Re: छींटे और बौछार
किस किस का दिल न शाद किया तूने ए फ़लक़!
इक मैं ही ग़मज़दा हूँ कि नाशाद रह गया:cry: |
Re: छींटे और बौछार
न गुल अपना, न ख़ार अपना, न ज़ालिम बागवां अपना
बनाया आह! किस गुलशन में, हमने आशियां अपना |
Re: छींटे और बौछार
बरसों सवाँरते रहे किरदार हम मगर
कुछ लोग बाजी ले गए सूरत सवाँर के |
Re: छींटे और बौछार
Quote:
हद-ए-शहर से निकली तो गाँव गाँव चली; कुछ यादें मेरे संग पांव पांव चली; सफ़र जो धूप का किया तो तजुर्बा हुआ; वो जिंदगी ही क्या जो छाँव छाँव चली। |
Re: छींटे और बौछार
सो सुख पा कर भी सुखी न हो;
पर एक ग़म का दुःख मनाता है; तभी तो कैसी करामात है कुदरत की; लाश तो तैर जाती है पानी में; पर ज़िंदा आदमी डूब जाता है! |
Re: छींटे और बौछार
Quote:
जमा दिया जय भैया:hello: कबसे इस सूत्र पर आपका इन्तजार कर रहा था, अब जा के सकूँ मिला है... |
Re: छींटे और बौछार
ऐसी होती गई वारदात सारी
खुशियों की सरकती गई रात सारी चांदनी खोयी हुई थी चांद संग तारों की चल पड़ी बारात सारी मिल गया जो साथ तेरा तब लगा आ गई झोली में अब सौगात सारी |
Re: छींटे और बौछार
ग़ज़ल |
Re: छींटे और बौछार
आपको पुनः इस मंच पर देख कर हार्दिक प्रसन्नता हो रही है, जय भरद्वाज जी. आपके बिना यह मंच अधूरा हो गया था. रिश्तों की धूप-छांव हमें कब किस तरफ ले जाती है, मालूम ही नहीं चलता. हमें विश्वास है कि इस मंच पर आप अपना स्थान ग्रहण कर के हम सब को अनुग्रहीत करेंगे.
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Re: छींटे और बौछार
ये आँखें हर घड़ी रहती हैं सिर्फ यार तुझ पर, तुझे चलता है मगर पता इत्तेफाकन कभी - कभी....... प्रिय जय जी अब तो नियमित दर्शन दिया करों.... |
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