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View Full Version : जीवन की छोटी छोटी पर महत्वपूर्ण बातें


rajnish manga
19-08-2013, 12:16 AM
छोटी-छोटी बातों में तलाशे खुशियां
‘कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता, कहीं जमीं तो कहीं आसमां नहीं मिलता’
उपरोक्त गीत की पंक्तियां हर इंसान के दिल में एक चुभन सी पैदा कर देती है. हर सुबह आंख खुलते ही अपना आज भूलकर कल बेहतर करने की जो जद्दोजदह शुरू होती है, देर रात तक खत्म नहीं होती. हालात इस कदर खराब हो चुके हैं कि मुकम्मल जहां की चाहत दिल में संजोए अपने आज से भी वफा नहीं हो रही है. जाने अनजाने हम उन रास्तों पर चल ही पड़ते हैं, जिन पर हमको दुःखदर्द के सिवा कुछ नहीं मिलता. वजह साफ है कि हम सब कुछ जानते हुए भी वह काम कर देते हैं, जो नहीं करने चाहिए जैसे हम जानते हैं कि हमारा नेता भ्रष्ट हो चुका है, फिर भी उसको दोबारा अपना भविष्य तय करने के लिए विजयी घोषित करवा देते हैं, फिर अगले पांच साल तक उसके कर्मों की करनी का फल हम भुगतते हैं. क्योंकि हमने मतदान वाले दिन अपने वर्तमान को भूलकर अपने सुनहरे कल का निर्माण करने के लिए अपना नया ब्रह्मा निर्मित करते हैं. यही ब्रह्मा हमारे लिए रोजमर्रा की चीजों के दाम तय करते हैं, हमारे लिए नियम-कानून बनाते हैं, यह अलग बात है कि वह खुद इन पर अमल नहीं करते. और अमल करें भी क्यों? रचनाकार तो वह खुद ही है. उन्होंने आम इंसान को फंसाने के लिए लोकतंत्र रूपी चक्रव्यूह की रचना की है, तो इससे निकलने के रास्तों का निर्माण भी कर ही रखा होगा. फिर हमारा खुद पर भी तो विश्वास धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा है और जिनको अपने आज पर विश्वास नहीं होता, वही अपने कल का इंतजार करते हैं, और कल है कि कभी आता ही नहीं. क्योंकि कल तो कभी आने वाला नहीं इसलिए हमारी वह खुशियां, जो कल ने अपने पास रखी है, वह हम तक कैसे पहुंचेगी. ऐसे में जरूरी हो जाता है कि हम कल की उम्मीद ही छोड़ दें और अपने आज पर विश्वास करें, अगर हमको अपने आज पर विश्वास हो गया तो हमको बड़ी खुशी तो नहीं, पर छोटीछोटी खुशियां जरूर मिल जाएगी. जो हमारे आसपास ही रहती है, पर उनको देख या महसूस नहीं कर पाते. फिर हमारा छोटा सा जहां हमारा घर ही है. कहते हैं न कि बूंद-बूंद करके गागर भरती है, ठीक उसी प्रकार छोटी-छोटी बातों में छोटी-छोटी खुशियां तलाश कर हम अपने जीवन को खुशियों से भर सकते हैं. जब हम ऐसा नहीं कर पाते तो एक बड़ी खुशी की तलाश में अपनी छोटी-छोटी खुशियों को भूल जाते हैं. अगर अपनी रोजमर्रा की दिनचर्या में ही घटनाओं और बातों पर ध्यान देकर उनको सुधारने की कोशिश करें तो संभव है कि हमको हर बात में एक-एक खुशी मिल जाएगी. अगर हम ऐसा कर पाते हैं तो हमको मुकम्मल जहां तो नहीं, पर मुकम्मल घर जरूर मिल जाएगा.

rajnish manga
19-08-2013, 12:21 AM
मां से करनी हैं छोटी-छोटी बातें

मां....!
बहुत छोटी छोटी दो चार बातें कहनी थीं तुमसे
तुम्हें बहुत हंसी आती सुनकर
तुम्हारे सिवा किसी दूसरे को इससे मतलब भी नहीं
होगा भी तो कोई तुम जैसा समझ नहीं पाएगा मां
समझेगा भी तो मजा नहीं आएगा उसे.......

तुम्हें बताना था कि आज सुबह चाय बनाते हुए
चीनी की जगह नमक डाल दिया मैंने
पर किसी ने नहीं कहा, तू बुद्धू ही रहेगा
तुझसे नहीं बनेगी चाय, हट मैं बनाती हूं....।

मां, तुम्हें बताना था कि आज पिता को
मैंने गोलगप्पे खिला दिए
जो वे कभी नहीं खाते...और कितना मजेदार कि सारा पानी तो
प्लेट में ही ही निकल गया
गोलगप्पा मुंह में रखने से पहले....

तुम्हें बताना था कि
वो जो गली के नुककड़ की दुकान वाला नहीं है,
छोटी छोटी दाढ़ी वाला....उसने साबुन में एक रुपया ज्यादा काट लिया,
बेईमान कहीं का....
पर किसी ने नहीं समझाया कि
करेगा सो भरेगा....तू एक रुपये के लिए जान मत दे....

मां, तुम हमेशा डांट लगाती थीं ना
कि हर सब्जेक्ट की कॉपी के पीछे वाले पन्ने कविताओं से क्यों भर देता हूं
अब देख कितने सारे लोग बुलाते हैं यही कविताएं सुनने को....मुझे
देख ये शॉल भी ओढ़ाया, और......

तू जानती है ना कितना अच्छा भाषण दे लेता हूं
बड़ी बड़ी गोष्ठियों, जलसों...सभाओं में अब भी देता हूं
उदारवाद, बाजारवाद, विदेशी पैसा, शिक्षा की जरुरत.....सब कहता हूं
बड़े बड़े लोग सुनते हैं....बडी बड़ी बातें करता हूं.....
बस छोटी छोटी बातें सुनने को कोई नहीं है मां
तू तो छोटी छोटी बातों पर कितना खुश हो जाती थीं
बड़ी बड़ी बातें जीने का दिखावा करने को ठीक हैं
पर जीना तो इन्हीं छोटी छोटी बातों में ही होता है ना....

तू सुनती तो तुझे कितना मजा आता हर बात में
तू सुनती तो मुझे कितना मजा आता जीने में......
तू प्याज काटने को कहती थीं....तो काटते काटते रोता था
अब भी रोता हूं मां.....प्याज काटते....काटते......

कितनी छोटी छोटी बातें हैं मां,
जीना तो छोटी छोटी बातों में ही होता है....तुझे तो पता है मां.....
तू सुन लेती तो .....तू सुन तो लेती ना एक बार.....


- माया मृग

rajnish manga
19-08-2013, 12:28 AM
छोटी-छोटी मगर मोटी बातें

बुराईयां जीवन में आयें उससे पहले उन्हें मिट्टी में मिला दो;
अन्यथा वे तुम्हें मिट्टी में मिला देंगीं।
**
यदि तुम्हें कोई नज़र अंदाज़ कर दे तो बुरा मत मानना।
लोग अक्सर बर्दास्त से बाहर महंगी चीज़ों को नज़र अंदाज़ कर देते हैं।
**
जीवन का सबसे बड़ा अपराध - किसी की आँख में आंसू आपकी वजह से होना।
और
जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि - किसी की आँख में आंसू आपके लिए होना।
**
प्यार दिल में होना चाहिए लफ़्ज़ों में नहीं;
और नाराजगी लफ़्ज़ों में होनी चाहिए दिल में नहीं!
**
जिंदगी में दो चीज़ें हमेशा टूटने के लिए ही होती हैं:
"सांस और साथ"
सांस टूटने से तो इंसान 1 ही बार मरता है;
पर किसी का साथ टूटने से इंसान पल-पल मरता है।

rajnish manga
19-08-2013, 12:31 AM
छोटी-छोटी मगर मोटी बातें (2)

ज्ञान का घमंड सबसे बड़ी अज्ञानता है।
एंव
अपने अज्ञानता की सीमा को जानना ही सच्चा ज्ञान है।
**
मनुष्य सुबह से शाम तक काम करके उतना नहीं थकता;
जितना क्रोध और चिंता से एक क्षण में थक जाता है।
**
कर्म करने से हार या जीत कुछ भी मिल सकता है।
लेकिन कर्म न करने से केवल हार ही मिलती है।
**
जीवन के लिए शानदार नज़रिया:
लोग हमारे बारे में क्या सोचते हैं - अगर यह भी हम सोचेंगे तो लोग क्या सोचेंगे।
जीयो बिंदास।

rajnish manga
19-08-2013, 12:33 AM
छोटी-छोटी मगर मोटी बातें (3)

जब लोग आप की आलोचना कर रहें हों,
आप पर चिल्लारहे हो, या आप का दिल दुखा रहे हों
आप परेशान ना हों, बस एक बात याद रखें
"हर खेल में दर्शक ऐसा ही करते हैं, लेकिन खिलाडी़ अपना काम करते रहते हैं"
**
नारद जी ने कृष्णा से पूछा, "प्रभु, इस दुनिया में सब के सब दुखी क्यों हैं?"
कृष्णा जी बोले, "खुशियाँ तो सबके पास हैं, बस एक की ख़ुशी से दूसरा परेशान है।
**
झूठ, बेवजह दलील देता है;
सच खुद अपना वकील होता है!
**
ईश्वर का दिया कभी अल्प नहीं होता;
जो टूट जाये वो संकल्प नहीं होता;
हार को लक्ष्य से दूर ही रखना;
क्योंकि जीत का कोई विकल्प नहीं होता।
**

गरीबी छोटा दुःख है, कर्जा दुःख महान;
रोग दुःख इनसे बड़ा, कलह दुःख की खान।
छोटी-छोटी मगर मोटी बातें (https://www.facebook.com/pages/%E0%A4%9B%E0%A5%8B%E0%A4%9F%E0%A5%80-%E0%A4%9B%E0%A5%8B%E0%A4%9F%E0%A5%80-%E0%A4%AE%E0%A4%97%E0%A4%B0-%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%9F%E0%A5%80-%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%87%E0%A4%82/540880315971918?hc_location=timeline)
सोचो और समझो!!
मीठा बोलने से शुगर नहीं होती।

dipu
19-08-2013, 07:58 AM
बहुत बदिया

Dr.Shree Vijay
19-08-2013, 06:38 PM
बेहतरीन शब्द सयोंजन............................................ ......

rajnish manga
19-08-2013, 09:13 PM
छोटी-छोटी मगर मोटी बातें (4)

दुनियाँ मे हजारों भाषायेँ होते हुए भी मुस्कुराहट सभी की एक समान है।
लेकिन सबसे अच्छी मुस्कुराहट वो है जो इंसान के चेहरे पर कठिनाईयों मे भी बनी रहे।
**
एक तलवार की कीमत होती है उसके धार से;
और
एक इंसान की कीमत होती है उसके व्यवहार से।
**
कोई कार्य तुच्छ नहीं होता:
यदि मनपसंद कार्य मिल जाए, तो मूर्ख भी उसे पूरा कर सकता हैं।
किंतु बुद्धिमान इंसान वही हैं, जो प्रत्येक कार्य को अपने लिए रुचिकर बना ले।
**
जब आप कुछ गंवा बैठते हैं, तो उससे प्राप्त शिक्षा को न गंवाएं।
**
सच्ची दोस्ती अच्छी सेहत की तरह होती है। इसकी कीमत का पता तब ही चलता है जब हम इसे खो देते हैं।

rajnish manga
19-08-2013, 09:17 PM
छोटी-छोटी मगर मोटी बातें (5)

किसी व्यक्ति को खाना देंगे तो उसका एक दिन के लिए पेट भरेगा।
यदि उसे कोई काम करना सिखा देंगे तो उसका जिंदगी भर पेट भरेगा।
**
जब लोग आप की आलोचना कर रहें हों,
आप पर चिल्ला रहे हो,या आप का दिल दुखा रहे हों
परेशान ना हो बस एक बात याद रखें
"हर खेल में दर्शक ऐसा ही करते हैं,लेकिन खिलाडी़ अपना काम करते रहते हैं"
**
दुनिया में हर काम के लिए दूसरा मौका अवश्य रहता है
लेकिन याद रखें,
"लेकिन दोबारा जीने का मौका नहीं मिलता,अपने जीवन का पूरा आनन्द उठाये"...
**
हर सुबह भगवान हमें अपने जीवन का एक और इनिंग खेलने का मौका देते हैं। क्यों ना इसे बेहतर तरीके से खेला जाए.
**

Dr.Shree Vijay
19-08-2013, 09:17 PM
वाह क्या कहना...........................

rajnish manga
19-08-2013, 09:21 PM
छोटी-छोटी मगर मोटी बातें (6)

दुनिया में सबसे आसान क्या है और सबसे मुश्किल क्या है ?

1. सबसे आसान- दूसरो की गलती बताना।

2. सबसे मुश्किल- अपनी गलती मानना।
**
1. मानव स्वभाव भी अजीब है, जो अपनी ग़लतियों से ही सबक लेता है, उदाहरणों से नही।

2. जो सबकी प्रशंसा करते हैं दरअसल वे किसी की भी प्रशंसा करते हैं।


3. मैं अपने उस कार्य में असफल होना चाहूँगा जिसमें आगे मुझे सफलता अवश्य मिले।


4. उड़ने की अपेक्षा जब हम झुकते हैं, तो विवेक के अधिक करीब होते हैं।


5. ज़रा शिद्दत से तारे तोड़ने की ज़िद तो ठानो तुम,
यदि किस्मत काम न आई तो मेहनत काम आएगी।
**

rajnish manga
19-08-2013, 09:32 PM
ग़ज़ल / अर्थ बहुत ही गहरे हैं

ये छोटी छोटी बहरें है,
अर्थ बहुत ही गहरे है,

वो छोड़ के मुझको जहां गया,
हम आज वही पर ठहरे है,

मिलना कौन नहीं चाहेगा,
पर लगे बहुत से पहरे है,

बाते कोई नहीं सुनता है,
सब के सब ही बहरे है,

तूफ़ान समंदर में आया,
कारण कौन सी लहरें है?

कौन सही और कौन गलत,
हर चेहरे पर सौ चेहरे है.!!!

(डॉ. अनिल कुमार)

Dr.Shree Vijay
19-08-2013, 09:34 PM
बेहतरीन........................................... ....

rajnish manga
19-08-2013, 09:59 PM
बड़े बड़े देशों में ...
आभार: जुगनू शारदेय जी

एक सिनेमाई वाक्य है : बड़े बड़े देशों में छोटी छोटी बातें होती रहती हैं। यह कहना मेरे लिए मुश्किल है कि यह मौलिक सोच है या हिंदी सिनेमा की परंपरा में प्रेरित है। यह वाक्य राजनीति के लिए इस्तेमाल हो सकता है। हमारे देश की राजनीति में इसका इस्तेमाल भी होता है। अंतर इतना है कि सिनेमा की समझ सत्ता बचाने के सोच में बदल कर हो जाता है कि बड़ी बड़ी सत्ता के लिए समर्थन देने वाले छोटे दलों का ख्याल रखा जाता है। सिनेमा में ऐसे विचार प्रेम करने के लिए और मारपीट करने के लिए एकता कपूर – विद्या बालन की जोड़ी के डर्टी पिक्चर के पहले हुआ करता था। डर्टी पिक्चर की सफलता के बाद सिनेमा का नारा वही हो गया है, जो इस पेशे का नीति वाक्य है कि एंटरटेनमेंट, एंटरटेनमेंट और एंटरटेनमेंट। जब एंटरटेनमेंट, एंटरटेनमेंट और एंटरटेनमेंट नहीं होता है, तो कोई प्लेयर हो जाता है तो कोई एजेंट विनोद और होता है … एंटरटेनमेंट, एंटरटेनमेंट और एंटरटेनमेंट … तो कोई कहानी सफलता की कहानी बन जाती है। पानसिंह तोमर न - न करते हुए हिट भी हो जाता है और सांसदों की आलोचना का बहाना भी। इसी से आप सिनेमा की ताकत समझ सकते हैं कि नैतिकता के खिलाड़ियों को भी अपनी बात कहने के लिए उसका सहारा लेना पड़ता है। लेकिन सिनेमा को अपने एंटरटेनमेंट, एंटरटेनमेंट और एंटरटेनमेंट के खेल में मुकाबला करना पड़ता है – अब तक एंटरटेनमेंट के बादशाह माने जाने वाले बिना खेल के खेल क्रिकेट से।

दक्षिण भारत मेंसिनेमा के व्यक्ति भगवान हो जाते हैं। उनके मंदिर भी बन जाते हैं। हमारे यहां – हिंदी पट्टी में तो शायद सिनेमा का कोई व्यक्ति भगवान नहीं बना है। हालांकि हम भी कम दीवाने नहीं हैं। शायद अमिताभ बच्चन का कोई मंदिर पश्चिम बंग में बनाया गया था। लेकिन हम सिनेमा के किसी व्यक्ति को भगवान नहीं कहते। बहुत हुआ तो अमिताभ बच्चन को बिग बी कह डालते हैं और शाहरुख खान को किंग खान। यह कहना भी या तो फिल्मी पत्रकारिता या विज्ञापन का काम करने वालों की ही नारेबाजी या लफ्फाजी होती है। आखिर विज्ञापन एजेंसियों ने ही अमिताभ बच्चन को सदी का यानी बीसवीं सदी का महानायक बना दिया है। लेकिन क्रिकेट के एक खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर को विज्ञापन एजेंसियों से ज्यादा क्रिकेट के कारोबारियों ने उन्हें भगवान बना दिया – फिर हमने भी उन्हें क्रिकेट का भगवान मान लिया। इस भगवान को इस देश का एक बहुत बड़ा सा छोटा सम्मान भारत रत्न चाहिए – ऐसा इस भगवान के भक्तों की मांग है।

rajnish manga
19-08-2013, 10:07 PM
यह भी एक सच है कि हमारे देश में भारत रत्न से ले कर पद्मश्री तक जो सरकारी सम्मान है, वह अब वाद-विवाद का प्रिय विषय हो कर रह गया है। इसके किसी नियम में हेर फेर कर तय किया गया कि खिलाड़ियों को भी भारत रत्न दिया जाए। मांग शुरू हो गयी कि तेंदुलकर को भी भारत रत्न से सम्मानित किया जाए। इस भगवान की बड़ी बड़ी उपलब्धियां हैं। उन्होने बड़ी प्रतीक्षा के बाद बांग्ला देश के खिलाफ अपना सौवां शतक भी बनाया। यह भी मजे की बात है कि भगवान जीता और भारत हारा। यूं भी आज के भारत में इतने भगवान हैं कि उनसे भारत लगातार हार रहा है।

पता नहीं क्या वजह है, और हार कोई कारण तो हो नहीं सकता। हमारा देशप्रेम हमें समझाता है कि सारे जहां से हारो, बस पाकिस्तान से न हारो। वहां जीत लिया तो जग जीत लिया। हिंदुत्व की इससे बड़ी कोई और जीत नहीं हो सकती। फिर भी कोई तो बात होगी कि इस बिना खेल के खेल के प्रायोजकों ने इस पर सवाल उठाना शुरू कर दिया है। क्रिकेट का एक बड़ा प्रायोजक कह रहा है कि चेंज द गेम। उसके विज्ञापन में एक अनजान लड़का रॉकस्टार रणवीर कपूर को समझा रहा है कि थोड़ा फुटबाल भी खेल लिया करो। और वह भी कह रहे हैं कि चेंज द गेम।

Arvind Shah
20-08-2013, 03:44 PM
बहुत बढ़ीया !
मित्र अब तक पढी पोस्टों के सन्दर्भ में एक छोटी टीप्पणी—

..सोये हुए को जगाना बहुत ही आसान है ! हल्की सी आहट पर भी जाग जाता है !! ...पर जागे हुए के भ्रम में सोये हुओ को जगाने में सदियां बित जाती है !!! अपने देश के लोग वर्तमान में ऐसी ही अवस्था में है । अंग्रेजो के ज़माने सरीखी आततायी बर्बरता ही शायद नये युग के निर्माण का सबब बने !!!

rajnish manga
20-08-2013, 07:41 PM
बहुत बढ़ीया !
मित्र अब तक पढी पोस्टों के सन्दर्भ में एक छोटी टीप्पणी—

..सोये हुए को जगाना बहुत ही आसान है ! हल्की सी आहट पर भी जाग जाता है !! ...पर जागे हुए के भ्रम में सोये हुओ को जगाने में सदियां बित जाती है !!! अपने देश के लोग वर्तमान में ऐसी ही अवस्था में है । अंग्रेजो के ज़माने सरीखी आततायी बर्बरता ही शायद नये युग के निर्माण का सबब बने !!!

अरविंद शाह जी, आपके अनमोल वचनों के लिए बहुत बहुत धन्यवाद. हमने बचपन में एक कहानी पढ़ी थी जिसमे बताया गया था कि मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन है आसान रास्ता या शॉर्टकट. इन शॉर्टकट्स ने हमें समझौतावादी बनाना सिखाया है और सुविधाओं का दास बना दिया है. ये वो रास्ते हैं जिन पर चल कर हम कहीं न कहीं अपनी नैतिकता से डिग जाते हैं और हमें इसका अहसास तक नहीं होता. अब यह आज की युवा पाढ़ी के ऊपर है कि वह देश के कल्याण के लिए अपनी सोच को राष्ट्रीय हितों और संस्कारों के अनुरूप विकसित करें.

एक बार फिर आपकी विचारोत्तेजक टिप्पणी के लिए मेरा आभार स्वीकार करें, अरविंद जी.

Bansi Dhameja
10-10-2013, 10:21 PM
rajnish manag ji
बहुत ही अच्छी सीख हम सब को अपने जीवन में उतारने के लिए.
अच्छे जीवन बिताने का रह्स्य सामने रख दिया है.
धन्यवाद

rajnish manga
20-10-2013, 12:10 PM
rajnish manag ji
बहुत ही अच्छी सीख हम सब को अपने जीवन में उतारने के लिए.
अच्छे जीवन बिताने का रह्स्य सामने रख दिया है.
धन्यवाद






आपके उत्साहवर्धक वचनों के लिये मेरा आभार स्वीकार करें बंसी जी.

rajnish manga
20-10-2013, 12:14 PM
यह छोटी बात नहीं है
(इंटरनेट से साभार)




नहीं। वे तीनों परिहास नहीं कर रहे थे। उपहास तो बिलकुल ही नहीं कर रहे थे। मुझे आकण्ठ विश्वास और अनुभूति है कि वे तीनों मुझे भरपूर आदर और सम्मान देते हैं। हाँ, साप्ताहिक उपग्रह में मेरे स्तम्भ ‘बिना विचारे’ में मेरे लिखे पर तनिक विस्मित होकर प्रसन्नतापूर्वक बात कर रहे थे। तीनों अर्थात् सर्वश्री डॉक्टर जयन्त सुभेदार, वरिष्ठ अभिभाषक मधुकान्त पुरोहित और डॉक्टर समीर व्यास।

अपनी और अपनी उत्तमार्द्ध की नियमित जाँच कराने के लिए जब डॉक्टर सुभेदार साहब के कक्ष में पहुँचा तो मधुभैया के कागज देखे जा रहे थे। मैं पंक्तिबद्ध हो गया। मेरा क्रम आने पर मैंने अपने कागजात दिखाए और डॉक्टर साहब से निर्देश लेने के बाद अपनी ओर से कुछ जानना चाहा तो मधु भैया तपाक् से बोले - ‘इनसे सम्हल कर बात करना। पता नहीं ये किस बात पर कब, क्या लिख दें!’ सुभेदार साहब ने हाँ में हाँ मिलाई और उतने ही तपाक् से बोले - ‘इन्हें तो लिखने के लिए कोई सब्जेक्ट चाहिए। आपकी-हमारी बातों में से अपना सब्जेक्ट निकाल लेंगे।’ डॉक्टर समीर निःशब्द मुक्त-मन हँस दिए। हँस तो तीनों ही रहे थे। मुझे कोई उत्तर सूझ नहीं पड़ा। उनकी हँसी में शरीक होने में ही मेरी भलाई थी। मैं शरीक हो लिया। मेरी उत्तमार्द्ध के पल्ले कुछ नहीं पड़ा। ऐसे क्षणों में सबका साथ देना ही बुद्धिमत्ता होती है। सो, वे भी सस्मित हम चारों को देखने लगी।

ऐसा मेरे साथ पहली बार नहीं हुआ था। काफी पहले, वासु भाई (श्री वासुदेव गुरबानी) कम से कम दो बार कह चुके थे - ‘दादा! जिन छोटी-छोटी बातों की हम लोग अनदेखी कर देते हैं आप उन्हीं को अपनी कलम से बड़ी और महत्वपूर्ण बना देते हो।’ ऐसा ही कुछ, ‘विस्फोट’ वाले संजय तिवारी (नई दिल्ली) आठ-दस बार कह चुके हैं।

rajnish manga
20-10-2013, 12:17 PM
अपने लिखने पर जब-जब ऐसे जुमले सुने, तब-तब हर बार, अपनी धारणा पर विश्वास और गहरा ही हुआ। मेरा मानना रहा है कि हमारे जीवन में कोई भी बात छोटी नहीं होती। इसके विपरीत, छोटी-छोटी बातें प्रायः ही बड़े प्रभाव छोड़ जाती हैं। बच्चों की बातों की अनदेखी और उपेक्षा करना हमारा स्वभाव है। किन्तु बच्चों की बातें भी हमें सबक सिखा देती हैं। मेरा छोटा भतीजा गोर्की पाँच-सात साल का रहा होगा। दादा ने उसे कोई काम बताया। वह अनसुनी कर जाने लगा। दादा ने कहा - ‘गुण्डे! कहाँ चल दिया?’ तब तक गोर्की दौड़ लगा चुका था। लेकिन दादा की बात सुनकर वह पलटा और घर के बाहर, सड़क से ही चिल्लाया -‘मैं गुण्डा तो आप गुण्डे के बाप।’ और कह कर गोर्की यह जा, वह जा। दादा के पास मौजूद सब लोग ठठा कर हँस दिए। किन्तु दादा गम्भीर हो गए। उसके बाद उन्होंने अपने तो क्या, किसी और के बच्चे को भी ऐसे सम्बोधन से नहीं पुकारा। आप-हम अपने बच्चों को ‘बेवकूफ, गधा, पाजी’ जैसे ‘अलंकरण’ देते रहते हैं। इसका एक ही मतलब हुआ कि हम बवेकूफ, गधे, पाजी के भी बाप हैं। बात छोटी है किन्तु मर्म पर प्रभाव करती है।

मुझे लगता है कि हमारे संकटों में सर्वाधिक व्यवहृत संकट यही है - किसी बात को छोटी मान कर उसकी अनदेखी करना। एक बार की गई अनदेखी कालान्तर में हमारा स्वभाव बन जाती है और इसके परिणाम प्रायः ही कष्टदायक होते हैं।

अपने बड़े बेटे वल्कल को मैंने तब ही मोटर सायकिल सौंपी जब वह 18 वर्ष पूरे कर चुका था और लर्निंग लायसेन्स ले चुका था। मैं जानता था कि वह घर से बाहर, स्कूल के मित्रों के दुपहिया वाहन चलाता है। मैंने उसे ऐसा करने से हमेशा ही हतोत्साहित किया और कहता रहा कि वह अपराध कर रहा है। परिणाम यह हुआ कि वह यातायात नियमों और कानूनों के प्रति आज भी अतिरिक्त सतर्क है। इसके विपरीत, छोटे बेटे तथागत को सोलह वर्ष की अवस्था से पहले ही मोटरसायकिल चलाने को मिल गई। इस मामले में वह अपने बड़े भाई के मुकाबले अधिक असावधान और कम गम्भीर बना हुआ है।

rajnish manga
20-10-2013, 12:19 PM
यदि हम तनिक सावधानी से, तनिक ध्यानपूर्वक देखें तो हमें हमारे आस-पास ऐसे पचासों प्रकरण उपलब्ध हो जाएँगे जहाँ छोटी सी बात ने बाड़ा बिगाड़ दिया या फिर जिन्दगी सँवार दी। रत्नावली के एक उपालम्भ ने दुनिया को गोस्वामी तुलसीदास उपलब्ध करा दिया। मूक मादा क्रौंच के क्षणिक विलाप ने एक लुटेरे को वाल्मिकी बना दिया। वृद्ध, रोगी और मृत देह ने एक राजकुमार को गौतम बु़द्ध बना दिया। भार्या की बेवफाई ने राजा को सन्यासी भर्तहरि बना दिया। ये तो नाम मात्र के उल्लेख हैं।

वस्तुतः, पहली बार की गलती को जब हम छोटी बात या ‘ऐसा तो होता रहता है’ जैसे जुमले उच्चार कर छोड़ देते हैं तो नहीं जानते कि हम गलती को स्वीकार कर उसकी आवृत्ति को प्रोत्साहित कर रहे होते हैं। वह कहानी याद हो आती है जिसमें मृत्यु-दण्ड पाने वाला अपराधी अपनी अन्तिम इच्छा के रूप में अपनी माँ के कान में कुछ कहने की अनुमति लेता है और कुछ कहने के स्थान पर अपनी माँ का कान काट लेता है। कहता है कि यदि पहली बार चोरी करने पर माँ ने टोका होता तो मृत्यु दण्ड की नौबत नहीं आती।

निष्कर्ष यह कि कोई भी बात छोटी नहीं होती। हर बात अपना व्यापक अर्थ रखती है और उससे भी अधिक व्यापक प्रभाव छोड़ती हैं। यदि ऐसा नहीं होता तो मेरा लिखा ‘बिना विचारे’ नहीं पढ़ा जाता और न ही यह टिप्पणी लिखने की स्थिति बनती। यह छोटी बात नहीं है।

(प्रस्तुति: विष्णु बैरागी)
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dipu
20-10-2013, 12:42 PM
great

अज्ञानी
23-10-2013, 07:12 PM
सुन्दर

rajnish manga
23-10-2013, 08:22 PM
great

सुन्दर

दीपू जी और अज्ञानी जी का बहुत बहुत धन्यवाद.

Dr.Shree Vijay
23-10-2013, 08:43 PM
श्री विष्णु जी ने बड़ी ही महत्वपूर्ण बात कहीं हें........................

rajnish manga
23-10-2013, 10:24 PM
श्री विष्णु जी ने बड़ी ही महत्वपूर्ण बात कहीं हें........................




मैं आपकी बात से सहमत हूँ, डॉ श्री विजय जी. विष्णु जी ने सच कहा कि यदि छोटी छोटी बैटन पर समय रहते ध्यान दिया जाये तो वे छोटी ही रहती हैं वरना विकराल रूप ले सकती हैं. प्रतिक्रिया देने के लिये आपका धन्यवाद.