View Full Version : रोकनी होगी पानी की बरबादी
rajnish manga
02-07-2013, 01:39 PM
रोकनी होगी पानी की बरबादी
लेखक: सत्यजीत चौधरी
सन् 2007 में केंद्रीय भूमिगत जल बोर्ड ने एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसका निचोड़ था कि 2025 तक सिंचाई के लिए भूमिगत जल उपलब्धता ऋणात्मक हो जाएगी। रिपोर्ट का यह सार गंभीर खतरे की तरफ इशारा कर रहा है। हम लगातार धरती का दोहन कर रहे हैं। खेती, पेयजल और उद्योग—धंधों के लिए बेतहाशा भूमिगत जल स्रोतों का दोहन कर रहे हैं।
हालात कितने खराब हो चुके हैं, इसे दिल्ली की मिसाल से समझा जा सकता है। राजधानी की पानी जरूरत 427.5 करोड़ लीटर है, जबकि उपलब्धता है महज 337.5 करोड़ लीटर। इस शहर की पानी की जरूरत पूरी करने के लिए गंगा, यमुना, भाखड़ा नांगल बांध और रेणुका सागर बांध से पानी लिया जा रहा है। यह अनुमान लगाया जा रहा है कि राजधानी से 2015 में भूमिगत जल समाप्त हो जाएगा, यानी मात्र तीन वर्ष बाद।
उत्तर प्रदेश में हालात और भी खराब हैं। प्रदेश में 13 लाख हेक्टेयर खेती सिंचित है, जिसका बड़ा हिस्सा भूमिगत जल पर निर्भर है। नहरों से होने वाली सिंचाई का क्षेत्रफल बढ़ने की बजाय घटने लगा है। राज्य में बुंदेलखंड, पश्चिम उत्तर प्रदेश में नहरों के अलावा खेतों में लाखों की संख्या में नलकूप लगे हैं, जो लगातार धरती की कोख से जीवन का रस सोख रहे हैं। यूपी के ढाई दर्जन जिलों में भूमिगत जल खतरनाक स्तर तक नीचे खिसक गया है। उत्तर प्रदेश के कुल 860 ब्लॉक में से 559 की स्थिति बहुत खराब हो चुकी है।
पिछले दिनों नासा के एक सेटेलाइट मिशन ने भारत के उत्तरी राज्यों में भूजल के गिरते स्तर के बारे जो बताया था, वह हमारे लिए एक बड़ी चेतावनी है। नासा के दो उपग्रहों ने जमीन के भीतर पानी की उपस्थिति का पता लगाते हुए पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान में ग्राउंडवाटर के स्तर में भारी गिरावट की तस्वीर पेश की थी।
rajnish manga
02-07-2013, 01:42 PM
नासा के वैज्ञानिकों का कहना है कि इन राज्यों में पानी हर साल 17.7 घन किलोमीटर की दर से सूख रहा है, जबकि सरकारी अनुमान अब तक 13.2 घन किलोमीटर प्रतिवर्ष का रहा है। इस पृष्ठभूमि में योजना आयोग का यह अध्ययन सोच में डालता है कि अगले 35 से 40 वर्षो के बीच भारत में वर्षा जल और भू—जल की भारी कमी होने वाली है। उत्तर प्रदेश, पंजाब तथा हरियाणा उन राज्यों में से हैं, जिन्होंने हरित क्रांति को सचमुच अपनी जमीन पर उतारा है। पर नासा के वैज्ञानिकों का कहना है कि धान का कटोरा माने जाने वाले उत्तर भारत के राज्यों में भूजल हर साल एक फुट नीचे गिरता जा रहा है। इस पानी का 90 प्रतिशत हिस्सा सिंचाई के काम में खर्च हो रहा है। तो क्या हमें सिंचाई पर अपनी नीति पर नए सिरे से विचार करना चाहिए? अभी भी देश में प्राकृतिक जलाशयों, तालाबों, बावड़ियों, ङीलों एवं नालों की बहुतायत है। इन पारंपरिक जल स्नेतों का पुनरुद्वार एवं पुननिर्माण कर, इनके तल में जमे गाद को निकालकर इन्हें पुनर्जीवित किया जाना संभव है। ऐसा करके वर्षा जल के संचयन व एकत्रीकरण में इजाफा भूमिगत जल के गिरते स्तर को रोक पाना संभव है। उत्तर प्रदेश में भू—जल दोहन को लेकर कानून तो है, लेकिन उस पर अमल नहीं हो पा रहा है। फैक्टरियां, चीनी मिलें, ईंट भट्टे, टेनरियां, सॉफ्ट ड्रिंक प्लांट और मिनरल वॉटर का उत्पादन करने वाली कंपनियां बेपरवाह भूजल का दोहन कर रही हैं।
ऐसा नहीं है कि उत्तर प्रदेश में भूजल का अंधाधुंध दोहन करने वालों के लिए कानून का शकिंजा नहीं है, लेकिन सरकार दीगर कामों में उलङी हुई है। पानी बचाना उसकी प्राथमिकताओं में नहीं है। यूपी में जल प्रबंधन और नियामक आयोग के गठन को मंजूरी मिले अर्सा हो गया है। इसके नए कानून के तहत भूजल का दोहन करने वालों को एक साल तक की कैद का प्रावधान है। इसके साथ ही जान—बूझकर भूजल का दोहन करने वालों पर प्रतिदिन 2,000 रुपए तक के दंड का प्रावधान किया गया है। इस विधयेक को सदन में पेश करते समय सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया था कि भूजल दोहन से संबंधित अपराध का मुकदमा कम से कम अपर न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में चलेगा।
नए कानून के मसविदे के हिसाब से अपराध की शिकायत जल प्रबंधन और नियामक आयोग के किसी सदस्य द्वारा ही की जा सकेगी। कानून में भूजल दोहन की लगातार शिकायत आने पर अधिकतम एक लाख रुपए का जुर्माना व कैद, दोनों का प्रावधान है। अब देखना है कि सरकार कब कड़ाई के साथ इस कानून को वास्तविक रूप से अमल में लाती है? दरअसल, पानी को लेकर उत्तर प्रदेश में एक बड़ी मुहिम शुरू करनी होगी।
rajnish manga
02-07-2013, 01:44 PM
केंद्र सरकार की उस मुहिम को झाड़-पोंछकर अमल में लाना होगा, जिसके तहत बच्चों को पाठशाला से पानी का महत्व समझया जाने वाला था। सितंबर, 2010 में केंद्र सरकार ने एक योजना का खाका खींचा था, जिसके तहत प्राथमिक स्तर पर बच्चों को पानी के महत्व को समझने के लिए कार्यक्रम शुरू किए जाने थे, लेकिन उन्हें ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। जब से सरकार ने पानी की उपलब्धता के लिए नए-नए इंतजाम किए हैं, तब से पानी की बरबादी और ज्यादा बढ़ी है। अब घरों तक सीधे ही पाइप लाइन के जरिए पीने का पानी पहुंचाया जा रहा है। लोगों ने घरों में सबमर्सिबल पंप लगा लिए हैं। पहले घर में लगे हैंडपंप से पानी खींचना होता था, इसलिए आदमी उतना ही पानी खींचता था, जितने की उसे जरूरत होती थी। अब आलम यह है कि एक बटन दबाने भर या नल की टोंटी खोलने देने मात्र से पानी उपलब्ध है। लोग कई-कई घंटों तक अपनी कारों या मोटरसाइकिलों पर पानी बहाते रहते हैं। नल खुला छोड़ दिया जाता है। पानी फिजूल में बहता रहता है।
वर्षा जल के संरक्षण एवं संग्रहण को अधिकाधिक प्रोत्साहित करने के लिए सरकार को नव निर्माणाधीन भवनों, स्कूलों एवं सार्वजनिक इमारतों में वर्षा जल संचयन एवं भू—जल रिचार्ज की व्यवस्था के लिए पुख्ता इंतजाम करने होंगे।
कृषि क्षेत्र में जल—बचत करने के लिए ‘ड्रिप सिंचाई पद्धति’ को बढ़ावा देने के साथ नहरों व नालियों की मरम्मत एवं संरक्षण के लिए प्रभावी प्रावधान अपेक्षित है। समाज के प्रत्येक व्यक्ति को जल के महत्व व बढ़ते जल संकट के प्रति जागरूक करना होगा। इस मुहिम से बच्चों को भी जोड़ना होगा। उनको बताना होगा कि पानी की एक-एक बूंद कीमती है। उनको भूमिगत जल भंडार की हकीकत भी बतानी होगी। समझना होगा कि जब वे बड़े होंगे तो यह भंडार खाली हो चुका होगा ।
Deep_
02-07-2013, 05:16 PM
यह वाकई विकट समस्या है। बडे उध्योग एवं कारखानों में पीने का पानी उपयोग नहिं करना चाहिए।
वे बडी मात्रा में पानी का उपयोग एवं बिगाड़ करतें है।
मुझे यह भी लगता है की सरकार अपना काम करे ना करे लेकिन पानी बचाना एक व्यक्तिगत दायित्व है।
jai_bhardwaj
08-07-2013, 06:41 PM
अन्य मामलों (कन्या भ्रूण हत्या, दहेज़, बाल विवाह, रिश्वतखोरी आदि) की तरह यह मसला भी जनजागरण का विषय है ... जब तक हम नहीं चेतेगे तब तक अन्य सामाजिक बुराइयों की तरह इस समस्या का निदान नहीं होगा। हम सदैव पीछे चलने का प्रयत्न करते है .. नेतृत्त्व नहीं करते। यही बुराई की जड़ है। हम स्वयं को नहीं सुधारते बल्कि यह सोचते हैं कि जब पड़ोसी ऐसा करेगा तो हम भी वैसा कर लेंगे। जो उसे होगा वही हमें होगा। बस्स ........
rajnish manga
08-07-2013, 08:43 PM
आपका कहना ठीक है, जय जी. इन सभी समस्याओं का हल ऊपर से नहीं आएगा. बस 'पर उपदेश कुशल बहुतेरे' वाली मानसिकता से बाहर निकलने की ज़रुरत है. हर व्यक्ति अपने स्तर पर ईमानदार कोशिश करे और सबसे पहले अपनी सोच को सही दिशा की ओर ले जाये तो सुधार के बारे में आश्वस्त हो सकते हैं. सरकार क़ानून बना सकती है, लेकिन अनुपालन एक-एक नागरिक का दायित्व है.
मैं कहता हूँ कि जिस प्रकार आतंकवादी हमलों से निबटने में अपनी तैयारी का जायजा लेने के लिए की "मॅाक ड्रिल" की जाती है, उसी प्रकार पानी के मामले में भी समय-समय पर प्रशासन की ओर से ऐसी संकट-मोचक "मॅाक ड्रिल" की जा सकती है.
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