ज़र्रानवाज़ी का शुक्रिया, अलैक जी. मैं नहीं जानता कि किस प्रकार अपनी बात कहूँ. आप जैसे बरगद की छांव में काम करते हुये कुछ काम मुझसे भी हो गया. इसका बड़ा श्रेय आपको जाता है. इससे इतर, यदि मैं कहूँ कि फोरम को जिन महानुभाव ने ऊंचाई और गरिमा प्रदान की उनमे सबसे ऊपर आपका नाम आता है. जी हाँ, पहले भी यह बात सच थी और आज भी सच है. मैं पहले भी आपका आभारी था,आज भी हूँ और सदा रहूँगा. धन्यवाद.
वे अद्भुत इंसान थे, जो किसी पार्टी का निमंत्रण मिलने पर पहले ही पूछ लेते थे कि स्कॉच है या नहीं और नहीं होने पर अपनी लेकर जाते थे। बिलकुल मेरे निकट। कुछ दिन पहले मेहदी हसन साहब गए, अब खुशवंत सिंह। मुझे जो शख्सियत पसंद हैं, वे एक-एक कर अलविदा कह रही हैं। यह ठीक उसी तरह है, 'हुजूर, अब आपका बुलावा भी नज़दीक है।' खुदा खैर करे। आपने याद किया, शुक्रिया।