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-   -   राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय (http://myhindiforum.com/showthread.php?t=2836)

The ROYAL "JAAT'' 04-06-2011 10:50 PM

Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
 
ने मुसलमानों को कष्ट पहुँचाया, जिसकी सजा उसे अछनेरा गाँव के युद्ध में मिली और उसको बड़ी बेरहमी से मारा। मिर्जा इस्फिन्दयार बेग को भी अपने कर्मों का फल भुगतना पड़ा और कुछ समय बाद उसे अलवर राज्य से बाहर निकाल दिया।

The ROYAL "JAAT'' 07-06-2011 10:13 PM

Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
 
अलवर क्षेत्र का प्रारम्भिक इतिहास

पुरातत्वेत्ता कर्निगम के मतानुसार इस प्रदेश का प्राचीन नाम मत्स्य देश था। महाभारत युद्ध से कुछ समय पूर्व यहाँ राजा विराट के पिता वेणु ने मत्स्यपुरी नामक नगर बसा कर उसे अपनी राजधानी बनाया था। कालान्तर में इसी को साचेड़ी कहने लगे और बाद में वही राजगढ़ परगने में माचेड़ी के नाम से जाना जाने लगा। उस समय यौधेय, अर्जुनायन, वच्छल आदि अनेक जातियाँ इसी भू-भाग में निवास करती थीं। राजा विराट ने अपनी पिता की मृत्यु हो जाने के बाद मत्स्यपुरी से ३५ मील पश्चिम में बैराठ नामक नगर बसाकर इस प्रदेश को राजधानी बनाया।

The ROYAL "JAAT'' 07-06-2011 10:17 PM

Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
 
इसी विराट नगरी से लगभग ३० मील पूर्व की ओर स्थित पर्वतमालाओं के मध्य में पाण्डवों ने अज्ञातवास के समय निवास किया था। बाद में यह स्थान अलवर प्रान्त में पाण्डव पोल के नाम से जाना जाने लगा। उन्हीं दिनों राजा विराट के समीपवर्ती राजाओं में प्रसिद्ध राजा सुशर्माजीत था, जिसकी राजधानी श्रोद्धविष्ट नगर थी जो अब तिजारा परगने में सरहटा नामक एक छोटा गाँव हैं।

सुशर्मण के वंशजों का यहाँ बहुत समय तक अधिकार है। यादव वंशीय तेजपाल ने सुशर्मा के वंशधरों के यहाँ आकर शरण ली और कुछ समय बाद उसने तिजारा बसाया। राजा विराट के समय कीचक को प्रदेश पर शासन था, जिनकी राजधानी मायकपुर नगर थी जो अब बान्सूर प्रान्त में मामोड़ नामक एक उजड़ा हुआ खेड़ा पड़ा है।

The ROYAL "JAAT'' 07-06-2011 10:20 PM

Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
 
तीसरी शताब्दी के आसपास इधर गुर्जर प्रतिहार वंशीय क्षत्रियों का अधिकार हो गया और इसी क्षेत्र में राजा बाधराज ने मत्स्यपुरी से ३ मील पश्चिम में एक नगर बसाया तथा एक गढ़ भी बनवाया। इसी वंश के राजदेव ने उक्त गढ़ का जीर्णोद्धार करवाया व उसका नाम राजगढ़ रखा। वर्तमान राजगढ़ दुर्ग के पूर्व की ओर इस पुराने राजगढ़ की बस्ती के चिन्ह अब भी दृष्टिगत होते हैं।

पाँचवी शताब्दी के आसपास इस प्रदेश के पश्चिमोत्तरीय भाग पर राज ईशर चौहान के पुत्र राजा उमादत्त के छोटे भाई मोरध्वज का राज्य था जो सम्राट पृथ्वीराज से ३४ पीढ़ी पूर्व हुआ था। इसी की राजधानी मोरनगरी थी जो उस समय साबी नदी के किनारे बहुत दूर कर बसी हुई थी। इस बस्ती के प्राचीन चिन्ह नदी के कटाव पर अब भी पाए जाते हैं और अब मोरधा और

The ROYAL "JAAT'' 07-06-2011 10:22 PM

Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
 
मोराड़ी दो छोटे-छोटे गाँव रह गए हैं। छठी शताब्दी में इस देश के उत्तरीय भाग पर भाटी क्षत्रियों का अधिकार था। इनमें प्रसिद्ध राजा शालिवाहन ने "कोट' नामक एक नगर बसाया था और उसे अपनी राजधानी बनाया था। मुंडावर प्रान्त के सिंहाली ग्राम में उपरोक्त नगर के प्राचीन खण्डरों के चिन्ह अब भी पाए जाते हैं। इसी शालिवाहन ने इस नगर से लगभग २५ मील पश्चिम की ओर शालिवाहपुर नाम का दूसरा नगर बसाया जहाँ आजकर बहरोड़ बसा हुआ है।

The ROYAL "JAAT'' 07-06-2011 10:28 PM

Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
 
इन चौहानों और भाटी क्षत्रियों के अधिकारों का ऐसा दृढ़ प्रमाण नहीं मिलता। जैसाकि उपरोक्त गुर्जर प्रतिहार (बड़ गुर्जर) के शासनाधिकार के समय का प्राप्त होता है। राजौरगढ़ के शिलालेख से पता चलता है कि सन् ९५९ में इस प्रदेश पर गुर्जर प्रतिहार वंशीय सावर के पुत्र मथनदेव का अधिकार था जो कन्नौज के भट्टारक राजा परमेश्वर क्षितिपाल देव के द्वितीय पुत्र श्री विजयपाल देव का सामन्त था। इसकी राजधानी राजपुर (वर्तमान राजोरगढ़) भी यहाँ उस समय का एक प्राचीन नीलकंठ शिव मंदिर अब भी विद्यमान है।

The ROYAL "JAAT'' 07-06-2011 10:29 PM

Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
 
इसी समय जयपुर तथा अलवर राज्य के पूर्वज राजा सोढ़देव ने बड़ गुर्जरों से दौसा लिया और इनके पुत्र दुल्हेराय ने खोह आदि के मीणों को दबाकर एक छोटे से राज्य की स्थापना की तथा इनके पुत्र काकिलदेव ने अजमेर को अपनी राजधानी बनाया। उन दिनों इस प्रदेश के कुछ स्थानों पर बड़गुर्जरों, कहीं पर यादवों और कहीं निकुम्भ क्षत्रियों का अधिकार था।

राजा काकिलदेव ने मेड बैराठ और इस प्रदेश के कुछ भाग को यादवों से लेकर निकुम्भ क्षत्रियों के शासन में दिया पर इनके पुत्र अलधराय ने मेड, बैराठ यादवों से लेकर इस क्षेत्र के कुछ भाग पर अधिकार करके एक दुर्ग और अलपुर नामक नगर बसाया।

The ROYAL "JAAT'' 07-06-2011 10:29 PM

Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
 
अलधराय के बाद उसके पुत्र सगर से निकुम्भ क्षत्रियों ने यह प्रदेश छील लिया और राजगढ़, बान्सूर, थानागाजी आदि कुछ प्रान्तों को छोड़कर इस राज्य के अधिकांश भाग में निकुम्भों का शासन रहा।

अलवर के गढ़ को इन्होंने सुदृढ़ किया तथा इण्डोर (तिजारा) में एक दूसरा दुर्ग बनवाया। उन दिनों राजगढ़ प्रान्त में बड़ गुर्जर थानागाजी में मेवात के मीणों एवं बान्सूर और मण्डवरा में चौहान क्षत्रियों का आधिपत्य था। राजगढ़ प्रदेश में राजा देव कुण्ड बड़गुर्जर ने वेदती नामक बसाकर उसे अपनी राजधानी बनाया।

The ROYAL "JAAT'' 07-06-2011 10:30 PM

Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
 
इसी के वंशजों में से देवत ने देवती, राजदेव ने राजोरगढ़ और माननें माचेड़ी में अपनी-अपनी स्थिति को मजबूत कर लिया । इसी वंश के राजा हरयाल ने अजमेर नरेश राजा देव को अपनी नलदेवी विवाही थी। राजा कर्णमल की पुत्री आमेर नरेश कुन्तल को विवाही गयी। कर्णमल की तीसरी पीढ़ी में बड़गुर्जर वंशीय राजा असलदेव के पुत्र महाराजा गागादेव का सुल्तान फिरोजशाह के समय में माचेड़ी में राज्य था, इनके समय के दो शिलालेख सन् १३६९ ई. में और सन् १३८२ में माचेड़ी से मिले हैं।

The ROYAL "JAAT'' 07-06-2011 10:32 PM

Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
 
सन् १४५८ में इस वंश के राजा रामसिंह का पुत्र राज्यपाल था, उसके पुत्र कुम्भ ने आमेर नरेश पृथ्वीसिंह से अपनी पुत्री भगवती का विवाह किया। राजा कुम्भ का द्वितीय पुत्र अशोकमल था जिसका दूसरा नाम ईश्वरमल था। सम्राट अकबर को डोला न देने तथा आमेर नरेश मानसिंह से बिगाड़ हो जाने के कारण दिल्ली और जयपुर की सेना ने इनसे देवती का राज्य छीन लिया और केवल राजोरगढ़ पर उनके पुत्र बीका का अधिकार रहा अन्त में यह भी छीन लिया गया और राजगढ़ प्रान्त से बड़ गुर्जर का शासन सदैव के लिए समाप्त हो गया। इसके बाद राजगढ़ प्रान्त जयपुर राज्य में सम्मिलित कर लिया गया।


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