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View Full Version : ब्रिटिश काल में महाराजाओं के रिश्ते


rajnish manga
26-07-2013, 03:04 PM
महाराजाओं के रिश्ते और किस्से

श्री शशिकांत शर्मा की प्रस्तुति

ब्रिटिश शासनकाल के दौरान शिमला देश की ग्रीष्मकालीन राजधानी थी, इसलिए यह शहर अनेक रोचक किस्सों का गवाह रहा है। अनेक किस्से अंग्रेजों और राजा-महाराजाओं के खट्टे-मीठे रिश्तों को बयान करते हैं। खासतौर पर महाराजा पटियाला, महाराजा कपूरथला और महाराजा धौलपुर से जुड़े कई किस्सों को लोग आज भी चटखारे लेकर सुनाते हैं। इतिहास में दर्ज इन किस्सों-कहानियों में समय के साथ-साथ कुछ ऐसी बातें भी जुड़ती चली गई जिनके सबूत भले ही न हों लेकिन उन्हें लोग अब सच मानते हैं। विभिन्न स्रोतों द्वारा संकलित रोचक जानकारी की एक प्रस्तुति

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26-07-2013, 03:06 PM
ओकओवर

राजा-रानियों की कहानियां तो आपने बहुत सुनी होंगी। जितने राजा उतनी कहानियां। कुछ राजा यहां ऐसे हुए जिन्होंने अपना तन, मन, धन पूरी तरह से प्रजा की सेवा और भलाई के कामों में लगा दिया, वहीं कुछ राजा ऐसे भी थे जिन्होंने अपनी पूरी जिन्दगी ऐशपरस्ती के साथ बिताई। अंग्रेजों के आने से पहले इन राजाओं का अपनी-अपनी रियासतों में एकछत्र राज था। लेकिन बाद में अंग्रेजी शासन इनपर हावी होने लगा।

अंग्रेजों के बढ़ते आधिपत्य का एक प्रभाव जहां राजाओं की कमजोर होती सत्ता पर पड़ा वहीं अंग्रेजियत की रॉयल कल्चर का असर उनके रहन-सहन और रोजमर्रा के जीवन पर भी दिखाई दिया। जंगलों में जाकर शिकार खेलने वाले राजा बिलियर्ड, पोलो और गोल्फ जैसे यूरोपियन खेल खेलना सीख गए और महलों में हमेशा महंगे आभूषणों से लदे रहकर शानो-शौकत के साथ शाही जिन्दगी बिताने वाली रानियां विदेश जाकर घूमने-फिरने लगीं। विदेशों में महिलाओं को मिलने वाले उन्मुक्त वातावरण में बहकर कई रानियों ने तो राजघरानों की परंपराओं को तोड़कर प्यार-मोहब्बत करने से भी गुरेज नहीं किया। ऐसी ही एक बेबाक कहानी शिमला के निकट स्थित जुब्बल रियासत के राजघराने से सम्बंध रखने वाली कपूरथला की रानी ब्रिंदा की है जिसे हम आपको आगे बताएंगे।

अंग्रेजों के समय की स्कैंडल प्वाईंट से जुड़ी कई कहानियां प्रचलित हैं जिनमें सबसे मशहूर महाराजा पटियाला की है। हालांकि अधिकारिक तौर पर इस किस्से का कहीं कोई उल्लेख नहीं मिलता लेकिन स्थानीय लोगों ने इस किस्से को सुना-सुनाकर इसे एक तरह से सत्य घटना बना दिया है। कहते हैं कि महाराजा पटियाला भारत पर शासन करने वाले एक ब्रिटिश वायसराय की बेटी को इस स्थान से घोड़े पर बिठा कर भगा ले गए थे। ब्रिटिश वायसराय की बेटी महाराजा के व्यक्तित्व की कायल थी। कहा जाता है कि इस घटना से हतप्रभ अंग्रेज इस कद्र तिलमिलाए कि उन्होंने महाराजा पटियाला के शिमला में प्रवेश पर ही पाबंदी लगा दी। तब से लोग इस स्थान को स्कैंडल प्वाईंट कहने लगे जो आज तक प्रचलित है।

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26-07-2013, 03:08 PM
सिडार सर्किट हाऊस

महाराजा पटियाला से जुड़ा एक दूसरा किस्सा तो और भी रोचक है। इस किस्से का उल्लेख बाकायदा इतिहास में भी मिलता है। कपूरथला के राजा के मंत्री रहे दीवान जीवन दास जिन्होंने ब्रिटिश शासनकाल के दौरान राजा-महाराजाओं की जिन्दगी में आए परिवर्तन का अपने संस्मरणों में खुलकर उल्लेख किया है, ने भी इसका जिक्र किया है। जीवन दास एक जगह लिखते हैं कि शिमला और डलहौजी जैसे हिल स्टेशन 1914 में शुरू हुए प्रथम विश्व युद्ध और 1945 में समाप्त हुए द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश शासकों और भारतीय राजा-महाराजाओं के लिए गर्मियों की सैरगाह बन गए थे। इन स्थानों का पूरा वातावरण खुशगवार और रोमांटिक हुआ करता था। राजा-महाराजाओं की शानो-शौकत और व्यक्तित्व से प्रभावित होकर कई ब्रिटिश महिलाएं उनके प्रेमपाश में पड़ जाती थी। ब्रिटिश महिलाओं को राजा-रानियों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले आभूषण भी आकर्षित करते थे। इसके अलावा राजाओं के अस्तबल में उपलब्ध अच्छी नस्ल के घोड़ों की सवारी की चाह भी उन्हें राजाओं के नजदीक ले आती थी। राजाओं को दिल दे चुकी कई ब्रिटिश महिलाएं इनसे विवाह भी कर लेती थीं लेकिन इन विवाहों को समाज में मान्यता नहीं मिल पाती थी। ऐसे में इस तरह के रिश्तों को हतोत्साहित करने के लिए ब्रिटिश शासनकाल को यह कानून भी बनाना पड़ा था कि राजाओं और अंग्रेज महिलाओं के बीच होने वाले विवाहों से पैदा होने वाली संतानों को राजा की जायदाद में कोई हक नहीं मिलेगा।

महाराजा पटियाला राजेंद्र सिंह भी उन महाराजाओं में से एक थे जिन्हें ब्रिटिश महिलाएं पसंद करती थीं। लगभग छह फुट के कद-काठ वाले महाराजा पटियाला हीरे जवाहरातों से सुसज्जित मालाएं पहनने के शौकीन थे। उनकी दोस्ती कपूरथला के महाराजा जगतजीत सिंह के साथ थी। जगतजीत सिंह भी उनकी तरह ही एक जिन्दादिल व रोमांटिक इंसान थे और शानो-शौकत से रहना पसंद करते थे। इन दोनों की धौलपुर के महाराजा के साथ भी खूब पटती थी। अंग्रेजों की राय में ये तीनों तीनों काफी ‘बिगड़े’ हुए थे इसलिए उनकी कोशिश होती थी कि इनमें से कोई भी ब्रिटिश लोगों खासतौर पर ब्रिटिश महिलाओं के संपर्क में न आए। यह अलग बात है कि अंग्रेजों ने ही एक समय उन्हें फरजंद-ए-खास-दौलत-ए-इंग्लिशा की उपाधि भी दी थी, जिसका मतलब था ब्रिटिश शासनकाल का सबसे पसंदीदा बेटा। अंग्रेजों के साथ इन तीनों के रिश्ते शिमला में हुई एक ऐसी घटना के कारण हमेशा के लिए खराब हुए जो इंग्लैंड में भी खूब चर्चित हुई।

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26-07-2013, 03:09 PM
महाराजा पटियाला के शिमला में तीन आलीशान घर थे। इनमें से एक ओकओवर था जो वर्तमान में हिमाचल के मुख्यमंत्री का सरकारी निवास है और दूसरा ओकओवर के सामने सिडार नाम का वो घर था जो अब पंजाब सरकार का शिमला में गेस्ट हाउस है। इसके अलावा उनकी तीसरी रॉकवुड नाम की इमारत भी थी। महाराजा पटियाला, महाराजा कपूरथला और महाराजा धौलपुर ने एक दफा भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड कर्जन की पत्नी लेडी कर्जन को ओकओवर में रात के समय राजसी हीरे-जवाहरातों और शाही पोशाकों को देखने के लिए बुला लिया। लेडी कर्जन इन सब चीजों को देखकर मंत्रमुग्ध हो गईं। इन तीनों ने लेडी कर्जन को सुझाव दिया कि अगर वह चाहें तो हीरे-जवाहरातों और महारानी की राजसी पोशाक को यहां पहन कर भी देख सकती हैं। लेडी कर्जन ने इनके सुझाव को मान लिया। राजसी पोशाक में इन तीनों ने पहले तो उनकी खूबसूरती के खूब पुल बांधे और बाद में उनका एक फोटो भी खिंचवा दिया। फोटो खिंचने के लिए इन तीनों ने ओकओवर में देश में उस समय के जाने-माने फोटोग्राफर लाला दीनदयाल को पहले ही बुला रखा था। बात यहीं खत्म हो जाती तो गनीमत थी। थोड़े दिन बाद लेडी कर्जन का यह फोटो इंग्लैंड के एक प्रमुख अखबार में छप गया। लेडी कर्जन को भारतीय महारानी की पोशाक में देख अंग्रेज शासक आगबबूला हो गए। बस फिर क्या था? अंग्रेजों ने महाराजा पटियाला के साथ-साथ महाराजा कपूरथला और महाराजा धौलपुर के शिमला प्रवेश पर भी प्रतिबंध लगा दिया। अंग्रेजों के इसी प्रतिबंध के जवाब में महाराजा पटियाला ने शिमला से 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक दूसरी पहाड़ी पर चायल में दूसरा शिमला बनाने की ठान ली। उन्होंने यहां एक ऐसी जगह पर अपना आलीशान महल बनवाया जो शिमला से भी एक हजार मीटर अधिक ऊंचा था। यह महल अब हिमाचल सरकार की सम्पत्ति है और इसमें हिमाचल पर्यटन विकास निगम चायल पैलेस के नाम से होटल चलाता है। आज भी इस होटल में सबसे महंगे कमरे का नाम महाराजा सूट और उससे कम महंगे कमरे का नाम महारानी सूट है।

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26-07-2013, 03:12 PM
महारानी ब्रिंदा

आईये अब आपको महारानी ब्रिंदा की कहानी से अवगत करवाएं। महारानी ब्रिंदा जुब्बल रियासत के राजा के भाई की बेटी थी। ब्रिंदा जब सात साल की थी तो उसकी शादी कपूरथला के महाराजा जगतजीत सिंह के नौ वर्षीय बेटे परमजीत सिंह के साथ तय कर दी गई। महाराजा जगतजीत सिंह क्योंकि खुले विचारों के थे इसलिए वह चाहते थे कि ब्रिंदा को घर लाने से पहले पढ़ाई-लिखाई के लिए विदेश भेजा जाए। दस वर्ष की आयु में ब्रिंदा को पढऩे के लिए पेरिस भेज दिया गया और फिर पेरिस में वो हुआ जिसे ब्रिंदा जीवन भर कभी नहीं भूल पाई। किसी और की अमानत होने के बावजूद उसे पेरिस में एक फ्रांसीसी लड़के से प्यार हो गया। इस समय ब्रिंदा 16 वर्ष की हो चुकी थी। ब्रिंदा की इस प्रेम कहानी में रोमांस भी है और त्रासदी भी। अच्छी बात यह है कि ब्रिंदा ने अपनी इस कहानी को दुनिया से कभी नहीं छुपाया, उलटे इसका उसने अपनी आत्मकथा में बड़े ही बेबाक तरीके से उल्लेख किया।

ब्रिंदा ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि पेरिस में मुझे ‘गये’ नाम के एक सज़ीले नौजवान से प्यार हो गया। गये सेना में अफसर था। ब्रिंदा लिखती हैं कि शादी के पांच साल बाद मुझे एक बार फिर पेरिस जाने का मौका मिला। हम दोनों फिर मिले। गये उस दिन अपनी सैन्य अफसर वाली वर्दी में था। वह अपने साथ सोने का वो सिक्का भी लाया था जो मैंने अपनी याददाश्त के तौर पर कभी उसे तोहफे में दिया था। 1916 में वह लड़ाई में मारा गया। गये के भाई ने सालों बाद ब्रिंदा से मुलाकात करके उसका सोने का सिक्का जब यह कहते हुए वापस लौटाया कि मौत के वक्त गये की जेब में था, तो मैं अपने आपको रोने से नहीं रोक सकी। महारानी ब्रिंदा का 1970 में शिमला में निधन हुआ।

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26-07-2013, 03:13 PM
किस हाल में हैं महाराजा
महाराज लक्ष्यराज

अपनी रियासतों के विलय के बाद देश की मुख्य धारा में शामिल हुए राजा-महाराजाओं के लिए शुरुआती दिन भले ही कष्टदायक रहे हों लेकिन धीरे-धीरे इन लोगों ने अपने आपको वक्त के सांचे में ढाल लिया। ज्यादातर राजाओं के पास क्योंकि चल और अचल सम्पति की कोई कमी नहीं थी, इसलिए इन्हें व्यवस्था बदलने पर भी कोई ज्यादा दिक्कत नहीं हुई। छोटी-मोटी रियासतों के कुछ शासकों जिन्हें राणा कहा जाता था, को जरूर कुछ दशकों बाद दिक्कतों का सामना करना पड़ा। ऐसे राणा भी थे जिनके पास अपने महलों तक की मुरम्मत कराने के लिए पैसे नहीं बचे। ऐसे लोगों की पहली पीढ़ी को काफी कष्ट झेलना पड़ा लेकिन अब इनकी दूसरी पीढ़ी ने अपने आपको संभाल लिया है। किसी समय राजा-महाराजाओं और प्रजा के बीच जहां काफी दूरी रहती थी वहीं अब यह दूरी काफी हद तक खत्म हो गई है। खासतौर पर राजघराने से ताल्लुक रखने वाले जो लोग राजनीति में आ गए हैं, उन्होंने तो जनता के बीच रहना पूरी तरह से सीख लिया है। यह अलग बात है कि विवाह शादियों के मामले में राजसी लोग अभी भी अपनी पुरानी परंपराओं पर चलते हुए राजघरानों में ही वर या वधू की तलाश करते हैं। इस परंपरा के चलते हिमाचल के राजघरानों की बेटियों की शादियां राजस्थान और मध्य प्रदेश ही नहीं बल्कि नेपाल के राजघरानों में भी हो रही हैं। राजाओं की अधिकतर सम्पत्तियां या तो किराये पर हैं या फिर उनमें वे हैरिटेज होटल चलाने जैसा कोई व्यवसाय कर रहे हैं। व्यवसाय की वजह से जर्जर हो चुके अधिकांश महलों की मुरम्मत भी फिर से हो रही है। हाल ही में जयपुर राजघराने की राजमाता महारानी पद्मिनी देवी ने जिस तरह से अपने नौ वर्षीय नाती लक्ष्यराज का सिरमौर रियासत के नए ‘महाराजा’ के तौर पर मंगल तिलक किया, उससे राजघरानों के इतिहास में लोगों को एक बार फिर झांकने का मौका मिला। रानी पद्मिनी ने भी सिरमौर के राजमहल को फिर से आबाद करने के लिए इसकी मुरम्मत के काम को बड़े पैमाने पर शुरू कराने का निर्णय लिया है।

rajnish manga
26-07-2013, 03:18 PM
विदेश जाने के लिए रानी ने धरा जब सिख युवक का रूप

ब्रिटिश शासनकाल के दौरान भारतीय राजा-महाराजाओं को यूरोप जाने के लिए अंग्रेजी शासन से अनुमति हासिल करनी पड़ती थी। आमतौर पर ब्रिटिश शासक राजाओं को तो यह अनुमति दे देते थे लेकिन जानबूझ कर उनके साथ उनकी रानियों को जाने की इजाजत नहीं दी जाती थी। कपूरथला के राजा जगतजीत सिंह के साथ भी एक बार ऐसा ही हुआ। वह अपनी रानी के साथ यूरोप जाना चाहते थे लेकिन अंग्रेजों ने उन्हें इसकी इजाजत नहीं दी। हिमाचल के कांगड़ा से संबंध रखने वाली कनरी नामक इस रानी के साथ महाराजा की दूसरी शादी हुई थी और महाराजा इससे अत्यधिक प्यार करते थे। वह किसी भी हालत में रानी कनरी को यूरोप के दौरे पर साथ ले जाना चाहते थे। बार-बार आग्रह करने पर भी जब अंग्रेज शासक इसके लिए राजी नहीं हुए तो इसके लिए उन्होंने एक अजीबो-गरीब तरकीब निकाली।

महाराजा द्वारा बनाई गई एक गोपनीय रणनीति के तहत रानी को एक सिख का रूप धारण कराकर लड़का बना दिया गया। सिख युवक बनी रानी कनरी भी नौकर के तौर पर बम्बई बंदरगाह पर महाराजा के लाव लश्कर के साथ उसी जहाज पर सवार हो गई जो विदेश जा रहा था। जहाज के चलते ही रानी कनरी अपने असली रूप में आ गई। रानी कनरी ने महाराजा के साथ फ्रांस, इंग्लैंड और मिश्र ही नहीं बल्कि अमेरिका का भी दौरा किया। लंदन में महाराजा ने ड्यूक ऑफ यार्क की शादी में भी भाग लिया लेकिन वहां वह रानी कनरी को नहीं ले गए। पेरिस में महाराजा के साथ खिंचवाए गए अपने एक फोटो में रानी कनरी अपने असली रूप में नजर आई। महाराजा का यह विदेश दौरा करीब आठ महीने चला। वापस लौटने पर बम्बई में महाराजा का स्वागत भारत के वायसराय के मिलिट्री सेक्रेटरी ने किया। लेकिन इससे पहले ही रानी कनरी ने एक बार फिर सिख युवक का रूप धर कर आसानी से अंग्रेजों को चकमा दे दिया। अंग्रेजों की आंख में धूल झोंक कर रानी को अपने साथ विदेश घुमाने की महाराजा कपूरथला से जुड़ी यह घटना इतिहास के पन्नों में आज भी दर्ज है।
(साभार: दैनिक ट्रिब्यून के ऑन-लाइन निबंध से)

aspundir
26-07-2013, 10:07 PM
नायाब तथा अनूठे सन्दर्भों को प्रस्तुतिकरण के लिये आभार तथा अभिनन्दन

rajnish manga
27-07-2013, 10:54 AM
नायाब तथा अनूठे सन्दर्भों को प्रस्तुतिकरण के लिये आभार तथा अभिनन्दन



पसंद करने के लिए हार्दिक धन्यवाद, पुंडीर जी.

dipu
27-07-2013, 06:42 PM
thanks

jai_bhardwaj
27-07-2013, 08:13 PM
एक और उत्कृष्ट संकलन को मंच में साझा करने के लिए हार्दिक आभार है बन्धु।

abhisays
27-07-2013, 08:34 PM
एक ऐसा सूत्र जिसे देख कर बिना पढ़े नहीं छोड़ा जा सकता। :cheers:

rajnish manga
27-07-2013, 11:24 PM
नायाब तथा अनूठे सन्दर्भों को प्रस्तुतिकरण के लिये आभार तथा अभिनन्दन

thanks

एक और उत्कृष्ट संकलन को मंच में साझा करने के लिए हार्दिक आभार है बन्धु।

एक ऐसा सूत्र जिसे देख कर बिना पढ़े नहीं छोड़ा जा सकता। :cheers:

:hello:

पुंडीर जी, दीपू जी, जय जी और अभिषेक जी को हार्दिक धन्यवाद देना चाहता हूँ कि उन्होंने सूत्र को पसंद किया और इस पर अपनी सकारात्मक टिप्पणियाँ दे कर मुझे प्रोत्साहित किया.