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-   -   प्रेम, प्रणय और धोखा (http://myhindiforum.com/showthread.php?t=1207)

jai_bhardwaj 17-11-2010 09:39 PM

Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
 
Quote:

Originally Posted by Pretatma (Post 15291)


न जाने क्यूँ गले से लिपट कर रोने लगा,
जब हम बरसों बाद मिले,
जाते हुए जिसने ने कहा था ....
की "तुम जैसे लाखों मिलेंगे"…!!!


सोचा है जब भी मैंने, कि धनवान तू बने /
शक दोस्त को खोने का मुझे, बारहा हुआ //
मिलते हैं आज हाथ 'जय', सटते हैं जिस्म भी /
लेकिन दिलों के बीच, बहुत फासला हुआ //
:bang-head:

Kalyan Das 23-11-2010 10:19 AM

Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
 
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http://myhindiforum.com/attachment.p...1&d=1290492971

हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमी,
फिर भी तनहाइयों का शिकार आदमी !

सुबह से शाम तक बोझ ढोता हुआ,
अपनी ही लाश का खुद मज़ार आदमी !!

हर तरफ भागते दोड़ते रास्ते,
हर तरफ आदमी का शिकार आदमी !!

रोज़ जीता हुआ रोज़ मरता हुआ,
हर नए दिन , नया इंतज़ार आदमी !!

ज़िन्दगी का मुकद्दर सफ़र दर सफ़र,
आखरी सांस तक बेकरार आदमी !!
आखरी सांस तक बेकरार आदमी...............!!!

ABHAY 25-11-2010 09:29 AM

Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
 
दिल में एक डर था जिसे अभी मिटा न सका जब
तुम्हे देखा दिल का दर्द मिट गया मगर एक प्रेम रोग लग गया अब
क्या करे हम न तुम मिलने आती हो न मिलने का वादा करती हो क्या होगा इस रोग का !

Kalyan Das 27-11-2010 07:24 PM

Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
 
1 Attachment(s)
http://myhindiforum.com/attachment.p...1&d=1290871153

तेरी चाहत में अक्सर
इस कदर गुजर जाता हूँ मैं !
की मीलों दूर होने पर भी,
तेरे दिल में सिमट जाता हूँ मैं !!
जब तेरी तन्हाई पेश -ए - नज़र पाता हूँ,
तो ठंडी ठंडी चंद आहें
भर कर रह जाता हूँ मैं !
हाय ये अलफ़ाज़ जो कभी,
लबों से बयान होते नहीं
और
आंसू, जिन्हें सिर्फ आँखों से पि जाता हूँ मैं ........!!!

jai_bhardwaj 27-11-2010 11:28 PM

Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
 

मैं और मेरा अकेलापन
सामने फ़ैली हुई पहाड़ियाँ
ढलता हुआ सूरज
पेड़ों के झुरमुट
लम्बे होते हुए साए
ऐसे में तुम बहुत याद आते हो
और तुम यहीं हो
हाँ यहीं तो हो !!

amit_tiwari 28-11-2010 11:12 PM

Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
 
तेरे इश्क ने बक्शी है ये सौगात मुसलसल
तेरा ज़िक्र हमेशा ! तेरी बात मुसलसल !

एक मुद्दत हुई तेरे कूचे से निकले हुए
रहती है फिर भी तुझसे मुलाकात मुसलसल !

दिल लगी, दिल की लगी बन जाती है कमबख्त
जब तसव्वुर में गुज़रती है रात मुसलसल

जब से देखा है ज़ुल्फ़-ऐ-परेशां का आलम
उलझे हुए रहते हैं मेरे दिन रात मुसलसल

मैं मुहब्बत में उस मुकाम पे पहुच चूका हूँ ऐ जाना
मेरी ज़ात में रहती है तेरी ज़ात मुसलसल !!!

jai_bhardwaj 28-11-2010 11:40 PM

Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
 
जीवन समारोह सा लगता, साथ अगर तुम मेरे होते !
चाँद में अपनी बस्ती होती , गलियारे में तारे होते !!
फूलों का अपना रथ होता, जिसे स्वयं ही पवन घुमाता
किन्तु स्वप्न तो स्वप्न रह गए, स्वप्न कहाँ पूरे होते !!

pooja 1990 29-11-2010 05:00 AM

Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
 
bhaiiji bahut khoob .lagta hai aapne pyar me dhoka kaya hai. aapki rachnao ko dekhkar yahi lagta hai. pranam dada ji

Kalyan Das 29-11-2010 06:17 PM

Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
 
Quote:

Originally Posted by pooja 1990 (Post 19918)
bhaiiji bahut khoob .lagta hai aapne pyar me dhoka kaya hai. aapki rachnao ko dekhkar yahi lagta hai. pranam dada ji

पूजा जी, कृपया हिंदी में लिखने की कोशिश कीजिये !
भाईजी के बारे में आपका अंदाजा गलत है ! उनके लिए प्यार का परिभाषा अलग है !वो सबको प्यार करते हैं !! आजकल के सड़कछाप आशिक नहीं हैं !!
और ऐसे सज्जन को कोई धोखा दे नहीं सकता !!
दरअसल वो जो बेचते हैं (e. g. दर्द - ए- दिल) उसको खरीद ते नहीं !!

YUVRAJ 29-11-2010 10:44 PM

Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
 
दर्दो-ग़म दिल की तबीयत बन चुके।
अब यहां वहां आराम ही आराम है॥
इस दिल की किस्मत में तन्हाइयां थीं।
कभी जिसने अपना-पराया न जाना॥


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