Re: मुहावरों की कहानी
मुहावरों का मुहावरा
आलेख: जुगनू शारदेय कितने समझदार और बड़े व्यंगकार रहे होंगे मुहावराबनाने वाले लोग। अब देखिए न कह दिया, ‘पढ़े फारसी बेचे तेल ...।’ अभी तक किसी ने यहतय नहीं किया है कि यह बेरोजगारी पर व्यंग है या चमचागिरी की पहचान है । कभी फारसी जानने वालों को ही सरकारी नौकरी मिला करती थी। जैसे आज अंग्रेजीजानने वालों को मिला करती है। किसी फारसीदां को नौकरी न मिली होगी तो बेचारा तेल काकारोबार करने लगा होगा। यहां बहस हो सकती है कि तेल का कौन-सा कारोबार करताहोगा। तेल बेचने का या तेल लगाने का। मुहावरा में साफ कहा गया है कि ‘बेचे तेल।’ बेचने वाले अपनी चिकनी चुपड़ी बोली से तेल भी लगाते हैं। तेललगाने के बहुत फायदे होते हैं। इन्हीं फायदों को ले कर भी एक मुहावरा है कि छुछुंदरके माथे पर चमेली के तेल। इन दिनों तेल बहुत महंगा है। इसलिए असली तेल के बजाए लोगबोली का तेल लगाते हैं। |
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मुहावरों का मुहावरा
बोली का कारोबार बहुत सारे लोग करते हैं। इस धंधा के बड़े कारोबारियों में नेता हैं, वकील भी और मदारी भी। मदारी आजकल मीडिया कहा जाताहै। यहां मीडिया का मतलब न तो ब्रोकेन न्यूज है और न ही छपास की भंडास।यहां मीडिया का मतलब राजनीतिक पार्टियों के प्रवक्ता और एडवरटाइजिंग एजेंसियों के कॉपी राइटर होते हैं। यही ब्रोकेन न्यूज और छपास की भंडास को संचालित करते हैं। इन्होने साबित कर दिया है कि दाग अच्छे हैं। दागी और दागदार कौन है, यह अदालत से तय होता है। अदालत की एक अच्छी बात यह है कि यह आज करे सो काल करे– इतनी जल्दी काहे को जब मुकदमा चलेगा बरसो। यह भी एक मुहावरा है। अदालत मेंदेर है, पर अंधेर नहीं। यह भी मुहावरा ही है। इस मुहावरा की वजह सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश केजी बालकृष्णन का कथन है कि भारत में मुकदमों को टालते जाना आसान काम है। टाल मटोल भी मुहावरा है। इंसाफ और कानून में बहुत फ़र्क होता है।कानून किताब में होता है। इंसाफ अदालत में होता है। अदालत में वकील होता है। किताबमें काला अक्षर भैंस बराबर होता है। भैंस का गुण कीचड़ में जाना है। इंसाफ का काम कीचड़ को धोना है। यह और बात है कि कोयले की दलाली में हाथ काला वाले मुहावरे के कारण कीचड़ धोते धोते इंसाफ को भी कीचड़ लग जाता है। अब तो लोगों की समझ में ही नहीं आ रहा है कि इंसाफ पर लगे कीचड़ के दाग को कैसे धोएं। ** |
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मुहावरा: रस्सी जल गई पर बल नहीं गए
साभार: शिव सागर शर्मा गागर है भारी, पानी खींचने से हारी, तू अकेली पनिहारी, बोल कौन ग्राम जायेगी, मैंने कहा, थक कर चूर है तू ला मैं, रसरी की करूं धरी कुछ विश्राम तो तू पाएगी, बोली जब खींच चुकी सोलह घट जीवन के, आठ हाथ रसरी पे कैसे थक जायेगी, मैंने कहा रसरी की सोहबत में पड़ चुकी तू, जल चाहे जायेगी ते ऐंठ नहीं जायेगी. |
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मुहावरा: अधजल गगरी छलकत जाए
साभार: शिव सागर शर्मा घाम के सताए हुए, दूर से हैं आए हुए, घाट के बटोही को तू धीर तो बंधाएगी, चातक सी प्यास लिए, जीवन की आस लिए, आशा है तू एक लोटा पानी तो पिलाएगी, बोली- ऋतु पावस में स्वाति बूँद पीना, ये पसीने की कमाई यूँ न लुटाई जायेगी, मैंने कहा पानी वाली होती तो पिला ही देती अधजल गगरी है तो छलकत जाएगी. |
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मुहावरा: चुल्लू भर पानी मैं डूब मरना
साभार: शिव सागर शर्मा हारे थके राहगीर नें कहा नहाने के लिए, क्या तेरे पास कुल एक डोल पानी है, मार्ग की थकान से हुए हैं चूर चूर हम, दूर से बता दे किस ठौर मिले पानी है, बोली घट में पानी है घूंघट में पानी है भीगी लट में पानी है जहाँ तहाँ पानी है, पानी तो है लेकिन नहाने के लिए ना है डूबने के वास्ते यहाँ चुल्लू भर पानी है. |
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अदरक का स्वाद और कुत्ता
अविनाश वाचस्पति एक कुत्ता अदरक खाने की कोशिश कर रहा था। उसे बार बार देख रहा था। जीभ से चाट रहा था। उलट पलट रहा था पर सुलट नहीं पा रहा था। उसकी खुशबू उसे सतर्क कर रही थी। लग तो हड्डी का टुकड़ा रहा था परंतु रंग ब्राउन। शायद कृत्रिम हो आदमी ने बनाया हो। विचार मग्न उसी में पूरी शिद्दत से जुटा हुआ था। उसका मित्र एक बंदर वहां से गुजरा तो कुत्ता को अदरक से धींगा मुश्ती करते देख रूक गया। बंदर को रूकता देख कुत्ते ने जानना चाहा तो बंदर ने कहा कि यह नॉनवेज नहीं है। कुत्ते ने पूछा पर इसका स्वाद …. बंदर ने बतलाया मैं ही नहीं जान पाया। लगता है तुम अनपढ़ हो। इतनी शिक्षा तो ली होती। हिंदी कोर्स में एक मुहावरा बहुत प्रचलित है ‘बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद’ तो इस समय बंदर और अदरक दोनों तुम्हारे सामने हैं। अगर कोशिश करके तुम अपने इस प्रयास में सफल हो जाते हो तो एक नया मुहावरा हिंदी जगत को मिल जाएगा 'कुत्ता ही जाने अदरक का स्वाद’। |
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टोपी पहनाना > क्रिया व मुहावरा
(इंटरनेट से ) नगरपालिका सभागार में संपन्न ' पहाड़ सम्मान' के अवसर पर कई लोगों को टोपी पहनाई गई- मतलब कि टोपी पहनाकर सम्मानित किया गया. मंच से घोषणा होती रही और लोग टोपी पहनाकर -पहनकर खुश होते रहे, मुस्कराते रहे. निश्चित रूप से यह सम्मान - सौजन्य के प्रकटीकरण का एक बेहद सादा कार्यक्रम था- खुशनुमा और गर्मजोशी से लबरेज- न फूल, न माला, न बुके.. बस्स आदर से दोनो हाथों में सहेजी गई एक अदद टोपी और अपनत्व से नत एक शीश. उसी समय मुझे लगा कि घर पहुँचकर फुरसत से मुहावरा कोश खँगालना पड़ेगा, यह जानने के लिए कि हिन्दी में टोपी पर कितने व कितनी तरह के मुहावरे हैं . आपको यह नहीं लगता कि 'टोपी पहनाना' वाक्यांश मुहावरे की तरह इस्तेमाल होता है और उसका वह अर्थ तो आज की हिन्दी में भाषा नहीं ही होता है जो ‘पहाड़’ के आयोजकों की नेक मंशा थी. यही कारण था कि सभागर में विराजमान दर्शक - श्रोता टोपी पहनाने के बुलावे की घोषणा होते ही मंद-मंद मुस्कुराने लग पड़ते थे. मुहावरा कोश में मुझे टोपी पर कुल चार मुहावरे और उनके अर्थ कुछ यूँ मिले - १. टोपी उछालना - इज्जत उतारना / अपमानित करना २. टोपी देना - टोपी पहनाना , कपड़े देना / पहनाना ३. टोपी बदलना - भाई चारा होना ४. टोपी बदल भाई - सगे भाई न होते हुए भी भाई समान ध्यान रहे कि इन मुहावरों का संदर्भ पगड़ी से भी जुड़ा है क्योंकि टोपी के मुकाबले पगड़ी से हिन्दी के भाषायी समाज का रिश्ता निकटतर रहा है. |
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भैंस की शान में मुहावरे
साभार: जॉली अंकल यह क्या, अगले मुहावरे में तो और भी कमाल हो गया, इसमें तो किसी ने बेचारी भैंसो को ही घसीट लिया है, जी आपका अंदाजा बिल्कुल ठीक है। यह मुहावरा है भैंस के आगे बीन बजाना। यार अगर भैंस को कुछ सुनाना ही है, तो कोई तबला या कोई बढि़या सी गिटार पर धुन सुना दो। यदि यह नही बजा सकते तो कम से कम ढोल ही बजा दो। भैंस को कुछ मजा तो आये। भैंस बेचारी बीन सुन कर क्या करेगी? वैसे भी बीन तो सांप को खुश करने के लिये बजाई जाती है। अब छोटी सी बीन से भैंस को क्या मजा आयेगा? क्या कहा आपको तो अभी से ही चक्कर आने लगे है। अभी तो भैंस की और भी बहुत सारी बाते आपसे करनी है। भैंस का एक और बहुत ही मशहूर मुहावरा है, लो गई भैंस पानी में। अब एक बात बताओ कि भैंस यदि पानी में नही जायेगी तो क्या बाथरूम में नहाने जायेगी। हम सभी को गर्मी लगती है, हम भी तो पानी के साथ ही नहाते है, अब अगर भैंस पानी में चली गई तो उस बेचारी ने क्या गुनाह कर दिया? और भी कुछ मुहावरों में भैंस को याद किया गया है जैसे – अक्ल बड़ी या भैंस, काला अक्षर भैंस बराबर, भैंस के पीछे लट्ठ ले कर पीछे पड़ जाना और जिसकी लाठी उसकी भैंस आदि आदि लेकिन उनके बारे में फिर कभी. |
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नो सौ चूहें खाकर बिल्ली हज को चली
सिर्फ इंसानो के मुहावरे ही नही जानवरों के मुहावरे भी चक्कर देने में कम नही है। जी हां, यह मुहावरा है बिल्ली और चूहे का। एक बात तो हमें यह नही समझ आती की आदमियों के मुहावरो में बिल्ली चूहे का क्या काम? खैर हमें उससे क्या लेना-देना जिस किसी ने भी यह मुहावरा बनाया होगा, कुछ सोच समझ कर ही बनाया होगा, या उसे चूहे बिल्लियों से बहुत प्यार रहा होगा। हम बात कर रहे है 900 चूहें खाकर बिल्ली हज को चली। अब कोई मुहावरा बनाने वाले से यह पूछे कि क्या उसने गिनती की थी कि बिल्ली ने हज पर जाने से पहले कितने चूहे खाये थे? क्या बिल्ली ने हज में जाते हुए रास्ते में कोई चूहा नही खाया था। अगर उसने कोई चूहा नही खाया तो रास्ते में उसने क्या पीजा-बर्गर खाया था। मुहावरो बनाने वाले यह भी तो नही बताते कि बिल्लियां हज करने जाती कहां है? अजी छोड़ो इन बातो को हमें इससे क्या लेना है, बिल्ली जितने चूहे खाती है, खाने दो। वैसे यह बिल्ली तो बड़ी हिम्मत वाली होगी जो 900 चूहें खाकर हज को चली गई, क्योकि एक आम आदमी की तो दो-चार नान खाने से ही जान निकलने लगती है। |
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नो सौ चूहें खाकर बिल्ली हज को चली
सदियों पहले इनके क्या मायने थे यह तो हम नही जानते लेकिन आज के वक्त की पीढ़ी को इनका मतलब समझाते-समझाते सिर चक्कर खाने लगता है। एक बहुत ही पुराना लेकिन बड़ा ही लोकप्रिय मुहावरा है कि न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी। अरे भैया, नाचने के लिए राधा को नौ मन तेल की क्या जरूरत पड़ गई? अगर नाचने वाली जगह पर 50-100 ग्राम भी तेल गिर जाये तो राधा तो बेचारी फिसल कर गिर नही जायेगी। क्या मुहावरा बनाने वालों ने इतना भी नही सोचा कि नीचे गिरते ही राधा के हाथ पांव में प्लास्टर लगवाना पड़ेगा। वैसे भी जहां नाच गाने का कोई प्रोग्राम होता है, वहां तो साफ सफाई की जाती है न कि वहां तेल मंगवा कर गिराया जाता है। अब जहां इतना तेल होगा, वहां तो आदमी खड़ा भी नही हो सकता, नाचना गाना तो बहुत दूर की बात है। वैसे भी मंहगाई के इस दौर में नौ मन तेल लाना किस के बस की बात है? घर के लिये किलो-दो किलो तेल लाना ही आम आदमी को भारी पड़ता है। महीने के शुरू में तो कुछ दिन तेल-घी वाली रोटी के दर्शन हो भी जाते है, लेकिन बाकी का सारा महीना तो सूखी रोटी से ही पेट भरना पड़ता है। तेल की बढ़ती हुई कीमतो को देख कर तो बड़े से बडा रईस भी आज अपने घर में नौ मन तेल नही ला सकता। वैसे भी मुहावरा बनाने वालो से यह पूछा जाये कि इतना तेल मंगवा कर क्या राधा को उसमें नहलाना है? लोगो को नहाने के लिए पानी तक तो ठीक से नसीब होता नही, यह राधा को तेल से नहलायेगे क्या? इस मुहावरे को बनाने वालों ने यह भी नही बताया कि राधा को कौन सा तेल चाहिए? खाने वाला या गाड़ी में डालने वाला, सरसों का या नारियल का। क्या आज तक आपने कभी किसी को तेल पी कर नाचते देखा है। नाचने वालो को तो दारू के दो पैग मिल जाऐं बस वो ही काफी होते है। जिस आदमी ने जिंदगी में कभी डांस न किया हो, दारू के 2-4 पैग पीने के बाद तो वो भी डिस्को डांसर बन जाता है। |
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