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-   -   अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें........... (http://myhindiforum.com/showthread.php?t=9601)

Suraj Shah 19-10-2015 08:10 PM

Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
 
Quote:

Originally Posted by rajnish manga (Post 555404)
बहुत सुंदर, सूरज जी.

मैं भी हाथ बढ़ा कर छूता
लेकिन चाँद बहुत ऊंचा था
होंठ रहे फिर बरसों सूखे
ख्वाब में इक दरिया देखा था

(तारिक़ क़मर तारिक़)



था आज भी दश्त-ए-बला में नहर पर पहरा
कितनी सदियों बाद मैं आया मगर प्यासा रहा


(अख्तर सईद खान)

rajnish manga 19-10-2015 11:10 PM

Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
 
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Originally Posted by suraj shah (Post 555654)

था आज भी दश्त-ए-बला में नहर पर पहरा
कितनी सदियों बाद मैं आया मगर प्यासा रहा


(अख्तर सईद खान)

हुशियार कि आसेब मकानों में छिपे हैं
महफूज़ नहीं कूचा-ओ-बाज़ार खबरदार

तीरों की है बौछार क़दम रोक उधर से
इस मोड़ पे चलने लगी तलवार खबरदार
आसेब = प्रेत आत्मा

(मुज़फ्फ़र हनफ़ी)

Suraj Shah 21-10-2015 12:11 PM

Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
 
Quote:

Originally Posted by rajnish manga (Post 555659)
हुशियार कि आसेब मकानों में छिपे हैं
महफूज़ नहीं कूचा-ओ-बाज़ार खबरदार

तीरों की है बौछार क़दम रोक उधर से
इस मोड़ पे चलने लगी तलवार खबरदार
आसेब = प्रेत आत्मा

(मुज़फ्फ़र हनफ़ी)



रखवाली है,
हर सिसक और चीत्कारों पर तस्वीर तुम्हारी होती है,
मत खड़े रहो,
ऐ ढीठ रुकावट होती है साँसों के आने-जाने में |


(माखनलाल चतुर्वेदी)


rajnish manga 21-10-2015 01:44 PM

Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
 
Quote:

Originally Posted by suraj shah (Post 555723)
रखवाली है,
हर सिसक और चीत्कारों पर तस्वीर तुम्हारी होती है,
मत खड़े रहो,
ऐ ढीठ रुकावट होती है साँसों के आने-जाने में |


(माखनलाल चतुर्वेदी)


मृदु रजत रश्मियाँ देखूँ
उलझी निद्रा-पंखों में
या निर्मिमेष पलकों में
चिंता का अभिनय देखूँ !

तुझमे अम्लान हंसी है
इसमें अजस्र आँसू जल
तेरा वैभव देखूँ या
जीवन का क्रन्दन देखूँ !

(महादेवी वर्मा)

Suraj Shah 21-10-2015 07:43 PM

Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
 
Quote:

Originally Posted by rajnish manga (Post 555735)
मृदु रजत रश्मियाँ देखूँ
उलझी निद्रा-पंखों में
या निर्मिमेष पलकों में
चिंता का अभिनय देखूँ !

तुझमे अम्लान हंसी है
इसमें अजस्र आँसू जल
तेरा वैभव देखूँ या
जीवन का क्रन्दन देखूँ !

(महादेवी वर्मा)





खूबियाँ इतनी तो नही हम में कि तुम्हे कभी याद आएँगे,
पर इतना तो ऐतबार है हमे खुद पर, आप हमे कभी भूल नही पाएँगे।


(अज्ञात)


rajnish manga 22-10-2015 11:35 AM

Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
 
Quote:

Originally Posted by suraj shah (Post 555755)

खूबियाँ इतनी तो नही हम में कि तुम्हे कभी याद आएँगे,
पर इतना तो ऐतबार है हमे खुद पर, आप हमे कभी भूल नही पाएँगे।


(अज्ञात)



गुंचा हंसा न हो कली दिल की खिली न हो
ये क्या चमन में पत्ता हरा एक भी न हो
उस बांसुरी से हमको सरोकार कुछ नहीं
वो बांसुरी जो सांवरे घनश्याम की न हो

(अनु जसरोटिया)

Suraj Shah 23-10-2015 09:24 PM

Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
 
Quote:

Originally Posted by rajnish manga (Post 555791)
गुंचा हंसा न हो कली दिल की खिली न हो
ये क्या चमन में पत्ता हरा एक भी न हो
उस बांसुरी से हमको सरोकार कुछ नहीं
वो बांसुरी जो सांवरे घनश्याम की न हो

(अनु जसरोटिया)




हठीले मेरे भोले पथिक!
किधर जाते हो आकस्मात।
अरे क्षण भर रुक जाओ यहाँ,
सोच तो लो आगे की बात॥

(सुभद्राकुमारी चौहान)


rajnish manga 24-10-2015 12:36 PM

Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
 
Quote:

Originally Posted by suraj shah (Post 555851)

हठीले मेरे भोले पथिक!
किधर जाते हो आकस्मात।
अरे क्षण भर रुक जाओ यहाँ,
सोच तो लो आगे की बात॥

(सुभद्राकुमारी चौहान)


ताऊ चाचा खो गए, खोये अपने गाँव
पैर पसारे शहर ने, ढूंढें मिले न छाँव

हरकू माथा पीटता, सोच रहा हैरान
गाँव बना है भेड़िया, शहर हुआ शैतान

(सूरज पाल सिंह चौहान)

Suraj Shah 26-10-2015 09:38 PM

Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
 
Quote:

Originally Posted by rajnish manga (Post 555880)
ताऊ चाचा खो गए, खोये अपने गाँव
पैर पसारे शहर ने, ढूंढें मिले न छाँव

हरकू माथा पीटता, सोच रहा हैरान
गाँव बना है भेड़िया, शहर हुआ शैतान

(सूरज पाल सिंह चौहान)


न मौलाना में लग्ज़ि्श है न साज़िश की है गाँधी ने
चलाया एक रुख़ उनको फ़क़त मग़रिब की आंधी ने


(अकबर इलाहाबादी)


rajnish manga 26-10-2015 10:01 PM

Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
 
Quote:

Originally Posted by suraj shah (Post 555966)
न मौलाना में लग्ज़ि्श है न साज़िश की है गाँधी ने
चलाया एक रुख़ उनको फ़क़त मग़रिब की आंधी ने


(अकबर इलाहाबादी)


कभी वह सामने आये तो यह आलम भी होता है
नज़र मिलने को मिल जाती है पहचानी नहीं जाती

(ज़िया अली)


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