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rafik 20-08-2014 04:49 PM

Re: छींटे और बौछार
 
इंद्र धनुष के रंग क्यों गिनो,


यह दुनिया बहुरंगी है,


आलीशान मकानें में भी,


दिल की गलियाँ तंगी हैं,


मन:स्थिति कैसे भी बाँच लो,


वस्तुस्थिति तो नंगी है,


भले जुबानी हिदी बोले,


करें सवाल फिरंगी हैं,


भीड़ भरी है हाईवे पर अब,


और खाली पगडंडी हैं,


शहरों का अंधी गलियों में,


धन दौलत की मंडी है.
................................

एम.आर.अयंगर.





jai_bhardwaj 22-08-2014 11:50 AM

Re: छींटे और बौछार
 
आप सभी सुहृद जनों का हृदय से आभार एवं अभिनन्दन। सभी गुणी जनों से स्नेह और आशीर्वाद की अपेक्षा है। साथ ही साथ मेरी सभी संभावित त्रुटियों पर संकेत और उन्हें यथासम्भव संपादित करने का सहयोग करते रहें . . यह मेरा आप सभी से विनम्र निवेदन है। प्रतिक्रियायों पर पुनः धन्यवाद।

jai_bhardwaj 22-08-2014 11:51 AM

Re: छींटे और बौछार
 
उम्मीद तो मंज़िल पे पहुँचने की बड़ी थी
तकदीर मगर जाने कहाँ सोई पडी थी
खुश थे कि गुजारेंगे रफाकत में सफर अब
तन्हाई मगर बाहों को फैलाये खड़ी थी
(रफाकत = साझेदारी / साथ-साथ)

jai_bhardwaj 22-08-2014 11:51 AM

Re: छींटे और बौछार
 
दुआ, सलाम, कसम, ख़ुलूस, वफ़ा
ज़रूरतें कई चेहरे बदल के आती हैं

jai_bhardwaj 22-08-2014 11:53 AM

Re: छींटे और बौछार
 
हँसने का जी करे तो खिंचते नहीं हैं होंठ
रोने का जी करे तो 'जय' आँसू निकल पड़े
भोर की प्रतीक्षा में जब नभ निहारने लगे
खिलखिला कर चाँद और तारे निकल पड़े

jai_bhardwaj 22-08-2014 11:54 AM

Re: छींटे और बौछार
 
'जय' ने इरादतन कहीं पंगा कहाँ लिया
धोखे से गिर गए तभी गंगा नहा लिया
लड़ने का तज़ुर्बा हो तो हथियार उठाते
क्यों फिर भी अपने नाम दंगा करा लिया

rafik 22-08-2014 02:05 PM

Re: छींटे और बौछार
 
जन्नत मैं सब कुछ हैं मगर मौत नहीं हैं ..
धार्मिक किताबों मैं सब कुछ हैं मगर झूट नहीं हैं
दुनिया मैं सब कुछ हैं लेकिन सुकून नहीं हैं
इंसान मैं सब कुछ हैं मगर सब्र नहीं हैं

rajnish manga 22-08-2014 11:47 PM

Re: छींटे और बौछार
 
मेरे दोस्त जो दौराने सफ़र साथ चले थे
कितनी ही दुआओं के असर साथ चले थे
जितनी भी बदगुमानियां मेरे साथसाथ थीं
मिट गयीं जो हर्फ़-ए-'शरर' साथ चले थे

(रजनीश मंगा 'शरर')

rafik 25-08-2014 10:45 AM

Re: छींटे और बौछार
 
इतिहास परीक्षा

इतिहास परीक्षा थी उस दिन, चिंता से हृदय धड़कता था |
थे बुरे शकुन घर से चलते ही, दाँया हाथ फड़कता था ||


मैंने सवाल जो याद किए, वे केवल आधे याद हुए
उनमें से भी कुछ स्कूल तकल, आते-आते बर्बाद हुए


तुम बीस मिनट हो लेट द्वार पर चपरासी ने बतलाया
मैं मेल-ट्रेन की तरह दौड़ता कमरे के भीतर आया


पर्चा हाथों में पकड़ लिया, ऑंखें मूंदीं टुक झूम गया
पढ़ते ही छाया अंधकार, चक्कर आया सिर घूम गया


उसमें आए थे वे सवाल जिनमें मैं गोल रहा करता
पूछे थे वे ही पाठ जिन्हें पढ़ डाँवाडोल रहा करता


यह सौ नंबर का पर्चा है, मुझको दो की भी आस नहीं
चाहे सारी दुनिय पलटे पर मैं हो सकता पास नहीं


ओ! प्रश्न-पत्र लिखने वाले, क्या मुँह लेकर उत्तर दें हम
तू लिख दे तेरी जो मर्ज़ी, ये पर्चा है या एटम-बम


तूने पूछे वे ही सवाल, जो-जो थे मैंने रटे नहीं
जिन हाथों ने ये प्रश्न लिखे, वे हाथ तुम्हारे कटे नहीं


फिर ऑंख मूंदकर बैठ गया, बोला भगवान दया कर दे
मेरे दिमाग़ में इन प्रश्नों के उत्तर ठूँस-ठूँस भर दे


मेरा भविष्य है ख़तरे में, मैं भूल रहा हूँ ऑंय-बाँय
तुम करते हो भगवान सदा, संकट में भक्तों की सहाय


जब ग्राह ने गज को पकड़ लिया तुमने ही उसे बचाया था
जब द्रुपद-सुता की लाज लुटी, तुमने ही चीर बढ़ाया था


द्रौपदी समझ करके मुझको, मेरा भी चीर बढ़ाओ तुम
मैं विष खाकर मर जाऊंगा, वर्ना जल्दी आ जाओ तुम


आकाश चीरकर अंबर से, आई गहरी आवाज़ एक
रे मूढ़ व्यर्थ क्यों रोता है, तू ऑंख खोलकर इधर देख


गीता कहती है कर्म करो, चिंता मत फल की किया करो
मन में आए जो बात उसी को, पर्चे पर लिख दिया करो


मेरे अंतर के पाट खुले, पर्चे पर क़लम चली चंचल
ज्यों किसी खेत की छाती पर, चलता हो हलवाहे का हल


मैंने लिक्खा पानीपत का दूसरा युध्द भर सावन में
जापान-जर्मनी बीच हुआ, अट्ठारह सौ सत्तावन में


लिख दिया महात्मा बुध्द महात्मा गांधी जी के चेले थे
गांधी जी के संग बचपन में ऑंख-मिचौली खेले थे


राणा प्रताप ने गौरी को, केवल दस बार हराया था
अकबर ने हिंद महासागर, अमरीका से मंगवाया था


महमूद गजनवी उठते ही, दो घंटे रोज नाचता था
औरंगजेब रंग में आकर औरों की जेब काटता था


इस तरह अनेकों भावों से, फूटे भीतर के फव्वारे
जो-जो सवाल थे याद नहीं, वे ही पर्चे पर लिख मारे


हो गया परीक्षक पागल सा, मेरी कॉपी को देख-देख
बोला- इन सारे छात्रों में, बस होनहार है यही एक


औरों के पर्चे फेंक दिए, मेरे सब उत्तर छाँट लिए |
जीरो नंबर देकर बाकी के सारे नंबर काट लिए ||

- Om Prakash Aditya

jai_bhardwaj 05-09-2014 06:26 PM

Re: छींटे और बौछार
 
बन्धुओं, आप सभी का हार्दिक अभिनन्दन एवं धन्यवाद। कृपया स्नेह बनाये रखें। आभार।


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