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View Full Version : जनाब प्रियदर्शी ठाकुर "ख़याल"


rajnish manga
30-08-2013, 07:40 PM
जनाब प्रियदर्शी ठाकुर "ख़याल"

अगस्त 1946 में मोतिहारी, बिहार में जन्में जनाब "प्रियदर्शी ठाकुर" "ख़याल "उपनाम से शायरी करते हैं। पटना कालेज से स्नातक और दिल्ली विश्व विद्यालय से सनातकोत्तर (इतिहास) शिक्षा प्राप्ति के बाद ख्याल साहब ने 1967 से 1970 तक भगत सिंह कालेज, नयी दिल्ली में अध्यापन कार्य किया। 1970 से आप भारतीय प्रशासनिक सेवा में नियुक्त हुए और नयी दिल्ली मानव संसाधन विकास मंत्रालय के शिक्षा विभाग में सचिव के पद पर कार्यरत रहे. इन्हीं की शायरी से एक चयन यहां प्रस्तुत है:

rajnish manga
30-08-2013, 07:42 PM
न दे सबूत न दावा करे मगर मुझको
सज़ा से पहले वो इल्ज़ाम तो बताया करे

लड़ी सितारों की लाता है कौन किसके लिए
मुझे जो चाहे वो फूलों के हार लाया करे

नहीं है दोस्त के कपड़ों में वो अगर दुश्मन
मिरा मज़ाक़ मेरे सामने उड़ाया करे

अगर वो दोस्त है मेरा, तो टूट जाय जहाँ
वहां से वो मिरी आवाज़ फिर उठाया करे

rajnish manga
30-08-2013, 07:44 PM
आसमानों को निगलती तीरगी के रू-ब-रू
एक नन्हें दायरे भर रौशनी की क्या चले

एक मजबूरी है हर शब् चाँद के हमराह चलना
हो भले बीमार लेकिन चांदनी की क्या चले

हुस्न लफ़्ज़ों में न था, अशआर में शेवा न था
शायरी में सिर्फ आखिर आगही की क्या चले

(शेवा: शैली, ढंग ; आगही : ज्ञान)

rajnish manga
30-08-2013, 07:46 PM
रहनुमाँ ही ढूंढती रह जाएँ ना नादानियाँ
दोस्तों, वीरान हो जाएँ न ये आबादियाँ

आदमी का कत्ल ही जब रोज़मर्रा हो गया
फिर दरख्तों के लिए क्यूँकर फटें अब छातियाँ

क्यूँ नहीं सोचा कि अपना घर भी है आखिर यहाँ
गुलसितां को राख करके ढूढ़ते हो आशियाँ

जंगलों से शहर हो गये और हवाएं ज़हर-सी
हम नयी पीढी को विरसे में न दें वीरानियाँ
**

दास्ताँ दिलचस्प थी वो धूप, तितली, फूल की
वक्त बदले में मगर मेरी जवानी ले गया

मेरी बातें अनसुनी कीं, मेरा चेहरा पढ़ लिया
लफ्ज़ उसने फेंक डाले और मानी ले गया

रूप का दरिया था वो, सब बुत बने देखा किये
हमको पत्थर कर गया ज़ालिम रवानी ले गया

rajnish manga
30-08-2013, 07:48 PM
“ख्याल” साहब अपनी शायरी के बारे में कहते हैं " ज़िन्दगी में हर शख्स वही करता है या करने की कोशिश करता है जो उसे अच्छा लगता है और मेरी राय में सभ्य आचरण और सलीके के दायरों में रहते हुए हर एक को करना भी वही चाहिए जो वह चाहता हो, क्यूँ की ज़िन्दगी फिर दुबारा मिलती हो इसका कोई पक्का सबूत नहीं पाया जाता। मुझे ग़ज़ल कहना अच्छा लग रहा है, सो ग़ज़ल कह रहा हूँ।"

उसे कहो कि वो अब मुझसे दिल्लगी न करे
उदासियों की कसक मेरी शबनमी न करे

उतर न आयें कहीं ख़्वाब भी बगावत पर
वो इस कदर मेरी नींदों की चौकसी न करे

रहीं न याद मुझे सुबह रात की बातें
मज़ाक मुझसे तो यूँ मेरी तिश्नगी न करे

rajnish manga
30-08-2013, 07:50 PM
जिस शायर के लिए जनाब वसीम बरेलवी साहब फरमाते हैं कि "ख्याल साहब की शायरी धूप की तरह खिलती, तितली की तरह मचलती और फूल की तरह महकती सोच का खज़ाना है", उसके लिए और क्या कहा जाय?

रूह तक कुचली है लोगों ने मिरी पाँव तले
और उस पर ये सितम है, मुझको समझा रास्ता

फैसला मेरा गलत हो ये तो मुमकिन है जरूर
हक़ मुझे भी था मगर चुनने का अपना रास्ता

उसने पूछा नाम तो मेरा मगर उस वक्त तक
आ चुका था ख़त्म होने पर हमारा रास्ता
**
यही बहुत है अगर मेरे साथ साथ चले
वो मेरे बख्त के पत्थर तो ढो नहीं सकता
(बख्त: भाग्य)

न याद आयें वो हरदम, मगर मैं पूरी तरह
भुला सकूँ कभी उनको, ये हो नहीं सकता

जो शै मिली ही नहीं गुम वो मुझसे क्या होगी
ये तय समझ कि तुझे अब मैं खो नहीं सकता

dipu
30-08-2013, 08:55 PM
बहुत बढ़िया , मज़ा आ गया

rajnish manga
30-08-2013, 11:38 PM
:hello:

Thanks for appreciating this wonderful selection from the poetry of 'khayal' Sahab.