कानों पर होता नहीं, तनिक मुझे विश्वास।
गाली देते देश को, इसके ही कुछ खास।।१।।
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अपनी ही वह सम्पदा, कर देते हैं नष्ट।
और माँगते भीख तो, सुनकर होता कष्ट।।२।।
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हम सबके ही वास्ते, सैनिक देते जान।
जाति-धर्म के नाम पर, क्यों लड़ते नादान।।३।।
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एक धर्म होता अगर, होती दुनिया एक।
बिना किसी मतभेद क्या, होते युद्ध अनेक।।४।।
दोहे- आकाश महेशपुरी
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पता-
वकील कुशवाहा 'आकाश महेशपुरी'
ग्राम- महेशपुर
पोस्ट कुबेरस्थान
जनपद- कुशीनगर
उत्तर प्रदेश
09919080399
गीतिका- ये स्वप्न...
मापनी- 221 2121 1221 212
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ये स्वप्न मेरे' स्वप्न हैं' फलते कभी नहीं।
बंजर में' जैसै' फूल निकलते कभी नहीं।।
उपदेश दे रहे हैं' हमें रोज क्या कहें,
सच्चाइयों की' राह जो' चलते कभी नहीं।
माना यहाँ है' रात कहीं धूप है मगर,
ये टिमटिमा रहे हैं' जो' ढलते कभी नहीं
कितनी बड़ी है' भूल जरा आप सोचिये
चीनी का' उनको' रोग टहलते कभी नहीं
जो पाव लड़खड़ाए' तो' गिरना है' सोच लो
ऊँचाइयों की' ओर फिसलते कभी नहीं
'आकाश' हौसलों की' भले बात लाख हो
पर वक्त के मा'रे तो' सं'भलते कभी नहीं
गीतिका- आकाश महेशपुरी
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पता-
वकील कुशवाहा 'आकाश महेशपुरी'
ग्राम- महेशपुर
पोस्ट कुबेरस्थान
जनपद- कुशीनगर
उत्तर प्रदेश
09919080399
गीतिका को समर्पित गीतिका
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दिल को' करती है' हर्षित विधा गीतिका,
अब तो' सबको समर्पित विधा गीतिका।
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है न चोरी का' भय ही, न खोने का' डर,
दिल के' पन्नों में' रक्षित विधा गीतिका।
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हक मिला है इसे आज सम्मान का,
जाने' कब से थी' वंचित विधा गीतिका।
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हम सभी ने स'म्हाला इसे प्यार से,
अब न होगी ये' खंडित विधा गीतिका।
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ये तो' "आका'श" को भी पराजित करे,
सबकी' बन जाये' वंदित विधा गीतिका
घनाक्षरी छन्द-
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कितने बेचैन होके काम रोज करते हैं, जीने के लिए ही बार बार हाय मरते।
जिन्दगी मिली है सच कहती है दुनिया ये, पर कहाँ पर है तलाश रोज करते।
हमको तो लगता कि दुख ही की दुनिया ये, दुख से ही दुख में ही दुख हम भरते।
इसीलिए दुख के पहाड़ हों या झील कोई, दुखी हम इतने कि दुख सब डरते।
देखल जा खूब ठेलम ठेल
रहे इहाँ जब छोटकी रेल
चढ़े लोग जत्था के जत्था
छूटे सगरी देहि के बत्था
चेन पुलिग के रहे जमाना
रुके ट्रेन तब कहाँ कहाँ ना
डब्बा डब्बा लोगवा धावे
टिकट कहाँ केहू कटवावे
कटवावे उ होई महाने
बाकी सब के रामे जाने
जँगला से सइकिल लटका के
बइठे लोग छते पर जा के
रे बाप रे देखनी लीला
चढ़ल रहे ऊ ले के पीला
छतवे पर कुछ लोग पटा के
चलत रहे केहू अङ्हुआ के
छते पर के ऊ चढ़वैइया
साइत बारे के पढ़वइया
दउरे डब्बा से डब्बा पर
ना लागे ओके तनिको डर
कि बनल रहे लइकन के खेल
रहे इहाँ जब छोटकी रेल
भितरो तनिक रहे ना सासत
केहू छींके केहू खासत
केहू सब केहू के ठेलत
सभे रहे तब सबके झेलत
ऊपर से जूता लटका के
बरचा पर बइठे लो जाके
जूता के बदबू से भाई
कि जात रहे सभे अगुताई
ट्रेने में ऊ फेरी वाला
खुलाहा मुँह रहे ना ताला
दारूबाजन के हंगामा
पूर्णविराम ना रहे कामा
असली होखे भीड़ भड़ाका
इस्टेशन जब रूके चाका
पीछे से धाका पर धाका
इस्टेशन जब रूके चाका
कि लागे जइसे परल डाका
इस्टेशन जब रूके चाका
ना पास रहे ना रहे फेल
रहे इहाँ जब छोटकी रेल
बड़की के अब बात सुनाता
देखअ कि केतना सुधियाता