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यह विशेष फीचर प्रस्तुत करने के लिये आपका धन्यवाद, पुंडीर जी.
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पूजा का समय :- माता वैष्णो देवी की नियमित पूजा होती है। यहां विशेष पूजा का समय सुबह 4:30 से 6:00 बजे के बीच होती है। इसी प्रकार संध्या पूजा सांय 6:00 बजे से 7:30 बजे तक होती है। फोटो- सांझी छत से कटरा रेलवे स्टेशन का भव्य नजारा |
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अद्र्धकुंवारी या गर्भजून - यह माता वैष्णों देवी की यात्रा का बीच का पड़ाव है। यहां पर एक संकरी गुफा है। जिसके लिए मान्यता है कि इसी गुफा में बैठकर माता ने 9 माह तप कर शक्ति प्राप्त की थी। इस गुफा में गुजरने से हर भक्त जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है। फोटो - अर्ध कुवांरी का भव्य दृश्य |
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फोटो- प्रवेश द्वार, यही से आरंभ होती है माता की यात्रा |
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इस स्थान पर दिसम्बर से जनवरी के बीच शून्य से नीचे हो जाता है और बर्फबारी भी होती है। इसलिए यात्रा के लिए उचित समय को चूनें। फोटो- त्रिकुट पहाड़ का भव्य दृश्य |
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फोटो- सांझी छत से घाटी का सुंदर दृश्य |
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यह दुर्गा मंदिर बसा है 108 नरमुंडों पर
बांका। पूर्व बिहार का प्रसिद्ध तांत्रिक शक्तिपीठ के रुप में मशहूर बांका जिले के तेलडीहा दुर्गा मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगना आरंभ हो गया है। करीब चार सौ साल पुरानी यह मंदिर बांका और मुंगेर जिले की सीमा पर और बडुआ नदी किनारे पर अस्थित है। मंदिर में नवरात्र के पहले ही दिन से हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचने लगते हैं। विजयादशमी तक भीड़ लाखों में पहुंच जाती है। क्या हैं मंदिर के पीछे की कहानी पशु बलि के लिए प्रसिद्ध तेलडीहा मंदिर के पुजारी अचार्य नोनी गोपाल ने बताया कि नदिया (पश्चिम बंगाल) जिले के दालपीसा गांव में हरबल्लभ दास और हलबल्लभ दास नाम के दो सगे भाई थे और दोनों ही शक्ति के पुजारी थे। किसी बात पर भाईयों में मतभेद के चलते नाराज छोटा भाई हरबल्लभ अपनी शक्तिस्वरुप दुर्गा मां से यह कह कर घर से निकल पड़ा कि अब अगला ठिकाना उनके निर्देश पर ही होगा। मां भगवती ने आदेश दिया कि तुम आगे बढ़ो, मैं भी तुम्हारे पीछे आ रही हूं। हरबल्लभ दास गंगा किनारे चलकर सुल्तानगंज घाट पहुंचा, जहां उसने पहली रात बिताया |
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भगवती ने स्वप्न में दिया निर्देश पुजारी ने बताया कि भगवती ने हरबल्लभ को स्वप्न में और आगे बढ़ने से मना किया। वह मोहनपुर गांव के के समीप बडुआ नदी के पूर्वी किनारे सिद्धि के लिए स्थान बनाया। सिद्धि का आसन लगाते ही मां भगवती द्वारा आकाश मार्ग से शंख, खड़ग एवं अद्र्या को नीचे गिराया। हरबल्लभ दास द्वारा प्रसिद्ध तांत्रिक बाबा महेशानंद आचार्य को अपना पुरोहित बनाकर पूर्ण रुपेण तांत्रिक पद्धति से 108 नरमुंडों पर माता के मंदिर निर्माण करवाया। तब से लेकर आज तक इस तांत्रिक शक्तिपीठ में पूजा की जाती रही है। हरबल्लभ दास के वंशज है मेढ़पति वर्तमान समय में हरबल्लभ दास एवं स्व. महेशानंद अचार्य के वंशज ही मेढ़पति व पुजारी का निर्वाहन करते आ रहे हैं। विदित हो कि अन्य दुर्गा मंदिरों की तुलना में यहां शारदीय नावरात्र के दसवीं के दिन की पूजा अलग पद्धति से किया जाता है। |
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great
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धरती के केंद्र में है यह चमत्कारी मंदिर
वाराणसी/मिर्जापुर. विंध्य पर्वत पर विराजमान आदि शक्ति माता विंध्यवासिनी की महिमा अपरम्पार है। भक्तों के कल्याण के लिए सिद्धपीठ विंध्याचल में सशरीर निवास करने वाली माता विंध्यवासिनी का धाम मणिद्वीप के नाम से विख्यात है। यहां आदि शक्ति माता विंध्यवासिनी अपने पूरे शरीर के साथ विराजमान हैं जबकि देश के अन्य शक्तिपीठों में सती के शरीर का एक-एक अंग गिरा है। ऋषियों मुनियों के लिए सिद्धपीठ आदिकाल से सिद्धि पाने के लिए तपस्थली रहा है। संसार का एक मात्र ऐसा स्थल है जहां मां सत, रज, तम गुणों से युक्त महाकाली, महालक्ष्मी, और अष्टभुजा तीनों रूप में एक साथ विराजती हैं। मंदिर के तीर्थ पुरोहित कमला शंकर मिश्र ने बताया मां के इस दरबार से जुड़ी कई अनसुनी बाते हैं जो मां कि महिमा को बताती हैं। |
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1- सिद्धपीठ विंध्याचल आदिकाल से ऋषि मुनियों का साधना स्थल रहा है। पृथ्वी के केंद्र बिंदु पर विराजमान आदि शक्ति के धाम में देव दानव व मानवों ने तपस्या कर सिद्धि प्राप्त की है। देवासुर संग्राम के दौरान त्रिदेवों ने तप कर देवी से वरदान प्राप्त किया था। आज भी देवी के गर्भ गृह से निकलने वाले जल से भरे कुण्ड में ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश तपस्या कर रहे हैं। |
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2- भगवान सूर्य की परिक्रमा को रोकने वाले विंध्य पर्वत की हजारों किलोमीटर की विशाल श्रृंखला में विंध्य पर्वत एवं पतित पावनी गंगा का संगम इस क्षेत्र में होता है। |
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3- वास्तुशास्त्र के अनुसार ईशान कोण धर्म का स्थान है। धरा के मध्य एवं विंध्य पर्वत के ईशान कोण पर आदि शक्ति लक्ष्मी स्वरुपा माता विंध्यवासिनी स्वर्ण कमल पर विराजमान होकर भक्तों का कल्याण कर रही है। |
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4- धरा के मध्य केंद्र बिन्दु पर विराजमान माता विंध्यवासिनी के धाम से ही भारतीय मानक समय का निर्धारण होता है। माता विंध्यवासिनी को बिन्दुवासिनी भी कहा जाता है। |
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5- धरती के अन्य स्थानों पर शिव प्रिय सती का एक-एक अंग जहां गिरा वह शक्तिपीठ कहा जाता है। जबकि विंध्य धाम में आदि शक्ति सम्पूर्ण अंगो के साथ विराजमान हैं, इसलिए विंध्य धाम को सिद्धपीठ कहा गया है। |
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6- शक्ति संतुलन करने वाली विंध्यवासिनी देवी के स्वर्ण पताका पर प्रकाश बिखेरने वाले भगवान सूर्य एवं शीतलता प्रदान करने वाले भगवन चन्द्रदेव एक साथ विराजमान हैं। |
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7- विंध्य क्षेत्र में आदि शक्ति सत, रज, तम गुणों से युक्त महाकाली (कालीखोह), महालक्ष्मी (विंध्यवासिनी), महासरस्वती (अष्टभुजा) तीनों रूप में विराजमान हैं। आदि शक्ति को घंटे की ध्वनि अति प्रिय है। इसलिये यह तंत्र साधना का अद्भुत पीठ हैं। भक्तों के कल्याण के लिए मां चार रूपों में चारो दिशाओं में मुंह करके माता विंध्यवासिनी, माता काली, माता अष्टभुजा व मां तारा के रूप में विराजमान हैं। |
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8- आदि शक्ति माता विंध्यवासिनी के हजारवें अंश से माता अष्टभुजा का अवतरण हुआ। मार्कंडेय पुराण में देवताओं के प्रश्नों का उत्तर देते हुए देवी ने कहा है कि "नंदगोप गृहे जाता यशोदा गर्भ संभवा, ततस्तौ नाशयिश्यामी विन्ध्याचल निवासिनी" कंस के विनाश को माता का अवतरण हुआ है। |
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9- तीनो लोक में विंध्य क्षेत्र की महिमा अपरम्पार है। पुराणों में कहा गया है कि "विंध्य क्षेत्र परम दिव्य नास्ति ब्रह्माण्ड गोलके"। विंध्य क्षेत्र जैसा पावन स्थल पूरे ब्रह्माण्ड में कहीं नहीं है। विंध्य पर्वत पर देवी के दूत लंगुरों के साथ ही जंगल में पशु पक्षी विचरण करते हैं। |
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10- विंध्य क्षेत्र का त्रिकोण ताड़कासुर द्वारा स्थापित तारकेश्वर महादेव मंदिर से आरम्भ होता है। इस स्थान पर भगवान विष्णु ने हजारों साल तक तप कर सुदर्शन चक्र प्राप्त किया था। माता लक्ष्मी ने सदाशिव की आराधना कर अपने स्तन को काट कर अर्पित कर दिया था। शिव के प्रसन्न होने पर बेल वृक्ष की उत्पत्ति विंध्य क्षेत्र में हुई। देवी लक्ष्मी के नाम पर मीरजापुर बसा है। "मीर" का अर्थ समुद्र "जा" अर्थात पुत्री और पुर का मतलब नगरी। इस प्रकार मीरजापुर का शाब्दिक अर्थ हुआ लक्ष्मी की नगरी। |
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मोदी को PM बनाने के लिए एक शख्स कर रहा अनूठा तप
आजमगढ़/वाराणसी. नवरात्रों में पूरा देश देवी की अराधना और उनको प्रसन्न करने के लिए पूजा पाठ और तप कर रहा है। शक्ति की देवी दुर्गा सच्चे मन से मांगी गई मन्नतें जरुर पूरी करती हैं। नवरात्रों में विशेष मकसद के लिए माता का अति विशेष अनुष्ठान किया जाता है। बस्ती भुजवल गांव में एक अनोखे भक्त ने भी इन नवरात्रों में मां का अद्भुत संकल्प उठाया है। नरेंद्र मोदी के सबसे बड़े समर्थक कमलेश चौबे ने उनके प्रधानमंत्री बनने की कामना को लेकर अनूठा तप शुरु किया है। उन्होंने नवरात्र के कलश को नौ दिनों के लिए अपने सीने पर स्थापित कर लिया है। बकायदा पंडाल बनाकर कर चौबीस घंटे मां की पूजा भी की जा रही है। |
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रावण के इस मंदिर में प्रवेश पर गुजरना होता है एक अजीब शर्त से
इंदौर। शहर में एक ऐसा भी मंदिर है जहां पर भगवान राम और हनुमानजी के साथ रावण, कुंभकरण और मेघनाथ की भी पूजा होती है। यहां प्रवेश सशर्त है। प्रवेश से पहले आपको 108 बार राम नाम लिखने की शर्त स्वीकार करनी पड़ती है। अपने तरह का यह अनोखा मंदिर वैभवनगर में है। बंगाली चौराहे से बायपास की ओर जाते समय बायीं ओर वैभव नगर में पड़ता है। यहां भगवानों के साथ साथ रामायण और महाभारतकालीन राक्षसों की मूर्तियां स्थापित की गई हैं। राम का निराला धाम नामक इस मंदिर में भगवान के साथ राक्षसों को भी फूल चढ़ाए जाते हैं। |
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रामचरित मानस का हर पात्र पूजनीय, इसलिए यहां है राक्षसों की मूर्तियां : मंदिर के संस्थापक, संचालक और पुजारी का कहना है कि रामचरित मानस का हर पात्र पूजनीय है इसीलिए यहां भगवानों के साथ राक्षसों की मूर्तियां भी स्थापित की गई हैं। इस मंदिर की स्थापना 1990 में की गई थी और अब भी काम चल रहा है। वे कहते हैं कि जिसे हमने कभी देखा नहीं उसकी बुराई करने का हमें कोई अधिकार नहीं है। महा पंडित और ज्ञानी होने के नाते रावण हमेशा पूजनीय रहेगा। |
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108 बार राम नाम लिखने की शर्त पर ही प्रवेश : इस मंदिर में आपको तभी प्रवेश मिलेगा जब आप 108 बार राम नाम लिखने की शर्त मान लें। एक बार प्रवेश करने के बाद अगर आपने राम नाम नहीं लिखा तो आपको पंडित के गुस्से का सामना करना पड़ेगा। मंदिर के मुख्यद्वार सहित पूरे परिसर में प्रवेश संबंधी शर्त के चेतावनी बोर्ड बड़े-बड़े अक्षरों में लगे हुए हैं। आप नेता हों या अभिनेता या सामान्य इंसान किसी को भी इस नियम से छूट नहीं है। राम नाम लिखने के लिए एक निर्धारित फार्मेट है, जिसमें लाल रंग वाले पेन से श्रीराम नाम लिखना होता है। पुजारी खुद भी हनुमान जी की प्रतिमा के सामने बैठकर ज्यादातर समय रामचरित मानस का पाठ करते रहते हैं। |
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इनकी होती है पूजा : मंदिर में मुख्य रूप से भगवान राम की पूजा होती है। मंदिर के मुख्य गर्भगृह में भगवान शिव का पीतल का शिवलिंग है। मुख्य द्वार से दांयीं ओर बने मंदिर में हनुमानजी की प्रतिमा है जिसके पास ही यहां के पुजारी बैठकर रामचरित मानस का पाठ करते हैं। बांयी ओर हनुमानजी की विशाल प्रतिमा है। इस प्रतिमा के बांयी ओर शनि मंदिर है और सीधा जाकर दांयीं ओर खुले परिसर में शिवजी की अर्ध नारीश्वर प्रतिमा है जिसके ठीक सामने दशानन रावण और पीछे की ओर शयन मुद्रा में कुंभकर्ण की प्रतिमा स्थापित है। इसी परिसर में विभीषण, मेघनाथ और मंदोदरी की प्रतिमाएं भी स्थापित हैं। पास के मंदिर में कैकेयी, मंथरा, शूर्पणखा इत्यादि की प्रतिमाएं हैं। |
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3 जुलाई 1990 से शुरू हुआ था निर्माण : अपने आपको राम की भक्ति में समर्पित करने वाले यहां के पुजारी ने 22 साल पहले 3 जुलाई 1990 को मंदिर निर्माण की नींव रखी थी। तब से निरंतर यहां का निर्माण जारी है। आश्चर्यजनक बात तो यह है कि यहां निर्माण के लिए न तो किसी आर्किटेक्ट का सहारा लिया गया न ही किसी इंजीनियर का, इसके बावजूद मंदिर इतना शानदार बना है कि कोई भी इसे देखकर आश्चर्य में पड़ सकता है। पुजारी का कहना है कि इसके पीछे कोई अज्ञात शक्ति हैं जो उन्हें आदेश देती रहती है और निर्माण होता जाता है। |
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लंका की तर्ज पर गुंबज : लंका में विभीषण के निवास स्थान पर बनी गुंबज में अंदर-बाहर सब जगह राम नाम लिखा हुआ था। इसी की तर्ज पर यहां बी एक गुंबज बनाई गई है, जिसमें ऊपर नीचे अंदर-बाहर हर तरफ राम नाम लिखा है। इसके अलावा कई छोटे मंदिर भी बनाए गए हैं। इनकी गुंबज पर भी हर ओर राम नाम लिखा हुआ है। |
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चढ़ावा चढ़ाना है सख्त मना : इस मंदिर में किसी तरह का चढ़ावा या प्रसाद लाने पर मनाही है। यहां न तो एक भी दानपेटी है न ही किसी को भगवान की अगरबत्ती लगाने या जल व प्रसाद चढ़ाने की अनुमति। यहां के पुजारी के मुताबिक जिनकी कोई मनोकामना है वे यहां आकर बस 108 बार राम नाम लिखें इतना काफी है। |
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हर पात्र है पूजनीय : रामचरित मानस का हर पात्र पूजनीय है। इसका एक भी पात्र निंदनीय नहीं है। भले ही वह रावण हो क्यों न हो। रावण एक महा पंडित था इसलिए पंडित होने के नाते उसकी भी पूजा की जानी चाहिए। यहां रामचरित मानस के हर पात्र की मूर्तियां सिर्फ इसीलिए बनाई गई है। |
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ज्ञानवर्धक जानकारी ............ कभी इन्दोर जाना हुआ तो अवश्य दर्शन करके आएँगे.................. पुंडीर आपका हार्दिक आभार............... |
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स्त्री रूप में पूजे जाते हैं हनुमान!
रायपुर। पुराणों के अनुसार हनुमान महाबल शाली भगवान हैं, उन्होंने विवाह नहीं किया और आजीवन श्री राम की सेवा में लगे रहे। उन्हें राम का परम भक्त कहा जाता है। पर छत्तीसगढ़ के रतनपुर में हनुमान का एक ऐसा मंदिर है जहां नारी रुप में हनुमान की मूर्ति विराजित है। यह मंदिर आश्चर्य के साथ-साथ लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। हनुमान जयंती पर भास्कर डॉट कॉम की इस खास प्रस्तुति में पढ़िए स्त्री रुपी हनुमान के बारे में। रतनपुर स्थित गिरिजाबंध हनुमान मंदिर दुनिया का एकमात्र स्थान है जहां हनुमान के नारी स्वरुप की पूजा होती है। हनुमान ने आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन किया था, ऐसे में उनकी स्त्री रुपी प्रतिमा का होना अपने आप में एक आश्चर्य है। यह प्रतिमा लगभग दस हज़ार साल पुरानी है और यहां के लोगों की मान्यता है कि जो भी व्यक्ति सच्चे मन से इस प्रतिमा को पूजता है उसकी मनोकामना ज़रूर पूरी होती है। |
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आस पास के लोग बताते हैं कि प्राचीन काल में पृथ्वी देवजू नाम के राजा रतनपुर में राज करते थे, वे हनुमान के बहुत बड़े भक्त थे। एक बार राजा को कुष्ठ रोग हो गया, बहुत से वैद्य-हकीम आये, राजा को ठीक करने की कोशिश की पर किसी के इलाज का कोई असर महाराज की सेहत पर नहीं हुआ। राजा अपने जीवन की उम्मीद छोड़ चुके थे, हताश-निराश राजा को लग रहा था कि अब बचना संभव नहीं है। तभी एक दिन हनुमान जी ने उनको स्वप्न में दर्शन दिए और मंदिर बनवाने के लिए कहा। राजा ने अपने आराध्य के आदेश का पालन करते हुए तुरंत मंदिर निर्माण का काम शुरू करवाया। जब मंदिर का निर्माण पूरा हो गया तब राजा अपने प्रभु की अगली आज्ञा की प्रतीक्षा करने लगे। इस निर्माण और प्रतीक्षा के दौरान आश्चर्य जनक रूप से राजा के स्वस्थ्य में सुधार होने लगा। |
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कुंड से निकली हनुमान की स्त्रीरुपी प्रतिमा मंदिर निर्माण के कुछ दिनों बाद हनुमान राजा के सपने में फिर आये और कहा कि महामाया कुंड में उनकी प्रतिमा है, उसे वहां से निकालकर मंदिर में स्थापित कर दिया जाए। जब कुंड से मूर्ति निकाली गई तो हनुमान का रूप देख सभी आश्चर्य में पड़ गए। बजरंगबली का ऐसा रूप किसी ने कभी नहीं देखा था। फिर भगवान की आज्ञा का पालन करते हुए उस प्रतिमा को मंदिर में पूरे विधि विधान के साथ स्थापित कर दिया गया। |
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क्या है खासियत इस प्रतिमा की हनुमान जी की यह प्रतिमा दक्षिणमुखी है। इस प्रतिमा के बायें कंधे पर श्री राम और दायें पर लक्ष्मण जी विराजमान हैं। हनुमान जी के पैरों के नीचे दो राक्षस हैं। कहा जाता है कि इस मूर्ति की स्थापना के बाद राजा ने सबसे पहले स्वयं को कुष्ठ रॊग से मुक्ति दिलाने और यहां आने वाले सभी भक्तों की मनोकामना पूरी करने की प्रार्थना की। इसके बाद राजा तुरंत रोग मुक्त हो गया और राजा की दूसरी इच्छा को पूरी करने के लिए हनुमान सालों से लोगों की मनोकामना पूरी करते आ रहे हैं। |
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