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-   -   छींटे और बौछार (http://myhindiforum.com/showthread.php?t=1019)

jai_bhardwaj 09-07-2013 08:50 PM

Re: छींटे और बौछार
 
जब किसी तरुणी से मेरी दृष्टि मिलती है
तब मेरी आँखों में तेरी, छवि उभरती है
झुर्री-मय चेहरे पे तेरे, पोपला मुँह 'जय'
श्वेत केशों में सिंदूरी, रेखा दमकती है

jai_bhardwaj 09-07-2013 08:57 PM

Re: छींटे और बौछार
 
कल पूर्णिमा थी, चाँद था, तुम भी तो थीं
चाँद के अन्दर की छवि, तेरी तो थी
'जय' तेरे चेहरे को कुछ पल देख पाता
अल्हड सी बदली, चाँद को ढकती गयी

jai_bhardwaj 09-07-2013 09:04 PM

Re: छींटे और बौछार
 
कल कहा चातक ने मेरे कान में
'जय' सुनो इक बात मेरी ध्यान से
अब बे-सुरे पीते - नहाते ठाठ से
मैं बूँद माँगू वो भी सुर और तान से

jai_bhardwaj 11-07-2013 08:25 PM

Re: छींटे और बौछार
 
विह्वल पवन जब मचल करके, बादलों से जा मिली
अंक में भर कर सजल-घन, अधर-मदिरा चूम ली
कर रहा घन घोर गर्जन, मिलन के अतिरेक में
ऊष्मा के शिखर से, टकरा के 'जय' बूँदे चली ||

jai_bhardwaj 11-07-2013 08:35 PM

Re: छींटे और बौछार
 
अब पवन को देखिये, वो कितनी भोली हो गयी
वर्षा के उपरान्त बिलकुल, शांत शीतल हो गयी
रह रह के झोंका ले रही 'जय' वो किसी अंगडाई सी
या कि फिर से है सँभलती, या कि निश्चल हो गयी

jai_bhardwaj 11-07-2013 08:47 PM

Re: छींटे और बौछार
 
लहलहाते खेत देखो, उडती चिड़िया रोकते हैं
पास से निकले हवा तो, छेड़ते हैं, टोकते हैं
पवन भी फुसला के उनको, उनके सर कर फेरती
खेत हँसते खिलखिलाते,'जय'न आँचल छोड़ते हैं

rajnish manga 11-07-2013 11:22 PM

Re: छींटे और बौछार
 
पावस ऋतू पर टेर कवि की
हर इक को हरषा जाती है
रिमझिम रिमझिम वर्षा रानी
जन-जन के मन भा जाती है

वर्षा ऋतु की मांग के अनुसार आपकी अनेकों चतुष्पदी पाठकों के मन को आह्लादित करती हैं. आपसे प्रेरणा पा कर चार पंक्तियाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ:

हवा, चिड़िया, खेत, बादल का परस्पर प्यार देख.
ग्रीष्म का व्याकुल हुआ विव्हल हुआ संसार देख.
ग्राम, पुर, वन - प्रांतर में, है हर कोई बौरा गया
झूम तू भी मन मेरे, आ प्रकृति का सिंगार देख.

jai_bhardwaj 12-07-2013 07:35 PM

Re: छींटे और बौछार
 
Quote:

Originally Posted by rajnish manga (Post 320624)
पावस ऋतू पर टेर कवि की
हर इक को हरषा जाती है
रिमझिम रिमझिम वर्षा रानी
जन-जन के मन भा जाती है

वर्षा ऋतु की मांग के अनुसार आपकी अनेकों चतुष्पदी पाठकों के मन को आह्लादित करती हैं. आपसे प्रेरणा पा कर चार पंक्तियाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ:

हवा, चिड़िया, खेत, बादल का परस्पर प्यार देख.
ग्रीष्म का व्याकुल हुआ विव्हल हुआ संसार देख.
ग्राम, पुर, वन - प्रांतर में, है हर कोई बौरा गया
झूम तू भी मन मेरे, आ प्रकृति का सिंगार देख.

मैं झुकाऊँ माथ माता, गुरु, पिता और ईश को
विद्वतजनों के सामने भी मैं झुकाऊँ शीश को
इस कड़ी में जुड़ गया है एक सादर नाम यह
'जय' कर रहा है नमन, अब श्री रजनीश को

jai_bhardwaj 12-07-2013 08:21 PM

Re: छींटे और बौछार
 
एक मनचला झोंका हवा का, लट तेरी बिखरा गया
सच कहूँ .. 'जय' आज अपने आप से टकरा गया
नियम-संयम, धर्म और सुविचार से कुश्ती हुयी
कैसे और क्यों कर हुआ है सर मेरा चकरा गया

rajnish manga 12-07-2013 10:19 PM

Re: छींटे और बौछार
 
Quote:

Originally Posted by jai_bhardwaj (Post 321120)

मैं झुकाऊँ माथ माता, गुरु, पिता और ईश को
विद्वतजनों के सामने भी मैं झुकाऊँ शीश को
इस कड़ी में जुड़ गया है एक सादर नाम यह
'जय' कर रहा है नमन, अब श्री रजनीश को

जय जी, आपकी उदारता की कोई सीमा नहीं, जिसने मुझे द्रवित कर दिया. बंधू, यह आपका बड़प्पन है. आपके सामने नतमस्तक हो कर सिर्फ इतना कहूँगा कि मैं इस अर्ध्य के काबिल नहीं:

मित्र लाऊंगा कहां से आपका सा ज्ञान मैं
आपकी सी योग्यता दिव्य दृष्टि ध्यान मैं
मेरी क्या हस्ती भला मेरी क्या औकात जो
अपने कासे में रखूं इतना बड़ा सम्मान मैं
(कासा = भीख मांगने का कटोरा)


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