Tazaa nimbu ka ras nikalkar naak mein kuch bunde daalne se foran nakseer bandh ho jayega.

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:37 PM
FOR LISPING


Badam ki giri 7, kali mirch 7, dono ko kuch budhe pani me ghishkar chatni-si bana le aur usme thodi-si mishri milakar chate. Subah khali peth 15 dino tak le.
Tejhpath ko jibh ke niche rakhne se tutlana thik ho jata hai.
Meethi bach, meethi kuth, asagandh aur choti pepal ko barabar matra me milakar churan bana le. Rojana 1gm churan sahadh me milakar chatne se awaz safh hoti hai.

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:38 PM
FOR STONE


Do masa neem ke patto ka khar khane se pathri galkar nikal jati hai.
Jamun khana bhi pathri rog main labhdayak hai.
1 gm haldi aur 2gm gudh gajar ki kanji ke sath khane se pathri gal jati hai.

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:38 PM
FOR MOUTH BLISTER


Desi ghee 50 gm aag par garam karein aur usme kapur 6 gm dalkar aag par utaar kar us ghee ko muh me lagane se chale bahut jaldi thik ho jate hai.
Muh me chaale ho to khane par dhyan de chahiye sada bhojan khana chahiye.
Raat ko sote samay muh ke andar asli ghee lagakar sona chahiye muh ke chaale theak ho jate hain yeh ek labhdayak desi nuskha hai.
50 gram haldi ko Ek kilo pani me ubalkar thanda hone par din mein do baar garaare karein.
Muh me chale ho to pani main khane ka soda dal kr paste bana le phir us paste ko muh ke chalo main lagaye.
(https://www.google.com/webmasters/tools/top-search-queries?hl=en&siteUrl=http://www.gharelunuskhe.com/&grid.r=100&grid.s=25#muh%20me%20chale)
Garam pani mein namak dal kr ghol bana le phir us ghol se muh dhoye muh ke chale theak ho jayenge
Muh me chaale vitamin C ki kami ke vaje se bhi ho sakte hain, atha orange juice, lemon juice pina chahiye.
Mooh ke chale kasth de toh dudh, cheese or dahi khane se aaram milta hai.
Hydrogen peroxide or water lein saman matra main or muh ke chaale poar lagaya, dhayan rakha hydrogen peroxide muh mein na chala jaye, isse lagane se muh k chale theak ho jaate hain.

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:39 PM
FOR STOMACH


1 Chutki haldi, 1 chuthki namak milakar fakh le, uppar se ek ghut pani pe le. Pet ki hava dur hokar dard ko aaram hoga.
Jamun ke mosam me 200-300gm badiya aur pake hue jamun khane se pet dard dur hoga.
1 Chuthki ajvayan thode se pani me pishkar ras nikale. Iss ras ko pine se har prakar ka peth dard thik hota h. 1 cup garam pani me aadha chammach namak milakar garam-garam piye. Dard thik ho jayega.
Ajvayan 4 gm, namak 2 gm dono ko garam pani ke sath lene se pet ka dard 5 minute me thik hoga.

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:41 PM
FOR BLOOD PRESSURE


Gajar ke ras mein shahad milakar peene se low blood pressure mein farak padta hai.
Gajar ka murabba bhi low blood pressure me kargar sabit hota hai.

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:42 PM
For loose motion


Char choti elaichi ko ek ser pani me pakaye jab pani 3 cup tak reh jaye to thanda hone par 3 hisse kar le 4-4 ghante badh peene se 8 ghante mein fyada dikhne lagega.
250 gm kaccha tazaa doodh le aur uske andar ek chammach chini aur ek nimbu nichode jisse doodh fat jayega. Usko hilakar peene se dast bandh ho jate hai.

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:43 PM
FOR DENDRUFF


Reethe ka shampoo rusi khatam karne mein bada madadgar hota hai.
Bal tutne par balo ko sabun se na dhoye, reethe se dhona chahiye.
Agar sir me khushki aur rusi ho to nariyal ke tel mein nimbu ka ras milakar raat ko shir me malein aur subah gunguna pani aur reethe ke pani se sir dho le, 2-3 baar done se hi sir ki khushki aur rusi nasth ho jati hai.
Raat ko reethe ke chote-chote tukde karke pani me bhigo de. Subah us pani ko masalkar usse sir dhone se baal lambe aur ghane hote hai

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:43 PM
FOR LEUKORRHIA


Amla 3 gm barik karke, 6 gm shahed mein milakar din mein ek bar 15 din tak khaye.
Khatayi ka parhej karein.

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:43 PM
FOR ASTHMA


Sukha amla aur mulethi ko alag-alag peeskar barik churan sa banale, aur unhe milakar rakh le. Isme se ek chamach churan din me do bar khali pet lene se dame me labh hota hai.
50 gm alsi ko kuchalkar 750 gm pani me bhigoye. Jab 1 tihayi rah jaye to 250 gm mishri milakar rakh le. Phir ek – ek chammach bhar kadha 1-1 ghante ke antar se din me kai bar pilaye, agar ulti ho to, iska sevan na karein.
Asthma se jaldi chutkara pane ke liye garam doodh pilane se kaf patla hokar swash dama ka dore me aaram milta hai.
8-10 badamo ki giri ko pani me peeskar aag par kuch der tak ubale. Thoda-thoda pilane se dama ka dora tham jata hai.
30-40 gm angur ka ras garam karke pilane se swash ka vegh ghat jata hai.

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:44 PM
FOR ECZEMA


Kisi lohe ki kadahi me 250 gm sarso ka tel dalkar aag par chadha le. Jab tel khubh garam hokar ubalne lage, to isme 50gm neem ki komal kopale dal de. Koplo ke kale padte hi kadahi ko turant niche utar le. Thanda hone par tel chankar botal mein bhar le. Ise din me 3-4 bar lagaye, eczema nasth ho jayega.
Neem ki 21 kopale saaf kar le. Inhe 60gm pani me ghothkar prath aev say 7 din tak sevan karne se eczema thik ho jata hai.

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:44 PM
FOR CATARACT


Asli chandan ghiskar prati din aakho me lagane se motiya aane ka chance kam ho jata hai.
Motiyabindh ki shuru ki avastha me shahad ko salai dvara aakho me lagane se motiya ka badhna ruk sakta hai.
Motiya Bindh agar lage to doctor se salah le aur operation karva le.

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:44 PM
FOR COLD
· 10-15 tulsi ke patte aur 8-10 kali mirch ki chaye banakar pine se khasi, jukam aur bukhar theek ho jata hai.
· Aavale ke chilke ko sukhakar churan banakar aur barabar mishri mila le usme se 6gm subah taaje pani se khaye. Purani se purani khasi theek ho jayegi.
· Mulethi, kali mirch 10-10 gm bhunkar pees le aur 30 gm purane gud me mila le. Matar jitni goliya banakar taje pani ke sath le. Khasi jadh se thik ho jayegi.
· Adhrak ka ras aur shahed 10-10 gm barabar milakar garam karke chaate

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:44 PM
FOR BURNS


Kaccha aloo peeskar lagane se fyada milega.
Jale hue sthan par gaye ka gobar laga dene se turant hi aaram aa jata hai aur nishan bhi nahi rehta.
Kali masur ki dal ko tave par jalakar koyle karke shishi me bharkar rakh le. Avashyakata padane par gole ke tel me milakar jale hue shthan par lagaye. Isse na to chale padege aur na hi jale ka nishan rahega.
Koi ang jal jaye to gole ka tel 50gm garam karke 12gm kapur peeskar mila le. Yah tel thanda karke din me 4-5 bar jali hui jagah par lagaye.
Jale hue ang ko turant thande sarso ke tel me dubo de to chala nahi padega.
Amaltash ke patto ko pani me peeskar lagane se jale hua ang par aaram hota hai.
Aag ya garam pani se jale hue ang par tilo ko peeskar lep karne se labh hota hai.
Anar ke patte peeskar jale sthan par lagane se jalan kam hoti hai.

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:47 PM
FOR DIABETES


Diabetes mein sugar vale pradartho ka sevan nahi karna chahiye.
Is rog me dhire-dhire padal chalna tatha subah-2 sar avash karni chahiye.
Jamun ke 4 hare aur narm patte khubh barik kar 60gm pani me ragad kar aur chankar subah 10 din tak lagatar piye.
Diabetes ke shuruwat mein jamun ke 4 patte prath aur sham chabakar khane se tisre din se hi labh hone lagega.
Karela ka sevan bhi bahut madadgaar hota hai.
Jamun ki guthliyo ko sukhakar, peeskar unka churan bana le.
Methi dana 6gm lekar thoda kooth le aur sham ko pani me bhigo de. Subah ise khubh ghote aur bina meetha milaye piye. Do mahine tak sevan karne se diabetes mein kafi farak padega.

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:49 PM
FOR CONSTIPATION


Sadharan kabj me raat me sote samay 10-12 munakhe beejh nikalkar, doodh mein ubalkar khaye aur uppar se wahi doodh pile.
Purana bigdha hua kabjh ho to do santro ka ras khali pet prath 10-12 din pine se thik ho jayega. Santro ke ras me namak, baraf ya masala ityadi nhi hona chahiye.
20gm isabhghol ki bhusi 250 gm dahi me gholkar subha-sham khilane se kabj thik hota hai.
6 gm trifala churan 200gm garam doodh me lene se kabz se aaram milega.
Kabaj ki adhikta ke karan yadi bukhar me dast karana ho to 10gm arandi ke tel ko 250gm garam doodh me milakar de.
Kabz dur karne ka achuk ilaz hai kela khana.

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:49 PM
FOR EYE PAIN


Aankhon mein gulab jal daalein.
Til ke taaje chaar phool jo april ke mahine me aate hain, 3-4 nigalne se pure varsh aakhe nhi dukhegi.
Harad ko raat bhar pani me bhigane de aur subah usi jal se aakhe dhoye. Isse aakhe bhi nhi dukhti aur thandak bhi bani rahti hai.

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:49 PM
FOR EYE SIGHT
· Nirmali ke beejho ko pani me gishkar lagane se aakho ki jyoti badh jati hai.
· Gulab jal aankhon ki roshni badati hai.
· Aankhon ko taje pani se dhoye jab bhi bahar se wapis aayein

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:50 PM
FOR SCARES


Gajar 150gm, tamatar 100 gm aur chukandar 50 gm ka ras nikalkar aadha glass nitya lagatar kam-se-kam 20 dino tak piya jaye.
Badam ki giri doodh me gishkar lagane se dag-dhabbe dur hokar chere ki chamak badh jati hai.
Masoor ki dal ko aur tarbooj ke beejo ki mingi barabar matra me lekar gaaye ke dudh me pees le. Isse chahare par lagane se har prakar ke dag-dhabbe dur ho jate hai.

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:50 PM
FOR WET DREAMS(NIGHTFALL)


Tulsi ke beej 5 gm pani ke saath kuch samay sham ko khaye.
Beej bandh 3 gm pani se khane se svapandosh rukh jata hai.
Imli ke beej 250 gm, 800 gm doodh me bhigokar rakhe. Do din baad chilka utaar ke saaf karke pees le. 6 gm subah-sham pani ke sath istemaal karein.
Mulathi ka churan 3 gm shahed se chatne par svapandosh thik ho jata hai.
Banarasi aamle ka murabba ek nag pratidin pani se dhokar chaba-chabakar khave.

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:50 PM
FOR BEDWETTING IN CHILDEREN


4-6 saal tak ke bacche ko 2 munakka pratidin beejh nikal kar raat ko khilaye.
1 chuhara rojana 8 din tak khilane se aaram milega.
Dahi, Lassi, Chawal ka parhej Karein.

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:51 PM
FOR KIDNEY PAIN


Angur ki bel ke patte 50gm pani me peeskar chankar, thoda lahori namak milakar pilaye.
Bhune chane ka chilka, utra hua aata 20gm, malayi ya rabdi 20 gm, thode sahahed me milakar 4 boondh amritdhara asli milakar kuch din raat ko khane se bahut labh milega.

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:51 PM
FOR ITCHING


Neem ki 20 kople saaf karke inhe 60gm pani me ghothkar subah sham saat dino tak lene se khujli pe asar dikhega.
10 kali mirch ka churan gaaye ka ghee 10 gm ke sath lene se bhi farak dhikega
20 gm nariyal ke tel me 5 gm desi kapur milakar ghole, Kapur ke tel me ghul jane ke baad is tel ko lagane se khujli thik ho jati hai.

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:51 PM
FOR BLOOD DISORDER
Subah uthte hi kali mirch ke do dane khakar ek glass pani pine se khoon saaf hota hai.

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:51 PM
FOR GAS PROBLEM


Ek lahsun ki fakhe chilkar beejh nikali hui munakka 4 nag me lapethkar, bhojan ke badh chabakar nigal jaye. Is vidhi se pet me ruki hui vasu tatkal nikal jayegi.
Alsi ke patto ki sabji banakar khane se gas ki shikayat dur hojati hai.
Pet mein gas banane ki avastha me bhojnopranth 125gm mathe me 2gm ajvayan aur 1/2gm kala namak milakar khane se gas banna katam ho jati hai.
Ajvayan 2gm, namak aadha gm chabakar khaye, pet dard, gas thik hoga.
Pani ke sath 5 masha hingastak churan khane se sabhi prakar ka vayu-vikar dur hota hai.
Ek lahsun ki fakhe chilkar beejh nikali hui munakka 4 nag me lapethkar, bhojan ke badh chabakar nigal jaye. Is vidhi se pet me ruki hui vasu tatkal nikal jayegi.

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:52 PM
FOR COUGH


Sardi, jukam ke karan yadi gala beth gaya ho, to raat me sote samay 4-5 kali mirch batashe ke sath chabakar so jaye.
Garam vastu ke sevan ke pashchat thanda kha lene par aksar gala beth jata hai, aisa na karein.
Mulhatti ke churan ko pan ke patte me rakhkar datto se chabakar chuste rahe, isse gala khulne ke sath-sath gale ka dard aadi bhi jata rehta hai.

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:52 PM
FOR HIGH BLOOD PRESSURE


Tarbooj khane se high blood pressure thik ho jata hai.
Lichi ka upyog bhi labhdayak hai.
Hirday ki kamjori dur karne ke liye 25 gm sahtut ka sharbat din me do bar peena hithkar hai.
Gajar ka murabba bhi fyada pahuchata hai.
Sarphgandha ko kuthkar rakh le. Prath say 2-2gm sevan karne se high blood pressure samany ho jata hai.
Gehu ki basi roti prathkal dudh me bhigokar khane se high blood pressure samany hota hai.

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:52 PM
FOR KNEE JOINT PAIN


Subah bhukhe pet 3-4 akhrot ki giri khane se ghutno ka dard chala jata hai.
Nariyal ki giri khate rahne se ghutno ka dard kam hota hai.
Arandh ke patte aur mahedi pishkar lep karne se ghutno ka dard dur ho jata hai.
6 gm konch ke beejho ko doodh ke sath 14 din tak khane se ghutne ka dard mit jata hai.
Sukhe amlo ko kuth-pishkar 2 guni matra me gudh milakar bade matar ke aakar me goliya banakar rojana 3 goliya pani ke sath lene se ghutno ka dard thik ho jata hai.

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:53 PM
FOR JOINT PAIN


Kaner ki patti lep lagane se joint pain main aaram milta hai.
Subah khali pet 4-6 akhrote khane se ghutno ke dard me aaram hota hai.
14 Din tak 6 gm konch ke beejho ko dudh ke sath lene se jodo ka dard theak hota hai.

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:53 PM
FOR JAUNDICE


50 gm muli ke patte ka akrh nichodkar 10 gm mishri mila le, aur basi muh piye.
Jaha tak ho sake kacche papite khaye.
Bina mirch masale ki sabji khayein.
Paka hua papita khaye isse piliya mein farak padega.

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:53 PM
FOR INJURY


Jidhar se khoon bah raha ho, waha par mitti ke tel ka fah rakhne se khoon ka bahna bandh ho jata hai.
Katte hua stanh par pisi hui haldi bhar dene se khoon ka bahna turanth bandh ho jata hai.
Dhak ke gondh ko pani me gholkar leph karne se choth ki sujan thik ho jati hai.
Kisi bhi chot ke sthan par ghee aur kapoor barabar matra me milakar bandane se choth ki pida mith jati hai tatha khoon ka bahna bhi bandh ho jata hai.

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:53 PM
Acidity
After the meals, take one piece of Clove (Laung) and suck on it slowly. This not only gives instantaneous relief but also helps in reducing the onslaught of diseases arising out of acidity.
Cloves have direct impact on our digestive process. It helps in building appetite, removes phlegm and also increases the white blood cell count.
Another good remedy is the usage of Jaggery (Gudh) after the meals. About 5 to 10 grams of a Jaggery piece taken after the meals helps in eliminating acidity, improves digestion and also helps in the expulsion of worms in small children.

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:53 PM
Acne & Pimples
Extract juice of one lemon and mix with equal quantity of rose water. Apply this mixture on the face and let it stay for about half an hour. Wash the face with fresh water. About 15 days application should provide the cure.
Another method is to massage the face with the skin of lemon before washing with lukewarm water.
Precautions : Do not try to prick and peel the acne as this can leave permanent marks on the face.

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:54 PM
Constipation
For ordinary constipation, take 10/12 pieces of Raisin (Munnakka), wash and remove the seeds and then boil them with a glass of milk. Once the milk is boiled, eat the raisins and drink the milk. Next day you will find regulation of bowel movements.
In case of stubborn constipation, use the above remedy for 3/4 days.

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:54 PM
Ear Ache and Infection
Take two bits of Garlic. Remove the skin. Put them in two spoons of Mustard Oil in a small pan and warm it up on low heat. When the garlic starts turning black (burning) then turn off the heat. Sieve the contents. When the oil becomes lukewarm, then using a cotton stub, put 2 to 4 drops in the aching ear.
This not only gives instant relief from the pain, it also helps in getting sound sleep.
Any worms in the ear get killed and expelled from the ear. This remedy is helpful in curing oozing ears.

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:54 PM
High Blood Pressure
Mix juice of onion and pure honey in equal quantity. Taken two spoons of this mixture once a day is an effective remedy for high blood pressure. Take for about a week. Upon noticing improvement, take for few more days as needed.
Onion juice reduces cholesterol and works as a tonic for nervous system. It cleans blood, helps digestive system, cures insomnia and regulates the heart action.
Honey soothes the nerves and is also helpful in lowering the high blood pressure.
Other helpful remedies for High Blood Pressure:


Keep clean potable water in a copper urn overnight. Drink a glass early morning.
Take four leaves of Basil and two leaves of Neem (Margosa) and grind them with four spoons of water. Take this ground mixture empty stomach with a glass of water.
Eat empty stomach one Papita (Papaya) everyday for one month. Do not take anything after this for at least two hours.

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:54 PM
Loose Teeth
Take half a teaspoon of Mustard Oil and mix with table salt. Message teeth and gums inside out for about 10 minutes, twice a day. Not only this will ensure an excellent cleanliness of gums and teeth, but will also guarantee that the loose teeth will become strong. An excellent home remedy for smokers and people who intake beer and alcoholic drinks. (These people suffer from such problems more in comparison to others).

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:54 PM
Low Blood Pressure
Take 10 pieces of Kishmish (Raisin) and leave them overnight in a cup of water. After the raisin has been soaked for about 12 hours, take one piece at a time and chew it for at least 30 times before swallowing. Do this everyday for a month.
About 5 pieces of almonds soaked overnight in water, may be grounded and taken with a glass of milk.
Another wonder remedy in low blood pressure is to totally stop talking. Lie down on your left side and relax. With sleep taking over, you will feel better.

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:55 PM
Throat Irritation
Take a teaspoon of table salt and mix with a glass of hot water. Gargling 3/4 times a day is helpful in giving relief to throat irritation.
Take a glass of milk and boil it with a half teaspoon of Haldi (Turmeric powder). Add a spoonful of sugar. Taken before sleeping for 2/3 days is also a very helpful remedy. This remedy is also very useful in cough, colds and flu.

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:55 PM
Weak Memory
Take seven almonds and immerse them in a glass of water in the evening. Next morning, after removing the red skin, grind the almonds. Then mix the ground almonds with a glass of milk and boil. When it has boiled, then mix a spoonful of Ghee and two spoonfuls of sugar. When it is lukewarm, then drink it. Do this for 15 to 40 days. It helps in improving memory and also brings vitality to the body.
Important Note
This home remedy is extremely beneficial for students and those engaged in mental work. Take this empty stomach in the morning and do not eat anything for the next two hours.

VARSHNEY.009
28-06-2013, 03:56 PM
Obesity
Boil a cup full of water. After it becomes lukewarm then mix it with lemon juice squeezed from a fresh half lemon and two spoons of pure honey. This should be taken every morning on empty stomach for about 2/3 months. This not only "melts" the body fat but also is a natural cure for many of the stomach ailments. Note : While this combination of lemon juice and honey mixed with lukewarm water is a sure remedy for reducing fat, only lemon juice actually increases fat.
Special for excessively fat people
Take only one sumptuous meal (lunch time only) a day. The meal should contain green vegetables. Do not drink water during or immediately after the lunch. Water should be taken after about one hour of the meal. Tea, Coffee and sweets should be avoided.
Some people like me cannot do without water after the meals. In this case it is suggested that only HOT water should be sipped. Sipping HOT water after meals reduces fat and is also helpful in cure of gas, constipation, worms, swelling of the intestines and regulation of monthly periods of women.

VARSHNEY.009
29-06-2013, 11:36 AM
खराश या सूखी खाँसी के लिये अदरक और गुड़
गले में खराश या सूखी खाँसी होने पर पिसी हुई अदरक में गुड़ और घी मिलाकर खाएँ। गुड़ और घी के स्थान पर शहद का प्रयोग भी किया जा सकता है। आराम मिलेगा।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 11:36 AM
दमे के लिये तुलसी और वासा
दमे के रोगियों को तुलसी की १० पत्तियों के साथ वासा (अडूसा या वासक) का २५० मिलीलीटर पानी में उबालकर काढ़ा बनाकर दें। लगभग २१ दिनों तक सुबह यह काढ़ा पीने से आराम आ जाता है।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 11:36 AM
अरुचि के लिये मुनक्का हरड़ और चीनी
भूख न लगती हो तो बराबर मात्रा में मुनक्का (बीज निकाल दें), हरड़ और चीनी को पीसकर चटनी बना लें। इसे पाँच छह ग्राम की मात्रा में (एक छोटा चम्मच), थोड़ा शहद मिला कर खाने से पहले दिन में दो बार चाटें।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 11:36 AM
मौसमी खाँसी के लिये सेंधा नमक
सेंधे नमक की लगभग एक सौ ग्राम डली को चिमटे से पकड़कर आग पर, गैस पर या तवे पर अच्छी तरह गर्म कर लें। जब लाल होने लगे तब गर्म डली को तुरंत आधा कप पानी में डुबोकर निकाल लें और नमकीन गर्म पानी को एक ही बार में पी जाएँ। ऐसा नमकीन पानी सोते समय लगातार दो-तीन दिन पीने से खाँसी, विशेषकर बलगमी खाँसी से आराम मिलता है। नमक की डली को सुखाकर रख लें एक ही डली का बार बार प्रयोग किया जा सकता है।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 11:37 AM
बदन के दर्द में कपूर और सरसों का तेल
१० ग्राम कपूर, २०० ग्राम सरसों का तेल - दोनों को शीशी में भरकर मजबूत ठक्कन लगा दें तथा शीशी धूप में रख दें। जब दोनों वस्तुएँ मिलकर एक रस होकर घुल जाए तब इस तेल की मालिश से नसों का दर्द, पीठ और कमर का दर्द और, माँसपेशियों के दर्द शीघ्र ही ठीक हो जाते हैं।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 11:37 AM
बैठे हुए गले के लिये मुलेठी का चूर्ण
मुलेठी के चूर्ण को पान के पत्ते में रखकर खाने से बैठा हुआ गला ठीक हो जाता है। या सोते समय एक ग्राम मुलेठी के चूर्ण को मुख में रखकर कुछ देर चबाते रहे। फिर वैसे ही मुँह में रखकर जाएँ। प्रातः काल तक गला साफ हो जायेगा। गले के दर्द और सूजन में भी आराम आ जाता है।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 11:37 AM
फटे हाथ पैरों के लिये सरसों या जैतून का तेल
नाभि में प्रतिदिन सरसों का तेल लगाने से होंठ नहीं फटते और फटे हुए होंठ मुलायम और सुन्दर हो जाते है। साथ ही नेत्रों की खुजली और खुश्की दूर हो जाती है।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 11:37 AM
सर्दी बुखार और साँस के पुराने रोगों के लिये तुलसी-
तुलसी की २१ पत्तियाँ स्वच्छ खरल या सिलबट्टे (जिस पर मसाला न पीसा गया हो) पर चटनी की भाँति पीस लें और १० से ३० ग्राम मीठे दही में मिलाकर नित्य प्रातः खाली पेट तीन मास तक खाएँ। दही खट्टा न हो। यदि दही माफिक न आये तो एक-दो चम्मच शहद मिलाकर लें। छोटे बच्चों को आधा ग्राम तुलसी की चटनी शहद में मिलाकर दें। दूध के साथ भूलकर भी न दें। औषधि प्रातः खाली पेट लें। आधा एक घंटे पश्चात नाश्ता ले सकते हैं।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 11:37 AM
मुँह और गले के कष्टों के लिये सौंफ और मिश्री
भोजन के बाद दोनों समय आधा चम्मच सौंफ चबाने से मुख की अनेक बीमारियाँ और सूखी खाँसी दूर होती है, बैठी हुई आवाज़ खुल जाती है, गले की खुश्की ठीक होती है और आवाज मधुर हो जाती है।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 11:38 AM
जोड़ों के दर्द के लिये बथुए का रस
बथुआ के ताजा पत्तों का रस पन्द्रह ग्राम प्रतिदिन पीने से गठिया दूर होता है। इस रस में नमक-चीनी आदि कुछ न मिलाएँ। नित्य प्रातः खाली पेट लें या फिर शाम चार बजे। इसके लेने के आगे पीछे दो-दो घंटे कुछ न लें। दो तीन माह तक लें।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 11:38 AM
अधिक क्रोध के लिये आँवले का मुरब्बा और गुलकंद
बहुत क्रोध आता हो तो सुबह आँवले का मुरब्बा एक नग प्रतिदिन खाएँ और शाम को गुलकंद एक चम्मच खाकर ऊपर से दूध पी लें। क्रोध आना शांत हो जाएगा।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 11:39 AM
पेट में कीड़ों के लिये अजवायन और नमक
आधा ग्राम अजवायन चूर्ण में स्वादानुसार काला नमक मिलाकर रात्रि के समय रोजाना गर्म जल से देने से बच्चों के पेट के कीडे नष्ट होते हैं। बडों के लिये- चार भाग अजवायन के चूर्ण में एक भाग काला नमक मिलाना चाहिये और दो ग्राम की मात्रा में सोने से पहले गर्म पानी के साथ लेना चाहिये।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 11:40 AM
घुटनों में दर्द के लिये अखरोट
सवेरे खाली पेट तीन या चार अखरोट की गिरियाँ खाने से घुटनों का दर्द मैं आराम हो जाता है।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 11:40 AM
पेट में वायु-गैस के लिये मट्ठा और अजवायन-
पेट में वायु बनने की अवस्था में भोजन के बाद १२५ ग्राम दही के मट्ठे में दो ग्राम अजवायन और आधा ग्राम काला नमक मिलाकर खाने से वायु-गैस मिटती है। एक से दो सप्ताह तक आवश्यकतानुसार दिन के भोजन के पश्चात लें।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 11:40 AM
काले धब्बों के लिये नीबू और नारियल का तेल
चेहरे व कोहनी पर काले धब्बे दूर करने के लिये आधा चम्मच नारियल के तेल में आधे नीबू का रस निचोड़ें और त्वचा पर रगड़ें, फिर गुनगुने पानी से धो लें।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 11:40 AM
शारीरिक दुर्बलता के लिये दूध और दालचीनी
दो ग्राम दालचीनी का चूर्ण सुबह शाम दूध के साथ लेने से शारीरिक दुर्बलता दूर होती है और शरीर स्वस्थ हो जाता है। दो ग्राम दालचीनी के स्थान पर एक ग्राम जायफल का चूर्ण भी लिया जा सकता है।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 11:40 AM
मसूढ़ों की सूजन के लिये अजवायन
मसूढ़ों में सूजन होने पर अजवाइन के तेल की कुछ बूँदें पानी में मिलाकर कुल्ला करने से सूजन में आराम आ जाता है। (http://www.abhivyakti-hindi.org/rasoi/sujhav/rasoi_sujhav11.htm)

VARSHNEY.009
29-06-2013, 11:41 AM
हृदय रोग में आँवले का मुरब्बा
आँवले का मुरब्बा दिन में तीन बार सेवन करने से यह दिल की कमजोरी, धड़कन का असामान्य होना तथा दिल के रोग में अत्यंत लाभ होता है, साथ ही पित्त, ज्वर, उल्टी, जलन आदि में भी आराम मिलता है। (http://www.abhivyakti-hindi.org/rasoi/sujhav/rasoi_sujhav11.htm)

VARSHNEY.009
29-06-2013, 11:41 AM
हकलाना या तुतलाना दूर करने के लिये दूध और काली मिर्च
हकलाना या तुतलाना दूर करने के लिये १० ग्राम दूध में २५० ग्राम कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर रख लें। २-२ ग्राम चूर्ण दिन में दो बार मक्खन के साथ मिलाकर खाएँ।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 11:41 AM
श्वास रोगों के लिये दूध और पीपल
एक पाव दूध में ५ पीपल डालकर गर्म करें, इसमें चीनी डालकर सुबह और ‘शाम पीने से साँस की नली के रोग जैसे खाँसी, जुकाम, दमा, फेफड़े की कमजोरी तथा वीर्य की कमी आदि रोग दूर होते हैं।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 11:42 AM
अच्छी नींद के लिये मलाई और गुड़।
रात में नींद न आती हो तो मलाई में गुड़ मिलाकर खाएँ और पानी पी लें। थोड़ी देर में नींद आ जाएगी
कमजोरी को दूर करने का सरल उपाय
एक-एक चम्मच अदरक व आंवले के रस को दो कप पानी में उबाल कर छान लें। इसे दिन में तीन बार पियें। स्वाद के लिये काला नमक या शहद मिलाएँ।

पेट के रोग दूर करने के लिये मट्ठा
मट्ठे में काला नमक और भुना जीरा मिलाएँ और हींग का तड़का लगा दें। ऐसा मट्ठा पीने से हर प्रकार के पेट के रोग में लाभ मिलता है। यह बासी या खट्टा नहीं होना चाहिये।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 11:42 AM
घमौरियों के लिये मुल्तानी मिट्टी
घमौरियों पर मुल्तानी मिट्टी में पानी मिलाकर लगाने से रात भर में आराम आ जाता है।
खुजली की घरेलू दवा
फटकरी के पानी से खुजली की जगह धोकर साफ करें, उस पर कपूर को नारियल के तेल मिलाकर लगाएँ लाभ होगा।
मुहाँसों के लिये संतरे के छिलके
संतरे के छिलके को पीसकर मुहाँसों पर लगाने से वे जल्दी ठीक हो जाते हैं। नियमित रूप से ५ मिनट तक रोज संतरों के छिलके का पिसा हुआ मिश्रण चेहरे पर लगाने से मुहाँसों के धब्बे दूर होकर रंग में निखार आ जाता है
बंद नाक खोलने के लिये अजवायन की भाप
एक चम्मच अजवायन पीस कर गरम पानी के साथ उबालें और उसकी भाप में साँस लें। कुछ ही मिनटों में आराम मालूम होगा।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 11:43 AM
चर्मरोग के लिये टेसू और नीबू
टेसू के फूल को सुखाकर चूर्ण बना लें। इसे नीबू के रस में मिलाकर लगाने से हर प्रकार के चर्मरोग में लाभ होता है।
माइग्रेन के लिये काली मिर्च, हल्दी और दूध
एक बड़ा चम्मच काली मिर्च का चूर्ण एक चुटकी हल्दी के साथ एक प्याले दूध में उबालें। दो तीन दिन तक लगातार रहें। माइग्रेन के दर्द में आराम मिलेगा।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 11:44 AM
गले में खराश के लिये जीरा
एक गिलास उबलते पानी में एक चम्मच जीरा और एक टुकड़ा अदरक डालें ५ मिनट तक उबलने दें। इसे ठंडा होने दें। हल्का गुनगुना दिन में दो बार पियें। गले की खराश और सर्दी दोनों में लाभ होगा।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 11:45 AM
सर्दी जुकाम के लिये दालचीनी और शहद
एक ग्राम पिसी दालचीनी में एक चाय का चम्मच शहद मिलाकर खाने से सर्दी जुकाम में आराम मिलता है।
टांसिल्स के लिये हल्दी और दूध
एक प्याला (२०० मिलीली.) दूध में आधा छोटा चम्मच (२ ग्राम) पिसी हल्दी मिलाकर उबालें। छानकर चीनी मिलाकर पीने को दें। विशेषरूप से सोते समय पीने पर तीन चार दिन में आराम मिल जाता है। रात में इसे पीने के बात मुँह साफ करना चाहिये लेकिन कुछ खाना पीना नहीं चाहिये।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 11:45 AM
मधुमेह के लिये आँवला और करेला
एक प्याला करेले के रस में एक बड़ा चम्मच आँवले का रस मिलाकर रोज पीने से दो महीने में मधुमेह के कष्टों से आराम मिल जाता है।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 11:45 AM
मधुमेह के लिये कालीचाय-
मधुमेह में सुबह खाली पेट एक प्याला काली चाय स्वास्थ्यवर्धक होती है। चाय में चीनी दूध या नीबू नहीं मिलाना चाहिये। यह गुर्दे की कार्यप्रणाली को लाभ पहुँचाती है जिससे मधुमेह में भी लाभ पहुँचता है।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 11:45 AM
माइग्रेन और सिरदर्द के लिये सेब-
सिरदर्द और माइग्रेन से परेशान हों तो सुबह खाली पेट एक सेब नमक लगाकर खाएँ इससे आराम आ जाएगा

VARSHNEY.009
29-06-2013, 11:46 AM
अपच के लिये चटनी-
खट्टी डकारें, गैस बनना, पेट फूलना, भूक न लगना इनमें से किसी चीज से परेशान हैं तो सिरके में प्याज और अदरक पीस कर चटनी बनाएँ इस चटनी में काला नमक डालें। एक सप्ताह तक प्रतिदिन भोजन के साथ लें, आराम आ जाएगा।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 11:46 AM
उच्च रक्तचाप के लिये मेथी
सुबह उठकर खाली पेट आठ-दस मेथी के दाने निगल लेने से उच्चरक्त चाप को नियंत्रित करने में सफलता मिलती है।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 11:46 AM
कोलेस्ट्राल पर नियंत्रण सुपारी से
भोजन के बाद कच्ची सुपारी २० से ४० मिनट तक चबाएँ फिर मुँह साफ़ कर लें। सुपारी का रस लार के साथ मिलकर रक्त को पतला करने जैसा काम करता है। जिससे कोलेस्ट्राल में गिरावट आती है और रक्तचाप भी कम हो जाता है।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 11:46 AM
जलन की चिकित्सा चावल से
कच्चे चावल के ८-१० दाने सुबह खाली पेट पानी से निगल लें। २१ दिन तक नियमित ऐसा करने से पेट और सीन की जलन में आराम आएगा। तीन माह में यह पूरी तरह ठीक हो जाएगी।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 11:47 AM
दाँतों के कष्ट में तिल का उपयोग
तिल को पानी में ४ घंटे भिगो दें फिर छान कर उसी पानी से मुँह को भरें और १० मिनट बाद उगल दें। चार पाँच बार इसी तरह कुल्ला करे, मुँह के घाव, दाँत में सड़न के कारण होने वाले संक्रमण और पायरिया से मुक्ति मिलती है।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 11:47 AM
विष से मुक्ति
१०-१० ग्राम हल्दी, सेंधा नमक और शहद तथा ५ ग्राम देसी घी अच्छी तरह मिला लें। इसे खाने से कुत्ते, साँप, बिच्छु, मेढक, गिरगिट, आदि जहरीले जानवरों का विष उतर जाता है।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 11:47 AM
स्वस्थ त्वचा का घरेलू नुस्खा
नमक, हल्दी और मेथी तीनों को बराबर मात्रा में लेकर पीस लें, नहाने से पाँच मिनट पहले पानी मिलाकर इनका उबटन बना लें। इसे साबुन की तरह पूरे शरीर में लगाएँ और ५ मिनट बाद नहा लें। सप्ताह में एक बार प्रयोग करने से घमौरियों, फुंसियों तथा त्वचा की सभी बीमारियों से मुक्ति मिलती है। साथ ही त्वचा मुलायम और चमकदार भी हो जाती है।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 11:47 AM
ल्यूकोरिया से मुक्ति
ल्यूकोरिया नामक रोग कमजोरी, चिडचिडापन, के साथ चेहरे की चमक उड़ा ले जाता हैं। इससे बचने का एक आसान सा उपाय- एक-एक पका केला सुबह और शाम को पूरे एक छोटे चम्मच देशी घी के साथ खा जाएँ ११-१२ दिनों में आराम दिखाई देगा। इस प्रयोग को २१ दिनों तक जारी रखना चाहिए।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 11:47 AM
खाँसी में प्याज
अगर बच्चों या बुजुर्गों को खांसी के साथ कफ ज्यादा गिर रहा हो तो एक चम्मच प्याज के रस को चीनी या गुड मिलाकर चटा दें, दिन में तीन चार बार ऐसा करने पर खाँसी से तुरंत आराम मिलता है।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 11:48 AM
पेट साफ रखे अमरूद-
कब्ज से परेशान हों तो शाम को चार बजे कम से कम २०० ग्राम अमरुद नमक लगाकर खा जाएँ, फायदा अगली सुबह से ही नज़र आने लगेगा। १० दिन लगातार खाने से पुराने कब्ज में लाभ होगा। बाद में जब आवश्यकता महसूस हो तब खाएँ। (http://www.abhivyakti-hindi.org/rasoi/sujhav/rasoi_sujhav11.htm)

VARSHNEY.009
29-06-2013, 11:48 AM
बीज पपीते के स्वास्थ्य हमारा
पके पपीते के बीजों को खूब चबा-चबा कर खाने से आँखों की रोशनी बढ़ती है। इन बीजों को सुखा कर पावडर बना कर भी रखा जा सकता है। सप्ताह में एक बार एक चम्मच पावडर पानी से फाँक लेन पर अनेक प्रकार के रोगाणुओं से रक्षा होती है।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 11:48 AM
मुलेठी पेप्टिक अलसर के लिये-
मुलेठी के बारे में तो सभी जानते हैं। यह आसानी से बाजार में भी मिल जाती है। पेप्टिक अल्सर में मुलेठी का चूर्ण अमृत की तरह काम करता है। बस सुबह शाम आधा चाय का चम्मच पानी से निगल जाएँ। यह मुलेठी का चूर्ण आँखों की शक्ति भी बढ़ाता है। आँखों के लिये इसे सुबह आधे चम्मच से थोड़ा सा अधिक पानी के साथ लेना चाहिये।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 11:48 AM
भोजन से पहले अदरक-
भोजन करने से दस मिनट पहले अदरक के छोटे से टुकडे को सेंधा नमक में लपेट कर [थोड़ा ज्यादा मात्रा में ] अच्छी तरह से चबा लें। दिन में दो बार इसे अपने भोजन का आवश्यक अंग बना लें, इससे हृदय मजबूत और स्वस्थ बना रहेगा, दिल से सम्बंधित कोई बीमारी नहीं होगी और निराशा व अवसाद से भी मुक्ति मिल जाएगी।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 11:48 AM
मुहाँसों से मुक्ति-
जायफल, काली मिर्च और लाल चन्दन तीनो का पावडर बराबर मात्रा में मिलाकर रख लें। रोज सोने से पहले २-३ चुटकी भर के पावडर हथेली पर लेकर उसमें इतना पानी मिलाए कि उबटन जैसा बन जाए खूब मिलाएँ और फिर उसे चेहरे पर लगा लें और सो जाएँ, सुबह उठकर सादे पानी से चेहरा धो लें। १५ दिन तक यह काम करें। इसी के साथ प्रतिदिन २५० ग्राम मूली खाएँ ताकि रक्त शुद्ध हो जाए और अन्दर से त्वचा को स्वस्थ पोषण मिले। १५- २० दिन में मुहाँसों से मुक्त होकर त्वचा निखर जाएगी।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 11:48 AM
सरसों का तेल केवल पाँच दिन-
रात में सोते समय दोनों नाक में दो दो बूँद सरसों का तेल पाँच दिनों तक लगातार डालें तो खाँसी-सर्दी और साँस की बीमारियाँ दूर हो जाएँगी। सर्दियों में नाक बंद हो जाने के दुख से मुक्ति मिलेगी और शरीर में हल्कापन मालूम होगा।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 11:49 AM
अजवायन का साप्ताहिक प्रयोग-
सुबह खाली पेट सप्ताह में एक बार एक चाय का चम्मच अजवायन मुँह में रखें और पानी से निगल लें। चबाएँ नहीं। यह सर्दी, खाँसी, जुकाम, बदनदर्द, कमर-दर्द, पेटदर्द, कब्जियत और घुटनों के दर्द से दूर रखेगा। १० साल से नीचे के बच्चों को आधा चम्मच २ ग्राम और १० से ऊपर सभी को एक चम्मच यानी ५ ग्राम लेना चाहिए।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 11:49 AM
टमाटर की लुगदी को चेहरे पर लगाकर लगभग बीस मिनट बाद धो देने से मुँहासे व अन्य धब्बे दूर होते है।
बालों से रूसी दूर करने और उन्हें चमकदार बनाने के लिए १ एक नीबू का रस बालों में माँग बनाकर लगाएँ और दस मिनट बाद धो दें।
रात में सोने से पहले नाभि में तीन बूँद जैतून का तेल डालें तो सर्दियों में ओंठ नहीं फटते और सामान्य त्वचा भी स्वस्थ होती है।
रोज़ रात में सोने से पहले आँखों में एक-एक बूँद गुलाबजल डालने से आँखें स्वस्थ और सुंदर बनी रहती हैं।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 11:49 AM
एक गिलास पानी में एक चाय का चम्मच शहद मिलाकर प्रतिदिन बिना मुँह धोए पीने से पेट साफ होता है और चेहरे पर निखार आता है।
तैलीय त्वचा से मुक्ति के लिए एक बड़ा चम्मच बेसन, एक छोटा चम्मच गुलाबजल, और चुटकी भर हल्दी में आधा नीबू मिलाकर बनाए गए लेप को चेहरे पर बीस मिनट तक लगाएँ और सादे पानी से धो दें।
चाय के पानी में चुकंदर का रस मिलाकर ओंठों पर लगाने से उनका रंग गुलाबी होता है और वे फटते नहीं।
१० लीटर पानी में दो बड़े चम्मच गुलाबजल मिलाकर नहाने से त्वचा स्वस्थ और सुंदर बनती है।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 11:51 AM
होली खेलने से पहले बालों में अगर तेल लगा लिया जाए और चेहरे पर क्रीम तो होली का रंग आसानी से छूट जाता है।http://www.abhivyakti-hindi.org/rasoi/sujhav/tamatar.jpg
एक गिलास गुनगुने पानी में आधा नीबू और दो चम्मच शहद मिलाकर रोज़ सुबह खाली पेट पीने से पेट ठीक रहता है, रक्त शुद्ध होता है और चेहरे पर निखार आता है।
टमाटर के रस को मट्ठे में मिलाकर लगाने से धूप में जली हुई त्वचा को आराम मिलता है और वह जल्दी स्वस्थ हो जाती है।
पिसी हुई दो बड़े चम्मच मसूर की दाल में चुटकी भर हल्दी और दस बूँद नीबू मिलाकर दूध में बनाया गया उबटन चेहरे पर लगाने से मुहाँसे और उसके दाग दूर होते हैं।
एक बाल्टी पानी में चुटकी भर पिसी हुई फिटकरी मिलाकर नहाएँ तो त्वचा से पसीने की गंध दूर रहती है।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 11:51 AM
रोज़ दोपहर में खाने के साथ एक गाजर सलाद की तरह कच्ची खाने से आँखों के चारों और पड़े काले निशान दूर हो जाते हैं।
http://www.abhivyakti-hindi.org/rasoi/sujhav/chai.jpgकच्चे आलू को पीसकर चेहर पर दस मिनट तक लगाएँ और फिर सादे पानी से धो दें। इससे हर प्रकार के दाग धब्बे और झांईं दूर हो कर त्वचा पर निखार आता है।
टमाटर के गूदे में मट्ठा मिलाकर लगाने से धूप से जली हुई त्वचा को आराम मिलता है और वह जल्दी स्वस्थ हो जाती है।
एक गिलास पानी में दो चम्मच चाय डालकर अच्छी तरह उबालें और छानकर ठंडा होने के बाद फ्रिज में रखें। धूप में बाहर निकलने पहले चेहरे और हाथों-पैरों में यह पानी लगा लेने से त्वचा झुलसेगी नहीं।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 11:52 AM
गेंदे और गुलाब की पंखुड़ियाँ व नीम की पत्तियों को एक कटोरी पानी में उबालकर चेहरे पर लगाने से मुहाँसे दूर होते हैं।
http://www.abhivyakti-hindi.org/rasoi/sujhav/tulsi.jpgप्रतिदिन एक बाल्टी पानी (दस लीटर) में दो बड़े चम्मच गुलाबजल मिलाकर नहाने से त्वचा स्वस्थ व सुंदर होती है।
नारियल के तेल में नीबू का रस मिलाकर सिर में लगाएँ और एक घंटे बाद धो दें। इससे सिर की खुश्की को आराम मिलता है।
तुलसी के पत्तों का रस निकाल कर उसमें बराबर मात्रा मे नीबू का रस मिला कर चेहरे पर लगाने से झाईं दूर होती है।
दो चम्मच सोयाबीन का आटा, एक बड़ा चम्मच दही व शहद मिलाकर बनाए गए लेप को चेहर पर लगाने से झुर्रियाँ कम होती हैं।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 12:07 PM
रतिदिन नाखूनों पर जैतून के तेल की हल्की मालिश करने से नाखूनों का टूटना रुक जाता है।
http://www.abhivyakti-hindi.org/images/2010/kamal2.gifआँखों के काले घेरों से छुटकारा पाने के लिए मिल्क पाउडर में नीबू का रस मिलाकर आँखों के चारों ओर हल्की मालिश करें।
कमल की पत्तियों को पीस कर झुलसी त्वचा पर लगाने से त्वचा की जलन दूर होती है और झुलसने का निशान भी चला जाता है।
उड़द की छिलके वाली दाल को उबालकर उसके पानी से बाल धोने पर वे सुंदर और आकर्षक दिखाई देते हैं।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 12:07 PM
एक एक-एक चम्मच ग्लिसरीन, गुलाबजल और नींबू का रस मिलाकर हाथों से मलें और सूख जाने पर धो दें। इससे सख्त हाथ मुलायम हो जाएँगे।
उँगलियों पर ज़रा-सा बादाम या जैतून का तेल लेकर नियमित रूप से भौंहों और बरौनियों पर लगाने से वे घनी और चमकदार बन जाती हैं।
http://www.abhivyakti-hindi.org/rasoi/sujhav/hair.jpgबालों में चमक लाने के लिए १ प्याला पानी मे ३ बडे चम्मच सफेद सिरका मिलाकर लगाएँ और १५ मिनट बाद धो दें।
आँखों के पास गहरे घेरों और सूजन के लिए खीरे के पतले टुकड़ों को आँखों पर रखकर बीस मिनट आराम करें, फिर चेहरा धो दें।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 12:07 PM
मुहाँसों से मुक्ति पाने के लिये चुटकी भर कपूर में पुदीने और तुलसी की पत्तियों का रस मिलाकर प्रभावित स्थान पर लगाएँ।
http://www.abhivyakti-hindi.org/rasoi/sujhav/hands.jpgकोमल हाथों के लिये तून के तेल से हाथों की मालिश करें, फिर इन्हें दो से पाँच मिनट तक नमक मिले पानी में भिगोकर रखें।
सुंदर चेहरे के लिये बदाम, गुलाब के फूल, चिरौंजी और पिसा जायफल रात को दूध में भिगोएँ और सुबह पीसकर मुख पर लगाएँ।
नारियल को कसकर निकाले गए ताज़े दूध को चेहरे पर लगाने से त्वचा स्वस्थ व आकर्षक बनती है।
बराबर मात्रा में गाजर और खीरे का एक गिलास रस नियमित रूप से लेने पर बाल, नाखून और त्वचा स्वस्थ रहते हैं।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 12:07 PM
कच्चे दूध में रूई का फाहा भिगोकर चेहरा साफ़ करने से कील मुहाँसे और झाँई दूर होकर त्वचा स्वस्थ बनती है।
हल्दी और चंदन का चूर्ण दूध में भिगोकर चेहरे पर लगाने से थकी और मुरझाई त्वचा स्वस्थ होती है।
तरबूज़ के रस को चेहरे पर लगाएँ और सूख जाने पर धो दें। इससे दाग धब्बे दूर होते हैं तथा त्वचा साफ़ होकर निखर जाती है।
मसूर की दाल और दूध के उबटन में घी मिलाकर शरीर पर लगाने से त्वचा नर्म और चमकदार बन जाती है।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 12:08 PM
छह चम्मच पेट्रोलियम जेली, दो चम्मच ग्लीसरीन और दो चम्मच नीबू के रस को मिलाकर फ्रिज में एक जार में रख दें। सप्ताह में दो बार हाथ पैर में इसकी मालिश करने से रूखी त्वचा को आराम मिलता है।
मेथी की पत्तियों का लेप बनाकर चेहरे पर लगाने से कील मुँहासे और झाँई दूर हो जाते हैं।
त्वचा का रूखापन दूर करने के लिये जैतून का तेल, दूध और शहद बराबर मात्र में मिलाकर चेहरे पर लगाएँ और २० मिनट बाद गुनगुने पानी से धो दे।
चेहरे, हाथों और पैरों पर थोड़ा सा एरंड तैल (कैस्टर ऑयल) लगा कर हल्की मालिश करने से झुर्रियाँ दूर होती हैं।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 12:08 PM
सख्त नींबू या संतरे को अगर गरम पानी में कुछ देर के लिए रख दिया जाये तो उसमें से आसानी से अधिक रस निकाला जा सकता है।
आलू उबालते समय पानी में थोड़ा-सा नमक मिला दें तो आलू फटेंगे नहीं और आसानी से छिल जाएँगे।
करेले और अरबी को बनाने से पहले काटकर नमक के पानी में भिगो दें। करेले की कड़वाहट और अरबी की चिकनाहट निकल जाएगी।
http://www.abhivyakti-hindi.org/rasoi/sujhav/images/methi.jpgमेथी के साग की कड़वाहट हटाने के लिये उसे काटें, नमक मिलाकर, थोड़ी देर के लिये अलग रखें और दबाकर थोड़ा रस निकाल दें।
फूलगोभी की सब्जी में एक छोटा चम्मच दूध या सिरका डालें तो फूलगोभी का सफ़ेद रंग पीला नहीं पड़ेगा।



http://www.abhivyakti-hindi.org/rasoi/sujhav/images/mirch.jpgहरी मिर्च को फ्रिज में अधिक दिनों तक ताज़ा रखने के लिए उसके डंठल तोड़कर हवाबंद डिब्बे में रखें।
आलू और प्याज को एक ही टोकरी में एक साथ न रखें। ऐसा करने से आलू जल्दी खराब हो जाते हैं।
यदि दूध फटने की संभावना हो, तो थोड़ा बेकिंग पाउडर डालकर उबालें, दूध नहीं फटेगा।http://www.abhivyakti-hindi.org/vichar/kya_aap_jante_hain/images/milk.jpg
आटा गूँधते समय पानी के साथ थोड़ा दूध मिला दें तो रोटी या पराठे अधिक नर्म और स्वादिष्ट बनते हैं।
बेसन, नीबू, हल्दी और नारियल के तेल को मिलाकर बनाए गए लेप से होली के रंग आसानी से छूटते हैं और त्वचा भी स्वस्थ रहती है।
पालक को पकाते समय उसमें एक चुटकी चीनी मिला दी जाए तो उसका रंग और स्वाद दोनों बढ़ जाते हैं।
http://www.abhivyakti-hindi.org/rasoi/sujhav/images/almond.jpgएक छोटे चम्मच शक्कर को भूरा होने तक गरम करके केक के मिश्रण में मिला देने पर केक का रंग और स्वाद बढ़ जाता है।
स्वादिष्ट शोरबा बनाने के लिए प्याज, लहसुन, अदरक, पोस्ता और दो-चार दाने भुने हुए बादाम महीन पीसें और मसाले के साथ भूनें।
http://www.abhivyakti-hindi.org/rasoi/sujhav/images/pan.jpgबादाम का छिलका आसानी से उतारने के लिए उसे १५-२० मिनट के लिए गरम पानी में भिगो दें।
बर्तन से खाना जलने की महक और चिपकन छुड़ाने के लिए उसमें कटे प्याज और उबला पानी डालकर पाँच मिनट तक रखें। बर्तन आसानी से साफ हो जाएगा।
कच्चे नारियल की बर्फी को जल्दी और अधिक स्वादिष्ट बनाने के लिए ताज़े दूध के स्थान पर मिल्क पाउडर का प्रयोग करें।http://www.abhivyakti-hindi.org/rasoi/sujhav/images/papad.gif
पुराने पापड़ के छोटे टुकड़े करें, पानी में उबालें, छानें, राई का छौंक लगाकर टमाटर और दही मसाले के साथ स्वादिष्ट सब्जी बनाएँ।
दही खट्टा हो तो उसमें दो प्याले ठंडा पानी डालें, आधे घंटे बाद धीरे धीरे पानी गिरा दें खटास निकल जाएगी।
मिर्च के डिब्बे में थोड़ी सी हींग डाल दें तो मिर्च लम्बे समय तक ख़राब नही होगी।
http://www.abhivyakti-hindi.org/rasoi/sujhav/images/noodles.jpgचीनी के डिब्बे में ५-६ लौंग डाल दी जायें तो उसमें चींटिया नही आयेंगी।
कढ़ी में दही मिलाने से पहले उसमें थोड़ा बेसन डालकर फेंट लें। इससे कढ़ी नरम बनेगी दही के दाने दिखाई नहीं देंगे।
नूडल्स का चिपचिपापन दूर करने के लिए उबालते समय उसमें थोड़ा सा तेल डालें और उबालने के बाद ठंडा पानी।
http://www.abhivyakti-hindi.org/rasoi/sujhav/images/eggs.jpgअंडे को उबालने से पहले उसमें पिन से एक छेद कर दें। इसके छिलके आसानी से उतर जाएँगे।
नारियल की छिलका आराम से निकालने के लिए छिलका निकालने से पहले उसे आधे घंटे तक पानी में डालकर रखें।
अंडे की ताज़गी की पहचान के लिए उसे नमक मिले ठंडे पानी में रखें। यदि डूब जाए तो ताज़ा है और यदि ऊपर आ जाए तो पुराना।
http://www.abhivyakti-hindi.org/rasoi/sujhav/images/nariyal.jpgबची हुई इडली और डोसे के घोल को अधिक देर तक ताज़ा रखने के लिए उस पर पान का एक पत्ता रख दें।
आलू की कचौड़ी बनाते समय मसाले में थोड़ा बेसन भूनकर डाल दें। इससे कचौड़ी को बेलना आसान होता है और http://www.abhivyakti-hindi.org/rasoi/sujhav/images/paneer.jpgस्वाद भी बढ़ता है।
पनीर को नर्म रखने के लिए उसे तलने के बाद गरम पानी में डालें। इसके बाद ही उसे सब्ज़ी में मिलाएँ और हल्का पकाएँ।
उबले अंडों को आसानी से सफ़ाई के साथ छीलने के लिए उन्हें उबलने के बाद पाँच मिनट के लिए ठंडे पानी में डाल दें।
चना, मटर जैसे चीज जल्दी गलाने के लिए उबालतले समय पानी में नमक और रिफाइड तेल की कुछ बूंदे डाल दें।
http://www.abhivyakti-hindi.org/rasoi/sujhav/images/tirangi.jpgस्वतंत्रता दिवस के अवसर पर मेहमानों के स्वागत के लिए तिरंगी बर्फी (http://www.abhivyakti-hindi.org/rasoi/mithai/tirangi.htm) और तिरंगे सैंडविच (http://www.abhivyakti-hindi.org/rasoi/namkeen/tiranga_sandwich.htm) से बेहतर और कुछ नहीं।
पालक पनीर बनाने से पहले पालक की पत्तियों को एक चम्मच चीनी वाले पानी में आधे घंटे तक भिगोकर रखें, अधिक स्वादिष्ट बनेगा।
http://www.abhivyakti-hindi.org/rasoi/sujhav/images/aaloo.jpgअगर आलू को छीलकर काटें और पानी में एक चम्मच सिरका डालकर उबालें तो आलू अपेक्षाकृत जल्दी उबलेंगे और टूटेंगे नहीं।
केले, बैंगन या आलू काटकर तुरंत पानी में रख दें, फिर चाहें जितनी देर बाद पकाएँ वे काले नहीं पड़ेंगे, न उनका स्वाद खराब होगा।
तरबूज़ के छिलके सुखाकर पीस लें। ये पाउडर सोडा बाई कार्ब की जगह प्रयोग किया जा सकता है।http://www.abhivyakti-hindi.org/rasoi/sujhav/images/tarbooz.jpg
संतरे का सूखा छिलका सुखाकर डिब्बे में बंद करके रखें। सुगंधित चाय बनाने के लिए चाय का पानी उबालते समय थोड़ा सा डाल दें।
पनीर को तलने के बाद यदि तुरंत उबलते नमकीन पानी या सब्ज़ी के शोरबे में डाल दिया जाय तो वह अधिक नर्म और स्पंजी होता है।
धनिये और पुदीने की चटनी को पीसने के बाद उसमें दो तीन चम्मच दही मिला दिया जाए तो वह अधिक स्वादिष्ट बनती है।http://www.abhivyakti-hindi.org/rasoi/sujhav/images/diya-diwali.gif
दीपावली (http://www.abhivyakti-hindi.org/rasoi/sujhav/rasoi_sujhav09.htm) (http://www.abhivyakti-hindi.org/rasoi/sujhav/rasoi_sujhav09.htm) सुझाव (http://www.abhivyakti-hindi.org/rasoi/sujhav/rasoi_sujhav09.htm)--मिट्टी के दीये अच्छी तरह जलें और तेल अधिक न सोखें इसके लिए उन्हें तीन घंटे तक पानी में भिगोने के बाद सुखाकर प्रयोग करें।http://www.abhivyakti-hindi.org/rasoi/sujhav/images/paratha.jpg
पराठे के आटे में मोयन के लिए एक चम्मच तेल के स्थान पर दो बड़े चम्मच दही डालने से पराठे अधिक नर्म व स्वादिष्ट बनते हैं।
जमाने से पहले अगर दूध में पिसी हुई बड़ी इलायची और केसर डालकर दो तीन उबाल दिए जाएँ तो ऐसा दही खाने से सर्दी नहीं होती।
व्यंजन के उबलते ही गैस को धीमा करने और जहाँ तक संभव हो छोटे बर्नर के प्रयोग से ईंधन की बचत की जा सकती है।http://www.abhivyakti-hindi.org/rasoi/sujhav/images/burner.jpg
दोसे के घोल में एक चम्मच चीनी मिला देने से दोसे अधिक कुरकुरे, गहरे सुनहरे और ज्यादा स्वादिष्ट बनते हैं।
सूजी को हल्का भूनने के बाद ठंडा कर के हवाबंद डिब्बों में रख दिया जाए तो उसमें कीड़े नहीं लगते।
पूरी का आटा माड़ते समय पानी के साथ थोड़ा दूध मिला दिया जाए तो पूरियाँ नर्म और अगर घी या तेल मिला http://www.abhivyakti-hindi.org/rasoi/sujhav/puri.jpgदिया जाए तो कुरकुरी बनती हैं।
जले हुए बर्तन को आसानी से साफ़ करने के लिए उसमें एक प्याला पानी, एक बूँद बर्तन धोने वाले साबुन के साथ उबालें, फिर धोएँ।
केक की ५०० ग्राम आइसिंग में अगर एक चाय का चम्मच ग्लीसरीन मिला दी जाय तो आइसिंग सूखती नहीं और देर तक ताज़ी रहती है।
बेसन को प्लास्टिक के थैले में रबरबैंड से मुँह बंद कर के फ्रिज में रखें तो बहुत दिनों तक ताज़ा रहेगा और उसमें कीड़े भी नहीं पड़ेंगे।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 12:15 PM
टमाटर की लुगदी को चेहरे पर लगाकर लगभग बीस मिनट बाद धो देने से मुँहासे व अन्य धब्बे दूर होते है।
बालों से रूसी दूर करने और उन्हें चमकदार बनाने के लिए १ एक नीबू का रस बालों में माँग बनाकर लगाएँ और दस मिनट बाद धो दें।
रात में सोने से पहले नाभि में तीन बूँद जैतून का तेल डालें तो सर्दियों में ओंठ नहीं फटते और सामान्य त्वचा भी स्वस्थ होती है।
रोज़ रात में सोने से पहले आँखों में एक-एक बूँद गुलाबजल डालने से आँखें स्वस्थ और सुंदर बनी रहती हैं।

फरवरी २०१०


एक गिलास पानी में एक चाय का चम्मच शहद मिलाकर प्रतिदिन बिना मुँह धोए पीने से पेट साफ होता है और चेहरे पर निखार आता है।
तैलीय त्वचा से मुक्ति के लिए एक बड़ा चम्मच बेसन, एक छोटा चम्मच गुलाबजल, और चुटकी भर हल्दी में आधा नीबू मिलाकर बनाए गए लेप को चेहरे पर बीस मिनट तक लगाएँ और सादे पानी से धो दें।
चाय के पानी में चुकंदर का रस मिलाकर ओंठों पर लगाने से उनका रंग गुलाबी होता है और वे फटते नहीं।
१० लीटर पानी में दो बड़े चम्मच गुलाबजल मिलाकर नहाने से त्वचा स्वस्थ और सुंदर बनती है।

मार्च २०१०


होली खेलने से पहले बालों में अगर तेल लगा लिया जाए और चेहरे पर क्रीम तो होली का रंग आसानी से छूट जाता है।http://www.abhivyakti-hindi.org/rasoi/sujhav/tamatar.jpg
एक गिलास गुनगुने पानी में आधा नीबू और दो चम्मच शहद मिलाकर रोज़ सुबह खाली पेट पीने से पेट ठीक रहता है, रक्त शुद्ध होता है और चेहरे पर निखार आता है।
टमाटर के रस को मट्ठे में मिलाकर लगाने से धूप में जली हुई त्वचा को आराम मिलता है और वह जल्दी स्वस्थ हो जाती है।
पिसी हुई दो बड़े चम्मच मसूर की दाल में चुटकी भर हल्दी और दस बूँद नीबू मिलाकर दूध में बनाया गया उबटन चेहरे पर लगाने से मुहाँसे और उसके दाग दूर होते हैं।
एक बाल्टी पानी में चुटकी भर पिसी हुई फिटकरी मिलाकर नहाएँ तो त्वचा से पसीने की गंध दूर रहती है।

अप्रैल २०१०


रोज़ दोपहर में खाने के साथ एक गाजर सलाद की तरह कच्ची खाने से आँखों के चारों और पड़े काले निशान दूर हो जाते हैं।
http://www.abhivyakti-hindi.org/rasoi/sujhav/chai.jpgकच्चे आलू को पीसकर चेहर पर दस मिनट तक लगाएँ और फिर सादे पानी से धो दें। इससे हर प्रकार के दाग धब्बे और झांईं दूर हो कर त्वचा पर निखार आता है।
टमाटर के गूदे में मट्ठा मिलाकर लगाने से धूप से जली हुई त्वचा को आराम मिलता है और वह जल्दी स्वस्थ हो जाती है।
एक गिलास पानी में दो चम्मच चाय डालकर अच्छी तरह उबालें और छानकर ठंडा होने के बाद फ्रिज में रखें। धूप में बाहर निकलने पहले चेहरे और हाथों-पैरों में यह पानी लगा लेने से त्वचा झुलसेगी नहीं।

मई २०१०


गेंदे और गुलाब की पंखुड़ियाँ व नीम की पत्तियों को एक कटोरी पानी में उबालकर चेहरे पर लगाने से मुहाँसे दूर होते हैं।
http://www.abhivyakti-hindi.org/rasoi/sujhav/tulsi.jpgप्रतिदिन एक बाल्टी पानी (दस लीटर) में दो बड़े चम्मच गुलाबजल मिलाकर नहाने से त्वचा स्वस्थ व सुंदर होती है।
नारियल के तेल में नीबू का रस मिलाकर सिर में लगाएँ और एक घंटे बाद धो दें। इससे सिर की खुश्की को आराम मिलता है।
तुलसी के पत्तों का रस निकाल कर उसमें बराबर मात्रा मे नीबू का रस मिला कर चेहरे पर लगाने से झाईं दूर होती है।
दो चम्मच सोयाबीन का आटा, एक बड़ा चम्मच दही व शहद मिलाकर बनाए गए लेप को चेहर पर लगाने से झुर्रियाँ कम होती हैं।

जून २०१०


प्रतिदिन नाखूनों पर जैतून के तेल की हल्की मालिश करने से नाखूनों का टूटना रुक जाता है।
http://www.abhivyakti-hindi.org/images/2010/kamal2.gifआँखों के काले घेरों से छुटकारा पाने के लिए मिल्क पाउडर में नीबू का रस मिलाकर आँखों के चारों ओर हल्की मालिश करें।
कमल की पत्तियों को पीस कर झुलसी त्वचा पर लगाने से त्वचा की जलन दूर होती है और झुलसने का निशान भी चला जाता है।
उड़द की छिलके वाली दाल को उबालकर उसके पानी से बाल धोने पर वे सुंदर और आकर्षक दिखाई देते हैं।

जुलाई २०१०


एक एक-एक चम्मच ग्लिसरीन, गुलाबजल और नींबू का रस मिलाकर हाथों से मलें और सूख जाने पर धो दें। इससे सख्त हाथ मुलायम हो जाएँगे।
उँगलियों पर ज़रा-सा बादाम या जैतून का तेल लेकर नियमित रूप से भौंहों और बरौनियों पर लगाने से वे घनी और चमकदार बन जाती हैं।
http://www.abhivyakti-hindi.org/rasoi/sujhav/hair.jpgबालों में चमक लाने के लिए १ प्याला पानी मे ३ बडे चम्मच सफेद सिरका मिलाकर लगाएँ और १५ मिनट बाद धो दें।
आँखों के पास गहरे घेरों और सूजन के लिए खीरे के पतले टुकड़ों को आँखों पर रखकर बीस मिनट आराम करें, फिर चेहरा धो दें।

अगस्त २०१०


मुहाँसों से मुक्ति पाने के लिये चुटकी भर कपूर में पुदीने और तुलसी की पत्तियों का रस मिलाकर प्रभावित स्थान पर लगाएँ।
http://www.abhivyakti-hindi.org/rasoi/sujhav/hands.jpgकोमल हाथों के लिये तून के तेल से हाथों की मालिश करें, फिर इन्हें दो से पाँच मिनट तक नमक मिले पानी में भिगोकर रखें।
सुंदर चेहरे के लिये बदाम, गुलाब के फूल, चिरौंजी और पिसा जायफल रात को दूध में भिगोएँ और सुबह पीसकर मुख पर लगाएँ।
नारियल को कसकर निकाले गए ताज़े दूध को चेहरे पर लगाने से त्वचा स्वस्थ व आकर्षक बनती है।
बराबर मात्रा में गाजर और खीरे का एक गिलास रस नियमित रूप से लेने पर बाल, नाखून और त्वचा स्वस्थ रहते हैं।

सितंबर २०१०


कच्चे दूध में रूई का फाहा भिगोकर चेहरा साफ़ करने से कील मुहाँसे और झाँई दूर होकर त्वचा स्वस्थ बनती है।
हल्दी और चंदन का चूर्ण दूध में भिगोकर चेहरे पर लगाने से थकी और मुरझाई त्वचा स्वस्थ होती है।
तरबूज़ के रस को चेहरे पर लगाएँ और सूख जाने पर धो दें। इससे दाग धब्बे दूर होते हैं तथा त्वचा साफ़ होकर निखर जाती है।
मसूर की दाल और दूध के उबटन में घी मिलाकर शरीर पर लगाने से त्वचा नर्म और चमकदार बन जाती है।

अक्तूबर २०१०


छह चम्मच पेट्रोलियम जेली, दो चम्मच ग्लीसरीन और दो चम्मच नीबू के रस को मिलाकर फ्रिज में एक जार में रख दें। सप्ताह में दो बार हाथ पैर में इसकी मालिश करने से रूखी त्वचा को आराम मिलता है।
मेथी की पत्तियों का लेप बनाकर चेहरे पर लगाने से कील मुँहासे और झाँई दूर हो जाते हैं।
त्वचा का रूखापन दूर करने के लिये जैतून का तेल, दूध और शहद बराबर मात्र में मिलाकर चेहरे पर लगाएँ और २० मिनट बाद गुनगुने पानी से धो दे।
चेहरे, हाथों और पैरों पर थोड़ा सा एरंड तैल (कैस्टर ऑयल) लगा कर हल्की मालिश करने से झुर्रियाँ दूर होती हैं।

VARSHNEY.009
29-06-2013, 12:16 PM
बाएँ से दाएँ १. प्रभाव में आया हुआ (४) ३. समय की छूट (४) ६. किले की चार दीवारी (३) ७. समानार्थक (५) ८. प्रतिष्ठा (२) ९. साधु (२) १०. लीपना पोतना (३) १३. राजा (४) १५. दूल्हा (२) १७. मस्सा (२) १८. कुरूप एवं कुविचार वाली स्त्री (४) २०. जिससे मिलकर शब्द बनते हैं (३) २२. मीठा पेय (४) २३. तहत, के आधीन (५) 1 १ २
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२० २१

२२
२३ ऊपर से नीचे- १. तेजस्वी (५) २. इंद्रिय सुख (३) ३. जूता सीने वाला (२) ४. प्रति (२) ५. गर्मी, सूर्य (३) ६. पुरातन (३) ८. धूप (३) ९. समझौता (२) ११. वर्षा ऋतु (३) १२. ऊँगली का एक भाग (२) १४. तिलक लगा कर उत्तराधिकारी निश्चित करना (५) १६. चोटी (३) १७. शिव (३) १९. नाई (३) २०. वर्तमान में, तत्काल बाद (२) २१. घायल (२

VARSHNEY.009
02-07-2013, 10:27 AM
अच्छे स्वास्थ्य का आधार अंकुरित आहार


अंकुरित दानों का सेवन केवल सुबह नाश्ते के समय ही करना चाहिये।
अंकुरित आहार शरीर को नवजीवन देने वाला अमृतमय आहार कहा गया है।
अंकुरित भोजन क्लोरोफिल, विटामिन (`ए´, `बी´, `सी´, `डी´ और `के´) कैल्शियम, फास्फोरस, पोटैशियम, मैगनीशियम, आयरन, जैसे खनिजों का अच्छा स्रोत होता है।
अंकुरीकरण की प्रक्रिया में अनाज/दालों में पाए जाने वाले कार्बोहाइट्रेड व प्रोटीन और अधिक सुपाच्य हो जाते हैं।

अंकुरित आहार को अमृताहर कहा गया है अंकुरित आहार भोजन की सप्राण खाद्यों की श्रेणी में आता है। यह पोषक तत्वों का श्रोत मन गया है । अंकुरित आहार न सिर्फ हमें उन्नत रोग प्रतिरोधी व उर्जावान बनाता है बल्कि शरीर का आंतरिक शुद्धिकरण कर रोग मुक्त भी करता है । अंकुरित आहार अनाज या दालों के वे बीज होते जिनमें अंकुर निकल आता हैं इन बीजों की अंकुरण की प्रक्रिया से इनमें रोग मुक्ति एवं नव जीवन प्रदान करने के गुण प्राकृतिक रूप से आ जाते हैं।
अंकुरित भोजन क्लोरोफिल, विटामिन (`ए´, `बी´, `सी´, `डी´ और `के´) कैल्शियम, फास्फोरस, पोटैशियम, मैगनीशियम, आयरन, जैसे खनिजों का अच्छा स्रोत होता है। अंकुरित भोजन से काया कल्प करने वाला अमृत आहार कहा गया है अर्थात् यह मनुष्य को पुनर्युवा, सुन्दर स्वस्थ और रोगमुक्त बनाता है। यह महँगे फलों और सब्जियों की अपेक्षा सस्ता है, इसे बनाना खाना बनाने की तुलना में आसान है इसलिये यह कम समय में कम श्रम से तैयार हो जाता है। बीजों के अंकुरित होने के पश्चात् इनमें पाया जाने वाला स्टार्च- ग्लूकोज, फ्रक्टोज एवं माल्टोज में बदल जाता है जिससे न सिर्फ इनके स्वाद में वृद्धि होती है बल्कि इनके पाचक एवं पोषक गुणों में भी वृद्धि हो जाती है।
खड़े अनाजों व दालों के अंकुरण से उनमें उपस्थित अनेक पोषक तत्वों की मात्रा दोगुनी से भी ज्यादा हो जाती है, मसलन सूखे बीजों में विटामिन 'सी' की मात्रा लगभग नहीं के बराबर होती है लेकिन अंकुरित होने पर लगभग दोगुना विटामिन सी इनसे पाया जा सकता है। अंकुरण की प्रक्रिया से विटामिन बी कॉम्प्लेक्स खासतौर पर थायमिन यानी विटामिन बी१, राइबोप्लेविन यानी विटामिन बी२ व नायसिन की मात्रा दोगुनी हो जाती है। इसके अतिरिक्त 'केरोटीन' नामक पदार्थ की मात्रा भी बढ़ जाती है, जो शरीर में विटामिन ए का निर्माण करता है। अंकुरीकरण की प्रक्रिया में अनाज/दालों में पाए जाने वाले कार्बोहाइट्रेड व प्रोटीन और अधिक सुपाच्य हो जाते हैं। अंकुरित करने की प्रक्रिया में अनाज पानी सोखकर फूल जाते हैं, जिनसे उनकी ऊपरी परत फट जाती है व इनका रेशा नरम हो जाता है। परिणामस्वरूप पकाने में कम समय लगता है और वे बच्चों व वृद्धों की पाचन क्षमता के अनुकूल बन जाते हैं।
अंकुरित करने के लिये चना, मूँग, गेंहू, मोठ, सोयाबीन, मूँगफली, मक्का, तिल, अल्फाल्फा, अन्न, दालें और बीजों आदि का प्रयोग होता है। अंकुरित भोजन को कच्चा, अधपका और बिना नमक आदि के प्रयोग करने से अधिक लाभ होता है। एक दलीय अंकुरित (गेहूं, बाजरा, ज्वार, मक्का आदि) के साथ मीठी खाद्य (खजूर, किशमिश, मुनक्का तथा शहद आदि) एवं फल लिए जा सकते हैं।

द्विदलीय अंकुरित (चना, मूंग, मोठ, मटर, मूंगफली, सोयाबीन, आदि) के साथ टमाटर, गाजर, खीरा, ककड़ी, शिमला मिर्च, हरे पत्ते (पालक, पुदीना, धनिया, बथुआ, आदि) और सलाद, नींबू मिलाकर खाना बहुत ही स्वादिष्ट और स्वास्थ्यदायक होता है। इसे कच्चा खाने बेहतर है क्यों कि पकाकर खाने से इसके पोषक तत्वों की मात्रा एवं गुण में कमी आ जाती है। अंकुरित दानों का सेवन केवल सुबह नाश्ते के समय ही करना चाहिये। एक बार में दो या तीन प्रकार के दानों को आपस में मिला लेना अच्छा रहता है। यदि ये अंकुरित दाने कच्चे खाने में अच्छे नहीं लगते तो इन्हें हल्का सा पकाया भी जा सकता है। फिर इसमें कटे हुए प्याज, कटे छोटे टमाटर के टुकड़े, बारीक कटी हुई मिर्च, बारीक कटा हुई धनिया एकसाथ मिलाकर उसमें नींबू का रस मिलाकर खाने से अच्छा स्वाद मिलता है।
अंकुरण की विधि -


अंकुरित करने वाले बीजों को कई बार अच्छी तरह पानी से धोकर एक शीशे के जार में भर लें शीशे के जार में बीजों की सतह से लगभग चार गुना पानी भरकर भीगने दें अगले दिन प्रातःकाल बीजों को जार से निकाल कर एक बार पुनः धोकर साफ सूती कपडे में बांधकर उपयुक्त स्थान पर रखें ।
गर्मियों में कपडे के ऊपर दिन में कई बार ताजा पानी छिडकें ताकि इसमें नमी बनी रहे।
गर्मियों में सामान्यतः २४ घंटे में बीज अंकुरित हो उठते हैं सर्दियों में अंकुरित होने में कुछ अधिक समय लग सकता है । अंकुरित बीजों को खाने से पूर्व एक बार अच्छी तरह से धो लें तत्पश्चात इसमें स्वादानुसार हरी धनियाँ, हरी मिर्च, टमाटर, खीरा, ककड़ी काटकर मिला सकते हैं द्य यथासंभव इसमें नमक न मिलाना ही हितकर है।

ध्यान दें -


अंकुरित करने से पूर्व बीजों से मिटटी, कंकड़ पुराने रोगग्रस्त बीज निकलकर साफ कर लें। प्रातः नाश्ते के रूप में अंकुरित अन्न का प्रयोग करें । प्रारंभ में कम मात्रा में लेकर धीरे-धीरे इनकी मात्रा बढ़ाएँ।
अंकुरित अन्न अच्छी तरह चबाकर खाएँ।
नियमित रूप से इसका प्रयोग करें।
वृद्धजन, जो चबाने में असमर्थ हैं वे अंकुरित बीजों को पीसकर इसका पेस्ट बनाकर खा सकते हैं। ध्यान रहे पेस्ट को भी मुख में कुछ देर रखकर चबाएँ ताकि इसमें लार अच्छी तरह से मिल जाय।

VARSHNEY.009
02-07-2013, 10:28 AM
पता स्वास्थ्य का - पत्तागोभी
क्या आप जानते हैं?

पत्तागोभी मूल रूप से एशियन सब्जी है जो ईसा से छह सौ वर्ष पूर्व यूरोप पहुँची।

बंद गोभी की फसल तीन महीने के समय में ही काटने के लिये तैयार हो जाती हैं।

पत्ता गोभी में मोटापा, कैंसर तथा अल्सर से लड़ने के प्राकृतिक तत्त्व पाए जाते हैं।

स्वादिष्ट भारतीय व्यंजन, स्वास्थ्यवर्धक कोल्सलॉ या चटपटे मंचूरियन पकौड़े, पूरे विश्व में पत्तागोभी करीब करीब हर प्रकार के भोजन में छाया रहता है। इसकी पैदावार जितनी आसान है यह पकाने और पचाने में भी उतना ही आसान है।
पत्तागोभी भी कई प्रकार का होता है। सेवोए, बोक चोए औऱ नापा पत्तागोभी चीनी व्यंजन में काम आता है, इसकी पत्तियाँ गहरे हरे रंग की और ढीली बँधी होती हैं। सेलेरी पत्तागोभी भी बोक चोए प्रकार में शामिल होता है। हरा पत्तागोभी विशेष रूप से भारतीय भोजन में प्रयोग किया जाता है। एक लाल, जामुनी रंग का पत्तागोभी भी होता है जो सलाद आदि में काम आता है। ब्रोकोली, फूलगोभी और गाँठ गोभी, ये सभी पत्तागोभी के परिवार के ही सदस्य हैं।

बंद गोभी या पत्तागोभी अनेक पौष्टिक खनिज लवण और विटामिन का स्रोत है। इसमें प्रोटीन, वसा, नमी, फाईबर तथा कर्बोहाइड्रेट भी अच्छी मात्रा में होता है। खनिज लवण तथा विटामिन की बात करें तो पत्तागोभी में कैल्सियम, फास्फोरस, आयरन, कैरोटीन, थायमिन, राइबोफ्लेविन, नियासिन तथा विटामिन सी भी प्रचुर मात्रा में होता है। इसमें क्लोरीन तथा सल्फर भी पाया जाता है और अपेक्षाकृत आयोडीन का प्रतिशत भी अधिक होता है। सल्फर, क्लोरीन तथा आयोडीन साथ में मिल कर आँतों और आमाशय की म्यूकस परत को साफ करने में मदद करते हैं। इसके लिए कच्चै पत्तागोभी को नमक लगा कर खाना चाहिए।

अपच या कब्ज की परेशानी में पत्तागोभी एक बेजोड़ इलाज की तरह काम करता है। अपने भोजन में सिर्फ कच्चे पत्तागोभी को बारीक काट लें और उस पर नमक, नींबू का रस और काली मिर्च लगा कर खाएँ। यह बिना किसी दुष्प्रभाव के आराम देगी।

पत्तागोभी में अलसर से बचाव के गुण होते हैं। पत्तागोभी के १८०-३६० मिली रस को दिन में तीन बार लेने से पाचन तंत्र के ड्यूडेनम भाग में अल्सर की शिकायत दूर होती है। पत्तागोभी में विटामिन यू होता हैं जो कि अल्सर अवरोधक माना जाता है। यह विटामिन पकाने से नष्ट हो जाता है इसलिए बहुत सी तकलीफों में प्राकृतिक रूप में पत्तागोभी का सेवन ही लाभ पहुँचा सकता है।

पत्तागोभी में टारट्रोनिक अम्ल होता है, जो शरीर में शर्करा और कार्बोहाइड्रेट को वसा में बदलने से रोकता है। इसमें विटामिन सी और विटामिन बी की मात्रा भी होती है। विटामिन सी मोटापे को कम करता है और विटामिन बी शरीर के चयअपचय दर को बढ़ाए रखता है। इसलिए वजन कम करना हो तो पत्तागोभी का सेवन अधिक करना चाहिए। अपने भोजन का एक भाग पत्तागोभी के नाम कर दिया जाए तो वजन कम करने में बड़ी ही सहायता रहेगी। १०० ग्राम पत्तागोभी में करीब २७ कैलोरी होती है। देखा जाए तो १०० ग्राम आटे की रोटी से २४० कैलोरी मिलती हैं। इसे खाने से पेट तो भरेगा ही और साथ में कैलोरी भी कम जाएगी। पत्तागोभी में कम कैलोरी के साथ बहुत अधिक जैविक गुण होते हैं। इसमें निहित विटामिन बी तंत्रिका तंत्र को आराम पहुँचाने में सहायक होता है।

विटामिन ए और ई की उपस्थिति से त्वचा और आँखों से संबंधित तकलीफों में भी पत्तागोभी बहुत लाभ पहुँचाता है। छाले, घाव, फोड़े-फुंसी तथा चकत्तों जैसी परेशानियों में पत्तागोभी के पत्तों की पट्टी लगाने से बहुत आराम मिलता है। इस काम के लिए पत्तागोभी की बाहरी मोटी पत्तियाँ बेहतर रहती हैं। पूरी साबुत पत्तियों को ही पट्टी की तरह काम में लेना चाहिए। इसकी पट्टी बनाने के लिए पत्तियों को गरम पानी से बहुत अच्छी तरह धोकर तौलिये से अच्छी तरह सुखा कर बेलन से बेलते हुए नरम कर लेना चाहिए। इसकी मोटी, उभरी हुई नसों को निकाल कर बेलने से यह नरम हो जाएगा। फिर इसे गरम करके घाव पर समान रूप से लगाना चाहिए। इन पत्तियों को सूती कपड़े में या मुलायम ऊनी कपड़े में डाल कर काम में ले सकते हैं। इससे पूरे दिन भर के लिए या रात भर सिकाई कर सकते हैं। जले हुए पत्तागोभी की राख भी त्वचा की बहुत सी बीमारियों में आराम पहुँचाता है।

पत्तागोभी में विभिन्न प्रकार के ऐसे तत्व होते हैं जो उम्र के साथ शरीर पर पड़ने वाले प्रभावों से निजात दिला सकते हैं। बढ़ती उम्र की परेशानियाँ घटाने में बंदगोभी मदद कर सकती हैं। रक्त वाहिनी में जमाव को रोकने में, गाल ब्लैडर में पथरी की शिकायत में बंदगोभी में बंद विटामिन सी तथा विटामिन बी की जोड़ी बहुत सहायता कर सकती है। रक्त वाहिनियों को ताकत भी पहुँचाता है।

इसके अनेक गुणों का शरीर पर सकारात्मक असर लाने के लिए इसका सही प्रकार से सेवन करना बहुत ज़रूरी है। इसे सलाद की तरह कच्चा खाया जा सकता है या फिर हल्का सा उबाल कर। चाहें तो इसे पका सकते हैं। पर बेहतर असर पाना चाहते हों तो पत्तागोभी को इसके प्राकृतिक रूप में ही खाएँ, क्योंकि इसमें बहुत से ऐसे तत्व होते हैं जो कि पकाने के बाद नष्ट हो जाते हैं। कच्चा खाने से यह जल्दी हजम भी होती है।

पत्तागोभी का रस पेट में गैस कर सकता है जिसके कारण बदहजमी हो सकती है। इसलिए सलाह दी जाती है कि पत्तागोभी के रस में थोड़ी सी गाजर का रस मिला कर पीना चाहिए। इससे पेट में गैस या अन्य समस्याएँ नहीं होंगी। पका हुआ पत्तागोभी या पत्तागोभी की सब्जी खाने से भी यदि तकलीफ हो तो इसमे थोड़ी हींग मिला कर पकाएँ। बारिश के समय पत्तागोभी पर कीड़े भी हो सकते हैं इसलिए पत्तागोभी को अच्छी प्रकार से धोकर, साफ करके ही काम में लें।

सूप, सब्जी, सलाद या पास्ता, पुलाव, बर्गर, नूडल किसी भी खाने में इसे डालें। इसकी परतों को खोलते जाएँ, इसके गुणों को परखते जाएँ और सेहत के लिए बेहतर पत्तागोभी को अपनाएँ।

VARSHNEY.009
02-07-2013, 10:30 AM
सेहत का नगीना पुदीना
क्या आप जानते हैं?

पुदीने के विषय में प्रकाशित एक ताजे शोध से यह पता चला है कि पुदीने में कुछ ऐसे एंजाइम होते हैं, जो कैंसर से बचा सकते हैं।
इसकी विभिन्न प्रजातियाँ यूरोप, अमेरिका, एशिया, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया मे पाई जाती हैं।
भारत, इंडोनेशिया और पश्चिमी अफ्रीका में बड़े पैमाने पर पुदीने का उत्पादन किया जाता है।
पिपरमिंट और पुदीना एक ही जाति के होने पर भी अलग अलग प्रजातियों के पौधे हैं। पुदीने को स्पियर मिंट के वानस्पतिक नाम से जाना जाता है।

पुदीने को गर्मी और बरसात की संजीवनी बूटी कहा गया है, स्वाद, सौन्दर्य और सुगंध का ऐसा संगम बहुत कम पौधों में दखने को मिलता है। पुदीना मेंथा वंश से संबंधित एक बारहमासी, खुशबूदार जड़ी है। इसकी विभिन्न प्रजातियाँ यूरोप, अमेरिका, एशिया, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया मे पाई जाती हैं, साथ ही इसकी कई संकर किस्में भी उपलब्ध हैं।
उत्पत्ति
गहरे हरे रंग की पत्तियों वाले पुदीने की उत्पत्ति कुछ लोग योरप से मानते हैं तो कुछ का विश्वास है कि मेंथा का उद्भव भूमध्यसागरीय बेसिन में हुआ तथा वहाँ से यह प्राकृतिक तथा अन्य तरीकों से संसार के अन्य हिस्सों में फैला। लगभग तीस जातियों और पाँच सौ प्रजातियों वाला पुदीने का पौधा आज पुदीना, ब्राजील, पैरागुए, चीन, अर्जेन्टिना, जापान, थाईलैंड, अंगोला, तथा भारतवर्ष में उगाया जा रहा है। लेकिन इसकी विभिन्न जातियों में- पिपमिंट और स्पियरमिंट का प्रयोग ही अधिक होता है। भारतवर्ष में मुख्यतया तराई के क्षेत्रों (नैनीताल, बदायूँ, बिलासपुर, रामपुर, मुरादाबाद तथा बरेली) तथा गंगा यमुना दोआन (बाराबंकी, तथा लखनऊ तथा पंजाब के कुछ क्षेत्रों (लुधियाना तथा जलंधर) में उत्तरी-पश्चिमी भारत के क्षेत्रों में इसकी खेती की जा रही है। पूरे विश्व का सत्तर प्रतिशत स्पियर मिंट अकेले संयुक्त राज्य में उगाया जाता है। पुदीने के विषय में प्रकाशित एक ताजे शोध से यह पता चला है कि पुदीने में कुछ ऐसे एंजाइम होते हैं, जो कैंसर से बचा सकते हैं।
रासायनिक संघटन

जापानी मिन्ट, मैन्थोल का प्राथमिक स्रोत है। ताजी पत्ती में ०.४-०.६% तेल होता है। तेल का मुख्य घटक मेन्थोल (६५-७५%), मेन्थोन (७-१०%) तथा मेन्थाइल एसीटेट (१२-१५%) तथा टरपीन (पिपीन, लिकोनीन तथा कम्फीन) है। तेल का मेन्थोल प्रतिशत, वातावरण के प्रकार पर भी निर्भर करता है। पुदीने में विटामिन एबीसीडी और ई के अतिरिक्त लोहा, फास्फोरस और कैल्शियम भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं।

उपयोग
मेन्थोल का उपयोग बड़ी मात्रा में दवाईयों, सौदर्य प्रसाधनों, कालफेक्शनरी, पेय पदार्थो, सिगरेट, पान मसाला आदि में सुगंध के लिये किया जाता है। इसके अलावा इसका उड़नशील तेल पेट की शिकायतों में प्रयोग की जाने वाली दवाइयों, सिरदर्द, गठिया इत्यादि के मल्हमों तथा खाँसी की गोलियों, इनहेलरों, तथा मुखशोधकों में काम आता है। यूकेलिप्टस के तेल के साथ मिलाकर भी यह कई रोगों में काम आता है। अमृतधारा नामक बहुउपयोगी आयुर्वेदिक औषधि में भी सतपुदीने का प्रयोग किया जाता है। विशेष रूप से गर्मियों में फैलने वाली पुदीने की पत्तियाँ औषधीय और सौंदर्योपयोगी गुणों से भरपूर है। इसे भोजन में रायता, चटनी तथा अन्य विविध रूपों में उपयोग में लाया जाता है। संस्कृत में पुदीने को पूतिहा कहा गया है, अर्थात् दुर्गंध का नाश करनेवाला। इस गुण के कारण पुदीना चूइंगम, टूथपेस्ट आदि वस्तुओं में तो प्रयोग किया ही जाता है, चाट के जलजीरे का प्रमुख तत्त्व भी वही होता है। गन्ने के रस के साथ पुदीने का रस मिलाकर पीने को स्वास्थ्यवर्धक माना गया है। सलाद में इसकी पत्तियाँ डालकर खाने में भी यह स्वादिष्ट और पाचक होता है। कुछ नहाने के साबुनों, शरीर पर लगाने वाली सुगंधों और हवाशोधकों (एअर फ्रेशनर) में भी इसका प्रयोग किया जाता है।

औषधीय गुण
स्वदेशी चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद में पुदीने के ढेरों गुणों का बखान किया गया है। यूनानी चिकित्सा पद्धति हिकमत में पुदीने का विशिष्ट प्रयोग अर्क पुदीना काफ़ी लोकप्रिय है। हकीमों का मानना है कि पुदीना सूचन को नष्ट करता है तथा आमाशय को शक्ति देता है। यह पसीना लाता है तथा हिचकी को बंद करता है। जलोदर व पीलिया में भी इसका प्रयोग लाभदायक होता है। आयुर्वेद के अनुसार पुदीने की पत्तियाँ कच्ची खाने से शरीर की सफाई होती है व ठंडक मिलती है। यह पाचन में सहायता करता है। अनियमित मासिकघर्म की शिकार महिला के शारीरिक चक्र में प्रभावकारी ढंग से संतुलन कायम करता है। यह भूख खोलने का काम करता है। पुदीने की चाय या पुदीने का अर्क यकृत के लिए अच्छा होता है और शरीर से विषैले तत्वों को बाहर निकालने में बहुत ही उपयोगी है। मेंथॉल ऑइल पुदीने का ही अर्क है और दांतो से संबंधित समस्याओं को दूर करने में सहायक होता है। जहरीले जंतुओं के काटने पर देश के स्थान पर पुदीने का रस लगा देने से विष का शमन होता है तथा पुदीने की सुगंध से बेहोशी दूर हो जाती है। अंजीर के साथ पुदीना खाने से फेफड़ों में जमा बलगम निकल जाता है।
कुछ घरेलू नुस्खे-


पुदीने की पत्तियों का ताजा रस नीबू और शहद के साथ समान मात्रा में लेने से पेट की हर बीमारियों में आराम दिलाता है।
पुदीने का रस कालीमिर्च और काले नमक के साथ चाय की तरह उबालकर पीने से जुकाम, खाँसी और बुखार में राहत मिलती है।
इसकी पत्तियाँ चबाने या उनका रस निचोड़कर पीने से हिचकियाँ बंद हो जाती हैं।
सिरदर्द में ताजी पत्तियों का लेप माथे पर लगाने से दर्द में आराम मिलता है।
मासिक धर्म समय पर न आने पर पुदीने की सूखी पत्तियों के चूर्ण को शहद के साथ समान मात्रा में मिलाकर दिन में दो-तीन बार नियमित रूप से सेवन करने पर लाभ मिलता है।
पेट संबंधी किसी भी प्रकार का विकार होने पर एकचम्मच पुदीने के रस को एक प्याला पानी में मिलाकर पिएँ।
अधिक गर्मी या उमस के मौसम में जी मिचलाए तो एक चम्मच सूखे पुदीने की पत्तियों का चूर्ण और आधी छोटी इलायची के चूर्ण को एक गिलास पानी में उबालकर पीने से लाभ होता है।
पुदीने की पत्तियों को सुखाकर बनाए गए चूर्ण को मंजन की तरह प्रयोग करने से मुख की दुर्गंध दूर होती है और मसूड़े मजबूत होते हैं।
एक चम्मच पुदीने का रस, दो चम्मच सिरका और एक चम्मच गाजर का रस एकसाथ मिलाकर पीने से श्वास संबंधी विकार दूर होते हैं।
पुदीने के रस को नमक के पानी के साथ मिलाकर कुल्ला करने से गले का भारीपन दूर होता है और आवाज साफ होती है।
पुदीने का रस रोज रात को सोते हुए चेहरे पर लगाने से कील, मुहाँसे और त्वचा का रूखापन दूर होता है।

VARSHNEY.009
02-07-2013, 10:30 AM
सुगंधित पत्तियों का संसार
क्या आप जानते हैं?


सुगंधित पत्तियों वाली हरी सब्ज़ियाँ विटामिन और खनिज का सर्वश्रेष्ठ ख़ज़ाना हैं।
वे पका कर खाई जा सकती हैं, सलाद में महीन-महीन काट कर मिलाई जा सकती हैं और शोरबे की सुगंध और स्वाद को दुगना कर सकती हैं।
वे आसानी से उगाई जा सकती हैं, फूलों के साथ सजाई जा सकती हैं और शीतल पेय बनाने के काम भी आ सकती हैं।
सुगंध का स्वाद के साथ गहरा संबंध है और सुगंधित पत्तियाँ भोजन में रूप रस गंध इन तीनों की एक साथ पूर्ति करती हैं।

पुदीना : पुदीने के ताज़गीवाले स्वाद से कौन परिचित नहीं। चाहें चटनी में इस्तेमाल करें या आम के पने में इसके ताज़े हरे पत्ते शरीर को तरावट देने के सर्वोत्तम साधन हैं। रायते में पुदीने को पीस कर मिलाया जा सकता है और ठंडे सूप में खीरे का जवाब नहीं। गरम भोजन हो और पका कर खाना हो तो पुलाव और कवाब में पुदीने की पत्तियाँ अनोखा स्वाद देती हैं। सुखा कर भी इसका प्रयोग किया जा सकता है। चाट मसाले, रायते और फलों की चाट में पुदीने की सूखी पत्तियों का मोटा चूरा अनोखा स्वाद देता है।
तेजपात :
तेजपात गरम मसाले का प्रमुख अंग है। इसे सुखा कर प्रयोग में लाया जाता है। छौंक के समय खड़े गरम मसाले की तरह जीरे और बड़ी इलायची के साथ इसको तेल या घी में डालना चाहिए। हर तरह के शोरबेदार शाकाहारी या मांसाहारी व्यंजन में, प्याज़ अदरख लहसुन के मसाले वाली करी में और सूप व दाल के छौंक में तेजपात का स्वाद करारा अहसास देता है। पुलाव के छौंक में भी इसका प्रयोग भोजन में सुगंध व स्वाद बढ़ाता है।
मेथी :
मेथी की सुगंध और स्वाद भारतीय भोजन का विशेष अंग है। इन पत्तों को कच्चा खाने की परंपरा नहीं है। आलू के साथ महीन महीन काट कर सूखी सब्ज़ी या मेथी के पराठे आम तौर पर हर घर में खाए जाते हैं। लेकिन गाढ़े सागों के मिश्रण में इसका प्रयोग लाजवाब सुगंध देता है, उदाहरण के लिए सरसों के साग, मक्का मलाई या पालक पनीर के पालक में। गुजराती थेपलों में मेथी के निराले स्वाद से सब परिचित हैं और मठरियों में मेथी का मज़ा भी अनजाना नहीं। मेथी के पत्तों को सुखा कर भी प्रयोग में लाया जा सकता है। मसाले के शोरबे में एक चुटकी सूखी पत्तियों का चूरा स्वाद का कमाल दिखाता है। सूखी सब्ज़ियों में यह चूरा गरम मसाले के साथ मिला कर बाद में डालना चाहिए।
थाइम :
ऑलिव, लहसुन, प्याज और टमाटर के साथ मटन में इसका प्रयोग स्वाद और सुगंध के लिए किया जाता है। इसे सूप में भी मिलाया जा सकता है। मटन के कीमे में बरीक कटी हरी मिर्च और नींबू के छिलके के साथ इसकी पत्तियाँ मिला कर कबाब बनाए जा सकते हैं। गोभी और मिश्रित सब्ज़ियों के पकौड़ों में भी इसका प्रयोग किया जा सकता है। तुलसी की पत्तियों की तरह इसकी चाय सर्दी से बचाव करती है।
पार्सले :

मेथी की तरह पार्सले का प्रयोग आलू के साथ सब्ज़ी बनाने में किया जा सकता है। महीन काट कर हर तरह के सलाद में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है, सूखी सब्ज़ियों में मिलाया जा सकता है और सूप में भी डाला जा सकता है। भोजन की सजावट में धनिये की तरह इसका इस्तेमाल होता है। उबले हुए आलू में ऑलिव आयल, चीज़ या मेयोनीज़ के साथ इसकी पत्तियों की महीन कतरन बढ़िया सलाद बना सकती है। लहसुन के साथ भी इसकी सुगंध मनभावन लगती है।

धनिया : हरी सुगंधित पत्तियों की बात हो तो धनिये का नंबर सबसे पहले आता है। हर तरह की सूखी और रसेदार सब्ज़ी में परोसते समय मिलाने और सजावट करने में धनिये की पत्तियों का इस्तेमाल होता है। धनिये की चटनी हर भारतीय भोजन का मुख्य अंग है। आलू की चाट और दूसरी चटपटी चीज़ों में इसको टमाटर या नीबू के साथ मिलाया जा सकता है। सूप और दाल में बहुत महीन काट कर मिलाने पर रंगत और स्वाद की ताज़गी़ अनुभव की जा सकती है। हर तरह के कोफ्ते और कवाब में भी यह खूब जमता है। इसकी पत्तियों को पका कर या सुखा कर नहीं खाया जाता क्यों कि ऐसा करने पर वे अपना स्वाद और सुगंध खो देती हैं।
मीठी नीम :
मीठी नीम की हरी पत्तियाँ हर दक्षिण भारतीय भोजन की जान हैं। आमतौर पर इनको छौंक के समय साबुत प्रयोग में लाया जाता है। पोहे, उपमा, सांभर या मांसाहारी शोरबे में इनका प्रयोग काफी लोकप्रिय है। इन्हें पीस कर दही के साथ मिला कर स्वादिष्ट छाछ भी बनाया जाता है। नारियल के दूध का शोरबा बनाते समय इन्हें पीस कर मिलाया जा सकता है। फ्रिज में पोलीथीन के बैग में इन्हें लंबे समय तक रखा जा सकता है। इन्हें सुखा कर बोतल में बंद कर के भी रखा जा सकता है। बाद में साबुत या चूरे के रूप में इनका प्रयोग किया जा सकता है।
सेज :
मांसाहारी भोजन में सेज की सुगंध स्वाद को भी बढ़ा देती है। व्यंजन पूरा पक जाने के बाद इसको महीन महीन काट कर मिलाना चाहिए। टमाटर के साथ सलाद में और चीज़ के साथ इसका स्वाद निराला होता है। इसलिए भारतीय भोजन में पनीर के भरवा टमाटरों में सेज की सुगंध बड़ी अच्छी लगती है। इसको सलाद में महीन काट कर मिलाया जा सकता है और पराठों में भी इसका प्रयोग हो सकता है। उबले हुए आलू के भुर्ते में ढेर से सेज की महीन कतरी हुई पत्तियाँ भी स्वादिष्ट लगती हैं और कद्दू की सूखी या रसेदार सब्ज़ी के साथ भी इसकी जोड़ी जमती है।
बासिल :
अपनी सुगंध और कोमलता के कारण सलाद में इसका काफी प्रयोग होता है। हर तरह के पास्ता और सलाद में इनका प्रयोग प्रमुखता से होता है। सफ़ेद रंग के हर्बल सॉस में चीज़ के साथ इसका प्रयोग होता है। मशरूम, टमाटर और अंडे के व्यंजनों में भी इसकी सुगंध अच्छी लगती है। भारतीय भोजन में मक्के के दानों की सब्ज़ी, उबले हुए आलू के भुर्ते और मिश्रित सागों में इसका प्रयोग अच्छा लगता है।
ओरेगॅनो :
तेज़ और कड़क स्वाद वाला यह पत्ता ताज़ा या सूखा, दोनों तरह का बराबरी से उपयोग में लाया जाता है। पिज़ा और गार्लिक ब्रेड में इसका स्वाद सारी दुनिया में पहचाना जाता है। पास्ता के हर प्रकार के सॉस और सूखी सब्ज़ियों में इसका प्रयोग किया जा सकता है। पराठों और पूरियों में भी ऑरगेनो की सुगंध अच्छी लगती है।

VARSHNEY.009
02-07-2013, 10:30 AM
सलाद में छुपा स्वास्थ्य http://www.abhivyakti-hindi.org/ss/2009/lettuce.jpg क्या आप जानते हैं?

अच्छी तरह से धुले और पानी सूखे हुए सलाद के पत्ते को फ्रिज में हवाबंद डिब्बे में करीब ५-६ दिन तक रख सकते हैं।
ऐसा अनुमान है कि प्रति अमरीकी व्यक्ति औसतन ११ पौंड सलाद के पत्ते का प्रति वर्ष सेवन कर लेता है।
सलाद की आइसबर्ग प्रजाति की तुलना में रोमन सलाद में विटामिन सी लगभग छः गुना तथा विटामिन ए आठ गुना आधिक होता है।
सलाद के पत्ते के बाहर की ज्यादा हरी पत्तियों में अंदर की पत्तियों की तुलना में अधिक पोषक होते हैं। इसलिए उन्हें ज़रूर खाना चाहिए।
सलाद के पत्ते वनस्पति में पाये जाने वाले हीमोग्लोबिन का बहुत अच्छा स्रोत हैं।

सलाद में डलने वाली सब्जियों में सलाद के पत्ते का नाम शायद सबसे पहले आता होगा। पत्तागोभी की तरह दिखने वाली इस सब्जी के कई सारे गुण हैं जिनसे हम लोग शायद अनभिज्ञ होंगे। सलाद के पत्ते की पैदावार करीब २५०० वर्षों से की जा रही है। खासकर रोम के लोग इसकी विभिन्न प्रकार की प्रजातियों को उगाते थे परंतु अब एशिया व यूरोप के लोग भी रुचि लेते हैं। सलाद के पत्ते की लगभग सौ से ज़्यादा किस्में उगाई जाती हैं। परंतु मुख्यतः चार प्रकार के - बटरहैड, क्रिस्पहैड, लीफ तथा रोमेन- सलाद के पत्ते होते हैं।

सलाद के पत्ते पाचन में सहायक होते हैं तथा यकृत ( लिवर) के लिये भी लाफदायक होते है। इसके सेवन से हृदय की बीमारियाँ तथा आघात की संभावना कम हो जाती है। कुछ शोधों में यह भी पता चला है कि यह कैंसर में भी फायदा करता है।

सलाद के पत्तों में कैल्सियम, फोस्फोरस, आयरन, केरोटीन, थियामीन, राईबोफ्लेविन, नियासीन तथा विटामिन सी जैसे कई विटामिन तथा मिनरल काफी अच्छी मात्रा में होते हैं। इसके अलावा प्रोटीन, वसा, फाईबर, कार्बोहाइड्रेट भी मौजूद होता है। कैलोरी की दृष्टि से यदि देखा जाए तो लगभग १०० ग्राम सलाद के पत्तों में २१ कैलोरी होती हैं। सलाद के पत्ते खरीदते समय ध्यान रखना चाहिए कि पत्ते ताज़ा, हरे रंगवाले तथा थोड़ा जानदार हों यानी नर्म और मुरझाए हुए न हों। गुच्छे की पत्तियाँ थोड़ी खुली या ढीली हों क्योंकि बंद पत्ते वाले सलाद के गुच्छे में सूरज की किरणें अंदर तक नहीं पहुँच पाती जिससे उसमें विटामिन की मात्रा कम रहती है। सलाद के पत्ते जितने अधिक हरे होंगे उसमें विटामिन की मात्रा उतनी ही ज्यादा होगी।

सलाद के पत्ते में रोगनाशक क्षमता होती है। दिमाग़, तंत्रिका तंत्र या नर्वस सिस्टम तथा फेफड़ों (लंग्स) के लिए सलाद के पत्ते बहुत अच्छे होते हैं। सलाद के पत्ते का रस ठंडा तथा ताज़गी भरा होता है। हरी पत्तियों वाले सलाद के पत्ते के रस में मैग्नीशियम की अच्छी मात्रा होने के कारण यह मांसपेशियों तथा दिमाग़ के लिये फायदेमंद माना जाता है। सलाद के पत्ते के रस को गुलाब के तेल के साथ मिला कर माथे पर मालिश करने से बेहतर नींद आती है तथा सिर दर्द में भी आराम मिलता है। इसमें सेल्यूलोज भी होता है जिससे यह पाचन को ठीक करता है तथा कब्ज की शिकायत को भी दूर कर सकता है।

इसका एक बहुत उम्दा गुण यह है इसमें लेक्टुकेरियम मौजूद होता है जो दिमाग़ को ताज़गी देने के साथ साथ नींद को बढ़ाता है। इससे उन लोगों को बहुत आराम मिलता है जिन्हें इन्सोम्निया या नींद न आने की बीमारी है। इसके बीज के रस को पीने से तनाव दूर होता है तथा बेहतर नींद आती है। शरीर में लोहे की कमी को पूरा करने के लिये यह बहुत अच्छा पोषक है और ऐसा माना जाता है कि इसमें मौजूद आयरन या लौहतत्व, किसी अन्य अकार्बनिक लोहे की बजाय, शरीर में बहुत आसानी से ग्रहण हो जाता है। स्नायुतंत्र की कई बीमारियों में सलाद के पत्ते का रस एक चम्मच गूसबेरी रस के साथ यदि हर रोज़ पिया जाए तो बहुत फायदा करता है।

गर्भावस्था के दौरान भी सलाद के पत्ते खाना बहुत लाभदायक होता है। कम कैलोरी में इससे ज़्यादा ख़ुराक मिल जाती है। विशेष रूप से इसमें मौजूद फोलिक एसिड, जिसकी गर्भावस्था के समय तथा बाद में भी शरीर को आवश्यकता रहती है, अच्छी मात्रा में पाया जाता है। फोलिक एसिड मेगालोब्लास्टिक एनिमिया को रोकता है। तथा जिनमें बार बार गर्भपात की संभावना रहती है उन्हें भी कच्चे सलाद के पत्ते खाने की सलाह दी जाती है। कच्चे सलाद के पत्ते खाने से महिलाओं के शरीर में प्रोजेस्टेरोन होरमोन के स्राव पर भी प्रभाव पड़ता है।

भोजन के तुरंत बाद सलाद के पत्ते चबाने से दाँतों की बहुत सी बीमारियों जैसे गिंगिविटिस, पायरिया, हेलीटोसिस, स्टोमेटिटिस आदि से निजात मिल सकती है। जिह्वा पर उपस्थित स्वादग्राही तंतुओं तथा इनेमल के क्षय में भी रूकावट पड़ती है। प्रतिदिन आधा लीटर सलाद के पत्ते तथा पालक के रस को पीने से बालों का झड़ना भी कम होता है।

सलाद के पत्ते को उपयोग में लेने से पहले हमेशा हर पत्ती को अच्छे तरह धोकर व पोंछकर काम में लेना चाहिए जिससे उसके ऊपर लगा पानी पूरी तरह निकल जाए। सलाद के पत्ते को काटने की बजाए हाथ से ही तोड़ कर काम में लेना चाहिए जिससे उसके किनारे भूरे होने से बच जाते हैं।

VARSHNEY.009
02-07-2013, 10:31 AM
सर्वोत्तम प्रोटीन सोयाबीन
क्या आप जानते हैं-


बढ़ती उम्र के साथ हमारी नष्ट होती कोशिकाओं को रोकने में सोयाबीन बहुत सहायक होता है।



सोयाबीन में स्थित प्रोटीन कई तरह के कैंसर को रोकने में इतना अधिक सहायक होता है? कि इसे कैंसर निरोधक कहा जाता है।



रक्त कोलेस्टेरॉल को सोया प्रोटीन तीन हफ्तों में २१ प्रतिशत कम कर देता है।

देखने में सोयाबीन चाहे कितना ही छोटा नज़र आता हो? लेकिन इसमें बुढ़ापे को दूर रखने वाली कमाल की शक्ति है। उपचयनरोधी तत्वों से परिपूर्ण सोयाबीन हमारी कोशिकाओं को पुष्ट करता है।

आयु के मौलिक सिद्धांत के जन्मदाता डेनहेम हरमन के अनुसार बढ़ती उम्र के साथ हमारी नष्ट होती कोशिकाओं को रोकने में सोयाबीन बहुत सहायक होता है। इसमें स्थित अमीनो एसिड उपचयन में कम सिद्धहस्त होते हैं जिसके फलस्वरूप माँस से प्राप्त प्रोटीन के विपरीत यह प्रोटीन शरीर के वांछित तत्वों को बाहर नहीं निकालता और कोशिकाओं की उम्र को बढ़ाता है। शायद इसीलिए शाकाहारी लोगों की उम्र अधिक होती है। संसार में सबसे अधिक सोयाबीन जापान के लोग खाते हैं। शायद इसीलिए यहाँ के लोग दीर्घजीवी होते हैं।

सोयाबीन जहां उपचयन रोधी (एन्टी आक्सीटेन्ट) तत्वों से भरपूर पावरहाउस हैं? वहीं इसमें रोगाणुओं के विरूद्ध लड़ने वाले दूसरे तत्व भी मौजूद रहते हैं। वैज्ञानिकों का कहना हैं? कि सोयाबीन में स्थित प्रोटीन कई तरह के कैंसर को रोकने में इतना अधिक सहायक होता है कि इसे कैंसर निरोधक कहा जाता है। विदेशी वैज्ञानिक स्टीफन बर्ने के अनुसार इसमें पाया जाने वाला जेनेसटीन स्तन और प्रोस्टेट कैंसर को रोकने में सहायक होता है।

जेनिसटीन केमिकल कैंसर को हर अवस्था में उसकी जड़ों में पहुँचकर उसे बढ़ने से रोकता है। यह एन्जाइना को, जो बाद में कैंसर जीन में परिवर्तित हो जाते हैं, नष्ट कर देता है। टैस्टट्यूब में यह प्रत्यक्षतः हर किस्म के कैंसर, स्तन, बड़ी आँत, फेफड़े, प्रोस्टेट, त्वचा और खून में पाए जाने वाले कैंसर की वृद्धि को रोकता है।

पशुओं पर आजमाए गए एक शोध द्वारा वैज्ञानिक बर्ने ने सिद्ध किया? कि सोयाबीन में पाया जाने वाला जेनिसटीन केमिकल पशुओं को दिए जाने पर स्तन कैंसर 40 से लेकर 65 प्रतिशत तक कम हो गया। उनके अनुसार महिलाओं में कैंसर अधिक होने का कारण उनके आहार में वसा की अधिकता नहीं? बल्कि सोयाबीन की कमी हैं। क्योंकि वे सोयाबीन का पर्याप्त मात्रा में सेवन नहीं करतीं। अमेरिकन महिलाओं की तुलना में केवल एक चौथाई जापानी महिलाओं को ही स्तन कैंसर होता है। कारण? वे सोयाबीन का पर्याप्त मात्रा में नियमित सेवन करती हैं। अभी हाल के एक अध्ययन से पता चला है? कि सिंगापुर में ऐसी महिलाएँ जिन्होंने सोया प्रोटीन अत्यधिक लिया था? उन्हें स्तन कैंसर कम हुआ? जबकि साधारण मात्रा में सोया प्रोटीन लेने वाली महिलाओं को स्तन कैंसर अधिक हुआ।

सोयाबीन के केमिकल? स्तन कैंसर से दो प्रकार से लड़ते हैं? पहला तो कोशिकाओं पर इनका सीधे तौर से कैंसररोधी प्रभाव होता हैं? दूसरे यह कैंसररोधी दवाई टमैक्सोफीन के प्रभाव को बढ़ा देता है। इस तरह सोयाबीन स्तन कैंसर के शुरू होने और उसे बढ़ाने से रोकने? दोनों ही कामों में काफी मदद करता है। पश्चिमी देशों के मुकाबले जापानी आदमियों में प्रोस्टेट कैंसर का प्रतिशत बहुत कम है। जापान में अगर कैंसर हो भी जाए? तो वह शरीर में जल्दी से बढ़ नहीं पाता? बल्कि धीरे-धीरे खत्म हो जाता हैं।

अन्य बीमारियों से लड़ने में भी सक्षम :

सोयाबीन जर्जर हो रही अशुद्ध रक्तवाहिनी नलिकाओं को मजबूती प्रदान करता है। धमनियों के रोगों को सोयाबीन प्रोटीन नष्ट करता है। इटली के एक शोधकर्ता के शोध से पता चला है कि मांस और डेयरी उत्पादों से प्राप्त प्रोटीन से उत्पन्न उच्च रक्त कोलेस्टेरॉल को सोया प्रोटीन तीन हफ्तों में २१ प्रतिशत कम कर देता है। इसलिए उच्च कोलेस्टेरॉल युक्त आहार खाने वाले लोगों को सोयाबीन अवश्य लेना चाहिए।

मधुमेह रोगी भी सोयाबीन पर पूर्ण विश्वास कर सकते हैं। यह खून के विकार से लड़ाई करता है और ब्लडशुगर के स्तर का संतुलन बराबर बनाए रखता है। मधुमेह के साथ-साथ यह दिल से संबंधित बीमारियों की वृद्धि को भी रोकता है। सोयाबीन में दो एसिड होते हैं? ग्लीसीन और आरजीनीन? जो इन्सुलिन को नियंत्रित रखते हैं।

सोया प्रोटीन के स्थान पर माँस के रूप में प्रोटीन लेने से शरीर बहुत-सा कैलशियम मूत्र द्वारा बाहर निकल जाता है। एक अध्ययन द्वारा पता चला है? कि महिलाओं का प्रतिदिन 50 मिली ग्राम कैल्शियम शरीर से बाहर निकल गया? जब वे माँस-मछली खाती थीं? लेकिन जब वे उतना ही प्रोटीन सोया के रूप में लेती थी? तब उनमें ये लक्षण दिखाई नहीं दिए।

जापानवासियों का बुढ़ापारोधी सूप :

बुढ़ापे को दूर रखने के लिए सोया दूध? सोया आटा? सोया फली? सोया मिसो सूप तथा कच्चा सोया के रूप में प्रोटीन खूब खाना चाहिए। सोया सॉस और सोयाबीन तेल में बहुत कम मात्रा में बुढ़ापे को दूर रखने वाले तत्व होते हैं। मिसो सूप? जो कि सोया में खमीर उठाकर बनाया जाता है? शरीर के लिए बहुत फायदेमंद होता है। यह बुढ़ापे को रोकता है।

VARSHNEY.009
02-07-2013, 10:31 AM
सदाबहार सेब http://www.abhivyakti-hindi.org/ss/images/seb.jpg क्या आप जानते है?

सेब एक ऐसा फल है जो विश्व में हर जगह बारहों महीने मिलता है।
लोगों का विश्वास है कि एक सेब रोज़ खाने से सभी बिमारियाँ दूर रहती हैं।
विश्व मे सेब की ७००० से अधिक प्रजातियाँ उगाई जाती हैं।



सेब ताज़ा है या नहीं यह देखने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि इसे पानी में डाल दिया जाय। ताज़ा सेब पानी पर तैरता है क्योंकि इसमें २५ प्रतिशत मात्रा हवा की होती है।
सेब को काटने के बाद अगर नमक के पानी से धो दिया जाए तो वे काले नहीं पड़ते।

कहते हैं कि सत्रहवीं शताब्दी में महिलाएँ अपने रंग को निखारने के लिए पशु वसा में सेब के गूदे को मिला कर बना हुआ लेप चेहरे पर लगाती थीं। आज भी 'दिन में एक सेब रोज़ खाने से डॉक्टर दूर रहता है' इस कहावत को हर कोई सच मानता है। सेब में बहुत ही ज़्यादा पौष्टिक तत्व होते हैं। खनिज और विटामिनों से भरापूरा है यह सेब। साथ ही इसमें रेशों की मात्रा खूब होती है और कोलेस्ट्राल बिलकुल नहीं होते। सेब को छील कर नहीं खाना चाहिए। जब हम सेब का छिलका निकालते हैं तो छिलके के बिलकुल नीचे रहने वाला विटामिन सी काफी मात्रा में नष्ट हो जाता है।
लौह, आर्सेनिक और फॉस्फोरस से युक्त यह फल शरीर की कमज़ोरी में बड़ा ही लाभदायक होता है। ख़ास कर इसका रस निकाल कर पिएँ। सेब का रस पीने के लिए सही समय खाने से आधा घण्टा पहले और सोने से पहले है।
कच्चा सेब खाने से कब्ज और पका हुआ सेब खाने से दस्त की शिकायत दूर हो सकती है। छोटे बच्चों को दस्त के समय पके हुए सेब का गूदा बना कर दिन में कई बार देने से दस्त तो कम होते ही हैं, साथ-साथ कमज़ोरी भी दूर हो जाती है।
पके हुए सेब को छीलकर नमक डाल कर सुबह खाली पेट खाने से सरदर्द ठीक हो सकता है। उच्च रक्तचाप वालों को सेब फ़ायदेमंद है। यह गुर्दे में सोडियम क्लोराइड की मात्रा संतुलित रखता है।
सेब के छिलके भी स्वास्थ्यवर्धक हैं। इन्हें पानी में अच्छी तरह उबाल लें। बाद में पानी को छान लें। इस पानी से आँख धोने से आँखों की जलन दूर होती है। सेब में मुँह को भी साफ़ रखने वाले विशेष तत्व होते है, जो और किसी भी फल में नहीं। इससे मुँह की लार का स्राव अच्छा होता है जो अपने दाँतों के स्वास्थ्य के लिए अच्छा है।
सेब को बीमारियों से बचाने के लिए कीटनाशक छिड़के जाते है, इसलिए सेब खाने से पहले अच्छी तरह धो लेना आवश्यक है।

VARSHNEY.009
02-07-2013, 10:31 AM
संक्रांति का सखा तिल
क्या आप जानते हैं?

तिल एक ऐसा भोजन है तो मकर संक्रांति के पर्व से जुड़ा हुआ है।

आयुर्वेद में तिल को तीव्र असरकारक औषधि के रूप में जाना जाता है।

अलीबाबा चालीस चोर वाली कहानी में खुल जा सिमसिम वाले सिमसिम शब्द का अर्थ तिल है।

तिल एक ऐसा भोजन है तो मकर संक्रांति के पर्व से जुड़ा हुआ है। इस दिन इसको पकाना खाना और दान करना शुभ माना जाता है। आदिकाल से तिल धार्मिक रीति-रिवाजों में इस्तेमाल होता आया है। शादी-ब्याह के मौकों पर हवन आदि में तिल के प्रयोग का पौराणिक महत्त्व सिद्ध है। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी तिल को बुरी आत्माओं से बचाने वाला माना जाता है। इसके औषधि गुणों के कारण ही इसे स्वास्थ्यवर्धक एवं मानसिक शांति प्रदान करने वाला कहा गया है।

तिल के गुण और प्रकार

आयुर्वेद में तिल को तीव्र असरकारक औषधि के रूप में जाना जाता है। काले और सफेद तिल के अतिररिकत लाल तिल भी होता है। सभी के अलग-अलग गुणधर्म हैं। यदि पौष्टिकता की बात करें तो काले तिल शेष दोनों से अधिक लाभकारी हैं। सफेद तिल की पौष्टिकता काले तिल से कम होती है जबकि लाल तिल निम्नश्रेणी का तिल माना जाता है। महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि तिल में चार रस होते हैं। इसमें गर्म, कसैला, मीठा और चरपरा स्वाद भी पाया जाता है। तिल हजम करने के लिहाज से भारी होता है। खाने में स्वादिष्ट और कफनाशक माना जाता है। यह बालों के लिए लाभप्रद माना गया है। दाँतों की समस्या दूर करने के साथ ही यह श्वास संबंधी रोगों में भी लाभदायक है। स्तनपान कराने वाली माताओं में दूध की वृद्धि करता है। पेट की जलन कम करता है तथा बुद्धि को बढ़ाता है। बार-बार पेशाब करने की समस्या पर नियंत्रण पाने के लिए तिल का कोई सानी नहीं है। चूँकि यह स्वभाव से गर्म होता है इसलिए इसे सर्दियों में मिठाई के रूप में खाया जाता है। गजक, रेवड़ियाँ और लड्डू शीत ऋतु में ऊष्मा प्रदान करते हैं।

तिल में निहित पौष्टिक तत्व

तिल में विटामिन ए और सी छोड़कर वे सभी आवश्यक पौष्टिक पदार्थ होते हैं जो अच्छे स्वास्थ्य के लिए अत्यंत आवश्यक होते हैं। तिल विटामिन बी और आवश्यक फैटी एसिड्स से भरपूर है। इसमें मीथोनाइन और ट्रायप्टोफन नामक दो बहुत महत्त्वपूर्ण एमिनो एसिड्स होते हैं जो चना, मूँगफली, राजमा, चौला और सोयाबीन जैसे अधिकांश शाकाहारी खाद्य पदार्थों में नहीं होते। ट्रायोप्टोफन को शांति प्रदान करने वाला तत्व भी कहा जाता है जो गहरी नींद लाने में सक्षम है। यही त्वचा और बालों को भी स्वस्थ रखता है। मीथोनाइन लीवर को दुरुस्त रखता है और कॉलेस्ट्रोल को भी नियंत्रित रखता है। तिलबीज स्वास्थ्यवर्द्धक वसा का बड़ा स्त्रोत है जो चयापचय को बढ़ाता है।

यह कब्ज भी नहीं होने देता। तिलबीजों में उपस्थित पौष्टिक तत्व,जैसे-कैल्शियम और आयरन त्वचा को कांतिमय बनाए रखते हैं। तिल में न्यूनतम सैचुरेटेड फैट होते हैं इसलिए इससे बने खाद्य पदार्थ उच्च रक्तचाप को कम करने में मदद कर सकता है। सौ ग्राम सफेद तिल से १००० मिलीग्राम कैल्शियम प्राप्त होता हैं। काले और लाल तिल में लौह तत्वों की भरपूर मात्रा होती है जो रक्तअल्पता के इलाज़ में कारगर साबित होती है। तिल में उपस्थित लेसिथिन नामक रसायन कोलेस्ट्रोल के बहाव को रक्त नलिकाओं में बनाए रखने में मददगार होता है। तिल के तेल में प्राकृतिक रूप में उपस्थित सिस्मोल एक ऐसा एंटी-ऑक्सीडेंट है जो इसे ऊँचे तापमान पर भी बहुत जल्दी खराब नहीं होने देता। आयुर्वेद चरक संहित में इसे पकाने के लिए सबसे अच्छा तेल माना गया है।

मकर संक्रांति और तिल

मकर संक्रांति के पर्व पर तिल का विशेष महत्त्व माना जाता है। वैसे तो तिल केवल खाने की चीज है, लेकिन इस दिन इसे दान देने की परम्परा भी प्रचलित है। इस दिन तिल के उबटन से स्नान करके ब्राह्मणों एवं गरीबों को तिल एवं तिल के लड्डू दान किये जाते हैं। यह मौसम शीत ऋतु का होता है, जिसमें तिल और गुड़ से बने लड्डू शरीर को गर्मी प्रदान करते हैं। प्राचीन ग्रंथों में कहा गया है कि संक्रांति के दिन तिल का तेल लगाकर स्नान करना, तिल का उबटन लगाना, तिल की आहुति देना, पितरों को तिल युक्त जल का अर्पण करना, तिल का दान करना एवं तिल को स्वयं खाना, इन छह उपायों से मनुष्य वर्ष भर स्वस्थ, प्रसन्न एवं पाप रहित रहता है।

तिल के विभन्न उपयोग

तिल-गुड़ के लड्डू बनाने के अलावा इन्हें ब्रेड, सलाद और मिठाइयों पर सजावट करने के लिए भी प्रयोग किया जाता है। अनेक प्रकार की गजक और तिलपट्टी में इनका उपयोग होता है। ब्रेड, नान तथा अन्य प्रकार की रोटियों में भी तिल का प्रयोग होता है। तिल का तेल पूरे विश्व में प्रयोग में लाया जाता है। बहुत कम लोग जानते हैं कि तैल शब्द की व्युत्पत्ति तिल शब्द से ही हुई है। जो तिल से निकतला है वह है तैल। तिल का यह तेल अनेक प्रकार के सलादों में प्रयोग किया जाता है। तिल गुड़ का पराठा, तिल गुड़ और बाजरे से मिलाए गए ठेकुए उत्तर भारत में विशेष रूप से प्रचलित हैं। सारे अरबी उप महाद्वीप में तिल को पीसकर उसे जैतून के तेल के साथ मिलाकर हमूस या ताहिनी बनाया जाता है जो दैनिक जीवन का एक महत्त्वपूर्ण व्यंजन है। मांसाहार में भी इसका व्यापक प्रयोग होता है। करी को गाढ़ा करने के लिये छिकक्ल रहित तिल को पीसकर मसाले में भूनने की भी प्रथा अनेक देशों में है।

इतिहास में तिल-

जहाँ भारतीय इतिहास में तिल का उल्लेख वेद, चरक संहिता और आयुर्वेद में मिलता है वही अरबी संस्कृति की लोक कथाओं में अनेक स्थानों पर इसका नाम लिया गया है। अलीबाबा चालीस चोर की कहानी में सिमसिम शब्द का प्रयोग तिल के लिये ही किया गया है। यही सिमसिम यूरोप तक पहुँचते पहुँचते बिगड़कर अंग्रेजी सिसेम हो गया। ईसा से ५००० हजार वर्ष पूर्व चीनी ग्रंथों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि तिल निकाले गए तेल से वे लोग न केवल कुप्पियाँ जलाते थे बल्कि कुप्पियों में जमा कालिख से ठप्पे छापने का काम भी किया जाता था। इस बात का उल्लेख भी मिलता है कि प्राचीन अफ्रीकी, बेन्ने नामक इस खाद्य पदार्थ को अपने साथ अमेरिका लाए जहाँ यह दक्षिण अमरीकियों के भोजन का एक आवश्यक अंग बन गया। असीरियन पौराणिक कथाओं के अनुसार देवता जब विश्व की रचना करने बैठे उस भोज में तिल से बनी हुई मदिरा प्रस्तुत की गई।

तिल के घरेलू सुझाव-


कब्ज दूर करने के लिये तिल को बारीक पीस लें एवं प्रतिदिन पचास ग्राम तिल के चूर्ण को गुड़, शक्कर या मिश्री के साथ मिलाकर फाँक लें।
पाचन शक्ति बढ़ाने के लिये समान मात्रा में बादाम, मुनक्का, पीपल, नारियल की गिरी और मावा अच्छी तरह से मिला लें, फिर इस मिश्रण के बराबर तिल कूट पीसकर इसमें में मिलाएँ, स्वादानुसार मिश्री मिलाएँ और सुबह-सुबह खाली पेट सेवन करें। इससे शरीर के बल, बुद्धि और स्फूर्ति में भी वृद्धि होती है।
प्रतिदिन रात्रि में तिल को खूब चबाकर खाने से दाँत मजबूत होते हैं।
यदि कोई जख्म हो गया हो तो तिल को पानी में पीसकर जख्म पर बांध दें, इससे जख्म शीघ्रता से भर जाता है।
तिल के लड्डू उन बच्चों को सुबह और शाम को जरूर खिलाना चाहिए जो रात में बिस्तर गीला कर देते हैं। तिल के नियमित सेवन करने से शरीर की कमजोरी दूर होती है और रोग प्रतिरोधकशक्ति में वृद्धि होती है।
पायरिया और दाँत हिलने के कष्ट में तिल के तेल को मुँह में १०-१५ मिनट तक रखें, फिर इसी से गरारे करें। इससे दाँतों के दर्द में तत्काल राहत मिलती है। गर्म तिल के तेल में हींग मिलाकर भी यह प्रयोग किया जा सकता है।
पानी में भिगोए हुए तिल को कढ़ाई में हल्का सा भून लें। इसे पानी या दूध के साथ मिक्सी में पीसलें। सादा या गुड़ मिलाकर पीने से रक्त की कमी दूर होती है।
जोड़ों के दर्द के लिये एक चाय के चम्मच भर तिलबीजों को रातभर पानी के गिलास में भिगो दें। सुबह इसे पी लें। या हर सुबह एक चम्मच तिलबीजों को आधा चम्मच सूखे अदरक के चूर्ण के साथ मिलाकर गर्म दूध के साथ पी लें। इससे जोड़ों का दर्द जाता रहेगा।
तिल गुड़ के लड्डू खाने से मासिकधर्म से संबंधित कष्टों तथा दर्द में आराम मिलता है।
भाप से पकाए तिलबीजों का पेस्ट दूध के साथ मिलाकर पुल्टिस की तरह लगाने से गठिया में आराम मिलता है।

VARSHNEY.009
02-07-2013, 10:32 AM
स्वास्थ्य-वर्धक संतरे http://www.abhivyakti-hindi.org/ss/images/santare.jpg क्या आप जानते हैं?

भारत, चीन, भूटान और मलेशिया को संतरे का उद्गम स्थल माना जाता है।
१५वीं शताब्दी से पहले यूरोप में लोग संतरे के बारे में नहीं जानते थे।
यूरोप के लिए संतरे की खोज अपनी यात्राओं के दौरान कोलंबस ने की थी।
संतरे का मिठाइयों में सबसे अधिक प्रयोग होता है कहीं सुगंध के लिए तो कहीं स्वाद के लिए।
भारत में नागपुर नारंगी नगर या ओरेंज सिटी के नाम से जाना जाता है।

संतरा सेहत के लिए अच्छा है यह बात जगमान्य है। कहते है, संतरा सेहत देने के साथ साथ शरीर की सफ़ाई भी करता है। इस सफ़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं संतरे के रेशे। संतरे के रस में इन रेशो की कमी होती है इसलिए संतरे को उसके रस से अधिक महत्व देना चाहिए। संतरे में विटामिन ए, बी, सी और कैलशियम काफी मात्रा में पाए जाते है। विटामिन सी के लिए तो संतरे का कोई पर्याय नही है। इसका विटामिन सी मांसपेशियों के लिये भोजन में से कैलाशियम अवशोषित करने में मदद करता है। सूर्यकिरणों के द्वारा संतरे का स्टार्च शक्कर में परिवर्तित हो जाता है। यह शक्कर मानव रक्त में अपेक्षाकृत शीघ्रता से समाहित होती है। इसी कारण संतरा खाने के बाद एकदम चुस्ती महसूस होती है।
नियमित रूप से संतरे को आहार में शामिल करने से सर्दी, खांसी या रक्तस्त्राव की शिकायत नहीं रहती। शरीर सशक्त और दीर्घायु बनता हैं। रात को सोते समय और फिर से सुबह संतरा खाने से हाजमा ठीक रहता है।
संतरे के छिलके भी गुणकारी है। फुन्सी, छालों और मुहासों पर संतरे का ताज़ा छिलका पीस कर लगाने से संक्रमण का भय नहीं रहता। साथ ही यह चेहरे के दाग धब्बों को भी दूर करता है। संतरे का छिलका सुखा कर और उसका चूर्ण बना कर अनेक दवाओं में प्रयोग किया जाता है। शहद के साथ संतरे का रस दिल की बीमरी में फ़ायदेमंद होता है। यह एक अच्छा सेहतमंद पेय है। बच्चों को दिन में ६० से १२० मिली लीटर रस रोज़ देना चाहिए जबकि एक वयस्क के लिए इसकी मात्रा २०० मिली लीटर मानी गई है। संतरे का रंग बहुत ही सुंदर होता है लेकिन आज कल तरह-तरह की कीटाणुनाशक दवाओं से खबरदार रहना ज़रूरी है।
संतरा अपने स्वास्थ्यवर्धक गुणों के कारण आज पूरी दुनिया में लोकप्रिय है किन्तु पन्द्रहवीं शताब्दी से पहले यूरोप के देशों को संतरे की जानकारी नहीं थी। कुछ लोगों का विश्वास है कि कोलंबस ने अपनी यात्राओं के दौरान इसकी खोज की और यूरोप को इससे परिचित कराया। उस समय इसका सेवन दुर्लभ फल के रूप में केवल धनी परिवारों तक सीमित था। १६वीं शताब्दी में जब स्पेन के नाविकों ने अमरीका की नियमित यात्राएँ शुरू कीं तो यह फल यूरोप से अमरीका पहुँच गया।
आजकल लगभग संपूर्ण विश्व में संतरे की खेती होती है। पैदावार की दृष्टि से ब्राज़ील, अमेरिका, मेक्सिको, स्पेन, इटली, चीन, मिस्र, टर्की, मोरोक्को और ग्रीस देश सबसे अधिक संतरों का उत्पादन करते हैं। फ्लोरिडा में ८४००० एकड़ से भी ज़्यादा ज़मीन पर संतरे की खेती की जाती है। करीब १२५ मिलीयन डॉलर कीमत के ३४ मिलीयन बक्सों में संतरे भर कर दुनियाभर में भेजे जाते हैं। भारत में नागपुर और उसके आसपास के स्थान संतरे की अच्छी और अधिक पैदावार के लिए प्रसिद्ध हैं। नागपुर में संतरों की एक बड़ी मंडी भी है और इस नगर को नारंगी नगर या आरेंज सिटी के नाम से भी जाना जाता है।
केवल संतरा ही नहीं, संतरे का रस निकालने पर बचनेवाला गूदा और छिलके भी बड़े काम की चीज़ होते हैं। बचे हुए बीज और छिलके केक, कैन्डी, शीतपेय आदि में इस्तेमाल होते हैं। इसको हर प्रकार के खाद्य पदार्थो में रंग और सुगंध के रूप में प्रयोग किया जाता है। भोजन के अतिरिक्त रूम फ्रेशनर, सौन्दर्य प्रसाधन और हर प्रकार के साबुनों मे भी संतरे की सुगंध का प्रयोग होता है।

VARSHNEY.009
02-07-2013, 10:32 AM
लाभदायक लीची http://www.abhivyakti-hindi.org/ss/images/lychee.jpg क्या आप जानते हैं?

लीची की खेती सर्वप्रथम दक्षिण चीन में पहली शताब्दी के आसपास शुरू हुई थी।
लीची विटामिन सी और पोटेशियम का महत्वपूर्ण स्रोत है।
रम्बुटान नामक फल का गूदा स्वाद और शक्ल में बिलकुल लीची जैसा होता है।
लीची को पूरा पकने के बाद ही तोड़ा जा सकता है क्यों कि पेड़ से तोड़ लेने के बाद लीची के फल का पकना बन्द हो जाता है।

लीची हमेशा तरोताज़ा रहने वाले ऊँचे पेड़ों पर लगती है। घनी हरी पत्तियों के बीच गहरे लाल रंग के बड़े-बड़े गुच्छों में लटके लीची के फल देखते ही बनते हैं। ये पेड़ उष्ण अथवा शीतोष्ण कटिबन्धों में बहुतायत से पाए जाते हैं, जहाँ लीची को पकने के लिए पर्याप्त गरमी मिलती है। पहली शताब्दी में दक्षिण चीन से प्रारंभ होने वाली लीची की खेती आज थाइलैंड, बांग्लादेश, उत्तर भारत, दक्षिण अफ्रीका, हवाई और फ्लोरिडा तक फैल चुकी है। इन प्रदेशों की जलवायु लीची के लिए उपयुक्त पाई गई है।
यह छोटे आकार का और पतले लेकिन छोटे, मोटे और नरम काँटों से भरे छिलके वाला फल है। इसका छिलका पहले लाल रंग का होता है और अच्छी तरह पक जाने पर थोड़े गहरे रंग का हो जाता है। अन्दर खूब मुलायम पारदर्शी से सफ़ेद रंग का मोती की तरह चमकदार गूदा होता है जो स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्धक होता है। इस गूदे के अंदर गहरे भूरे रंग का एक बड़ा बीज होता है जो खाने के काम नहीं आता।
अन्य फलों की तरह लीची भी पौष्टिक तत्वों का भंडार है। इसमें विटामिन सी, पोटैशियम और नैसर्गिक शक्कर की भरमार होती है। साथ ही पानी की मात्रा भी काफी होती है। गरमी में खाने से यह शरीर में पानी के अनुपात को संतुलित रखते हुए ठंडक भी पहुँचाता है। दस लीचियों से हमें लगभग ६५ कैलोरी मिलती हैं। ज़्यादा समय न टिक पाने की वजह से इसे एक बार पकने के बाद जल्दी खा लेना चाहिए। इसका स्वाद थोड़ा गुलाब और अंगूर से मिलता जुलता पर अनोखा ज़रूर है। आज कल यह बंद डब्बों में भी मिलने लगी है।
रम्बूटान नामक एक और फल लीची की ही सूरत, स्वाद और गुणों वाला होता है। लेकिन इसका आकार थोड़ा बड़ा होता है और इसके छिलके पर रेशे होते हैं। इन रेशों के कारण ही इसको मलेशियन भाषा में रम्बूटान कहा गया। रम्बूटान का अर्थ उनकी भाषा में बाल है। यह दक्षिण पूर्व एशिया का फल है और इसे अपेक्षाकृत अधिक गर्मी और नमी की आवश्यकता होती है।
लीची को शर्बत, फ्रूटसलाद और आइसक्रीम के साथ खाने का रिवाज़ लगभग सारी दुनिया में है लेकिन चीन में इसे अनेक मांसाहारी व्यंजनों के साथ सम्मिलित किया जाता है। चीनी संस्कृति में लीची का महत्वपूर्ण स्थान है। नये साल की फल और मेवों की थाली में इसका होना महत्वपूर्ण माना जाता है। यह घनिष्ठ पारिवारिक संबंधों की प्रतीक समझी जाती है।

VARSHNEY.009
02-07-2013, 10:33 AM
मधुर मक्का http://www.abhivyakti-hindi.org/ss/images/makka.jpg
क्या आप जानते हैं?

भुट्टा या मक्का पेट के अल्सर से छुटकारा दिलाने में सहायक है।
अधिक रेशेवाला भोजन होने के कारण यह वज़न घटाने में अत्यंत उपयोगी है।
यह कमज़ोरी में बेहतर ऊर्जा प्रदान करता है।
कार्न फ्लेक के रूप में लेने पर यह हृदयरोग की रोकथाम में सहायक होता है।
भुट्टा विश्व के सबसे अधिक लोकप्रिय खाद्यपदार्थों में से एक है।
दुनिया के हर कोने में बिकने वाला पॉप कार्न मक्के के दानों से बनाया जाता है।

गरीबों का भोजन मक्का अब अपने पौष्टिक गुणों के कारण अमीरों के मेज की शान बढ़ाने लगा है। पहले भारत में यह केवल निम्न वर्ग द्वारा ही खाया जाता था। अब कॉर्नफ्लैक के रूप में अमीरों के नाश्ते और मध्यम वर्ग द्वारा सूप, दलिया, रोटी और न जाने किन-किन रूपों में उपयोग किया जाने लगा है।
प्रोटीन और विटामिनों से भरपूर मक्का जहाँ शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है, वहीं यह बेहद सुपाच्य भी है। इसकी ख़ासियत यह है कि हर रूप में इसमें पोषक तत्व विद्यमान रहते हैं। कच्चे और पके रूप में तो यह फ़ायदेमंद होता ही है। जब इसमें विद्यमान तेल निकाल लिया जाता है और यह सूखे रूप में रह जाता है तब भी इसके अवशिष्ट में वसा को छोड़कर शेष पोषक तत्व विटामिन, प्रोटीन इत्यादि विद्यमान रहते हैं। बच्चों के सर्वांगीण विकास में मक्के का प्रयोग सहायक होता है।
ऐतिहासिक साक्ष्यों से पता चलता है कि आज से दस हज़ार वर्षों पूर्व सर्वप्रथम, मैक्सिको में भारतीयों द्वारा ही इसकी उपज पैदा की गई थी। भारत में गेहूँ के बाद मक्के का उत्पादन सर्वाधिक होता है। अमेरिका इसका सर्वाधिक निर्यात करने वाला देश है।
मक्का विभिन्न रूपों में प्रयोग में लाया जाता है। सर्दियों में मक्के के आटे से रोटी बनाई जाती है। पंजाब की मक्के की रोटी और सरसों का साग केवल उत्तर भारतीयों द्वारा ही नहीं, बल्कि पूरे भारतवासियों द्वारा शौक से खाया जाता है। बड़े-बड़े होटलों और रेस्तरां में यह सर्दियों की ख़ास डिश बन जाती है। मक्के के आटे में मूली या मेथी गूँधकर बनाई गई रोटी मक्खन और दही के साथ अत्यंत स्वादिष्ट लगती है। मक्के के आटे से पावरोटी, बिस्कुट तथा टोस्ट भी बनाए जाते हैं।
कच्चे मक्के को सुखाकर उसे दरदरा पीसकर दलिया बनाया जाता है। यह दलिया दूध में पकाकर खाने से सुस्वादु होने के साथ पौष्टिक भी होता है।
बरसात के मौसम में भूना हुआ भुट्टा छोटे-बड़े सभी के मन को भाता है। लोग भुट्टे के अलावा पॉपकार्न, भुने हुए मकई के पक्के दाने के भी दीवाने होते हैं, जो साधारण से भड़भूजे से लेकर बड़ी-बड़ी कम्पनियों द्वारा बेचे जाते हैं। पका भुट्टा उबालकर इमली की चटनी के साथ खाने में अत्यंत स्वादिष्ट लगता है। मक्के का गरम-गरम सूप पीना हर मौसम में स्वास्थ्यवर्धक होता है और स्वीट कार्न सूप का तो जवाब नहीं!
मक्का शर्बत, मुरब्बा मिठाइयों और बनावटी मक्खन बनाने में प्रयुक्त होता है और इसके रेशे मिट्टी के बर्तन, दवाइयाँ, रंगरोगन, काग़ज़ की चीज़ें और कपड़े बनाने के काम आते हैं। पशुओं के लिए खली के रूप में भी यह प्रयुक्त होता है। हृदयरोग विशेषज्ञ मक्के के तेल को खाद्य-पदार्थों में प्रयुक्त करने की सलाह देते हैं। एक किस्म की शराब और बीयर बनाने में भी इसका प्रयोग किया जाता है।
मक्के में विटामिन 'ए', 'बी-२', 'ई' फास्फोरस, पोटेशियम, कैल्शियम, आयरन, आग्जैनिक आम्ल, नारसिन, फैट और प्रोटीन पाया जाता है।
यह पेट के अल्सर और गैस्ट्रिक अल्सर के छुटकारा दिलाने में सहायक है साथ ही यह वज़न घटाने में भी सहायक होता है। कमज़ोरी में यह बेहतर ऊर्जा प्रदान करता है और बच्चों के सूखे के रोग में अत्यंत फायदेमंद है। यह मूत्र प्रणाली पर नियंत्रण रखता है, दाँत मजबूत रखता है और कार्नफ्लेक्स के रूप में लेने से हृदयरोग में भी लाभदायक होता है।

VARSHNEY.009
02-07-2013, 10:34 AM
बेमिसाल बेल http://www.abhivyakti-hindi.org/ss/images/bel.jpg क्या आप जानते है?


बेल पत्र इसी बेल नामक फल की पत्तियाँ हैं जिनका प्रयोग पूजा में किया जाता है।
आयुर्वेद में बेल को अत्यन्त गुणकारी फल माना जाता है।
यह एक ऐसा फल है जिसके पत्ते, जड़ और छाल भी उपयोगी हैं।
खाने या शर्बत बनाने के लिए खेतों-बागों में उगाए बेल तथा दवा बनाने में जंगली बेल का प्रयोग होता है।




उष्ण कटिबंधीय फल बेल के वृक्ष हिमालय की तराई, मध्य एवं दक्षिण भारत बिहार, तथा बंगाल में घने जंगलों में अधिकता से पाए जाते हैं। चूर्ण आदि औषधीय प्रयोग में बेल का कच्चा फल, मुरब्बे के लिए अधपक्का फल और शर्बत के लिए पका फल काम में लाया जाता है।
गर्मी एवं पेट के रोगों से मुक्ति प्रदान करने वाला, संस्कृत में 'बिल्व' और हिन्दी में 'बेल' नाम से प्रसिद्ध यह फल महाराष्ट्र और बंगाल में 'बेल', कोंकण में 'लोहगासी', गुजरात में 'बीली', पंजाब में 'वेल' और 'सीफल' संथाल में 'सिंजो', कठियावाड़ में 'थिलकथ' नाम से जाना जाता है। इसके गीले गूदे को 'बिल्वपेशिका' या 'बिल्वकर्कटी' तथा सूखे गूदे 'बेल सोंठ' या 'बेल गिरी' कहा जाता है।
बेल का वृक्ष १५ से ३० फुट ऊँचा और पत्तियाँ तीन और कभी-कभी पाँच पत्रयुक्त होती है। तीखी स्वाद वाली इन पत्तियों को मसलने पर विशिष्ट गंध निकलती है। गर्मियों में पत्ते गिरने पर मई में पुष्प लगते हैं, जिनमें अगले वर्ष मार्च-मई तक फल तैयार हो जाते हैं। इसका कड़ा और चिकना फलकवच कच्ची अवस्था में हरे रंग और पकने पर सुनहरे पीले रंग का हो जाता है। कवच तोड़ने पर पीले रंग का सुगन्धित मीठा गूदा निकलता है जो खाने और शर्बत बनाने के काम आता है। 'जंगली बेल' के वृक्ष में काँटे अधिक और फल छोटा होता है।
बेल के फलों में 'बिल्वीन' नाम या 'मार्मेसोलिन' नामक तत्व एक प्रधान सक्रिय घटक होता है। इसके अतिरिक्त गूदे में लबाब, पेक्टिन, शर्करा, कषायिन एवं उत्पत तेल पाए जाते हैं। ताज़े पत्तों से प्राप्त पीताभ-हरे रंग का उत्पत तेल स्वाद में तीखा और सुगन्धित होता है। इसका कच्चा फल उद्दीपक-पाचक ग्राही, रक्त स्तंभक- पक्का फल कषाण, मधुर और मृदु रेचक तथा पत्तों का रस घाव ठीक करने, वेदना दूर करने, ज्वर नष्ट करने, जुकाम और श्वास रोग मिटाने तथा मूत्र में शर्करा कम करने वाला होता है। इसकी छाल और जड़ घाव, कफ, ज्वर, गर्भाशय का घाव, नाड़ी अनियमितता, हृदयरोग आदि दूर करने में सहायक होती है।
बिल्वादि चूर्ण, बिल्व तेल, बिल्वादि घृत, बृहद गंगाधर चूर्ण, बिल्व पंचक क्वाथ आदि औषधियों में प्रयुक्त होने वाले बेल के फलों का अधिक सेवन अर्श (बवासीर) के रोगियों के लिए अहितकर होता है। इसके अतिरिक्त गूदे में बीज दोहरी झिल्ली के बीच होते हैं, जिसमें लेसदार द्रव होता है। इसे झिल्ली और बीजों सहित न निकालने पर मुख में छाले होने की संभावना रहती है। जठराग्नि मन्द हो जाने पर भूख मर जाती है। खाया-पिया हजम नहीं होता। ऐसे में बेल के पके गूदे में, पचास ग्राम पानी में फूली इमली और पचास ग्राम दही में थोड़ा बूरा मिला मिक्सी में घोंट लें। यह पेय स्वादिष्ट, पचने में आसान, भूख बढ़ाने वाला, चुस्ती देने वाला शर्बत है। कुछ दिन नियमित लें।
इसके कुछ घरेलू इलाज निम्न लिखित हैं किन्तु इनका सेवन करने से पहले आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श कर लेना उचित है।


अजीर्ण में बेल की पत्तियों के दस ग्राम रस में, एक-एक ग्राम काली मिर्च और सेंधानमक मिलाकर पिलाने से आराम मिल सकता है।
अतिसार के पतले दस्तों में ठंडे पानी से लिया ५-१० ग्राम बिल्व चूर्ण आराम पहुँचाता है। कच्चे बेल की कचरियों को धूप में अच्छी तरह सुखा लें या पंसारी से साफ़ छाँट ले आएँ। इन्हें बारीक पीस कपड़ाछान करके शीशी में भर लें। यही बिल्व चूर्ण है। छोटे बच्चों के दाँत निकलते समय दस्तों में भी यह चुटकी भर चटा दें।
आँखें दुखने पर पत्तों का रस, स्वच्छ पतले वस्त्र से छानकर एक-दो बूँद आँखों में टपकाएँ। दुखती आँखों की पीड़ा, चुभन, शूल ठीक होकर, नेत्र ज्योति बढ़ेगी।
जल जाने पर बिल्व चूर्ण, गरम किए तेल को ठंडा करके पेस्ट बना लें। जले अंग पर लेप करने से फौरन आराम आएगा। चूर्ण न होने पर बेल का पक्का गूदा साफ़ करके भी लेपा जा सकता है।
पाचन तंत्र में खराबी के कारण आंव आने लगती है, जो कुछ ही समय में रोगी को दुर्बल-असक्त बना देती है। ऐसे में बेलगिरी और आम की गुठली की गिरी बराबर मात्रा में कूट-छान लें। आधा ग्राम चूर्ण सुबह चावल की माड के साथ सेवन करें। आधा ग्राम यह चूर्ण पहले दिन दो-दो घंटे बाद चार बार, दूसरे दिन सुबह-दोपहर और तीसरे दिन सिर्फ़ सुबह लें। आंव बन्द हो जाने पर चूर्ण न लें।
कब्ज से पेट-सीने में जलन रहने पर पचास ग्रामा गूदे में, पच्चीस ग्राम पिसी हुई मिश्री और ढ़ाई सौ ग्राम जल मिलाकर शर्बत बना लें। रोज़ पीने से कब्ज़ नष्ट होकर, चेहरे पर ओज आएगा।
छाती में जमे कफ से तेज़ खाँसी उठती है। रोगी रातभर सो नहीं पाता। इसमें सौ ग्राम बेल गूदा आधा किलो पानी में हल्की आँच में पकायें। तीन सौ ग्राम रह जाने पर उतार कर छान लें। एक किलो मिश्री की एक तार चासनी बनाकर इसमें मिलाएँ। एक रती भर केसर और थोड़ी जावित्री डालकर इसे सुगंधित और पुष्टिकर बना लें। गुनगुना घूँट-घूँट कर पिएँ। सर्दियों में इस्तेमाल करने से कफ इकठ्ठा नहीं होगा।
दमा में कफ निकालने के लिए बेल की पत्तियों का काढ़ा दस-दस ग्राम सुबह-शाम शहद मिला कर पिएँ। अथवा पाँच ग्राम रस में पाँच ग्राम सरसों का शुद्ध तेल मिला कर पिलाएँ।
पचास ग्राम सूखे बेल पत्तों का चूर्ण, तीन ग्राम मात्रा में एक चम्मच शहद के साथ सुबह-शाम देने अथवा पक्के गूदे में थोड़ी मलाई मिलाकर खाने से मूत्र और वीर्य दोष नष्ट होते हैं।
ल्युकोरिया में बेलगिरी रसौत और नागकेसर समान मात्रा में कूट-पीस कर कपड़े से छान लें पाँच ग्राम चूर्ण, चावल के मांड के साथ दिन में दो या तीन बार दें।
पीलिया में बेल की कोंपलों का पचास ग्राम रस, एक ग्राम पिसी काली मिर्च मिलाकर सुबह-शाम पिलाएँ। शरीर में सूजन भी हो तो पत्र रस तेल की तरह मलिए।
सौ ग्राम पानी में थोड़ा गूदा उबालें, ठंडा होने पर कुल्ले करने से मुँह के छाले ठीक हो जाते हैं।
रक्त शुद्धि के लिए बेलवृक्ष की पचास ग्राम जड़, बीस ग्राम गोखरू के साथ पीस-छान लें। सुबह एक छोटा चम्मच चूर्ण आधा कप खौलते पानी में घोंलें। मिश्री या शहद मिला कर गरमा-गरम घूँट भरें। कुछ ही दिनों में लाभ दिखाई देने लगेगा।
सिर दर्द में बेल पत्र के रस से भीगी पट्टी माथे पर रखें। पुराना सर दर्द होने पर ग्यारह पत्तों का रस निकाल कर पी जाएँ। गर्मियों में इसमें थोड़ा पानी मिला ले। कितना ही पुराना सर दर्द ठीक हो जाएगा।
मोच अथवा अन्दरूनी चोट में बेल पत्रों को पीस कर थोड़े गुड़ में पकाइए। इसे थोड़ा गर्म पुल्टिस बन पीडित अंग पर बाँध दें। दिन में तीन-चार बार पुल्टिस बदलने पर आराम आ जाएगा।

VARSHNEY.009
02-07-2013, 10:34 AM
फ्रेंचबीन से फटाफट सेहत http://www.abhivyakti-hindi.org/ss/2009/frenchbeans.jpg क्या आप जानते हैं?

बीन्स एक ऐसी सब्ज़ी है जो कि अमेरिकन, मेक्सिकन, चाईनीज़, जापानी, उत्तरी व दक्षिणी भारतीय, यूरोपियन आदि तरह के भोजन में सामान्यतः मिलती है।
आप सलाद लें या स्टारटर्स, सूप से लेकर बर्गर टिक्की तक हर जगह बीन्स (फलियाँ) किसी न किसी रूप में आपको नज़र आ जाएँगी।
सूखी व हरी दोनो ही प्रकार की बीन्स भोजन का एक आवश्यक व पौष्टिक हिस्सा हैं।
होम्योपेथिक दवाओं में भी बीन्स बहुत काम आती है।

बीन्स की हरी पौध सब्जी के रूप में खायी जाती है तथा सुखा कर इसे राजमा, लोबिया इत्यादि के रूप में खाया जाता है। अमेरिका तथा अफ्रीका के कुछ भाग में तो बीन्स को प्रोटीन का मुख्य स्रोत माना जाता है। हरी बीन्स या सामान्य भाषा में फ्रेंच बीन्स में मुख्यत: पानी, प्रोटीन, कुछ मात्रा में वसा तथा कैल्सियम, फास्फोरस, आयरन, कैरोटीन, थायमीन, राइबोफ्लेविन, नियासीन, विटामिन सी आदि तरह के मिनरल और विटामिन मौजूद होते हैं। राइबोफ्लेविन को विटामिन बी२ के नाम से ज़्यादा जाना जाता है, विटामिन बी२ शरीर की कोशिकीय प्रक्रियाओं के लिए बहुत ही आवश्यक घटक है। बीन्स विटामिन बी२ का मुख्य स्रोत होते हैं। प्रति सौ ग्राम फ्रेंच बीन्स से तकरीबन २६ कैलोरी मिलती है। राजमा में यही सब ज़्यादा मात्रा में पाया जाता है इसलिए प्रति सौ ग्राम राजमा से ३४७ कैलोरी मिलती है। बीन्स सोल्युबल फाईबर का अच्छा स्रोत होते हैं और इस कारण ह्रदय रोगियों के लिए बहुत ही फ़ायदेमंद हैं। ऐसा माना जाता है कि एक कप पका हुआ बीन्स रोज़ खाने से रक्त में कोलेस्टेरोल की मात्रा ६ हफ्ते में १० प्रतिशत कम हो सकती है और इससे ह्रदयाघात का खतरा भी ४० प्रतिशत तक कम हो सकता है। बीन्स में सोडियम की मात्रा कम तथा पोटेशियम, कैल्सियम व मेग्नीशियम की मात्रा अधिक होती है और लवणों का इस प्रकार का समन्वय सेहत के लिए लाभदायक है। इससे रक्तचाप नहीं बढ़ता तथा ह्रदयाघात का खतरा टल सकता है।
बीन्स का 'ग्लाइसेमिक इन्डेक्स' कम होता है इसका अभिप्राय यह है कि जिस तरह से अन्य भोज्य पदार्थों से रक्त में शक्कर का स्तर बढ़ जाता है, बीन्स खाने के बाद ऐसा नहीं होता। बीन्स में मौजूद फाइबर रक्त में शक्कर का स्तर बनाए रखने में मदद करते हैं। और बीन्स की इस ख़ासियत की वजह से मधुमेह के रोगियों को बीन्स खाने की सलाह देते हैं। ऐसे उदाहरण भी हैं कि बीन्स का ज्यूस शरीर में इन्सुलिन के उत्पादन को बढ़ावा देता है। इस वजह से जिन्हें मधुमेह है या मधुमेह का खतरा है उनके लिये बीन्स खाना बहुत लाभदायक है। बीन्स का ज्यूस उत्तेजक ( स्टिम्युलेंट) होता है इसकी इसी प्रकृति के कारण यह उन लोगों को बहुत फ़ायदा करता है जो लंबी बीमारी से जूझ रहे हैं या जो बीमारी के पश्चात पूर्ण स्वास्थ्य लाभ चाहते हैं। बीन्स का १५० मिली ज्यूस हर रोज़ पीना आपके इस उद्देश्य को भली-भाँति पूरा कर देगा। फ्रेंच बीन्स किडनी से संबंधित बीमारियों में भी काफी फ़ायदेमंद है। किडनी में पथरी की समस्या हो तब आप यह नुस्खा अपनाएँ। आप ६० ग्राम बीन्स की पौध लेकर इसे चार लीटर पानी में चार घंटे तक उबाल लें। फिर इसके पानी को कपड़े से छान लें और छने हुए पानी को करीब आठ घंटे तक ठंडा होने के लिए रख दें। अब इसे फिर से छान लें पर ध्यान रखें कि इस बार इस पानी को बिना हिलाए छानना है। इसे दिन में दो-दो घंटे से पीयें, यह नियम एक हफ्ते तक दोहराएँ। इसके परिणाम आशानुरूप मिलेंगे।
होम्योपेथिक दवाओं में भी बीन्स बहुत काम आती है। ताज़ी बीन्स का उपयोग रूमेटिक, आर्थराइटिस तथा मूत्र मली में तकलीफ़ की दवाई बनाने के लिए किया जाता है। बीन्स में एन्टीआक्सीडेंट की मात्रा भी काफी होती है। एन्टीआक्सीडेंट शरीर में कोशिकाओं की मरम्मत के लिए अच्छा माना जाता है। इसलिए इसका सेवन करने से केंसर की सम्भावना कम हो जाती है। बीन्स में फाईटोइस्ट्रोजन की मात्रा होने से ऐसा माना जाता है कि इससे स्तन केंसर का खतरा भी कम हो सकता है।
हरी सब्ज़ियाँ खाना सेहत के लिए बहुत फ़ायदेमंद है, छोटी-सी बीन्स शरीर के लिए बड़े ही फ़ायदे की चीज़ है। ये शरीर के लिए एक तरह से शक्तिस्रोत का काम करती हैं। फलियों में फाईबर तथा पानी की मात्रा काफी ज़्यादा होता है और कैलोरी की मात्रा काफी कम। बस हरी बीन्स ख़रीदते हुए ध्यान रखें कि ये पीली तथा मुरझाई हुई न हो तथा यह भी याद रखें कि बीन्स को धोकर फ्रिज में न रखें इससे इसके मिनरल खत्म होने लगते हैं। जब भी बीन्स का उपयोग करना चाहें, उसे फ्रिज से निकाल कर तुरंत अच्छी तरह से धोकर काम में लें।

VARSHNEY.009
02-07-2013, 10:34 AM
फलों का फलित http://www.abhivyakti-hindi.org/ss/images/phul.jpg
क्या आप जानते है?


फल विश्व के सबसे स्वादिष्ट भोजन हैं।
फल ऐसे भोजन हैं जिन्हें खाया भी जाता है और रस निकाल कर पिया भी जाता है।
अनेक प्रकार के नमकीन व मीठे व्यंजनों में फलों का प्रयोग होता है। कहीं स्वाद के लिए कहीं रंग लाने के लिए तो कहीं सुगंध के लिए।
फलों में किसी भी प्रकार के हानिकारक कार्बन या कैलोरी नहीं होते।
फल विटामिन, रेशों और खनिज के सर्वश्रेष्ठ स्रोत हैं।
फलों में ८० प्रतिशत पानी पाया जाता है जो मानव शरीर के पानी के अनुपात के लगभग बराबर है।

अनन्नास
पौष्टिक तत्व : अनन्नास कैल्शियम, पोटैशियम, विटामिन ए और सी, और फॉस्फोरस से भरपूर फल है।
सुझाव : मीठा न होने पर थोड़ी चीनी के साथ भोजनोपरान्त काट कर खाया जाता है। सलाद में या रस निकाल कर पेय के रूप में भी प्रयोग में लाया जाता है।

सेब
पौष्टिक तत्व : क्लोरिन, तांबा, लोहा, मैगनीशियम, मॅन्गनीज तथा फोलिक ऐसिड सेब में पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है।
सुझाव : सेब के छिलके में पोषक तत्व भरपूर होते हैं इसलिए जहाँ तक संभव हो इसे छिलके समेत खाना सेहत के लिए अच्छा होता है। ताज़े फलों का रस स्वादिष्ट होता है। सेब चबाकर खाना मसूड़ों के लिए हितकारक है। सेब का मुरब्बा और चटनियाँ भी स्वादिष्ट और स्वास्थ्यकर होते हैं। नींबू
पौष्टिक तत्व : नींबू बायफ्लेवोनाइडस्, विटामिन सी और पोटैशियम से भरपूर है।
सुझाव : ज़्यादा विटामिन सी युक्त फल के सेवन से शरीर से कैल्शियम की मात्रा कम होने का ख़तरा है इसलिए ऐसे फल ज़रूरत से ज़्यादा नहीं खाने चाहिए। विटामिन सी युक्त पेय लेने के बाद थोड़ा व्यायाम करना अच्छा होता है। गर्मी के दिनों में ऐसे पेय उत्साहवर्धक लगते हैं और स्फूर्ति प्रदान करते हैं।
पपीता
पौष्टिक तत्व : कैलशियम, क्लोरिन, लोह, पपेन, विटामिन सी और ए से भरपूर है पपीता।
सुझाव : इसका रस तो बहुत गाढ़ा होता है इसलिए इच्छानुसार इसे थोड़ा पतला करके पी सकते हैं। पपीता आमतौर पर छोटे टुकड़ों में काटकर खाया जाता है। सुबह के नाश्ते के समय इसे प्रमुख स्थान दिया जाता है। विटामिन ए और सी से भरपूर होने के कारण खास तौर पर बच्चों के लिए अत्यंत लाभदायक है।
संतरा
पौष्टिक तत्व : संतरे में कैल्शियम, क्लोरिन, कॉपर, फ्लोरिन, लोहा, मॅन्गनीज, विटामिन बी१ और सी भरपूर है।
सुझाव : नींबू की प्रजाति के इस फल में छिलके के नीचे सफेद रंग की झिल्ली-सी परत होती है जिसमे बायोफ्लवोनाइड् होते हैं। यह विटामिन सी को सोखने में मददगार है, इसलिए संतरा झिल्ली समेत खाना चाहिए। ताज़े संतरे का रस निकाल कर तुरंत पीना लाभदायक है क्योंकि रखे रहने पर इसके सत्व धीरे-धीरे नष्ट होने लगते हैं। टंगेरिन नामक संतरे में शक्कर की मात्रा इस जाति के अन्य फलों से ज़्यादा होती है अत: यह फल कम खट्टा होता है और अम्ल की मात्रा भी कम होती है।
नाशपाती
पौष्टिक तत्व : नाशपाती में फॉस्फोरस, विटामिन ए, विटामिन बी१, बी२, और पोटैशियम पाया जाता है।
सुझाव : ठंडा कर के बिना काटे या फिर ४ हिस्सों में काटकर खाया जाता है। इसमें पानी भरपूर मात्रा में होता है पर यदि रस निकालना है तो तैयार रस में पानी या सेब का रस डाल कर पतला और स्वादिष्ट बनाया जा सकता है।
स्ट्रॉबेरी
पौष्टिक तत्व : इसमें कैलशियम, लोहा, फॉस्फोरस, विटामिन सी और फायबर है।
सुझाव : स्ट्राबेरी में नैसर्गिक शक्कर भारी मात्रा में होने के कारण जिन्हें मधुमेह या शक्कर से संबंधित कोई भी बीमारी हैं, इसका सेवन नहीं करना चाहिए। इसका रस गाढ़ा होता है इसलिए इसे ऐसे ही या काट कर खाना चाहिए। स्ट्रॉबेरी को कस्टर्ड, पुडिंग और क्रीम के साथ विभिन्न व्यंजनों के साथ परोसा जा सकता है।
ख़रबूज़ा
पौष्टिक तत्व : ख़रबूज़े में विटामिन ए, सी और बी कॉम्प्लेक्स सही मात्रा में पाए जाते हैं।
सुझाव : ख़रबूज़ा और इस तरह का कोई भी फल पानी से परिपूर्ण है इसलिए गरम मौसम में यह स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकर है। छिलके के नीचे ही पौष्टिक तत्व होने के कारण छिलके तक जितना गहरा खा सकते हैं, खाना चाहिए। ख़रबूज़ा और तरबूज़ डायटिंग प्रेमियों में सर्वाधिक लोकप्रिय हैं।
अंगूर
पौष्टिक तत्व : अंगूर में कैल्शियम, क्लोरिन, लोहा और बायफ्लवोनाइडस् हैं।
सुझाव : अंगूर में शक्कर की मात्रा बहुत ज़्यादा है। अंगूर जितने गहरे रंग का होता है उतना ही पौष्टिक होता है। स्वाद के अनुसार हरे या गहरे लाल रंग के अंगूर खा सकते हैं। इन्हें दूध से बने कस्टर्ड, क्रीम दही या पुडिंग में बिना पकाए डाला जा सकता है।
तरबूज़
पौष्टिक तत्व : तरबूज़े में बहुत भारी मात्रा में खनिज पदार्थ, विटामिन, नैसर्गिक शक्कर और करीब नब्बे प्रतिशत पानी है।
सुझाव :अच्छी तरह पका हुआ लाल रंग का तरबूज़ मीठा और ठंडा कर के काट कर खाने में मज़ा आता है। ब्लेंडर में डाल कर इसका रस बनाया जा सकता है। रस को अन्य रसों के साथ मिला कर स्वादिष्ट भी बनाया जा सकता है।
आम
पौष्टिक तत्व : विटामिन ए, ई और सी, लोह से भरा है आम।
सुझाव : बहुत ज़्यादा आम खाने से शरीर की गरमी बढ़ सकती है। पर कटे हुए आम या अमरस और आम के रस की किसी के साथ तुलना नहीं।
केला
पौष्टिक तत्व : केले में पोटैशियम, सोडियम, फॉस्फोरस, विटामिन ए, बी१, बी२ और विटामिन सी होते हैं।
सुझाव : स्टार्च और और घुलने वाले रेशे से भरा केला छ: महीने के छोटे बच्चे को भी खिला सकते हैं। पूरा पका केला शक्कर से भरपूर होता है। केले का शेक भी स्वादिष्ट होता है।

VARSHNEY.009
02-07-2013, 10:34 AM
पौष्टिक गुणों से मालामाल मूली http://www.abhivyakti-hindi.org/ss/images/mooli2.jpg
क्या आप जानते हैं?


औक्सिका मैक्सिको में क्रिसमस की पूर्व संध्या को मूली संध्या के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन मूली को विभिन्न पशुओं के आकार में काट कर सजाया जाता है।
अमरीकी ४०० मिलियन पाउन्ड मूली प्रतिवर्ष खा कर खतम कर देते हैं। इसमें से अधिकतर का प्रयोग सलाद के रूप में होता है।

प्राचीनकाल में जैतून के तेल के आविष्कार होने से पहले, मिस्र के लोग मूली के बीजों का तेल प्रयोग में लाते थे।
हार्स रैडिश या घोड़ा मूली, मूली नहीं बल्कि सरसों की जाति का तीखा सुगंध वाला पौधा है।

मूली कृषक सभ्यता के सबसे प्राचीन आविष्कारों में से एक है। ३००० वर्षो से भी पहले के चीनी इतिहास में इसका उल्लेख मिलता है। अत्यंत प्राचीन चीन और यूनानी व्यंजनों में इसका प्रयोग होता था और इसे भूख बढ़ाने वाली समझा जाता था। यूरोप के अनेक देशों में भोजन से पहले इसको परोसने परंपरा का उल्लेख मिलता है। मूली शब्द संस्कृत के 'मूल' शब्द से बना है। आयुर्वेद में इसे मूलक नाम से, स्वास्थ्य का मूल (अत्यंत महत्वपूर्ण) बताया गया है।
आजकल हम लोग अस्पतालों तथा अंग्रेज़ी दवाइयों की दुनिया में इतने खो गए कि उन्हें अपने आसपास उपलब्ध होने वाली, उन शाक-सब्ज़ियों की तरफ़ ध्यान देने का समय ही नहीं मिलता, जो बिना किसी हानि के हमारी अनेक बीमारियों को निर्मूल करने में सक्षम हैं। प्रकृति हमारे लिए शीत ऋतु में इस प्रकार की शाक-सब्ज़ियाँ उदारतापूर्वक उत्पन्न करती है। इन्हीं में से एक है 'मूली'।
मूली में प्रोटीन, कैल्शियम, गन्धक, आयोडीन तथा लौह तत्व पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होते हैं। इसमें सोडियम, फॉस्फोरस, क्लोरीन तथा मैग्नीशियम भी होता है। मूली में विटामिन 'ए' भी होता है। विटामिन 'बी' और 'सी' भी इससे प्राप्त होते हैं। जिसे हम मूली के रूप में जानते हैं, वह धरती के नीचे पौधे की जड होती हैं। धरती के ऊपर रहने वाले पत्ते से भी अधिक पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं। सामान्यत: हम मूली को खाकर उसके पत्तों को फेंक देते हैं। यह गलत आदत हैं। मूली के साथ ही उसके पत्तों का सेवन भी किया जाना चाहिए। इसी प्रकार मूली के पौधे में आने वाली फलियाँ 'मोगर' भी समान रूप से उपयोगी और स्वास्थ्यवर्धक है। सामान्यत: लोग मोटी मूली पसन्द करते हैं। कारण उसका अधिक स्वादिष्ट होना है, मगर स्वास्थ्य तथा उपचार की दृष्टि से छोटी, पतली और चरपरी मूली ही उपयोगी है। ऐसी मूली त्रिदोष (वात, पित्त और कफ) नाशक है। इसके विपरीत मोटी और पकी मूली त्रिदोष कारक मानी जाती है।
१०० ग्राम मूली में अनुमानित निम्न तत्व हैं : प्रोटीन - ०.७ ग्राम, वसा - ०.१ ग्राम, कार्बोहाइड्रेट - ३.४ ग्राम, कैल्शियम - ३५ मि.ग्रा., फॉस्फोरस - २२ मि.ग्रा, लोह तत्व - ०.४ मि.ग्रा., केरोटीन- ३ मा.ग्रा., थायेसिन - ०.०६ मि.ग्रा., रिवोफ्लेविन - ०.०२ मि.ग्रा., नियासिन - ०.५ मि.ग्रा., विटामिन सी - १५ मि.ग्रा.।
अनेक छोटी बड़ी व्याधियाँ मूली से ठीक की जा सकती हैं। मूली का रंग सफेद है, लेकिन यह शरीर को लालिमा प्रदान करती है। भोजन के साथ या भोजन के बाद मूली खाना विशेष रूप से लाभदायक है। मूली और इसके पत्ते भोजन को ठीक प्रकार से पचाने में सहायता करते हैं। वैसे तो मूली के पराठें, रायता, तरकारी, आचार तथा भुजिया जैसे अनेक स्वादिष्ट व्यंजन बनते हैं,मगर सबसे अधिक लाभकारी होती है कच्ची मूली। भोजन के साथ प्रतिदिन एक मूली खा लेने से व्यक्ति अनेक बीमारियों से मुक्त रह सकता है।
मूली, शरीर से विषैली गैस कार्बन-डाई-आक्साइड को निकालकर जीवनदायी आक्सीजन प्रदान करती है। मूली हमारे दाँतों को मज़बूत करती है तथा हडि्डयों को शक्ति प्रदान करती है। इससे व्यक्ति की थकान मिटती है और अच्छी नींद आती है। मूली खाने से पेट के कीड़े नष्ट होते हैं तथा पेट के घाव ठीक होते हैं।
यह उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करती है तथा बवासीर और हृदय रोग को शान्त करती है। इसका ताज़ा रस पीने से मूत्र संबंधी रोगों में राहत मिलती है। पीलिया रोग में भी मूली अत्यंत लाभदायक है। अफारे में मूली के पत्तों का रस विशेष रूप से उपयोगी होता है।
मोटापा अनेक बीमारियाँ की जड़ है। मोटापा कम करने के लिए मूली बहुत लाभदायक है। इसके रस में थोड़ा-सा नमक और नीबू का रस मिलाकर नियमित रूप से पीने से मोटापा कम होता है और शरीर सुडौल बन जाता है। पानी में मूली का रस मिलाकर सिर धोने से जुएँ नष्ट होती हैं। विटामिन 'ए' पर्याप्त मात्रा में होने से मूली का रस नेत्रज्योति बढ़ाने में भी सहायक होता है तथा शरीर के जोड़ों की जकड़न को दूर करता है।
मूली सौन्दर्यवर्धक भी है। इसके प्रतिदिन सेवन से रंग निखरता है, खुश्की दूर होती है, रक्त शुद्ध होता है और चेहरे की झाइयाँ, कील-मुहाँसे आदि साफ़ होते हैं। सर्दी-जुकाम तथा कफ-खाँसी में मूली के बीज का चूर्ण विशेष लाभदायक होता है। मूली के बीजों को उसके पत्तों के रस के साथ पीसकर लेप किया जाए तो अनेक चर्म रोगों से मुक्ति मिल सकती है। मूली के रस में तिल्ली का तेल मिलाकर और उसे हल्का गर्म करके कान में डालने से कर्णनाद, कान का दर्द तथा कान की खुजली ठीक होते हैं। मूली के पत्ते चबाने से हिचकी बन्द हो जाती है।
मूली से अनेक रोगों में भी लाभ मिलता है, एक सप्ताह तक कांजी में डाले रखने तथा उसके बाद उसके सेवन से बढ़ी हुई तिल्ली ठीक होती है और बवासीर का रोग नष्ट हो जाता है। हल्दी के साथ मूली खाने से भी बवासीर में लाभ होता है।
मूली के पत्तों के चार तोला रस में तीन माशा अजमोद का चूर्ण और चार रत्ती जोखार मिलाकर दिन में दो बार एक सप्ताह तक नियमित रूप से लेने पर गुर्दे की पथरी गल जाती है। एक कप मूली के रस में एक चम्मच अदरक का और एक चम्मच नींबू का रस मिलाकर नियमित सेवन से भूख बढ़ती है और पेट संबंधी सभी रोग नष्ट हो जाते हैं।
मूली के रस में समान मात्रा में अनार का रस मिलाकर पीने से रक्त में हीमोग्लोबिन बढ़ता है और रक्ताल्पता का रोग दूर होता है। सूखी मूली का काढ़ा बनाकर, उसमें जीरा और नमक डालकर पीने से खाँसी और दमा में राहत मिलती है।

VARSHNEY.009
02-07-2013, 10:34 AM
पेट का रखवाला पपीता http://www.abhivyakti-hindi.org/ss/images/papita.jpg
पाचन के लिये सभी आवश्यक गुणों से भरपूर पपीता शरीर को पोषण देने वाला अत्यंत स्वास्थ्यवर्धक फल है।
क्या आप जानते हैं?


पपीते में पपेन नामक पदार्थ पाया जाता है जो मांसाहार गलाने के काम आता है। भोजन पचाने में भी यह अत्यंत सहायक होता है।
पपीते के नियमित सेवन से अरूचि दूर होती है, कब्ज़ ठीक होता है और भूख बढ़ती है।
पपीता स्वादिष्ट होने और अपने सुंदर रंग के कारण जैम, जेली, हलवे और शीतल पेय के लिये प्रयोग में लाया जाता है।
यकृत तथा पीलिया के रोग में पपीता अत्यंत लाभकारी है।
सौन्दर्य प्रसाधनों में भी इसका प्रयोग किया जाता है।

पपीता बहुत ही जल्दी जल्दी बढ़नेवाला पेड़ है। साधारण जमीन, थोडी गरमी और अच्छी धूप मिले तो यह पेड़ अच्छा पनपता है, पर इसे अधिक पानी या जमीन में क्षार की ज्यादा मात्रा रास नहीं आती। इसकी पूरी ऊँचाई करीब १०-१२ फुट तक होती है। जैसे-जैसे पेड़ बढ़ता है, नीचे से एक एक पत्ता गिरता रहता है और अपना निशान तने पर छोड़ जाता है। तना एकदम सीधा हरे या भूरे रंग का और अन्दर से खोखला होता है। पत्ते पेड़ के सबसे ऊपरी हिस्से में ही होते हैं। एक समय में एक पेड़ पर ८० से १०० फल तक भी लग जाते हैं।
पेड़ के ऊपर के हिस्से में पत्तों के घेरे के नीचे पपीते के फल आते हैं ताकि यह पत्तों का घेरा कोमल फल की सुरक्षा कर सके। कच्चा पपीता हरे रंग का और पकने के बाद हरे पीले रंग का होता है। पपीते का फल थोड़ा लम्बा व गोलाकार होता है तथा गूदा पीले रंग का होता है। गूदे के बीच में काले रंग के बीज होते हैं। आजकल नयी जातियों में बिना बीज के पपीते का आविष्कार भी किया गया है। एक पपीते का वजन ३००-४०० ग्राम से लेकर १ किलो ग्राम, तक हो सकता है।
पपीते के पेड़ नर और मादा अलग होते हैं लेकिन कभी-कभी एक ही पेड़ पर दोनों तरह के फूल खिलते हैं। हवाईयन और मेक्सिकन पपीते बहुत प्रसिद्ध हैं। भारतीय पपीते भी अत्यन्त स्वादिष्ट होते हैं। अलग-अलग किस्मों के अनुसार इनके स्वाद में थोड़ी बहुत भिन्नता हो सकती है।

१०० ग्राम पपीते में ९८ कैलरी, एक से दो ग्राम प्रोटीन, एक से दो ग्राम रेशे तथा ७० मिग्रा लोहा होता है साथ ही यह विटामिन सी और विटामिन बी का बड़ा अच्छा स्रोत है। इन्हीं गुणों के कारण इसे स्वास्थ्य के लिये सबसे लाभदायक फलों में से एक माना जाता है। कच्चे पपीते में पपेन नामक एन्ज़ाइम पाया जाता है। इस एनज़ाइम का उपयोग मीट टेन्डराइज़र में किया जाता है। कच्चे पपीते को छील कर उसके छोटे-छोटे टुकड़े कर के भी मांसाहार आसानी से गलाया जा सकता है। यह एनज़ाइम पाचन तंत्र के लिये बहुत लाभदायक होता है।

पपीता एक सर्वसुलभ और अत्यंत गुणकारी फल है पर यह तोड़ने के बाद ज्यादा दिनों तक ताज़ा नहीं रहता इसलिए ताजा पपीता खाना ही स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है।

पका हुआ पपीता छील कर खाने में बड़ा ही स्वादिष्ट होता है। इसका गूदा पेय, जैम और जेली बनाने में प्रयोग किया जाता है। कच्चे पपीते की सब्ज़ी टिक्की और चटनी अत्यंत स्वादिष्ट और गुणकारी होती है। लौकी के हलवे की तरह पपीते का हलवा भी बनाया जा सकता है या इसके लच्छों को कपूरकंद की तरह शकर मे पाग कर भी खाया जाता है।
सौन्दर्य प्रसाधनों में भी इसका प्रयोग होता है। पके हुए पपीते का गूदा चेहरे पर लगाने से मुहाँसे और झाँई से बचाव किया जा सकता है। इससे त्वचा का रूखापन दूर होता है और झुर्रियों को रोका जा सकता है। यह स्वाभाविक ब्लीच के साथ साथ त्वचा की स्निग्धता की भी रक्षा करता है इस कारण चेहरे के दाग धब्बों को मिटाने के लिये इसका प्रयोग बहुत ही लाभदायक है।

VARSHNEY.009
02-07-2013, 10:35 AM
पिज़ा की पौष्टिकता http://www.abhivyakti-hindi.org/ss/images/pizza.jpg
क्या आप जानते हैं?


सबसे पहली पिज़ा की दुकान नेपल्स में १८३० में खुली थी जो आजतक सेवा में है।
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सबसे बड़ा पिज़ा १९९५ में ३७.४ मीटर्स चौड़ाई में (१२,१५९ वर्ग फीट) नॉरवुड, साउथ अफ्रीका में बनाया गया था। इसका नाम गिनीज़ बुक में दर्ज़ है।
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विश्व के १७ प्रतिशत भोजनालय केवल पिज़ा बेचते हैं।
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अमेरिका में ६२% लोग मांसाहारी और ३८% लोग शाकाहारी पिज़ा पसंद करते हैं। शाकाहारी पिज़ा पसंद करने में महिलाओं की संख्या दुगुनी है।
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पिज़ा का नियमित सेवन कैंसर से आपकी रक्षा करता है।

पिज़ा स्वाद में तो मज़ेदार होता ही है, पौष्टिकता में भी इसका जवाब नहीं। रोम में किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार पिज़ा खानेवालों के लिए ज़बरदस्त खुशख़बरी है - पिज़ा यदि नियमित रूप से खाया जाय तो अनेक किस्मों के कैंसर से दूर रहा जा सकता है। 'ला रिपब्लिका' नामक इटालियन दैनिक में दी गई ख़बर के अनुसार सर्वेक्षण के दौरान पेट, आंत या पाचन तंत्र के कैंसर से पीड़ित ३००० इतालवी लोगों की, ५००० दूसरे रोगियों से तुलना की गई। इस तुलनात्मक अध्ययन में पाया गया कि जिन लोगों ने पिज़ा का सप्ताह में एक या अधिक बार सेवन किया था उन्हें, पिज़ा न खानेवाले लोगों की तुलना में कैंसर की शिकायत कम रही। फॉर्माकोलॉजी इंस्टीट्यूट, मिलान के अनुसार पिज़ा खाने वालों को मुँह के कैंसर में ३४ प्रतिशत, पेट के कैंसर में ५९ प्रतिशत और आंत के कैंसर में २६ प्रतिशत तक कमी की संभावना होती है। सिल्वॅनो गॅलस के नेतृत्व में किए गए इस सर्वेक्षण में यह तथ्य प्रकाश में आया कि पिज़ा में टमाटर के गुण अत्यंत लाभकारी हैं। टमाटर की चटनी या सॉस को कुछ प्रकार के ट्यूमरों के लिए प्रतिरोधक माना गया है लेकिन कैंसर पर भी इसका इतना असर हो सकता है यह बात अभी ही प्रकाश में आई। मिलान के एपिडरमॉलॉजिस्ट कारलो ला वेशिया ने बताया कि पिज़ा के प्रेमियों को यह नहीं समझ लेना चाहिए कि सिर्फ़ पिज़ा खाने से ही कैंसर से दूर रहा जा सकता है। उन्होंने आगे कहा कि टमाटर के गुणों के बारे में तो सभी जानते हैं। आजकल खान-पान में, पिज़ा में इसका ज़्यादा प्रयोग किया जाता है। दूसरे शब्दों में यह एक इटालियन मेडेटेरेनियन आहार है। परंपरागत मेडेटेरेनियन खाना जैतून तेल, फायबर, फल सब्ज़ियाँ और हमेशा ताज़ा बने हुए पदार्थों से लेस होता है।
डॉमिनो के अनुसार भारत में अदरक, महीन मटन और टोफू, जापान में मायोनीज, बेकन और आलू और ब्राजील में हरे मटर वाला पिज़ा अधिक लोकप्रिय हैं। रूस में अलग-अलग तरह की मछली और प्याज़, फ्रांस में फ्लम्बी और बेकन के साथ ताज़ी मलाई वाला पनीर पिज़ा की ऊपरी सतह पर पसंद किया जाता है। नीदरलैंड में "डबल डच" नामक पिज़्ज़ा सर्वाधिक लोकप्रिय है। इसमें चीज़, प्याज़, मटन सभी कुछ दुगना डाला जाता है। पिज़ा बनाने वाली कंपनियों ने अलग-अलग मक्खन, जेली, अंडे या मसले हुए आलू का पिज़ा में प्रयोग किया है। दुनिया के अलग-अलग जगहों पर पिज़ा के बदलते हुए स्वाद का मज़ा लिया जा सकता है।
विश्व का सबसे बड़ा पिज़ा ११ अक्तूबर १९८७ को लोरेन्ज़ो अमॅटो और लुईस पियानकोन ने बनाया था। यह पिज़ा १४० फीट चौड़ा और १०,००० वर्ग फुट में बना हुआ था। उसका वज़न ४४,४५७ पाउंड था। इसे बनाने में १८,१७४ पाउंड आटा, १,१०३ पाउंड पानी, ६,४४५ पाउंड सॉस, ९,३७५ पाउंड चीज़ और २,३८७ पाउंड पेपरोनी का इस्तेमाल हुआ था। इसे ९४,२४८ टुकड़ों में काटा गया और ३०,००० लोगों ने हवाना, फ्लोरीड़ा में खाया था। बाद में इस रेकार्ड को १९९५ में नॉरवुड, साउथ अफ्रीका में ३७.४ मीटर्स चौड़ा (१२,१५९ वर्ग फुट) पिज़ा बना कर तोड़ा गया। यह रेकार्ड गिनीज़ बुक में दर्ज़ है।
पिज़ा का इतिहास १००० साल पुराना है। प्रारंभिक रूप में इसकी रोटी को आटा गूँध कर हाथ से फैलाकर घर के बाहर बने चूल्हे पर सेंका जाता था। इस पर जंगल में मिलनेवाली जड़ी बूटी या हरे पत्ते डाल कर सजाया जाता था और भूख बढानेवाला या हल्का-फुल्का खाना समझकर खाया जाता था। नेपल्स, इटली में शुरू हुए इस भोजन को बाद में टमाटर डालकर पिज़ा का रूप दिया गया। रेफ्रीजेरेटर का ज़माना आने से पहले स्त्रियाँ गूँधे हुए आटे की पतली रोटी सेंककर रखती थीं। इसके ऊपर मन पसंद चटनी या सब्ज़ियाँ डालकर हाथ में ले कर खाया जा सकता था। खाने के लिए तश्तरी की ज़रूरत न होने के कारण यह शीघ्र लोकप्रिय हो गया। १६०० इस्वी से पहले पिज़ा के बारे में किसी को पता नहीं था। टमाटर की खोज तो हुई थी लेकिन, यह ज़हरीला तो नहीं? इसी शक के घेरे में टमाटर बहुत दिनों तक भोजन में शामिल नहीं हो पाया। १६०० शताब्दी के अंत मे यूरोपीय लोगों ने टमाटर खाने में पहल की और तब इसकी जोड़ी बनी पिज़ा के साथ।
आधुनिकतम पिज़ा की शुरुआत १८८९ में हुई जब रानी मार्गारीटा टेरेसा और इटली के राजा ने नेपल्स की यात्रा को आए। उनके सम्मान में अच्छा खाना बनाने का हुक्म दिया गया। विशिष्ट अतिथियों के लिए टमाटर, मोज़रेला चीज (इसके पहले पिज़्ज़ा में दूध के किसी भी व्यंजन का इस्तेमाल नहीं किया गया था) और बासिल, जिसमें इटालियन ध्वज के समान लाल, सफ़ेद और हरा रंग होत हैं, से पिज़ा को सजाया गया। इस पिज़ा का नाम मार्गारीटा रखा गया जो आज भी अत्यंत लोकप्रिय है।
अमेरिका में पिज़ा का प्रचलन तब बढ़ा जब दूसरे विश्व युद्ध से जवान, सैनिक अपने घरों को लौट। उन्होंने अपने-अपने शहरों में पिज़ा को 'मशहूर इटालियन खाना' का नाम दिया। और तब से इसे रेस्तराँ में और घरों में बनाना शुरू किया गया। आज पिज़ा के व्यवसाय में हर साल ५ से ६ प्रतिशत की वृद्धि हो रही है। ९३ प्रतिशत अमेरिकी लोग हर महीने कम से कम एक पिज़ा ज़रूर खाते हैं।
इस विश्वविख्यात भोजन ने टेलीविजन और सिनेमा में भी अपना स्थान बनाया है। बॉलीवुड की फ़िल्मों, टीवी सीरियलों और विज्ञापनों में नायक नायिका को पिज़ा खाते हुए देखा जा सकता है। पिज़ा की दुकानों का उद्घाटन करने वालों में जैकी श्रॉफ और करिश्मा कपूर का नाम चर्चा में रहा है।

VARSHNEY.009
02-07-2013, 10:35 AM
प्याज़ की पुकार http://www.abhivyakti-hindi.org/ss/2009/pyaz.jpg क्या आप जानते हैं?

कि विश्व के सभी देशों के लोग प्याज़ खाते हैं।

कि सब्ज़ी उत्पादन के आँकड़ों में प्याज़, टमाटर के बाद दूसरे स्थान पर है।

कि रंगों के अनुसार हर प्रकार के स्वाद में अलग रंग और गंध होते हैं।

कि पीले तथा लाल प्याज़ में सफेद प्याज़ की तुलना में अधिक एन्टीआक्सीडेंट तथा फ्लेवेनोइड होते हैं।

कि ज़्यादा तीखे तथा गहरे रंग के प्याज़ सेहत की दृष्टि से ज़्यादा अच्छे होते हैं।

प्याज विश्व की सबसे लोकप्रिय सब्जियों में से एक है। बहुत से भोजनों में यह एक आवश्यक सामग्री में होता है, इसीलिए सब्ज़ी उत्पादन के आँकड़ों में प्याज़, टमाटर के बाद दूसरे स्थान पर है। रंगों के आधार पर प्याज़ के बहुत से प्रकार बाज़ार में देखने को मिलते हैं जैसे लाल, सफ़ेद, पीला, हरा आदि। हर एक प्रकार के प्याज़ का अपना अलग स्वाद, और अपनी अलग गंध होती है। पीले तथा लाल प्याज़ में सफेद प्याज़ की तुलना में अधिक एन्टीआक्सीडेंट तथा फ्लेवेनोइड होते हैं। प्याज़ खरीदते समय ध्यान रखना चाहिए कि ज़्यादा तीखे तथा गहरे रंग के प्याज़ सेहत की दृष्टि से ज़्यादा अच्छे होते हैं। प्याज़ सेहत के लिए बहुत लाभदायक हैं परंतु अति अच्छी नहीं होती। अधिक मात्रा में प्याज़ खाने से पेट खराब भी हो सकता है। प्याज़ को बिना रोए छीलना चाहें तो इसे बहते पानी में छीलें। गरम पानी में एक मिनट प्याज़ को रखने पर भी बिना आँसू बहाए प्याज़ काटा जा सकता हैं।
प्याज़ की तीखी गंध सल्फर के कारण होती है, जब प्याज़ के ऊतक (टिश्यूज़) को काटा जाता है तब पानी में घुलनशील अमीनो एसिड की एन्जाइम क्रिया के फलस्वरूप यह सल्फर बनता है। गरम करने पर तथा फ्रीज़ करने पर एन्जाइम की यह क्रिया रुक जाती है इसलिए प्याज़ का स्वाद और गंध भी बदल जाते है। पके हुए प्याज़ में नमी, प्रोटीन, फाइबर, कार्बोहाइड्रेट तथा मिनरल होते हैं। इसमें पाए जाने वाले मिनरल तथा विटामिन में कैल्सियम, फोस्फोरस, आयरन, कैरोटीन, थियामीन, राइबोफ्लेविन तथा नियासीन होता है। प्रति सौ ग्राम प्याज़ में तकरीबन ५१ कैलोरी होती हैं।
प्याज़ औषधीय गुणों से भरपूर होता है। दादी के नुस्खों में भी प्याज़ का ज़िक्र अक्सर होता है। मिस्र में प्याज़ को बहुत-सी बीमारियों के इलाज में काम में लिया जाता था। प्याज़ को भोजन के साथ खाना बहुत लाभदायक है पर कच्चा प्याज़ ज़्यादा फ़ायदा करता है। पके हुए प्याज़ को पचाना थोड़ा मुश्किल होता है। बहुत-सी बीमारियों के इलाज के लिए पूरे प्याज़ की बजाए प्याज़ के रस को काम में लिया जाता है।
ऐसा माना जाता है कि प्याज़ बलगम को पतला करता है और फिर से उसको बनने से रोकता है। खाँसी, जुकाम, ब्रोंकाइटिस, इन्फ्लुएंज़ा जैसी बहुत-सी तकलीफों में प्याज़ दवा के रूप में काम में आता है। शहद तथा प्याज़ के रस को बराबर मात्रा में मिला कर दिन में तीन-चार छोटी चम्मच हर रोज़ पीने से बहुत फ़ायदा होता है। कफ से होने वाली बीमारियों से निजात पाने के लिए यह बहुत सुरक्षित, किफ़ायती तथा फ़ायदेमंद तरीका है। प्याज़ में बैक्टीरियानाशक गुण होते हैं। जिसे दाँतों में तकलीफ़ हो वे एक कच्चा प्याज़ प्रतिदिन चबाएँ, इससे बहुत आराम मिलेगा। ऐसा कहते हैं कि कच्चे प्याज़ को तीन मिनिट तक चबाने से मुँह के अन्दर मौजूद जीवाणु नष्ट हो जाते हैं।
चीनी लोग प्याज़ को हृदय रोग से सम्बंधित बीमारियों के इलाज में उपयोग में लेते हैं। प्याज़ में बहुत से आवश्यक तेल तथा कैल्शियम, फोस्फोरस, आयरन, विटामिन, एलिप्रोपाइल डाईसल्फाइड, कैटेकोल, फ्लेवेनोइड आदि रसायन भी होते हैं। हृदय रोगियों के लिए यह बहुत लाभदायक होते हैं। प्याज़ में लसहुन की तरह सल्फाइड भी प्रचुर मात्रा में होते हैं। सल्फाइड रक्त लिपिड को कम करते हैं तथा रक्त चाप को नियंत्रित भी करते हैं। भारत में कुछ जाति के लोग प्याज तथा लसहुन का सेवन नहीं करते हैं। इन लोगों के रक्त में लिपिड का स्तर ज़्यादा रहता है तथा रक्त में थक्का भी जल्दी बनता है। प्याज़ प्राकृतिक एन्टीक्लोटिंग एजेंट यानि यह खून को गाढ़ा होने से रोकता है।
प्याज़ पर हुए कुछ शोध बताते हैं कि प्याज़ का सेवन करने वाले लोगों में पेट के केंसर का खतरा आधा रह जाता है। चीनी लोग, जो सबसे ज़्यादा प्याज़ तथा लसहुन का सेवन करते हैं, में पेट के केंसर का खतरा ४० प्रतिशत कम होता है।
प्याज़ त्वचा की म्यूकस परत में रक्त के स्राव को बढ़ाता है। कटे हुए प्याज़ को त्वचा पर रगड़ने से मस्से भी ख़त्म हो जाते हैं। चोट तथा छालों से होने वाली जलन में भुने हुए प्याज़ का लेप लगाने से बहुत आराम मिलता है। इस लेप को लगाने से छाले जल्दी पक जाते हैं। प्याज़ का रस को प्लम तथा गाजर के रस के मिला कर चेहरे पर लगाने से मुँहासे ठीक होते हैं। चेहरे के जिस भाग की त्वचा तैलीय है वहाँ कटे हुए प्याज़ का अंदरूनी भाग रगड़ने से आशाजनक परिणाम दिखते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) भी बहुत सी बीमारियों जैसे भूख न लगना, सर्दी, जुकाम, दमा आदि में प्याज़ के उपयोग को समर्थन देता है। प्याज़ वायुनली में सूजन तथा दर्द को कम करता है। प्याज का रस दमे के मरीजों में एलर्जी से होने वाली तकलीफ़ को कम करता है। प्याज़ कोलोन में होने वाले ट्यूमर की वृद्धि को रोकता है। प्याज़ में अच्छी मात्रा में ओलिगोसैकेराइड होते हैं जो कि कोलोन में नुकसान करने वाले बैक्टीरिया की वृद्धि को कम करते हैं।

VARSHNEY.009
02-07-2013, 10:35 AM
स्वाद और स्वास्थ्य
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चीड़फल चिलगोजा
क्या आप जानते हैं?


चिलगोजा, चीड़ या सनोबर जाति के पेड़ों का छोटा, लंबोतरा फल है।

दुनिया के अधिकतर देश इस फल से वंचित हैं लेकिन किन्नर कैलास के पास वास्पा और सतलुज की घाटी में कड़छम नामक स्थान पर चिलगोजे के पेड़ों का भरा पूरा जंगल है।

चिलगोजा, चीड़ या सनोबर जाति के पेड़ों का छोटा, लंबोतरा फल है, जिसके अंदर मीठी और स्वादिष्ट गिरी होती है और इसीलिए इसकी गिनती मेवों में होती है। स्थानीय भाषा में चिलगोजे को न्योजा कहते हैं। किन्नौर तथा उसके समीपवती प्रदेश में विवाह के अवसर पर मेहमानों को सूखे मेवे की जो मालाएँ पहनाई जाती हैं उसमें अखरोट और चूल्ही के साथ चिलगोजे की गिरी भी पिरोई जाती है। सफेद तनों वाला इनका पेड़ देवदार से कुछ कम लंबाई वाला, हरा भरा होता है।

इसका वानस्पतिक नाम पाइंस जिराडियाना है। चिलगोजा समुद्रतल से लगभग २००० फुट की ऊँचाई वाले दुनिया के इने गिने इलाकों में ही मिलता है। यह कुछ गहरी और पहाड़ी घाटियों के आरपार उन जंगलों में उगता है, जहाँ ठंडा व सूखा मौसम एक साथ होता हो, ऐसे जंगलों के आसपास कोई नदी भी हो सकती है और वहाँ से तेज हवाएँ गुजरती हों। चट्टानी, पर्वत मालाएँ सीथी खड़ी मिलती हों और वृक्ष चट्टानों को फाड़कर उगने के अभ्यासी हों। ऐसी जलवायु में जहाँ भी इसका बीज अंकुरित हो जाय यह सदाबहार हो उठता है।

चिलगोजे के पेड़ पर चीड़ की ही तरह भूरे रंगरूप वाला तथा कुछ ज्यादा गोलाई वाला लक्कड़फूल लगता है। मार्च अप्रैल में आकार लेकर यह फूल सितंबर अक्तूबर तक पक जाता है। यह बेहद कड़ा होता है। इसे तोड़कर इसकी गिरियाँ बाहर निकाली जा सकती हैं लेकिन ये गिरियाँ भी एक मजबूत आवरण से ढकी रहती है। इस भूरे या काले आवरण को दाँत से कुतर कर हटाया जा सकता है। भीतर पतली व लंबी गिरी निकलती है जो सफेद मुलायम व तेलयुक्त होती है। इसे चबाना बेहद आसान होता है। इसका स्वाद किसी भी अन्य कच्ची गिरी से तो मिलता ही है, मगर काफी अलग तरह का होता है। मूँगफली या बादाम से तो यह बहुत भिन्न होता है। छिले हुए चिलगोजे जल्दी खरीब हो जाते हैं लेकिन बिना छिले हुए चिलगोजे बहुत दिनों तक रखे जा सकता है।

दुनिया के अधिकतर देश इस फल से वंचित हैं लेकिन किन्नर कैलास के पास वास्पा और सतलुज की घाटी में कड़छम नामक स्थान पर चिलगोजे के पेड़ों का भरा पूरा जंगल है। रावी के निकट के कुछ इलाकों तथा गढ़वाल के उत्तर पश्चिम के क्षेत्र, किन्नौर में कल्पा व सांगला की घाटी तथा चंबा में पांगी-भरमौर की घाटी इनके लिये प्रसिद्ध है। चिनाब नदी के कुछ ऊँचे बहाव वाले स्थानों पर भी यह मिलता है। अफगानिस्तान तथा बलूचिस्तान में भी यह मिलता है। इसके अतिरिक्त दक्षिण पश्चिम अमेरिका में इसे पाया जाता है। लेकिन एशियन और अमेरिकन चिलगोजे स्वाद और आकार में भिन्नता पाई जाती है।

चिलगोजा भूख बढ़ाता है इसका स्पर्श नरम लेकिन मिजाज गरम है। इसमें पचास प्रतिशत तेल रहता है। इसलिये ठंडे इलाकों में यह अधिक उपयोगी माना जाता है। सर्दियों में इसका सेवन हर जगह लाभदायक है। यह पाचन शक्ति को बढ़ाता है, इसको खाने से बलगम की शिकायत दूर होती है। मुँह में तरावट लाने तथा गले को खुश्की से बचाने में भी यह उपयोगी है।

वनस्पति शास्त्र का इतिहास लिखने वालों का मानना है कि चिलगोजे को भोजन में शामिल करने का इतिहास पाषाण काल जितना पुराना है। इन्हें मांस, मछली और सब्जी में डालकर पकाया जाता है तथा ब्रेड में बेक किया जाता है। इटली में इसे पिग्नोली कहते हैं और इसे इटालियन पेस्टो सॉस की प्रमुख सामग्री माना गया है। जबकि अमेरिका में इसे पिनोली नाम से जाना जाता है और पिनोली कुकीज़ में इसका ही प्रयोग किया जाता है। अँग्रेजी में इसे आमतौर पर पाइन नट कहा जाता है। स्पेन में भी बादाम और चीनी से बनी एक मिठाई के ऊपर इसे चिपकाकर बेक किया जाता है। यह मिठाई स्पेन में हर जगह मिलती है। हिंदी में इसे चिलगोजे के लड्डू कह सकते हैं। कुछ स्थानों पर इसका प्रयोग सलाद के लिये किया जाता है।

चिलगोजे की काफी जिसे पिनोन कहा जाता है दक्षिण पश्चिम अमेरिका में न्यू मेक्सिको के आसपास बहुत लोकप्रिय होती है जो काली और मेवे के गहरे स्वाद वाली होती है। हल्के भुने और नमक लगे चिलगोजे तो आज सारी दुनिया में बिकने लगे हैं। दक्षिण पश्चिम अमेरिका में नेवादा के ग्रेट बेसिन का चिलगोजा अपने मीठे और फल जैसे स्वाद, बड़े आकार तथा आसानी से छीले जाने के लिये प्रसिद्ध है। मध्यपूर्व में भी चिलगोजे का प्रयोग भोजन के रूप में बहुतायत से होता है http://www.abhivyakti-hindi.org/ss/2012/chilgoza2.jpgतथा किब्बेह, संबुसेक जैसे व्यंजन तथा बकलावा जैसी मिठाइयों की यह प्रमुख सामग्रियों में से एक है।

लगभग १०० ग्राम चिलगोजे में ६७३ कैलरी होती है। साथ ही २.३ ग्राम पानी, १३.१ ग्राम कार्बोहाइड्रेट, ३.६ ग्राम शर्करा, ३.७ ग्राम रेशा, ६८.४ ग्राम तेल, १३.७ ग्राम प्रोटीन, १६ मिली ग्राम कैलसियम, ५.५ मिली ग्राम लोहा, २५१ मिली ग्राम मैगनीशियम, ८.८ मिलीग्राम मैगनीज, ५७५ मिलीग्राम फासफोरस, ५९७ मिलीग्राम पोटैशियम तथा ६.४ मिलीग्राम ज़िंक इनमें पाया जाता है। इसके अतिरिक्त इसमें विटामिन बी, सी, ई, के भी पाए जाते है। इसमें कोलेस्ट्राल बिलकुल नहीं होता है। चिलगोजे के विकास और अनुसंधान के लिये शारबो, किन्नौर में एक संस्थान कार्यरत है।

VARSHNEY.009
02-07-2013, 10:36 AM
गेहूँ में गुन बहुत हैं
क्या आप जानते हैं?

चीन के बाद भारत गेहूँ दूसरा विशालतम उत्पादक है।



विश्व भर में, भोजन के लिए उगाई जाने वाली फसलों मे मक्का के बाद गेहूँ दूसरी सबसे ज्यादा उगाई जाने वाले फसल है।



आहार विशेषज्ञों के अनुसार गेहूँ के जवारों में अनेक पोषक तत्वों के साथ साथ रोग निवारक तत्व भी है।

गेहूँ मध्य पूर्व के लेवांत क्षेत्र से आई एक घास है जिसकी खेती दुनिया भर में की जाती है। विश्व भर में, भोजन के लिए उगाई जाने वाली धान्य फसलों मे मक्का के बाद गेहूँ दूसरी सबसे ज्यादा उगाई जाने वाले फसल है। गेहूँ की रोटी भारत के लगभग हर प्रदेश में किसी न किसी रूप में खाई जाती है। विशेषरूप से उत्तरी भारत में दिन का प्रारंभ अनेक घरों में गेहूँ से निर्मित ब्रेड या पराठों के साथ ही होता है। इसके अतिरिक्त इससे अनेक प्रकार के मिष्ठान्न तथा स्वास्थ्यप्रद भोजन भी बनाए जाते है इस कारण गेहूँ को "अनाजों का राजा" माना जाता है।
विश्व में कुल कृषि भूमि के लगभग छठे भाग पर गेहूँ की खेती की जाती है यद्यपि एशिया में मुख्य रूप से धान की खेती की जाती है, तो भी गेहूँ विश्व के सभी प्रायद्वीपों में उगाया जाता है। यह विश्व की बढ़ती जनसंख्या के लिए लगभग २० प्रतिशत आहार कैलोरी की पूर्ति करता है। प्रति वर्ष इसका उत्पादन ६२.२२ करोड़ टन से भी अधिक होता है। चीन के बाद भारत गेहूँ दूसरा विशालतम उत्पादक है। गेहूँ खाद्यान्न फसलों के बीच विशिष्ट स्थान रखता है। कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन गेहूँ के दो मुख्य घटक हैं। गेहूँ में औसतन ११-१२ प्रतिशत प्रोटीन होता हैं। गेहूँ मुख्यत: विश्व के दो मौसमों, यानी शीत एवं वसंत ऋतुओं में उगाया जाता है। शीतकालीन गेहूँ ठंडे देशों, जैसे यूरोप, सं॰ रा॰ अमेरिका, आस्ट्रेलिया, रूस राज्य संघ आदि में उगाया जाता है जबकि वसंतकालीन गेहूँ एशिया एवं संयुक्त राज्य अमेरिका के एक हिस्से में उगाया जाता है। वसंतकालीन गेहूँ १२०-१३० दिनों में परिपक्व हो जाता है जबकि शीतकालीन गेहूँ पकने के लिए २४०-३०० दिन लेता है। इस कारण शीतकालीन गेहूँ की उत्पादकता वंसतकालीन गेहूँ की तुलना में अधिक हाती है।

भारत में सर्वत्र गेहूँ का उत्पादन विशेषतः पंजाब, गुजरात और उत्तरी भारत में गेहूँ पर्याप्त मात्रा में होता है। वर्षा ऋतु में खरीफ की फसल के रूप में और सर्दी में रबी फसल के रूप में बोया जाता है। अच्छी सिचाई वाले रबी की फसल के गेहूँ को अच्छे निथार वाली काली, पीली या बेसर रेतीली जमीन अधिक अनुकूल पड़ती है जबकि खरीफ की बिना सिचाई वाली वर्षा की फसल के लिए काली और नमी का संग्रह करने वाली चकनी जमीन अनुकूल होती है। सामान्यतः नरम काली जमीन गेहूँ की फसल के लिए अनुकूल होती है।

गेहूँ का पौधा डेढ़ -दो हाथ ऊँचा होता है। उसका तना पोला होता है एवं उस पर ऊमियाँ (बालियाँ) लगती है, जिसमे गेहूँ के दाने होते है। गेहूँ की हरी ऊमियों को सेंककर खाया जाता है और सिके हुए बालियों के दाने स्वादिष्ट होते है।

गेहूँ की अनेक किस्में होती है जिनमें कठोर गेहूँ और नरम गेहूँ मुख्य है। रंगभेद की दृष्टि से गेहूँ के सफ़ेद और लाल दो प्रकार होते है। इसके अतिरिक्त बाजिया, पूसा, बंसी, पूनमिया, टुकड़ी, दाऊदखानी, जुनागढ़ी, शरबती, सोनारा,कल्याण, सोना, सोनालिका, १४७, लोकमान्य, चंदौसी आदि गेहूँ की अनेक प्रसिद्ध किस्में है। इन सभी में गुजरात में भाल-प्रदेश के कठोर गेहूँ और मध्य भारत में इंदौर- मालवा के गेहूँ प्रशंसनीय है।

गेहूँ के आटे से रोटी, सेव, पाव रोटी, ब्रेड,पूड़ी, केक, बिस्कुट, बाटी, बाफला आदि अनेक बानगियाँ बनती है। इसके अतिरिक्त गेहू के आटे से हलुआ, लपसी, मालपुआ, घेवर, खाजे, जलेबी आदि मिठाइयाँ भी बनती है। गेहूँ के पकवानों में घी, शक्कर, गुड़ या शर्करा डाली जाती है। गेहूँ को ५-६ दिन भिगोकर रखने के बाद उसके सत्व से बादामी पौष्टिक हलुआ बनाया जाता है, गेहूँ का दालिया भी पौष्टिक होता है और इसका उपयोग अशक्त बीमार लोगो को शक्ति प्रदान करने के लिए होता है, गेहूँ के सत्व से पापड़ और कचरिया भी बनायी जाती है। गेहूँ में चरबी का अंश कम होता है अतः उसके आटे में घी या तेल का मोयन दिया जाता है, और उसकी रोटी चपाती, बाटी के साथ घी या मक्खन का उपयोग होता है। घी के साथ गेहू का आहार करने से वायु प्रकोप दूर होता है और बदहजमी नहीं होती। सामान्यतः गेहू का सेवन बारह मास किया जाता है। गेहूँ से आटा, मैदा, रवा और थूली तैयार की जाती है। गेहूँ में मधुर, शीतल, वायु और पित्त को दूर करने वाले गरिष्ठ, कफकारक, वीर्यवर्धक, बलदायक, स्निग्ध, जीवनीय, पौष्टिक, रुचि उत्पन्न करने वाले और स्थिरता लाने वाले विशेष तत्व है। घाव के लिए हितकारी होने के कारण आटे की पुलटिस के रूप में गेहूँ का प्रयोग होता है।

गेहूँ के जवारे या गेहूँ की भुजरियाँ

गेहूँ के जवारे को आहार शास्त्री धरती की संजीवनी मानते है। यह वह अमृत है जिसमे अनेक पोषक तत्वों के साथ साथ रोग निवारक तत्व भी है। अनेक फल व सब्जियों के तत्वों का मिश्रण हमें केवल गेहूँ के रस में ही मिल जाता है। गेहूँ के रस में प्रचुर मात्रा में पोषक तत्व होते है जिनके सेवन से कब्ज व्याधि और गैसीय विकार दूर होते हैं, रक्त का शुद्धीकरण भी होता है परिणामतः रक्त सम्बन्धी विकार जैसे फोड़े, फुंसी, चर्मरोग आदि भी दूर हो जाते हैं। आयुर्वेद में माना गया है कि फूटे हुए घावों व फोड़ो पर जवारे के रस की पट्टी बाँधने से शीघ्र लाभ होता है। श्वसन तंत्र पर भी गेहू रस का अच्छा प्रभाव होता है सामान्य सर्दी खांसी तो जवारे के प्रयोग से ४-५ दिनों में ही मिट जाती है व दमे जैसा अत्यंत दुस्साहस रोग भी नियंत्रित हो जाता है। गेहूँ के रस के सेवन से गुर्दों की क्रियाशीलता बढती है और पथरी भी गल जाती है। इसके अतिरिक्त दाँत व हड्डियों की मजबूती के लिये, नेत्र विकार दूर करने और नेत्र ज्योति बढाने के लिये, रक्तचाप व ह्रदय रोग से दूर रहने के लिये, पेट के कृमि को शरीर से बाहर निकालने के लिये तथा मासिक धर्म की अनियमितताए दूर करने के लिये भी जवारे का रस के प्रयोग की बात कही जाती है।

जवारे का रस हमेशा ताजा ही प्रयोग में लायें, इसे फ्रिज में रखकर कभी भी प्रयोग न करें क्यूंकि तब वह तत्वहीन हो जाता है। जवारे का सेवन करने से आधा घंटा पहले व आधा घंटा बाद में कुछ न लें। सेवन के लिए प्रातः काल का समय ही उत्तम है। रस को धीरे धीरे जायका लेते हुए पीना चाहिए न कि पानी की तरह गटागट करके। जब तक गेहूँ के जवारे का सेवन कर रहे हो उस अवधि में सदा व संतुलित भोजन करें, ज्यादा मसालेयुक्त भोजन से परहेज रखे।

गेहूँ के पौधे का सीधे सेवन भी किया जाता है। गेहूँ के पौधे प्राप्त करना अत्यंत आसान है,अपने घर में ८ -१० गमले अच्छी मिटटी से भर ले इन गमलों को ऐसे स्थान पर रखें जहाँ पर सूर्य का प्रकाश तो रहे पर धूप न पड़े, साथ ही वह स्थान हवादार भी हो, यदि जगह है तो क्यारी भी बना सकते है। पहले दिन पहले गमले में उत्तम प्रकार के गेहूँ के दाने बो दें इसी तरह दूसरे दिन दूसरे गमले में, फिर तीसरे गमले में...आदि। यदा कदा पानी के छीटें भी गमले में मारते रहें जिससे नमी बनी रहे, आठ दिन में दाने अंकुरित होकर ८-१० इंच लम्बे हो जाते है बस उन्हें नीचे से काटकर ( जड़ के पास से ) पानी से धोकर रस बना लें, मिक्सी में भी रस बना सकते है। उसे मिक्सी में पीसकर छानकर रोगी को पिला दे। खाली गमले में पुनः गेहूँ के दाने बो दे इस तरह रस को सुबह शाम लिया जा सकता है इससे किसी प्रकार की हानि नहीं होती है लेकिन हर शरीर कि अपनी अलग तासीर होती है इसीलिए एक बार अपने चिकित्सक से सलाह अवश्य ले लें।

VARSHNEY.009
02-07-2013, 10:36 AM
कमाल के केले
http://www.abhivyakti-hindi.org/ss/images/kele.jpg
केला दुनिया के सबसे पुराने और लोकप्रिय फलों में से एक है। हर मौसम में मिलने वाला यह फल स्वादिष्ट और बीजरहित है।
क्या आप जानते हैं?


छिलके के कारण केला नैसर्गिक रूप में हमेशा शुद्ध और संक्रमण मुक्त रहता है।
केले की ३०० से भी अधिक किस्में होती हैं और इसकी खेती बहुत बड़े पैमाने पर की जाती है।
केला ९५६वीं शताब्दी में भूमध्यसागरीय देशों मे पाया गया था और अब समस्त विश्व में आसानी से उपलब्ध है।
केले का फूल और तना भी स्वादिष्ट व्यंजन की तरह पकाया जाता है।
केले की लंबाई चार इंच से लेकर १५ इंच तक हो सकती है।
केले की जाति के आधार पर इसके स्वाद में अंतर हो सकता है।
केले के साथ इलायची खाने से केला आसानी से पचता है।




केले पर हलके भूरे रंग के दाग इस बात की निशानी हैं कि केले का स्टार्च के पूरी तरह नैसर्गिक शक्कर में परिवर्तित हो चुका है। ऐसा केला आसानी से हजम होता है। केला सुबह के समय खाना अच्छा होता है। केले का छिलका उतारने के तुरन्त बाद खा लेना चाहिए और खाने के तुरन्त बाद पानी का परिहार करना चाहिए।
केला शक्तिवर्धक तत्वों, प्रोटीन, विटामिन और खनिज पदार्थों का अनोखा मिश्रण है। इसमें पानी की मात्रा कम होती है। यह उष्मांक (केलोरी) वर्धक भी है। केला और दूध का मिश्रण शरीर और स्वास्थ्य के लिए सर्वोत्तम है।
केला अन्न को पचाने में सहायक होने के साथ-साथ उत्साह भी देता है। केले में होनेवाली नैसर्गिक शक्कर पौष्टिक तत्वों से होने वाली रासायनिक प्रक्रिया और सेहत बनाने में मदद करती है।
यह अम्लता (ऐसिडिटी) को कम करता है और पेट में हल्की परत बना कर अल्सर का दर्द कम करता है। यह अतिसार और कब्ज़, दोनों में लाभकारी है। यह आंत की सारी प्रक्रिया को सामान्य कर सकता है। केले के गूदे में नमक डाल कर खाना अतिसार के लिए अच्छा होता है।
अच्छे पके केले का गूदा शरीर के जले हुए हिस्से पर लगाकर कपड़ा बाँध दिया जाय तो तुरंत आराम मिलता है। छाले, फफोले या थोड़ी बहुत जलन होने पर केले का नया निकला छोटा पत्ता ठण्डक पहुँचाता है।
केला यदि अच्छा पका हुआ नहीं है तो पचने में कठिन पड़ सकता है। केला फ्रिज में कभी नहीं रखा जाता क्यों कि वह इतने कम तापमान नहीं पक सकता। गुर्दे की बीमारी में केला लाभदायक नहीं हैं क्यों कि केले में पोटॅशियम की मात्रा अधिक होती है।

VARSHNEY.009
02-07-2013, 10:36 AM
एक टहनी टमाटर http://www.abhivyakti-hindi.org/ss/images/tomato.jpg क्या आप जानते हैं?

टमाटर एक सब्ज़ी नहीं बल्कि फल है।
पीले और नारंगी टमाटर लाल टमाटरों की अपेक्षा मीठे होते है।
टमाटर में पाया जाने वाला 'लायकोपीन' नामक पदार्थ कैंसर के खतरे को कम करता है।



कच्चे टमाटरों को पकाने के लिए अगर उन्हें एक सेब के साथ काग़ज़ के लिफ़ाफ़े में रख दिया जाए तो वे जल्दी पकते हैं।
अगर टमाटरों को उबलते पानी में ३० सेकेंड तक रख कर तुरंत बर्फ़ के पानी में डाल दिया जाए और ठंडा होने पर छीला जाए तो छिलका आसानी से उतार जाता है।
साबुत चेरी टमाटर नारियल, हरे धनिये और टमाटर की चटनी के साथ सलाद के रूप में पौष्टिक, आकर्षक और स्वादिष्ट लगते हैं।

टमाटर जितना रंगीन है उतना ही गुणकारी भी। शायद इसीलिए न केवल सूप और चटनियाँ बल्कि अनेकों खट्टे, मीठे और नमकीन व्यंजनों में भी इसका प्रयोग होता है। टमाटर भोजन के सर्वाधिक लाभदायक पदार्थों में से एक है। हार्वर्ड मेडिकल स्कूल की एक सूचना के अनुसार टमाटर अनेक प्रकार के कैंसरों से हमारी सुरक्षा करता है, जिसमें छाती और गले के कैंसर प्रमुख हैं। केवल १०० ग्राम टमाटर से ०.९ ग्राम प्रोटीन, ०.२ ग्राम वसा और ३.६ ग्राम कार्बोहाइड्रेट प्राप्त हो जाते हैं। इसमें रेशों की मात्रा ब्राउन ब्रेड के एक स्लाइस के बराबर होती है और आयरन की मात्रा एक अण्डे की तुलना में पाँच गुनी होती है। साथ ही इससे हमें पोटेशियम और फासफोरस भी प्राप्त होते हैं।
आयुर्वेद में टमाटर को अत्यंत लाभकारी बताया गया है। इसमें अंगूर और संतरे की अपेक्षा अधिक विटामिन होते हैं और वे गर्म होने पर भी नष्ट नहीं होते। टमाटरों में स्थित कैलशियम दाँतों व हड्डियों को मज़बूत बनाता है। यह खून की कमी दूर करता है, पेट साफ़ करने में मदद करता है तथा वज़न कम करने में सहायता पहुँचाता है। पथरी, खांसी, आर्थराइटिस, सूजन या मांसपेशियों के दर्द में टमाटर के सेवन का निषेध किया गया है।

VARSHNEY.009
02-07-2013, 10:37 AM
आरोग्यकारी अंगूर http://www.abhivyakti-hindi.org/ss/images/grapes.jpg अंगूर स्वादिष्ट होने के साथ ही पौष्टिक और सुपाच्य होने के कारण आरोग्यकारी फल है।
क्या आप जानते हैं?


काले की अपेक्षा सफेद अंगूर में ज़्यादा विटामिन होते हैं।
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किशमिश और मुनक्के अंगूर को सुखा कर बनाए जाते हैं।
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अंगूरों से बनने वाली मदिरा सर्वोत्तम समझी जाती है।

अंग्रेज़ी में ग्रेप और ग्रेप फ्रूट दो अलग-अलग जातियों के फल हैं। ग्रेप अंगूर को कहते हैं जबकि ग्रेप फ्रूट संतरे की जाति का फल है।
अंगूर हरे और काले के साथ ही लाल, गुलाबी, नीले, बैंगनी, सुनहरे, सफ़ेद रंगों के भी होते हैं।
अंगूरों की जंगली जातियों की ६० से अधिक क़िस्में होती हैं।

अंगूर का फलों में बहुत महत्व है क्यों कि इसमें शक्कर की मात्रा अधिक और ग्लूकोज़ के रूप में होती है। ग्लूकोज़ रासायनिक प्रक्रिया का नतीजा होने के कारण शरीर में तुरन्त सोख लिया जाता है। इसलिए अंगूर खाने के बाद आप तुरंत स्फूर्ति अनुभव करते हैं। अंगूर विटामिनों का भी सर्वोत्तम स्रोत हैं। विटामिन का सेवन खाली पेट ज़्यादा लाभदायक होता है इसलिए अंगूर का सेवन प्रात: काल श्रेयस्कर है। लाल और काले रंग के अंगूर शाम के समय खाए जा सकते हैं।
पके हुए अंगूर का रस मायग्रेन का घरेलू इलाज माना जाता है। अंगूर हृदय को स्वस्थ रखता है, साथ-साथ दिल की धड़कन और दिल के दर्द में भी लाभकारी पाया गया है। अच्छी मात्रा में थोड़े दिन अगर अंगूर का रस सेवन करे तो किसी भी रोग को काबू में लाया जा सकता है। हृदय रोगियों के लिए अंगूर का रस काफी लाभकारी हो सकता है। अंगूर का महत्व पानी और पोटैशियम की प्रचुर मात्रा के कारण भी है। इसी तरह अलब्युमिन और सोडियम क्लोराइड की मात्रा कम होने के कारण ये गुर्दे की बीमारी में लाभकारी हैं। अंगूर गुर्दे और लीवर से पानी और विषैले तत्व बाहर निकालता है। इससे कब्ज़ की शिकायत भी दूर हो सकती है और पेट व आंत की बीमारियों में भी सुधार आ सकता सकता है। अच्छे नतीजे के लिए दिन में हर व्यक्ति को कम से ३५० ग्राम अंगूर खाने चाहिए। अस्थमा और दमा जैसी बीमारियों में भी अंगूर का रस लाभकारी है।
ब्रिटेन के अनुसंधाकर्ताओं ने पता लगाया है कि काले अंगूर में पाए जाने वाले फ्लैवोनायड्स का सीधा संबंध तंत्रिका कोशिकाओं से रहता है। इनके बीच होने वाला संवाद मस्तिष्क कोशिकाओं के पुनरुत्पादन को बढ़ावा देता है। अनुसंधानकर्ताओं का कहना है कि इससे अल्पकालिक एवं दीर्घकालिक याददाश्त को सुधारने में मदद मिलती है। उन्होंने उम्मीद जताई है कि इस अध्ययन की मदद से भविष्य में अल्ज़ाइमर का इलाज खोजा जा सकता है।
एक नए अध्ययन के अनुसार भोजन में अंगूर को नियमित रूप से शामिल कर लिया जाए तो बड़ी आंत में होने वाले कैंसर का खतरा कम हो सकता है। यह कैंसर की तीसरी ऐसी किस्म है, जिसके कारण हर साल विश्व में पांच लाख से अधिक लोगों की मौत हो जाती है।
मार्च २००8 से यूरोप की दो बड़ी खुदरा कंपनियों कारेफोर और टेस्को ने भारतीय बाजार से नासिक के अंगूर का निर्णय किया है। फ्रेंच कंपनी कारेफोर ने १५० टन बिना बीज वाले थॉपसन अंगूर का ऑर्डर दिया है और ब्रिटेन की कंपनी टेस्को ने २५० टन अंगूर का ऑर्डर दिया है। वैसे तो भारतीय अंगूर पहले भी यूरोप के बाजार में उपलब्ध थे लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है कि बड़ी खुदरा कंपनियों ने इतने बड़ा ऑर्डर दिया है। यूरोप में अंगूर २.५ यूरो प्रति किलो के हिसाब से बिकता है जबकि दूसरे देशों में दाम बहुत कम हैं। इस प्रकार इस साल भारत में अंगूरों के निर्यात में २० प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
अंगूर जल्दी खराब हो कर सड़ने लगते हैं। इसलिए ताज़े ही खा लेने चाहिए या फिर ठंडी जगह पर रखने चाहिए। अंगूर ख़रीदते समय अच्छे पके हुए अंगूर लेने की कोशिश करनी चाहिए। बड़े स्तर पर भारत में अंगूरों को दूरस्थ स्थानों पर भेजने के लिये टोकरियों या हल्की सस्ती लकड़ी के बक्सों में घास फूस या पत्तियों तह बिछाकर अंगूरों को पैक किया जाता है। इसके भंडारण के लिये अनुकूल तापमान शून्य डिग्री से०ग्रे० है अंगूरों को तोड़कर तुरन्त पैक कर लेना चाहिए अंगूरों का उपयोग बहुत तरह से होता है इसके दो प्रमुख उत्पाद उल्लेखनीय है (१) अंगूर की शराब और (२) किशमिश में।

VARSHNEY.009
02-07-2013, 10:37 AM
अमृतफल अमरूद http://www.abhivyakti-hindi.org/ss/images/ssamrood.jpg
अमरूद स्वाद में तो लाजवाब होता ही है, स्वास्थ्य की दृष्टि से भी यह उपयोगी फल है। पौष्टिकता से भरपूर अमरूद को संस्कृत में अमृतफल कहते हैं।
क्या आप जानते हैं?


पके अमरूद के बजाय कच्चे अमरूद में विटामिन सी अधिक मात्रा में पाया जाता है।
खाना खाने के पहले अमरूद के नियमित सेवन से कब्ज़ की शिकायत नहीं होती है।
अमरूद के प्रयोग से सेरम कोलेस्ट्राल घटा कर उच्च रक्तचाप से बचाव किया जा सकता है।
अमरूद के बीज को खूब चबा-चबा कर खाने से शरीर को लौह तत्व की पूर्ति होती है।
अमरूद विश्व में सर्वाधिक मात्रा में भारत में ही पैदा होता है।

अमरूद का पेड़ तीन से दस मीटर तक ऊँचा बारहों महीने हराभरा रहने वाला पेड़ है। पेड़ का तना काफी पतला होता है और उपर की हरी-भूरी खाल बीच-बीच में छिलती नज़र आती है। नई निकली छोटी-छोटी टहनियों पर पत्तों के पास सफेद रंग के फूल कहीं एक तो कहीं २-३ फूलों के गुच्छे में नज़र आते है। अमरूद का फल कभी गोल, कभी हल्का-सा लम्बा होता है। अमरूद का छिलका एकदम पतला हरे पीले रंग का होता है और अंदर का गूदा मुलायम और दानेदार होता है। इस गूदे में अन्दर फल के बीचोबीच सख्त बीज होते हैं। कुछ अलग जाति के अमरूद बीजरहित भी होते हैं। अलग-अलग जातियों के अमरूद का स्वाद भी अलग होता है।
अमरूद ४-५ दिन तक ताज़े रहते हैं लेकिन यदि फ्रिज में रखेंगे तो १०-१२ दिन तक अच्छे रहते हैं। अमरूद कभी छीलकर खाना नहीं चाहिए क्यों कि इनमें विटामिन सी काफी मात्रा में होता है जो दांतों और मसूढे के रोगों तथा जोड़ों के दर्द में बहुत ही उपयोगी है। पके हुए १०० ग्राम अमरूद से हमें १५२ मि. ग्रा. विटामिन सी, ७ ग्राम पाचनक्रिया में सहायक रेशे, ३३ मि. ग्रा. कैल्शियम और १ मि. ग्रा. लोहा प्राप्त होता है। साथ ही इसमें फॉस्फोरस और पोटैशियम की प्रचुर मात्रा होती है जो शरीर को पुष्ट बनाती है। अमरूद के पेड़ की जड़े, तने, पत्ते सभी दवा बनाने में काम आते हैं।
आयुर्वेद के अनुसार अमरूद कसैला, मधुर, खट्टा, तीक्ष्ण, बलवर्धक, उन्मादनाशक, त्रिदोषनाशक, दाह और बेहोशी को नष्ट करने वाला है। बच्चों के लिए भी यह पौष्टिक व संतुलित आहार है। अमरूद से स्नायु-मंडल, पाचन संस्थान, हृदय तथा दिमाग को बल मिलता है।
पेट दर्द में अमरूद का सफ़ेद गूदा हल्के नमक के साथ खाने से लाभ मिलता है। पुराने जुकाम के रोगी के लिए आग में भुना हुआ गरम गरम अमरूद नमक और काली मिर्च के साथ स्वास्थ्य लाभ दे सकता है। चीनी चिकित्सक अल्बर्ट विंग नंग लियांग ने अमरूद के फल और पत्तियों के चूर्ण के प्रयोग से मधुमेह के रोग पर आश्चर्यजनक सफलता प्राप्त की है। अमरूद के पत्ते को पानी में उबालकर उसमें नमक डालकर चेहरे पर लगाने से मुहासों से छुटकारा मिलता है।
हरा यानी ज़रा-सा कच्चा या फिर पीला याने पका अमरूद खाने में बड़ा स्वादिष्ट होता है। इससे जैम-जेली, गूदा या रस हर तरह से प्रयोग में लाया जाता है।
मलेशिया में पेरक, जोहोर, सेलंगोर और नेगरी सेंबिलन जैसी जगह अमरूद के पेड़ काफी मात्रा में लगाए जाते हैं। अमेरिका के अपेक्षाकृत गरम प्रदेश जैसे मेक्सिको ले कर पेरू तक, अमरूद के पेड़ उगाए जाते हैं। कहते हैं कि अमरूद का अस्तित्व २००० साल पुराना है पर आयुर्वेद में अमृतफल के नाम से इसका उल्लेख इससे हज़ारों साल पहले हो चुका है।
१५२६ में कैरेबियन द्वीप पर इसकी खेती पहली बार व्यावसायिक रूप से की गई। बाद में यह फ़िलीपीन और भारत में भी प्रचलित हुई। अब तो दुनिया भर में अमरूद को व्यावसायिक लाभ के लिए उगाया जाता है। अमरूद का पौधा किसी भी तरह की मिट्टी में या तापमान में बढ़ सकता है लेकिन सही मौसम और मिट्टी में बढ़नेवाले पौधों में लगे अमरूद स्वादिष्ट होते हैं।

VARSHNEY.009
02-07-2013, 10:37 AM
अद्भुत औषधि- ईसबगोल http://www.abhivyakti-hindi.org/ss/2009/psyllium-husk.jpg क्या आप जानते हैं?


कि बाजार में मिलने वाला ईसबगोल झाड़ी का आकार में उगने वाले एक पौधे के बीज का छिक्कल है।



कि आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में ईसबगोल को बहुत अधिक महत्त्व प्राप्त है। संस्कृत में इसे स्निग्धबीजम् नाम दिया गया है।



कि दसवीं सदी के फारस के मशहूर हकीम अलहेरवी और अरबी हकीम अविसेन्ना ने इसे 'ईसबगोल' नाम दिया।



कि ईसबगोल का उपयोग रंग-रोगन, आइस्क्रीम और अन्य चिकने पदार्थों के निर्माण में भी किया जाता है

हमारी प्राचीन चिकित्सा पद्धति मूलतः प्राकृतिक पदार्थों और जड़ी-बूटियों पर आधारित थी। आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में साध्य-असाध्य रोगों का इलाज हम प्रकृति प्रदत्त वनस्पतियों के माध्यम से सफलतापूर्वक करते थे। समय की धुंध के साथ हम कई प्राकृतिक औषधियों को भुला बैठे। 'ईसबगोल' जैसी चमत्कारिक प्राकृतिक औषधि भी उन्हीं में से एक है। हमारे वैदिक साहित्य और प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है।
विश्व की लगभग हर प्रकार की चिकित्सा पद्धति में 'ईसबगोल' का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है। अरबी और फारसी चिकित्सकों द्वारा इसके इस्तेमाल के प्रमाण मिलते हैं। दसवीं सदी के फारस के मशहूर हकीम अलहेरवी और अरबी हकीम अविसेन्ना ने 'ईसबगोल' द्वारा चिकित्सा के संबंध में व्यापक प्रयोग व अनुसंधान किए। 'ईसबगोल' मूलतः फारसी भाषा का शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ होता है- 'पेट ठंडा करनेवाला पदार्थ', गुजराती में 'उठनुंजीरू' कहा जाता है। लेटिन भाषा में यह 'प्लेंटेगो ओवेटा' नाम से जाना जाता है। इसका वनस्पति शास्त्रीय नाम 'प्लेटेगा इंडिका' है तथा यह 'प्लेटो जिनेली' समूह का पौधा है।
तनारहित पौधा
'ईसबगोल' पश्चिम एशियाई मूल का पौधा है। यह एक झाड़ी के रूप में उगता है, जिसकी अधिकतम ऊँचाई ढाई से तीन फुट तक होती है। इसके पत्ते महीन होते हैं तथा इसकी टहनियों पर गेहूँ की तरह बालियाँ लगने का बाद फूल आते हैं। फूलों में नाव के आकार के बीज होते हैं। इसके बीजों पर पतली सफ़ेद झिल्ली होती है। यह झिल्ली ही 'ईसबगोल की भूसी' कहलाती है। बीजों से भूसी निकालने का कार्य हाथ से चलाई जानेवाली चक्कियों और मशीनों से किया जाता है। ईसबगोल भूसी के रूप में ही उपयोग में आता है तथा इस भूसी का सर्वाधिक औषधीय महत्व है। 'ईसबगोल' की बुआई शीत ऋतु के प्रारंभ में की जाती है। इसकी बुआई के वास्ते नमीवाली ज़मीन होना आवश्यक है। आमतौर पर यह क्यारियाँ बनाकर बोया जाता है। बीज के अंकुरित होने में करीब सात से दस दिन लगते हैं। 'ईसबगोल' के पौधों की बढ़त बहुत ही मंद गति से होती है।
औषधीय महत्व
यूनानी चिकित्सा पद्धति में इसके बीजों को शीतल, शांतिदायक, मलावरोध को दूर करनेवाला तथा अतिसार, पेचिश और आंत के ज़ख्म आदि रोगों में उपयोगी बताया गया है। प्रसिद्ध चिकित्सक मुजर्रवात अकबरी के अनुसार नियमित रूप से 'ईसबगोल' का सेवन करने से श्वसन रोगों तथा दमे में भी राहत मिलती है। अठारवीं शताब्दी के प्रतिभाशाली चिकित्सा विज्ञानी पलेमिंग और रॉक्सवर्ग ने भी अतिसार रोग के उपचार के लिए 'ईसबगोल' को रामबाण औषधि बताया। रासायनिक संरचना के अनुसार, 'ईसबगोल' के बीजों और भूसी में तीस प्रतिशत तक 'क्यूसिलेज' नामक तत्व पाया जाता है। इसकी प्रचुर मात्रा के कारण इसमें बीस गुना पानी मिलाने पर यह स्वादरहित जैली के रूप में परिवर्तित हो जाता है। इसके अतिरिक्त 'ईसबगोल' में १४.७ प्रतिशत एक प्रकार का अम्लीय तेल होता है, जिसमें खून के कोलस्ट्रोल को घटाने की अद्भुत क्षमता होती है।
आधुनिक चिकित्सा प्रणाली में भी इन दिनों 'ईसबगोल' का महत्व लगातार बढ़ता जा रहा है। पाचन तंत्र से संबंधित रोगों की औषधियों में इसका इस्तेमाल हो रहा है। अतिसार, पेचिश जैसे उदर रोगों में 'ईसबगोल' की भूसी का इस्तेमाल न केवल लाभप्रद है, बल्कि यह पाश्चात्य दवाओं दुष्प्रभावों से भी सर्वथा मुक्त है। भोजन में रेशेदार पदार्थों के अभाव के कारण 'कब्ज़' हो जाना आजकल सामान्य बात है और अधिकांश लोग इससे पीड़ित हैं। आहार में रेशेदार पदार्थों की कमी को नियमित रूप से ईसबगोल की भूसी का सेवन कर दूर किया जा सकता है। यह पेट में पानी सोखकर फूलती है और आँतों में उपस्थित पदार्थों का आकार बढ़ाती है। इससे आँतें अधिक सक्रिय होकर कार्य करने लगती है और पचे हुए पदार्थों को आगे बढ़ाती है। यह भूसी शरीर के विष पदार्थ (टाक्सिंस) और बैक्टीरिया को भी सोखकर शरीर से बाहर निकाल देती है। इसके लसीलेपन का गुण मरोड़ और पेचिश रोगों को दूर करने में सहायक होता है।
कुछ घरेलू प्रयोग


'ईसबगोल' की भूसी तथा इसके बीज दोनों ही विभिन्न रोगों में एक प्रभावी औषधि का कार्य करते हैं। इसके बीजों को शीतल जल में भिगोकर उसके अवलेह को छानकर पीने से खूनी बवासीर में लाभ होता है। नाक से खून बहने की स्थिति में 'ईसबगोल' के बीजों को सिरके के साथ पीसकर कनपटी पर लेप करना चाहिए।
कब्ज़ के अतिरिक्त दस्त, आँव, पेट दर्द आदि में भी 'ईसबगोल की भूसी' लेना लाभप्रद रहता है। अत्यधिक कफ होने की स्थिति में ईसबगोल के बीजों का काढ़ा बनाकर रोगी को दिया जाता है। आँव और मरोड़ होने पर एक चम्मच ईसबगोल की भूसी दो घंटे पानी में भिगोकर रोज़ाना दिन में चार बार लेने तथा उसके बाद से दही या छाछ पीने से लाभ देखा गया है।
ईसबगोलल की भूसी को सीधे भी दूध या पानी के साथ लिया जा सकता है या एक कप पानी में एक या दो छोटी चम्मच भूसी और कुछ शक्कर डालकर जेली तैयार कर लें तथा इसका नियमित सेवन करें।
ईसबगोल रक्तातिसार, अतिसार और आम रक्तातिसार में भी फ़ायदेमंद है। खूनी बवासीर में भी इसका इस्तेमाल लाभ पहुँचाएगा। पेशाब में जलन की शिकायत होने पर तीन चम्मच ईसबगोल की भूसी एक गिलास ठंडे पानी में भिगोकर उसमें आवश्यकतानुसार बूरा डालकर पीने से यह शिकायत दूर हो सकती है। इसी प्रकार कंकर अथवा काँच खाने में आ जाए, तो दो चम्मच ईसबगोल की भूसी गरम दूध के साथ तीन-चार बार लेने पर आराम मिलता है।

लोकप्रिय औषधि
सामान्यतः ईसबगोल की भूसी का और बीजों का उपयोग रात्रि को सोने से पहले किया जाता है, किंतु आवश्यकतानुसार इन्हें दिन में दो या तीन बार भी लिया जा सकता है। ईसबगोल की भूसी का सामान्य रूप से पानी के साथ सेवन किया जाता है। कब्ज़ दूर करने के लिए इसे गरम दूध के साथ और दस्त, मरोड़, आँव आदि रोगों में दही अथवा छाछ के साथ सेवन करने का नियम है। सामान्यतः एक या दो चम्मच ईसबगोल की भूसी पर्याप्त रहती है।
ईसबगोल पाचन संस्थान संबंधी रोगों की लोकप्रिय औषधि होने के साथ-साथ इसका उपयोग रंग-रोगन, आइस्क्रीम और अन्य चिकने पदार्थों के निर्माण में भी किया जाता है। आजकल तो औषधीय गुणों से युक्त ईसबगोल की भूसी से गर्भ निरोधक गोलियाँ भी बनने लगी हैं। सचमुच ईसबगोलल एक चमत्कारिक औषधि है।

VARSHNEY.009
03-07-2013, 02:37 PM
तेजपत्ता



पसीने की बदबू —- पसीने की बदबू से परेशान हैं, तो एक लीटर पानी में कुछ तेजपत्तों को उबाल लें। इस पानी को एक बाल्टी नहाने के पानी में मिला लें। सारा दिन आपको ताजगी महसूस होगी।



त्वचा की तकलीफ ——- तेज धूप में घूम कर लौटने पर त्वचा पर लाल या काले धब्बे पड गए हों, तो पांच टी स्पून तेजपत्ते का पानी तथा पांच टी स्पून हरे पुदीने का रस मिला कर लगाएँ।



सनबर्न ——- सनबर्न होने पर तेजपत्ता जल आधा छोटा चम्मच, तुलसी का रस आधा चम्मच, पोदीने का रस आधा चम्मच मिला कर फ्रिज में रख दें। ठंडा होने पर इसे रुई से प्रभावित स्थान पर लगाएँ।



काले धब्बे———– आँखों के नीचे काले धब्बे हो गए हों, दो छोटे चम्मच तेजपत्ते वाला जल, दो छोटे चम्मच खीरे का रस एवं जरा सा शहद मिला कर आँखों के आसपास हल्के हाथों से लगाएँ। सूख जाने पर पैक को धो डालें। इससे आँखों के नीचे की कालिमा तो दूर होगी ही, आँखों के आसपास की त्वचा कांतिमय भी हो जाएगी, इनमें झुर्रियाँ नजर नहीं आएँगी।



बालों की तकलीफ ———– पिसा हुआ तेजपत्ता, तुलसी का रस, शहद और एक अंडा मिला कर पेस्ट बना लें और इसे बालों में लगा कर बीस मिनट के लिए छोड़ दें। इसके बाद अच्छे कन्डीशनर युक्त शैंपू से सिर धो लें, तो बाल झड़ने, रुसी आदि समस्याओं से निजात मिल सकती है।


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VARSHNEY.009
03-07-2013, 02:51 PM
स्वस्थवार्धक पेय

गर्मी के दिनों में प्रायः प्यास से कण्ठ सूखने लगता है। क्या करते हैं हम प्यास बुझाने के लिये? कोकाकोला, पेप्सी जैसे शीतल पेयों सेवन करके मुनाफाखोर बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अपनी गाढ़ी कमाई लुटाते हैं। इनके विज्ञापनों के (कु)प्रभाव के कारण हम अपनी कमाई लुटा कर खुश भी होते हैं। हमारा इस प्रकार से ब्रेनवाशिंग कर दिया गया है कि हमें प्याऊ में उपलब्ध शीतल जल हानिप्रद लगने लगता है और न जाने कितने दिनों पहले पैक किया हुआ सड़ा पानी लाभप्रद। हम पैसे देकर पानी खरीदते हैं।
पहले के समय में भी तो आखिर गर्मी के दिन आते थे और लोग उस गर्मी और लू से मुकाबला भी किया करते थे। उन्हें पता था कि गर्मी से मुकाबला करने के लिये प्रकृति ने हमें मौसमी फलों के रूप में बहुत से उपहार दिये हैं। आइये जानें इन मौसमी फलों के बारे में।
तरबूज
प्यास बुझाने के लिये सर्वोत्तम है तरबूज का सेवन करना। तरबूज जहाँ सुस्वादु होता है वहीं इसमें पानी की इतनी अधिक मात्रा होती है कि प्यासे आदमी को यह तरोताजा कर देता है। तरबूज खाने से जहाँ प्यास बुझती है वहीं यह कैंसर के खतरे से भी मुक्त करता है। इसके सेवन से प्रोटीन और फैट भी मिलता है। गर्मी के दिनों में बाजार में तरबूज अटे पड़े होते हैं और आपको आसानी से प्राप्य है।
खरबूज
तरबूज के जैसे ही खरबूज में भी पर्याप्त मात्रा में पानी होता है और इसे खाने से प्यास बुझती है।
ककड़ी और खीरा
ककड़ी और खीरा में पानी की पर्याप्त मात्रा होती है। इनमें पोटेशियम की भी मात्रा होती है जो कि आपके शरीर में मिनरल का संतुलन बनाये रखते हैं। इनके भीतर पाया जाने वाला स्ट्रोल कोलोस्ट्रोल के स्तर को कम करता है। चूँकि स्ट्रोल खीरे के छिलके में अधिक होता है, इसलिये इसे छिलके के साथ ही खाना अधिक लाभप्रद है।
प्याज
प्याज में पाये जाने वाले तत्व शरीर को लू से लड़ने की पर्याप्त क्षमता प्रदान करते हैं। यही कारण है कि गर्मी के दिनों में प्याज के सेवन का चलन परम्परागत रूप से चला आ रहा है। पुराने समय में तो लोग गर्मी की दोपहरी में निकलते समय कम से कम एक प्याज अपने साथ ही रख लिया करते थे।
टमाटर
टमाटर को लाल रंग प्रदान करने वाला रसायन लिंकोपेन गर्मियों में सूर्य के ताप से त्वचा की रक्षा करने की क्षमता प्रदान करता है। टमाटर विटामिन से भरपूर होते हैं और साथ ही साथ इसमें फैट की भी थोड़ी बहुत मात्रा पाई जाती है। कैंसर से लड़ने की शक्ति तो इसमें होती ही है।
स्ट्राबेरी
स्ट्राबेरी में पानी की पर्याप्त मात्रा होने के साथ ही साथ विटामिन सी भी भरपूर होता है। इसमें पाया जाने वाले एंटी ऑक्सीडेंट्स सूर्य के प्रकाश से त्वचा की रक्षा करते हैं। कैंसर से रक्षा करने वाले तत्व भी इसमें विद्यमान होते हैं।
आम
गर्मी के दिनों की बात हो और आम की बात न हो तो बात ही अधूरी रह जाती है। आम ग्रीष्म ऋतु का प्रमुख फल है और इस फलों का राजा माना गया है। रसीले आमों में पाया जाने वाला पोटेशियम शरीर में मिनरल की कमी को पूरा करता है।

VARSHNEY.009
03-07-2013, 02:52 PM
रसोई की उपयोगी वस्तुए


कच्चे नारियल को कद्दूकस करें और किसे हुए नारियल को एक महीन कपड़े में पोटली बनाकर दबाएँ ताकि उसका दूध निकल आए। नारियल के इस दूध को चेहरे पर लेप करें। दस-पंद्रह मिनट के बाद साफ पानी से धो लें। चेहरा निखर कर दमकने लगेगा।



कच्चे दूध में रुई का फोहा डालकर फोहे को पूरे चेहरे में मलें। कुछ देर बाद चेहरा धो लें। चेहरे की न दिखाई देने वाली सारी मैल निकल जाएगी।



अगर त्वचा तैलीय है और आपके चेहरे पर तेल चमकने लगता है तो एक खीरा को स्लाइस में काट लीजिए तथा एक-दो स्लाइस को चेहरे पर मलिए ताकि खीरे के पानी का आपके चेहरे पर अच्छी तरह से लेप हो जाए। दो-तीन मिनट के बाद चेहरा धो लें। चेहरे पर से तेल का नामोनिशान तक मिट जाएगा।



चेहरे में काले दाग हो गए हों तो उन पर दूध में बादाम को घिसकर लेप करें और दस मिनट के बाद पानी से धो लें। नियमित रूप से प्रतिदिन यह क्रिया करने से आठ-दस दिनों में ही दाग गायब होने शुरू हो जाएँगे।



यदि आँखो के चारों ओर काले घेरे हो गए हो तो खीरे के एक स्लाइस को घेरे के ऊपर 15 मिनिट तक रखे। इस प्रयोग को नियमित 7 दिनों तक करने पर काले घेरे खत्म हो जाएँगे।

VARSHNEY.009
03-07-2013, 02:55 PM
हल्दी
रसोईघर के लिए एक आवश्यक वस्तु के रूप में तो हल्दी को सभी जानते हैं किन्तु हल्दी में अनेक चिकित्सीय गुण छुपे हुए हैं इस बात की जानकारी कम ही लोगों को है। प्रस्तुत हैं हल्दी के कुछ आरोग्यवर्धक गुणः


हल्दी में कैंसर, डायबिटीज और गठिया जैसी बीमारियों को दूर करने की क्षमता होती है।



हल्दी के पावडर को जले और कटे अंग पर लगाने से संक्रमण की संभावना नहीं रह जाती। वास्तव में कहा जाए तो हल्दी एक प्राकृतिक एंटिसेप्टिक, एंटी-इन्फ्लेमेटरी और एंटिबैक्टेरियल एजेन्ट है।



वैज्ञानिकों के अनुसार हल्दी में लौह तत्व पाया जाता है।



हल्दी में विटामिन बी के कुछ तत्व भी होते हैं।



कफ एवं पित्त जनित रोगों को दूर करने में हल्दी अत्यन्त सहायक है।



हल्दी एक पूर्ण औषधि है क्योंकि इसका कोई साइड इफेक्ट है ही नहीं।



हल्दी का सेवन दूध, गुनगुने पानी यहाँ तक कि चाय तक के साथ किया जा सकता है।



फोड़े फुंसियों पर हल्दी की पुल्टिश का प्रयोग करने से वे जल्दी पक जाते हैं।

VARSHNEY.009
03-07-2013, 02:56 PM
नीम

नीम की पत्तियों को पीस कर उसे चेहरे पर लेप करने से फुंसियाँ और मुहाँसे मिट जाते हैं। बल्कि कहा जाए तो नीम की पत्तियों का लेप हर प्रकार के चर्म रोग को दूर करता है।



नीम की पत्तियों को पानी में उबाल कर तथा ठंडा करके उस पानी से मुँह धोने से पिंपल्स दूर होते हैं।



नीम का दातून करने से दाँत चमकदार और मसूढ़े स्वस्थ होते हैं।



नीम की पत्तियों का रस पीने से रक्त शुद्ध होता है और त्वचा की कांति बढ़ती है।



दो भाग नीम की पत्तियों का रस और एक भाग शहद मिलाकर पीने से पीलिया रोग में फायदा होता है।



नीम की सूखी पत्तियों को जलाने से उत्पन्न धुँएँ से मच्छर भाग जाते हैं।

VARSHNEY.009
03-07-2013, 02:57 PM
मेथी
त्वचा की सुन्दरता – मेथी के ताजे पत्ते पीस कर चेहरे पर लगायें, ड्राइनेस, पिंपल्स, रिंकल्स, रेशेज आदि की समस्या दूर होती है तथा त्वचा चमकदार, सुंदर और मुलायम हो जाती है। गठिया, बात और जोड़ों का का दर्द – रोज सुबह मुँह धोने के बाद दो चम्मच मेथी बीज को अच्छी चबा-चबा कर खाएँ। कुछ ही दिनों में दर्द खत्म हो जाएगा।
मधुमेह (डायबिटीज) – रात को एक कप पानी में एक चम्मच डाल कर रख दें। सुबह कप के पानी को पीकर भीगी हुई मेथी को खाएँ। डायबिटीज में आराम मिलेगा।
साइटिका और कमर दर्द – में एक ग्राम मेथी दाना पाउडर और सौंठ पाउडर को थोड़े गर्म पानी के साथ दिन में दो-तीन बार लेना फायदेमंद है।
अपच या बदहजमी – आधा चम्मच मेथी दाना पानी के साथ सुबह-शाम निगलें, कब्ज दूर होगा।
हाई ब्लड प्रेशर – 5 ग्राम मेथी और 5 सोया के दाने पीसकर सुबह-शाम पानी के साथ खाने से फायदे होता है।
लो ब्लडप्रेशर – मेथी और अदरक की सब्जी खाना लो ब्लडप्रेसर के लिए फायदेमंद होता है।
अल्सर और एसीडिटी – मेथी दानों को पीसकर मट्ठे में मिला कर पीने से फायदा होता है।

VARSHNEY.009
03-07-2013, 02:57 PM
अपने बचपन के दिनों में मैं देखा करता था कि बुजुर्ग से बुजुर्ग व्यक्ति की नजरें बड़ी तेज हुआ करती थीं। उस जमाने में मैंने शायद ही किसी व्यक्ति को चश्मा लगाये हुए देखा होगा। पर आज देखता हूँ कि क्या बड़े, क्या बच्चे हर किसी को कम उम्र में ही नजर का चश्मा लगाने की जरूरत पड़ जाती है। यदि आप चाहते हैं कि आपके नेत्रों की ज्योति दिनों दिन बढ़े और आपको चश्मा लगाने की कभी भी जरूरत न पड़े तो निम्न प्रयोग को नियमित रूप से प्रतिदिन दोहरायें।
पंसारी की दूकान से आँवले का पाउडर ले आवें। रात को सोते समय एक लोटे पानी में दो बड़े चम्मच आँवला पाउडर डाल कर रख दें। सुबह उठने पर लोटे के उस पानी को महीन कपड़े से छान लें तथा छने हुए पानी के खूब सारे छींटे अपनी आँखों पर दें। रोजाना नियमित रूप से आँवले के पानी के छींटे आँखों में देते रहने से आपके नेत्रों की ज्योति बढ़ती जाएगी।
और हाँ, छानने के बाद जो भीगा हुआ आँवला बच जाए उसे फेंकिये नहीं बल्कि उसकी लुगदी बना कर सिर के बालों में अच्छी तरह से लेप कर दें। पंद्रह-बीस मिनट के बाद सर धो लें। ऐसा करने से आपके बालों की चमक भी बढ़ेगी।

VARSHNEY.009
03-07-2013, 02:57 PM
हमारा देश, देवभूमि, भारत ही विश्व में एक ऐसा देश है जहाँ छः ऋतुएँ होती हैं। वसंत ऋतु को ऋतुराज याने कि ऋतुओं का राजा कहा गया है। वसंत ऋतु में जहाँ पलाश के पेड़ की सारी की सारी पत्तियाँ झड़ जाती हैं वहीं वह रक्त के सदृश लाल रंग वाले फूलों से लद जाता है और उसकी शोभा देखते ही बनती है। सेमल पेड़ की फुनगियों पर भी लाल लाल फूलों का सौन्दर्य मन को मुग्ध करता है। वसंत ऋतु मानव मन को मादक तो बनाता है पर शीत ऋतु में बढ़ चुकी पाचन शक्ति को कमजोर भी करता है। अतः वसंत ऋतु में गरिष्ठ भोजन जैसे कि मिठाई, तली हुए खाद्य पदार्थ आदि का सेवन वर्जित माना गया है। वसंत ऋतु में सूखे मेवे, दही, आईसक्रीम, खट्टे मीठ फल आदि भी स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक हैं। इस ऋतु में हल्का तथा सुपाच्य भोजन जो कि कम तेल व घी में बने हुए हों, तीखे, कड़वे, कसैले, उष्ण खाद्य पदार्थों के सेवन को उचित माना गया है। करेला, मेथी, ताजी मूली, जौ, भुने हुए चने, पुराना गेहूँ, चना, मूँग, लाई, मुरमुरे, अदरक, सौंठ, अजवायन, हल्दी, पीपरामूल, काली मिर्च, हींग, सूरन, आदि वसंत ऋतु में उत्तम होते हैं।
वसंत ऋतु में भरपेट भोजन न कर के कुछ कम भोजन करने तथा 15 दिनों उपवास रखने को स्वास्थ्य के लिए हितकारी माना गया है।

VARSHNEY.009
25-10-2013, 12:41 PM
तुलसी का महत्व
डॉ.अनुराग विजयवर्गीय तुलसी भारतीय घरों में सबसे अधिक पाया जानेवाला पौधा है। यह झाड़ी के रूप में उगता है और १ से ३ फुट ऊँचा होता है। इसकी पत्तियाँ बैंगनी आभा वाली हल्के रोएँ से ढकी होती हैं। पत्तियाँ १ से २ इंच लम्बी सुगंधित और अंडाकार या आयताकार होती हैं। पुष्प मंजरी अति कोमल एवं ८ इंच लम्बी और बहुरंगी छटाओं वाली होती है, जिस पर बैंगनी और गुलाबी आभा वाले बहुत छोटे हृदयाकार पुष्प चक्रों में लगते हैं। बीज चपटे पीले रंग के छोटे काले चिह्नों से युक्त अंडाकार होते हैं। नए पौधे मुख्य रूप से वर्षा ऋतु में उगते हैं और शीतकाल में फूलते हैं। पौधा सामान्य रूप से दो-तीन वर्षों तक हरा बना रहता है। इसके बाद इसकी वृद्धावस्था आ जाती है। पत्ते कम और छोटे हो जाते हैं और शाखाएँ सूखी दिखाई देती हैं। इस समय उसे हटाकर नया पौधा लगाने की आवश्यकता प्रतीत होती है।
तुलसी की जाति-प्रजातियाँ-
तुलसी की मुख्य रूप से सात प्रजातियाँ पाई जाती हैं। १-ऑसीमम अमेरिकन (काली तुलसी) गम्भीरा या मामरी। २-ऑसीमम वेसिलिकम (मरुआ तुलसी) मुन्जरिकी या मुरसा। ३-ऑसीमम वेसिलिकम मिनिमम। ४-आसीमम ग्रेटिसिकम (राम तुलसी बन तुलसी)। ५-ऑसीमम किलिमण्डचेरिकम (कर्पूर तुलसी)। ६-ऑसीमम सैक्टम तथा ७-ऑसीमम विरिडी। इनमें ऑसीमम सैक्टम को प्रधान या पवित्र तुलसी माना गया जाता है, इसकी भी दो प्रधान प्रजातियाँ हैं-श्री तुलसी जिसकी पत्तियाँ हरी होती हैं तथा कृष्णा तुलसी जिसकी पत्तियाँ नीलाभ-कुछ बैंगनी रंग लिए होती हैं। श्री तुलसी के पत्र तथा शाखाएँ श्वेताभ होते हैं जबकि कृष्ण तुलसी के पत्रादि कृष्णाभ होते हैं। अधिकांश विद्वानों का मत है कि दोनों तुलसी गुणों में समान हैं। भारतीय संस्कृति में तुलसी के पौधे को पवित्र माना गया है और इसे घर में लगाने की परंपरा है। पुरातन औषधीय ग्रंथों में भी तुलसी के गुणों एवं उसकी उपयोगिता का वर्णन मिलता है। इसके अतिरिक्त ऐलोपैथी, होमियोपैथी और यूनानी दवाओं में भी तुलसी के विभिन्न रूपों का प्रयोग किया जाता है।
रासायनिक संरचना

तुलसी में अनेकों जैव सक्रिय रसायन पाए गए हैं, जिनमें ट्रैनिन, सैवोनिन, ग्लाइकोसाइड और एल्केलाइड्स प्रमुख हैं। अभी भी पूरी तरह से इनका विश्लेषण नहीं हो पाया है। प्रमुख सक्रिय तत्व हैं एक प्रकार का पीला उड़नशील तेल जिसकी मात्रा संगठन स्थान व समय के अनुसार बदलते रहते हैं। ०.१ से ०.३ प्रतिशत तक तेल पाया जाना सामान्य बात है। 'वैल्थ ऑफ इण्डिया' के अनुसार इस तेल में लगभग ७१ प्रतिशत यूजीनॉल, बीस प्रतिशत यूजीनॉल मिथाइल ईथर तथा तीन प्रतिशत कार्वाकोल होता है। श्री तुलसी में श्यामा की अपेक्षा कुछ अधिक तेल होता है तथा इस तेल का सापेक्षिक घनत्व भी कुछ अधिक होता है। तेल के अतिरिक्त पत्रों में लगभग ८३ मिलीग्राम प्रतिशत विटामिन सी एवं २.५ मिलीग्राम प्रतिशत कैरीटीन होता है। तुलसी बीजों में हरे पीले रंग का तेल लगभग १७.८ प्रतिशत की मात्रा में पाया जाता है। इसके घटक हैं कुछ सीटोस्टेरॉल, अनेकों वसा अम्ल मुख्यतः पामिटिक, स्टीयरिक, ओलिक, लिनोलक और लिनोलिक अम्ल। तेल के अलावा बीजों में श्लेष्मक प्रचुर मात्रा में होता है। इस म्युसिलेज के प्रमुख घटक हैं-पेन्टोस, हेक्जा यूरोनिक अम्ल और राख । राख लगभग ०.२ प्रतिशत होती है।
साहित्यिक उल्लेख

भारतीय चिकित्सा विधान में सबसे प्राचीन और मान्य ग्रन्थ "चरक संहिता" में तुलसी के गुणों का वर्णन एकत्रित दोषों को दूर करके सर का भारीपन, मस्तक शूल, पीनस, आधा सीसी, कृमि, मृगी, सूँघने की शक्ति नष्ट होने आदि को ठीक कर देता है। भारतीय धर्म गर्न्थों में तुलसी के रोग निवारक क्षमता की भूरी-भूरी प्रशंसा की गयी है ----
तुलसी कानन चैव गृहे यास्यावतिष्ठ्ते,
तदगृहं तीर्थभूतं हि नायान्ति ममकिंकरा।
तुलसी विपिनस्यापी समन्तात पावनं स्थलम,
क्रोशमात्रं भवत्येव गांगेयेनेक चांभसा।
राजवल्ल्भ ग्रन्थ" में कहा गया है ---- तुलसी पित्तकारक तथा वाट कृमि और दुर्गन्ध को मिटाने वाली है, पसली के दर्द खाँसी, श्वास, हिचकी में लाभकारी है। इसे सभी लोग बड़ी श्रद्धा एवं भक्ति से पूजते हैं।
आधुनिक शोध
विदेशी चिकित्सक इन दिनों भारतीय जड़ी बूटियों पर व्यापक अनुसंधान कर रहे हैं। अमरीका के मैस्साच्युसेट्स संस्थान सहित विश्व के अनेक शोध संस्थानों में जड़ी-बूटियों पर शोध कार्य चल रहे हैं। अमरीका के नेशनल कैंसर रिसर्च इंस्टीट्यूट में कैंसर एवं एड्स के उपचार में कारगर भारतीय जड़ी-बूटियों को व्यापक पैमाने पर परखा जा रहा है। विशेष रूप से तुलसी में एड्स निवारक तत्वों की खोज जारी है। मानस रोगों के संदर्भ में भी इन पर परीक्षण चल रहे हैं। आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों पर पूरे विश्व का रुझान इनके दुष्प्रभाव मुक्त होने की विशेषता के कारण बढ़ता जा रहा है। एक अध्ययन से यह बात स्पष्ट हो गई है कि अब तुलसी के पत्तों से तैयार किए गए पेस्ट का इस्तेमाल कैंसर से पीडित रोगियों के इलाज में किया जाएगा। दरअसल वैज्ञानिकों को "रेडिएशन-थैरेपी" में तुलसी के पेस्ट के जरिए विकिरण के प्रभाव को कम करने में सफलता हासिल हुई है। यह निष्कर्ष पिछले दस वर्षों के दौरान भारत में ही मणिपाल स्थित कस्तूरबा मेडिकल कालेज में चूहों पर किए गए परीक्षणों के आधार पर निकाला गया। कैंसर के इलाज में रेडिएशन के प्रभाव को कम करने के लिए प्रयुक्त किया जाने वाला "एम्मी फास्टिन" महँगा तो है ही, साथ ही इसके इस्तेमाल से लो- ब्लड प्रेशर और उल्टियाँ होने की शिकायतें भी देखी गई हैं। जबकि तुलसी केपेस्ट के प्रयोग से ऐसे दुष्प्रभाव सामने नहीं आते।
पारंपरिक मान्यताएँ
माना जाता है कि तुलसी के संसर्ग से वायु सुवासित व शुद्ध रहती है। प्राचीन ग्रंथों में इसे अकाल मृत्यु से बचानेवाला और सभी रोगों को नष्ट करनेवाला कहा गया है। मृत्यु के समय तुलसी मिश्रित गंगाजल पिलाया जाता है जिससे आत्मा पवित्र होकर सुख-शांति से परलोक को प्राप्त हो। इसके स्वास्थ्य संबंधी गुणों के कारण लोग श्रद्धापूर्वक तुलसी की अर्चना करते हैं, कार्तिक मास में तुलसी की आरती एवं परिकर्मा के साथ-साथ उसका विवाह किया जाता है। तुलसी को संस्कृत भाषा में ग्राम्या व सुलभा कहा गया है। इसका कारण यह है कि यह सभी गाँवों में सुगमतापूर्वक उगाई जा सकती है और सर्वत्र सुलभ है
घरेलू उपयोग
पेट-दर्द, और उदर रोग से पीड़ित होने पर तुलसी के पत्तों का रस और अदरक का रस बराबर मात्रा में मिलाकर गर्म करके सेवन करने से कष्ट दूर हो जाता है। तुलसी के साथ में शक्कर अथवा शहद मिलकर खाने से चक्कर आना बंद हो जाता है। सिरदर्द में तुलसी के सूखे पत्तों का चूर्ण कपडे में बाँधकर सूँघने से फायदा होता है। वन तुलसी का फूल और काली मिर्च को जलते कोयले पर डालकर उसका धुआँ सूँघने से सिर का कठिन दर्द ठीक होते देखा गया है। केवल तुलसी पत्र को पीस कर लेप करने से सिरदर्द और चर्म रोग व मुहाँसों में लाभ होता है। छोटे बच्चे को अफरा अथवा पेट फूलने की शिकायत होने पर तुलसी और पान के पत्ते का रस बराबर मात्रा में मिलाकर इसकी कुछ बूँदें दिन में कई बार देने से आराम मिलता है। दाँत निकलते समय बच्चों के दस्त से छुटकारा पाने के लिये भी तुलसी के पत्ते का चूर्ण शहद में मिलाकर सेवन कराने से लाभ होता है। सर्दी और खाँसी और दमे में भी तुलसी पत्र का रस उपयोगी पाया गया है।
अन्य उपयोग
बुलेटिन ऑफ बॉटनिकल सर्वे ऑफ इंडिया" में प्रकाशित एक शोध पत्र के अनुसार तुलसी के रस में मलेरिया बुखार पैदा करने वाले मच्छरों को नष्ट करने की अद्भुत क्षमता पाई जाती है। वनस्पति वैज्ञानिक डॉ. जी.डी. नाडकर्णी का अध्ययन बतलाता है कि तुलसी के नियमित सेवन से हमारे शरीर में विद्युतीय-शक्ति का प्रवाह नियंत्रित होता है और व्यक्ति की जीवन अवधि में वृद्धि होती है। डॉ. के. वसु ने तुलसी को संक्रामक-रोगों जैसे यक्ष्मा, मलेरिया, कालाजार इत्यादि की चिकित्सा में बहुत उपयोगी बताया है। रूसी अनुसंधान कर्ताओं ने यह पुष्टि की है कि तुलसी में अन्यान्य गुणों के साथ-साथ थकान दूर करने वाले गुण भी पाए जाते हैं। इसके नियमित सेवन से "क्रोनिक-माइग्रेन" के निवारण में मदद मिलती है।

VARSHNEY.009
25-10-2013, 12:42 PM
नवदुर्गा के औषधि रूप
पं. सुरेन्द्र बिल्लौरे शारदीय नवरात्र के पहले दिन घट स्थापन कर दुर्गा की प्रतिमा की स्थापना की जाती है और भक्त पूरे नौ दिन व्रत और दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं। पूरे नवरात्र अखंड दीप जलाकर माँ की स्तुति की जाती है और उपवास रखा जाता है। नवरात्र के अंतिम दिन कन्याओं को भोजन कराकर यथेष्ट दक्षिणा देकर व्रत की समाप्ति की जाती है। साल में नवरात्र दो बार आते हैं। चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से शुरू होने वाले नौ दिवसीय पर्व को वासंतिक नवरात्र कहा जाता है। नवरात्र में भगवती के नौ रूपों की पूजा-आराधना का विधान है। इन नव दुर्गाओं के स्वरूप की चर्चा करते हुए ब्रह्मा जी द्वारा महर्षि मार्कण्डेय के लिये इस क्रम में रचा है।
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघंटेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।
पंचमं स्क्न्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च ।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः ।।

नवरात्र के दिनों को तीन भागों में बाँटा गया है। पहले तीन दिनों में तमस को जीतने की आराधना, अगले तीन दिन रजस और आखिरी तीन दिन सत्व को जीतने की अर्चना के माने गए हैं। नवरात्र पर्व का आध्यात्मिक, धार्मिक और सामाजिक महत्व के अतिरिक्त औषधीय महत्त्व भी है। मार्कंडेय पुराण में वर्णित देवी महात्म्य में दुर्गा ने स्वयं को शाकंभरी अर्थात साग-सब्जियों से विश्व का पालन करने वाली बताया है। इस अर्थ में शाकंभरी जड़ी बूटियों की देवी भी हैं जो सालभर हमारे शरीर की रक्षा करती हैं। नवदुर्गा के रूप में वर्णित ये नव औषधियाँ प्राणियों के समस्त रोगों को हरने वाली और रोगों से बचाए रखने के लिये कवच का काम करने वाली हैं। ये समस्त प्राणियों की पाँचों ज्ञानेंद्रियों व पाँचों कमेंद्रियों पर प्रभावशील हैं। ऐसा माना जाता है कि इनके प्रयोग से मनुष्य अकाल मृत्यु से बचकर सौ वर्ष की आयु भोगता है। देवी के नौ रूपों में स्थित ये औषधियाँ इस प्रकार हैं-

प्रथम शैलपुत्री (हरड़) -
प्रथम रूप शैलपुत्री माना गया है। इस भगवती देवी शैलपुत्री को हिमावती हरड़ कहते हैं। यह आयुर्वेद की प्रधान औषधि है जो सात प्रकार की होती है। हरीतिका (हरी) जो भय को हरने वाली है। पथया - जो हित करने वाली है। कायस्थ - जो शरीर को बनाए रखने वाली है। अमृता (अमृत के समान) हेमवती (हिमालय पर होने वाली)।चेतकी - जो चित्त को प्रसन्न करने वाली है। श्रेयसी (यशदाता) शिवा - कल्याण करने वाली ।

द्वितीय ब्रह्मचारिणी (ब्राह्मी) -
दुर्गा का दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी को ब्राह्मी कहा है। ब्राह्मी आयु को बढ़ाने वाली स्मरण शक्ति को बढ़ाने वाली, रूधिर विकारों को नाश करने के साथ-साथ स्वर को मधुर करने वाली है। ब्राह्मी को सरस्वती भी कहा जाता है। क्योंकि यह मन एवं मस्तिष्क में शक्ति प्रदान करती है। यह वायु विकार और मूत्र संबंधी रोगों की प्रमुख दवा है। यह मूत्र द्वारा रक्त विकारों को बाहर निकालने में समर्थ औषधि है। अत: इन रोगों से पीड़ित व्यक्ति को ब्रह्मचारिणी की आराधना करना चाहिए।

तृतीय चंद्रघंटा (चन्दुसूर) -
दुर्गा का तीसरा रूप है चंद्रघंटा, इसे चनदुसूर या चमसूर कहा गया है। यह एक ऐसा पौधा है जो धनिये के समान है। इस पौधे की पत्तियों की सब्जी भी बनाई जाती है। ये कल्याणकारी है। इस औषधि से मोटापा दूर होता है। इसलिये इसको चर्महन्ती भी कहते हैं। शक्ति को बढ़ाने वाली, रक्त को शुद्ध करने वाली एवं हृदयरोग को ठीक करने वाली चंद्रिका औषधि है। अत: इस बीमारी से संबंधित रोगी को चंद्रघंटा की पूजा करना चाहिए।

चतुर्थ कुष्माण्डा (पेठा) -
दुर्गा का चौथा रूप कुष्माण्डा है। इस औषधि से पेठा मिठाई बनती है। इसलिये इस रूप को पेठा कहते हैं। इसे कुम्हडा भी कहते हैं। कुम्हड़ा पुष्टिकारक वीर्य को बल देने वाला (वीर्यवर्धक) व रक्त के विकार को ठीक करने वाला है। यह पेट को साफ करता है। मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति के लिये यह अमृत है। यह शरीर के समस्त दोषों को दूर कर हृदय रोग को ठीक करता है। कुम्हड़ा रक्त पित्त एवं गैस को दूर करता है। इन बीमारियों से पीड़ित व्यक्ति को पेठे के उपयोग के साथ कुष्माण्डा देवी की आराधना करना चाहिए।

पंचम स्कंदमाता (अलसी) -
दुर्गा का पाँचवा रूप स्कंद माता है। इसे पार्वती एवं उमा भी कहते हैं। यह औषधि के रूप में अलसी के रूप में जानी जाती है। यह वात, पित्त, कफ, रोगों की नाशक औषधि है।
अलसी नीलपुष्पी पावर्तती स्यादुमा क्षुमा।
अलसी मधुरा तिक्ता स्त्रिग्धापाके कदुर्गरु:।।
उष्णा दृष शुकवातन्धी कफ पित्त विनाशिनी। इस रोग से पीड़ित व्यक्ति को स्कंदमाता की आराधना करना चाहिए।

षष्ठम कात्यायनी (मोइया) -
दुर्गा का छठा रूप कात्यायनी है। इस आयुर्वेद औषधि में कई नामों से जाना जाता है। जैसे अम्बा, अम्बालिका, अम्बिका इसको मोइया या माचिका भी कहते हैं। यह कफ, पित्त, रुधिर विकार एवं कंठ के रोग का नाश करती है।

सप्तम कालरात्रि (नागदौन) -
दुर्गा का सप्तम रूप कालरात्रि है जिसे महायोगिनी, महायोगीश्वरी कहा गया है। यह नागदौन औषधि के रूप में जानी जाती है। सभी प्रकार के रोगों की नाशक सर्वत्र विजय दिलाने वाली मन एवं मस्तिष्क के समस्त विकारों को दूर करने वाली औषधि है। इस पौधे को व्यक्ति अपने घर में लगा ले तो घर के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। यह सुख देने वाली एवं सभी विषों की नाशक औषधि है। इस कालरात्रि की आराधना प्रत्येक पीड़ित व्यक्ति को करना चाहिए।

अष्टम महागौरी (तुलसी) -
दुर्गा का अष्टम रूप महागौरी है। जिसे प्रत्येक व्यक्ति औषधि के रूप में जानता है क्योंकि इसका औषधि नाम तुलसी है जो प्रत्येक घर में लगाई जाती है। तुलसी सात प्रकार की होती है। सफेद तुलसी, काली तुलसी, मरुता, दवना, कुढेरक, अर्जक, षटपत्र। ये सभी प्रकार की तुलसी रक्त को साफ करती है। रक्त शोधक है एवं हृदय रोग का नाश करती है।
तुलसी सुरसा ग्राम्या सुलभा बहुमंजरी।
अपेतराक्षसी महागौरी शूलघ्नी देवदुन्दुभि:
तुलसी कटुका तिक्ता हुध उष्णाहाहपित्तकृत् ।
मरुदनिप्रदो हध तीक्षणाष्ण: पित्तलो लघु:।
इस देवी की आराधना हर सामान्य एवं रोगी व्यक्ति को करना चाहिए।

नवम सिद्धदात्री (शतावरी) -
दुर्गा का नवम रूप सिद्धिदात्री है। जिसे नारायणी या शतावरी कहते हैं। शतावरी बुद्धि बल एवं वीर्य के लिये उत्तम औषधि है। रक्त विकार एवं वात पित्त शोध नाशक है। हृदय को बल देने वाली महाऔषधि है। सिद्धिधात्री का जो मनुष्य http://www.abhivyakti-hindi.org/parva/alekh/2010/oshadh2.jpgनियमपूर्वक सेवन करता है, उसके सभी कष्ट स्वयं ही दूर हो जाते हैं। इससे पीड़ित व्यक्ति को सिद्धिदात्री देवी की आराधना करना चाहिए।

इस प्रकार प्रत्येक देवी आयुर्वेद की भाषा में मार्कण्डेय पुराण के अनुसार नौ औषधि के रूप में मनुष्य की प्रत्येक बीमारी को ठीक कर मनुष्य को स्वस्थ करती है। अत: मनुष्य को देवी की आराधना के साथ साथ औषधियों का सेवन भी करना चाहिए।

VARSHNEY.009
09-11-2013, 12:51 PM
अधिक चीनी खाने से दिमागी गड़बड़ी पैदा हो सकती है
न्यूयार्क, 8 दिसम्बर (आईएएनएस)। चूहों पर किए गए नए शोध बताते हैं कि चीनी का अधिक सेवन बढ़ती उम्र में मस्तिष्क संबंधी परेशानियों को जन्म दे सकता है।
बर्मिंघम के अलबामा विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए शोध के दौरान 15 चूहों में से सात को पानी या अन्य पदार्थों के माध्यम से भारी मात्रा में चीनी दिया गया जबकि आठ को बिना चीनी के रखा गया। चीनी का सेवन करने वाले चूहों में मानसिक बीमारी अल्जाइमर के लक्षण पाए गए, जबकि चीनी का सेवन नहीं करने वाले चूहे सामान्य थे।
विज्ञान पत्रिका 'बायोलॉजिकल केमिस्ट्री' के ताजा अंक में प्रकाशित इस शोध से अधिक चीनी सेवन करने वाले लोगों में अल्जाइमर बीमारी के होने की आशंका बढ़ जाने की पुष्टि होती है।

VARSHNEY.009
09-11-2013, 12:52 PM
असंतुलित मासिक धर्म बन सकता है अवसाद का सबब
वाशिंगटन, 1 दिसम्बर (आईएएनएस)। महिलाओं में मासिक धर्म के दौरान हार्मोनल उतार-चढ़ाव की वजह से उनके व्यवहार में परिवर्तन देखा जा सकता है। एक स्वास्थ्य रिपोर्ट में बताया गया है कि इस दौरान महिलाएं अवसाद की शिकार हो सकती हैं।
सोसाइटी फॉर विमेन्स हेल्थ रिसर्च की एक रिपोर्ट के अनुसार यूं तो महिलाएं किसी भी उम्र में मिजाज के उतार-चढ़ाव या अवसाद की शिकार हो सकती हैं, लेकिन मासिक धर्म, गर्भावस्था और रजोनिवृति के पहले और बाद में उनके व्यवहार में परिवर्तन आने की संभावना सबसे अधिक होती है।
कुछ महिलाओं पर हॉर्मोनल बदलाव का असर नहीं पड़ता लेकिन कई महिलाओं में मध्यम से तेज गति का व्यवहार परिवर्तन देखा जा सकता है। इससे उनकी कार्य करने की क्षमता और ऊर्जा प्रभावित होती है।
'नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ मेंटल हेल्थ्स रीप्रोडक्टिव इंडोक्राइन स्टडीज यूनिट' के जांचकर्ता पीटर स्मिढ़ कहते हैं, ''महिलाओं के व्यवहार में यह परिवर्तन क्यों पाया जाता है, इसके लिए विज्ञान ने कुछ सूत्रों का पता लगाया है। पर सटीक कारणों का पता लगाने के लिए और शोध की आवश्यकता होगी।'' एक अन्य शोधकर्ता शेरी मार्ट्स ने कहा, ''महिलाओं को अपने मासिक चक्र के दौरान मिजाज में परिवर्तन के विषय में सजग रहने की आवश्यकता है।''

VARSHNEY.009
09-11-2013, 12:52 PM
एक्स-रे व सीटी स्कैन से कैंसर का खतरा
हैम्बर्ग, 4 दिसम्बर (आईएएनएस)। सिर में लगी घातक चोटों, हड्डी टूटने और किसी भी अंदरूनी शारीरिक समस्या के बारे में एक्स-रे व सीटी स्कैन से आसानी से पता चल जाता है, वहीं दूसरी ओर इनसे निकलने वाली घातक किरणें मनुष्य के लिए कैंसर रोग का खतरा पैदा कर देती हैं।
विशेषज्ञों की सलाह है कि एक्स-रे व सीटी स्कैन करवाने से पहले लोगों को इसके बारे में एक बार चिकित्सकों की सलाह अवश्य ले लेनी चाहिए।
समाचार एजेंसी डीपीए ने साल्जगिटर स्थित रेडियेशन प्रोटेक्शन ब्यूरो के हवाले से जानकारी दी कि एक्स-रे के दौरान निकलने वाली किरणें मरीजों को नुकसान भी पहुंचाती हैं। ये किरणें बेहद हानिकारक होती हैं। इनके प्रभाव से कैंसर होने का खतरा बना रहता है।
रुहर विश्वविद्यालय के रेडियोलाजिस्ट क्रिस्टोफ हेयेर ने बताया कि सीटी स्कैन करवाने वाले एक मरीज पर अध्ययन से ज्ञात हुआ कि सीटी स्कैन के दौरान मरीज पर लगभग 2 से 4 मिलीसीवर्ट(किरणों को मापने की इकाई) किरणें पड़ी।
एक्स-रे करवाने वाले मरीज पर 0.03 से 0.1 मिलीसीवर्ट किरणें पड़ी। क्रिस्टोफ हेयेर कहते हैं कि इसका यह अर्थ नहीं है कि एक्स-रे को गंभीरता से नहीं लेना चाहिए। विशेषज्ञों की सलाह है कि गंभीर हालत होने पर भी मरीज को इस संबंध में चिकित्सक की राय लेनी चाहिए। जल्दबाजी में एक्स-रे या फिर सीटी स्कैन करवाने से बचना चाहिए।

VARSHNEY.009
09-11-2013, 12:52 PM
एड्स पर बात करने से परहेज है 65 फीसदी भारतीयों को
नई दिल्ली, 1 दिसम्बर (आईएएनएस)। तमाम जागरूकता अभियानों के बावजूद भारत में आज भी लोग एचआईवीएड्स के प्रति रूढ़िवादी रवैया अपनाए हुए हैं। इस बात का खुलासा दो महीने पहले मैक एड्स फंड नामक अंतर्राष्ट्रीय संस्था द्वारा कराए गए एक सर्वेक्षण से हुआ है।
मैक के अध्यक्ष जॉन डेमेसी कहते हैं कि एड्स को लेकर भारतीयों के बीच फैली तमाम भ्रांतियों को दूर करना बेहद जरूरी है। सर्वेक्षण से ज्ञात हुआ है कि 79 फीसदी भारतीय एड्स को बेहद ही घातक बीमारी समझते हैं, जबकि 59 लोग मानते हैं कि एड्स क ा उपचार हो सकता है।
सर्वेक्षण से पता चला है कि 65 फीसदी भारतीय एड्स के बारे में बातचीत तक करने में हिचकिचाते हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि 44 फीसदी भारतीय इस बीमारी के बारे में डाक्टर से बात करने में शर्माते हैं।
सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक 38 फीसदी भारतीय एचआईवीएड्स से पीड़ित लोगों के साथ काम करने से डरते हैं, जबकि कुछ लोग उस कमरे में रहना पसंद नहीं करते हैं जिसमें एचआईवीएड्स से पीड़ित लोग निवास करते हैं। भारत के अलावा आठ अन्य देशों में भी इस संस्था द्वारा सर्वेक्षण कराया गया।

VARSHNEY.009
09-11-2013, 12:53 PM
एलर्जी के कारक जीन्स की खोज
सिडनी, 3 दिसम्बर (आईएएनएस)। जापान के वैज्ञानिकों ने ऐसे जीन्स की खोज की है जो एलर्जी का सबब बनते हैं। गौरतलब है कि कुछ लोगों को धूल, परागकणों और रुएं से एलर्जी होती है हालांकि एलर्जी के कारण निश्चित नहीं हैं और यह किसी भी कारण से हो सकती है।
योकोहामा के 'आरआईकेईएन रिसर्च सेंटर फार एलर्जी एंड इम्यूनोलाजी' के अनुसंधानकर्ताओं ने खास तौर पर विकसित चूहों पर शोध किए और पाया कि उनमें एलर्जी के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित की जा सकी।
गौरतलब है कि पिछले अध्ययन में यह साबित किया जा चुका है कि एलर्जी पैदा करने वाले तत्वों से 'मास्ट' नामक कोशिकाओं में कैल्शियम जमा हो जाता है जिससे त्वचा पर खुजली, छींक, लाल धब्बे और सूजन हो जाती है।

VARSHNEY.009
09-11-2013, 12:53 PM
बढ़ती उम्र में मंद हो जाता है दिमाग
न्यूयार्क, 6 दिसम्बर (आईएएनएस)। अमेरिकी वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है कि बढ़ती उम्र मस्तिष्क पर असर डालती है और आयु बढ़ने के साथ ही मस्तिष्क के काम करने की गति धीमी हो जाती है।
हार्वड विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं ने स्नायु तंत्र की कोशिकाओं पर किए गए एक अध्ययन में यह पाया कि मस्तिष्क में मौजूद सफेद पदार्थ जो संकेतों की आवाजाही में अहम भूमिका निभाता है वह समय के साथ अपनी कार्य क्षमता खोता जाता है।
अनुसंधानकर्ताओं ने इस अध्ययन के लिए 18 से 93 आयु वर्ग के 93 स्वस्थ लोगों के मस्तिष्क पर समय के प्रभाव को जांचा। अनुसंधानकर्ताओं ने खासतौर पर मस्तिष्क के अगले और पिछले हिस्से में स्थापित संपर्क में फर्क पाया। इस अध्ययन के अनुसार बढ़ती उम्र का याददाश्त पर प्रभाव जानने के बाद यह जानना संभव होगा कि इस प्रभाव को समय के साथ किस तरह कम किया जा सकता है।

VARSHNEY.009
09-11-2013, 12:54 PM
बार-बार सीटी स्कैन कैंसर का कारण बन सकता है
न्यूयार्क, 29 नवंबर (आईएएनएस)। बार-बार सीटी स्कैन कराना कैंसर का कारण बन सकता है। एक नए अध्ययन में इस तथ्य का खुलासा किया गया है। लेकिन विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि आवश्यकता पड़ने पर लोगों को इसके इस्तेमाल से नहीं डरना चाहिए।
शोधकर्ताओं का कहना है कि यद्यपि सीटी इमेज पारंपरिक एक्स-रे का ही एक विस्तृत रूप है जिसमें काफी अधिक मात्रा में विकिरण रोगी के शरीर से गुजरती है।
कोलंबिया यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर के अध्ययन लेखक डेविड ब्रेनर ने यहां कहा, ''यह पूरी तरह से स्पष्ट है कि सीटी स्कैन में विकिरण से कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।'' एबीसी न्यूज के आनलाइन संस्करण में प्रकाशित रिपोर्ट में शोधकर्ताओं द्वारा कहा गया है कि अगले 20 से 30 वर्षों में अकेले अमेरिका में सभी तरह के कैंसर का दो प्रतिशत कारण सीटी स्कैन हो सकता है।

VARSHNEY.009
09-11-2013, 12:55 PM
मछली के तेल से सिजोफ्रेनिया की रोकथाम में मदद
मेलबोर्न, 29 नवंबर (आईएएनएस)। मछली के तेल के नियमित सेवन से लोगों के सिजोफ्रेनिया की चपेट में आने से बचा जा सकता है। विश्व मनोरोग चिकित्सा संघ के एक सम्मेलन में यहां गुरुवार को पेश एक नए अध्ययन में इस तथ्य का खुलासा किया गया।
यह नया शोध आस्ट्रिया में 81 लोगों, जिनकी उम्र 15 से 25 वर्ष के बीच थी, के एक समूह पर किया गया। इस शोध के दौरान वैज्ञानिकों ने उन्हें ओमेगा-3 फैटी एसिड दिया। इनमें से प्रत्येक को प्रतिदिन 1.5 ग्राम मछली के तेल का सेवन कराया गया।
इस अध्ययन के मुख्य वैज्ञानिक पॉल अमिंगर ने रेडियो आस्ट्रेलिया के साथ साक्षात्कार में कहा कि शोध में पाया गया कि जिस समूह को मछली के तेल का सेवन कराया गया, उसमें मछली का सेवन नहीं करने वाले समूह की तुलना में असाधारण अंतर पाया गया। सिजोफ्रेनिया एक गंभीर बीमारी है जिसमें आजीवन दिमागी गड़बड़ी पैदा हो जाती है। पुरुषों में इसके लक्षण किशोरावस्था में ही दिखने शुरू हो जाते हैं जबकि महिलाओं में इसके लक्षण 30 वर्ष की उम्र में दिखते हैं।

VARSHNEY.009
09-11-2013, 12:55 PM
बेटा चाहिए तो मिठाई कम खाओ : शोध
लंदन, 28 नवंबर (आईएएनएस)। चूहों पर किए गए एक अध्ययन के अनुसार गर्भावस्था के दौरान शिशु के लिंग निर्धारण में खास किस्म के भोजन की भी अहम भूमिका हो सकती है।
दक्षिण अफ्रीका के प्रीटोरिया विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार बेटी की इच्छा रखने वाली माताओं को मछली, सब्जियों, चाकलेट और मिठाईयों का सेवन करना चाहिए और बेटे की इच्छा रखने वाली माताओं को लाल मांस और नमकीन इत्यादि का सेवन करना चाहिए।
इस अध्ययन के तहत चूहों के रक्त में चीनी की मात्रा को नियंत्रित कर उससे होने वाले प्रभावों की जांच की गई। इसके लिए 'डेक्सामीथाजोन'(डीईएक्स) नामक 'स्टीरीयाएड' का इस्तेमाल किया गया।
जिन मादा चूहों के रक्त में चीनी की मात्रा ज्यादा थी उनके द्वारा जन्मे 53 फीसदी शिशु नर थे। वहीं रक्त में कम चीनी की मात्रा वाली मादाओं ने 41 फीसदी नर शिशुओं को जन्म दिया।
अनुसंधानकर्ताओं को इस बात की जानकारी नहीं मिल पाई कि रक्त में चीनी की मात्रा कम होने से मादा चूहों की पैदाइश का क्या कारण था।

VARSHNEY.009
09-11-2013, 12:56 PM
बिच्छू के जहर से होगा कैंसर का इलाज
साइनफ्यूगोस(क्यूबा), 29 नवंबर (आईएएनएस)। क्यूबा के वैज्ञानिकों ने बिच्छू के जहर से एक दवाई विकसित की है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस दवाई से मस्तिष्क के टयूमर के अलावा, पैंक्रियाज और प्रोस्टेट के कैंसर का इलाज किया जा सकता है।
स्पेन की समाचार एजेंसी प्रेन्सा लैटिना ने हवाना की 'फार्मास्यूटिकल बायलाजिकल लैबोरेट्रीज' में वैज्ञानिक दल का नेतृत्व करने वाले फैबियो लिनायर्स के हवाले से बताया, ''अनुसंधानकर्ता साइनफ्यूगोस के प्रजनन केन्द्र में बिच्छू के जहर के इस्तेमाल को लेकर अनुसंधान कर रहे थे। इस केन्द्र में फिलहाल 400 बिच्छू हैं जिनकी संख्या अगले साल 5000 तक पहुंच जाएगी।''
लिनारेस के अनुसार स्थानीय चिकित्सकों द्वारा सदियों से कैंसर और दूसरी बीमारियों के इलाज के लिए बिच्छू के जहर का इस्तेमाल किए जाने से उन्हें इस बारे में अनुसंधान की प्रेरणा मिली।

VARSHNEY.009
09-11-2013, 12:56 PM
लिप्सस्टिक से हो सकता है स्तन कैंसर!
न्यूयार्क, 7 दिसम्बर (आईएएनएस)। लिप्सस्टिक का इस्तेमाल करने वाली युवतियों और महिलाओं को सावधान हो जाना चाहिए क्योंकि इसके इस्तेमाल से स्तन कैंसर का खतरा हो सकता है।
अमेरिका के वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि लिप्सस्टिक और नेल वार्निश में जिस तरह के रसायन का इस्तेमाल किया जाता है वह ब्रेस्ट टिशू (स्तन ऊतक) के स्वस्थ विकास में बाधक हो सकता है।
इस निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले वैज्ञानिकों ने लिप्सस्टिक में पाए जाने वाले ब्यूटाइल बेंजाइल थैलेट (बीपीपी) के साथ एक दूध देने वाली चूहिया पर इसका प्रयोग किया। इसमें पाया गया कि दूध के जरिये यह रसायन चूहिया के मादा बच्चे में भी चला गया।
डेली मेल के आनलाइन संस्करण के हवाले से बताया गया कि इस रसायन की वजह से दूध पीने वाली चूहिया की स्तन ग्रंथियों की कोशिकाओं में जीन संरचनाएं विकृत पाई गईं।
वैज्ञानिकों ने कहा कि कोई जरूरी नहीं कि इसका असर तुरंत दिख जाए कई बार इसका असर उम्र बढ़ने के बाद दिखाई दे सकता है।
शोधकर्ताओं ने बताया, ''इसे संकेत के रूप में लिया जा सकता है। यही मनुष्य में भी लागू हो सकता है। ''

VARSHNEY.009
09-11-2013, 12:56 PM
मोबाइल का ज्यादा प्रयोग देता है
मुंह के कैंसर को न्योता
लंदन, 15 दिसम्बर (आईएएनएस)। मोबाइल फोन पर घंटों बातें करने में मजा तो बहुत आता है, लेकिन लंबे समय तक मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने वालों को कैंसर जैसे घातक बीमारी की चपेट में आने की संभावना अधिक रहती है। इजरायल में वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक अध्ययन से इस बात का खुलासा हुआ है।
'डेली मेल' के ऑनलाइन संस्करण ने नए अध्ययन के हवाले से लिखा है कि जो लोग मोबाइल फोन का इस्तेमाल नहीं करते हैं, उनकी तुलना में पांच वर्षों से इस फोन का प्रयोग करने वाले लोगों को मुंह का कैंसर होने की 50 फीसदी संभावना अधिक होती है।
शोधकर्ताओं ने इस बाबत चार सौ दो लोगों की जीवनशैली का अध्ययन किया था, जो कि थोड़े समय पहले ही इस बीमारी की चपेट में आए थे।
वैज्ञानिकों के मुताबिक अध्ययन से यह स्पष्ट हो गया कि जो लोग मोबाइल फोन का प्रयोग अधिक करते थे, उनके मुंह में टयूमर होने की संभावना अधिक थी।
इसके अलावा ग्रामीण इलाकों में इस फोन का प्रयोग करने वाले लोग भी इस बीमारी की चपेट में शीघ्र आ सकते हैं। हालांकि इस तथ्य के कारणों का पता नहीं चल सका है।
गौरतलब है कि इस बाबत पूर्व के एक अध्ययन में नए रिपोर्ट से जुड़े तथ्यों पर वैज्ञानिक सहमत नहीं हुए थे।

VARSHNEY.009
09-11-2013, 12:57 PM
मोटे बच्चों को ह्दय रोगों का खतरा अधिक
लंदन, 6 दिसम्बर(आईएएनएस)। 'मोटापे' के शिकार बच्चों को भविष्य में ह्दय संबंधी रोगों से पीड़ित होने का खतरा अधिक होता है।
'द न्यू इंग्लैड जर्नल आफ मेडिसन' के ताजा अंक में प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि जो लोग बचपन में मोटे होते हैं उन्हें ह्दय संबंधी रोगों से पीड़ित होने का अपेक्षाकृत अधिक खतरा होता है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि नौ में से एक सामान्य वजन वाले बच्चे में भी 60 की उम्र तक ह्दय संबंधी बीमारियों से पीड़ित होने का खतरा बना रहता है। इसी प्रकार अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक 'मोटापे' के शिकार छ: में से एक बच्चे को बाद में ह्दय रोग का शिकार होने का खतरा बना रहता है।
एक 13 वर्षीय किशोर जिसका वजन एक सौ इक्कीस पाउंड था और इसी उम्र के अन्य किशोर जिसका वजन 96 पाउंडा था, का तुलनात्मक अध्ययन करने के बाद यह रिपोर्ट तैयार की गई है।
इसके अलावा डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन के 'सेंटर फार हेल्थ एंड सोसायटी' कीशोधकर्ता जेनेफर एल.बाकेर और उनकी सहयोगी द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट को भी नई रिपोर्ट का आधार बनाया गया है। इन शोधकर्ताओं ने वर्ष 1930 से वर्ष 1976 तक कोपेनहेगन में पैदा हुए 10,235 पुरुषों और 4,318 औरतों का अध्ययन किया था। शोधकर्ताओं ने बताया कि वयस्क होने के बाद अधिक वजन वाले बच्चों में ह्दय संबंधी बीमारियां होने का खतरा बढ़ जाता है।

VARSHNEY.009
09-11-2013, 12:57 PM
मोटापा स्तन कैंसर से मरने के
खतरे को दोगुना करता है
न्यूयार्क, 8 दिसम्बर (आईएएनएस)। स्तन कैंसर से पीड़ित महिलाओं के लिए वजन पर नियंत्रण रखना बेहद जरूरी है। एक शोध से ज्ञात हुआ है कि स्तन कैंसर से पीड़ित सामान्य वजन की महिलाओं की अपेक्षा मोटापे की शिकार स्तन कैंसर से पीड़ित महिलाओं के मरने का खतरा दोगुना से भी अधिक होता है।
जॉन्स हापकिंस ब्लूमबर्ग स्कूल आफ पब्लिक हेल्थ के शोधकर्ताओं द्वारा इस संबंध में चार हजार मरीजों पर शोध किया गया। 'डेली मेल' अखबार के ऑनलाइन संस्करण के मुताबिक इस दौरान शोधकर्ताओं ने मरीजों के शरीर के वजन और इस बीमारी की गंभीरता के बीच संबंध का पता लगाया।
इस अध्ययन अवधि में मोटापे की शिकार स्तन कैंसर से पीड़ित 121 महिलाओं की मौत हो गई। इस शोध से जुड़े शोधकर्ता हाजेल निकोलस कहते हैं कि इस अध्ययन से स्पष्ट हो गया है कि शरीर के वजन को नियंत्रित रखना बेहद जरूरी है। नई शोध रिपोर्ट को फिलाडेल्फिया में अमेरिकन एसोसिएशन फॉर कैंसर रिसर्च के सम्मेलन में प्रस्तुत किया गया है।

dipu
10-11-2013, 09:10 AM
great newss

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:22 AM
1. क्षय (टी.बी.):
अडूसा के फूलों का चूर्ण 10 ग्राम की मात्रा में लेकर इतनी ही मात्रा में मिश्री मिलाकर 1 गिलास दूध के साथ सुबह-शाम 6 माह तक नियमित रूप से खिलाएं। ।
अडूसा (वासा) टी.बी. में बहुत लाभ करता है इसका किसी भी रूप में नियमित सेवन करने वाले को खांसी से छुटकारा मिलता है। कफ में खून नहीं आता, बुखार में भी आराम मिलता है। इसका रस और भी लाभकारी है। अडूसे के रस में शहद मिलाकर दिन में 2-3 बार देना चाहिए।
वासा अडूसे के 3 लीटर रस में 320 ग्राम मिश्री मिलाकर धीमी आंच पर पकायें जब गाढ़ा होने को हो, तब उसमें 80 ग्राम छोटी पीपल का चूर्ण मिलायें जब ठीक प्रकार से चाटने योग्य पक जाय तब उसमें गाय का घी 160 ग्राम मिलाकर पर्याप्त चलायें तथा ठंडा होने पर उसमें 320 ग्राम शहद मिलायें। 5 ग्राम से 10 ग्राम तक टी.बी. के रोगी को दे सकते हैं। साथ ही यह खांसी, सांस के रोग, कमर दर्द, हृदय का दर्द, रक्तपित्त तथा बुखार को भी दूर करता है।
वासा के रस में शहद मिलाकर पीने से अधिक खांसी युक्त श्वास में लाभ होता है। यह क्षय, पीलिया, बुखार और रक्तपित्त में लाभकारी होता है।
अडूसा की जड़ की छाल को लगभग आधा ग्राम से 12 ग्राम या पत्ते के चूर्ण लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग तक खुराक के रूप में सुबह और शाम शहद के साथ सेवन करने से लाभ होता हैं। वासा के रस में शहद मिलाकर पीने से अधिक खांसी युक्त श्वास में लाभ होता है। यह क्षय, पीलिया, बुखार और रक्तपित्त में लाभकारी होता है।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:22 AM
2. दमा:
अड़ूसा के सूखे पत्तों का चूर्ण चिलम में भरकर धूम्रपान करने से दमा रोग में बहुत आराम मिलता है। पके आम को गर्म राख में भूनकर खाने से सूखी खांसी खत्म हो जाती है।
अडूसा के ताजे पत्तों को सुखाकर उनमें थोड़े से काले धतूरे के सूखे हुए पत्ते मिलाकर दोनों के चूर्ण का धूम्रपान (बीड़ी बनाकर पीने से) करने से पुराने दमा में आश्चर्यजनक लाभ होता है।
यवाक्षार लगभग आधा ग्राम, अडू़सा का रस 10 बूंद और लौंग का चूर्ण लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से लाभ मिलता है।
लगभग आधा ग्राम अर्कक्षार या अड़ूसा क्षार शहद के साथ भोजन के बाद सुबह-शाम दोनों समय देने से दमा रोग ठीक हो जाता है।
श्वास रोग (दमा) में अडू़सा (बाकस), अंगूर और हरड़ के काढ़े को शहद और शर्करा में मिलाकर सुबह-शाम दोनों समय सेवन करने से लाभ मिलता है।
श्वास रोग (दमा) में अड़ूसे के पत्तों का धूम्रपान करने से श्वास रोग ठीक हो जाता है। अडूसे के पत्ते के साथ धतूरे के पत्ते को भी मिलाकर धूम्रपान किया जाए तो अधिक लाभ प्राप्त होता है।
अड़ूसे के रस में तालीस-पत्र का चूर्ण और शहद मिलाकर खाने से स्वर भंग (गला बैठना) ठीक हो जाता है।
अड़ू़सा (वासा) और अदरक का रस पांच-पांच ग्राम मिलाकर दिन में 3-3 घंटे पर पिलाएं। इससे 40 दिनों में दमा दूर हो जाता है।
अड़ूसा के पत्तों का एक चम्मच रस शहद, दूध या पानी के साथ दिन में तीन बार सेवन करने से पुरानी खांसी, दमा, टी.बी., मल-मूत्र के साथ खून का आना, खून की उल्टी, रक्तपित्त रोग और नकसीर आदि रोगों में लाभ होता है।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:22 AM
3. खांसी और सांस की बीमारी में:
अडूसा के पत्तों का रस और शहद समान मात्रा में मिलाकर दिन में 3 बार 2-2 चम्मच की मात्रा में ले सकते हैं।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:22 AM
4. खांसी और सांस की बीमारी में:
अडूसा के पत्तों का रस और शहद समान मात्रा में मिलाकर दिन में 3 बार 2-2 चम्मच की मात्रा में ले सकते हैं।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:23 AM
5. फोड़े-फुंसियां:
अडूसा के पत्तों को पीसकर गाढ़ा लेप बनाकर फोड़े-फुंसियों की प्रारंभिक अवस्था में ही लगाकर बांधने से इनका असर कम हो जाएगा। यदि पक गए हो तो शीघ्र ही फूट जाएंगे। फूटने के बाद इस लेप में थोड़ी पिसी हल्दी मिलाकर लगाने से घाव शीघ्र भर जाएंगे।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:23 AM
6. पुराना जुकाम, साइनोसाइटिस, पीनस में :
अडूसा के फूलों से बना गुलकन्द 2-2 चम्मच सुबह-शाम खाएं।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:23 AM
7.खुजली :
अडूसे के नर्म पत्ते और आंबा हल्दी को गाय के पेशाब में पीसे और उसका लेप करें अथवा अडूसे के पत्तों को पानी में उबाले और उस पानी से स्नान करें।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:24 AM
8. गाढ़े कफ पर :
गर्म चाय में अडूसे का रस, शक्कर, शहद और दो चने के बराबर संचल डालकर सेवन करना चाहिए।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:24 AM
9.बिच्छू के जहर पर:
काले अडूसे की जड़ को ठंडे पानी में घिसकर काटे हुए स्थान पर लेप करें।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:24 AM
10. सिर दर्द:
अडूसा के फलों को छाया में सुखाकर महीन पीसकर 10 ग्राम चूर्ण में थोड़ा गुड़ मिलाकर 4 खुराक बना लें। सिरदर्द का दौरा शुरू होते ही 1 गोली खिला दें, तुरंत लाभ होगा।
अडूसे की 20 ग्राम जड़ को 200 मिलीलीटर दूध में अच्छी प्रकार पीस-छानकर इसमें 30 ग्राम मिश्री 15 कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से सिर का दर्द, आंखों की बीमारी, बदन दर्द, हिचकी, खांसी आदि विकार नष्ट होते हैं।
छाया में सूखे हुए वासा के पत्तों की चाय बनाकर पीने से सिर-दर्द या सिर से सम्बंधी कोई भी बाधा दूर हो जाती है। स्वाद के लिए इस चाय में थोड़ा नमक मिला सकते हैं।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:24 AM
11.नेत्र रोग (आंखों के लिए):
इसके 2-4 फूलों को गर्मकर आंख पर बांधने से आंख के गोलक की पित्तशोथ (सूजन) दूर होती है।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:25 AM
12.मुखपाक, मुंह आना (मुंह के छाले):
यदि केवल मुख के छाले हो तो अडूसा के 2-3 पत्तों को चबाकर उसके रस को चूसने से लाभ होता है। पत्तों को चूसने के बाद थूक देना चाहिए।
अडूसा की लकड़ी की दातुन करने से मुख के रोग दूर हो जाते हैं। अडूसा (वासा) के 50 मिलीलीटर काढे़ में एक चम्मच गेरू और 2 चम्मच शहद मिलाकर मुंह में रखने करने से मुंह के छाले, नाड़ीव्रण (नाड़ी के जख्म) नष्ट होते हैं।
दांतों का खोखलापन : दाढ़ या दांत में कैवटी हो जाने पर उस स्थान में अडूसे का सत्व (बारीक पिसा हुआ चूर्ण) भर देने से आराम होता है।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:25 AM
13.मसूढ़ों का दर्द:
अडूसे (वासा) के पत्तों के काढ़े यानी इसके पत्तों को उबालकर इसके पानी से कुल्ला करने से मसूढ़ों की पीड़ा मिटती है।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:25 AM
14.दांत रोग:
अडू़से के लकड़ी से नियमित रूप से दातुन करने से दांतों के और मुंह के अनेक रोग दूर हो जाते हैं।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:25 AM
15.चेचक निवारण:
यदि चेचक फैली हुई हो तो वासा का एक पत्ता तथा मुलेठी तीन ग्राम इन दोनों का काढ़ा बच्चों को पिलाने से चेचक का भय नहीं रहता है।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:25 AM
16.कफ और श्वास रोग :
अडूसा, हल्दी, धनिया, गिलोय, पीपल, सोंठ तथा रिगंणी के 10-20 मिलीलीटर काढे़ में एक ग्राम मिर्च का चूर्ण मिलाकर दिन में तीन बार पीने से सम्पूर्ण श्वांस रोग पूर्ण रूप से नष्ट हो जाते हैं।
अडूसे के छोटे पेड़ के पंचाग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) को छाया में सुखाकर कपड़े में छानकर नित्य 10 ग्राम मात्रा की फंकी देने से श्वांस और कफ मिटता है।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:27 AM
17.फेफड़ों की जलन:
अडूसे के 8-10 पत्तों को रोगन बाबूना में घोंटकर लेप करने से फेफड़ों की जलन में शांति होती है।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:27 AM
18.आध्यमान (पेट के फूलने) पर:
अडूसे की छाल का चूर्ण 10 ग्राम, अजवायन का चूर्ण 2.5 ग्राम और इसमें 8वां हिस्सा सेंधानमक मिलाकर नींबू के रस में खूब खरलकर 1-1 ग्राम की गोलियां बनाकर भोजन के पश्चात 1 से 3 गोली सुबह-शाम सेवन करने से वातजन्य ज्वर आध्मान विशेषकर भोजन करने के बाद पेट का भारी हो जाना, मन्द-मन्द पीड़ा होना दूर होता है। वासा का रस भी प्रयुक्त किया जा सकता है।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:27 AM
19.वृक्कशूल (गुर्दे का दर्द):
अडूसे और नीम के पत्तों को गर्मकर नाभि के निचले भाग पर सेंक करने से तथा अडूसे के पत्तों के 5 ग्राम रस में उतना ही शहद मिलाकर पिलाने से गुर्दे के भयंकर दर्द में आश्यर्चजनक रूप से लाभ पहुंचता है।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:37 AM
20.मासिक-धर्म :
यदि मासिक-धर्म समय से न आता हो तो वासा पत्र 10 ग्राम, मूली व गाजर के बीज प्रत्येक 6 ग्राम, तीनों को आधा किलो पानी में उबालें, जब यह एक चौथाई की मात्रा में शेष बचे तो इसे उतार लें। इस तैयार काढ़े को कुछ दिन सेवन करने से लाभ होता है।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:37 AM
21.मूत्रावरोध:
खरबूजे के 10 ग्राम बीज तथा अडूसे के पत्ते बराबर लेकर पीसकर पीने से पेशाब खुलकर आने लगता है।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:37 AM
22.मूत्रदाह (पेशाब की जलन) :
यदि 8-10 फूलों को रात्रि के समय 1 गिलास पानी में भिगो दिया जाए और प्रात: मसलकर छानकर पान करें तो मूत्र की जलन दूर हो जाती है। /span>

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:37 AM
23.शुक्रमेह:
अडूसे के सूखे फूलों को कूट-छानकर उसमें दुगुनी मात्रा में बंगभस्म मिलाकर, शीरा और खीरा के साथ सेवन करने से शुक्रमेह नष्ट होता है।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:37 AM
24.जलोदर (पेट में पानी की अधिकता):
जलोदर में या उस समय जब सारा शरीर श्वेत हो जाए तो अडूसे के पत्तों का 10-20 मिलीलीटर स्वरस दिन में 2-3 बार पिलाने से मूत्रवृद्धि हो करके यह रोग मिटता है।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:38 AM
25.सुख प्रसव (शिशु की नारमल डिलीवरी) :
अडू़से की जड़ को पीसकर गर्भवती स्त्री की नाभि, नलो व योनि पर लेप करने से तथा जड़ को कमर से बांधने से बालक आसानी से पैदा हो जाता है।
पाठा, कलिहारी, अडूसा, अपामार्ग, इनमें किसी एक बूटी की जड़ को नाभि, बस्तिप्रदेश (नाभि के पास) तथा भग प्रदेश (योनि के आस-पास) लेप देने से प्रसव सुखपूर्वक होता है।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:38 AM
26.प्रदर :
पित्त प्रदर में अडूसे के 10-15 मिलीलीटर स्वरस में अथवा गिलोय के रस में 5 ग्राम खांड तथा एक चम्मच शहद मिलाकर दिन में सुबह और शाम सेवन करना चाहिए।
अडूसा के 10 मिलीलीटर पत्तों के स्वरस में एक चम्मच शहद मिलाकर सुबह-शाम पिलाने से पित्त प्रदर मिटता है।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:38 AM
27.बाइटें (अंगों का सुन्न पड़ जाना) :
10 ग्राम वासा के फूलों को 2 ग्राम सोंठ के साथ 100 ग्राम जल में पकाकर पिलाने से बाइटों में आराम मिलता है।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:38 AM
28.ऐंठन:
अडूसे के पत्ते के रस में तिल के तेल मिलाकर गर्म कर लें। इसकी मालिश से आक्षेप (लकवा), उदरस्थ वात वेदना तथा हाथ-पैरों की ऐंठन मिट जाती है।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:38 AM
29.वातरोग:
वासा के पके हुए पत्तों को गर्म करके सिंकाई करने से जोड़ों का दर्द, लकवा और दर्दयुक्त चुभन में आराम पहुंचाता है।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:38 AM
30.रक्तार्श (खूनी बवासीर):
अडूसे के पत्ते और सफेद चंदन इनको बार-बार मात्रा में लेकर महीन चूर्ण बना लेना चाहिए। इस चूर्ण की 4 ग्राम मात्रा प्रतिदिन, दिन में सुबह-शाम सेवन करने से रक्तार्श में बहुत लाभ होता है और खून का बहना बंद हो जाता है। बवासीर के अंकुरों में यदि सूजन हो तो इसके पत्तों के काढ़ा का बफारा देना चाहिए।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:39 AM
31.रक्तपित्त :
ताजे हरे अडूसे के पत्तों का रस निकालकर 10-20 मिलीलीटर रस में शहद तथा खांड को मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से भयंकर रक्तपित्त शांत हो जाता है। उर्ध्व रक्तपित्त में इसका प्रयोग होता है। अडूसा का 10-20 मिलीलीटर स्वरस, तालीस पत्र का 2 ग्राम चूर्ण तथा शहद मिलाकर सुबह-शाम पीने से कफ विकार, पित्त विकार, तमक श्वास, स्वरभेद (गले की आवाज का बैठ जाना) तथा रक्तपित्त का नाश होता है।
अडूसे की जड़, मुनक्का, हरड़ इन तीनो को बराबर मिलाकर 20 ग्राम की मात्रा में लेकर 400 मिलीलीटर पानी में पकायें। चौथाई भाग शेष रह जाने पर उस काढ़े में चीनी और शहद डालकर पीने से खांसी, श्वांस तथा रक्तपित्त रोग शांत होते हैं।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:39 AM
32.कफ-ज्वर :
हरड़, बहेड़ा, आंवला, पटोल पत्र, वासा, गिलोय, कटुकी, पिपली की जड़ को मिलाकर इसका काढ़ा तैयार कर लें। इस काढ़े में 20 ग्राम शहद मिलाकर सेवन करने से कफ ज्वर में लाभ होता है।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:39 AM
33.कामला :
त्रिफला, गिलोय, कुटकी, चिरायता, नीम की छाल तथा अडूसा 20 ग्राम लेकर 320 मिलीलीटर में पानी पकायें, जब चौथाई भाग शेष रह जाये तो इस काढे़ में शहद मिलाकर 20 मिलीलीटर सुबह-शाम सेवन कराने से कामला रोग नष्ट होता है।
इसके पंचाग के 10 मिलीलीटर रस में शहद और मिश्री बराबर मिलाकर पिलाने से कामला रोग नष्ट हो जाता है।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:39 AM
34.दाद, खाज-खुजली:
अडूसे के 10-12 कोमल पत्ते तथा 2-5 ग्राम हल्दी को एकत्रकर गाय के पेशाब के साथ पीसकर लेप करने से खुजली और सूजन शीघ्र नष्ट हो जाती है। इससे दाद, खाज-खुजली में भी लाभ होता है।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:39 AM
35.आन्त्र-ज्वर (टायफाइड):
3 से 6 ग्राम अडूसे की जड़ के चूर्ण की फंकी देने से आन्त्र ज्वर ठीक हो जाता है।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:40 AM
36.शरीर की दुर्गन्ध:
अडूसे के पत्ते के रस में थोड़ा-सा शंखचूर्ण मिलाकर लगाने से शरीर की दुर्गन्ध दूर हो जाती है।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:40 AM
37.जंतुध्न को दूर करने के लिए:
अडूसा जलीय कीड़ों तथा जंतुओं के लिए विषैला है। इससे मेंढक इत्यादि छोटे जीव-जंतु मर जाते हैं। इसलिए पानी को शुद्ध करने के लिए इसका प्रयोग किया जा सकता है।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:40 AM
38.पशुओं के रोग:
गाय तथा बैलों को यदि कोई पेट का विकार हो तो उनके चारे में इसके पत्तों की कुटी मिला देने से लाभ होता है। इससे पशुओं के पेट के कीड़े भी नष्ट हो जाते हैं।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:40 AM
39.कीड़ों के लिए:
अडूसे के सूखे पत्ते पुस्तकों में रखने से उनमें कीडें नहीं लगते हैं।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:40 AM
40.वायुप्रणाली शोथ (ब्रोंकाइटिस):
नये वायु प्रणाली के शोथ (ब्रोंकाइटिस) में अड़ूसा, कंटकारी, जवासा, नागरमोथा और सोंठ का काढ़ा उपयोगी होता है।
वासावलेह 6 से 10 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से वायु प्रणाली शोथ (ब्रोंकाइटिस) में बहुत लाभ मिलता है।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:41 AM
41.सन्निपात ज्वर:
अडूसा, पित्तपापड़ा, नीम, मुलहठी, धनिया, सोंठ, देवदारू, बच, इन्द्रजौ, गोखरू और पीपल की जड़ का काढ़ा बना लें। इस काढ़े के सेवन से सन्निपात बुखार, श्वास (दमा), खांसी, अतिसार, शूल और अरुचि (भूख का न लगना) आदि रोग समाप्त होते हैं।
सन्निपातिक ज्वर में पुटपाक विधि से निकाला अडूसा का रस 10 मिलीलीटर तथा थोड़ा अदरक का रस और तुलसी के पत्ते मिलाकर उसमें मुलहठी को घिसें। फिर इसे शहद में मिलाकर सुबह, दोपहर तथा शाम पिलाना चाहिए।
सिन्नपात ज्वर में इसकी जड़ की छाल 20 ग्राम, सोंठ 3 ग्राम, कालीमिर्च एक ग्राम का काढ़ा बनाकर उसमें शहद मिलाकर पिलाना चाहिए।

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26-11-2013, 10:41 AM
42.वात-पित्त का बुखार:
अडूसा, छोटी कटेरी और गिलोय को मिलाकर पीस लें, इस मिश्रण को 8-8 ग्राम की मात्रा में लेकर पकाकर काढ़ा बनाकर पिलाने से कफ के बुखार और खांसी के रोग में लाभ मिलता है।

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26-11-2013, 10:41 AM
43.बुखार :
वासा (अडूसे) के पत्ते और आंवला 10-10 ग्राम मात्रा में लेकर कूटकर पीस लें और किसी बर्तन में पानी में डालकर रख दें। सुबह थोड़ा-सा मसलकर 10 ग्राम मिश्री मिलाकर पीने से पैत्तिक बुखार समाप्त हो जाता है।
10 मिलीलीटर अडूसे का रस, अदरक का रस 5 मिलीलीटर, थोड़ा-सा शहद मिलाकर दिन में कई बार चाटने से बहुत लाभ होता है। अडूसे का रस, अदरक का रस और तुलसी के पत्तों का रस 5-5 मिलीलीटर मिलाकर उसमें 5 ग्राम मुलहठी का चूर्ण डालकर सेवन करने से श्लैष्मिक बुखार समाप्त होता है।

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26-11-2013, 10:41 AM
44.गीली खांसी:
7 से 14 मिलीमीटर वासा के ताजा पत्तों का रस शहद के साथ मिलाकर दिन में 2 बार सेवन करने से गीली खांसी नष्ट हो जाती है।

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26-11-2013, 10:41 AM
45.टी.बी. युक्त खांसी:
वासा के ताजे पत्तों के स्वरस को शहद के साथ चाटने से पुरानी खांसी, श्वास और क्षय रोग (टी.बी.) में बहुत फायदा होता है।
वासा के पत्तों का रस 1 चम्मच, 1 चम्मच अदरक का रस, 1 चम्मच शहद मिलाकर पीने से सभी प्रकार की खांसी से आराम हो जाता है।
क्षय रोग (टी.बी.) में अडूसे के पत्तों के 20-30 मिलीलीटर काढ़े में छोटी पीपल का 1 ग्राम चूर्ण बुरककर पिलाने से पुरानी खांसी, श्वांस और क्षय रोग में फायदा होता है।

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26-11-2013, 10:42 AM
46.काली खांसी (कुकर खांसी):
अड़ूसा के सूखे पत्तों को मिट्टी के बर्तन में रखकर, आग पर गर्म करके उसकी राख को तैयार कर लेते हैं। उस राख को 24 से 36 ग्राम तक की मात्रा में लेकर शहद के साथ रोगी को चटाने से काली खांसी दूर हो जाती है।

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26-11-2013, 10:42 AM
47.खांसी :
अड़ू़सा के रस को शहद के साथ मिलाकर चाटने से नयी और पुरानी खांसी में लाभ होता है। इससे कफ के साथ आने वाला खून भी बंद हो जाता है।
लगभग एक किलो अड़ूसा के रस में 320 ग्राम सफेद शर्करा, 80-80 ग्राम छोटी पीपल का चूर्ण और गाय का घी मिलाकर धीमी आग पर पकाने के लिए रख दें। पकने के बाद इसे गाढ़ा होने पर उतारकर ठंडा होने के लिए रख देते हैं। अब इसमें 320 ग्राम शहद मिलाकर रख देते हैं। यह राज्ययक्ष्मा (टी.बी.) खांसी, श्वास, पीठ का दर्द, हृदय के शूल, रक्तपित्त तथा ज्वर को भी दूर करता है। इसकी मात्रा एक चम्मच अथवा रोग की स्थिति के अनुसार रोगी को देनी चाहिए।
अड़ूसा के सूखे पत्तों को जलाकर राख तैयार कर लेते हैं। यह राख और मुलहठी का चूर्ण 50-50 ग्राम काकड़ासिंगी, कुलिंजन और नागरमोथा 10-10 ग्राम सभी को खरल करके एक साथ मिलाकर सेवन करने से खांसी में लाभ मिलता है।
40 ग्राम अड़ूसा, 20 ग्राम मुलहठी और 10 ग्राम बड़ी इलायची को लेकर चौगुने पानी के साथ काढ़ा बना लें। इसके आधा बाकी रहने पर उतार लें और उसमें थोड़ा सा छोटी पीपल का चूर्ण और शहद मिलाकर सुबह-शाम पिलाने से सभी प्रकार की खांसी जैसे कुकर खांसी, श्वास कफ के साथ खून का जाना आदि में बहुत लाभ मिलता है।
कफयुक्त बुखार में अडू़सा (बाकस) के पत्तों को पीसकर निकाला गया रस 5 से 15 ग्राम, अदरक का रस या छोटी पीपल, सेंधानमक और शहद के साथ सुबह-शाम देने से लाभ मिलता है।
बच्चों के कफ विकार में 5-10 मिलीलीटर अड़ूसा (बाकस) का रस सुहागे की खीर के साथ रोजाना 2-3 बार देने से आराम आता है। अड़ूसा और तुलसी के पत्तों का रस बराबर मात्रा में मिलाकर पीने से खांसी मिट जाती है।
अड़ूसा और कालीमिर्च का काढ़ा बनाकर ठंडा करके पीने से सूखी खांसी नष्ट हो जाती है।
अड़ूसा के वृक्ष के पंचांग को छाया में सुखाकर चूर्ण बना लेते हैं। इस चूर्ण को रोजाना 10 ग्राम सेवन करने से खांसी और कफ में लाभ मिलता है।
अड़ूसा के पत्ते और पोहकर की जड़ का काढ़ा बनाकर सेवन करने श्वांस (सांस) की खांसी में लाभ मिलता है।
अड़ूसा की सूखी छाल को चिलम में भरकर पीने से श्वांस (सांस) की खांसी दूर हो जाती है।
अड़ूसा, तुलसी के पत्ते और मुनक्का तीनों को बराबर की मात्रा में लेकर काढ़ा बना लेते हैं। इस काढे़ को सुबह-शाम दोनों समय सेवन करने से खांसी दूर हो जाती है।
अड़ूसा, मुनक्का, सोंठ, लाल इलायची तथा कालीमिर्च सभी को बराबर मात्रा में लेकर बारीक पीसकर चूर्ण बना लेते हैं। इस चूर्ण को सुबह और शाम सेवन करने से खांसी में लाभ होता है।

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26-11-2013, 10:42 AM
48.चतुर्थकज्वर (हर चौथे दिन पर आने वाला बुखार) : :
वासा मूल, आमलकी और हरीतकी फल मिश्रण, शालपर्णी पंचांग (शालपर्णी की तना, पत्ती, जड़, फल और फूल), देवदारू की लकड़ी और शुंठी आदि को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बना लें, फिर इस काढ़े को 14 से 28 मिलीलीटर 5 से 10 ग्राम शर्करा और 5 ग्राम शहद के साथ दिन में 3 बार लें।
आम के पत्तों को छाया में सुखाकर पीसकर कपड़े में छान लें। नित्य 3 बार आधा चम्मच की फंकी गर्म पानी से लें।

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26-11-2013, 10:42 AM
49.निमोनिया:
बच्चों के गले और सीने में घड़घड़ाहट होने पर 10 से 20 बूंद अड़ूसा लाल (लाल बाकस) के पत्तों के रस को सुहागा की खील के साथ या छोटी पीपल और शहद के साथ 4 से 6 घंटे के अंतराल पर देने से बच्चे को पूरा लाभ मिलता है।
निमोनिया के रोग में 4 काले अड़ूसा (बाकस) के पत्तों का रस सहजने की छाल का रस और सामुद्रिक नमक शहद के साथ देने से लाभ होता है।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:42 AM
50.पुरानी खांसी:
अड़ूसा के अवलेह का सेवन पुरानी खांसी में बहुत उपयोगी होता है।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:43 AM
51.सूखी खांसी:
14 मिलीलीटर वासा के पत्तों के रस में बराबर मात्रा में घी और शर्करा को मिलाकर दिन में 2 बार लेने से खांसी ठीक हो जाती है।

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26-11-2013, 10:43 AM
52.मोतियाबिंद:
अडूसे के पत्तों को साफ पानी से धोकर पत्तों का रस निकाल लें। इस रस को अच्छे पत्थर की खल में डालकर (ताकि पत्थर घिसकर दवा में न मिले।) मूसल से खरल करते रहें। शुष्क हो जाने पर आंखों में काजल की तरह लगाएं। यह सब तरह के मोतियाबिंद में आराम आता है।

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26-11-2013, 10:43 AM
53.अफारा :
अडूसा (बाकस) के पत्तों का रस 5 से लेकर 15 मिलीलीटर को खुराक के रूप में देने से लाभ होता है।

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26-11-2013, 10:43 AM
54.उर:क्षत (हृदय में जख्म) होने पर:
वासा के ताजे पत्तों का रस 7 से 14 मिलीमीटर की मात्रा में शहद के साथ दिन में 2 बार सेवन करने से उर:क्षत में लाभ मिलता है।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:44 AM
55.मुंह से खून आना:
अड़ूसा की 6 ग्राम सूखी पत्तियां अथवा 10 ग्राम हरी पत्ती को महीन पीसकर शहद में मिलाकर सेवन करने से मुंह से खून आना बंद हो जाता है।

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26-11-2013, 10:44 AM
56.जुएं का पड़ना:
अडूसा के पत्तों से बने काढे़ से बालों को धोने से जूएं मर जाते हैं।
अडूसा के पत्तों में फल बांधकर रखा जाए तो सड़ नहीं पाता, इसके (एलकोहलिक टिंचर) को छिड़कने से मक्खी, मच्छर एवं पिप्सू आदि भाग जाते हैं। अडूसा के पत्तों से बनी खाद को खेतों में डाला जाए तो फसलों में कीड़े नहीं लगते हैं। ऊनी कपड़ों के तह में पत्तों को रखने से कपड़ों में कीड़े नहीं आते हैं। इसी तरह इसके काढे़ से बालों को धोने से बालों के जूँ मर जाते हैं।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:44 AM
57.खून की उल्टी:
अडूसे के पत्तों के रस में शहद को मिलाकर सेवन करने से खून की उल्टी होना बंद हो जाती है।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:44 AM
58.जुकाम :
20 ग्राम अडूसे के पत्तों को 250 मिलीलीटर पानी में डालकर उबालने के लिए रख दें। उबलने पर जब पानी 1 चौथाई बाकी रह जाये तो उसे उतारकर और पानी में ही मलकर अच्छी तरह से छान लें। इस काढ़े को पीने से जुकाम दूर हो जाता है।
अडूसे के पत्तों का रस निकालकर पीने से जुकाम ठीक हो जाता है। दस्त आने पर : अडूसे (बाकस) के पत्तों का रस 5 से लेकर 15 मिलीलीटर की मात्रा में शहद के साथ मिलाकर दिन में 2 बार (सुबह और शाम) पीने से अतिसार की बीमारी समाप्त हो जाती है।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:44 AM
59.आमातिसार (दस्त में आंव आना):
5 से 15 ग्राम बाकस (अडूसे) के पत्तों का रस निकालकर रोजाना सुबह-शाम शहद के साथ मिलाकर रोगी को देने से आमातिसार में ठीक होता है।

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26-11-2013, 10:44 AM
60.खूनी अतिसार:
अडूसे के पत्तों का रस पिलाने से खूनी दस्त (रक्तातिसार) मिट जाता है।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:45 AM
61.कनफेड:
अडूसा के पत्तों को पीसकर लगाने से कनफेड में लाभ होता है।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:45 AM
62.भगन्दर:
अडूसे के पत्ते को पीसकर उसकी टिकिया बनाकर तथा उस पर सेंधानमक बुरककर बांधने से भगन्दर ठीक होता है।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:45 AM
63.दर्द व सूजन :
बाकस के पत्ते की पट्टी बांधने से सूजन में आराम होता है।
लाल बाकस के पत्तों को नारियल के पानी में पीसकर लेप करने से सूजन मिट जाती है। ऊपर से एरंड तेल लगे मदार के पत्ते बांधने और जल्द लाभ देता है।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:45 AM
64.अम्लपित्त:
अडूसा, गिलोय और छोटी कटेली को मिलाकर काढ़ा बना लें, फिर इस काढ़े को शहद के साथ सेवन करने से वमन (उल्टी), खांसी, श्वास (दमा) और बुखार आदि बीमारियों में लाभ मिलता है।
अडूसा, गिलोय, पित्तपापड़ा, नीम की छाल, चिरायता, भांगरा, हरड़, बहेड़ा, आमला और कड़वे परवल के पत्तों को मिलाकर पीसकर पकाकर काढ़ा बनाकर शहद डालकर पीने से अम्लपित्त शांत हो जाती है।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:45 AM
65.गिल्टी:
काले आडूसे (बाकस) के पत्तों के रस तेल में मिलाकर गांठों पर लगाने से गिल्टी रोग में लाभ होता है।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:45 AM
66.रक्तप्रदर:
अडूसा के पत्तों के रस में शहद मिलाकर पीने से रक्तप्रदर मिट जाता है।
वासा के पत्ते का रस 14 से 28 मिलीलीटर को शर्करा 5-10 ग्राम के साथ सुबह-शाम सेवन करने से रक्त प्रदर में लाभ होता है।

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26-11-2013, 10:46 AM
67.स्तनों की सूजन:
अडूसा (बाकस) के पत्ते, नारियल के रस को मिलाकर पीसकर स्तन पर लगायें और ऊपर से धतूरे के पत्तों को बांधे। इससे दूध की अधिकता के कारण होने वाली स्तन की सूजन समाप्त हो जाती है।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:46 AM
68.उपदंश (सिफलिस):
अडूसे की जड़ की छाल को पानी के साथ पीसकर जंगली बेर के बराबर गोलियां बना लें, सुबह के समय 1-1 गोली घी के साथ खायें इससे उपदंश दूर हो जाता है।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:46 AM
69.गठिया रोग:
अडूसा (वाकस) के पत्तों की पट्टी बांधने से इस रोग में लाभ मिलता है और हिड्डयों की कमजोरी दूर होती है।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:47 AM
70.योनि रोग:
अडूसा, कड़वे परवल, बच, फूलिप्रयंगु और नीम को लेकर अच्छी तरह से पीसकर चूर्ण बना लें, इसी प्रकार से अमलतास के काढ़े से योनि को धोकर योनि में इसी चूर्ण को रखने से योनि में से आने वाली बदबू और चिकनापन (लिबलिबापन) समाप्त हो जाता है।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:47 AM
71.जोड़ों के दर्द:
जोड़ों के दर्द को दूर करने के लिए अडूसे के पत्ते को गर्म करके जोड़ों पर लगाने से दर्द दूर होते हैं।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:47 AM
72.हाथ-पैरों की ऐंठन:
अडूसे की जड़, पत्ते और फूलों का गाढ़ा काढ़ा बनाकर चाटने से हाथ-पैरों में ऐंठन सा दर्द खत्म हो जाता है।
अडूसे के फूलों को सोंठ के साथ काढ़ा बनाकर रोगी को पिलाने से हाथ-पैरों की ऐंठन मिट जाती है। अडूसे के फूल और फलों को सरसों के तेल में जलाकर छान लें। इस तेल की मालिश हाथ-पैरों पर करने से ऐंठन का दर्द ठीक होता है।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:47 AM
73.कुष्ठ (कोढ़):
5 से 15 मिलीलीटर अडूसा के पत्तों का रस कुष्ठ (कोढ़) के रोगी को सुबह और शाम पिलाने, पत्तों का रस लगाने और पत्तों के काढ़े से नहाने से लाभ होता है।
अड़ूसा के कोमल पत्ते और हल्दी को पीसकर गाय के पेशाब में मिलाकर लेप करने से `कच्छू-कुष्ठ´ रोग सिर्फ तीन दिन में ही ठीक हो जाता है।
पके हुए आम के रस में दूध मिलाकर सेवन करने से हिचकी में लाभ होता है।
अडूसे के कोमल पत्तों को पीसकर हल्दी और गाय के पेशाब में मिलाकर लेप करने से तीन ही दिन में कच्छू-कोढ़ दूर हो जाता है।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:47 AM
74.शीतला (मसूरिका):
अडूसे के रस में शहद को मिलाकर पीने से कफज-मसूरिका ठीक हो जाती है।
अडूसा, गिलोय, नागरमोथा, पटोलपत्र, धनिया, जवासा, चिरायता, नीम, कुटकी और पित्तपापड़ा को मिलाकर इसका काढ़ा बनाकर पीने से रुकी हुई मसूरिका (छोटी माता) में लाभ होता है।

VARSHNEY.009
26-11-2013, 10:47 AM
75.पांडु रोग (पीलिया):
अडूसे के रस में कलमीशोरा डालकर पीने से मूत्र-वृद्धि होकर पांडु रोग यानी पीलिया में लाभ होता है।
आंवला, हरड़, बहेड़ा, चिरायता, अडूसा के पत्ते, कुटकी नीम की छाल को बराबर की मात्रा में बारीक से कूट-पीसकर इसकी पच्चीस ग्राम मात्रा को 250 मिलीलीटर पानी में उबालें, जब 50 मिलीलीटर शेष रह जाए तब उसे ठंडाकर पीएं। 10 दिनों में ही कमला रोग में लाभ हो जायेगा।