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View Full Version : एक छन्द मुक्त रचना - माँ को गया है भूल


आकाश महेशपुरी
16-08-2013, 06:28 PM
एक छन्द मुक्त रचना-

माँ को गया है भूल
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कहती थी जिसे फूल
वो बन गया है शूल
बन गया है अधिकारी
माँ को गया है भूल

उदर मेँ लहू से
सीँचा जिसको
कहती थी जीवन का
बागीचा जिसको
माँ के बिना चैन से
वो रहता नहीँ था
अब कितना बदल गया है
माँ को माँ नहीँ कहता
बनाया जिसने काबिल
उसे समझता है फिजूल-
बन गया है अधिकारी
माँ को गया है भूल

सुन्दर है घर उसका
कोहिनूँर की तरह
नाचते हैँ घर वाले
मस्त मयूर की तरह
चमकीले महल मेँ
रोज धुलतीँ हैँ कुर्सियाँ
सुनता नहीँ है कोई
बूढ़ी माँ की सिसकियाँ
माँ के सूखे चेहरे पे
ज़म गयी है धूल-
बन गपा है अधिकारी
माँ को गया है भूल

माँ के मधुर हृदय मेँ
पड़ गये हैँ छाले
आँखोँ पे छा रहे
संकट के बादल काले
अपने लाडले को
आशीष खुशी का देकर
माँ करती है प्रार्थना
ऐ खुदा मुझे उठा ले
माँ देना जानती है
करती नहीँ वसूल-
बन गया है अधिकारी
माँ को गया है भूल ।

रचना - आकाश महेशपुरी
Aakash maheshpuri
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पता-
वकील कुशवाहा उर्फ आकाश महेशपुरी
ग्राम- महेशपुर
पोस्ट- कुबेरस्थान
जनपद- कुशीनगर
उत्तर प्रदेश

rajnish manga
16-08-2013, 10:09 PM
:bravo:

अति सुन्दर, आकाश जी. यह वर्तमान समय की भोगवादी, भौतिकतावादी संस्कृति का ही दुष्परिणाम कह सकते हैं जिसने मां जैसे पवित्र रिश्ते का भी अवमूल्यन कर दिया है. मां-बेटे के रिश्ते की ठंडक और निराशा की पराकाष्ठा नहीं तो क्या है जिसमे एक माँ परमात्मा से अपने उच्च पद पर बैठे अधिकारी बेटे के लिए खुशियाँ और अपने लिये जीवन से मुक्ति मांग रही है? इसे मातृत्व का मोहभंग न कहें तो क्या कहेंगे?