Re: छींटे और बौछार
कल हो न हो आज एक बार सबसे मुस्करा के बात करो बिताये हुये पलों को साथ साथ याद करो क्या पता कल चेहरे को मुस्कुराना और दिमाग को पुराने पल याद हो ना हो आज एक बार फ़िर पुरानी बातो मे खो जाओ आज एक बार फ़िर पुरानी यादो मे डूब जाओ क्या पता कल ये बाते और ये यादें हो ना हो आज एक बार मन्दिर हो आओ पुजा कर के प्रसाद भी चढाओ क्या पता कल के कलयुग मे भगवान पर लोगों की श्रद्धा हो ना हो बारीश मे आज खुब भीगो झुम झुम के बचपन की तरह नाचो क्या पता बीते हुये बचपन की तरह कल ये बारीश भी हो ना हो आज हर काम खूब दिल लगा कर करो उसे तय समय से पहले पुरा करो क्या पता आज की तरह कल बाजुओं मे ताकत हो ना हो आज एक बार चैन की नीन्द सो जाओ आज कोई अच्छा सा सपना भी देखो क्या पता कल जिन्दगी मे चैन और आखों मे कोई सपना हो ना हो |
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वरना जोगन बन डोलूँगी जी भर बरसे मेघा फ़िर भी, पपिहन “प्यासी हूँ” बोले, शब्द प्यास के फ़िर वह रह रह सबके कानों में घोले । लगता है कुछ शेष रह गयी अन्तर्मन की टीस सखे ! जी भर नाचा खूब मयूरा, फ़िर अधीर है पर खोले, हरियाली का ताज सजा था कल बारिश की रिमझिम में, कुम्हिलाने फ़िर लगी धरा है, शनै: शनै: हौले हौले । घर आँगन जलमग्न हुए थे, झरने भी थे खूब बहे, पर यह कैसी प्यास सखे ! जो खड़ी ओखली मुँह खोले । अब तुम ही बतला दो कैसे, एक स्पर्श से जी लूँ मैं, तुम मुझसे कहते हो भर लूँ , एक बार में ही झोले । मन की पीड़ा समझ सको तो, मिलना बारम्बार सखे ! वरना जोगन बन डोलूँगी, अलख निरंजन बम भोले । |
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चिटकनी
अजी सो गये क्या, जरा उठिये ना, मुझसे फ़िर बन्द नहीं हो पा रही, इस दरवाजे की चिटकनी । तुम भी सोचते होगे, रोज-रोज मुझे परेशान करती है, रोज-रोज मुझे नींद से जगाती है । क्या करूँ, मुझसे ये बन्द ही नहीं होती, बड़ी मुसीबत हो जाती है, जब तुम कभी चले जाते हो, एक-दो दिन के लिये भी बाहर, मैं सो नहीं पाती हूँ , चिटकनी के बन्द न हो पाने से । अजी सुनती हो, जरा देखो तो, आज मैनें चिटकनी ठीक करवा दी है, तुम्हारे हर रोज की मुसीबत, हमेशा के लिये दूर कर दी है, अब तुम इसे आसानी से बन्द कर सकती हो, और मेरे चले जाने के बाद, बिना किसी मुसीबत के, तुम आराम से सो सकती हो । |
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ज़िंदगी यूँ भी जली, यूँ भी जली मीलों तक
चाँदनी चार कदम, धूप चली मीलों तक प्यार का गाँव अजब गाँव है जिसमें अक्सर ख़त्म होती ही नहीं दुख की गली मीलों तक घर से निकला तो चली साथ में बिटिया की हँसी ख़ुशबुएँ देती रही नन्हीं कली मीलों तक माँ के आँचल से जो लिपटी तो घुमड़कर बरसी मेरी पलकों में जो इक पीर पली मीलों तक मैं हुआ चुप तो कोई और उधर बोल उठा बात यह है कि तेरी बात चली मीलों तक हम तुम्हारे हैं, उसने कहा था इक दिन मन में घुलती रही मिसरी की डली मीलों तक |
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बहुत अच्छा लगा !
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Re: छींटे और बौछार
तेरी यादें बहुत देर से कोशिश कर रहा हुं आंखों में समेटने की और बहुत देर से हारता जा रहा हुं जाने कैसे पलको से गिर ही जाते हैं मेरे आसुं शायद ये भी तेरी यादों की तरह हैं न चाहते हुए भी आ ही जाते हैं |
Re: छींटे और बौछार
मधुर रस के ये छींटे और बौछारें मन को बहुत भाते हैं ! इस मनभावन प्रस्तुति के लिए हार्दिक आभार !:clapping:
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Re: छींटे और बौछार
आर या पार कामनाओं का संसार भ्रांतियों से सरोबार मरीचिका में उदित अस्तांचल अन्धकार दिशाओं से गुंजित लोलुपता की झंकार मानवता की मृत्यु स्वार्थ की पैदावार यहीं लेखा यहीं जोखा आज नही तो कल, यहीं फैसला , आर या पार | |
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