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‘पैसे पेड़ पर नहीं उगते’: मनमोहन
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने डीजल की कीमतों में वृद्धि तथा सब्सिडीयुक्त रसोई गैस की सीमा सीमित किये जाने के फैसले का बचाव करते हुए कहा कि ‘पैसे पेड़ पर नहीं उगते।’ राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में सिंह ने कहा कि पेट्रोलियम उत्पादों पर सरकार का सब्सिडी बिल पिछले साल 1.40 लाख करोड़ हो गया। उन्होंने कहा, ‘अगर हम कदम नहीं उठाते, इस साल यह 2 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच जाता।’ सिंह ने 1991 के वित्तीय संकट का जिक्र किया जब कोई भी भारत को कर्ज देने के लिये तैयार नहीं था। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘मैं यह सुनिश्चित करने के लिये प्रतिबद्ध हूं कि भारत उस स्थिति में दोबारा न आये।’ |
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Quote:
जैसे नेहरु जी को डेस्टिनी वाले स्पीच के लिए, इंदिरा गाँधी को एक एक खून का खतरा वाले भाषण के लिए याद किया जाता है मुझे पूरी उम्मीद है भविष्य में लोग मनमोहन सिंह को इस वाक्य के लिए याद रखेंगे। :india: बच्चो को एक्साम में सामान्य ज्ञान के पेपर में सवाल आएगा यह किस महापुरुष ने कहा था। "पैसे पेड़ पर नहीं उगते "? |
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अफगानिस्तान पर विश्वसनीय योजना बनाए अमेरिका : हिना
वाशिंगटन। अमेरिका की यात्रा पर आई पाकिस्तान की विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार ने अमेरिका से अफगानिस्तान के लिए एक विश्वसनीय और ऐसी योजना बनाने के लिए कहा है जिसके लक्ष्य को हासिल किया जा सके। इसके साथ ही उन्होंने दोनों देशों के बीच मुक्त व्यापार समझौते पर जोर दिया है। सीनेट की विदेश मामलों की समिति के सदस्यों के साथ मुलाकात के दौरान खार ने सीनेटरों से अनुरोध किया कि वे इस बात को स्पष्ट करें कि उनका देश वास्तव में अफगानिस्तान में क्या चाहता है और फिर इसे हासिल करने के लिए एक वास्तविकता पर आधारित योजना की रूपरेखा बनाए। इस मुलाकात को अधिकारियों ने सम्बंधों की वर्तमान स्थिति और चुनौतियों तथा आने वाले अवसरों के लिए ‘खुले दिल से और स्पष्ट चर्चा’ करार दिया। हिना ने कहा कि यह उसके सहयोगियों विशेषकर पाकिस्तान के मन में विश्वास पैदा करेगा। उन्होंने कहा कि हालांकि अमेरिका इस क्षेत्र से सैन्य अभियान खत्म करना चाहता है। अफगानिस्तान पाकिस्तान का पड़ोसी है और उसके बारे में अभी लिए गए किसी फैसले या कदम के परिणामों से उसे ही निपटना होगा। बैठक के बाद हिना ने कहा कि हमारे बीच हुई स्पष्ट बातचीत से मैं उत्साहित हूं। मैं समझती हूं कि बातचीत होना जरूरी था क्योंकि हमारे बीच बहुत ज्यादा अविश्वास और भय था जिसने हमारे सम्बंधों को प्रभावित किया। इस बातचीत के दौरान खार ने दोनों देशों के बीच मुक्त व्यापार समझौते पर जोर दिया। हिना ने कहा कि अल्पावधि में पाकिस्तान अमेरिका से एक व्यापारिक पैकेज दिए जाने का अनुरोध कर रहा है जो अब पाकिस्तानी उत्पादों को अमेरिकी बाजारों में ज्यादा पहुंच मुहैया कराएगा और इस तरह पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था मजबूत होगी। उन्होंने दावा किया कि लोकतांत्रिक और आर्थिक रूप से सक्षम पाकिस्तान दक्षिण और मध्य एशिया में आतंकवादी खतरे को हराने के लिए सबसे मजबूत हथियार है। हिना ने इस बात पर संतोष जताया कि पाकिस्तान और अमेरिका के बीच सम्बंध अब सुधर रहे हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि स्थिर और शांतिपूर्ण अफगानिस्तान, पाकिस्तान के राष्ट्रीय हित में है। पाक विदेश मंत्री ने कहा कि अफगानिस्तान एक संप्रभु और स्वतंत्र देश है और उनका देश उसके साथ ऐसे ही व्यवहार करेगा। |
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अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अमेरिका को पुनर्विचार की जरूरत : हिना
वाशिंगटन। इस्लाम विरोधी फिल्म को लेकर दुनिया के विभिन्न भागों में चल रहे अमेरिका विरोधी प्रदर्शनों के मद्देनजर अमेरिका को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की अवधारणा पर पुनर्विचार करने की जरूरत है। पाकिस्तान की विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार ने एक साक्षात्कार में आगे कहा कि यह कहना ही पर्याप्त नहीं है कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है और इसकी अनुमति होनी चाहिए। मेरे विचार से अगर इससे दुनिया में कहीं भी अमेरिकी नागरिकों या अमेरिकियों के खिलाफ कार्रवाई को उकसावा मिलता है तो शायद हमें दोबारा सोचने की जरूरत है कि कितनी स्वतंत्रता ठीक है। पाकिस्तानी विदेश मंत्री अमेरिका में बनाई गई एक फिल्म को लेकर पाकिस्तान के शहरों में हो रहे अमेरिका विरोधी हिंसक प्रदर्शनों के बारे में पूछे गए एक सवाल का जवाब दे रही थीं। ओबामा प्रशासन ने हालांकि वीडियो को ‘खराब’ करार देते हुए कहा है कि अमेरिका का इस वीडियो से कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन उसने इस पर प्रतिबंध लगाने से यह कहते हुए इंकार कर दिया कि उसके संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात है। खार ने कहा कि क्या उस हद तक स्वतंत्रता ठीक है जिससे जान का नुकसान हो? इसलिए मुझे लगता है कि हमें एक ऐसा तरीका खोजना होगा जिसकी मदद से इससे सभ्य तरीके से निपटा जा सके। हमें एक-दूसरे के विचारों के प्रति और सहिष्णु होने की जरूरत है। हमें एक-दूसरे को यह बताने की जरूरत है कि हमारे लिए सांस्कृतिक, धार्मिक तौर पर क्या महत्व रखता है। ऐसा होने पर हम अपने लिए भी रास्ता बना सकेंगे। हमें धार्मिक संवेदनाओं के प्रति संवेदनशील होना होगा। अरब और मुस्लिम जगत में अन्य धर्मों को लेकर उठ रही बातों और उनकी वजह से हो रहे प्रदर्शनों तथा हिंसा के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि वह इस पर गहरी चर्चा में नहीं जाना चाहतीं। |
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पाकिस्तान से पल्ला झाड़ने का समय आ गया : पोए
वाशिंगटन। अमेरिकी कांग्रेस में रिपब्लिकन सांसद ने एक प्रस्ताव पेश कर पाकिस्तान का ‘अमेरिका का एक बड़ा गैर नाटो सहयोगी’ का दर्जा खत्म करने की मांग की है और कहा कि इस देश से पल्ला झाड़ने का समय आ गया है। प्रस्ताव पेश करते हुए कांग्रेस के टेड पोए ने कहा कि मैंने पाकिस्तान का ‘अमेरिका का एक बड़ा गैर नाटो सहयोगी’ का दर्जा खत्म करने के लिए ‘एच आर 6391’ प्रस्ताव पेश किया है। पाकिस्तान ने हमारे साथ जो छल किया है, उसके लिए हमें कुछ भी करने की जरूरत नहीं है। बस, उससे अलग होने का समय आ गया है। टैक्सास से कांग्रेस के रिपब्लिकन सदस्य ने कहा कि अमेरिका ने पाकिस्तान को एक बड़े गैर नाटो सहयोगी का दर्जा दिया ताकि हमें अलकायदा और तालिबान से निपटने में मदद मिल सके। इस दर्जे की वजह से उसे विशेष विदेशी सहायता और रक्षा सम्बंधी लाभ, जैसे शस्त्र बिक्री प्रक्रिया में तेजी जैसी सुविधाएं मिलती हैं, लेकिन पाकिस्तान ने साबित किया है कि वह अमेरिका का मित्र नहीं है, कई और कारण हैं जिनके चलते उन्होंने यह प्रस्ताव पेश किया है। पोए ने कहा कि पाकिस्तान को जब हमने वहां छिपे आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई करने को कहा तो उसका जवाब ‘नहीं’ था। पाकिस्तान को बताया गया कि आतंकवादी आईईडी बना रहे हैं जिससे अमेरिकियों को मारा जा रहा है। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने हमारे दूतावास पर हमले के लिए विदेशी आतंकी संगठन हक्कानी नेटवर्क की मदद की। पाकिस्तान ने उस डॉक्टर को गिरफ्तार कर दोषी ठहराया जिसने दुनिया के सर्वाधिक कुख्यात आतंकवादी ओसामा बिन लादेन का पता लगाने में हमारी मदद की। मैं मानता हूं कि हमने उन्हें जो राशि दी उसमें से कुछ राशि तालिबान तक जाती है, लेकिन पाकिस्तान ने हमें ऐसा कोई कारण नहीं दिया कि उस पर विश्वास किया जा सके। वह कृतघ्न सहयोगी है। वर्ष 2004 में तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू. बुश ने पाकिस्तान को अमेरिका का एक बड़ा गैर नाटो सहयोगी का दर्जा इसलिए दिया था ताकि अलकायदा और तालिबान के खिलाफ लड़ाई में उसकी मदद मिल सके। |
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वीजा के लिए साक्षात्कार से छूट कार्यक्रम भारत में लोकप्रिय : रिपोर्ट
वाशिंगटन। अमेरिकी वीजा के लिए अब तक लिए जाने वाले साक्षात्कार से छूट का कार्यक्रम ब्राजील और चीन के बाद पिछले दिनों भारत में शुरू किया गया, जो वहां दिन पर दिन लोकप्रिय हो रहा है। वैसे भी, अमेरिका सरकार का इरादा आगामी वर्षों में अपने यहां आने वाले भारतीय पर्यटकों की संख्या बढ़ाना है। विदेश मंत्रालय ने एक रिपोर्ट में बताया कि यह कार्यक्रम अप्रेल में शुरू किया गया था और तब से भारत में अमेरिकी मिशन ने अपने साक्षात्कार से छूट के पायलट कार्यक्रम (आईडब्ल्यूपीपी) के तहत करीब 4000 वीजा आवेदन निपटाए हैं। इससे पहले 20 जनवरी को विदेश मंत्रालय और घरेलू सुरक्षा मंत्रालय ने चीन तथा ब्राजील में आईडब्ल्यूपीपी शुरू किया था। पायलट कार्यक्रम दो साल के लिए है। चीन और ब्राजील में आईडब्ल्यूपीपी बहुत लोकप्रिय है, जहां 80 फीसदी से अधिक ऐसे वीजा आवेदन निपटाए गए। रिपोर्ट में कहा गया है कि ब्राजील में दूतावास और वाणिज्य दूतावास में मार्च, 2012 से जून, 2012 के बीच आईडब्ल्यूपीपी के तहत मिले करीब 33000 आवेदन निपटाए गए। चीन में फरवरी, 2012 से जून, 2012 के बीच आईडब्ल्यूपीपी के 20000 से अधिक आवेदन निपटाए गए। इसमें आगे कहा गया है कि आईडब्ल्यूपीपी भारत सहित अन्य मुख्य बाजारों में भी लोकप्रिय हो रहा है। विदेश मंत्रालय ने बताया कि भारत में आईडब्ल्यूपीपी अप्रेल, 2012 में शुरू किया गया और उसके बाद से करीब 4000 आवेदन निपटाए जा चुके हैं। मंत्रालय ने यह भी बताया कि कार्यक्रम का जुलाई से मैक्सिको और जर्मनी सहित अन्य देशों में भी विस्तार किया जा रहा है। वाणिज्य मंत्रालय से मिले नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2011 में भारत से आए लोगों ने अमेरिका में रिकॉर्ड 4.4 अरब डॉलर खर्च किए जो वर्ष 2010 में खर्च की गई राशि से 10 फीसदी से अधिक है। वाणिज्य मंत्रालय की रिपोर्ट में कहा गया है कि अगले पांच साल में यहां आने वाले भारतीयों की संख्या 30 फीसदी से अधिक बढ़ने की संभावना है। साथ ही बीते सात साल में सालाना अमेरिकी यात्रा और भारत में पर्यटन निर्यात बढ़ कर दो अंकों तक पहुंच गया है। |
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अमेरिकी सीनेट में की गई लोदी ग्यारी की सराहना
वाशिंगटन। तिब्बत का मुद्दा प्रभावशाली तरीके से अंतर्राष्ट्रीय मंच पर लाने में भूमिका और योगदान के लिए दलाई लामा के पूर्व विशेष दूत की सराहना करते हुए अमेरिकी सीनेट में एक संकल्प पारित किया गया। यह द्विदलीय संकल्प सीनेटर जॉन कैरी तथा अन्य सदस्यों ने पेश किया था जिसे ध्वनि मत से मंजूरी दी गई। कैरी सीनेट की विदेश मामलों की समिति के अध्यक्ष हैं। प्रस्ताव में तिब्बतियों के विचारों, उनकी संस्कृति तथा धर्म और स्वायत्तता, मानवाधिकारों के लिए उनके संघर्ष, धार्मिक परंपराओं, विशिष्ट भाषाई संस्कृति के संरक्षण के लिए किए जा रहे प्रयासों के अमेरिका में प्रचार-प्रसार को लेकर दलाई लामा के पूर्व विशेष दूत लोदी ग्याल्स्तेन ग्यारी की सराहना की गई है। इसमें कहा गया है कि लोदी ग्यारी ने अपने राजनीतिक अधिकार एक निर्वाचित तिब्बती नेतृत्व को देकर तिब्बतियों को अधिकार संपन्न बनाने की दलाई लामा की दूरदर्शिता को पूरा श्रेय दिया है। प्रस्ताव में तिब्बत के समर्थन में अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन बनाने के लिए ग्यारी की उपलब्धियों की प्रशंसा की गई है। कैरी ने 13 सितंबर को प्रस्ताव पेश करने के बाद कहा कि लोदी ग्यारी तिब्बत में दमन के खिलाफ खुद को बहुत कम उम्र से समर्पित कर चुके हैं। तिब्बतियों के मुद्दे के लिए उन्होंने जो कुछ भी किया, उसकी हम सराहना करते हैं। |
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अमेरिकी महिला सैनिक को छोड़ना पड़ा कनाडा
टोरंटो। इराक युद्ध से बचने के लिए कनाडा भागी एक अमेरिकी महिला सैनिक को अमेरिकी सीमा पर गिरफ्तार कर सैन्य हिरासत में भेज दिया गया। किम्बर्ली रिवेरा नाम की यह सैनिक पिछले पांच साल से कनाडा में अपने पति और चार बच्चों के साथ रह रही थी। उसे पिछले महीने देश छोड़ने का आदेश मिला था। इसमें कहा गया था कि वह 20 सितंबर तक अपने देश वापस चली जाए। दि वार रेजिस्टर्स सपोर्ट कैम्पेन समूह ने कहा कि रिवेरा गुरुवार को अमेरिकी सीमा पर उपस्थित हुई जिसे गिरफ्तार कर सैन्य हिरासत में भेज दिया गया। समूह के अनुसार, उसके परिवार के सदस्यों ने भी अलग-अलग सीमा पार की, ताकि बच्चे अपनी मां की गिरफ्तारी न देख पाएं। रिवेरा 2006 में इराक में तैनात थी। उसने कहा कि वह मिशन को लेकर भ्रमित हो गई थी। वह फरवरी, 2007 में छुट्टी लेकर कनाडा भाग गई। इसके बाद उसने कनाडा में शरणार्थी का दर्जा पाने के लिए आवेदन किया। रिवेरा की वकील एलिसा मार्सीनिक ने कहा कि उनकी मुवक्किल को दो से पांच साल तक की कैद हो सकती है। शांति के लिए नोबेल पुरस्कार पाने वाले आर्कबिशप डेसमंड टूटू और कई अन्य संगठनों ने इस सैनिक को स्वदेश वापस भेजे जाने की निन्दा की है। |
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भारत-चीन के साथ सम्बंध विस्तार के प्रयास
अमेरिका ने बांग्लादेश को सराहा वाशिंगटन। क्षेत्रीय सहयोग के साथ भारत, चीन और म्यामां के साथ अपने सम्बंध सुधारने के लिए बांग्लादेश की कोशिशों की अमेरिका ने सराहना की है। अमेरिका के गृह मंत्रालय ने दो दिवसीय सहभागिता वार्ता के बाद कहा कि दक्षिण और पूर्वी एशिया में वैश्विक शक्तियों के बीच स्थित बांग्लादेश इन क्षेत्रों को जोड़ने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। राजनीतिक मामलों के उप विदेश मंत्री वेंडी आर. शेरमन और बांग्लादेश के विदेश सचिव मोहम्मद मिजारूल ने यहां हुई अमेरिका-बांग्लादेश की पहली सहभागिता वार्ता की अध्यक्षता की। विदेश मंत्रालय ने कहा कि क्षेत्रीय समग्रता के प्रति बांग्लादेश की प्रतिबद्धता की अमेरिका सराहना करता है। इसके साथ ही बांग्लादेश की ओर से उसके पड़ोसी देशों भारत, चीन, म्यामां और अन्य के साथ सम्बंध विस्तार के लिए किए जा रहे प्रयासों की भी अमेरिका सराहना करता है। विदेश मंत्रालय ने कहा कि अमेरिका बांग्लादेश को उस क्षेत्र में समग्रता बनाए रखने में अहम भूमिका निभाने के लिए प्रोत्साहित करता है। इसमें नया रेशम मार्ग, हिंद-प्रशांत गलियारा और हिंद महासागर संगठनों जैसे प्रयास भी शामिल हैं। अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने बांग्लादेश की शांतिप्रिय मुस्लिम लोकतांत्रिक व्यवस्था और नागरिक समाज की संस्थाओं के विकास को दोनों देशों के द्विपक्षीय सम्बंधों का आधार बताया। मंत्रालय ने कहा कि बांग्लादेश खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य, जलवायु परिवर्तन और महिला सशक्तीकरण जैसे विकास के अमेरिकी प्रयासों में प्रमुख सहभागी है। मंत्रालय के अनुसार, अमेरिका बांग्लादेश के साथ लोकतांत्रिक संस्थाओं की मजबूती, मानवाधिकारों की रक्षा, नागरिक समाज के लिए पर्याप्त स्वतंत्रता, प्रशासन में पारदर्शिता लाने के लिए काम करता है। मंत्रालय ने कहा कि इस वार्ता में अमेरिकी अधिकारियों ने ग्रामीण बैंक के प्रबंध निदेशक के तौर पर एक सम्मानित नेता को तैनात करने के महत्व पर भी चर्चा की। विदेश मंत्रालय के अनुसार, अमेरिका बांग्लादेश के साथ जलवायु के मुद्दों, ऊर्जा क्षमता व सुरक्षा और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्य श्रम मापदंडों के विकास में निवेश करना चाहता है। क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा में बांग्लादेश की अहम भूमिका की तारीफ करते हुए विदेश मंत्रालय ने कहा कि अमेरिका ने हिंसक कट्टरता और मादक पदार्थों के खिलाफ बांग्लादेश के सतत प्रयासों का अवलोकन किया है। इसके अलावा बांग्लादेश अमेरिकी शांति अभियानों और मानवतावादी सहयोग में भी अपना योगदान लगातार देता रहा है। |
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आर्थिक सहायता में कमी से सहस्त्राब्दी लक्ष्य हासिल करने के अभियान पर असर
संयुक्त राष्ट्र। विकास सहायता में भारी कमी किए जाने और लगातार बढ़ते संरक्षणवाद ने विश्व नेताओं द्वारा निर्धारित किए गए सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्यों के लिए खतरा उत्पन्न कर दिया है जिन्हें पूरा करने की समय सीमा वर्ष 2015 तय की गई थी। संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने यह बताते हुए आर्थिक संकट से जूझ रहे धनी देशों से अपील की है कि उनके मितव्ययता के कदमों का दुष्परिणाम गरीब देशों को नहीं भुगतना पड़े। संयुक्त राष्ट्र सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य कार्यबल की रिपोर्ट के मुताबिक, गरीब देशों के लिए आधिकारिक विकास सहायता वर्ष 2011 में करीब तीन प्रतिशत गिरकर 133.5 अरब डॉलर हो गई। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2000 में विश्व नेताओं ने आठ सहस्त्राब्दी लक्ष्य तय किए थे जिनमें प्रमुख थे-गरीबी घटाना, एड्स का प्रसार रोकना और शिक्षा को सुधारना, लैंगिक समानता, बाल और मातृत्व स्वास्थ्य और पर्यावरण की स्थिरता। रिपोर्ट में कहा गया है कि गरीबी हटाने और प्राथमिक शिक्षा को बढ़ावा देने के लक्ष्य को काफी हद तक हासिल किया गया है, लेकिन व्यय में कमी लाने के चलते शेष लक्ष्यों का पूरा होना संभव नहीं लगता। रिपोर्ट के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र के किसी देश की सकल राष्ट्रीय आय का 0.7 प्रतिशत सहायता के लिए देने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए धनी देशों को 300 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक व्यय करना होगा। अर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन के 23 प्रमुख दानदाता अमीर देशों में से 16 ने 2011 में सहायता में कटौती कर दी और ऐसा उन्होंने अपना व्यय घटाने के लिए किया। रिपोर्ट में बताया गया है कि आर्थिक संकट के सीधे प्रभाव के रूप में यूनान और स्पेन में सबसे ज्यादा कटौती की गई। इसके बाद आॅस्ट्रिया और बेल्जियम का नंबर आया। यहां तक कि उस जापान ने भी सहायता में कटौती की जिसने 2010 में रिकॉर्ड सबसे ज्यादा सहायता दी थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके अलावा 2008-09 के आर्थिक संकट के बाद कुछ देशों द्वारा अपनाई जाने वाली संरक्षणवादी नीतियों के कारण गरीब देशों से होने वाला निर्यात भी काफी प्रभावित हुआ। बान ने कहा कि रिपोर्ट ने जो तस्वीर पेश की है वह बहुत चिंताजनक है। यह स्पष्ट है कि 2015 की समय सीमा तक इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए हमें अधिक मजबूत वैश्विक साझेदारी की जरूरत है। बान ने सभी देशों की सरकारों से अपील की कि वे गरीब देशों की सहायता करने की अपनी प्रतिबद्धता पूरी करें। |
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