Re: छींटे और बौछार
हैं लोग खफा मुझसे अबतक न समझ पाया
ये मेरी अदावत थी सबलोग यही कहते हैं हमने जिन आँखों में कभी प्यार बसा पाया उनमे ही 'जय' अब क्यों शोले से बरसते हैं |
Re: छींटे और बौछार
nice one........thanks for sheiring with us
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Re: छींटे और बौछार
आपके अपने मंच पर आपका अभिनन्दन है, जय जी. मेहदी हसन साहब के गाये एक गीत की कुछ पंक्तियाँ याद आ रही है:
खुद अपने घर में वो मेहमान बन के आये है सितम तो देखिये अनजान बन के आये है हमारे दिल की तड़प आज कुछ तो काम आये किसी का नाम लूं लब पर तुम्हारा नाम आये |
Re: छींटे और बौछार
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Re: छींटे और बौछार
http://sphotos-b.ak.fbcdn.net/hphoto...a695072698468a ^ कविवर सुरेन्द्र चतुर्वेदी के फेसबुक पेज से साभार |
Re: छींटे और बौछार
उत्तम, अद्भुत एवं संकलन करने योग्य सामग्री । आभार बंधु।
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