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soni pushpa 10-11-2014 12:35 AM

Re: ------------गुस्सा------------
 
[QUOTE=kuki;538913]सोनी पुष्पा जी मैं आपकी बात से सहमत हूँ की जब गुस्सा हमारा स्वभाव बन जाता है तो वो वाकई ख़राब होता है ,और सबसे ज़्यादा नुकसान हमें ही पहुंचता है। जैसे आपने कहा की कोई व्यक्ति घर आते ही अपने बीवी -बच्चों पर बरस पड़े तो ये सही नहीं है ,लेकिन कई बार हमें पता

प्रिय kuki जी ,... बिलकुल सही कहा आपने , की जब कोई घर आकर सीधे बरस पड़े तब उसकी वजह जानना बहुत जरुरी होता है न की सामने वाले के गुस्से के सामने आप भी गुस्सा करने लगो और एक बात में यहाँ ये जरुर कहना चाहूंगी की एइसा गुस्सा एक दो दिन की बात हो तब ठीक है किन्तु यदि हर रोज एइसा होते रहे तब घर अखाडा बन जायेगा जहा हमेशा वाकयुद्ध होगा और साथ ही क्लेश के वातावरण में घर के सभी सदस्यों का जीना दूभर हो जायेगा इससे अच्छा ये होगा की घर में आकार अपना गुस्सा निकलने की बजाय घर के सदस्यों से बात की जाय ..

इस सूत्र को आगे बढाने के लिए आपकी अभारी हु kuki जी धन्यवाद

Arvind Shah 10-11-2014 01:50 AM

Re: ------------गुस्सा------------
 
Quote:

Originally Posted by soni pushpa (Post 538512)
बहुत बहुत धन्यवाद अरविन्द जी गुस्सा ब्लॉग पर आपनी प्रतिक्रिया प्रकट करने के लिए ..... आपके तर्क बहुत अछे और समझने वाले हैं . किन्तु आपसे एक निवेदन करना चाहूंगी की जब मैंने ब्लॉग शुरू किया तब पहले ही पेराग्राफ में गुस्से की वजह के बारे में लिखा है और उसका निदान करने के लिए पहले अपनी समस्यायों पर ध्यान के लिए कहा है ,... उसके बाद हँसना क्यूँ जरुर है हंसने के क्या फायदे है ये बताया गया है चूँकि , गुस्से से होते नुक्सान को पाठकों तक पहुचने का मेरा उद्देश्य था इसलिए गुस्से से होते नुकसान से संभलकर keise हँसाने के लाभ मिलते हैं उनका वर्णन करना जरुरी था उनके लाभ बताने जरुरी थे सिरफ़ गुस्से के बारे में लिखने से पाठक इस ब्लॉग को पढ़े बिना बंद कर देते क्यूंकि उन्हें मुझपर गुस्सा आ जाता :laughing:

धन्यवाद...


जी सोनीजी मैं आपकी बात से भी सहमत हूं ! पर से सतही कारण है !! असली जड़ नहीं है ! जब तक जडे नहीं काटी जायेगी तब तक असली समाधान नहीं होन वाला !!

soni pushpa 10-11-2014 10:28 AM

Re: ------------गुस्सा------------
 
Quote:

Originally Posted by Arvind Shah (Post 538955)
जी सोनीजी मैं आपकी बात से भी सहमत हूं ! पर से सतही कारण है !! असली जड़ नहीं है ! जब तक जडे नहीं काटी जायेगी तब तक असली समाधान नहीं होन वाला !!

जी अरविन्द जी ... आप आपने विचार जरुर रखें .
keise इस समस्या की जड़ों को कटा जा सकता है? इस बारे में आपसे हम सब जानना चाहेंगे . इस ब्लॉग को कई लोग जब पढेंगे तब आपकी कही बातो से किसी को अपना गुस्सा कम करने की राह मिल जाये शायद .

बहुत बहुत धन्यवाद ...

rafik 10-11-2014 01:08 PM

Re: ------------गुस्सा------------
 
हम चिल्लाते क्यों हैं गुस्से में? एक बार एक संत अपने शिष्यों के साथ बैठे थे। अचानक उन्होंने सभी शिष्यों से एक सवाल पूछा। बताओ जब दो लोग एक दूसरे पर गुस्सा करते हैं तो जोर-जोर से चिल्लाते क्यों हैं? शिष्यों ने कुछ देर सोचा और एक ने उत्तर दिया : हम अपनी शांति खो चुके होते हैं इसलिए चिल्लाने लगते हैं। संत ने मुस्कुराते हुए कहा : दोनों लोग एक दूसरे के काफी करीब होते हैं तो फिर धीरे-धीरे भी तो बात कर सकते हैं। आखिर वह चिल्लाते
क्यों हैं? कुछ और शिष्यों ने भी जवाब दिया लेकिन संत संतुष्ट नहीं हुए और उन्होंने खुद उत्तर
देना शुरू किया। वह बोले : जब दो लोग एक दूसरे से नाराज होते हैं तो उनके दिलों में दूरियां बहुत बढ़ जाती हैं। जब दूरियां बढ़ जाएं तो आवाज को पहुंचाने के लिए उसका तेज होना जरूरी है।
दूरियां जितनी ज्यादा होंगी उतनी तेज चिल्लाना पड़ेगा। दिलों की यह दूरियां ही दो गुस्साए लोगों को चिल्लाने पर मजबूर कर देती हैं। वह आगे बोले, जब दो लोगों में प्रेम होता है तो वह एक दूसरे से बड़े आराम से और धीरे-धीरे बात करते हैं। प्रेम दिलों को करीब लाता है और करीब तक आवाज पहुंचाने के लिए चिल्लाने की जरूरत नहीं। जब दो लोगों में प्रेम और भी प्रगाढ़ हो जाता है तो वह खुसफुसा कर भी एक दूसरे तक अपनी बात पहुंचा लेते हैं। इसके बाद प्रेम की एक अवस्था यह भी आती है कि खुसफुसाने की जरूरत भी नहीं पड़ती। एक दूसरे की आंख में देख कर ही समझ आ जाता है कि क्या कहा जा रहा है। शिष्यों की तरफ देखते हुए संत बोले : अब जब
भी कभी बहस करें तो दिलों की दूरियों को न बढ़ने दें। शांत चित्त और धीमी आवाज में बात करें। ध्यान रखें कि कहीं दूरियां इतनी न बढ़े जाएं कि वापस आना ही मुमकिन न हो।

Arvind Shah 10-11-2014 10:47 PM

Re: ------------गुस्सा------------
 
Quote:

Originally Posted by soni pushpa (Post 539110)
जी अरविन्द जी ... आप आपने विचार जरुर रखें .
Keise इस समस्या की जड़ों को कटा जा सकता है? इस बारे में आपसे हम सब जानना चाहेंगे . इस ब्लॉग को कई लोग जब पढेंगे तब आपकी कही बातो से किसी को अपना गुस्सा कम करने की राह मिल जाये शायद .

बहुत बहुत धन्यवाद ...

जी बिल्कुल मैं भी यही चाहता हू कि सभी उस स्त्रोत को जान लें जहां से क्रोध जनम लेता है !!

Arvind Shah 10-11-2014 11:18 PM

Re: ------------गुस्सा------------
 
मित्रों अब मैं क्रोध के सम्बन्ध में अपनी बात आगे बढाता हूं !

मित्रों सदियों से ऋषि—मुनि, साधु—संत कहते आये है कि ये मत करो, वो मत करो ! ..और कोई पुछ ले कि क्यो ? तो वो कारण भी बता देते है कि इससे ये होगा... उससे वो हो जायेगा !!
...और ये सब कहते सुनते सदियां बित गई पर कोई सुधारा नहीं हुआ ! सब कुछ जस का तस है !
...कारण कि उन्होने कभी भी वास्तविकता को लोगो में परोसा ही नहीं ! ...और इसका भी कारण था कि इन सब बुराईयों को सही रूप में समझने के लिए पर्याप्त धैर्य, लगन, चिन्तन, मनन, विषद् अध्ययन, और व्यवहारि ज्ञान की आवश्यकता थी ! जिसकी साधारण जन मानस में अपेक्षा व्यर्थ थी !.....और कदाचित् बताते भी तो निरसता के कारण उब कर भाग जाते !

इसीलिए उन्होने इसे सरस बनाया और विभीन्न कहानियों और दृष्टान्तो से इन बुराईयों से अवगत कराया और इनसे होने वाले नुकसान आदि को बताया !

क्रमश:....

Rajat Vynar 11-11-2014 07:35 PM

Re: ------------गुस्सा------------
 
इसमें इतनी लम्बी-चौड़ी बहस करने की क्या ज़रुरत है? फिल्म में पाँच मिनट के एक गीत में सारा गुस्सा दूर हो जाता है. उदाहरण के लिए प्रस्तुत है वर्ष १९८२ में लोकार्पित हिंदी फिल्म देश प्रेमी का एक गीत- नफ़रत की लाठी तोड़ो, लालच का खंजर फेंको ज़िद के पीछे मत दौड़ो, तुम प्रेम के पंछी हो देश प्रेमियों, आपस में प्रेम करो देश प्रेमियों ... देखो, ये धरती, हम सब की माता है सोचो, आपस में, क्या अपना नाता है हम आपस में लड़ बैठे, हम आपस में लड़ बैठे तो देश को कौन सम्भालेगा कोई बाहर वाला अपने घर से हमें निकालेगा दीवानों होश करो, मेरे देश प्रेमियों ... मीठे, पानी में, ये ज़हर न तुम घोलो जब भी, कुछ बोलो, ये सोच के तुम बोलो भर जाता है गहरा घाव जो बनता है गोली से पर वो घाव नहीं भरता जो बना हो कड़वी बोली से तो मीठे बोल कहो, मेरे देश प्रेमियों ... तोड़ो, दीवारें, ये चार दिशाओं की रोको, मत राहें इन, मस्त हवाओं की पूरब पश्चिम उत्तर दक्खिन वालों मेरा मतलब है इस माटी से पूछो क्या भाषा क्या इसका मज़हब है फिर मुझसे बात करो, मेरे देश प्रेमियों ...

soni pushpa 12-11-2014 12:30 AM

Re: ------------गुस्सा------------
 
[QUOTE=Arvind Shah;539291]मित्रों अब मैं क्रोध के सम्बन्ध में अपनी बात आगे बढाता हूं !

मित्रों सदियों से ऋषि—मुनि, साधु—संत कहते आये है कि ये मत करो, वो मत करो ! ..और कोई पुछ ले कि क्यो ? तो वो कारण भी बता देते है कि इससे ये होगा... उससे वो हो जायेगा !!
...और ये सब कहते सुनते सदियां बित गई पर कोई सुधारा नहीं हुआ ! सब कुछ जस का तस है !
...कारण कि उन्होने कभी भी वास्तविकता को लोगो में परोसा ही नहीं ! ...और इसका भी कारण था कि इन सब बुराईयों को सही रूप में समझने के लिए पर्याप्त धैर्य, लगन, चिन्तन, मनन, विषद् अध्ययन,

बहुत खूब अरविन्द शाह जी ,.. हमे इंतज़ार रहेगा आपकी लेखनी के द्वारा दिए गए सारे समाधान का बहुत बहुत धन्यवाद आप इतने अच्छे से समझा रहे हो

soni pushpa 12-11-2014 12:33 AM

Re: ------------गुस्सा------------
 
[QUOTE=Rajat Vynar;539427]इसमें इतनी लम्बी-चौड़ी बहस करने की क्या ज़रुरत है? फिल्म में पाँच मिनट के एक गीत में सारा गुस्सा दूर हो जाता है. उदाहरण के लिए प्रस्तुत है वर्ष १९८२ में लोकार्पित हिंदी फिल्म देश प्रेमी का एक गीत- नफ़रत की लाठी तोड़ो, लालच का खंजर फेंको ज़िद के





... रजत जी भले ही ये गाना फिल्मी है किन्तु शब्द सही हैं इसके गाने के द्वारा ही सही आपने अच्छा लिखा है बहुत बहुत धन्यवाद रजत जी

soni pushpa 12-11-2014 12:35 AM

Re: ------------गुस्सा------------
 
Quote:

Originally Posted by rafik (Post 539128)
हम चिल्लाते क्यों हैं गुस्से में? एक बार एक संत अपने शिष्यों के साथ बैठे थे। अचानक उन्होंने सभी शिष्यों से एक सवाल पूछा। बताओ जब दो लोग एक दूसरे पर गुस्सा करते हैं तो जोर-जोर से चिल्लाते क्यों हैं? शिष्यों ने कुछ देर सोचा और एक ने उत्तर दिया : हम अपनी शांति खो चुके होते हैं इसलिए चिल्लाने लगते हैं। संत ने मुस्कुराते हुए कहा : दोनों लोग एक दूसरे के काफी करीब होते हैं तो फिर धीरे-धीरे भी तो बात कर सकते हैं। आखिर वह चिल्लाते
क्यों हैं? कुछ और शिष्यों ने भी जवाब दिया लेकिन संत संतुष्ट नहीं हुए और उन्होंने खुद उत्तर
देना शुरू किया। वह बोले : जब दो लोग एक दूसरे से नाराज होते हैं तो उनके दिलों में दूरियां बहुत बढ़ जाती हैं। जब दूरियां बढ़ जाएं तो आवाज को पहुंचाने के लिए उसका तेज होना जरूरी है।
भी कभी बहस करें तो दिलों की दूरियों को न बढ़ने दें। शांत चित्त और धीमी आवाज में बात करें। ध्यान रखें कि कहीं दूरियां इतनी न बढ़े जाएं कि वापस आना ही मुमकिन न हो।




बहुत खूब bhai बहुत अछे से इस कहानी के द्वारा गुस्से की वजह को समझाया आपने बहुत बहुत धन्यवाद bhai


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