Re: पशु पक्षी और प्यार की देवी गीता रानी
गीता ने कोयम्बतूर से करीब बीस किलोमीटर दूर पेरियामड्डमपालेम इलाके में एक पहाड़ी के नीचे जानवरों का आशियाना बसाया, लेकिन एक दिन आयी भयानक आंधी से जानवरों के झोपड़े उजड़ गये। गीता को अहसास हो गया कि पहाड़ी के नीचे की जगह जानवरों के लिए महफूज़ नहीं है। उन्होंने जानवरों के लिए एक बढ़िया और सुरक्षित जगह ढूँढनी शुरू कर दी। खोज-बीन चल ही रही थी कि एक पशु-प्रेमी गीता की मदद करने के लिए आगे आये। उन्होंने पेरियामड्डमपालेम इलाके में ही अपना बंगला गीता को किराए पर दे दिया। इसी बंगले में गीता पिछले 12 सालों से ‘स्नेहालय फॉर एनिमल्स’ नाम से जानवरों और पक्षियों का पनाहगाह चला रही हैं।
‘स्नेहालय फॉर एनिमल्स’ में इस समय 300 से ज्यादा कुत्ते और 75 बिल्लियाँ हैं। ‘स्नेहालय फॉर एनिमल्स’ में हर दिन कई सारे पक्षी – मोर, चिड़ियाँ, तोता-मैना भी आते-जाते रहते हैं। गीता इनका भी ख्याल रखती हैं। दिलचस्प बात ये है कि सभी जानवरों और पक्षियों के भोजन का समय निर्धारित है। शाम होते ही आसपास के सभी कव्वे ‘स्नेहालय फॉर एनिमल्स’ आ जाते हैं। पेट-भर अपना खाना खाने के बाद ये कव्वे चले जाते हैं। इसी तरह मोर और चिड़ियों का भी अपना तय समय है। गीता ने बताया,‘स्नेहालय फॉर एनिमल्स’ में जानवरों और पक्षियों के लिए हर दिन 80 किलो का चावल पकाया जाता है। इसके अलावा मुर्गी के करीब 300 अंडों, ब्रेड, बिस्कुट का भी इस्तेमाल होता है। >>> |
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‘स्नेहालय फॉर एनिमल्स’ में हर दिन जानवरों और पक्षियों के खान-पान के लिए दो से तीन हज़ार रुपयों का खर्च आता है। यानी महीने भर का क़रीब एक लाख रुपया। बीमार और ज़ख़्मी जानवरों के इलाज के लिए डाक्टर बुलाये जाते हैं। खबर मिलने पर गीता ‘एम्बुलेंस’ ले जाकर अलग-अलग जगहों से बीमार, ज़ख़्मी, भूखे, लावारिस और आवारा कुत्तों और दूसरे जानवरों को अपने यहाँ ले आती हैं। कई लोग अपने बीमार कुत्तों को भी यहाँ इलाज और देखभाल के लिए छोड़ जाते हैं। जानवरों और पक्षियों के लिए ज़रूरी चावल गीता सरकारी राशन की दुकान से पांच रुपये प्रति किलो के हिसाब से ख़रीदीती हैं।
ये पूछे जाने पर कि जानवरों और पक्षियों की देखभाल के लिए वे इतनी बड़ी रकम कहाँ से जुटा पाती हैं, गीता ने कहा,“मेरे दादा और नानी दोनों बहुत ही रईस थे। भले ही उन लोगों ने मेरे माता-पिता को नहीं अपनाया, लेकिन जब उनकी संपत्ति का बंटवारा हुआ तब मेरे माता-पिता के हिस्से में आयी संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा मुझे भी मिला। मेरे हिस्से में जो संपत्ति आयी वो भी बहुत बड़ी है और इसी संपत्ति से मिलने वाले ब्याज़ से मैं ये शेल्टर चला रही हूँ। कई एनिमल लवर भी मुझे रुपये और सामान देकर जाते हैं। मुझे कभी किसी चीज़ की कमी नहीं हुई।” एक बड़ी बात गीता ने ये भी बताई कि उनके हिस्से की अच्छी ख़ासी ज़मीन-जायदाद है। >>> |
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‘स्नेहालय फॉर एनिमल्स’ शुरू करने के बाद भी दुःख और पीड़ा ने गीता का साथ नहीं छोड़ा। जानवरों-पक्षियों को ही अपनी संतान मानकर जीना शुरू करने वाली गीता के बेटे प्रवीण की जवानी में ही मौत हो गयी। ये मौत भी उस समय हुई जब एक फोटोग्राफर के तौर पर प्रवीण अपना कारोबार जमा चुके थे। प्रवीण पीलिया का शिकार हुए। बेटे की मौत के बाद बहु और दो पोतों की ज़िम्मेदारी गीता पर आ गयी। गीता ने बहु और दोनों पोतों की ज़िम्मेदारी ली और उन्हें अच्छे से बसाया और जमाया। गीता ने अपनी बेटी स्वप्ना की शादी भी अच्छे घर-परिवार में करवाई। बेटी और बहु दोनों अब मज़े में हैं।
बहु और बेटी दोनों गीता से उनके यहाँ आकर रहने की गुज़ारिश करते रहते हैं, लेकिन गीता जानवरों और पक्षियों को छोड़कर कहीं जाने के लिए तैयार ही नहीं होतीं। वे कहती हैं, “मैं जानती हूँ कि वे मुझे अपने पास क्यों बुलाती हैं। वे जानती हैं कि मेरे पास कितनी धन-दौलत है। उनके पास जाऊँगी तो वे बस इसी दौलत की मांग करेंगी। मैं उनसे कहती हूँ कि मेरे लिए ये जानवर ही अच्छे हैं, जो सिर्फ प्यार मांगते हैं।” गीता ने ये भी कहा, “मुझे कभी भी किसी भी इंसान से प्यार नहीं मिला। न मेरे दादा-दादी ने मुझसे प्यार किया न नाना-नानी ने। माता-पिता हमेशा लड़ते-झगड़ते ही रहे। भाई-बहन भी वैसे ही रहे। बेटा-बेटी को मेरी दौलत से प्यार था। मुझे जानवरों और पक्षियों ने बिना किसी चाह और उम्मीद से प्यार किया। मैंने भी उनके प्यार के बदले प्यार दिया। ये जानवर और पक्षी ही मेरे लिए मेरी संतान हैं।” >>> |
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जानवरों और पक्षियों से इस अनूठे प्यार से कुछ लोग इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने गीता पर शार्ट-फिल्म और डाक्यूमेंट्री भी बनाई। शार्ट-फिल्म और डाक्यूमेंट्री की वजह से गीता काफी लोकप्रिय और प्रसिद्ध भी हुईं । उनके सेवा-कार्य को पहचान मिली। पशु-संरक्षण संस्थाओं के अलावा कई अन्य संस्थाओं ने उन्हें सम्मानित किया, अवार्ड दिए।
एक सवाल के जवाब में गीता ने कहा, “मैं इस बात की वजह नहीं जानती कि मुझे प्यार करने वाला इंसान क्यों नहीं मिला। ना जाने क्यों मुझे ये भी लगता है कि ज्यादातर इंसान किसी चीज़ की उम्मीद में ही दूसरे से प्यार करते हैं। बिना किसी चाह के कोई किसी से प्यार नहीं करता। मैं ऐसा नहीं कहती कि सभी लोग ऐसे ही हैं, लेकिन मुझे लगता है कि ज्यादातर लोग ऐसे ही हैं। अगर जानवरों की बात करें, तो मैं गारंटी के साथ कह सकती हूँ कि जानवरों और पक्षियों का प्यार सच्चा प्यार है। उनका प्यार निस्वार्थ है। जानवर और पक्षी बहुत भावुक, आज्ञाकारी उदार और वफ़ादार होते हैं। इतने अच्छे गुण एक इंसान में कम ही देखने को मिलते हैं।” >>> |
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दिलचस्प बात ये है कि 300 से ज्यादा कुत्तों और 75 बिल्लियाँ होने के बावजूद गीता सभी का नाम जानती हैं। इनमें से ज्यादातर को गीता ने ही नाम दिया है। वे कहती हैं, “ये मेरे बच्चे हैं, कोई माँ अपने बच्चों का नाम थोड़े ही भूल सकती है।” गीता ने ये भी बताया कि उन्होंने कई कुत्तों और बिल्लियों का नाम उस जगह के नाम पर रखा है जहाँ से उन्हें लाया गया है। उदाहरण देते हुए उन्होंने इस कुत्ते की ओर इशारा करते हुए कहा “ये कुत्ता हमें ज़ख़्मी हालत में तूटीयल्लूर नाम की जगह से मिला था, इसी वजह से मैंने इसका नाम तूटीयल्लूर रख दिया। इतने सारे लावारिस कुत्ते मेरे पास आते हैं कि उनके लिए नाम ढूँढने में मुझे मुश्किल होती है। अपनी सहूलियत के लिए मैंने ये नया तरीका इजाद किया । अगर जानवर का पहले से कोई नाम नहीं है तब जिस जगह का जानवर है उसी का नाम उस जानवर दो दिया जाएगा।”
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गीता ने ‘स्नेहालय फॉर एनिमल्स’ में ऐसी महिलाओं को काम पर रखा जिनका कोई इस दुनिया में नहीं है। गीता ने बड़ी बेरहमी से समाज द्वारा बेदख़ल कर दी गयी एचआईवी का शिकार एक महिला को भी अपने ‘स्नेहालय’ में पनाह दी है।
‘स्नेहालय’ का माहौल और नज़ारा भी गज़ब का होता है। अलग-अलग नस्लों के तरह-तरह के कुत्ते खेलते-कूदते,भौंकते नज़र आयेंगे। इस ही जगह तरह-तरह की 75 बिल्लियाँ को देखने का अनुभव भी अनोखा ही होता है। सबसे दिलचस्प नज़ारा वो होता है जब गीता इन जानवरों और पक्षियों से बात कर रही होती हैं। लोगों के लिए ये समझना बेहद मुश्किल होता है कि इंसानी ज़ुबान को न बोलने और जानने वाले जानवर और पक्षी आखिर किस तरह गीता की बातों और इशारों को समझ जाते हैं। बड़े ही उद्दंड और गुस्सैल जानवार भी गीता के सामने चुप्पी साधे रहते हैं। शायद यही प्यार है। (समाप्त) |
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