आकाश महेशपुरी
19-08-2013, 01:01 PM
ग़ज़ल-
मुझसा पागल कहाँ जमाने मेँ
सबको खोया है आजमाने मेँ
कैसे कैसे सवाल करता है
जैसे बैठा हूँ उसके थाने मेँ
साथ मेरे कलम न होती तो
वक्त कटता ये सर झुकाने मेँ
माँगे मोटा वो हार सोने का
मैँ तो पतला हुआ कमाने मेँ
कर्म को छोड़ पूजते तुमको
उनको रखते हो आने जाने मेँ
यूँ ना 'आकाश' ग़मज़दा होना
वक्त लगता है उनके आने मेँ
ग़ज़ल - आकाश महेशपुरी
Aakash maheshpuri
. . . . . . . . . . . . . . . . . . . .
पता-
वकील कुशवाहा उर्फ आकाश महेशपुरी
ग्राम- महेशपुर
पोस्ट- कुबेरस्थान
जनपद- कुशीनगर
उत्तर प्रदेश
मुझसा पागल कहाँ जमाने मेँ
सबको खोया है आजमाने मेँ
कैसे कैसे सवाल करता है
जैसे बैठा हूँ उसके थाने मेँ
साथ मेरे कलम न होती तो
वक्त कटता ये सर झुकाने मेँ
माँगे मोटा वो हार सोने का
मैँ तो पतला हुआ कमाने मेँ
कर्म को छोड़ पूजते तुमको
उनको रखते हो आने जाने मेँ
यूँ ना 'आकाश' ग़मज़दा होना
वक्त लगता है उनके आने मेँ
ग़ज़ल - आकाश महेशपुरी
Aakash maheshpuri
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पता-
वकील कुशवाहा उर्फ आकाश महेशपुरी
ग्राम- महेशपुर
पोस्ट- कुबेरस्थान
जनपद- कुशीनगर
उत्तर प्रदेश