Re: जीवनोपयोगी संस्कृत के श्लोक - अर्थ
श्लोक 13 :
( अर्जुन उवाच ) चंचलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम् | तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम् || अर्थात् : ( अर्जुन ने श्री हरि से पूछा ) हे कृष्ण ! यह मन चंचल और प्रमथन स्वभाव का तथा बलवान् और दृढ़ है ; उसका निग्रह ( वश में करना ) मैं वायु के समान अति दुष्कर मानता हूँ | |
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श्लोक 14 :
(श्री भगवानुवाच ) असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम् | अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्येते || अर्थात् : ( श्री भगवान् बोले ) हे महाबाहो ! निःसंदेह मन चंचल और कठिनता से वश में होने वाला है लेकिन हे कुंतीपुत्र ! उसे अभ्यास और वैराग्य से वश में किया जा सकता है | |
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न चौर हार्यम न च राज हार्यम, न भ्रात्रभाज्यम न च भारकारी
व्यये कृते वर्धते नित्यं, विद्या धनं सर्वधनं प्रधानम् ।१। |
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काक चेष्टा बकोध्यानम, स्वान निंद्रा तथैव च
स्वल्पाहारी गृहत्यागी, विद्यार्थी पञ्च लक्षणं । २। |
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विद्या ददाति विनयम, विनयात याति पात्रत्वाम
पात्र्त्वात धनमाप्नोति, धनात धर्मः ततः सुखं । ३। |
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नैनं छिदंति शस्त्राणि, नैनं दहति पावकः,
न चैनं क्लेदयन्त्यापो, न शोषयति मारुतः। ४। |
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कर्मनेवाधिकरास्ते मा फलेषु कदाचन
मा कर्मफल हेतुर्भुर्मा, ते सन्गोत्सवकर्मनि। ५। |
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यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भावती भारतः,
अभुथानाम धर्मस्य तदात्मानं सृजाम्हम।६। |
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सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः,
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु , मा कश्चित् दुःख भाग्भावेत । ७। |
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संस्कृत की बहुत प्रेरणादायक सूक्तियाँ. यह हर कदम पर व्यक्ति को राह दिखने वाली हैं.
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