Re: शताब्दी के महानायक अमिताभ बच्चन
प्र. बाबूजी की कौन सी रचना आपको बहुत प्रिय है और क्यों?
उ. सभी अच्छी हैं. अलग-अलग मानसिक स्थितियों से जब बाबूजी गुज़रे, तो उनपरिस्थितियों में उन्होंने अलग-अलग कविताएं लिखीं. बाबूजी के शुरुआत के दिन बहुत गंभीर थे. बाबूजी की पहली पत्नी का देहांत साल भर के अंदर हो गया था.वो बीमार थीं, उनकी चिकित्सा के लिए पैसे नहीं थे बाबूजी के पास, तो वोदुखदायी दिन थे. उनके ऊपर उनका वर्णन है. फिर मां जी से मिलने के बाद उनकेजीवन में जो एक नया रंग, उल्लास आया, उसको लेकर उनकी कविताएं आईं. फिरआधुनिक ज़माने में आकर बहुत से जो ट्रेंड थे कविता लिखने के, खास तौर सेहिंदी जगत में, वो बदलते जा रहे थे, हास्य रस बहुत प्रचलित हो गया था. कविसम्मेलनों में हास्य कवियों को ज़्यादा तालियां मिलने लगीं. इन सारे दौर से गुज़रते हुए उन्होंने लेखन किया. किसी एक रचना पर उंगली रखना बड़ा मुश्किल होगा. प्र. आपकी उनकी चीज़ों की आर्कइविंग करने की योजना थी? उ. प्रयत्न जारी है. समय नहीं मिल रहा है. दूसरी बड़ी बात ये है कि जो लोगबाबूजी के साथ उस ज़माने में थे, वो वृद्ध हो गए हैं. लेकिन मैं ये चाहूंगा कि जो उनके साथ उस ज़माने में थे, उन्हें ढूंढें. क्योंकि कई ऐसी बातेंहैं, जो हमको नहीं पता हैं. बाबूजी पत्र बहुत लिखते थे और वो अपने हाथ सेलिखते थे. प्रतिदिन वो पचास-सौ पोस्ट कार्ड लिखते थे जवाब में, जो उनके पास चिट्ठियां आती थीं और उसे $खुद ले जाकर पोस्ट बॉक्स में डालते थे.उन्होंने बहुत सी चिट्ठियां जो लोगों को लिखी हैं, उन चिट्ठियों को एकत्रित करके लोगों ने किताब के रूप में छाप दिया है. अब ये पता नहीं कि कानूननठीक है या नहीं, लेकिन उन्होंने कहा कि साहब, ये पत्र तो उन्होंने हमेंलिखा है, आपका इसके ऊपर कोई अधिकार नहीं है. तो मैं ऐसा सोच रहा था कि कभीअगर मुझे जानकारी हासिल करनी होगी तो मैं इश्तहार दूंगा मैं या पूछूंगा किजिन लोगों के पास बाबूजी की लिखी चिट्ठियां हैं या याददाश्त हैं, वो हमेंबताएं ताकि हम उनका एक आर्काइव बना सकें. |
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प्र. अब आप स्वयं दादाजी बन चुके हैं. इस संबोधन से आपको अपने दादाजी (प्रताप नारायण श्रीवास्तव) एवं दादीजी (सरस्वती देवी) की याद आती है. उनके बारेमें हमें बहुत कम सामग्री मिलती है.
उ. जी, दादाजी की स्मृतियां हैं नहीं, क्योंकि जब मैं पैदा हुआ, तो उनकादेहांत हो गया था. दादी थीं, लेकिन उनका भी मेरे पैदा होने के साल-डेढ़ साल बाद स्वर्गवास हो गया. मां जी की तरफ से, उनकी माता जी का देहांत उनकेजन्म पर ही हो गया था. जो नाना जी थे, मुझे ऐसा बताया गया है कि अब तो वोपाकिस्तान हो गया है, मां जी का जन्म लायलपुर में हुआ था, जो अब फैसलाबादहो गया है और उनकी शिक्षा-दीक्षा सब गर्वमेंट कॉलेज लाहौर में हुई. वो वहां पढ़ाने भी लगीं. मुझे बताया गया है कि जब मैं दो साल का था, तो मां जीउनसे मिलवाने कराची ले गई थीं. ऐसा मां जी बताती हैं कि एक बार मैं नाना के पास गया, तो चूंकि वो सरदार थे, तो उनकी दाढ़ी बड़ी थी, तो मैंने आश्चर्यसे उनसे पूछा कि आप कौन हैं? तो मेरे नानाजी ने कहा कि अपनी मां से जाकरपूछो कि मैं कौन हूं. प्र. अभिषेक चाहते हैं कि आप अब काम कम और आराम ज़्यादा करें, अपनेनाती-पोतों को वह सारे संस्कार और गुर सिखाएं, जो आपने उन्हें और श्वेता को सिखाए हैं. आपकी इस बारे में क्या राय है? उ. मैं ज़रूर नाती-पोतों को सिखाऊंगा और मैं काम भी करूंगा. यदि शरीर चलता रहा और सांस आती रहेगी, तो मैं चाहूंगा कि मैं काम करूं और जिस दिन मेरा शरीरकाम नहीं करेगा, जैसा कि मैंने आपसे कई बार कहा है कि हमारे शरीर के ऊपरनिर्भर है, चेहरा सही है, टांग-वांग चल रही है, तो काम है, वरना हम बोलदेंगे कि अब हम घर बैठते हैं. प्र. फिल्मों को लेकर आपकी ओर से कब घोषणा होगी? उ. एक तो अभी हुई है प्रकाश झा की सत्याग्रह और दूसरी है सुधीर मिश्रा कीमेहरुन्निसा. उसमें चिंटू (ऋषि) कपूर हैं, शायद चित्रांगदा हैं और मैं हूं.दो-एक और फिल्में हैं, महीने भर के अंदर उनकी भी घोषणा की जाएगी. ** |
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एक और साक्षात्कार
उनसे लिये गये साक्षात्कार के दौरान पूछे गये कुछ चुने हुये प्रश्न तथा उत्तर प्रस्तुत हैं: (साभार: प्रख्यात फिल्म पत्रकार खालिद मोहम्मद) प्र. आपको कब मालूम हुआ कि आप अभिनय कर सकते हैं? उ. जब मैं किंडरगार्टन में था तभी से. बचपन में घर में मैं कुछ न कुछ मजाकिया नाटक करता रहता था. कोई चादर टांग कर उसके सामने एक्टिंग करता था. मुश्किल घड़ी में मैं गत्ते की तलवार हवा में चलाता, जोकर बन जाता या अपने द्वारा बनाये गये आश्चर्य-लोक में शरारतें किया करता. स्कूल या कॉलेज में कोई ऐसा वर्ष नहीं गया जब मैंने किसी नाटक में भाग न लिया हो. प्र. आपका पहला रोल क्या था ? उ. किंडरगार्टन में मुझे याद है कि मुझे एक मुर्गे के का अभिनय करना था और उसकी तरह जोर जोर से पंख फड़फड़ाते हुये बांग देनी थी. |
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प्र. आपने बताया कि आपको सलाह देने वाला कोई नहीं था. आपके पिता भी तो थे?
उ. बाबूजी चाहते थे कि मैं भी उनकी तरह एक अध्यापक बनूँ. लेकिन नहीं, मैं तो वैज्ञानिक बनना चाहता था. लेकिन मैं BSc परीक्षा में फिज़िक्स में पास न हो सका. छः महीने बाद मैंने वह पेपर दोबारा दिया तो मैं सैकेण्ड डिवीज़न में पास हो सका. उस समय मैंने डीसीएम, मेटल बॉक्स और आईसीआई में नौकरी के लिये एप्लाई किया लेकिन कहीं काम न बना. मेरा बायो-डेटा भी अधिक प्रभावशाली नहीं था. इस प्रकार कोई बढ़िया नौकरी मेरे हाथ न लगी. उसके बाद जहां नौकरी मिली, वहीँ करनी पड़ी. कोलकाता में बर्ड एंड कं. के कोयला विभाग में दो साल काम किया. उसके बाद सामान की ढुलाई वाली कम्पनी ब्लेकर एण्ड कं. में चला गया. यह एक छोटा संस्थान था लेकिन वेतन डबल था. साथ में काले रंग की मोरिस माइनर कार भी मिल गयी जो बाद में स्टैण्डर्ड हेराल्ड में बदल दी गयी. प्र. बर्ड एण्ड कं. में आपका वेतन क्या था? और रहन सहन कैसा था? उ. टैक्स के बाद 480 रूपए मिलते थे जिसमे से 300 रूपए तो कमरे के किराये में ही चले जाते थे. हम आठ आदमी इकट्ठे रहते थे. उस कम्पनी में लंच फ्री दिया जाता था. इस प्रकार हमारा जीवन बहुत साधारण, ज़मीनी और सामान्य जन की तरह था. |
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प्र. आपके थियेटर के दिनों में क्या आपको सिनेमा का आकर्षण भी प्रभावित करता था?
उ. जितना संभव हो पाता मैं सिनेमा देखा करता था. लेकिन फिल्मों में काम करने का विचार मेरा नहीं बल्कि मेरे छोटे भाई अजिताभ का था. उसी ने कोलकाता स्थित विक्टोरिया मेमोरियल के सामने मेरी कुछ तस्वीरें खींच कर फिल्मफेयर-माधुरी व फिल्म निर्माताओं द्वारा आयोजित टैलेंट कॉन्टेस्ट में भिजवायी थीं, लेकिन कुछ न हुआ. मैंने आल इंडिया रेडिओ पर समाचार-वाचक की पोस्ट के लिए भी आवेदन किया जिसमें मुझे इंगलिश और हिंदी के टैस्ट दिये गये थे किन्तु मैं दोनों में फेल हो गया. प्र. कॉन्टेस्ट में क्या हुआ था? उ. राजेश खन्ना, समीर खान और रतन चोपड़ा चुन लिए गये. मैं राजेश खन्ना की तस्वीर को देख कर कहता कि मैं उसकी तरह न दिखाई देता हूँ न एक्टिंग कर सकता हूँ. मेरे पास वैसा आकर्षक चेहरा ही नहीं था. उस वक़्त मुझे 1000 रूपए मासिक मिलता था जबकि कॉन्टेस्ट के विजेताओं को 2500 रुपये मासिक देने का वचन दिया गया था. तीन माह बाद इसे 5000 रूपए कर दिया जाना था. शायद यही बात मुझे फिल्मों में काम करने की प्रेरणा बनी. मैं मुंबई में रह कर फिल्मों में काम करना चाहता था. सच तो यह है कि उस समय नायक बनने का विचार भी मेरे मन में नहीं आता था. |
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प्र. फिल्म ‘दीवार’ मेंआपको एक काल-गर्ल के साथ मुब्तिला दिखाया गया था. इसी प्रकार फिल्म ‘शक्ति’ में आप गर्ल-फ्रेंड से लिव-इन रिलेशनशिप में दिखाई दिये. लेकिन इन सम्बन्धों में असहज रहे.
उ. मैं एक प्रोफेशनल एक्टर हूँ. मैं वही करता हूँ जो मुझे कहा जाता है. किन्तु, मैं पुराने ख़यालात का भी हूँ. शरीर के अनावश्यक प्रदर्शन से मुझे कोफ़्त होती है. मैंने स्क्रीन पर कभी किस नहीं किया या किसी भी रूप में नग्नता की इजाज़त नहीं दी है .... जब तक कि ऐसा करना आवश्यक न हो जैसा कि फिल्म ‘ज़ंजीर’ तथा ‘शक्ति’ में हुआ. और फिर मेरा शरीर भी ऐसा नहीं है कि मैं उसका प्रदर्शन करूँ. प्र. अभिनेत्री रेखा और आपके बीच एक विशेष केमिस्ट्री थी. इस बारे में क्या कहेंगे? उ. रेखा एक प्रतिभासंपन्न अभिनेत्री हैं. कई फिल्मों में हम दोनों की जोड़ी को दर्शकों ने पसंद किया. |
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badiya prastuti
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