dipu
20-07-2013, 03:40 PM
वैज्ञानिकों ने उस अतिरिक्त गुणसूत्र को निष्क्रिय करने में सफलता हासिल कर ली है जिसके कारण डाउंस सिंड्रोम यानी मंगोल कल्पी बीमारी होती है। फिलहाल यह परीक्षण सिर्फ एक कोशिका पर किया जा सका है। इससे उम्मीद जगी है कि आने वाले दिनों में इस बीमारी का इलाज जीन थेरेपी के जरिए संभव हो पाएगा।
http://static.ibnlive.in.com/pix/labs/sitepix/07_2013/stem_cells.jpg
इस शोध से जुड़ी यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में न्यूरोजेनेटिक की प्रोफेसर एलिजाबेथ फिशर ने इसे तकनीकी रूप से महत्वपूर्ण बताते हुए कहा इससे शोध के नए मार्ग प्रशस्त होंगे। यह पहली बार हुआ है कि हमें डाउंस सिंड्रोम की जीन थेरेपी में कोई सफलता मिली है। शोध का नेतृत्व करने वाले मैसाच्यूसेट्स विश्वविद्यालय की प्रोफेसर जीन लारेंस ने कहा कि इससे डाउंस सिंड्रोम के बारे में हमारी समझ बढ़ेगी। लेकिन जीन थेरेपी के विकास में अभी कम से कम दस साल का समय लगेगा।
गौरतलब है कि डाउंस सिंड्रोम एक ऐसी बीमारी है जिसमें पीड़ित बच्चे में 21 वें गुणसूत्र में एक अतिरिक्त गुणसूत्र जुड़ जाता है। इसकी वजह से ऐसे बच्चे मंद बुद्धि, सांस और दिल की बीमारियों से ग्रस्त रहते हैं। इनकी आंखों में उपरी तरफ पाई झिल्ली ऐपीकैविक फोल्ड मंगोल प्रजाति के लोगों जैसा होता है। इस बीमारी का पता सन् 1866 में जान लैगंडन डाउन नामक वैज्ञानिक ने लगाया था।
दुनिया भर में हर साल तकरीबन 0.1 प्रतिशत बच्चे इस बीमारी के साथ पैदा होते हैं। इन बच्चों में क्रोमोसोम 21 दो की जगह तीन होते हैं। इनकी दिमागी क्षमता आम बच्चों के मुकाबले औसतन 50 प्रतिशत कम होती है। हालांकि दवाओं और चिकित्सा विज्ञान की अन्य तकनीकों की मदद से ये प्रौढ़ काल तक सामान्य जीवन जी सकते हैं लेकिन दिल की बीमारी, खून की विसंगतियों और थायराइड की समस्याओं की संभावना इनमें काफी अधिक होती है।
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इस शोध से जुड़ी यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में न्यूरोजेनेटिक की प्रोफेसर एलिजाबेथ फिशर ने इसे तकनीकी रूप से महत्वपूर्ण बताते हुए कहा इससे शोध के नए मार्ग प्रशस्त होंगे। यह पहली बार हुआ है कि हमें डाउंस सिंड्रोम की जीन थेरेपी में कोई सफलता मिली है। शोध का नेतृत्व करने वाले मैसाच्यूसेट्स विश्वविद्यालय की प्रोफेसर जीन लारेंस ने कहा कि इससे डाउंस सिंड्रोम के बारे में हमारी समझ बढ़ेगी। लेकिन जीन थेरेपी के विकास में अभी कम से कम दस साल का समय लगेगा।
गौरतलब है कि डाउंस सिंड्रोम एक ऐसी बीमारी है जिसमें पीड़ित बच्चे में 21 वें गुणसूत्र में एक अतिरिक्त गुणसूत्र जुड़ जाता है। इसकी वजह से ऐसे बच्चे मंद बुद्धि, सांस और दिल की बीमारियों से ग्रस्त रहते हैं। इनकी आंखों में उपरी तरफ पाई झिल्ली ऐपीकैविक फोल्ड मंगोल प्रजाति के लोगों जैसा होता है। इस बीमारी का पता सन् 1866 में जान लैगंडन डाउन नामक वैज्ञानिक ने लगाया था।
दुनिया भर में हर साल तकरीबन 0.1 प्रतिशत बच्चे इस बीमारी के साथ पैदा होते हैं। इन बच्चों में क्रोमोसोम 21 दो की जगह तीन होते हैं। इनकी दिमागी क्षमता आम बच्चों के मुकाबले औसतन 50 प्रतिशत कम होती है। हालांकि दवाओं और चिकित्सा विज्ञान की अन्य तकनीकों की मदद से ये प्रौढ़ काल तक सामान्य जीवन जी सकते हैं लेकिन दिल की बीमारी, खून की विसंगतियों और थायराइड की समस्याओं की संभावना इनमें काफी अधिक होती है।