soni pushpa |
12-05-2015 01:24 AM |
Re: //////इर्ष्या ///////
Quote:
Originally Posted by kuki
(Post 550951)
ईर्ष्या एक कमज़ोर इंसान के मन की स्वाभाविक भावना है। जब कोई इंसान अपने आप को किसी की तुलना में ,किसी भी रूप में कमतर पाता है तो उसके मन में ईर्ष्या अपने आप आजाती है। अगर कोई इंसान अपने आप से और अपने हालात से संतुष्ट है और वो जैसे भी है उसमें खुश है तो उसे किसी से भी ईर्ष्या नहीं होगी। इसीलिए कहते हैं संतोषी सदा सुखी।
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sabse pahle bahut bahut dhanywad kuki ji ,... की आपने इस सूत्र पर अपने अमूल्य विचार रखे .. आपकी बात कुछ हद तक सही है किन्तु कई बार ये देखने में आता है की लोग बेवजह भी इर्ष्या के शिकार हो जाते हैं एक जलन का भाव उन्हें हरपल जलाते रहता है .. मेरा मानना है की इंसान यदि मन बड़ा रखे सबके लिए अच्छा सोचे जलन की भावना मन में आते ही उसका खात्मा करे तब उन्हें सही दिशा मिल सकती है किन्तु कई लोगों के लिए ये सब बेहद असंभव चीज़े हैं जो वो जीते जी नहीं कर सकते और उनकी इर्ष्या ही उनके अंत का कारन बन जाती है .
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