dev b |
27-04-2011 06:09 PM |
Re: आधुनिक समाज में बिखरते परिवार
आप ने बिलकुल थी कहा मित्र .....हम लोग उपदेश तो बहुत दे लेते है परन्तु जब परन्तु प्रश्न ये है की हम दिल से प्रयास कितना करते है ....एक हाथ से ताली नहीं बजती ...यदि हम समर्पण की भावना से रिश्ते निभाये ...तो परिवार के बिखरने की नौबत ही ना आये
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Originally Posted by kumar anil
(Post 80601)
आप तो सिविल इंजीनियर हैँ । आपका कार्य तो जोड़ने का है , चाहे सेतु हो , घर हो अथवा लोगोँ को जोड़ने के लिये सड़क । दो किनारोँ को मिलाने के लिये , बीच मेँ आ रहे अवरोध को दूर करने के लिये निर्मित पुल मेँ कितनी ख़ूबसूरती से सपोर्ट देकर अपने काम को अंजाम देते हैँ । बस ऐसे ही अभियन्त्रण की आवश्यकता हमारे परिवार को है । चूँकि आपका सूत्र एकल परिवारीय व्यवस्था यानि पति पत्नी तक सीमित है तो मैँ भी उसी संदर्भ मेँ निवेदन करूँगा । क्या हो रहा है आज आधुनिक शहरी परिवार मेँ ? हम परिवार रूपी रथ के दूसरे पहिये को साथ लेकर चल नहीँ पा रहे हैँ और यहाँ नेट पर कल्पित दोस्तोँ को काँधे पर लेकर घूम रहे हैँ । अमित तिवारी जी के यूजिँग , मिसयूजिँग और एडिक्शन के मध्य कटे कनकौव्वे की तरह दिशाहीन हो गये हैँ । बीबी के नौकरी करने से हमारा आर्थिक स्तर तो ऊँचा हो रहा है पर उसका हाथ बँटाने मेँ हमारे भीतर का मर्द घायल होने लगता है । न जाने हमारी सहयोग की भावना कहाँ घास चरने चली जाती है । दोस्तोँ के साथ अंडरस्टैँडिँग बनाने मेँ हमारा कोई सानी नहीँ पर जीवनसाथी को अंडरस्टैँड करने मेँ कोई दिलचस्पी ही नहीँ । एक बात और है कि मूल्योँ के क्षरण ने भी हमेँ बिखेरने मेँ कोई कोर कसर नहीँ छोड़ी । पति पत्नी को जोड़े रखने वाले एड्हेसिव मेँ अहं के क्रिस्टल भी गड़ रहे हैँ ।
भावनाओँ का सम्मान , अहं का त्याग , समर्पण , सहयोग ही इस गठबंधन को मजबूत कर सकता है ।
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