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View Full Version : हिन्दी और उर्दू के विद्वानों से एक अपील


Hatim Jawed
08-08-2013, 02:05 PM
हिन्दी और उर्दू के विद्वानों से एक अपील
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एक भाषा के शब्दों का प्रयोग दूसरी भाषा में करने की परंपरा बहुत पुरानी है और सराहनीय भी है, क्योंकि यह भाषाओं के बीच फ़ासले कम करती है ।जब भाषाओं के बीच के फ़ासले कम होंगे, तो ज़ाहिर-सी बात है कि उन भाषाओं से जुड़े लोग भी एक-दूसरे के क़रीब आएंगे, एक-दूसरे की भावनाओं को समझेंगे, एक-दूसरे की परंपराओंसे परिचित होंगे, एक-दूसरे के बीच विचारों का आदान-प्रदान होगा, फलत: पूरे विश्व में आपसी प्रेम और भाईचारे का संचार होगा ।
अरबी से चलकर फ़ारसी के रास्ते उर्दू और हिन्दी तक का सफ़र तय करने वाली शायरी की विधा, अद्वितीय सौंदर्य की मल्का "ग़ज़ल" ने हिन्दी और उर्दू के बीच शब्दों के आदान-प्रदान की इस परंपरा को काफ़ी बढ़ावा दिया है । परंतु एक भाषा के किसी शब्द का प्रयोग दूसरी भाषा में करते समय इसका ध्यान अवश्य रहना चाहिए कि उस शब्द का उच्चारण मूल रूप में ही हो, क्योंकि कोई भी शब्द चाहे वह किसी भी भाषा का हो, अपना मूल उच्चारण खोने के बाद अपना आकर्षण एवं प्रभाव खो देता है । कभी-कभी तो ग़लत उच्चारण से अर्थ का अनर्थ हो जाता है और स्थिति हास्यास्पद हो जाती है ।
उर्दू वर्णमाला में हिन्दी वर्णमाला के 'ण' के लिए कोई वर्ण नहीं है जिस कारण 'क्षण-क्षण' को 'छन-छन', 'कारण' को 'कारन' , 'गणतंत्र' को 'गनतंत्र' लिखा एवं उच्चारित कियअ जाता है । उसी प्रकार हिन्दी वर्णमाला में उर्दू वर्णमाला के कई वर्ण नही हैं जिनकी व्यवस्था कुछ वर्णों के नीचे बिन्दु लगाकर कर ली गई है, जैसे -- क़ , ख़ , ग़ , फ़ । परन्तु उर्दू की दो मात्राएं ' ह्रस्व ए ' और ' ह्रस्व ओ ' ऐसी हैं जिनके लिए हिन्दी में अभी तक कोई व्यवस्था नहीं की जा सकी है जिस कारण उर्दू के बहुत सारे शब्दों को हिन्दी में विकृत रूप में लिखा एवं उच्चारित किया जाता है । जैसे---कोहराम, ख़ोदा, ग़ोरूब, मोसाफ़िर, में क्रमशः क, ख, ग़, और म में 'ह्रस्व ओ' की मात्रा लगी हुइ है परंतु हिन्दी में इस मात्रा की व्यवस्था नहीं होने के कारण इन शब्दों को क्रमशः कुहराम, ख़ुदा, ग़ुरूब, मुसाफ़िर लिखा एवं उच्चारित किया जाता है । इसी प्रकार हेना, एबादत, लेबास, बेरादर, जेहाद, तेजारत में क्रमशः ह, ए, ल, ब, ज, त, में 'ह्रस्व ए' की मात्रा लगी हुई है । परंतु हिन्दी में इस मात्रा की व्यवस्था नहीं होने के कारण इन शब्दों को क्रमशः हिना, इबादत, लिबास, बिरादर, जिहाद, तिजारत लिखा एवं उच्चारित किया जाता है । जिस कारण इन शब्दों के प्रभाव, आकर्षण एवं माधुर्य कमी आ जाती है ।
मेरी समझ से इस समस्या का समाधान निम्नांकित तरीक़े से किया जा सकता है----
उर्दू में हिन्दी के 'ण' और 'न' दोनों के लिए एक ही हर्फ़ 'नून' का प्रयोग किया जाता है । मेरे विचार से इसके निदानार्थ 'न' के लिए 'नून' का प्रयोग किया जाए और 'ण' के लिए 'नून' के बिन्दु को गुणा के चिन्ह से बदल दिया जाए और उसका नाम 'नून सानी' रख दिया जाए । इसी प्रकार हिन्दी में 'ह्रस्व ए' और 'ह्रस्व ओ' की मात्राओं को दर्शाने के लिए 'ए' और 'ओ' की मात्राओं के चिन्हों को उलट कर प्रयोग किया जाए ।
उर्दू और हिन्दी के विद्वानों से मेरी विनती है कि इस पर विचार करें तथा विचारोपरांत अगर यह तर्क संगत लगे तो व्यवहार में लाने की दिशा में पहल करें ।
--- [अंतिका प्रकाशन से प्रकाशित मेरे ग़ज़ल-संग्रह ' वक़्त की हथेली में ' के ' इब्तिदाई शब्द ' का अंश ]
----हातिम जावेद

internetpremi
09-08-2013, 06:08 PM
Quote:
अरबी से चलकर फ़ारसी के रास्ते उर्दू और हिन्दी तक का सफ़र तय करने वाली शायरी की विधा, अद्वितीय सौंदर्य की मल्का "ग़ज़ल" ने हिन्दी और उर्दू के बीच शब्दों के आदान-प्रदान की इस परंपरा को काफ़ी बढ़ावा दिया है ।
Unquote:

सहमत।
पुरानी हिन्दी फिल्मी गानों में भी हिन्दी - उर्दू का सुन्दर संगम है।