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rajnish manga 20-09-2014 08:32 PM

Re: गुण और कला
 
लावण्या जी ने विचार विमर्श हेतु एक अच्छा विषय रखा और सभी से इस विषय पर विचार आमंत्रित किये. विचार विमर्श में रफ़ीक जी, डॉ श्री विजय, श्रीमान empty mind, दीप जी व पुष्प सोनी जी ने हाग लिया और बड़े सुंदर विचार प्रस्तुत किये. ‘गुण तथा कला’ विषय पर तर्क-सम्मत निष्कर्ष निकाले गये.

मोटे तौर पर यह स्वीकार किया गया कि गुण व्यक्ति में जन्मजात होते हैं जबकि कलाओं का विधिवत विकास किया जाता है – सीख कर अथवा साधना के रास्ते पर चल कर. कुछ गुणों को हम यत्नपूर्वक कला में तब्दील कर भी कर सकते हैं.

इसी कड़ी में दूसरा विचार यह प्रस्तुत किया गया कि किसी मनुष्य का ‘सीधापन’ वास्तव में गुण है या कुछ और. भाई empty mind ने बताया कि सीधा व्यक्ति वह है जिसमे छल कपट नहीं होता. यही कारण है कि उसे कोई भी आसानी से ठग लेता है. इस पर लावण्या जी ने निष्कर्ष निकाला कि सीधापन किसी व्यक्ति का गुण न होकर कमजोरी है.ऐसा व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के गुण-दोष की समीक्षा नहीं कर पाता इसलिये ठगा जाता है. तात्पर्य यह है कि सीधापन किसी व्यक्ति का गुण नहीं, दोष है और यह उसकी बेवकूफ़ी है.

rajnish manga 20-09-2014 08:38 PM

Re: गुण और कला
 
यहाँ पर मैं कुछ कहना चाहता हूँ. वह यह कि आज के युग में सीधा या निष्कपट होना एक दुर्लभ गुण है. निष्कपट व्यक्ति दूसरे को धोखा नहीं देगा भले ही उसके सीधेपन का फ़ायदा औरों द्वारा उठाया जाये. मगर इसका मतलब यह नहीं है कि सीधापन किसी सीधे व्यक्ति का का गुण न हो कर दुर्गुण करार दिया जाये और उसकी बराबरी बेवकूफी से की जाये. आप मुझे यह बतायें कि हमारे आसपास जो अपराध देखने में आते हैं क्या अपराध की उन सभी वारदातों में शिकार हुये व्यक्ति सीधे थे या सीधेपन से ग्रस्त बेवकूफ थे.

आप यह मानेंगे कि तमाम खराबियों के, अपराधियों के, कातिलों के, उग्रवादियों के, षड्यंत्रकारियों के यह दुनिया चल रही है. बड़े बड़े आक्रांता भी अपनी मनमानी अधिक समय तक नहीं चला सके. और इसके पीछे कौन है? इसके पीछे हैं सच्चाई व अच्छाई, अच्छे लोग और अच्छी सोच. यदि संसार से अच्छाई खत्म हो जाये तो संसार का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा. अंत में कहूँगा कि सीधापन दोष नहीं एक गुण है और इसे गुण के रूप में ही समादृत किया जाना चाहिए. आप सभी मित्रों का हार्दिक धन्यवाद.

Pavitra 22-09-2014 02:13 PM

Re: गुण और कला
 
Quote:

Originally Posted by rajnish manga (Post 528451)
यहाँ पर मैं कुछ कहना चाहता हूँ. वह यह कि आज के युग में सीधा या निष्कपट होना एक दुर्लभ गुण है. निष्कपट व्यक्ति दूसरे को धोखा नहीं देगा भले ही उसके सीधेपन का फ़ायदा औरों द्वारा उठाया जाये. मगर इसका मतलब यह नहीं है कि सीधापन किसी सीधे व्यक्ति का का गुण न हो कर दुर्गुण करार दिया जाये और उसकी बराबरी बेवकूफी से की जाये. आप मुझे यह बतायें कि हमारे आसपास जो अपराध देखने में आते हैं क्या अपराध की उन सभी वारदातों में शिकार हुये व्यक्ति सीधे थे या सीधेपन से ग्रस्त बेवकूफ थे.

आप यह मानेंगे कि तमाम खराबियों के, अपराधियों के, कातिलों के, उग्रवादियों के, षड्यंत्रकारियों के यह दुनिया चल रही है. बड़े बड़े आक्रांता भी अपनी मनमानी अधिक समय तक नहीं चला सके. और इसके पीछे कौन है? इसके पीछे हैं सच्चाई व अच्छाई, अच्छे लोग और अच्छी सोच. यदि संसार से अच्छाई खत्म हो जाये तो संसार का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा. अंत में कहूँगा कि सीधापन दोष नहीं एक गुण है और इसे गुण के रूप में ही समादृत किया जाना चाहिए. आप सभी मित्रों का हार्दिक धन्यवाद.


रजनीश जी आपने इस चर्चा को एक नया ही मोड़ दिया और मेरी जिज्ञासा भी आपका उत्तर देख कर थोड़ी शांत हुई है।
अब जो बात दिमाग में आई है वो ये कि सीधा होना और साफ़ दिल होना क्या एक ही बात होती हैं ? जैसा की आपने कहा कि अगर दुनिया से अच्छाई ख़त्म हो जाये तो दुनिया का अस्तित्व ही नहीं रहेगा , तो अगर कोई व्यक्ति चालाक हो या कहना उचित होगा कि अगर कोई व्यक्ति चतुर हो तब भी तो वो साफ़ दिल , और अच्छा हो सकता है। जैसे - बीरबल , बीरबल सीधे नहीं थे , उनकी गिनती तो चतुर लोगों में होती है। परन्तु वो बहुत ही अच्छे और साफ़ दिल थे। एक और उदाहरण लें तेनालीरमन का।

निश्चित ही सीधापन एक गुण है , तभी तो सब लोग तारीफ में कहते हैं कि " वह व्यक्ति बहुत सीधा है " …।पर मुझे वास्तव में जिज्ञासा यह थी कि हमारे पास ऐसे कई शब्द हैं जैसे - मासूम , निश्छल , सच्चा , अच्छा , सरल तो फिर ये सीधापन शब्द ही क्यों ज़्यादा प्रयोग में आता है। और वास्तव में जब लोग किसी को सीधा कहते हैं तो किस बात से प्रभावित होकर कहते हैं ?

Pavitra 23-09-2014 11:37 PM

Re: गुण और कला
 
" वाक्पटुता " को कला की श्रेणी में रखना उचित होगा या इसे गुण की श्रेणी में रखा जाना चाहिए ?

Pavitra 23-09-2014 11:41 PM

Re: गुण और कला
 
क्या बात बनाना सीखा जा सकता है ?
अक्सर लोगों को बात करने में दिक्कत होती है , उन्हें समझ ही नहीं आता कि क्या बात करें , किस विषय पर बात करें कि सामने वाला व्यक्ति प्रभावित हो ? और अगर प्रभावित ना भी हो तो कम से कम हमारा बुरा प्रभाव तो न पड़े उसपे या वो बोर तो न हो हमारी बातों से।

तो बात बनाने का जो ये कौशल होता है लोगों में वो जन्मजात होता है ? या लोग आस-पास के माहौल से सीखते हैं ?

ये गुण है या कला ?

Rajat Vynar 24-09-2014 12:26 PM

Re: गुण और कला
 
Quote:

Originally Posted by pavitra (Post 528976)
" वाक्पटुता " को कला की श्रेणी में रखना उचित होगा या इसे गुण की श्रेणी में रखा जाना चाहिए ?

‘वाक्पटुता’ न ही गुण है और न ही कला क्योंकि यह बात मनुष्य के दिमाग के ‘प्रोसेसर’ पर निर्भर करती है. मस्तिष्क जितना तेज़ी से काम करता है, उतनी ही वह ‘वाक्पटु’ माना जाता है. इसे iq भी कहते हैं. अतः वाक्पटुता को सीखा नहीं जा सकता.

Pavitra 24-09-2014 02:07 PM

Re: गुण और कला
 
Quote:

Originally Posted by rajat vynar (Post 529086)
‘वाक्पटुता’ न ही गुण है और न ही कला क्योंकि यह बात मनुष्य के दिमाग के ‘प्रोसेसर’ पर निर्भर करती है. मस्तिष्क जितना तेज़ी से काम करता है, उतनी ही वह ‘वाक्पटु’ माना जाता है. इसे iq भी कहते हैं. अतः वाक्पटुता को सीखा नहीं जा सकता.



जिस चीज़ को हम सीख न सकें तो वो फिर हमारे अंदर जन्मजात हुई , है न ?
यानि अगर कोई व्यक्ति बात करने में माहिर हो तो वो एक तरह से गॉड गिफ्टेड क्वालिटी ही कही जाएगी न ?

तो फिर तो वाक्पटुता गुण ही हुई.....

emptymind 24-09-2014 11:17 PM

Re: गुण और कला
 
Quote:

Originally Posted by Pavitra (Post 529089)
जिस चीज़ को हम सीख न सकें तो वो फिर हमारे अंदर जन्मजात हुई , है न ?
यानि अगर कोई व्यक्ति बात करने में माहिर हो तो वो एक तरह से गॉड गिफ्टेड क्वालिटी ही कही जाएगी न ?

तो फिर तो वाक्पटुता गुण ही हुई.....

ये तो बहुत सिम्पल है भाई लोग.....
वाक (बोलना) गुण है,
और वाक्पटु (बोलने मे निपुण) होना कला।
:egyptian::egyptian:

Rajat Vynar 25-09-2014 05:20 PM

Re: गुण और कला
 
Quote:

Originally Posted by pavitra (Post 529089)
जिस चीज़ को हम सीख न सकें तो वो फिर हमारे अंदर जन्मजात हुई , है न ?
यानि अगर कोई व्यक्ति बात करने में माहिर हो तो वो एक तरह से गॉड गिफ्टेड क्वालिटी ही कही जाएगी न ?

तो फिर तो वाक्पटुता गुण ही हुई.....

पवित्रा जी, सामाजिक परिवेश के अनुरूप मनुष्य के गुण बदल सकते हैं, यथा- दयालु और कृपालु व्यक्ति कठोर बन सकता है. वाक्पटुता नहीं बदलती. अतः वाक्पटुता गुण नहीं.

Pavitra 25-09-2014 11:36 PM

Re: गुण और कला
 
ओह! अब तो और भी confuse हो गयी हूँ मैं। …


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