Re: शायरी में मुहावरे
खूबसूरत अंदाज
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Re: शायरी में मुहावरे
मुहावरा > या क़िस्मत
भावार्थ: होनी के आगे सिर झुकाना और भाग्य को स्वीकार कर लेना. उदाहरण: हुआ जुज़ दर्दो-ग़म हरगिज़ न वस्ले-दिलरुबा क़िस्मत यही था क़िस्मते-नासाज़ में मक़सूम, .....या क़िस्मत (शायर: अज्ञात) |
Re: शायरी में मुहावरे
उपरोक्त मुहावरों के अतिरिक्त भी यदा-कदा शायरी में मुहावरों का दीदार हो जाता है. आगे हम इसी प्रकार के अश'आर या शायरी प्रस्तुत करने की कोशिश करेंगे जिनमे मुहावरों का खूबसूरत व आलंकारिक प्रयोग किया गया हो जैसे:
वतन की रेत मुझे एडियां रगड़ने दे मुझे यक़ीन है पानी यही से निकलेगा -नाज़िश प्रतापगढ़ी |
Re: शायरी में मुहावरे
जो गरजते हैं वो बरसते नहीं सर-ए-मिज़गां ये नाले अब भी आँसू को तरसते हैं ये सच है जो गरजते हैं वो बादल कम बरसते हैं (शाह नसीर / Shah Nasir / 1756 - 1838) ** तीर-तुक्का अजब नहीं है जो तुक्का भी तीर हो जाए फटे जो दूध तो फिर वो पनीर हो जाए मवालियों को न देखा करो हिकारत से न जाने कौन सा गुंडा......वजीर हो जाए (पापुलर मेरठी) |
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मुहावरे एक कविता
रचना: अश्विनी बेकार चीज़ फेंक देना होता है सही… ऐसा सुनते आए अब तक… पर जब शब्द अर्थ खोने लगें तो क्या करें … ज़ाहिर है फेंक दो उन्हें अंधी खाई में… ऐसे कुछ शब्दों से बने मुहावरे खो चुके हैं अर्थ… पर कुछ लकीर के फकीर करते हैं उनका उपयोग गाहे-बगाहे… उदाहरणार्थ वो कहते हैं झूठ के पाँव नहीं होते… पर अक़्सर नज़र आते हैं कई झूठ, कई तरह की दौड़ों में अव्वल आते हुए.. सांच को आंच नहीं… पर सच जला-बुझा सा कोने में पड़ा मिलता है अदालतों में… भगवान के घर देर है…अंधेर नहीं.. पर भगवान ख़ुद अमीरों की इमारतों में उजाला करने में है व्यस्त सौ सुनार की, एक लोहार की… पर आज के बाज़ार ने लोहार को गायब कर दिया बाज़ार से… न नौ मन तेल होगा…न राधा नाचेगी.. पर राधा मीरा नाच रहीं चवन्नी-अठन्नी पर किसी सस्ते बार में… चैन की नींद सोना… पर मेरे बूढ़े पिता रिटायर होने के बाद जागते हैं उल्लुओं की तरह… अनिष्ट की आशंका में… ये मुहावरे मिटा डालो फाड़ो वो पन्ने जो इनका बोझ ढो के बोझिल हो चुके.. निष्कासित करो उन लकीर के फकीरों को.. जो इनके सच होने की उम्मीद लगाए बैठे हैं…….. **** |
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"मज़हर" का शे’र फ़ारसी और रेख़्ता के बीच
"सौदा" यक़ीन जान कि रोड़ा है बात का आगाह-ए-फ़ारसी तो कहें इस को रेख़्ता वाक़िफ़ जो रेख़्ता का ज़रा होव ठाट का अल क़िस्सा इस का हाल यही है तो सच कहूँ कुत्ता है धोबी का कि न घर का न घाट का (मिर्ज़ा मुहम्मद रफ़ी ’सौदा’ (1713-1781) |
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दामन में दाग लगा ऐसा, जिसको धो ना सके पैसा कथनी कुछ तो करनी कुछ, दीगर फल जैसे को तैसा! |
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सावन भादों के मौसम में बादल रूठ गये
अच्छी फसलें पाने के सब सपने टूट गये न जल बरसा न गरमी से मिली निजात इंद्र देव क्या रूठे भाग कृषक के फूट गये |
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Re: शायरी में मुहावरे
फैसला होता है नेकी-ओ-बदी का हर दम, दिल को इस सीने में छोटी-सी अदालत समझो। (शाद अज़ीमाबादी) बहुत कुछ पाँव फैलाकर भी देखा 'शाद' दुनिया में, मगर आख़िर जगह हमने न दो गज़ के सिवा पायी (शाद अज़ीमाबादी) |
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Re: शायरी में मुहावरे
Mera Name Bhi Shayari Hai, Magar Aaj Se Pehle Maine Ye Kabhi Nahi Jana Ke Shayari Mein Muhavare Yaani idioms bhi Hote Hain, Wonderful Post...
Thanks for share. |
Re: शायरी में मुहावरे
शायरी जी ने आते ही फोरम पर काम शुरु कर दिया है जो बहुत खुशी की बात है। धन्यवाद!
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मैं शिकार हूँ किसी और का
ऋतेश त्रिपाठी मैं शिकार हूँ किसी और का मुझे मारता कोई और है, मुझे जिसने बकरी बना दिया वो भेड़िया कोई और है । कई सर्दियॉ भी ग़ुज़र गईं मैं उसके काम न आ सका, मैं लिहाफ़ हूँ किसी और का मुझे ओढ़ता कोई और है। मुझे चक्करों में फँसा दिया मुझे इश्क ने तो रुला दिया, मैं हूँ माँग तो किसी और की मुझे मांगता कोइ और है। मेरे रोब में तो वो आ गया मेरे सामने तो वो झुक गया, मुझे पिट के ये ख़बर हुई मुझे पीटता कोइ और है। जो गरजते हैं वो बरसते हों कभी हम ने ऐसा सुना नहीं, यहाँ भोंकता कोइ और है और काटता कोइ और है। अज़ब आदमी है ये “राज” भी उसे बेक़सूर ही जानिए, ये डाकिया है जनाबे मन, इसे भेजता कोई और है । |
Re: शायरी में मुहावरे
सिर (या सर) चढ़ाना छेड़ती हैं कभी लब को कभी रुखसारों को तुमने ज़ुल्फ़ों को बड़ा सर पे चढ़ा रखा है (ख़ामख्वाह हैदराबादी) |
Re: शायरी में मुहावरे
अक्ल ठिकाने आना आज कल फिर दिल-ए-बर्बाद की बातें हैं वही हम तो समझे थे के कुछ अक्ल ठिकाने आई (कैफ़ भोपाली) |
Re: शायरी में मुहावरे
मुहावरा युक्त ग़ज़ल |
Re: शायरी में मुहावरे
[indent]एक और मुहावरा युक्त ग़ज़ल
आदिल रशीद तिलहरी जिस किसी दिन तुम उसूलो के कड़े हो जाओगे बस उसी दिन अपने पैरों पर खड़ेहो जाओगे [/font] :bravo::bravo: |
Re: शायरी में मुहावरे
हर बारिश में ज़ख्म हरे हो जायेंगे,
यादों को दफ़नाने से भी क्या होगा. (सुरेंद्र चतुर्वदी) |
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मुहावरा: जहाँ आँख खुली वहीं सवेरा
एक दिन जब मेरी खुली आँखें बस तभी से हुआ सवेरा है (महेश कटारे ‘सुगम’) |
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मुहावरा > सर पटकना = परेशान होना
मुसाफ़िर अपनी मंज़िल पर पहुँच कर चैन पाते हैं वो मौजें सर पटकती हैं जिन्हें साहिल नहीं मिलता मखदूम दहलवी |
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मुहावरा > साँसें उखड़ना = बहुत थक जाना
मैं मंज़िल के निशाँ कभी के छू लेता लेकिन रस्तों की भी उखड़ी साँसें थीं !! यूसुफ रईस |
Re: शायरी में मुहावरे
शायरी में मुहावरे पहले कभी नहीं पढ़े थे भाई नई जानकारी मिली हमें .. यह तो बहुत बहुत अच्छी जानकारी है .. धन्यवाद सह आभार भाई
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Re: शायरी में मुहावरे
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Re: शायरी में मुहावरे
'असद' ख़ुशी से मिरे हाथ पाँव फूल गए
कहा जो उस ने ज़रा मेरे पाँव दाब तो दे मिर्ज़ा ग़ालिब सर उड़ाने के जो वादे को मुकर्रर चाहा हँस के बोले कि तिरे सर की क़सम है हम को मिर्ज़ा ग़ालिब ** छानी कहाँ न ख़ाक न पाया कहीं तुम्हें मिट्टी मिरी ख़राब अबस दर-ब-दर हुई भारतेंदु हरिश्चंद्र ** आईना देख अपना सा मुँह ले के रह गए साहब को दिल न देने पे कितना ग़ुरूर था मिर्ज़ा ग़ालिब ** इतना समझ चुकी थी मैं उसके मिज़ाज को वो जा रहा था और मैं हैरान भी न थी Parveen Shakir |
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