नमस्कार मित्र ,
दरअसल क्लिनिक के हिसाब से शीत ऋतु मेरा ऑफ सीज़न होता है . अतः मैं जनवरी - फरवरी माह के मध्य अपने दूसरे शौक / व्यवसाय यानि कि खस - परफ्यूम - फार्मिंग पर प्रायः क्लिनिक पर बैठे - बैठे ही विशेष ध्यान केन्द्रित करता हूँ . ये वक़्त सालाना फसल काटने , आसवन करने व पुनः लगाने का होता है . चूंकि मेरा छः एकड़ का फार्म मेरे लखनऊ निवास से सवा सौ किलो मीटर दूर है और सारा प्रबंधन टेली फोन व टेली बैंकिंग के जरिये ही करना होता है . गाँव तो साल में चार - पांच बार मात्र दो - तीन घंटे के लिए ही जाता हूँ और मामला लाखों का होता है , इसलिये मानसिक तनाव भी बहुत रहता है . इसी कारण नयी रचना हेतु पर्याप्त संतोषजनक भाव भी पैदा नहीं हो पाते . यह सावधानी भी बरतता हूँ कि यथासंभव कविता का स्तर भी न गिरने पाये . इस सालाना कार्य विशेष से निवृत्त होते ही संभवतः पुनः कविता सूझने लगेगी . आप मेरे बारे में सोचते हैं , ये जानकर सुखद अनुभूति हुई मित्र .