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-   -   प्रेरक लघु कथायें (http://myhindiforum.com/showthread.php?t=16897)

soni pushpa 15-12-2016 09:53 PM

Re: प्रेरक लघु कथायें
 
सच में आज के हालत यही है, धर्म को लेकर जब तक मानव दृष्टिकोण विशाल नहीं होगा तब तक ये झगड़े चलते ही रहेंगे भाई .

धन्यवाद भाई .

rajnish manga 16-12-2016 08:48 AM

Re: प्रेरक लघु कथायें
 
Quote:

Originally Posted by soni pushpa (Post 560035)
सच में आज के हालत यही है, धर्म को लेकर जब तक मानव दृष्टिकोण विशाल नहीं होगा तब तक ये झगड़े चलते ही रहेंगे भाई .

धन्यवाद भाई .

इस कथा का मर्म समझते हुये आपने बहुत मूल्यवान विचार रखे हैं. आपका धन्यवाद, बहन पुष्पा जी.


rajnish manga 25-12-2016 02:41 PM

Re: प्रेरक लघु कथायें
 
जैसा अन्न वैसा मन

बासमती चावल बेचने वाले एक सेठ की स्टेशन मास्टर से साँठ-गाँठ हो गयी। सेठ को आधी कीमत पर बासमती चावल मिलने लगा। सेठ को हुआ कि इतना पाप हो रहा है तो कुछ धर्म-कर्म भी करना चाहिए।
एक दिन उसने बासमती चावल की खीर बनवायी और किसी साधु बाबा को आमंत्रित कर भोजन प्रसाद लेने के लिए प्रार्थना की।
साधु बाबा ने बासमती चावल की खीर खायी। दोपहर का समय था। सेठ ने कहाः
"महाराज ! अभी आराम कीजिए। थोड़ी धूप कम हो जाय फिर पधारियेगा।"
साधु बाबा ने बात स्वीकार कर ली। सेठ ने 100-100 रूपये वाली 10 लाख जितनी रकम की गड्डियाँ उसी कमरे में चादर से ढँककर रख दी।
साधु बाबा आराम करने लगे। खीर थोड़ी हजम हुई। चोरी के चावल थे। साधु बाबा के मन में हुआ कि इतनी सारी गड्डियाँ पड़ी हैं, एक-दो उठाकर झोले में रख लूँ तो किसको पता चलेगा ? साधु बाबा ने एक गड्डी उठाकर रख ली। शाम हुई तो सेठ को आशीर्वाद देकर चल पड़े।
सेठ दूसरे दिन रूपये गिनने बैठा तो 1 गड्डी (दस हजार रुपये) कम निकली। सेठ ने सोचा कि महात्मा तो भगवत्पुरुष थे, वे क्यों लेंगे ? नौकरों की धुलाई-पिटाई चालू हो गयी। ऐसा करते-करते दोपहर हो गयी।
इतने में साधु बाबा आ पहुँचे तथा अपने झोले में से गड्डी निकाल कर सेठ को देते हुए बोलेः
"नौकरों को मत पीटना, गड्डी मैं ले गया था।"
सेठ ने कहाः "महाराज ! आप क्यों लेंगे ? जब यहाँ नौकरों से पूछताछ शुरु हुई तब कोई भय के मारे आपको दे गया होगा और आप नौकर को बचाने के उद्देश्य से ही वापस करने आये हैं क्योंकि साधु तो दयालु होते हैं।"
साधुः "यह दयालुता नहीं है। मैं सचमुच में तुम्हारी गड्डी चुराकर ले गया था। सेठ ! तुम सच बताओ कि तुम कल खीर किसकी और किसलिए बनायी थी ?"
सेठ ने सारी बात बता दी कि स्टेशन मास्टर से चोरी के चावल खरीदता हूँ, उसी चावल की खीर थी।
साधु बाबाः "चोरी के चावल की खीर थी इसलिए उसने मेरे मन में भी चोरी का भाव उत्पन्न कर दिया। सुबह जब पेट खाली हुआ, तेरी खीर का सफाया हो गया तब मेरी बुद्धि शुद्ध हुई कि 'हे राम.... यह क्या हो गया ? मेरे कारण बेचारे नौकरों पर न जाने क्या बीत रही होगी। इसलिए तेरे पैसे लौटाने आ गया।"
इसीलिए कहते हैं किः
जैसा खाओ अन्न वैसा होवे मन। जैसा पीओ पानी वैसी होवे वाणी..!!

Deep_ 26-12-2016 10:17 AM

Re: प्रेरक लघु कथायें
 
सभी कथाएं बहुत ही बढिया लगी । कृपया सुत्र जारि रखें ।

soni pushpa 27-12-2016 03:29 PM

Re: प्रेरक लघु कथायें
 
आपकी डाली कहानियां छोटी किन्तु बेहद ज्ञानवर्धक कहानिया हुआ करती हैं बहुत बहुत धन्यवाद भाई


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