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jalwa 04-11-2010 12:18 AM

वक्त के साथ हालात बदल जाते हैं,
अपनो तक के ख्यालात बद्ल जाते हैं,
जब बुरा वक्त आता है 'प्यारे'
खुद अपने ही ज़्ज़बात बदल जाते हैं.

jalwa 04-11-2010 12:27 AM

Quote:

Originally Posted by bhaaiijee (Post 8191)
यह हालिया बयान तुमने पढ़ा नहीं है ?
'जय' फिर अब किसी से बावफा नहीं है !!

वाह क्या बात कही ..दिल गद गद हो गया,
बावफा ना सही बेवफा ही सही,
दोस्त हो आखिर ,झेल ही लेंगे.

jai_bhardwaj 09-11-2010 10:25 PM

तुम्हारी अधखुली पलकों में
ये कैसी मदिरा बहती है /
तुम्हारे अधखिले अधरों में
क्यों गुलाबी धारा बहती है //
तुम्हारे 'जय' कपोलों के उभारों
की सतह स्निग्ध है कितनी
तुम्हारी विस्तृत बाहें क्यों
सुखद सी कारा लगती हैं //
.................................................. .......
कारा...... जेल

jai_bhardwaj 09-11-2010 10:26 PM

तुम्हारे नयनों की जिह्वा
मुझे क्यों चाटती रहती ?
हृदय के बंधनों को वह
सहज ही काटती रहती /
भयंकर ज्वार लाती 'जय'
शिराओं में, लहू में भी,
प्रिये तुम दृष्टि तो फेरो
मुझे यह मारती रहती //

jai_bhardwaj 09-11-2010 10:29 PM


मुझे अपमान के बिछौने
से तुमने ही जगाया था /
मेरे अभिमान के पर्वत
को तुमने ही उठाया था //
साँसों के बवंडर में
फंसे होने पे 'जय' तुमने
मगर मुझको अगन-पथ
पे निरंतर क्यों चलाया था //

jai_bhardwaj 09-11-2010 10:32 PM

''आप'' मेरी दृष्टि में


आपका ललाट है या विन्ध्य का विशाल नग
आपके कपोल हैं या भानु शशि आकाश के /
आपके नयन हैं या मदिर झील हैं कोई
आपकी नासिका है या मनोरम रास्ते //
आपके अधर ज्यों सुधा कलश हों युगल
आपके दन्त ज्यों स्तम्भ हैं प्रकाश के /
आपकी ग्रीवा से झलकते हैं जल बिंदु
जैसे कि दिखते हैं पारदर्शी गिलास से //
कुच की कठोरता में कैसी स्निग्धता है
हीरे में जैसे कि दुग्ध का निवास है /
चपल शेरनी सा कमर का प्रकार 'जय'
आपका रूप है भरा वन-विलास से //
:omg::iagree::iagree::think:
......................................
नग....... पर्वत

jai_bhardwaj 18-11-2010 11:00 PM

Re: छींटे और बौछार
 
चमन के कांटे मुस्काये, चलो फिर से बहार आयी !
फटे दामन छिपाने को, गुलों की फिर कतार आयी !!
हवाओं ने कहा उनसे , ये बादल बिलकुल झूठे 'जय',
मगर मदहोश काँटों को, वो लपटें ना नज़र आयीं !!
:omg::omg::omg:

ndhebar 19-11-2010 10:29 PM

Re: छींटे और बौछार
 
अब तो मजहब कोई, ऐसा भी चलाया जाए
जिसमें इनसान को, इनसान बनाया जाए

आग बहती है यहाँ, गंगा में, झेलम में भी
कोई बतलाए, कहाँ जाकर नहाया जाए

मेरा मकसद है के महफिल रहे रोशन यूँही
खून चाहे मेरा, दीपों में जलाया जाए

मेरे दुख-दर्द का, तुझपर हो असर कुछ ऐसा
मैं रहूँ भूखा तो तुझसे भी ना खाया जाए

जिस्म दो होके भी, दिल एक हो अपने ऐसे
मेरा आँसू, तेरी पलकों से उठाया जाए

कवि : नीरज

jai_bhardwaj 20-11-2010 11:18 PM

Re: छींटे और बौछार
 
सुलग रहे हैं बादल, झुलस रहा है सावन
काल की इस भट्ठी में जलता जीवन ईंधन
सेठ डकारें लेता है पर निर्धन के हैं अनशन
ताल की माटी माथे पर, है पैरों पर चन्दन
बहुत सहे हैं तेरे 'जय', अब ना सहेंगे ठनगन
मृत्यु खड़ी है आँगन में किन्तु हँस रहा जीवन

.............................
ठनगन ............ नखरे /

ndhebar 21-11-2010 08:11 AM

Re: छींटे और बौछार
 
मन को है तुझे देखने की प्यास
तूझ बिन बेचैन है मेरी हर एक सांस

उस एक क्षण के लिए छोड सकता हूं ये जहाँ
जिस पल मे हो तेरी नजदीकी का एहसास

jai_bhardwaj 04-12-2010 12:13 AM

Re: छींटे और बौछार
 
रो रो के लजा करके डोली ने कहा हमसे
बाजार में लूटा है दुल्हन को कहारों ने
दुश्मन तो हैं दुश्मन ही क्या उनसे गिला कीजै
बरबाद किया हमको यारों के सहारों ने
काँटो में भी हँस हँस कर फूलों की तरह जीकर
तकदीर को मारा है तकदीर के मारों ने
उम्मीद की कलियों को बेरहमी से मसला है
अफ़सोस! नए युग के बेशर्म नजारों ने
मुँह मोड़ के मत जाओ, आना है सजन एक दिन
कल हँस के कहा हमसे गुस्ताख़ मज़ारों ने

Kalyan Das 04-12-2010 10:48 AM

Re: छींटे और बौछार
 
1 Attachment(s)

Quote:

Originally Posted by bhaaiijee (Post 12559)
तुम्हारे नयनों की जिह्वा
मुझे क्यों चाटती रहती ?
हृदय के बंधनों को वह
सहज ही काटती रहती /
भयंकर ज्वार लाती 'जय'
शिराओं में, लहू में भी,
प्रिये तुम दृष्टि तो फेरो
मुझे यह मारती रहती //


Kalyan Das 04-12-2010 11:16 AM

Re: छींटे और बौछार
 
1 Attachment(s)
Quote:

Originally Posted by bhaaiijee (Post 12558)
तुम्हारी अधखुली पलकों में,
ये कैसी मदिरा बहती है ?
तुम्हारे अधखिले अधरों में,
क्यों गुलाबी धारा बहती है ??
तुम्हारे 'जय' कपोलों के उभारों
की सतह स्निग्ध है कितनी !
तुम्हारी विस्तृत बाहें क्यों
सुखद सी कारा लगती हैं ???


jai_bhardwaj 04-12-2010 10:50 PM

Re: छींटे और बौछार
 
पंक्तियों को जीवंत करने के लिए हार्दिक आभार बन्धु !!

jai_bhardwaj 04-12-2010 11:23 PM

Re: छींटे और बौछार
 
तुम्हे जब चूमना चाहूँ तो मुंह क्यों फेर लेती हो
मेरी साँसों में बदबू है, या तुम्हारे दाँत गंदे हैं !:cry::cry::cry:
पलंग पर सिमटी हो ऐसे, कि जैसे जोंक हो कोई
कहाँ पर 'जय' तेरे घुटने, कहाँ पर तेरे कंधे हैं !! :bang-head::bang-head::bang-head:

ndhebar 05-12-2010 09:26 AM

Re: छींटे और बौछार
 
प्यार सामने होता है उससे इकरार सामने होता है,
हम जिससे मोहब्बत करते हैं उसका इन्तजार सामने होता है,

इस दबे हुए दिल मे भी तब आँसू कि लडी लग जाती है,
जब किसी गैर कि बाहों मे अपना यार सामने होता है|

Kalyan Das 05-12-2010 01:06 PM

Re: छींटे और बौछार
 
1 Attachment(s)

Quote:

Originally Posted by bhaaiijee (Post 23276)
तुम्हे जब चूमना चाहूँ तो मुंह क्यों फेर लेती हो !
मेरी साँसों में बदबू है, या तुम्हारे दाँत गंदे हैं ??:cry::cry::cry:
पलंग पर सिमटी हो ऐसे, कि जैसे जोंक हो कोई !
कहाँ पर 'जय' तेरे घुटने, कहाँ पर तेरे कंधे हैं ??? :bang-head::bang-head::bang-head:


jai_bhardwaj 05-12-2010 10:41 PM

Re: छींटे और बौछार
 
गुलशन के हर इक फूल की तकदीर है जुदा
है आँखों का नीर एक सा , पर पीर है जुदा
आज़ाद कौन है यहाँ हर सांस कैद है
बस सिर्फ इतना फर्क है कि ज़ंजीर है जुदा
गुजरे दिनों की याद में आहें न भरे हम
हर उम्र , वक्त , दौर की तासीर है जुदा

jai_bhardwaj 05-12-2010 11:07 PM

Re: छींटे और बौछार
 
हम विकट उच्छ्वास लेकर जी रहे हैं
हम हाथों में आकाश लेकर जी रहे हैं
आज हम खुशियाँ समेटे हैं मगर
कुछ सन्निकट संत्रास लेकर जी रहे हैं
क्या शत्रुओं से मित्रता हमने बढ़ा ली
अब मित्रों का उपहास लेकर जी रहे हैं
तुम हमें देखो न देखो, क्या हुआ !
तुम्हारे नेह का आभास लेकर जी रहे हैं
हमने कुछ दिन खूब लंगर थे छके
'जय' निर्जला उपवास लेकर जी रहे हैं

:bike::hi::bike::hi::bike:

Hamsafar+ 08-12-2010 10:52 AM

Re: छींटे और बौछार
 
चल पागल मोहब्बत करनी भी नहीं आती झूठे वादे करके वादा पूरा न करना, जन्मो के इंतजार की बाते करके इस जन्म में भी इंतजार न करना मुरझाये गुल को भी गुलाब बता देना खाली पास बुक अम्बानी की बता देना उधार की गाडी को अपना बना लेना ये हई आज का चलन और तू हई पागल मोहब्बत के नाम पे कुर्बान होता जाता है जान हलाल किया जाता है आँसू बहाए जाता है वफाओं को दुहाई दी जाती है यहाँ किसी को दर्द नहीं होता, यहाँ कोई किसी को नहीं मरता है आज तू, कल कोई और सही बस इसी तर्ज पर मुर्गा कटता रहता है|

jai_bhardwaj 16-05-2011 04:16 PM

Re: छींटे और बौछार
 
बड़े दरख्तों की शाखों का क्या बिगड़ सकता
हवा का जोर तो चिड़ियों के आशियाँ तक था
-------------------------------------------------------
कहिये किसी से हाल ना अपना मेरी तरह
रह जाईयेगा आप भी तनहा मेरी तरह
दो चार दिन रहो तो मेरे हमनशीं जनाब
खुद सीख लेंगे आप भी जीना मेरी तरह
------------------------------------------------------
जिन्हें सलीका है तहजीब-ए-गम समझने का
उन्ही के रोने में आंसू नज़र नहीं आते
खुशी की आँख में आंसू की जगह भी रखना
बुरे जमाने कभी पूछ कर नहीं आते
--------------------------------------------------------
वो आंसू बन के उनकी, पलकों के घर में रहता है
पागल कहोगे उसको,'जय' पानी के घर में रहता है

jai_bhardwaj 18-05-2011 03:59 PM

Re: छींटे और बौछार
 
आप तो रात को सो लिए साहब
हमने तकिये भिगो लिए साहब :cryingbaby:
हम भी मुंह में जुबान रखते हैं
इतना ऊँचा ना बोलिए साहब :nono:

khalid 18-05-2011 05:19 PM

Re: छींटे और बौछार
 
Quote:

Originally Posted by bhaaiijee (Post 87067)
आप तो रात को सो लिए साहब
हमने तकिये भिगो लिए साहब :cryingbaby:
हम भी मुंह में जुबान रखते हैं
इतना ऊँचा ना बोलिए साहब :nono:

यह शेर हैँ या धमकी भाई जी

jai_bhardwaj 20-05-2011 12:47 AM

Re: छींटे और बौछार
 
मौक़ा है दस्तूर भी है, और हसीन रात है
तुम हमसे बहुत दूर हो,इतनी सी बात है
हम तेरे दर पे आ गए, बस यूं ही यकबयक :horse:
तुमको गले लगाना, मेरे वास्ते सौगात है :cheers:
क्यों तुमको दीखते हैं 'जय', डालर-ओ-दीनार
इस मुल्क की मिट्टी ही, बहुत बड़ी बात है

jai_bhardwaj 20-05-2011 12:50 AM

Re: छींटे और बौछार
 
Quote:

Originally Posted by khalid1741 (Post 87077)
यह शेर हैँ या धमकी भाई जी

नहीं मित्र , यह धमकी कदापि नहीं थी बल्कि यह काव्य पंक्तियाँ मात्र हैं / धन्यवाद /

naman.a 20-05-2011 01:20 AM

Re: छींटे और बौछार
 
दो एक अपनी बनाई पक्तिया लिखने का सहास कर रहा हूं ।

गम की अन्धेरी रातो मे जिनको छुपा के रखा था
दु:ख के भंवर जाल मे जिनको दबा के रखा था
दो पल खुशी मे ही अपना ईमान ही खो दिया
ऐसे निकल पड़े आखो से जैसे ………………………………

जय भाई पंक्ति को पूर्ण करे शब्द नही मिल रहे ।

jai_bhardwaj 20-05-2011 01:40 AM

Re: छींटे और बौछार
 
Quote:

Originally Posted by naman.a (Post 87558)
दो एक अपनी बनाई पक्तिया लिखने का सहास कर रहा हूं ।

गम की अन्धेरी रातो मे जिनको छुपा के रखा था
दु:ख के भंवर जाल मे जिनको दबा के रखा था
दो पल खुशी मे ही अपना ईमान ही खो दिया
ऐसे निकल पड़े आखो से जैसे ………………………………

जय भाई पंक्ति को पूर्ण करे शब्द नही मिल रहे ।

गम की अन्धेरी रातो मे जिनको छुपा के रखा था
दु:ख के भंवर जाल मे जिनको दबा के रखा था
दो पल खुशी मे ही अपना ईमान भी खो दिया
ऐसे निकल पड़े आखो से जैसे सजा के रखा था
शब्द चयन में त्रुटि हो सकती है अतः अपराध क्षम्य हो बन्धु ............... जय राम जी की :horse://

prashant 20-05-2011 08:41 AM

Re: छींटे और बौछार
 
सभी रचनाकार से निवेदन है की अपनी पंक्तियों का पंजीकरण करवा लें/
नहीं तो किसी भी समय प्रीतम की बुरी नजर पड़ सकती है/:)

ndhebar 20-05-2011 05:14 PM

Re: छींटे और बौछार
 
Quote:

Originally Posted by jai_bhardwaj (Post 87560)
गम की अन्धेरी रातो मे जिनको छुपा के रखा था
दु:ख के भंवर जाल मे जिनको दबा के रखा था
दो पल खुशी मे ही अपना ईमान भी खो दिया
ऐसे निकल पड़े आखो से जैसे सजा के रखा था
शब्द चयन में त्रुटि हो सकती है अतः अपराध क्षम्य हो बन्धु ............... जय राम जी की :horse://

जय भैया कुछ जमा नहीं
यहाँ कुछ उपमा होता तो ज्यादा सटीक लगता
जैसे बिन बदल बरसात, जैसे ...................................

khalid 20-05-2011 06:41 PM

Re: छींटे और बौछार
 
Quote:

Originally Posted by naman.a (Post 87558)
दो एक अपनी बनाई पक्तिया लिखने का सहास कर रहा हूं ।

गम की अन्धेरी रातो मे जिनको छुपा के रखा था
दु:ख के भंवर जाल मे जिनको दबा के रखा था
दो पल खुशी मे ही अपना ईमान ही खो दिया
ऐसे निकल पड़े आखो से जैसे ………………………………

जय भाई पंक्ति को पूर्ण करे शब्द नही मिल रहे ।

नल लगा रखा हैँ

jai_bhardwaj 20-05-2011 11:52 PM

Re: छींटे और बौछार
 
उन्हें गुल जब भी देता है , उसे गुलदान मिलता है
नज़र उनसे अगर मिलती, तो थरथर जिस्म हिलता है
अज़ब है दास्ताँ उसकी , अज़ब है शख्सियत उसकी
है जीने की तमन्ना भी मगर घुट घुट के मरता है
बहारों का ये मौसम है, गुल-ओ-गुलज़ार है हर सू
मगर उसके ख्यालों में, मरुस्थल ही दहकता है
अगर बाजू में आ जाएँ , क़यामत टूट पड़ती 'जय'
खुदा जाने न जाने क्यों ,उन्ही पर दिल मचलता है

jai_bhardwaj 21-05-2011 12:07 AM

Re: छींटे और बौछार
 
Quote:

Originally Posted by ndhebar (Post 87677)
जय भैया कुछ जमा नहीं
यहाँ कुछ उपमा होता तो ज्यादा सटीक लगता
जैसे बिन बदल बरसात, जैसे ...................................

Quote:

Originally Posted by khalid1741 (Post 87707)
नल लगा रखा हैँ

:cryingbaby:बिन बादल बरसात कर गए नयना मेरे
सावन का आभास करा गए नयना मेरे:cryingbaby:
:cryingbaby:उषा से संध्या तक 'जय' यूं सजल रहे
पर निशांत तक सूख चुके थे नैना मेरे:crazyeyes:

(अरे भाई सुबह सुबह बिजली की कटौती के कारण पम्प बंद हो गया था :giggle::giggle::giggle:.... हा हा हा हा .... )

ndhebar 21-05-2011 11:27 AM

Re: छींटे और बौछार
 
Quote:

Originally Posted by khalid1741 (Post 87707)
नल लगा रखा हैँ

अरे वाह रे मेरे हास्य कवी सम्राट

Kalyan Das 24-05-2011 09:10 AM

Re: छींटे और बौछार
 
1 Attachment(s)

Quote:

Originally Posted by jai_bhardwaj (Post 86568)
जिन्हें सलीका है तहजीब-ए-गम समझने का
उन्ही के रोने में आंसू नज़र नहीं आते
खुशी की आँख में आंसू की जगह भी रखना
बुरे जमाने कभी पूछ कर नहीं आते


jai_bhardwaj 24-05-2011 02:25 PM

Re: छींटे और बौछार
 
ज़िन्दगी में कुछ नहीं तो भी बहुत है ज़िन्दगी
हादसों को भूल जाओ, खुशनुमा है ज़िन्दगी //:cheers:

भूख और ग़ुरबत के माने यह नहीं कि चुक गयी
मुफ्त की हैं साँसे यारो, काट भी लो ज़िन्दगी //:elephant:

हादसे हरदम नहीं होते हैं केवल ग़मज़दा
हादसों की तल्खी से ही है निखरती ज़िन्दगी //

बहुत गहरे ज़ख्मों को भी वक्त का मरहम भरे
वक्त तो तब ही मिलेगा जब जियोगे ज़िन्दगी //:banalema:

चाहने भर से कोई मिलती नहीं हैं नेमतें
नेमतों के वास्ते, जीनी पड़ेगी ज़िन्दगी //

जीतने का ज़ज्बा आता हौसलापस्ती के बाद
ज़ज्बा 'जय' कायम रहेगा गर रहेगी ज़िन्दगी // :think:

jai_bhardwaj 24-05-2011 02:28 PM

Re: छींटे और बौछार
 
Quote:

Originally Posted by kalyan (Post 88495)

इन आखों की कोरों में लरजते अश्क कहते हैं :cryingbaby:
हज़ारों बार रोका 'जय' मगर अब तो निकलते हैं :cryingbaby:
हमें पाला है पोसा है इन आँखों ने मुहब्बत से :banalema:
ज़माने का नज़रिया है, बिछड़ते वे जो मिलते हैं :horse:

prashant 24-05-2011 02:47 PM

Re: छींटे और बौछार
 
Quote:

Originally Posted by jai_bhardwaj (Post 88571)
इन आखों की कोरों में लरजते अश्क कहते हैं :cryingbaby:
हज़ारों बार रोका 'जय' मगर अब तो निकलते हैं :cryingbaby:
हमें पाला है पोसा है इन आँखों ने मुहब्बत से :banalema:
ज़माने का नज़रिया है, बिछड़ते वे जो मिलते हैं :horse:

इस कविता की दाद दिए बिना मैं नहीं रह पाया
जब भी आँखों को देख जय तेरी कविता याद आई.

khalid 24-05-2011 02:54 PM

Re: छींटे और बौछार
 
Quote:

Originally Posted by prashant (Post 88579)
इस कविता की दाद दिए बिना मैं नहीं रह पाया
जब भी आँखों को देख जय तेरी कविता याद आई.

पढने के बाद सुनाने को गया तो लफ्ज बे आवाज रही

jai_bhardwaj 25-05-2011 12:28 AM

Re: छींटे और बौछार
 
साथी है, हमसफ़र है, हमराज मेरी संगिनी
पूरा हुआ जो, ख्वाब है , वो मेरी संगिनी //
शबनम सी सलोनी है , रेशम सी नरम है
सिमटी सी काएनात है, मेरी संगिनी //
जेहन में कभी भी,आये न जिसके रस्क
वो प्रेम की बरसात है, मेरी संगिनी //
ज़िन्दगी में जब कभी, घबरा गए हम
मुझको दिखाई राह तब मेरी संगिनी//
जीते हैं बहुत मेडल-इनाम-ओ-शुक्रिया
अल्लाह की सौगात है, मेरी संगिनी //
'जय' उसको मोहब्बत का मसीहा कहता है
वो खुद को कहे बागबाँ, हाँ मेरी संगिनी //:think:

khalid 25-05-2011 07:53 AM

Re: छींटे और बौछार
 
Quote:

Originally Posted by jai_bhardwaj (Post 88678)
साथी है, हमसफ़र है, हमराज मेरी संगिनी
पूरा हुआ जो, ख्वाब है , वो मेरी संगिनी //
शबनम सी सलोनी है , रेशम सी नरम है
सिमटी सी काएनात है, मेरी संगिनी //
जेहन में कभी भी,आये न जिसके रस्क
वो प्रेम की बरसात है, मेरी संगिनी //
ज़िन्दगी में जब कभी, घबरा गए हम
मुझको दिखाई राह तब मेरी संगिनी//
जीते हैं बहुत मेडल-इनाम-ओ-शुक्रिया
अल्लाह की सौगात है, मेरी संगिनी //
'जय' उसको मोहब्बत का मसीहा कहता है
वो खुद को कहे बागबाँ, हाँ मेरी संगिनी //:think:

शाँपिँग करने मेँ कभी ना थक मेरी संगिनी
रात को घर देर से आओ सौ प्रश्न पुछती हैँ मेरी संगिनी
कभी भी हँसो तो आँखेँ दिखाती हैँ मेरी संगिनी
और मत कुछ पुँछे पता नही
क्या क्या रंग दिखाती हैँ मेरी संगिनी:cryingbaby:


All times are GMT +5. The time now is 07:37 AM.

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