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देखल जा खूब ठेलम ठेल
रहे इहाँ जब छोटकी रेल
चढ़े लोग जत्था के जत्था
छूटे सगरी देहि के बत्था
चेन पुलिग के रहे जमाना
रुके ट्रेन तब कहाँ कहाँ ना
डब्बा डब्बा लोगवा धावे
टिकट कहाँ केहू कटवावे
कटवावे उ होई महाने
बाकी सब के रामे जाने
जँगला से सइकिल लटका के
बइठे लोग छते पर जा के
रे बाप रे देखनी लीला
चढ़ल रहे ऊ ले के पीला
छतवे पर कुछ लोग पटा के
चलत रहे केहू अङ्हुआ के
छते पर के ऊ चढ़वैइया
साइत बारे के पढ़वइया
दउरे डब्बा से डब्बा पर
ना लागे ओके तनिको डर
कि बनल रहे लइकन के खेल
रहे इहाँ जब छोटकी रेल
भितरो तनिक रहे ना सासत
केहू छींके केहू खासत
केहू सब केहू के ठेलत
सभे रहे तब सबके झेलत
ऊपर से जूता लटका के
बरचा पर बइठे लो जाके
जूता के बदबू से भाई
कि जात रहे सभे अगुताई
ट्रेने में ऊ फेरी वाला
खुलाहा मुँह रहे ना ताला
दारूबाजन के हंगामा
पूर्णविराम ना रहे कामा
असली होखे भीड़ भड़ाका
इस्टेशन जब रूके चाका
पीछे से धाका पर धाका
इस्टेशन जब रूके चाका
कि लागे जइसे परल डाका
इस्टेशन जब रूके चाका
ना पास रहे ना रहे फेल
रहे इहाँ जब छोटकी रेल
बड़की के अब बात सुनाता
देखअ कि केतना सुधियाता
कविता- आकाश महेशपुरी
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एक मुक्तक- मुबारक हो...
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दिवाली भी मनाना अब नहीं आसान है यारों
नहीं अब एक भी सस्ता मिले सामान है यारों
कि रोजी भी हमारी छीन कर है ले गया कोई
मुबारक हो उसे जो भी यहाँ धनवान है यारों
मुक्तक- आकाश महेशपुरी
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पता-
वकील कुशवाहा "आकाश महेशपुरी"
ग्राम- महेशपुर
पोस्ट- कुबेरस्थान
जनपद- कुशीनगर
उत्तर प्रदेश
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ग़ज़ल- आज ये क्या किया सनम तुमने
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2122, 1212, 22.
फाइलातुन, मफाइलुन, फेलुन.
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आज ये क्या किया सनम तुमने
जो न सोचा दिया वो' ग़म तुमने
तेरे' प्याले में' था सुधा रस भी
विष क्यूँ' होने दिया हजम तुमने
दूर जिसने रखा बलाओं को
सोचो' उसपे किया सितम तुमने
कैसे' लोगों से' मैं मिलाऊँगा
नैन मेरे किए जो' नम तुमने
बोझ तानों का' कौन ढोयेगा
मुझमें' छोड़ा कहाँ है' दम तुमने
क्यूँ भला जिन्दगी से' डरते हो
जब यहीं पर लिया जनम तुमने
चोट "आकाश" रोज खाते हैं
और हँसने की' दी कसम तुमने
ग़ज़ल/ गीतिका- आकाश महेशपुरी
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पता-
वकील कुशवाहा "आकाश महेशपुरी"
ग्राम- महेशपुर
पोस्ट- कुबेरस्थान
जनपद- कुशीनगर
उप्र. 09919080399
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21-10-2015 10:32 AM
Deep_
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एक अपदान्त गीतिका/ग़ज़ल
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जब यहाँ पे झूठ का ही, है महज बाजार,
कर नहीं देते मेरा तुम, क्यों नहीं संहार।
धन अगर जो पास है फिर, झूठ भी है सत्य,
पास जो पैसे नहीं तो, कौन किसका यार।
नारियों को देवियाँ ही, कह रहे कुछ देव,
किन्तु करते जा रहे हैं, रोज अत्याचार।
हक हमारा मारकर वे, कर रहे हैं राज,
राज के मद में दिखे कब, आंसुओं की धार।
धर्म के भी नाम पर तो, हो रहे हैं कत्ल,
कौन कहता है दया ही, है धरम का सार।
आजकल तो है खुदा भी, मौन क्यों 'आकाश',
सत्य का भी साथ देकर, हो रही है हार।
गीतिका- आकाश महेशपुरी
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पता-
वकील कुशवाहा "आकाश महेशपुरी"
ग्राम- महेशपुर, पोस्ट- कुबेरस्थान, जनपद- कुशीनगर, उत्तर प्रदेश.
दूरभाष- ०९९१९०८०३९९
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आँसू कितने सस्ते हैं
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खुशहाली महंगी है कितनी आँसू कितने सस्ते हैं
क्यों आते हैं आँखों में ये दुनिया वाले हँस्ते हैं
हम तो पीड़ा झेल रहे हैं काँटे हैं अंगारे भी
अंधेरों में डूब गये हैं सूरज चाँद सितारे भी
सूझे ना मंजिल क्या अपनी और किधर को रस्ते हैं-
खुशहाली महंगी है कितनी आँसू कितने सस्ते हैं
जीवन की दुश्वारी को जब जब हमने सुलझाया है
राहों ने ही राह हमारी रोक हमें उलझाया है
हमको जिसने घेर लिया वे गम के सारे दस्ते हैं-
खुशहाली महंगी है कितनी आँसू कितने सस्ते हैं
जीवन का तो खेल खत्म जाने किसकी तैयारी है
दिखता है हल्का लेकिन ये पल पल होता भारी है
मन बच्चा है मन के ऊपर मन मन भर के बस्ते हैं-
खुशहाली महंगी है कितनी आँसू कितने सस्ते हैं
जबसे रोजी रोटी ने भी दामन अपना छोड़ा है
जिसको पाई पाई जोड़ा उसने ही दिल तोड़ा है
जो अपने थे वही दूर से करते आज नमस्ते हैं-
खुशहाली महंगी है कितनी आँसू कितने सस्ते हैं
गीत- आकाश महेशपुरी
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पता-
वकील कुशवाहा 'आकाश महेशपुरी'
ग्राम- महेशपुर, पोस्ट- कुबेरस्थान, जनपद-कुशीनगर, उत्तर प्रदेश.
9919080399
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तीन मुक्तक-
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दानवों ने दाव कैसे दे दिए
पेट पर भी पाँव जैसे दे दिए
जिन्दगी का कुछ भरोसा है नहीं
घाव पर भी घाव ऐसे दे दिए
है भरोसा जिन्दगी में अब कहाँ
मिल सकेंगी सांस तन को रब कहाँ
जब खुशी पर हर कदम पहरा लगा
ख्वाहिशों के फूल खिलते कब कहाँ
है नजर दुनिया की मेरी चाल पर
हँस रहे हो तुम भी मेरे हाल पर
है खुशी तुझको तो मेरे पास आ
खींच ले दो-चार चावुक खाल पर
- आकाश महेशपुरी
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पता-
वकील कुशवाहा 'आकाश महेशपुरी'
ग्राम- महेशपुर, पोस्ट- कुबेरस्थान, कुशीनगर
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ग़ज़ल/ गीतिका
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मैं' चिन्ता का' ओढ़े कफन कर रहा हूँ
कि जिन्दा रहूँ ये जतन कर रहा हूँ
मैं' आगे बढ़ूँ सोच मेरी है' लेकिन
बड़ी तीव्रता से पतन कर रहा हूँ
है' जिसने मुझे मौत की ये सजा दी
मैं' कायर उसी को नमन कर रहा हूँ
ते'री बेवफाई का' बोलो करूँ क्या
कि खुद को उसी में दफन कर रहा हूँ
सभी कह रहे हैं मुझे एक पागल
यूँ' गम के सहारे गमन कर रहा हूँ
मैं' छीनी गयी रोटियाँ माँगता जो
भला किस नियम का हनन कर रहा हूँ
कि ''आकाश'' पूरी जवानी लुटाकर
मैं' कितना घटा ये वजन कर रहा हूँ
ग़ज़ल- आकाश महेशपुरी
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पता-
वकील कुशवाहा 'आकाश महेशपुरी'
ग्राम- महेशपुर, पोस्ट- कुबेरस्थान, जनपद- कुशीनगर. (उत्तर प्रदेश)
09919080399
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ये स्वप्न ही हमें तो रुलाते हैं आजकल
मापनी- 221 2121 1221 212
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यूँ ही हजार स्वप्न सजाते हैं' आजकल
ये स्वप्न ही हमें तो' रुलाते हैं' आजकल
इक जानवर का' खोल जो' है ढोल बन गया
खुशियाँ मिले तो' लोग बजाते हैं' आजकल
वादा तो' उनसे' एक निभाया नहीं गया
जाने हमें क्यूँ' पास बुलाते हैं' आजकल
दौलत हो' तेरे' पास तो' फिर ठीक है मगर
यूँ ही कहाँ वे' प्यार लुटाते हैं' आजकल
हमने कहा कि हम तो' कुवाँरे नहीं मगर
फिर भी हमीं से' प्यार जताते हैं' आजकल
जबसे "आ'काश" हमने' हमसफर तुझे चुना
कब दिल की' कोई' बात छिपाते हैं' आजकल
गीतिका/ ग़ज़ल- आकाश महेशपुरी
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पता-
वकील कुशवाहा 'आकाश महेशपुरी'
ग्राम- महेशपुर, पोस्ट- कुबेरस्थान, जनपद- कुशीनगर. (उत्तर प्रदेश)
09919080399