PDA

View Full Version : व्यंग्य सतसई


Pages : 1 [2]

VARSHNEY.009
18-07-2013, 11:24 AM
देवानन्द से प्रेमनाथ / शैल चतुर्वेदी

हमारे शारीरिक विकास
और गंजेपन को देखकर
लोग हमारा मज़ाक उड़ाते हैं
मगर ये भूल जाते हैं
कि जवानी में हम भी
ख़ूबसूरती में कमाल थे
हमारे सर पर भी
लहराते हुए चमकीले बाल थे
कॉलेज की लड़कीयाँ कॉपी पर
हमारा चित्र बनाती थीं
और दो-चार तो ऐसी थीं
जो हमें देवानन्द कहकर बुलाती थीं
मगर भला हो इस गृहस्थी के चक्कर का
जिसने हमें बर्बाद कर दिया
देवानन्द से प्रेमनाथ कर दिया

एक बार हम रिक्शे में बैठ गए
ठिकाने पर पहुंच कए
पचास पैसे थमाए
तो रिक्शा चालक जी ऐंठ गए
"पचास पैसे थमाते शर्म नहीं आई
लीजिए आप ही सम्भालिए
और जल्दी से रुपया निकालिए
वो तो मैंने
अन्धेरे में हाँ कर दी थी
उजाले में होता
तो ठेले की सवारी
रिक्शे में नहीं ढोता।"

ट्रेन के सफर में
थ्री टायर में
एक महिला धड़धाड़ाती हुई आई
और हमें देख कर चिल्लाई-
"ये आदमियों का डिब्बा है
अगले स्टेशन पर ब्रेक में जाओ
अजी कंडक्टर साहब
इस सामान को यहाँ से हटाओ।"

राशन की लाईन में
आगे से धक्का आया
तो हमारे पीछे से आवाज़ आई-
"आदमियों की लाईन में
हाथी किसने खड़ा कर दिया भाई"
हमने लम्बी सांस ली
तो सामने वाली चिल्लाई-
"महिलाओं को धक्का मारते
शर्म नहीं आई"
हमको कहना पड़ा-
"क्या सांस भी नहीं ले माई"

एक बार सिनेमा हॉल में
एक महिला का पैर
हमारे पैर के नीचे आ गया
तो वो बोली -"अरे शेट्टी जी
थोड़ी देर पहले आप पर्दे पर थे
यहाँ कैसे"
उसके बाजू में बैठे अमिताभ बच्चन ने
हमारे मुँह पर
घूसा जड़ाते हुए कहा-"ऐसे
तबियत ना भरी हो तो
और लगाऊँ
भर गई हो तो एम्बुलेंस मंगवाऊ"

एक बार
कवि -सम्मेलन समाप्त होने के बाद
एक महिला हमारे पास आई
हाथ जोड़कर मुस्कराई
फिर बोली-"अपना फ़ोटो दीजिए न
घर ले जाऊँगी"
हमने पूछा-"फ़ोटो का क्या करोगी"
बोली-"बच्चो को डराऊँगी"

दर्ज़ी से कहा-"कमीज़ की बटन नहीं लगती"
वो बोला-"हमारी क्या ग़लती
दो मीटर में जैसी बनी
बना दी
कोई और टेलर होता
तो पाँच मीटर कपड़ा लेता
माफ़ करना जनाब
पेट का बढ़ना मर्दो को शोभा नहीं देता"
बस कंडक्टर
हमारे हाथ में टिकर थमाते हुए बोला-
"भगवान जाने क्या खाते हो
अकेले ही
दो की सीट घेर कर बैठ जाते हो
सिंगल टिकट में सफ़र करना है तो
काया को भी सिंगल करो
वर्ना दो सीट का किराया भरो"
लोगों की शादी
धूम-धड़ाके से होती है
मगर हमारी शादी में काहे की धूम
और काहे का धड़ाका
हमें देखते ही
चेहरा उतर गया दुल्हन की माँ का
दुल्हन ने जब घुंघट से झाँका
तो बेचारी की साँस उपर चढ़ गई
और सहेलियों के संभालते-संभालते
लम्बी पड़ गई
किसी ने कहा-"भगवान बेटी की रक्षा करे"
कोई बोला-"सब ईश्वर की मरज़ी है
कोई क्या करे"
एक बार हमने
जैसे ही लिफ़्ट में पैर घुसाया
तो लिफ़्ट मेन चिल्लाया-
"आगे मत बढ़िए
ऊपर जाना है तो
सीढ़ेयों से चढ़िए
आपका वज़न ज्यादा है
क्या लिफ़्ट तोड़ने का इरादा है"
हमने कहा-"यार
सातवें फ्लोर पर जाना है
कैसे चढ़ पाएँगे"
वो बोला-"दो-चार बार चढ़ेंगे-उतरेंगे
तो लिफ़्ट के लायक हो जाएंगे"

यहाँ तक तो ख़ैर है
कि लोगों को
हमारी काया से बैर है
लेकिन कुछ ऐसे भी हैं
जिन्हें हमारे गंजेपन से शिकायत है
भला वे ही क्या तीर मार रहे हैं
जिनके सर पर
बालो की बहुतायत है
पकड़ में आ जाएं तो
छुड़ाए नहीं छूटेंगे
ज़बरदस्ती छूड़ाओगे तो टूटेंगे
फिर तो हार मानोगे
या पड़ोसी से उधार मांगोगे?
क्या आप नहीं जानते
कि सत है सरस्वती का भंडार
ऐर कपाल प्रवेश-द्वार
चांद खुली ना हो
भरे रहें केश
तो सरस्वती कैसे करेगी प्रवेश?

नेता जी सुभाष चन्द्र बोस
लौह पुरूष वल्लभ भाई पटेल
राष्ट्र पिता महात्मा गांधी
और युग पुरुष जवाहरलाल
इनके सर पर कहाँ थे बाल
गंजे थे
लेकिन भारत माता के बेटे थे
ऐसे-ऐसे काम कर गए
कि इतिहास में अपना नाम कर गए
इसीलिए
बाल वालों से मेरा कहना है
कि अगर उन्हे कुछ बनना है
तो सर का बोझ हटवा दें
अपनी चांद घुटवा दें।

VARSHNEY.009
18-07-2013, 11:24 AM
परसेनिलिटी का सवाल है / शैल चतुर्वेदी

आज से दर बरस पहले
न जाने कौन सी अशुभ घड़ी में
एक ज्योतिषी को हमने
अपना हाथ दिखाया था
जिसने हमें बताया था-
"शनी रेखा मणिबंध से निकल कर
मध्यमा पर चढ़ गई है
प्रतिष्ठा, धन, बंगाला और कार है
सूर्य रेखा मस्तिष्क रेखा को टच कर रही है
मतलब साफ है की बेड़ा पार है
बुध का माउंट
किसी फ़िल्म फायनेंसर के
पेट की तरह तना है
अँगूठे पर कैमरे का निशान बना है
शुक्र का माउंट
हाथ में बुरी तरह फैला है
हीरो बनोगे
क़िस्मत में ख़ूबसूरत फ़िल्मी लैला है"
और सचमुच ही एक दिन
हमारा दुर्भाग्य जागा
और केतु हमें बम्बई ले भागा
एक शाम
थर्ड क्लास होटल में
पिटे हुए फ़िल्म निर्माता से हो गई राम-राम
कहने लगा-"दस बरस पहले
सैक्स की देते हुए दुहाई
हामने ऐसी फ़िल्म बनाई
जो मैटर के मामले में
आज के कवियों की तरह उधार थी
मगर फ़िल्म में
चुम्बनो की भरमार थी
एक धांसू खलनायक को लेकर
हीरोइन पर ऐसा सीन फ़िल्माया
कि आलिंगन लेते ही
उसकी आंखे बाहर निकल आई
आंखे अंदर करवाई
तो पेट बाहर निकल आया
खलनायक पुण्य ले गया
पाप को हल सम्हाल रहे हैं
बाप समझकर पाल रहे हैं

आदमी ख़ुराफ़ात की जड़ है
इसलिए, मैं अगली फ़िल्म में
गधे को हीरो बनाऊँगा
और गधे के भीतर
इंसान की आत्मा दिखाऊँगा
जब इंसान गधा हो सकता है
तो क्या गधा इंसान नहीं
मिस्टर बकवास बेहरा को जानते हो
उन्होंने न जाने
कितने गधों को इंसान बना दिया
उनमें से कइयों ने
जुहू में बंगला बनवा लिया
"मैं भी ऐसे ही गधे की तलाश में हूँ
जिसे मेकअप करके शेर देखा सकूं"
हमने सलाह दी-"तुम शेर को ही
हीरो क्यों नहीं बनाते"
वो बोला-"तुम भी गधे जैसी
म-म-मेरा मतलब है
कैसी बात कर रहे हो
शेर को हीरो बनाएंगे
तो सारा मांस वो ही खा जाएगा
हम क्या खाएंगे?"

इस बार
मेरी फ़िल्म का नाम होगा
गधा मेरा यार
थीम सांग लिखेंगे 'गधानंद झक्की'
बोल होंगे, ढेंचू ढेंचू ढेंचू
दुनिया मुझको देखे
मैं दुनिया को देखूं
क्यों भाई कैसा आइडिया है
गधे को भी
क्या ग्लैमर दिया है
भाई साहब!
आज का दर्शक पल्ला नहीं
खुल्लम खुल्ला मांगता है
ख़ामोशी नहीं, हल्ला मंगता है
मैं बिल्ला पर फ़िल्म बनाऊंगा
देश के नौजवानों को
जो बिल्ला नहीं सिखा पाया
मैं सिखाऊंगा
राजकपूर ने ग़लती की
फ़िल्म का नाम 'सत्यम् शिवम् सुन्दरम्' नहीं
'नंगम् धड़ंगम् शरीरम्' रख देता
तो दर्शक स्वीकार कर लेता
तरस तो बेचारी ज़ीनत अमान पर आता है
जिसने आधी धोती पहन कर
शरीर ढांका है
और फ़िल्म के पर्दे पर
भारतीय नारी का संस्कार टांका है
फिर भी लोग
बेचारी की नींद हराम कर रहे हैं
फ़िल्म में हीरो ने बदनाम किया
बाहर लोग बदनाम कर रहे हैं
मैं ऐसी ग़लती नहीं करुंगा
हीरोइन के लिए
ख़ूबसूरत गधैया तलाशूंगा
उससे ओरिजिनल कैबरे करवाऊंगा
जब बदन पर कपड़े नहीं होंगे
तो क्या उतरवाऊंगा
मगर पहले
कोई ठिकाने का गधा मिले
तो काम चले
हमने कहा-" हमारे बारे में
तुम्हारा क्या खयाल है।"
वो बोला-"परसेनिलिटी का सवाल है
हाथी मेरे साथी बन चुकी है
वर्ना तुमको लेकर बना देता
बाकी सब ठीक है
चेहरे पर सूंड लटका देता।"

VARSHNEY.009
18-07-2013, 11:24 AM
भ्रष्टाचार / शैल चतुर्वेदी

हमारे लाख मना करने पर भी
हमारे घर के चक्कर काटता हुआ
मिल गया भ्रष्टाचार
हमने डांटा : नहीं मानोगे यार
तो बोला : चलिए

आपने हमें यार तो कहा
अब आगे का काम
हम सम्भाल लेंगे
आप हमको पाल लीजिए
आपके बाल-बच्चों को
हम पाल लेंगे
हमने कहा : भ्रष्टाचार जी!

किसी नेता या अफ़सर के
बच्चे को पालना
और बात है
इन्सान के बच्चे को पालना
आसान नहीं है
वो बोला : जो वक्त के साथ नहीं चलता

इंसान नहीं है
मैं आज का वक्त हूँ
कलयुग की धमनियों में
बहता हुआ रक्त हूँ
कहने को काला हूँ
मगर मेरे कई रंग हैं
दहेज़, बेरोज़गारी
हड़ताल और दंगे
मेरे ही बीस सूत्री कार्यक्रम के अंग हैं
मेरे ही इशारे पर
रात में हुस्न नाचता है
और दिन में
पंडित रामायण बांचता है
मैं जिसके साथ हूँ
वह हर कानून तोड़ सकता है
अदलत की कुर्सी का चेहरा
चाहे जिस ओर मोड़ सकता है
उसके आंगन में
अंगड़ाई लेती है
गुलाबी रात
और दरवाज़े पर दस्तक देती है
सुनहरी भोर
उसके हाथ में चांदी का जूता है
जिसके सर पर पड़ता है
वही चिल्लाता है
वंस मोर
वंस मोर
वंस मोर
इसलिए कहता हूँ
कि मेरे साथ हो लो
और बहती गंगा में हाथ धो लो
हमने कहा : गटर को गंगा कहते हो?

ये तो वक्त की बात है
जो भारत वर्ष में रह रहे हो
वो बोला : भारत और भ्रष्टाचार की राशि एक है

कश्मीर से कन्याकुमारी तक
हमारी ही देख-रेख है
राजनीति हमारी प्रेमिका
और पार्टी औलाद है
आज़ादी हमारी आया
और नेता हमारा दामाद है
हमने कहा : ठीक कहते हो भ्रष्टाचार जी!

दामाद चुनाव में खड़ा हो जाता है
और जीतने के बाद
उसकी अँगुली छोटी
और नाख़ून बड़ा हो जाता है
मगर याद रखना
दामादों का भविष्य काला है
बस, तूफ़ान आने ही वाला है
वो बोला : तूफ़ान आए चाहे आंधी

अपना तो एक ही नारा है
भरो तिज़ोरी चांदी की
जै बोलो महात्मा गांधी की
हमने कहा : अपने नापाक मुँह से

गांधी का नाम तो मत लो
वो बोला : इस ज़माने में

गांधी का नाम
मेरे सिवाय कौन लेता है
गांधी के सिद्धांतों पर चलने वालों को
जीने कौन देता है
मत भूलो
कि भ्रष्टाचार
इस ज़माने की लाचारी है
हमें मालूम है
कि आप कवि हैं
और आपने
कविता की कौन-सी लाइन
कहाँ से मारी है।

VARSHNEY.009
18-07-2013, 11:25 AM
बाप का बीस लाख फूँक कर / शैल चतुर्वेदी

लोकल ट्रेन से उतरते ही
हमने सिगरेट जलाने के लिए
एक साहब से माचिस माँगी
तभी किसी भिखारी ने
हमारी तरफ हाथ बढ़ाया
हमने कहा-
"भीख माँगते शर्म नहीं आती?"
वो बोला-
"माचिस माँगते आपको आयी थी क्*या"
बाबूजी! माँगना देश का करेक्*टर है
जो जितनी सफाई से माँगे
उतना ही बड़ा एक्*टर है
ये भिखारियों का देश है
लीजिए! भिखारियों की लिस्*ट पेश है
धंधा माँगने वाला भिखारी
चंदा माँगने वाला
दाद माँगने वाला
औलाद माँगने वाला
दहेज माँगने वाला
नोट माँगने वाला
और तो और
वोट माँगने वाला
हमने काम माँगा
तो लोग कहते हैं चोर है
भीख माँगी तो कहते हैं
कामचोर है
उनसे कुछ नहीं कहते
जो एक वोट के लिए
दर-दर नाक रगड़ते हैं
घिस जाने पर रबर की ख़रीद लाते हैं
और उपदेशों की पोथियाँ खोलकर
महंत बन जाते हैं।
लोग तो एक बिल्*ला से परेशान हैं
यहाँ सैकड़ों बिल्*ले
खरगोश की खाल में
देश के हर कोने में विराजमान हैं।
हम भिखारी ही सही
मगर राजनीति समझते हैं
रही अख़बार पढ़ने की बात
तो अच्*छे-अच्*छे लोग
माँग कर पढ़ते हैं
समाचार तो समाचार
लोग-बाग पड़ोसी से
अचार तक माँग लाते हैं
रहा विचार!
तो वह बेचारा
महँगाई के मरघट में
मुर्दे की तरह दफ़न हो गया है।
समाजवाद का झंडा
हमारे लिए क़फ़न हो गया है
सत्य बहुत कड़वा होता है
कभी झोपड़ियों में झांककर देखिए
लोग किस तरह जी रहे हैं
कूड़ा खा रहे हैं
और बदबू पी रहे हैं
उनका फोटो खींचकर
फिल्*म वाले लाखों कमाते हैं
झोपड़ी की बात करते हैं
मगर जुहू में बँगला बनवाते हैं। हमने कहा "फिल्*म वालों से
तुम्*हारा क्*या झगड़ा है ?"
वो बोला-
"आपके सामने भिखारी नहीं
भूतपूर्व प्रोड्यूसर खड़ा है
बाप का बीस लाख फूँक कर
हाथ में कटोरा पकड़ा है!"
हमने पाँच रुपए उसके
हाथ में रखते हुए कहा-
"हम भी फिल्*मों में ट्राई कर रहे हैं भाई!"
वह बोला, "आपकी रक्षा करें दुर्गा माई
आपके लिए दुआ करूँगा
लग गई तो ठीक
वरना आपके पाँच में अपने पाँच मिला कर
दस आपके हाथ पर धर दूँगा!"

VARSHNEY.009
18-07-2013, 11:25 AM
कवि फ़रोश / शैल चतुर्वेदी

जी हाँ, हुज़ूर, मैं कवि बेचता हूँ
मैं तरह-तरह के कवि बेचता हूँ
मैं किसम-किसम के कवि बेचता हूँ।
जी, वेट देखिए, रेट बताऊं मैं
पैदा होने की डेट बताऊं मैं
जी, नाम बुरा, उपनाम बताऊं मैं
जी, चाहे तो बदनाम बताऊं मैं
जी, इसको पाया मैंने दिल्ली में
जी, उसको पकड़ा त्रिचनापल्ली में
जी, कलकत्ते में इसको घेरा है
जी, वह बंबइया अभी बछेरा है
जी, इसे फंसाया मैंने पूने में
जी, तन्हाई में, उसको सूने में
ये बिना कहे कविता सुनवाता है
जी, उसे सुनो, तो चाय पिलाता है
जो, लोग रह गए धँधे में कच्चे
जी, उन लोगों ने बेच दिए बच्चे
जी, हुए बिचारे कुछ ऐसे भयभीत
जी, बेच दिए घबरा के अपने गीत।

मैं सोच समझ कर कवि बेचता हूँ
जी हाँ, हुज़ूर, मैं कवि बेचता हूँ।
ये लाल किले का हीरो कहलाता
ये दाढ़ी दिखला कर के बहलाता
जी, हास्य व्यंग्य की वो गौरव गरिमा
जी गाया करता जीजा की महिमा
जी, वह कुर्तक का रंग जमाता है
जी, बिना अर्थ के अर्थ कमाता है
वो गला फाड़ कर काम चला लेता
ये पैर पटक कर धाक जमा लेता
जी, ये त्यागी है, वैरागी है वो
जी, ये विद्रोही है, अनुरागी है वो
ये कवि युद्ध की गाता है लोरी
वो लोक धुनों की करता है चोरी
ये सेनापति कवियों की सेना का
वो क़िस्सा गाता तौता-मैना का
ये अभी-अभी आया है लाइट में
वो कसर नहीं रखता है डाइट में
ये लिख लेता है कविता हथिनी पर
वो लिख लेता है अपनी पत्नी पर
जी, इसने बिल्ली, गधे नहीं छोड़े
जी, उसने कुत्ते बंधे नहीं छोड़े

जी, सस्ते दामों इन्हें बेचता हूँ
जी हाँ, हुज़ूर, मैं कवि बेचता हूँ।
जी, भीतर से स्पेशल बुलवाऊँ
आप कहे उनको भी दिखलाऊँ
ये अभी-अभी लौटा है लंदन से
वो अभी-अभी उतरा है चंदन से
इसने कविता पर पुरस्कार जीता
है शासन तक लम्बा इसका फ़ीता
जी, ग़म खाता वो आँसू पीता है
जी, ये फोकट की रम ही पीता है
इसके पुरखों ने पी इतनी हाला
बिन पिए रची है इसने मधुशाला
जी, ये मन में कस्तूरी बोता है
जी, वो कवियों के बिस्तर ढ़ोता है
ये देश-प्रेम में बहता रहता है
वो रात-रात भारत दहता रहता है
ये मन्दिर जैसे गाँव किनारे का
वो तैरा करता सागर पारे का
जी, ये सूरज को कै करवाता है
अनब्याही वो किरण बताता है
इसकी कमीज़ पर धूप बटन टाँके
जी, उसका गधा बैलो को हाँके
जी, क्यों हुज़ूर आप कुछ नहीं बोले
जी, क्यूँ हुज़ूर, हैं आप बड़े भोले
जी, इसमें क्या है नाराज़ी की बात
मेरी दुकान में कवियों की बारात
जी, नहीं जंचे ये, कहें तो नए दे दूँ
जी, नहीं चाहिए नये, गए दे दूँ।

जी सभी तरह के कवि बेचता हूँ
जी हाँ, हुज़ूर, मैं कवि बेचता हूँ।
जी, ये रूहें हिन्दी के बेटों की
जी, बेचारे क़िस्मत के हेठों की
जी, इनसे जीवन छन्दो में बांधा
जी हाँ, गीतो को होठों पर साधा
जी वो कविता को सौप गया त्यौहार
जी, बेच दिया इसने अपना घर-बार
जी, वो मनु को श्रद्धा से मिला गया
जी, ये मित्रों को अद्धा पिला गया
जी, वो पीकर जो सोया, उठा नहीं
जी, इसे पेट भर दाना जुटा नहीं
जी, समझ गया! हाँ कवयित्रियाँ भी हैं
जी, कुछ युवती, कुछ अब तक बच्ची हैं
ये बन मीरा मोहन को ढूंढ रही
वो सूर्पणखा लक्ष्मण को मूड़ रही
ये बाँट रही जग को कोरे सपने
वो बेच रही जग को अनुभव अपने
जी, कुछ कवियों से इनका झगड़ा है
जी, उनका पौव्वा ज्यादा तगड़ा है
जी, ये चलती है पति को साथ लिए
जी, वो चलती है पूरी बारात लिए
जी, नहीं-नहीं हँसने की क्या है बात
जी, मेरा तो काम यही है दिन-रात
जी, रोज़ नए कवि है बनते जाते
जी, ग्राहक मर्ज़ी से चुनते जाते
जी, बहुत इकट्ठे हुए हटाता हूँ
जी अंतिम कवि देखें दिखलाता हूँ
जी ये कवि है सारे कवियों का बाप
जी, कवि बेचना वैसे बिल्कुल पाप।

क्या करूँ, हाल कर कवि बेचता हूँ
जी हाँ, हुज़ूर, मै कवि बेचता हूँ।

VARSHNEY.009
18-07-2013, 11:25 AM
व्यंग्यकार से / शैल चतुर्वेदी

हमनें एक बेरोज़गार मित्र को पकड़ा
और कहा, "एक नया व्यंग्य लिखा है, सुनोगे?"
तो बोला, "पहले खाना खिलाओ।"
खाना खिलाय तो बोला, "पान खिलाओ।"
पान खिलाया तो बोला, "खाना बहुत बढ़िया था
उसका मज़ा मिट्टी में मत मिलाओ।
अपन ख़ुद ही देश की छाती पर जीते-जागते व्यंग्य हैं
हमें व्यंग्य मत सुनाओ
जो जन-सेवा के नाम पर ऐश करता रहा
और हमें बेरोज़गारी का रोजगार देकर
कुर्सी को कैश करता रहा।
व्यंग्य उस अफ़सर को सुनाओ
जो हिन्दी के प्रचार की डफली बजाता रहा
और अपनी औलाद को अंग्रेज़ी का पाठ पढ़ाता रहा।
व्यंग्य उस सिपाही को सुनाओ
जो भ्रष्टाचार को अपना अधिकार मानता रहा
और झूठी गवही को पुलीस का संस्कार मानता रहा।
व्यंग्य उस डॉक्टर को सुनाओ
जो पचास रूपये फ़ीस के लेकर
मलेरिया को टी.बी. बतलाता रहा
और नर्स को अपनी बीबी बतलाता रहा।
व्यंग्य उस फ़िल्मकार को सुनाओ
जो फ़िल्म में से इल्म घटाता रहा
और संस्कृति के कपड़े उतार कर सेंसर को पटाता रहा।
व्यंग्य उस सास को सुनाओ
जिसने बेटी जैसी बहू को ज्वाला का उपहार दिया
और व्यंग्य उस वसना के कीड़े को सुनाओ
जिसने अपनी भूख मिटाने के लिए
नारी को बाज़ार दिया।
व्यंग्य उस श्रोता को सुनाओ
जो गीत की हर पंक्ति पर बोर-बोर करता रहा
और बकवास को बढ़ावा देने के लिए
वंस मोर करता रहा।
व्यंग्य उस व्यंग्यकार को सुनाओ
जो अर्थ को अनर्थ में बदलने के लिए
वज़नदार लिफ़ाफ़े की मांग करता रहा
और अपना उल्लू सीधा करने के लिए
व्यंग्य को विकलांग करता रहा।
और जो व्यंग्य स्वयं ही अन्धा, लूला और लंगड़ा हो
तीर नहीं बन सकता
आज का व्यंग्यकार भले ही "शैल चतुर्वेदी" हो जाए
'कबीर' नहीं बन सकता।

VARSHNEY.009
18-07-2013, 11:26 AM
मूल मंत्र / शैल चतुर्वेदी

हमारे देश का प्रजातंत्र
वह तंत्र है
जिसमें हर बिमारी स्वतंत्र है
दवा चलती रहे, बीमार चलता रहे-
यही मूल-मंत्र है।
फलवाले से कहा :"ऊपर से देखने में चिकना है

भगवान जाने रस कितना है।"
तो बोला: "गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है

कर्म करो और फल मुझ पर छोड़ दो।
हम दोनों ने अपना-अपना कर्म किया
मैंने दिया और आपने लिया
अब फल अच्छा निकले या ख़राब
यह तो हरि-इच्छा है जनाब।"
डॉक्टर से कहा:"आँख है तो ज़िन्दगी है

एक गई दूसरी बची है।"
तो बोला:"लोग-बाग बिना बोर्ड पढ़े

चेम्बर में घुस आते हैं
शर्म नहीं आती
नाक वाले डॉक्टर को
आँख दिखाते हैं।"
दर्ज़ी से कहा:"कुर्ता पेट पर टाइट सिला है।"
तो बोला:"कपड़ा क्या आपको

प्रेज़ेंट में मिला है
पानी में डालते ही आधा रह गया
अब जैसा बना है ले जाइए
कुर्ते को पेट के लायक़ नहीं
पेट को कुर्ते के लायक़ बनाइए।"
पान वाले से कहा:"पाँच रुपये का पान

कहाँ जाएगा हिन्दुस्तान?"
तो बोला:"खा कर तो देखिए श्रीमान

आत्मा खिल जाएगी
हमारे पाँन की पीक
शहर के हर कोने में मिल जाएगी।"
किताब वाले से पूछा:"प्रेमचन्द का गोदान है?"
तो बोला: "गोदान!

यह नाम तो पहली बार सुना है श्रीमान
हम तो साहित्य का सम्मान कर रहे हैं!
सत्य कथाएं बेच कर
राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण कर रहे हैं।
कैलेंडर वाले से पूछा: "हरिवंश राय बच्चन का चित्र है?"
तो बोला: "आपका टेस्ट भी विचित्र है

वर्तमान को
भूतकाल के कन्धे पर टांग रहे हैं
बेटे के ज़माने में
बाप का चित्र मांग रहे हैं।"
लेखक से कहा: "यार कुछ ऐसा लिखो

कि भीड़ से अलग दिखो।"
तो बोला: "जैसा बनता है लिख रहे हैं

यही क्या कम है
कि हमारे जासूसी उपन्यास
रामायण से ज्यादा बिक रहे हैं।"
दुकानदार से कहा: "यार ठीक से तौलो"
तो बोला: "तौलने के बारे में कुछ मत बोलो

ज़िन्दगी भर यही किया है
ग्राहक को तौल से ज्यादा दिया है
आप पहले हैं जो बोल रहे हैं
वर्ना कोई नहीं देखता
कि हम क्या तौल रहे हैं।"
नौकरानी से कहा:"एक तो बर्तन चुराती हो

उपर से आँख दिखाती हो।"
तो बोली:दिखा तो आप रहे हैं

बर्तन मलवाओ, न मलवाओ
चोरी का इल्ज़ाम मत लगाओ
हमें पता है
कि आप कितने बड़े है
आधे बर्तनो पर तो
पड़ौसियों के नाम पड़े है।"
बेटे से कहा:"बाल मत बढ़ाओ"
तो बोला:"पापाजी, आदर्श का पाठ मत पढ़ाओ

हम ज़माने के साथ चल रहे हैं
आपके बाल नहीं है न
इसलिए आप जल रहें हैं।"
बीबी से कहा:"पति हूँ, चपरासी नहीं।"
तो बोली:"पत्नी हूँ, दासी नहीं

बाहर की भगवान जाने
घर में मेरी चलेगी
चिराग़ लेकर ढूंढने से भी
ऐसी बीबी नहीं मिलेगी।"
बेटी से कहा:"इतनी रात को कहाँ जा रहीं हो?"
तो बोली:"टोको मत जाने दो

आपसे तो दामाद फँसा नहीं
मुझे ही फँसाने दो।"
पड़ौसी से कहा:"आपका बेटा लड़कियों को छेड़ता है।"
तो बोला:"बेटे का नहीं उम्र का दोष है

जैसा भी है अच्छा है
किसी ऐसे वैसे का नहीं
हमारा बच्चा है।"
लड़के वाले से कहा:"बेटी पढ़ी-लिखी और सुन्दर है।"
तो बोला:"हमारा बेटा कौन-सा बन्दर है

रंग थोड़ा पक्का है
फिर पढाई में क्या रक्खा है
अच्छे-अच्छे लोग
डिगरियाँ लटकाए घूम रहे हैं
भाई साहब!
अपुन तो ऐसी लड़की ढूंढ रहे हैं
जिसके बाप के पास पैसा हो
चेहरे का क्या है
चाहे जैसा हो।"
प्रोफ़ेसर से कहा:"जब देखो

कॉफी हाउस में नज़र आते हो
बच्चों को कब पढ़ाते हो?"
तो बोला:"साल में दो महीने इतवार के

तीन स्ट्राइक के
चार त्योहार के
बच्चे अपने आप पास हो जाते हैं
नकल मार के।"
सिपाही से कहा:"कानून को भी मानते हो

या केवल डंडा घुमाना जानते हो?"
तो बोला:"कानून की भाषा पढ़े-लिखे बोलते हैं

हम तो हर कानून को
डंडे से तोलते हैं
डंडा हाथ में है तो गुंड़ा साथ में है।"
नेता से कहा:"वोट लिया है

बदले में क्या दिया है?"
तो बोला:"हम नेता हैं

आगे रहते है
पीछे क्या हो रहा है
कैसे देख सकते हैं
हमने माना कि देश का हाल बुरा है
मगर हमारे बापू ने हमें सिखाया है
बुरा मत देखो
बुरा मत सुनो
बुरा मत बोलो।"

VARSHNEY.009
18-07-2013, 11:26 AM
तलाश नये विषय की / शैल चतुर्वेदी

मत पूछिए कि आजकल क्या कर रहे हैं?
बस, पुरानी कविताओं में
नया रंग भर रहे हैं
लेकिन कितना ही भर लो
सब बेकार है
आज का श्रोता बड़ा समझदार है
फौरन ताड़ लेता है
अच्छे-अच्छे रंग बाज़ों का
हुलिया बिगाड़ देता है।

भगवान भला करें उन नेताओं का
जिनके भरोसे हमने
दर बरस निकाल लिए
और बाल बच्चे पाल लिए
किसी नेता की दाढ़ी से
कविता की गाड़ी खींचते रहे
किसी के मरे हुए पानी से
शब्दों की फुलवारी सींचते रहे
किसी के चरित्र पर चोट करते रहे
धोती को फाड़कर लंगोट करते रहे
कब तक फाड़ते!
घिसे हुए नेता की आरती
कब तक उतारते?
अब राजनीति में क्या रक्खा है
क्योंकि हर विरोधी
हक्का बक्का है।
उधर मैदान खाली है
और इधर मंच पर
कविता है, न ताली है।
चली हुई कविता को
कितना और चलाए
समझ में नहीं आता
नया विषय कहाँ से लाए?

एक मित्र ने सलाह दी-
"गीतों की पेरोडी सुनाओ।"
हमने जवाब दिया-
"पेरोडी पापुलर गीतों की बनाई जाती है
और हमें बताते हुए शर्म आती है
कि पिछले तीस बरसों में
एक ही गीत पापुलर हुआ
(कारवां ग़ुज़र गया ग़ुबार देखते रहे)
और उसकी इतनी पैरोडियाँ बन चुकी हैं
कि आने वाली पीढियाँ
पता लगाते-लगाते खत्म हो जएंगी
कि मूल गीत कौन-सा है।"

वह बोला-"फ़िल्मी गीतों की पैरोडी कैसी रहेगी?"
हमने कहा-"आजकल के फ़िल्मी गीत भी क्या हैं
(दे दे प्यार दे, प्यार दे, प्यार दे दे दे दे प्यार दे)
ऐसे गीत की पैरोडी ऐसी लगेगी
जैसे कोई कैबरे डाँसर
नाचते-नाचते कपड़े उतार दे।"
वह बोला-"न्यूज़ पेपर पढ़ो
देश में हज़ारो दुर्घटनाए हो रही है
उन पर लिखो।"
हमने कहा-"समाचार!
कहाँ हड़ताल हुई, कहाँ दंगा
कौन शहीद हुआ
कौन नंगा
यही पता लगाते-लगाते
सुबह से शाम हो जाती है
और समाचार पुराना पड़ते ही
कविता बेनाम हो जाती है।"

वह बोला-"हमारे देश की
सदाबहार समस्या है-डाकू।"
हमने कहा-"अगर किसी डाकू ने
मार दिया चाकू
तो बच्चे अनाथ हो जाएंगे।
भूख से परेशान होकर
डाकुओं के साथ हो जाएंगे।"

वह बोला-"चोर।"
हमनें कहा-"चोरों को छेड़ना भी
ख़तरे से खाली नहीं है
क्योंकि चोर इस ज़माने में
सम्मानित शब्द है
गाली नहीं है।"

वह बोला-"आसाम"
हमने कहा-"सलाह तो नेक है
लेकिन लिखने वाले सैकड़ो हैं
और विषय एक है।
पता ही नहीं चलता
कि कौन सी कविता किसकी है!
नहीं भैया
आसाम बहुत रिस्की है।

वह बोला-"ख़ालिस्तान!"
हमने कहा-"कविता का नहीं
कृपाण का मामला है
खत्म हो जाए इसी में भला है।"

वह बोला-"पुलीस"
हमने कहा-"पुलीस का सम्बन्ध चोरों से है
हम कवि हैं
अपनी छवि नहीं बिगाड़ेंगे
कूड़े को क़लम से नहीं बुहारेंगे।

वह बोला-"भ्रष्टाचार!"
हमने कहा-"एक ऐसा झाड़
जिसकी डालियाँ नीचे
और जड़ उपर है
उसे किसका डर है?"
वह बोला-"चुटकुले कवि सम्मेलनों की नाक हो गए हैं।"
हमने कहा-"वे भी आजकल
बहुत चालाक हो गए हैं।"
एक लावारिस चुटकुले को हमने
पाल पोस कर बड़ा किया
मगर ऐन वक्त पर ऐंठ गया
हमें अँगूठा दिखा कर
दूसरे की गोद में बैठ गया।
हमने पूछा तो बोला
'माफ करना अंकल जी
यहाँ मेरे कई भाई बन्द हैं
आपके यहाँ अकेला फँस गया था।
तालियों तक के लिए तरस गया था।'
और चुटकुला बिना ताली के
ठीक उसी तरह है
जैसे जीजा बिना साली के
और गुंड़ा बिना गाली के।"

वह बोला-"फिर तो एक ही विषय बचा है
बीबी!"
हमने कहा-"बीबी का मज़ाक उड़ाएंगे
तो बच्चो के संस्कार बिगड़ जाएंगे।"

वह बोला-"संस्कार की चिंता करोगे
तो धन्धा कैसे करोगे
ऊपर उठने की कोशिश की
तो नीचे गिरोगे
जैसे भी बने
लोगों को हँसाओ
दाल रोटी खाओ
प्रभु के गुण गाओ।"

VARSHNEY.009
18-07-2013, 11:27 AM
हमारे ऐसे भाग्य कहाँ / शैल चतुर्वेदी

एक दिन अकस्मात
एक पुराने मित्र से हो गई मुलाकात
हमने कहा-"नमस्कार।"
वे बोले-"ग़ज़ब हो गया यार!
क्या खाते हो
जब भी मिलते हो
पहले से डबल नज़र आते हो?"
हमने कहा-"छोड़ो भी यार
यह बताओ तुम कैसे हो?"
वे बोले-"गृहस्थी का बोझ ढो रहे हैं
जीवन ही बगिया में आँसू बो रहे हैं
कर्म के धागों से
फटा भाग्य सी रहे हैं
बिना चीनी की चाय पी रहे हैं।"
हमने पूछा-"डायबिटीज़ है क्या?"
वे बोले-"हमारे ऐसे भाग्य कहाँ!
डायबिटीज़ जैसे राजरोग
बड़े-बड़े लोगों को होते हैं
हम जैसे कंगालो को तो
केवल बच्चे होते हैं
तुम्हारे कितने हैं?"
हमने कहा-"हमें तो डायबिटीज़ है
तुम क्या जानो
कितनी बुरी चीज़ है!"
वे बोले-"बुरी चीज़ है तो मुझे दे दो
और बच्चे मुझसे ले लो।"
हमने पूछा-"कितने हैं?"
वे बोले-"जितने चाहो उतने हैं
सात कन्याएँ हैं
चार गूंगी, दो बहरी
और एक कानी है
ईश्वर की महरबानी है।"
हमने पूछा-"भाभी की हैल्थ वैल्थ?"
वे बोले-"हैल्थ ही हैल्थ है
वैल्थ के लिए तो हम
बरसों से झटके खा रहे हैं।
आम की उम्मीद लिए
बबूल में लटके जा रहे हैं
सात कन्याएँ न होतीं
तो आपकी तरह खाते-पीते
मौज उड़ाते।
एक दिन डायबिटीज़ के पेशेंट बन जाने
कम से कम कहने को तो होता
कि हमारा भी फ़ैमिली डॉक्टर है
स्टील की तोज़ोरी है
दो मंज़िल घर है
लक्ष्मी को उंगली पर नचाते
और लोगों की आँखो में धूल झोककर
इंकमटैक्स चुराते!
मगर यहाँ तो इंकम ही नहीं है
तो टैक्स क्या चुराएंगे
चुराने के नाम पर
उधारी वालों से आँखे चुराएंगे!
मगर अब उधार देने वाले भी
इतने कसाई हो गए हैं
कि हम उनकी नज़रों में
बकरे के भाई हो गए हैं।
सरकार भी क्या करें
किस-किस को पकड़े
जिसे देखो वही कुछ न कुछ खा रहा है-
व्यापारी सामान खा रहा है
ठेकेदार पुल और मकान खा रहा है
धर्मात्मा दान खा रहा है
बेईमान ईमान खा रहा है
और जिसे कुछ नहीं मिला
वो आपके कान खा रहा है।"
हमने कहा-"यार खूब बोलते हो।"
वे बोले-"यहीं बोल रहा हूँ
घर पर तो लड़कियों की माँ बोलती है
सिंहनी की तरह छाती पर डोलती है
अपनी क़िस्मत में तो
फनफनाती हुई बीबी
और दनदनाती हुई औलाद है
सच पूछो तो
यही पूंजीवाद और समाजवाद के बीच
फँसा हुआ बकरावाद है!"
हमने पूछा-"बकरावाद?"
वे बोले-"हाँ-हाँ बकरावाद!
कभी शेर की तरह दहाड़ते हुए
बारात ले कर गए थे
अब बकरे की तरह मिमिया रहे हैं
फ़र्क़ इतना है
कि बकरा एक झटके में हलाल होता है
और हम धीरे-धीरे हुए जा रहे हैं।

VARSHNEY.009
18-07-2013, 11:28 AM
देश जेब में / शैल चतुर्वेदी

एक मित्र कहने लगे-
"जहाँ तक नज़र जाती है
एक सैंतीस बरस का
अपंग बच्चा नज़र आता है
जो अपने लुँज हाथों को
उठाने की कोशिश करता हुआ
चीख़ रहा है-
'मुझे दल-दल से निकालो
मैं प्रजातंत्र हूँ
मुझे बचा लो।
मैं तुम्हारा ईमान हूँ
गाँधी की तपस्या हूँ
भारत की पहचान हूँ।'

"काम वाले हाथों में
झंडा थमा देने वाले
वक़्त के सौदागर
बड़े ऊँचे खिलाड़ी हैं
जो अपना भूगोल ढाँकने के लिए
राजनीति लपेट लेते हैं
और रहा कॉमर्स, तो उसे
उनके भाई-भतीजे
और दामाद समेट लेते हैं।"
हमने कहा-
"नेताओं के अलावा
आपके पास कोई विषय नहीं है।"
वे बोले-"क्यों नहीं
बूढ़ा बाप है
बीमार माँ है
उदास बीबी है
भूखे बच्चे हैं
जवान बहिन है
बेकार भाई है
भ्रष्टाचार है
महंगाई है
बीस का ख़र्चा है
दस की कमाई है
इधर कुआँ है
उधर खाई है।"

हमने पूछा-"क्या उम्र है आपकी?"
वे बोले-"तीस की उम्र में
साठ के नज़र आ रहे हैं
बस यूँ समझिए
कि अपनी ही उम्र खा रहे हैं
हिन्दुस्तान में पैदा हुए थे
क़ब्रिस्तान में जी रहे हैं
जबसे माँ का दूध छोड़ा है
आँसू पी रहे हैं।"

हमने कहा-"भगवान जाने
देश की जनता का क्या होगा?"
वे बोले-"जनता का देर्द ख़जाना है
आँसुओं का समन्दर है
जो भी उसे लूट ले
वही मुक़द्दर का सिकन्दर है।"

हमने पूछा-"देश का क्या होगा?"
वे बोले -"देश बरसो से चल रहा है
मगर जहाँ का तहाँ है
कल आपको ढूँढना पड़ेगा
कि देश कहाँ है
कोई कहेगा-ढूँढते रहिए
देश तो हमारी जेब में पड़ा है
देश क्या हमारी जेब से बड़ा है?"

VARSHNEY.009
18-07-2013, 11:28 AM
शादी भी हुई तो कवि से / शैल चतुर्वेदी

हमारे पड़ौसी लाला को
बड़ा घमंड था
अपने अलीगढ़ी तालों का
मगर छापा पड़ा
इंकमटैक्स वालों का
तो दो घण्टे में बाहर निकल आया
दाबा हुआ माल
कई सालों का
हमारी श्रीमती जी का
पारा चढ़ गया
बोलीं, "देखा
इंकमटैक्स वाले ने
हमारे घर की तरफ़
देखा तक नहीं
और आगे बढ़ गया
जब से पड़ौसन के यहाँ
छापा पड़ा है
उसके आदमी का सीना
तन गया है
गिरी हुई मूंछे तलवार हो गई हैं
रेडियो पहले की अपेक्षा
ज़ोर से बजने लगा है
और लाला
हम लोगों को
भुक्खड़ समझने लगा है
कहता है-जिसके यहाँ
कुछ होगा ही नहीं
उसके यहाँ क्या पड़ेगा
हमारे यहाँ था
इसलिए पड़ गया
जिसके यहाँ कुछ नहीं था
उसके दरवाज़े से आगे बढ़ गया।"
हमने कहा-"लाला ठीक ही तो कहता है
हमारे पास है ही क्या
कविता है, कल्पना है
आँसू है, वेदना है
भावना है, छंद है
चिंता है, अंतर-द्वन्द है
और ऊपर से
महंगाई के मारे हवा बन्द है
आई.टी.ओ. हमारे यहाँ आता
तो भला क्या पाता?
वे बोलीं : "तुम तो कवि हो न
आँसू को मोती
और वेदना को हीरा समझते हो
काश!
एन्कम्टैक्स वाले
हमारे यहाँ आते
तो तुम्हारे
हीरे और मोती तो पाते
नोटों की गड्डी न सही
लाख दो लाख
आँसू ही ले जाते।"
हमने कहा:"पगली!
किसी को हमारे आँसुओं से
क्या लेना देना
अगर आँसू भी
लेन देन का माध्यम हो गया होता
तो हमारे पास वो भी नहीं होता।
ग़रीब की आँखो की बजाय
तिज़ोरी में बन्द हो गया होता।
तिज़ोरी!
जिसमें बन्द है
लहलहाते खेत की मुस्कान
थके हारे होरी का पसीना
मजबूर धनिया का यौवन
सावन का महीना
सिसकती पायल की झंकार
भूकी और बेबस रधिया का प्यार
अनाथालय का चन्दा
और अपनी ही लाश ढोता हुआ
किसी गरीब बच्चे का कन्धा।"
वे बोलीं: "चुप हो जाओ
लाला के रेडिओ से
ऊँचा बोल रहे हो
रेडियो बिजली से चलता है
उसका क्या बिगड़ता है
तुम तो ब्लड प्रेशर के मरीज़ हो
अभी पसर जाओगे
फिर तुम जहाँ चीख़ रहे हो
वह कविता का मंच नहीं
तुम्हारे डेढ़ कमरे के शीश महल का
पलस्तर उखड़ा बरामदा है
ब्याह भी हुआ तो कवि से
भगवान जाने
क़िस्मत में क्या बदा है
इंकमटैक्स देने लायक भी नहीं। "

VARSHNEY.009
18-07-2013, 11:29 AM
बाज़ार का ये हाल है / शैल चतुर्वेदी

बाज़ार का ते हाल है
कि ग्राहक पीला
और दुकानदार लाल है
दूध वाला कहता है-
"दूध में पानी क्यों है
गाय से पूछो।"

गाय कहेगी-"पानी पी रहीं हूँ
तो पानी दूंगी
दूध वाला मेरे प्राण ले रहा है
मैं तुम्हारे लूंगी।"

कोयले वाला कहता है-
"कोयले की दलाली में
हाथ काले कर रहे हैं
बर्तन ख़ाली ही सही
हमारी बदौलत चूल्हे तो जल रहें हैं।"

कपड़े वाला कहता है-
"जिस भाव में आया है
उस भाव में कैसे दें
आपको हंड्रेड परसेंट आदमी बनाने का
आपसे फ़िफ्टी परसेंट भी नहीं लें।"

धोबी कहता है-
"राम ने धोबी के कहने से सीता हो छोड़ दिया
आप कमीज़ नहीं छोड़ सकते
सौ रुपल्ली की कमीज़ भट्टी खा गई
तो आप तिलमिला रहें हैं
इस देश में लोग ईमान को भट्टी में झोंककर
सारे देश को खा रहें हैं।"

मक्खन वाला कहता है-
"बाबूजी ये मक्खन है
खाने के नहीं, लगाने के काम में आता है
जो लगाना जानता है
ऊपर वाला उसी को मानता है।"

डॉक्टर कहता है-
"सोलह रुपये फीस सुनते ही
चेहरा उतर गया
जिस देश में पानी पैसे से मिलता है
वहाँ लोगों को
दवा जैसी चीज़ फोकट में चाहिए
आप जैसों के लिए सरकारी अस्पताल ही बेहतर है
जाइए, वहीं धक्के खाइए।"

अनाज वाला कहता है-
"आप खरीदते हैं, हम बेचते हैं
एक दूसरे को रोज़ देखते हैं
बड़े बाप का बेटा
जो देखाई नहीं देता
मगर संसार को तार रहा है
हम तो केवल डंडी मारते हैं।"

घी वाला कहता है-
"घी खाने का शौक़ है
तो डालडा ले जाइए
हमारे देश के औद्योगिक विकास का नमूना है
खाएंगे
तो हाथी की तरह फूल जाएंगे
घी तो घी, रोटी खाना भूल जाएंगे।"

कैलेंडर वाला कहता है-
"लोग समाजवाद को सड़कों पर ढूंढ रहें हैं
और समाजवाद हमारी दूकान में बंद है
एक बंडल खोलिए, दर्शन हो जाएँगे
भक्त और भगवान, भीखारी और धनवान
यहाँ तक कि नेता और इंसान
सबको एक ही बंडल में पाएंगे।
हमारे यहाँ का कैलेंडर
योगालय से भोगालय तक में मिल जाएगा
किसी अभिनेत्री का प्राइव्हेट पोज़ देख लेंगे
तो कलेजा हिल जाएगा।"

बिजली वाला कहता है-
"क्या कहा बिजली गोल है
भाई साहब, हमारे डिपार्ट्मेंट का आधार ही पोल है।"

ट्रक वाला कहता है-
"हमारा भी कोई कैरियर है
हर बीस मील के बाद एक बेरियर है
कार साइड माँगती है, और सरकार..
जाने दो बाबू, अपुन छोटे आदमी हैं
कोई सुन लेगा
तो चालान कर देगा।"

भिखारी कहता है-
"दाता! पाँच पैसे में तो ज़हर भी नहीं आता
जो आपका नाम ले खा लें
और ऐसे समाजवाद से छुट्टी पा लें।"

चोर कहता है-
"मुनाफ़ाख़ोर मुनाफ़ा खा रहें हैं
तो हम भी तिज़ोरियाँ तोड़-तोड़ कर
अधिकार और कर्तव्य को एक साथ निभा रहें हैं
किसी भी तिज़ोरी में झाँक कर देखिए
आत्मा हिल जाएगी
किसी न किसी कोने में पड़ी
लोकतंत्र की लाश मिल जाएगी।
अदालत को हमारा काला चेहरा दिखाई देता है
वकील का काला कोट नहीं दिखता
बाबूजी ये हिन्दुस्तान है, और यहाँ
फैसला गवाह लिखता है, जज नहीं लिखता।"

पाकिटमार कहता है-
"लोग दस-दस साल का इंकमटैक्स मारकर भी वफ़ादार हैं
हमने दस-पाँच रुपए मार दिए
तो पाकिटमार है
उन्हें फ़ौज़ की सलामी
हमें थानेदार का जूता
उनको बंगला, हमको जेल
बाबूजी, इसी को कहते हैं
छछूंदर के सर में चमेली का तेल।"

चश्मेवाला कहता है-
"ये लाल रंग का चश्मा ले जाइए
हिन्दुस्तान भी आपको रूस दिखाई देगा
और ये रहा, सात रंगों वाला चश्मा, मेड-इन अमेरिका है
इमरजैंसी हटने के बाद बुरी तरह बिका है
और ये रही स्पेशल क्वालिटी
लोकतंत्र का अजीब करिश्मा है
काँच का नहीं पत्थर का चश्मा है
एक बाद ख़रीद लो तो पाँच साल तक काम में आता है
हमारे देश का हर नेता इसी को लगाता है।"

विद्यार्थी कहता है-
"आप हमसे छह सवाल
तीन घंटे में करने को कहते हैं
गुरु जी! ये वो देश है
जहाँ एक हस्ताक्षर करने में चौबीस घंटे लगते हैं।"

VARSHNEY.009
18-07-2013, 11:29 AM
हिन्दी का ढोल / शैल चतुर्वेदी

जिन दिनों हम पढ़ते थे
एक लड़की हमारे कॉलेज में थी
खूबसूरत थी, इसलिए
सबकी नॉलेज में थी
मराठी में मुस्कुराती थी
उर्दू में शर्माती थी
हिन्दी में गाती थी
और दोस्ती के नाम पर
अंग्रेज़ी में अँगूठा दिखाती थी
एम.ए. करने के बाद
हमने उससे कहा-

तुम भी एम.ए.
हम भी एम.ए.
अब तो इस अँगूठे को हटाओ
हम तुम में डूब जाए
तुम हममें डूब जाओ!"
वह मुस्कुराकर बोली-

शौक़ से डूबिए भाईसाहब! मुझे तो जीना है
हिन्दीवाले की बीबी बनकर
आँसू नहीं पीना है
लड़को की क्या कमी है?
एक ढूंढो, हज़ार मिलते है
तिज़ोरी में ताकत हो तो
डॉक्टर और इंजीनियर भी उधार मिलते हैं।
हमारी बहन भी हिन्दी में एम.ए. है
लेकिन ऐसी ससुराल मिली है
जहाँ नौकर तक अंग्रेज़ी बोलते हैं
और कुत्ते भी समझते है!"
और हमारी समझ में तब आया
जब हमारे पिताजी ने एक लड़की वाले को टटोला
और वह चौंककर बोला-

"क्या कहा?
लड़का हिंदी में एम.ए. है।
तो भैया, घर में बिठाओ
और बाप-बेटा मिलकर
मीरा के भजन गाओ।"
एक रिश्ता और आया
पर जैसे ही पिताजी ने
हमारा रेट खोला
लड़की का बाप उछलकर बोला-

"का कहा! एक लाख
इ-इ-इ हिन्दी के ढोल का कौन देगा जी?
ससुर, ख़ुआब देखत हैं
अपना काँटा के लिए गुलाब देखत हैं
जनते है?
मर जाइएगा
तबहुँ नहीं पाइएगा।"
उसके जाते ही पिताजी
हमसे बोले-

"क्यों बे, हिन्दी के ढोल
और कितने जूते खिलवाएगा बोल
अब तो यही सुनना बाक़ी रह गया है
सुन लिया न
वो ढोलकी का बाप क्या कह गया है?
लोग संस्कारों को सूली पर टाँग रहे हैं
और बेटे के बाप से दहेज माँग रहे हैं
अरे, ये हिन्दी का ढोल मेरी क़िस्मत में न होता
तो जलवा दिखा देता
माँगनेवाले का घर बिकवाकर
साले को फुटपाथ पर बिठा देता
पहले ही कहा था
हिन्दी-विन्दी के चक्कर में मत पड़
कोई ठिकाने का सब्जेक्ट लेकर एम.ए. कर
हमारे चपरासी तक का लड़का अफ़सर हो गया
सगाई में स्कूटर लाया है
शादी में कार लाएगा
और सुना है लड़कीवाला पूरी बारात को
फ़ाइव स्टार होटल में ठहरायेगा
यहाँ मौक़ा भी आ गया तो
ठहराने वाला
ठहरा देगा झाड़ के नीचे
और सायकल के नाम पर
कुत्ते छुड़वा देगा पीछे
भागते भी नहीं बनेगा
और बेटा!
तुम्हारा हनीमून भी झाड़ पर मनेगा
हर बाप के अरमान होते हैं
कि बेटा पढ़ लिखकर कुछ बने
तो उसे कैश करें
और बुढ़ापे में ऐश करें
हमने भी बेटी के हाथ पीले किए हैं
अंटी में जो था सब गँवा दिया
और जब हमारे कमाने का वक्त आया
तो इस हिन्दी के ढोल ने मरवा दिया।"

हमने कहा-

"पिताजी!
दहेज़ लेना पाप है।"
वो बोले-

"चोप्प!
हम तेरे बाप हैं
कि तू हमारा बाप है
खबरदार, जो दहेज को पाप कहा!
और आज के बाद मुझे अपना बाप कहा!
अबे, हिन्दी के ढोल
जो बेटे का बाप
बिना दहेज़ खाए मरता है
उसे भगवान भी माफ़ नहीं करता है।
अब खड़े-खड़े मुँह क्या देख रहा है
जा हाथ में कटोरा थामकर
मीरा के भजन गा।"
और हमारे जी में आया
हाथ में तँबूरा लेकर
घर से निकल पड़ें
और गाते फिरें-

"हिन्दी आई न मेरे काम
फिरता हूँ मैं मारा-मारा
सुबह-दोपहर-शाम
पढ़लिख कर हिन्दी मैं हारा
दुनिया कहती है आवारा
जी करता है थाम उस्तरा
बन जाऊँ हज्जाम
हिन्दी आई न मेरे काम।"

VARSHNEY.009
18-07-2013, 11:30 AM
डैमोक्रैसी / अशोक चक्रधर

पार्क के कोने में
घास के बिछौने पर लेटे-लेटे
हम अपनी प्रेयसी से पूछ बैठे—
क्यों डियर !
डैमोक्रैसी क्या होती है ?
वो बोली—
तुम्हारे वादों जैसी होती है !
इंतज़ार में
बहुत तड़पाती है,
झूठ बोलती है
सताती है,
तुम तो आ भी जाते हो,
ये कभी नहीं आती है !


एक विद्वान से पूछा
वे बोले—


हमने राजनीति-शास्त्र
सारा पढ़ मारा,
डैमोक्रैसी का मतलब है—
आज़ादी, समानता और भाईचारा।


आज़ादी का मतलब
रामनाम की लूट है,
इसमें गधे और घास
दोनों को बराबर की छूट है।
घास आज़ाद है कि
चाहे जितनी बढ़े,
और गदहे स्वतंत्र हैं कि
लेटे-लेटे या खड़े-खड़े
कुछ भी करें,
जितना चाहें इस घास को चरें।


और समानता !
कौन है जो इसे नहीं मानता ?
हमारे यहां—
ग़रीबों और ग़रीबों में समानता है,
अमीरों और अमीरों में समानता है,
मंत्रियों और मंत्रियों में समानता है,
संत्रियों और संत्रियों में समानता है।
चोरी, डकैती, सेंधमारी, बटमारी
राहज़नी, आगज़नी, घूसख़ोरी, जेबकतरी
इन सबमें समानता है।
बताइए कहां असमनता है ?


और भाईचारा !
तो सुनो भाई !
यहां हर कोई
एक-दूसरे के आगे
चारा डालकर
भाईचारा बढ़ा रहा है।
जिसके पास
डालने को चारा नहीं है
उसका किसी से
भाईचारा नहीं है।
और अगर वो बेचारा है
तो इसका हमारे पास
कोई चारा नहीं है।


फिर हमने अपने
एक जेलर मित्र से पूछा—
आप ही बताइए मिस्टर नेगी।
वो बोले—
डैमोक्रैसी ?
आजकल ज़मानत पर रिहा है,
कल सींखचों के अंदर दिखाई देगी।


अंत में मिले हमारे मुसद्दीलाल,
उनसे भी कर डाला यही सवाल।
बोले—
डैमोक्रैसी ?
दफ़्तर के अफ़सर से लेकर
घर की अफ़सरा तक
पड़ती हुई फ़टकार है !
ज़बानों के कोड़ों की मार है
चीत्कार है, हाहाकार है।
इसमें लात की मार से कहीं तगड़ी
हालात की मार है।
अब मैं किसी से
ये नहीं कहता
कि मेरी ऐसी-तैसी हो गई है,
कहता हूं—
मेरी डैमोक्रैसी हो गई है !

VARSHNEY.009
25-07-2013, 11:13 AM
:laughing::thinking:आराम :laughing: :thinking:

VARSHNEY.009
25-07-2013, 11:14 AM
http://myhindiforum.com/data:image/png;base64,iVBORw0KGgoAAAANSUhEUgAAARwAAAEoCAIAAAA FfdkMAAABDElEQVR4nO3BMQEAAADCoPVPbQ0PoAAAAAAAAAAAA AAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA AAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA AAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA AAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA AAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA AAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA AAAAAAAAAAAAADg3wDadQABBnxKEQAAAABJRU5ErkJggg==

VARSHNEY.009
26-07-2013, 05:14 PM
फेसबुक के दोहे...
http://i4.dainikbhaskar.com/thumbnail/300x259/web2images/www.bhaskar.com/2013/07/25/4834_untitled-1.jpg
रिक्वेस्ट उसे ना भेजिए जिनसे
हो अनजान।
फेकियोँ का दौर है
रहिए जरा सावधान।।

म्यूचल फिरेँड ना कोई भया
सब दुश्मन ही होए।
जिसको ताङन हम चले तो पीछे पीछे
सब कोए।।

क्लोज़ फिरेँड ना बनाइए वरना पडे
पछताए।
नोटिफिकेशन एक पर एक
रहे धडल्ले से आए।।

चिट चैटिया सब करेँ एक दूजन के
साथ।
मईया दईया एक करेँ जो बिगडे कोई
बात।।

पेज नया ना बनाइए लाइक बटोरन हार।
कापी पेस्ट जो कीजिए हो जाए
बेडा पार।।

शेयर ना ऐँसा कीजिए जिससे बिगडे
बात।
घर से फिर निकलिए तो पडे ना घूसम
लात।।

फॉलोवर बढान को उपाय लीजै अपनाए।
बातेँ काट पीट के वॉल पे देँ
चिपकाए।।

पोसट ऐँसी कीजिए ,आएँ लाइक अनेक।
और बढावन फिरेँडवा
बनाओ आईडी फेक।।

ग्रुप चैटिँग ना कीजिए, इसमे
बिगडे बात।
फेक जो किसी को बोल दिया तो
हो गालिन की बरसात।

फेसबुक इतना दीजिए फालोवर बढ
जाए।
और अपने आगे आप भी रहो हाथ फैलाए।।

अपशब्द ना निकालिए, बरसिए ना बिन
रैन।
वरना कर दिए जाओगे यूजर
भईया बैन।।

rajnish manga
26-07-2013, 10:00 PM
:laughing::thinking:आराम :laughing: :thinking:


कुछ खास सामग्री है क्या, वार्ष्णेय जी ?

VARSHNEY.009
30-08-2013, 12:10 PM
मेरा वैलैंटाइन – हास्य कविता

इस बार हमने सोचा
हम भी वैलैंटाईन डे मनायेंगे
अपनी मैडम को पिक्चर दिखायेंगे
हमारा भी तो दोस्तों में रुतबा बढेगा
घरेलू लडका है फिर कोई नहीं कहेगा
बस कर लिये दो टिकट ऐडवांस में बुक
श्रीमति जी के चेहरे का देखने लायक था लुक
मुस्कुराते हुए बोलीं कार्नर की ली हैं ना
हमने कहा हाँ एक दाहिना एक बाहिना.
तो हम भी पहुँच गये मैडम के संग
देखने सलमान की लेटेस्ट फिल्म दबंग
ये फिल्म देखना का मेरा पहला टैस्ट था
मैडम का सलमान में कुछ ज्यादा ही इंट्रस्ट था
वो बाहर से तो हम पर ही मर रही थी
पर तारिफ सलमान की ही कर रही थी
फिल्म का जैसे ही हुआ इंटरवल
मैडम जी के माथे पर आ गये बल
गुस्से में बोली, “आज के दिन भी भूखा मारोगे”
जेब में रखे पैसों की क्या आरती उतारोगे
पूरा सिनेमा हाल हमें लानत भेज रहा था
फिल्म के इंटरवल में हमारा ट्रेलर देख रहा था
हम फौरन कैंटीन की तरफ दौडे
ना ब्रैड दिखे ना ही पकौडे
चारों तरफ बस माल ही माल दिख रहा था
हर काउंटर पर पापकार्न और पिज्जा ही बिक रहा था
कुछ देर तक आँखें सेकीं और दिल ठंडा किया
फिर धर्मपत्नी जी के लिये एक ठंडा लिया
ठंडा लेकर हाल में हम जैसे ही पहुँचे
श्रीमति जी पिल पडी बिना कुछ सोचे
बडे प्यार से मुझे डांट कर बोली
अभी तक ठंडे की बोतल भी नहीं खोली
हम बोले सलमान खान से ध्यान हटाओ
बोतल खुली है अब इस पर ध्यान लगाओ
ठंडा पीते ही मैडम गुर्राई
ये ठंडा है या गर्म मेरे भाई
लो जी अब तो कमाल हो गया
सलमान के सामने मैं भाई हो गया
मैंने चुपचाप से सौरी का सहारा लिया
गर्म होते मामले का वहीं निपटारा किया
जैसे तैसे सलमान की दबंगई हुई खत्म
हमारे अंदर भी आ गया थोडा सा दम
धर्मपत्नी बोली अब क्या दिलवाओगे
हम बोले अभी तक क्या दिलवाया है?
वो बोली ज्यादा मजाक नहीं चलेगा
घर जाकर धोऊं या यहीं पिटेगा?
हमने चुपचाप चुप्पी साध ली
सीधे अपने घर की राह ली
आज हमें एक शिक्षा मिली थी
कि वैलंटाईन हो या करवा चौथ
रक्षा बंधन हो या भैया दौज
सब प्यार मौहब्बत ही फैलाते हैं
और इनका मजा तब ही आता है
जब आप इन्हें घर पर ही मनाते हैं
घर पर ना होगी सलमान की दबंगाई
और ना होगी बाजार में आपकी पिटाई

VARSHNEY.009
10-10-2013, 12:46 PM
लगता है लड्डू हजम न हुआ, गैस और बादी हो गई है!


उसका शरीर जर्जर है, लगता है लुटा-लुटा सा
बाल भी बिखरे-बिखरे हैं , लगता है पिटा-पिटा सा
मस्तिष्क अस्त-व्यस्त है, है कहीं खोया सा
जाग रहा है पर लगता है जैसे वो सोया सा
लगता है तबीयत उसकी
अब आधी हो गयी है
जी हां आप सही समझे
उसकी शादी हो गयी है
यार दोस्त जब भी बुलाते सदा वो फंसता था
खर्चा भी करता था हरदम फिर भी हंसता था
जब भी मिलता मुस्कुराता ओर हर्षाता था
सूखा- सूखा लगता है बादल-सा बरसता था
लगता है कि अंग्रेजी पतलून
अब खादी हो गयी है
जी हां, आप सही समझे
उसकी शादी हो गयी है
अरे खुल्ले दिल का मालिक था, कंजूस हो गया है
दो की जगह एक ही खाता, मक्खीचूस हो गया है
पार्टी करता मौज उड़ाता क्या रंग वो जमाता था
पूरा एटम बम था वो, बेचारा फुस्स हो गया है
लगता है बीवी उसकी,
उसकी दादी हो गयी है
जी हां, आप सही समझे
उसकी शादी हो गयी है
रोज मिला करते थे हम सारे दोस्त गली के नुक्कड़ पर
मौक़ा ताड़ते रहते थे और नज़र पड़ोसी के कुक्कड़ पर
एक दिन देखा जब मैंने उसे कई-कई थैलों संग
सोचता हूं कैसा हो गया, जब नज़र पड़ी उस सुक्कड़ पर
पहले साल में हैं जुड़वां
डबल आबादी हो गयी है
जी हां, आप सही समझे
उसकी शादी हो गयी है
कभी तो इसको कभी तो उसको ढूंढता रहता था
भंवरे जैसा उड़ता-फिरता घूमता रहता था
बन गया है पालतू अब पत्नीव्रता पति वो
जो हर कली हर फूल को बाग़ में चूमता रहता था
लगता उसकी जिंदगी अब
इन सबकी आदी हो गयी है
जी हां, आप सही समझे
उसकी शादी हो गयी है
कहता था शादी का लड्डू इक न इक दिन खा लूंगा
पछताना ही है तो क्या, अरे ! बाद में पछता लूंगा
यार दोस्त तुम साथ हो मेरे कभी जो विपदा आन पड़ी
तो तुममें से मदद के लिए किसी को भी बुला लूंगा
लगता है लड्डू हजम न हुआ
गैस और बादी हो गयी है
जी हां, आप सही समझे
उसकी शादी हो गयी है
साभार: गुरच्ररन मेह्ता

VARSHNEY.009
10-10-2013, 12:48 PM
अनोखा पत्र - कहीं नहीं पढ़ा होगा दोस्त का ऐसा लेटर
http://i1.dainikbhaskar.com/thumbnail/300x259/web2images/www.bhaskar.com/2013/10/09/8437_cartoon-man-toilet-roll.jpg
अनोखा पत्र

प्रिय मित्र
नमस्कार

तुम्हारा पत्र मिला। पढ़ कर खुशी हुई कि तुम कक्षा में प्रथम आए हो और ये पढ़ कर दुख हुआ कि तुम बीमार हो। मैं तो भगवान से प्रार्थना करता हूं कि तुम जल्दी ठीक हो जाओ भगवान ना करें तुम्हें कैंसर हो। मेरे प्यारे दोस्त मेरी दुआएं तुम्हारे साथ हैं। मैं चाहता हूं कि भगवान तुम्हें जल्दी अच्छा कर दें। मेरे प्यारे दोस्त कष्ट हो तो मुझे अपने पास बुला ले। मैं तो तुम्हें तन मन धन से बचाने का प्रयत्न करूंगा और तुम्हारी बीमारी को हर तरह से समाप्त करने की कोशिश करूंगा। मुझे जल्दी समाचार देना कि तुम्हारे स्वास्थ्य में सुधार हो गया है और दुख-दुविधा के दिन पूरे हो चुके हैं।

तुम्हारा दोस्त

नोट: सिर्फ बोल्ड शब्दों को ही पढ़ें।

VARSHNEY.009
10-10-2013, 12:57 PM
'शादी का ये लड्डू होता है कैसा,जरा पूछे कोई मुझसे

अपनी बीवी पर किसी का हुकुम चलाना – मुझे पसंद नहीं।

किसी का उसकी ओर जरा आंख उठाना – मुझे पसंद नहीं।

क्या बताऊं यारों सब प्यार से मुझे ही बुलाते हैं “किसी”।

इसलिए किसी को भी अपना नाम बताना – मुझे पसंद नहीं...।

बेलन लगता है तो लग जाए बेशक, मगर,

बेगम का यूं निशाना लगाना – मुझे पसंद नहीं

जो चीज़ बनी है जिसके लिए वही करो न इस्तेमाल,
अब झाड़ू का यूं तलवार बनाना - मुझे पसंद नहीं

कभी कभी पूरे परिवार को डिनर पर ले जाता हूं मैं,
क्यूंकि रोज-रोज बीवी संग बर्तन धुलवाना – मुझे पसंद नहीं

कैसे दिए हैं 10-12 क्रेडिट कार्ड बेगम को मैंने,
भैया यूं कैश में हर जगह शोपिंग कराना – मुझे पसंद नहीं

मांगे पूरी कर देता हूं मैं बेगम की हमेशा टाइम पर,
थका-मांदा घर लौंटू, उस फिर पिटना-पिटाना – मुझे पसंद नहीं

सरदर्द बेग़म का मुझे परेशान करता है हरदम,
पहले बाम लगाना फिर सर दबाना – मुझे पसंद नहीं

शादी का ये लड्डू होता है कैसा, जरा पूछे कोई मुझसे,
हलवाई की दूकान के आगे से भी निकल जाना – मुझे पसंद नहीं

झगड़ा बेगम से वो भी सर्दियों में, यह मुमकिन नहीं,
ठिठुर-2 कर बिना कम्बल, रात घर से बाहर बिताना – मुझे पसंद नहीं

के करोड़पति परिवार की इकलोती बेटी है मेरी बेगम,
कैसे कहूं , ससुर जी, कि ये कबाड़खाना – मुझे पसंद नहीं

बताईं हैं मैंने गिनती की बातें ही आपको जनाबे-आली,
अब सभी को यूं हाल-ए-दिल बताना – मुझे पसंद नहीं...

साभार: गुरचरन मेहता

VARSHNEY.009
10-10-2013, 12:57 PM
मज़ेदार किचन शायरी

मेरी मोहब्बत को अपने दिल में ढूंढ लेना,
और हां आटे को अच्छी तरह गूंध लेना।
.
.
.
मिल जाए अगर प्यार तो खोना नहीं,
प्याज काटते वक्त बिलकुल रोना नहीं।
.
.
.
मुझसे रूठ जाने का बहाना अच्छा है ,
थोड़ी देर और पकाओ आलू अभी कच्चा है।
.
.
.
मिलकर फिर खुशिओं को बाटना है,
टमाटर जरा बारीक ही काटना है।
.
.
.
लोग हमारी मोहब्बत से जल न जाएं
चावल टाइम पे देख लेना कहीं जल न जाएं
.
.
.
कैसी लगी गजल बता देता,
नमक कम लगे तो और मिला लेना.....

rajnish manga
10-10-2013, 01:58 PM
अनोखा पत्र - कहीं नहीं पढ़ा होगा दोस्त का ऐसा लेटर अनोखा पत्र

प्रिय मित्र
नमस्कार

तुम्हारा पत्र मिला। पढ़ कर खुशी हुई कि तुम कक्षा में प्रथम आए हो और ये पढ़ कर दुख हुआ कि तुम बीमार हो। मैं तो भगवान से प्रार्थना करता हूं कि तुम जल्दी ठीक हो जाओ भगवान ना करें तुम्हें कैंसर हो। मेरे प्यारे दोस्त मेरी दुआएं तुम्हारे साथ हैं। मैं चाहता हूं कि भगवान तुम्हें जल्दी अच्छा कर दें। मेरे प्यारे दोस्त कष्ट हो तो मुझे अपने पास बुला ले। मैं तो तुम्हें तन मन धन से बचाने का प्रयत्न करूंगा और तुम्हारी बीमारी को हर तरह से समाप्त करने की कोशिश करूंगा। मुझे जल्दी समाचार देना कि तुम्हारे स्वास्थ्य में सुधार हो गया है और दुख-दुविधा के दिन पूरे हो चुके हैं।

तुम्हारा दोस्त

नोट: सिर्फ बोल्ड शब्दों को ही पढ़ें।

बहुत सुन्दर. उपरोक्त पत्र को पढ़ कर शब्दों की ताकत का पता चलता है. बोल्ड (लाल) शब्दों में 'सार-तत्व' छिपा है और काले शब्दों में 'असार-तत्व' मिलेगा.

internetpremi
01-11-2013, 07:35 AM
आज ही देखा इस सूत्र को!!
यह तो एक खजाना है, वा्र्ष्णेय जी।
अब तक पहले ६ प्न्नों के सभी लेखों को यहाँ से copy करके अपने Kindle Reader पर सहेजकर रख लिया हूँ।
आराम से और इत्मिनान से पढेंगे और आनंद उठाएंगे।
इन लेखों को कंप्योटर स्क्रीन पर पढना कठिन है मेरे लिए।
धीरे धीरे आने वालो दिनों में आज तक के सभी लेखों को अपने Kindle पर transfer करने का प्रोग्राम बना लिया है।


हो सके तो इस कडी को जारी रखिए।
मुझे नाटक, एकांकी इत्यादी भी पढने में बहुत रुचि है।
यदि अवसर मिला तो कृपया एक अलग कडी में पोस्ट करें।
आपको मेरा हार्दिक धन्यवाद।
जी विश्वनाथ

internetpremi
03-11-2013, 03:27 AM
I have already copied the first 20 pages of threads to my Kindle Reader to read offline at my convenience.
I will come again and copy the rest.

This is verily a collection of gems of writing in Hindi.
Brief, entertaining, with plenty of variety and educative too
I hope to improve my Hindi by reading the output of such well known writers.
Many thanks to Sri Vaarshneyjee for his efforts in posting them.
I hope he will continue.
I will renew my request for one act plays if he can source them and post them here.

Happy Diwali to all.
G Vishwanath

VARSHNEY.009
08-11-2013, 11:28 AM
विज्ञापनों का मकड़जाल

कभी – कभी मेरे दिल मैं ख़याल आता है !
यार ये विज्ञापन हमें इतना क्यों लुभाता है !
छोटा सा विज्ञापन कुछ ऐसा चक्कर चलाता है !
की बड़े से बड़ा ज्ञानी भी इसके चक्कर मैं फंसकर,
क्षण मैं ही समझो जैसे घनचक्कर बन जाता है !
पर अगले ही पल इस पगले मन मैं विचार आता है !
की यार इन विज्ञापनों का सच्चाई से क्या नाता है ?
और जब भी ये सुविचार हमारे भोले मन मैं आता है !
तब फट से हमारा ध्यान हमारे मित्र रामदुलारे पर जाता है !
क्योंकि रामदुलारे को जो भी विज्ञापन ज्यादा रिझाता है !
अगले ही दिन रामदुलारे वो चीज अपने घर ले आता है !
और चीज इस्तेमाल के बाद खुद को ठगा सा पाता है !

ऐसे ही अमूल माचो का विज्ञापन रामदुलारे को बहुत भाया !
अगले ही दिन रामदुलारे इसकी दो चडडियां घर ले आया !
उसने सोचा चलो आज अपनी रामदुलारी को खूब हंसाएंगे !
और अमूल माचो पहन कर हम भी बड़े टोइंग हो जायेंगे !
मगर जैसे ही रामदुलारे ने अपनी सिक्स पसली बॉडी दिखाई !
रामदुलारी को हंसी नहीं रामदुलारे पर बहुत ज्यादा गुस्सा आई !
बोली अरे इतनी सर्दी मैं अपने पसलियाँ मुझे क्यों गिनवा रहे हो !
बिलकुल चड्ढी पहनके फूल खिला है के मोगली नजर आ रहे हो !
उफ़ विज्ञापन मैं जिस चड्ढी को पहन बन्दर भी टोइंग हो जाता है !
उसी चड्ढी को पहन हमारा रामदुलारे रामदुलारी की डांट खाता है !
तब सोचता हूँ मैं क्या इस विज्ञापन का हकीकत से कोई नाता है ?
रामदुलारी की डांट खा रामदुलारे ने अमूल का टोइंग उतार फेंका !
और पूरे एक महीने तक टीवी पर कोई भी विज्ञापन नहीं देखा !

मगर एक दिन फिर उसे हिमानी नवरत्न तेल ने जाल मैं फंसाया !
और हमारा गंजा मित्र गंजापन दूर करने की एक शीशी ले आया !
बोला अपने वीरान बंजर टकले पर बालों की फसल उगाऊंगा !
अभी सब राकेश रोशन कहते हैं, फिर ऋतिक रोशन कहलाऊंगा !
रामदुलारे ने अपने टकले पर खूब मल मल के वेह तेल लगाया !
मगर बालों की फसल तो दूर हलकी सी घास भी नहीं उगा पाया !
और करवाचौथ के दिन जब रामदुलारे अपनी छत पर घूम रहा था !
बहीं दूसरी छत पर एक शराबी भी नशे मैं मस्त हो झूम रहा था !
तभी उस शराबी ने रामदुलारे के टकले पर टार्च की रोशनी मारी !
जिससे चकमा खा गई मोहल्ले की चाँद ढूंढती हर पतिव्रता नारी !
क्योंकि रामदुलारे का टकला जैसे ही टार्च की रोशनी मैं आया !
पूरे मोहल्ले मैं शोर मच गया पूजा कर लो चाँद निकल आया !
अब बताइए जिस तेल को लगाकर मॉडल पल मैं बाल बढाता है !
मगर हमारा रामदुलारे फिर भी करवा चौथ का चाँद नजर आता है !
तब सोचता हूँ मैं क्या इस विज्ञापन का हकीकत से कोई नाता है ?
फेयर लवली कहती है दो हफ़्तों मैं अपना रंग गोरा बनाइये !
मैं कहता हूँ २ साल दिए रजनीकांत को गोरा करके दिखाइए !
सोना बेल्ट लाइए १५ दिन मैं अपना वजन ३० किलो तक घटाइए !
पहले तारक मेहता के डॉक्टर हाथी को पोपटलाल बनाकर दिखाइए !
विज्ञापन कहता है एक्स इफेक्ट लगाइए चाहे जिसे पटाइये !
मैं कहता हूँ इसका जादू कभी रामदेव बाबा पर भी चलाइए !
बच्चन से लेकर तेंदुलकर तक सभी टीवी विज्ञापन मैं आते हैं !
कुछ बच्चों को चॉकलेट तो कुछ युवाओं को पेप्सी पिलवाते हैं !
और खुद १ मिनट के विज्ञापन से करोड़ों की दौलत कमाते हैं !
कम्पनी वाले इनसे अपना घटिया माल बढ़िया दाम मैं बिकवाते हैं !
और कुछ विज्ञापन तो अब इतने अश्लील आते हैं !
जिन्हें सभ्य परिवार साथ मैं देखने से भी शर्माते हैं !
चूँकि बच्चों मैं शर्म अब बची नहीं बड़े ही अपनी नजरें बचाते हैं !
कभी विज्ञापन पर बच्चों के सवाल पर उठकर बाहर चले जाते हैं !
फिर भी ये विज्ञापन आम आदमी को इतना क्यों लुभाते हैं !
जिसे देखकर बड़े – बड़े, बुद्धिजीवी भी घनचक्कर बन जाते हैं !
घनचक्कर बन जाते हैं…………………… घनचक्कर बन जाते हैं !

VARSHNEY.009
08-11-2013, 11:29 AM
दोनों चुपके से सो जाओ

पटरी पर गाड़ी खड़ी, जाना था भोपाल
कवि सम्मेलन में जगे, आँख हो रही लाल|
आँख हो रही लाल, खचाखच थी वह बोगी
जगह नहीं बिलकुल यात्रा अब कैसे होगी|



मित्र घुस गए भीतर करके धक्कम-धक्का
प्लेटफ़ॉर्म पर दाढ़ी हिला रहे थे कक्का|
पांच रूपय में लेके आये एक रबर का साँप
आँख बचा सरका दिया डिब्बे में चुपचाप|



hasya kavita in hindi
डिब्बे में चुपचाप, चल गयी चाल निराली
साँप साँप का शोर हो गया डिब्बा खाली|
हमने कहा मित्र किसी को नहीं बताओ
दो बर्थों पर दोनों चुपके से सो जाओ|



खिड़की कर ली बंद सब इतु दोनों ओर
खर्राटे भरते रहे छह घंटे घनघोर|
छह घंटे घनघोर, खुली जब आँख हमारी
करने लगे भोपाल उतरने की तैयारी|



hasya kavita in hindi
दांग रह गए खिड़की से बाहर जब झाँका
कहा मित्र ने अरे यह तो कटनी है काका|
क्या बकते हो कर रहे ऐसी उलटी बात
खड़ी रहेगी ट्रेन क्यों कटनी सारी रात|



कटनी सारी रात, न कुछ पीया न खाया
होश उड़ गए एक कुली ने जब बतलाया|
इस डिब्बे में साँप निकल आया था बब्बा
ट्रेन गयी भोपाल काट के ये डिब्बा|


काका कवि पछ्ता रहे करके ऐसा खेल
जीवन को धिक्कार है, चाल हो गयी फेल|
चाल हो गयी फेल, करो न अब आगे कालो
खुद को खाए काट ऐसा कुत्ता मत पालो |
साँप ख़रीदा था जब हमने था वो नकली
हमको ही डस गया ट्रेन में बनकर असली

VARSHNEY.009
08-11-2013, 11:30 AM
प्रोफेसर भी कक्षा में क्या-क्या पढ़ाते हैं !!

एक प्रोफेसर साहब कक्षा में जीवों के सम्बन्ध में पढ़ा रहे थे.


इसके लिए उन्होंने एक चूहे के एक तरफ रोटी और दूसरी तरफ चुहिया रखी. फिर जैसे ही चूहे को छोड़ा वह सीधा रोटी की तरफ लपका.



दूसरी बार उन्होंने रोटी हटाकर उसकी जगह चावल रखे. इस बार भी चूहा चुहिया की तरफ न जाकर चावलों पर टूट पड़ा.

इस तरह प्रोफ़ेसर ने खाने की कई चीज़ें बदल-बदल कर चूहे के पास रखी और हर बार चूहा खाने की चीज़ों की तरफ ही गया. चुहिया की तरफ उसने देखा भी नहीं.



प्रोफ़ेसर ने छात्रों को निष्कर्ष समझाया – “इससे साबित होता है कि भूख ही सबसे बड़ी ज़रूरत है…दूसरी जरूरतें उसके आगे कुछ भी नहीं..”

छात्रों के बीच में से एक आवाज़ आई – “एक बार चुहिया भी बदल कर देख लेते सर…. हो सकता है यह चुहिया उसकी बहिन हो … !!

VARSHNEY.009
08-11-2013, 11:31 AM
इज्जत बचाने के लिए प्रेमिका से मुंह छिपाऊं !!

सड़क से गुजर रहे वाहनों
और उद्यान में बच्चों का शोर
प्रेमिका हो गयी बोर
उसका चेहरा देखकर प्रेमी ने कहा
’क्या बात है प्रिया
तुम उदास क्यों हो?


कोई इच्छा हो तो बताओ
तुम कहो तो आकाश से
चंद्रमा जमीन पर उतार लाऊं।’

पहले तो गुस्से में प्रेमिका ने प्रेमी को देखा
फिर अचानक उसकी आंखें चमकने लगी
नासिका में जैसे ताजी हवा महकने लगी


वह बोली-
‘व्हाट इज आइडिया
जल्दी करो
पर चंद्रमा को धरती पर नहीं लाने की
बल्कि वहां मकान बनाने की

देखों यहां
बाग में बच्चों का भारी है शोर
उधर सड़क से गुजरते वाहनों का धुंआं
और उनके इंजिन की आवाज है घनघोर
चारों तरफ लाउडस्पीकरों पर जोर बजते हुए
सर्वशक्तिमान को प्रसन्न करने वाले गाने
कर देते हैं बोर


सुना है चंद्रमा पर भूखंड मिलने की तैयारी है
तुम भी एक जाकर पंजीयन करा लो
इस जहां में विषाक्त हो गया है वातावरण
क्या करेंगे यहां घर बसाकर
फंस जायेंगे गृहस्थी में, विवाह रचाकर
तुम उससे पहले भूखंड लेने की तैयारी शुरु करो
तो मैं सभी को जाकर समाचार बताऊं।’’



उसके जाने के बाद प्रेमी ने
आसमान की तरफ हाथ उठाये और बोला-
”क्या मुसीबत है
किसने बनाई थी

मोहब्बत में यह चंद्रमा और तारे तोड़कर
जमीन पर लाने की बात
शायद नहीं सोता होगा वह पूरी रात
जमाना बदल गया है

तो इश्क में बात करने का लहजा भी बदलना था
अब क्या यह आसान है कि
मैं चंद्रमा पर भूखंड पर लेकर मकान बनाऊं

इससे अच्छा तो यह होगा कि
इज्जत बचाने के लिये
अपनी प्रिया से मूंह छिपाऊं
किसी तरह उसे भुलाऊं।।”

VARSHNEY.009
08-11-2013, 11:31 AM
सुहागरात पर पति ने पत्नी से क्या कहा ?

पति: देखो घर में घूंघट डालकर ही रहना।
दुल्हन: जी अच्छा।

पति: सभी बड़ों का आदर करना।
दुल्हन: जी बेहतर है।

पति: परिवार में सामजस्य बनाए रखना ही हर बहू का फर्ज है।
दुल्हन: मैं ध्यान रखूंगी।

पति: किसी से कोई भूल हो जाए, तो भी उसे क्षमा कर देना।
दुल्हन: बेहतर है।

पति: सुबह उठकर ईश्वर का स्मरण करना, मेरी मां पर तुम्हारा अच्छा इंप्रेशन पड़ेगा।
दुल्हन कमरे से बाहर भागते हुए: अरे आइए..आइए..जल्दी आइए..अगरबत्ती..नारियल लाइए।

ससुर जी: क्या हुआ..बहू सब ठीक तो है?
बहू: अरे कमरे में प्रवचन चल रहे हैं, जल्दी आइए आप सभी सत्संग का लाभ उठाइए!!!

VARSHNEY.009
08-11-2013, 02:41 PM
ओह माय गॉड ये FACE BOOK पर नहीं है..लड़के ने लड़की से जब कहा...
http://i5.dainikbhaskar.com/thumbnail/636x303/web2images/www.bhaskar.com/2013/11/07/8842_man-vs-woman-a-photoshoped-story-003.jpg
कॉलेज में लडक़ा नई-नई लड़की का इंट्रो लेते हुए..

FACE BOOK पर हो की नहीं..

लड़की मेरे पास इन चीजों के लिए वक्त नहीं है..

लड़का-FACE BOOK एकाउंट नहीं है, तो तुझे पहचानेगा कौन
आजकल लोग FB एकाउंट से पहचाने जाते हैं नाम से नहीं समझी..

लड़की, गर्मजोशी के साथ लड़के से- अब ध्यान से सुन.........

गांधी जी का FB एकाउंट था?

लड़का-नहीं....

लक्ष्मी बाई का FB एकाउंट था?

लड़का-नहीं....

स्वामी विवेकानंद का FB एकाउंट था?

नहीं....

इंदिरा गांधी का FB एकाउंट था?

नहीं....

चंद्र शेखर आजाद का FB एकाउंट था?

नहीं....

सरदार पटेल का FB एकाउंट था?

नहीं....

किशोर कुमार का FB एकाउंट था?

नहीं....

तेरे परदादा और पर दादी का FB एकाउंट था?

नहीं....

फिर भी ये हस्तियां किसी परिचय की मोहताज नहीं रहीं.........!!!!

तो आज तू इसका इतना गुलाम क्यों हो गया है, बाबा जी के ठुल्लू.........

लड़का हाथ जोड़ते हुए-बस कर मेरी मां ओए लेडी नरेंद्र मोदी मैं भी आज अपना..FB एकांट डी-एक्टिवेट करवा दूंगा..
.
.
.
ओए इमोशनल हो गया, मैं तो स्टाइल मार रही थी यार वो टाइम कुछ और था वाकई आज के टाइम में तो FB बहुत जरूरी है
कल एकाउंट बना लूंगी तो बता दूंगी पप्पू...!!!


लड़का~तूने तो डरा ही दिया था यार.

VARSHNEY.009
08-11-2013, 02:41 PM
पत्नी के खो जाने पर पति का होता है क्या हाल जानें..
http://i4.dainikbhaskar.com/thumbnail/300x259/web2images/www.bhaskar.com/2013/11/07/7108_wallpaper_serials_taarak-meh_1362379763.jpg
चंदू मियां हांफते-कांपते एक अधिकारी से..

सर..सर..मेरी पत्नी कहीं खो गई है

सुबह से उसका कुछ अता पता नहीं है..

मोबाइल भी नहीं लग रहा और..

फेसबुक चैट पर भी नहीं दिख रही..

जल्दी से उसकी रिपोर्ट लिख लीजिए..

भले ही आराम से ढूंढना..... मैं जल्दबाजी में आपका काम खराब नहीं करवाना चाहता.......!!!!

पोस्टमास्टर-अरे भाई ये पोस्ट ऑफिस है पुलिस
स्टेशन नहीं है..

चंदू-माफ कीजिएगा सर

खुशी के मारे कुछ समझ ही नहीं आ रहा कि
मैं कहां आ गया हूं..

VARSHNEY.009
09-11-2013, 12:46 PM
विलासिता का दुख
जब कभी भी किसी विकसित देश में उपलब्ध आम जनसुविधओं के बारे में सुनता या पढ़ता हूं तो हृदय से हूक उठ जाती है। अब इसका अर्थ आप यह कदापि ग्रहण न करें कि मैं उनकी सुविधा-सम्पन्नता से जल उठता हूं। बिना किसी आत्म प्रवंचना के कहूं तो मुझे यह उनकी विपन्नता ही नजर आती है। सुख-सुविधाओं का जो मायाजाल अपने देश में निहित है वह कहीं ओर कहां हो सकता है। अब आप ही बताइए वो सुविधा किस काम की जो आप को बांध कर ही रख दे। सुना है अमेरिका में बिजली कटौती न के बराबर है। यदि ऐसा है तो वहां के घरों में रहने वाले लोग इक्का-दुक्का मौकों पर ही एक-साथ घर से बाहर निकलते होंगे। अब अपने यहां देखिए दिन में दसियों घंटों तक तो बिजली गुल रहती है, बिजली होती भी है तो जल देवता नदारद मिलते हैं। इन दोनों ही अवसरों पर जमावड़ा चौक पर होता है। दिन में 24 घंटों में से 16 घंटे तक रौनक घर के बाहर ही होती है और ऐसे अवसरों पर जो मुख और श्रवण सुख मनुष्येन्द्रियों को प्राप्त होता है, वह भला उन पाश्चात्य देशों में रहने वाले लोगों को कहा मिलता होगा। अपने यहां की महिलाएं एवं पुरुष दोनों ही इस अवसर का लाभ अपने दिल की भड़ास निकालने के लिए बखूबी करते हैं। दूसरों की बुराइयां करने में जो सुख मिलता है वो भला 5 सितारा होटलों में अब बताइएं यह किस काम की विकसिता। ट्रेफिक नियमों के संबंध में भी वहां फैली विषयता झलकती है। बी.एम.डब्ल्यू, मर्सिडीज आदि जैसी अनेक हाई क्लास भारी-भरकम गाड़ियां भी अदनी-सी रेड लाइट के इशारे पर नाचती हैं, अपने यहां तो लखटकिया वाली छकड़ा गाड़ी भी काले धुंए का गुबार उड़ाती हुई फर्राटे से ट्रैफिक नियमों को धत्ता बताकर रख देती है। बड़ी-बड़ी गाड़ीवालों का तो कहना ही क्या! वो तो जब तक जी चाहा रोड पर, नहीं तो फुटपाथ पर दौड़ पड़ती हैं विदेशों में मॉडर्न ऑर्ट की मांग बहुत हो, परन्तु वहां पर इस कार्य के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं दिया जाता। अपने यहां तो लोग मुंह में कूची लेकर घूमते रहते हैं। जहां दिल किया पच्च... पिचकारी मारी और दीवार पर मॉडर्न ऑर्ट तैयार। जबकि विदेशों में तो सड़क पर थूकने पर ही जुर्माने का प्रावधान है। अब आप ही बताइए यह कहा का इंसाफ है कि मनुश्य को सोने के पिंजरे में कैद करके रखा जाए। संभवत: यह सारी कमियां वहां के प्रशासन की देन है। हम अपने विकास के पाषाणयुग को भी नहीं भूलते बल्कि उसका यदा-कदा प्रदर्शन सांसद में कर उसका सीध प्रसारण देश भर में करवा देते हैं ताकि हमारी वास्तविक पहचान छोटे-छोटे बच्चों तक के हृदय में स्थायी बनी रहे। हम अपनी शारीरिक क्षमता एवं धाराप्रवाह बोलने की दक्षता का सटीक अवलोकन संसद में माइक, कुर्सी, मेज तोड़कर तथा धरने के दौरान चीख-पुकार कर दर्शा देते हैं। हमारे मन में जब भी भड़ास उत्पन्न होती है, तो उसे सरकारी वस्तुओं यथा बस, ट्रेन के शीशे, खंभे, ग्रिलों आदि पर इत्मीनान से निकाल देते हैं। अब आप ही कहें, ऐसा क्या वहां संभव है। वहां के लोग घरों के अंदर दुबक कर सोते हैं। अपने यहां तो आम आदमी रात को चने चबाकर पानी का घूंट मारकर तसल्ली से ग्रहों से विचार-विमर्श कर सोता है। वहां पर लोग विकेंड सिस्टम से चलते हैं परन्तु अपने सरकारी कर्मचारी तो कार्यालय में रहकर भी विकेंड मनाते हैं। ऐसी विसंगतियों के चलते यदि वह यह भ्रम मन में पाल कर बैठें हैं कि वह विकसित है, तो मैं इस पर सिर्फ खिसयानी हंसी ही हंस सकता हूं।
अरविन्द सारस्वत

VARSHNEY.009
09-11-2013, 12:47 PM
हाय मेरे नितम्ब!
कामिनी को कमनीय काया की कामना न हो, तो कामिनी ही कैसी? आप जानते ही होंगे कि आदम और हव्वा को ज़मीन पर इसीलिये ढकेला गया था कि आदम महाशय हव्वा की क़यामती काया को देखकर ऐसे बदहवास हो गये थे कि फ़रिश्ते की मुमानियत का ख़याल भूलकर उसे कौरिया लिया था। तब से आज तक हव्वा की हर बेटी को अपने को अपार खूबसूरत दिखने का शौक जुनून की हद तक रहता है। बेटियां चलने फिरने लायक हुईं कि मॉ को अपनी ड्रेसिंग टेबिल पर रखी लिप-स्टिक, बिंदी, और क्रीम पाउडर की हिफ़ाज़त करना प्रारम्भ कर देना पड़ता है। जिन दिनों बेटों में नकली बंदूक से धांय धांय करने का शौक जागता है, बेटियां कंघी से आडे-तिरछे बाल संवार कर शीशे में अपने चेहरा निहारना शुरू कर देतीं हैं। और जवानी का रंग चढ़ते चढ़ते तो कन्यायें अपनी सुंदरता पर ऐसी आत्मविभोर हो जातीं हैं जैसे सावन के अंधे को हर सिम्त हरा हरा ही सूझता है।
यह बात दीगर हैं कि अब बराबरी का ज़माना आ गया है और आदमियों को भी यह ज़नाना शौक चर्रोने लगा है। एक मेरे लड़कपन का वक्त था कि जवानी की दहलीज़ पर कदम रखने वाले मेरे एक पहलवानछाप दोस्त ने जब एक हमउम्र हव्वा को आंख मारकर उसका दिल दहला दिया था, तो हव्वा की शिकायत बड़े बूढ़ों ने यह कहकर खारिज़ कर दी थी कि 'वह /मेरा दोस्त/ ऐसा कर ही नहीं सकता है क्योंकि वह सिर घुटाकर रहता है और पतलून तो क्या कभी सुथन्ना /पाजामा/ भी नहीं पहिनता है।' उन बूढ़ों की समझ में अपनी खूबसूरती के प्रति बेख़बर सिर सफाचट रखने वाला और धोती-कुर्ता पहिनने वाला लड़का भीष्म-प्रतिज्ञ ब्रह्मचारी के अलावा और हो ही क्या सकता था? जब कि सच यह था कि मेरे दोस्त मोशाय सूरत के जितने भोले थे, सीरत के उतने ही मनचले थे, और मौका हाथ आते ही इधर उधर मुंह मार लेते थे। उन दिनों मैं भी अच्छा बच्चा समझे जाने के चक्कर में सिर पर एक लम्बी और मोटी चोटी रखता था और बेखौफ़ लुकाछिपी कर लेता था। पर आज ज़माना बदल गया है और खुला खेल फरक्काबादी खेला जाने लगा है। अब तो कल-के-छोकरे न सिर्फ बालों की लहरदार कुल्लियां रखाये घूमते हैं बल्कि हर घंटे, आध-धंटे में बडों के सामने बेझिझक उन पर कंघी भी फिराते रहते हैं। आज के लड़कों के मुंह से तोतले बोल भी डिज़ाइनर टी-शर्ट और लिवाइज़ जीन्स की फ़रमाइश के साथ ही निकलते हैं। और वे ऐसा क्यों न करें जब उनके बापों को खुले आम ब्यूटी पार्लर में नमूदार होते और वहां से होठों पर लिप-स्टिक लगवा कर और गालों पर पाउडर क्रीम चुपड़वाकर निकलते देखा जाता है? जब बाप छुलकां मूतते हैं तो बेटे चकरघिन्नी की तरह घूम - घूम कर मूतेंगे ही।
ऐसे माहौल में ब्यूटी पार्लर वालों की पांचो उंगलियां घी में हो गईं हैं। अगर आप बेकार हैं और बेकाम के आदमी /या औरत/ हैं तो एक कमरे के दरवाजे पर 'मेल ब्यूटी पार्लर' या 'लेडीज़ ब्यूटी पार्लर' या सिर्फ़ 'ब्यूटी पार्लर' का बोर्ड जड़ दीजिये और उसके दाहिने कोने पर पेंटर से शहनाज़ हुसेन का एक गहरा रंगा-पुता चित्र बनवा दीजिये। फिर चाहे वह चित्र टुनटुन जैसा ही क्यों न दिखता हो, आप पायेंगे कि उस दरवाजे क़ी शामें रोज़ ज्यादा से ज्यादा खुशनुमा हो रहीं हैं और आप की तिजोरी की सेहत दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ रही है।
रूप और रुपयों की यह बरसात देखकर डाक्टरों का माथा भी ठनका है और उन्होंने सोचा है कि वे भी क्यों न इस बहती गंगा में हाथ धो लें? सो उन्होंने फ़िगर सुधारने के 'भरोसेमंद' शॉर्ट कट्स निकालने शुरू कर दिये हैं। उन्हीं में एक को नाम दिया है लिपो सक्शन जिसका हिंदी तर्जुमा होता है कि अगर आप के शरीर का कोई अंग जैसे पेट, जांधें आदि हिप्पो जैसा मोटा है तो वे उसकी चर्बी को खींच कर उसे लिपा हुआ सा पतला बना देंगे। लिपो सक्शन के ईजाद होने की खबर जैसे ही धनी महिलाओं में फैली कि चारों ओर हड़बडी मच गई। कौन नहीं जानता है कि बेमुरौव्वत चर्बी को महिलाओं के पेट से बेपनाह उन्सियत होती है- जहां किसी 36.24.36 की कमनीय काया को मातृत्व की गरिमा प्राप्त हुई, तो अविलम्ब 24 की मध्य-संख्या 36 की गुरुता को प्राप्त करने को उतावली होने लगती है। हाल में रोमानिया की एक माडल के बच्चा पैदा होने पर उसके साथ भी यही हादसा हुआ और वह अपने पेट की चर्बी से काफी ग़मगीन रहनें लगी। हालांकि उसके नितम्ब एवं वक्ष पर भी कुछ चर्बी आ गई थी, परंतु देखने वालों ने उस चर्बी से उसकी सुंदरता में चार चांद लगने की बात कही थी- बस पेट की चर्बी ही चांद पर ग्रहण लगा रही थी। वह माडल एक मशहूर कौस्मेटिक सर्जन का नाम सुनकर उनके पास पेट की चर्बी कम कराने गई। मोटा ग्राहक फंसते देखकर सर्जन साहब के चेहरे पर रौनक आ गई और वह फटाफट बोले,'अरे, यह तो मिनटों का काम है।', और फिर अपनी व्यस्तता दिखाने हेतु डायरी देखते हुए लिपो सक्शन हेतु दूर की एक तारीख़ निश्चित कर दी। वह तारीख़ आते आते सर्जन साहब यह भूल गये कि लिपो सक्शन कहां का होना है, और जब आपरेशन थियेटर में एनिस्थीसिया के नशे में वह माडल अपनी कमर के पुन: पुरुष-संहारक हो जाने का स्वप्न देख रही थी तब उन्होंने सक्शन यंत्र उसके नितम्ब में लगाकर उन्हें निचोड़ दिया। जब माडल की मोहनिद्रा खुली और उसने अपने बदन को टटोला तो वह यह जानकर हतप्रभ रह गई कि उसका पेट यथापूर्व मोटा था और उसके नितम्ब निचुड़ गये थे जिससे उसका बदन ऐसा हो गया था जैसे बांस की खपाचों पर गेहूं से भरा बोरा रख दिया गया हो।
यह देखकर विषादपूर्ण आश्चर्य से उसके मुख से बस तीन शब्द निकले, ''हाय मेरे नितम्ब!''
-महेश चंद्र द्विवेदी

VARSHNEY.009
09-11-2013, 01:12 PM
मैडम की क्लास

मैडम ने हाज़िर कर लिए नेता सारे
और बोली यह क्या हो रहा है
राज में हमारे
क्या करते रहते हो तुम सारे
लोग क्यों पीछे पड़ गए हैं हमारे
तुसी वी कुज बोल्या करो जी ( आप भी कभी कुछ बोला करो जी)
कदीं ते मुँह खोल्या करो जी ( कभी तो मुँह खोला करो जी)

मैं तो वही कहता हूँ जो आप कहती हैं
फिर वही बात दोहराने से फ़ायदा क्या है
फालतू में ज़ुबान घिसाने से फ़ायदा क्या है

मैं सोचता हूँ कि मेरे पास
तो कोई जादू की छड़ी नहीं है
मगर एक लाख सत्तर हज़ार करोड़ की रकम
तो कोई ज्यादा बड़ी नहीं है

एक ही छड़ी है हमारे पास
जो वकील साहब चलाना चाह रहे हैं
साधू के अनुयाईयों को
नींद से जगाना चाह रहे हैं

हाय! कैसे हुआ यह सब होते हुए तुम्हारे
क्यों लोग हमारे खिलाफ लगाने लगे हैं नारे
लोगों के मनमोहने का कोई नया तरीका अपनाओ
जन्तर मन्तर पे जा के कोई नया मंतर चलाओ
अन्ना को थोड़ा जूस पिलाओ

और यह साधू से थोड़े आसन करवाओ
समझाओ कि यह इतना आसान नहीं है
मैं बबलू को अब तक नहीं समझा पाई हूँ
अमूल तक खाने को
रजामंद नहीं करवा पाई हूँ
मैडम ने नज़र चारों ओर दौड़ी
उंगली से इशारा कर वो चिल्लाई

और तुम किस दिशा को जीतने की बात करते हो
जब दिशा कि तुम्हें पहचान नहीं है
खुद रास्ता बना सको अपने लिए
इतना तो तुम्हें ज्ञान नहीं है

क्या, किसे, कब कहना है
इसका भी तुम्हें रहता ध्यान नहीं है
पहले अपना नाम चेंज करवाओ
घिसा-पिटा ग्रामोफोन रिकॉर्ड
या ऐसा ही कोई नाम रखो
बेहतर तो यही होगा कि तुम
अपने काम से काम रखो

“पकील” साहेब यह क्या हो रहा है
हर कोई हमारी पोल खोल रहा है
जो भी आता है मुँह में, बोल रहा है

आप लॉयर हैं कि लायर हैं सब को बता दो
जो सरल भाषा नहीं समझते
उन्हें डंडे की भाषा से समझा दो

वकील साहब ने हवा में डंडा घुमाया
बोले यह तो बड़ों बड़ों से आसन करवा सकता है
बोलती को तो चुटकी में बंद करवा सकता है

यह सब गुरुओं का गुरु है
समझलो आज से हमारी जंग
हमें तंग करने वालों के खिलाफ शुरू है
मैं आज ही कहता हूँ , सी.बी.आई, ई. डी, कस्टम, पुलिस को
सबके केस खोलें
बहुत हस चुके हैं वे
अब बेहतर होगा जो थोड़ा रो लें

अरे जो पैसे पड़े हैं बाहर सारे
वो सिर्फ हमारे तो नहीं
हमारा कसूर तो बस इतना ही है न
कि हमने चाहा कि
बहती गंगा में हाथ धोलें

वरना इस देश में एक नहीं
कई हसनअली हैं
छोटे-मोटे ठग हैं कुछ
और कुछ महाबली हैं
अरे कभी पैसे के बिना भी कहीं सरकारें चली हैं?

यह पैसा जो इक्कट्ठा होता है
यही तो हम चुनाव में लोगों में बाँट देते हैं
रखते हैं कुछ तो क्या?
उन्हें भी तो देते हैं
उन्हीं के दम पर ही तो सरकार चलाते हैं
वास्तव में हम धन का पुनर्वितरण कर
देश में समानता लाते हैं
जन सेवक हैं हम सच में
मगर अफ़सोस कि हम 'मिस-अंडर-स्टुड हैं
आज के युग के हम रॉबिनहुड हैं

उफ़! कितना बोलते हो
बंद ही नहीं होता तुमसे मुँह क्या
जब एक बार खोलते हो?

हेल्लो लैपटॉप के बड़े भाई
तुम्हारी क्या राय है ?
“वन्नाकम”
अरे तुम चमचा-गिरी करते हो ज्यादा
और काम करते हो कम
वेष्टी को आधा फोल्ड कर के अब कस लो
नहीं जाता सरदर्द तो
Action 500 Plus लो
इस संकट से निपटने का तुम्हारे पास कोई उपाय है?
Avete qualche soluzione per uscire da questo disturbo
कि तुम सिर्फ बातें ही कर सकते हो ?

सुना है चुनाव भी तुम हेरा-फेरी से ही जीते हो
चुप क्यों हो कुछ तो कहो
वो मद्रासन तो ऐसा ही कुछ बोल रही है
तुम्हारे सबके एक एक कर पोल खोल रही है

मुझे मिलने तो नहीं आई
पर मैंने सुना है जो वह कहती है
कोई मिलने मुझे आए न आए
पर सबकी खबर तो मुझे रहती है

जब सत्ता में थी तो दबा के उसने पैसे बनाये थे
अपनी सहेली के बेटे की शादी में करोड़ों रुपये लगाये थे

गठ-बंधन क्या किया है तुम लोगों से
तुम तो घने बादल बन कर
पार्टी के भविष्य पर छा गए हो
उडिपी रेस्तुरेंतों की तरह खोल खोल कर टी. वी. चैनल
तुम तो देश को खा गए हो

सोने की मुर्गी को हलाल कर के क्या
सारे अंडे निकल आते हैं

तजुर्बेकार और अनाड़ी में यही अंतर है
पर क्या करें तुम लोगों को साथ लेना ज़रूरी है
चाहते तो नहीं हम पर मजबूरी है

திஸ்இஸ்ரஸ்'சதோஇங், I தினக்
यह सब आर. एस. एस. की करतूत है मेरा विचार है
जो हर समय देशद्रोह के लिए रहती तैयार है
गाँधी शब्द से उन्हें बहुत नफरत है
यह मेरा नहीं कौंग्रेस में हम सब का मत है

मुझे मत के बारे में तो मत बताओ
अपनी मति का प्रयोग कर कोई हल सुझाओ

और बंगाली बाबु आप क्या कहते हो
हर वक़्त क्या मिष्टी दही के
सपने देखते रहते हो
কী তুই সকাল সময় মিষ্টি দয়ী স্বপন দেখছি


आमरे बिचार से यह रोशोगोला
सबको नज़र आने लगा है
और रशोगोला का सोच के
अमारे मुख में फिर से जोल आने लगा है

देखो हमें किसी तरह इस आन्दोलन को तोड़ना होगा
इस मुद्दे के साथ कोई और मुद्दा जोड़ना होगा
ताकि लोग यह नया शोशा भूल जायें
अपने अपने काम में दिल लगायें

थोड़ी बहुत हेरा-फेरी करते हैं जो
उसी में खुश रहें
हमारे गुप्त खातों के लिए न ललचायें

मेरे ख्याल से अब आप जाएँ
जाकर भूख हड़ताल करने वालों से
इतनी भूख हड़ताल करवाएं
कि वो सारे भूखे ही मर जाएँ

और वकील साहेब कि राय से मैं सहमतहूँ
सोती जनता पर जा कर डंडा चलायें
उलटे लटका कर उनसे आसन करवाएं
ताकि कैसे करते हैं शासन वे हमें न समझाएं

VARSHNEY.009
09-11-2013, 01:14 PM
पहचानो !
“ तू ज़ू-पार्क गया था?”
“गया था.”
“सिंह को देखा?”
“वो, जो सूंड वाला है?”
“नहीं, वो तो हाथी है, सिंह ऐसा थोड़े ना होता है.”
“आह, दो कूबड़ वाला.”
“ अरे, नहीं! अयाल वाला!”
“आ-आ! हाँ, हाँ, अयाल वाला, ऐसा चोंच वाला.”
“कहाँ की चोंच! नुकीले दाँतों वाला.”
“ओह, हाँ, नुकीले दाँतों वाला और पंखों वाला.”
“नहीं, वो सिंह नहीं है.”
“तो कौन है?”
“वो मुझे नहीं मालूम. सिंह पीला होता है.”
“ओह, हाँ, पीला, क़रीब-क़रीब धूसर रंग का.”
“नहीं, क़रीब-क़रीब लाल.”
“हाँ, हाँ, हाँ, पूँछ वाला.”
“हाँ, पूँछ वाला और तीखे नाख़ूनों वाला.”
“ “मालूम है! तीखे नाखूनों वाला और दवात जैसा बड़ा.”
“वो कहाँ का सिंह हुआ. वो, शायद चूहा है.”
“क्या कहता है! चूहे के कहीं पंख होते हैं?”
“आह, ये पंखों वाला था?”
“ बिल्कुल!”
“तो फिर ये कोई पंछी था.”
“वो ही, वो ही. मैं भी सोच रहा हूँ कि वो कोई पंछी ही था.”
“मैं तुझे सिंह के बारे में बता रहाथा.”
“और मैं भी, पंछी-सिंह के बारे में.”
“क्या सिंह – पंछी होता है?”
“मेरे ख़याल से तो पंछी ही होता है. वो पूरे समय चिरकता रहता है : तिर्ली – तिर्ली, त्यूत्-त्यूत्-त्यूत् .”
“ रुक! ऐसा धूसर और पीला-सा?”
“बिल्कुल-बिल्कुल. धूसर और पीला.”
“गोल सिर वाला?”
“हाँ, गोल सिर वाला.”
“और, वो उड़ता है?”
“उड़ता है.”
“ओह, तो मैं पक्का कहता हूँ : ये सीस्किन* है!”
“ओह, हाँ! सही कहा, ये सीस्किन है!”
“मगर मैं तो सिंह के बारे में पूछ रहा था.”
“तो, सिंह को मैंने नहीं देखा.”

.......
* गहरी धारियों वाला हरे-पीले रंग का गाने वाला पंछी. रूसी में इसे ‘चीझ’ कहते हैं.

internetpremi
10-11-2013, 06:32 AM
Varshneyjee
Welcome back.
Please continue regularly.
Regards
G Vishwanath

VARSHNEY.009
11-11-2013, 08:33 AM
एक दिन की रौशनी

14 सितंबर हिन्दी दिवस के बहाने,
राष्ट्रभाषा का महत्व मंचों पर चढ़कर
बयान करेंगे
अंग्रेजी के सयानो।
कहें दीपक बापू
अंग्रेजी में रंगी जिनकी जबान,
अंग्रेजियत की बनाई जिन्होंने पहचान,
हर बार की तरह
साल में एक बार
हिन्दी का नाम जपते नज़र आयेंगे।
लिखें और बोलें जो लोग हिन्दी में
श्रोताओं और दर्शकों की भीड़ में
भेड़ों की तरह खड़े नज़र आयेंगे,
विद्वता का खिताब होने के लिये
अंग्रेजी का ज्ञान जरूरी है
वरना सभी गंवार समझे जायेंगे,
गुलामी का खून जिनकी रगों में दौड़ रहा है
वही आजादी की मशाल जलाते हैं
वही लोग हमेशा की तरह हिन्दी भाषा के महत्व पर
एक दिन रौशनी डालने आयेंगे।
कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप

VARSHNEY.009
11-11-2013, 08:34 AM
भ्रम का सिंहासन दिखाते हैं-व्यंग्य कविता

एक सपना लेकर
सभी लोग आते हैं सामने
दूर कहीं दिखाते हैं सोने-चांदी से बना सिंहासन

कहते हैं
‘तुम उस पर बैठ सकते हो
और कर सकते हो दुनियां पर शासन

उठाकर देखता हूं दृष्टि
दिखती है सुनसार सारी सृष्टि
न कहीं सिंहासन दिखता है
न शासन होने के आसार
कहने वाले का कहना ही है व्यापार
वह दिखाते हैं एक सपना
‘तुम हमारी बात मान लो
हमार उद्देश्य पूरा करने का ठान लो
देखो वह जगह जहां हम तुम्हें बिठायेंगे
वह बना है सोने चांदी का सिंहासन’

उनको देता हूं अपने पसीने का दान
उनके दिखाये भ्रमों का नहीं
रहने देता अपने मन में निशान
मतलब निकल जाने के बाद
वह मुझसे नजरें फेरें
मैं पहले ही पीठ दिखा देता हूं
मुझे पता है
अब नहीं दिखाई देगा भ्रम का सिंहासन
जिस पर बैठा हूं वही रहेगा मेरा आसन

VARSHNEY.009
11-11-2013, 08:35 AM
बिग बॉस के घर में स्वामी-हिन्दी हास्य व्यंग्य (a swami in house of big boss)



दीपक बापू हाथ में पुराना थैला लेकर सब्जी खरीदने मंडी जा रहे थे। उनके मोहल्ले और मंडी के मार्ग के बीच में एक बहुत बड़ी कॉलोनी पड़ती थी। दीपक बापू जब भी मंडी जाते तो उसी कालोनी से होकर जाते थे। वहां बीच में पड़ने वाले शानदार मकानों, बहुमंजिला इमारतों और किसी नायिका के चेहरे की तरह चिकनी सड़कों पर अपनी साइकिल चलाते हुए वह आहें भरते थे कि ‘काश! हमारा मोहल्ला भी इस तरह का होता’।
कुछ दिन पहले वह इसी कालोनी में जब गुजरे तब उनकी मुलाकात आलोचक महाराज से हुई तो दीपक बापू ने अपने मन की यही बात उनसे कही थी तो उन्होंने झिड़कते हुए कहा कि-‘‘रहे तुम ढेड़ के ढेड़! यह क्यों नहंी सोचते कि तुम्हारा घर ऐसी कालोनी में होता। वैसे ऐसा घर तुम्हारा भी यहां होता अगर इस तरह की बेहूदी कवितायें लिखकर बदनाम नहीं हुए होते। चाहे जिसे अपना हास्य का शिकार बनाते हो। कोई तुम्हें प्रायोजित नहीं कर सकता। बिना प्रायोजन के कवि या लेखक तो रचनाओं का बोझ ढोले वाला एक गधे की तरह होता है जो कभी अपने तो कभी जमाने का दर्द ढो्रता है।’’
उस कालोनी में अक्सर आलोचक महाराज का आना होता था और दीपक बापू उनसे मुलाकात की आशंका से भी भयग्रस्त रहते थे। अगर उनको कहंी दूर से आलोचक महाराज दिखते तो वह साइकिल से अपना रास्ता बदल लेते या पीछे मुड़कर वापस चले जाते। आज उन्होंने देखा कि कालोनी में दूर तक सड़क पर कोई नहंी दिखाई दे रहा था-न आदमी न कुत्ता। यह दीपक बापू के लिये साइकिल चलाने की आदर्श स्थिति थी। ऐसे में चिंत्तन और साइकिल एक साथ चलना आसान रहता है। इसलिये आराम से साइकिल पर बैठे उनके पांव यंत्रवत चल रहे थे।
वह एक मकान से गुजरे तो एक जोरदार आवाज उनके कानों में पड़ी-‘ओए दीपक बापू! हमसे नजरें मिलाये बगैर कहां चले जा रहे हो।’’
दीपक बापू के हाथ पांव फूल गये। वह आवाज आलोचक महाराज की ही थी। उन्होंने झैंपकर अपनी बायें तरफ देखा तो पाया कि चमकदार कुर्ता और धवन चूड़ीदार पायजामा पहने, माथे पर तिलक लगाये और गले में सोने की माला पहने आलोचक महाराज खडे थे। खिसियाते हुए वह आलोचक महाराज के पास गये और बोले-‘‘महाराज आप कैसी बात करते हैं, आपकी उपेक्षा कर हम यहां से कैसे निकल सकते हैं? कभी कभार हल्की फुल्की रचनायें अखबारों में छप जाती हैं यह सब आपकी इस कृपा का परिणाम है कि आपकी वक्रदृष्टि हम पर नहीं है। वैसे यहां आप ‘बिग बॉस निवास’ के बाहर खड़े क्या कर रहे हैं? जहां तक हमारी जानकारी है इस घर में आप जैसे रचनाकारों का घुसना वर्जित है। यहां की हर घटना का सीधा प्रसारण टीवी चैनलों पर दिखता है। आप जैसे उच्च व्यक्त्त्वि इसके अंदर प्रविष्ट होना तो दूर बाहर इस तरह खड़ा रहे यह भी उसके स्तर के अनुकूल नहीं दिखता।’’
आलोचक महाराज बोलें-‘अच्छा, हमें समझा रहे हो! तुम्हारे जैसे स्तर का महान हास्य कवि यहां से निकल रहा है इस पर भी कोई सवाल कर सकता है। बिग बॉस में ढेर सारी सुंदरियां आती है, कहीं उनको देखने के प्रयास का आरोप तुम पर भी लग सकता है।’’
दीपक बापू बोले-‘‘नहीं महाराज, हमें तो कोई जानता भी नहीं है। आप तो प्रसिद्ध आदमी है। बहरहाल हमें आज्ञा दीजिये। बिना आज्ञा यहां पोर्च तक आ गये यही सोचकर डर लग रहा है। निवास रक्षक ने अगर आपत्ति कहीं हमें पकड़ लिया तो आप हमें यहां बुलाने की बात से भी इंकार कर पहचानने ने मना कर देंगे।’’
आलोचक महाराज बोले-‘‘आज हम यहां स्वामी आगवेशधारी का इंतजार कर रहे हैं। उनको हमने बिग निवास में प्रवेश दिलवाया है। उनको समझाना है कि क्या बोलना है, कैसे चलना है? तुम जानते हो कि हम तो अब कंपनियों के पटकथाकार हो गये हैं।’’
दीपक बापू बोले-‘‘स्वामी आगवेशधारी का यहां क्या काम है? वह तो गेरुऐ वस्त्र पहनते है और उनका अभिनय से क्या वास्ता है?’’
आलोचक महाराज बोले-‘तुम इसलिये फ्लाप रहे क्योंकि तुम बाज़ार और प्रचार का रिश्ता समझे नहीं । अरे, दीपक बापू आजकल वही कंपनियां साहित्य, कला, राजनीति, धर्म और फिल्म में अपना पैसा लगा रही हैं जो हमें सामान बनाकर बेचती हैं। टीवी चैनल और अखबार भी उनकी छत्रछाया में चलते है। वही समाज में सक्रिय अभिनेताओं, स्वामियों, लेखकों, चित्रकारों और समाज सेवकों को प्रायोजित करती है। किसको कब कहां फिट कर दें पता नहीं। फिल्म और टीवी की पटकथा तक कंपनियां लिखवाती हैं। आदमी इधर न खप सका तो उधर खपा दिया। स्वामी धर्म और समाज सेवा के धंधे में न चला तो अभिनेता बना दिया। हमे क्या? हम तो ठहरे रचनाकार! जैसा कहा वैसा बना दिया।’’
दीपक बापू अवाक खड़े होकर सुनते रहे फिर बोले-‘‘महाराज अब हमारे समझ में आया कि हम फ्लाप क्यों हैं? इतना बड़ा राज हमने पहली बार सुना। यह आगवेशधारी स्वामी तो कभी गरीब बंदूकचियों की दलाली करता था। फिर यह इधर हमारे तीर्थयात्रियों पर कुछ अनाप शनाप बोला। बाद में समाज सुधार आंदोलन में चला आया। वहां उसने अपने ही लोगों को पिटवाने का इंतजाम करने का प्रयास किया। बाहर किया गया। फिर कहीं श्रीश्री के यहां मौन व्रत पर चला गया। अब फिर इधर बिग बॉस के घर आ रहा है। अपने समझ में अभी तक नहीं आया। यह बाज़ार और प्रचार का मिलाजुला खेल है।’’
आलोचक महाराज बोले-‘‘तुम्हारी समझ में नहीं आयेगा! तुम्हारी बुद्धि मोटी हैं। तुम्हें इतना पहले भी कई बार समझाया कि हमारे यहां बंदूकची हों या चिमटाधारी समाज सेवा में लगें या विध्वंस मे,ं आदमी का प्रायोजन तो कंपनियां ही करती हैं, पर तुम अपनी हास्य कविताओं तक ही सीमित रहे।’’
इतने में दीपक बापू ने देखा कि एक गेरुए वस्त्रधारी पगड़ी पहने एक स्वामी कार से उतर रहे हैं। आलोचक महाराज दनदनाते हुए वहां पहुंच गये और बोले-‘‘आईये महाराज, आईये महाराज! बिग बॉस के घर में आपका स्वागत है।’’
स्वामी ने कहा-‘‘तुम बिग बॉस हो। लगता तो नहीं है! बिग बॉस तो जींस पहने, काला चश्मा लगाये और सिर पर टोपी धारण करने वाला कोई जवान आदमी होना चाहिए। तुम तो जैसे कुर्ता पायजामा पहनने के साथ माथे पर तिलक लगाये और सोने की माला पहने कोई नेता लग रहे हो।’
आलोचक महाराज बोले-‘हुजूर बिग बॉस वास्तव में कौन है पता नहीं! अलबत्ता चाहे इस घर में विज्ञापन मैनेजर जिस अभिनेता को चाहते हैं वही बनकर हमारे सामने आता है। अब बताईये इस कंपनी राज में बिग बॉस भला कभी दिखता है? यहां तक कंपनियों के बॉस भी अपने को दूसरे नामों से पुकारे जाते हैं। हां, आपकी भूमिका मुझसे ही लिखवाई गयी थी। एक कंपनी ने कहा कि हमारा प्रायोजक आदमी इस समय फालतु घूम रहा है उसे काम दो। वह समाज सुधार में फ्लाप हुआ तो गरीबों के उद्धार में उसके सामने पैंच आ जाते हैं ? आपका चेहरा जनता के सामने से गायब न हो जाये इसलिये किसी टीवी धारावाहिक में उपयोग करें। इसलिये हमने तय किया कि आपको बिग बॉस से अच्छी जगह नहीं मिल सकती।’
स्वामी ने कहा-‘कोई बात नहीं। इस समय मेरा समय ठीक नहीं चल रहा है। बिग बॉस के घर से अपनी छवि सजाकर फिर समाज सेवा करने जाऊंगा। वैसे मुझे तुम्हारे लिखे डायलाग की जरूरत नहीं है। मेरे पास अपना अध्यात्मिक ज्ञान बहुत हैं।’’
आलोचक महाराज बोले-‘महाराज, वह ठीक है। डायलाग लिखना मेरा काम है। आप अपने चाहे मेरे लिखे बोलें या अपने सुनायें पर नाम मेरा ही होगा।’’
स्वामी ने दीपक बापू की तरफ देखते हुए पूछा-‘‘यह बूढ़ा आदमी यहां क्या कर रहा है?’’
आलोचक महाराज ने कहा-‘यह एक फ्लाप हास्य कवि है। काम मांगने आया था। मैंने कहा कि हमें तो हमारे महाराज मिल गये अब तुम निकल लो।’’
स्वामी ने कहा-‘‘अच्छा किया! मुझे हास्य कवियों से नफरत हैं। वैसे यह फटीचर धोती, कुर्ता और टोपी पहने हुए है। इससे बिग बॉस के घर क्या बरामदे तक नहीं आने देना चाहिए। कुछ हास्य कवियों ने मेरा मजाक बनाया है इसलिये उनसे चिढ़ हो गयी है।’
आलोचक महाराज ने वहां से दूर ले जाकर दीपक बापू से कहां-‘‘निकल लो गुरु तुम यहां से! तुमने इस पर एक हास्य कविता लिखी थी। हमने इंटरनेट पर पढ़ी है। अगर कहीं तुम्हारा नाम इसे पता चला तो हो सकता है एकाध चमाट मार दे।’’
दीपक बापू बाहर निकलते हुए बोले-सच कहते हो आलोचक महाराज। यह बिग बॉस का निवास और इधर यह स्वामी! फिर आपकी मौजूदगी! हमारे लिये यहां हास्य कविता लायक लिखने का विषय हो नहीं सकता। गंभीर चिंत्तन और दर्दनाक रचनायें हमसे होती नहीं हैं। सो हम तो चले।’’

VARSHNEY.009
11-11-2013, 08:36 AM
गुलाम मानसिकता

अब नहीं आती उनकी बेदर्दी पर
हमें भी शर्म,
क्योंकि बिके हुए हैं सभी बाज़ार में
चलेंगे वही रास्ता
जिस पर चलने की कीमत उन्होंने पाई।
आजादी के लिये जूझने का
हमेशा स्वांग करते रहेंगे,
विदेशी ख्यालों को लेकर
देश के बदलाव लाने के नारे गढ़ते रहेंगे
क्योंकि गुलाम मानसिकता से मुक्ति
कभी उन्होंने नहीं पाई।
-------------
देश के पहरेदारों को
अपने ही घर में गोलियां लगने का
जश्न उन्होंने मनाया,
इस तरह गरीब के हाथों गरीब के कत्ल कों
पूंजीवाद के खिलाफ जंग बताया।
बिकती है कलम अब पूंजीपतियों के हाथ
बड़ी बेशर्मी से,
धार्मिक इंसान को धर्मांध लिखें,
तरक्की के रास्ते का पता लिखवाते अधर्मी से,
गरीबों और मज़दूरों के भले का नारा लगाते
पहुंचे प्रसिद्धि के शिखर पर ऐसे बुद्धिमान
जिन्होंने कभी पसीने की खुशब को समझ नहीं पाया,
भले ही दौलतमंदों के कौड़ियों में
उनकी कलम खरीदकर
समाज कल्याण के नारे लगाते हुए
अपनी तिजोरी का नाप बढ़ाया।

VARSHNEY.009
24-12-2013, 04:32 PM
आधुनिक काल के दोहे मस्त-मस्त अंदाज, भैया पूरे पढ़ लो आज..


आधुनिक काल के दोहे..

कर्ज़ा देता मित्र को, वही मूर्ख कहलाए,
महामूर्ख वह यार है, जो पैसे लौटाए...

बिना जुर्म के पिटेगा, समझाया था तोय,
पंगा लेकर पुलिस से, साबुत बचा न कोय...

गुरु पुलिस दोऊ खड़े, काके लागूं पाय,
तभी पुलिस ने गुरु के, पांव दिए तुड़वाय...

पूर्ण सफलता के लिए, दो चीज़ें रखो याद,
मंत्री की चमचागिरी, पुलिस का आशीर्वाद...

नेता को कहता गधा, शरम न तुझको आए,
कहीं गधा इस बात का, बुरा मान न जाए...

बूढ़ा बोला, वीर रस, मुझसे पढ़ा न जाए,
कहीं दांत का सैट ही, नीचे न गिर जाए...

हुल्लड़ खैनी खाइए, इससे खांसी होय,
फिर उस घर में रात को, चोर घुसे न कोय...

हुल्लड़ काले रंग पर, रंग चढ़े न कोय,
लक्स लगाकर कांबली, तेंदुलकर न होय...

बुरे समय को देखकर, गंजे तू क्यों रोय,
किसी भी हालत में तेरा, बाल न बांका होय...

दोहों को स्वीकारिये, या दीजे ठुकराय,
जैसे मुझसे बन पड़े, मैंने दिए बनाय...












http://i10.dainikbhaskar.com/dainikbhaskar2010/images/outsource/images/z.gif http://i10.dainikbhaskar.com/dainikbhaskar2010/images/outsource/images/z.gif (http://www.bhaskar.com/print/1/9436439/1/) http://i10.dainikbhaskar.com/dainikbhaskar2010/images/outsource/images/z.gif (http://www.bhaskar.com/article/HUM-humor-and-funny-jokes-4473976-NOR.html#comment)

internetpremi
24-12-2013, 06:47 PM
ऐसे ही पोस्ट करते रहिए बारंबार
हम करेंगे आपका हमेशा इन्तजार

VARSHNEY.009
16-07-2014, 12:40 PM
http://www.geeta-kavita.com/images/nbhc/nbhc.gif

VARSHNEY.009
16-07-2014, 12:41 PM
http://www.geeta-kavita.com/images/standard/standard_1.gif

VARSHNEY.009
16-07-2014, 12:41 PM
http://www.geeta-kavita.com/images/tuktak/tuktak.gif

VARSHNEY.009
16-07-2014, 12:41 PM
http://www.geeta-kavita.com/images/gori_chhat_par/gori_chhat_par.gif

VARSHNEY.009
16-07-2014, 12:41 PM
http://www.geeta-kavita.com/images/barsane/barsane.gif

VARSHNEY.009
16-07-2014, 12:42 PM
http://www.geeta-kavita.com/images/harimirch/harimirch.gif

VARSHNEY.009
16-07-2014, 12:42 PM
http://www.geeta-kavita.com/images/hullad2/hullad2.gif

VARSHNEY.009
16-07-2014, 12:42 PM
http://www.geeta-kavita.com/images/gharnahin/gharnahin.gif

VARSHNEY.009
16-07-2014, 12:42 PM
http://www.geeta-kavita.com/images/hulladdohe/hulladdohe.gif

VARSHNEY.009
16-07-2014, 12:43 PM
http://www.geeta-kavita.com/images/kanaphoosi/kanaphoosi.gif

VARSHNEY.009
16-07-2014, 12:43 PM
http://www.geeta-kavita.com/images/vigyan/vigyan.gif

VARSHNEY.009
16-07-2014, 12:43 PM
http://www.geeta-kavita.com/images/saanp/saanp.gif

VARSHNEY.009
16-07-2014, 12:43 PM
http://www.geeta-kavita.com/images/kya_kaha/kya_kaha.gif

VARSHNEY.009
16-07-2014, 12:44 PM
http://www.geeta-kavita.com/images/tosmile/tosmile.gif

VARSHNEY.009
16-07-2014, 12:44 PM
http://www.geeta-kavita.com/images/saalaayahainaya/saalaayahainaya.gif

VARSHNEY.009
16-07-2014, 12:44 PM
http://www.geeta-kavita.com/images/chal_miyan/chal_miyan.gif

VARSHNEY.009
16-07-2014, 12:44 PM
http://www.geeta-kavita.com/images/gaon_ke_kutte/gaon_ke_kutte_1.gif

VARSHNEY.009
16-07-2014, 12:44 PM
http://www.geeta-kavita.com/images/mereram/mereram.gif

VARSHNEY.009
16-07-2014, 12:45 PM
http://www.geeta-kavita.com/images/itihaaskaparcha/itihaas1.gif

VARSHNEY.009
16-07-2014, 12:45 PM
http://www.geeta-kavita.com/images/tube/tube.gif

VARSHNEY.009
16-07-2014, 12:46 PM
http://www.geeta-kavita.com/images/aaraam_karo/aaraam_karo.gif

VARSHNEY.009
16-07-2014, 12:46 PM
http://www.geeta-kavita.com/images/aathavan/aathavan.gif

VARSHNEY.009
16-07-2014, 12:46 PM
http://www.geeta-kavita.com/images/teli/teli.gif

VARSHNEY.009
16-07-2014, 12:46 PM
http://www.geeta-kavita.com/images/daftar_babu/daftar_babu.gif

VARSHNEY.009
16-07-2014, 12:46 PM
http://www.geeta-kavita.com/images/gadhe_hain/gadhe_hain.gif

VARSHNEY.009
16-07-2014, 12:47 PM
http://www.geeta-kavita.com/images/istri/istri.gif

VARSHNEY.009
16-07-2014, 12:47 PM
http://www.geeta-kavita.com/images/charitra/charitra.gif

VARSHNEY.009
16-07-2014, 12:47 PM
http://www.geeta-kavita.com/images/dadhi/dadhi.gif

VARSHNEY.009
16-07-2014, 12:48 PM
http://www.geeta-kavita.com/images/gander/gander.gif

VARSHNEY.009
16-07-2014, 12:48 PM
http://www.geeta-kavita.com/images/newyear/newyear.gif

VARSHNEY.009
16-07-2014, 12:48 PM
http://www.geeta-kavita.com/images/ahimsa/ahimsa.gif

VARSHNEY.009
16-07-2014, 12:48 PM
http://www.geeta-kavita.com/images/veh_yug_kab_aayega/veh_yug_kab_aayega.gif

VARSHNEY.009
16-07-2014, 12:49 PM
http://www.geeta-kavita.com/images/kala_chashma/kala_chashma.gif

VARSHNEY.009
16-07-2014, 12:49 PM
http://www.geeta-kavita.com/images/maza/maza1.gif

VARSHNEY.009
16-07-2014, 12:49 PM
http://www.geeta-kavita.com/images/kanha/kanha.gif

rafik
16-07-2014, 01:53 PM
बहुत अच्छे मित्र

rafik
16-07-2014, 02:12 PM
http://i.minus.com/irjSUZJpJIhzN.jpg

VARSHNEY.009
23-07-2014, 12:30 PM
कर्ज़ा देता मित्र को, वह मूर्ख कहलाए,

महामूर्ख वह यार है, जो पैसे लौटाए।

VARSHNEY.009
23-07-2014, 12:31 PM
गुरु पुलिस दोऊ खड़े, काके लागूं पाय,
तभी पुलिस ने गुरु के, पांव दिए तुड़वाय।

VARSHNEY.009
23-07-2014, 12:31 PM
पूर्ण सफलता के लिए, दो चीज़ें रखो याद,
मंत्री की चमचागिरी, पुलिस का आशीर्वाद।

VARSHNEY.009
23-07-2014, 12:31 PM
नेता को कहता गधा, शरम तुझको आए,
कहीं गधा इस बात का, बुरा मान जाए।

VARSHNEY.009
23-07-2014, 12:31 PM
बूढ़ा बोला, वीर रस, मुझसे पढ़ा जाए,
कहीं दांत का सैट ही, नीचे गिर जाए।

VARSHNEY.009
23-07-2014, 12:31 PM
हुल्लड़ काले रंग पर, रंग चढ़े कोय,
लक्स लगाकर कांबली, तेंदुलकर होय।

VARSHNEY.009
23-07-2014, 12:31 PM
बुरे समय को देखकर, गंजे तू क्यों रोय,
किसी भी हालत में तेरा, बाल बांका होय।

rajnish manga
23-07-2014, 01:32 PM
नेता को कहता गधा, शरम तुझे न आए,
कहीं गधा इस बात का, बुरा मान न जाए।


बूढ़ा बोला, वीर रस, मुझसे पढ़ा न जाए,
कहीं दांत का सैट ही, नीचे न गिर जाए।


हुल्लड़ काले रंग पर, रंग चढ़े न कोय,
लक्स लगाकर कांबली, तेंदुलकर न होय।

जल्दबाजी में उपरोक्त दोहों में टाइपिंग की त्रुटियाँ रह गयी हैं. मैंने अपनी समझ से कुछ ठीक करने का प्रयत्न किया है. मात्राओं में भी कुछ कमीं-बेशी हो सकती है. धन्यवाद.

VARSHNEY.009
19-08-2014, 10:09 AM
सरफरोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है।
देखना है जोर कितना, बाजु-ए-कातिल में है?
वक़्त आने दे बता, देंगे तुझे ऐ आसमां!
हम अभी से क्या बताएं, क्या हमारे दिल में है?
काश बिस्मिल आज आते, तुम भी हिन्दोस्तान में;
देखते यह मुल्क कितना, ‘टेन्शन’ में, ‘थ्रिल’ में है।
आज का लड़का ये कहता’ हम तो बिस्मिल थक गये;
अपनी आज़ादी तो भैया! लड़कियों के तिल में है।
आज के जलसों में बिस्मिल, एक गूंगा गा रहा;
और बहरों का वो रेला, नाचता महफ़िल में है।
हाथ की खादी बनाने, का ज़माना लद गया;
आज तो चड्ढी भी सिलती, इंग्लिशों की मिल में है।
वक्त आने दे बता, देंगे तुझे ऐ आसमां!
हम अभी से क्या बताएं, क्या हमारे दिल में है?
सरफरोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है।
देखना है जोर कितना, बाजु-ए-कातिल में है?

VARSHNEY.009
28-01-2015, 01:29 PM
इधर भी गधे हैं उधर भी गधे हैं,
जिधर देखता हूं गधे ही गधे हैं।
गधे हंस रहे आदमी रो रहा है,
हिन्दोस्तां में ये क्या हो रहा है।
जवानी का आलम गधों के लिए है,
ये संसार सालम गधों के लिए है।
जमाने को उनसे हुआ प्यार देखो,
गधों के गले में पड़े हार देखो।
ये सर उनके कदमों पे कुरबान कर दो,
हमारी तरफ से ये ऐलान कर दो।
कि एहसान हम पे है भारी गधों के,
हुए आज से हम पुजारी गधों के।
पिलाए जा साकी पिलाए जा डट के,
तू व्हिस्की के मटके पे मटके।
मैं दुनिया को अब भूलना चाहतू हूं,
गधों की तरह फूलना चाहता हूं।
घोड़ों को मिलती नहीं घास देखो,
गधे खा रहे हैं च्यवनप्राश देखो।
यहां आदमी की कहां कब बनी है,
ये दुनिया गधों के लिए ही बनी है।
जो गलियों में डोले वो कच्चा गधा है,
जो कोठे पे बोले वो सच्चा गधा है।
जो खेतों में दीखे वो फसली गधा है,
जो माइक पर चीखे वो असली गधा है।
मैं क्या बक रहा हूं ये क्या कह गया हूं,
नशे की पिनक में कहां बह गया हूं।
मुझे माफ करना में भटका हुआ हूं,
ये ठर्रा था भीतर जो अटका हुआ था!