Re: ज़िन्दगी गुलज़ार है
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हाल ही में आईएस द्वारा कई लोगों के सामुहीक कत्लेआम हुआ, तीसरे ही दीन ४० लोगों को जिंदा जलाया गया। यह सब मुझे हेरान-परेशान किए हुए है। ईन्सान क्या चाहता है आखिर? क्या कोई भी एक धर्म पुरी दुनिया पर छा जाने से शांति हो जाएगी? |
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देखिये हमारी सोच एक दिन में नहीं बनती ....हमें अपनी सोच को सही दिशा देने के लिये प्रयास करते रहना पड्ता है.....आपने जो उदाहरण दिया कि गन पोइन्ट पर खडा इन्सान क्या ये सब सोच सकेगा , तो मैं मानती हूँ कि शायद नहीं ....मृत्यु को सामने देख कोई भी सामान्य इन्सान ऐसे विचार ला ही नहीं सकता.....पर जीवन की छोटी-छोटी परेशानियों के समय जरूर इन्सान मेरी कही बात सोच सकता है.......आप खुद को ही देखिये , या मैं अपना ही उदाहरण ले लूँ , क्या हम बहुत अच्छे लोग हैं? क्या हमारे अन्दर सिर्फ और सिर्फ अच्छाइयाँ हैं??? क्या हम कभी कभी बुरा व्यव्हार नहीं कर देते? कभी कभी हम भी किसी का दिल दुखा देते हैं .....हमारी भी कुछ आदतें बहुत खराब होंगी जिन्हें हम बदलना चाहते होंगे......तो जैसे हम हमारे लिये सोचते हैं कि मैं अच्छा/अच्छी व्यक्ति हूँ , हाँलांकि मुझमें ये बुराई है पर कोई बात नहीं , कुछ अच्छाई भी तो है ।ऐसे ही हम दूसरों के लिये भी समझें और धारणा बनाते समय थोडा लचीला रुख अपनायें । और अब आपके आखिरी सवाल का जवाब - शायद हास्यास्पद लगे , या किताबी बात ....पर एक धर्म है जो अगर पूरी दुनिया पर छा जाये तो निश्चित ही शान्ति हो जायेगी ........"मानवता का धर्म" । |
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"मानवता का धर्म " ये बहुत अच्छी बात कही आपने पवित्रा जी ,, आज दुनिया भर में मानवता के नाम पर सिर्फ औपचारिकता रह गई है/ जब लोग मिलते हैं तब बहुत ही अपनापन बताते हैं अच्छी अच्छी बातें करते हैं, किन्तु जैसे ही खुद के स्वार्थ की बात आई नहीं की मानवता नाम के शब्द को मानो भूल ही जाते हैं लोग . मानवता की मक्क्मता इंसान के जहन में तब तक नहीं आएगी जब तक खुद को वो स्वार्थ से परे रखना नहीं सीखेगा .
दूसरो के प्रति थोड़ी सी मानवता भी यदि मन में है तो हम कम से कम किसी का भी बुरा नहीं चाहेंगे और यदि हमारी वजह से किसी का भी दिल दुखता है तो हमे इस बात का खेद जरुर होगा की ये हमसे गलत हो गया . पर आज जहाँ सारे विश्व या मानव समाज में मानवता की बात हो रही है वहां यदि इस महँ शब्द का प्रादुर्भाव हो जाय ,सबके मन मानवता से भर जाय तब तो दुनिया में कोई दुखी न रहेगा,क्यूंकि एक का दुःख सबका दुःख होगा किसी एक की समस्या के सभी सहभागी होकर समस्या का अंत कर देंगे .. इतनी महानता है " मानवता का धर्म " शब्द की . पवित्रा जी आपकी बात से मै पूरी तरह् से सहमत हूँ . |
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Take time to do what makes your "soul" Happy हम पूरा दिन काम करते हैं , काम करते हैं जिससे आजीविका कमा सकें , और अपनी जरूरतों को पूरा कर सकें। असल में अपने शरीर को सुविधायें देने के लिये ही हम काम करते हैं जिससे कि हम अपने शरीर को आराम दे सकें । अच्छा कमाएँ जिससे अपने लिये सारी सुख-सुविधाएँ एकत्रित कर सकें । गाडी , घर , अच्छा खाना , कपडे , आदि । पर अपने शरीर के आराम के लिये हम भूल जाते हैं कि सिर्फ शरीर के लिये काम करते रहने से कुछ नहीं होगा , क्योंकि शरीर चाहे कितने ही आराम में क्यों ना हो , जब तक हमारी आत्मा सुकून में नहीं होगी तब तक हमें सुख मिल ही नहीं सकता। मैं नहीं कहती कि आप अपने शरीर के लिये कार्य करना बन्द कर दें , जरूर करें पर अपनी आत्मा की अनदेखी ना करें । क्योंकि आपकी आत्मा आपके व्यक्तित्व का सबसे मूल्यवान हिस्सा है , और इसलिये इसका सुकून में रहना बहुत जरूरी है। हर रोज कुछ समय जरूर निकालें ऐसे कार्यों के लिये जिन्हें करने में आपकी आत्मा को खुशी और सन्तुष्टि मिलती हो। हो सकता है आपका पेशा कुछ और हो और आप खुद को किसी और काम को करते वक्त खुश पाते हों । तो तलाश करें कि ऐसे कौन से कार्य हैं जो आपको खुशी देते हैं और उन कार्यों के लिये वक्त जरूर निकालें । |
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बहुत अछि बात कही पवित्रा जी ,,, सच बात है की जीवन यापन के लिए हमे न चाहते हुए भी वो काम करने पड़ते है जो सही मायनों में हमे पसंद नहीं होते पर करने पड़ते हैं क्यूंकि जीने के लिए जरुरी हैं उन्हें करना पर जिस विषय, वस्तु या कार्य में आपको रूचि हो,आपको आत्मिक शांति मिलती है उसके लिए अपने सारे समय में से कुछ पल जरुर रखने चाहिए ... और मेरा मानना है की सात्विक प्रवत्ति हम इंसानों में ज्यादातर होती है तामसी प्रवत्ति इंसानों को क्षणिक सुख देती है जबकि सात्विक प्रव्रत्ति इंसान को आंतरिक सुख का अनुभव कराती है यहाँ मै अपनी बात को जरा सविस्तार बताना चाहूंगी की तामसी प्रवव्र्त्ति जिसमे जुआ खेला शराब पीना ये सब आता है अब जुआ खेलने वाले को जो ख़ुशी मिलेगी वो तबतक ही जब तक वो खेल रहे होते हैं किन्तु यदि इंसान की प्रव्रत्ति सात्विक है तो उसमे वो किसी दुखी की सहायता करेगा , भगवन की आराधना करेगा जिससे उसका सुख क्षणिक नहीं होगा उसके आत्मा को आनंद की प्राप्ति होगी और वो ख़ुशी उसके चहरे पर दिखाई देगी (और कई कार्य होते है जिसकी चर्चा यदि यहाँ करेंगे तो बात बहुत लामी हो जाएगी इसलिए मैंने सिर्फ कुछ उदहारण दिए है ) अब रही समय निकलने की बात पवित्रा जी , .. तो इतना कहना जरुर चाहूंगी यहाँ की यदि इन्सान चाहे तो क्या नहीं कर सकता ? और यहाँ तो खुद की ख़ुशी की बात है और ख़ुशी देने वाले काम में थकावट नहीं होती क्यूंकि उसे हम मन से करते है. हाँ सिर्फ आलस न करें खुद के लिए लोग बस, .तब देखे की जीवन उसे कितना आनंद देता है और ये ही नहीं मन की ख़ुशी का प्रभाव आपके व्यवहार में पड़ता है ,आपके परिवार में पड़ता है और आपके आसपास के लोगो को भी आपका व्यवहार प्रभावित करता है सो बहुत जरुरी है की स्वयं को खुश रखे अपने पसंदीदा अछे कार्यो . के द्वारा ,.. |
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काम, नौकरी से अगर कुछ दो-चार पल बचा भी लें, उस से मन नहीं भरता। उल्टा गुस्सा आता है की यह क्या बात हुई! फिर गुलज़ार जी का गीत गुनगुना कर वापस काम में लग जाता हुं....दिल ढुंढता है फिर वही, फुर्सत के रात-दीन! |
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मुझे लगता है कि हम सभी पेशे से लेखक नहीं हैं फिर भी हम यहाँ आकर अपनी भावनाएँ लिखते हैं , शायद ये इसलिये ही है क्योंकि हमें लेखन सुकून देता है । तो हम वो वक्त निकाल ही रहे हैं ना अपनी आत्मसन्तुष्टि के लिये ....... :) |
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उक्त विषय पर अच्छा आदान प्रदान हो रहा है और इस चर्चा के कई सकारात्मक पहलू भी पढ़ने में आये हैं. देखने में आ रहा है कि कुछ सम्मानित सदस्य जान बूझ कर एक गंभीर चर्चा को सस्ती लतीफेबाजी में ले जाने की कोशिश कर रहे है. यह बात केवल यहाँ ही नहीं बल्कि कई अन्य सूत्रों पर भी महसूस की जा रही है. लेकिन यह सोच कर कि शायद सम्मानित सदस्य अपनी एप्रोच में बदलाव लायेंगे, इस बात का ज़िक्र नहीं किया गया. लेकिन अब विषय पर बोलना आवश्यक हो गया है. नीचे दो सदस्यों के डायलॉग दिए जा रहे हैं, जिससे स्थिति साफ़ हो जायेगी.
>>>> पवित्रा जी: ....... जब तक हमारी आत्मा सुकून में नहीं होगी तब तक हमें सुख मिल ही नहीं सकता। मैं नहीं कहती कि आप अपने शरीर के लिये कार्य करना बन्द कर दें , जरूर करें पर अपनी आत्मा की अनदेखी ना करें । क्योंकि आपकी आत्मा आपके व्यक्तित्व का सबसे मूल्यवान हिस्सा है , और इसलिये इसका सुकून में रहना बहुत जरूरी है। हर रोज कुछ समय जरूर निकालें ऐसे कार्यों के लिये जिन्हें करने में आपकी आत्मा को खुशी और सन्तुष्टि मिलती हो। हो सकता है आपका पेशा कुछ और हो और आप खुद को किसी और काम को करते वक्त खुश पाते हों । तो तलाश करें कि ऐसे कौन से कार्य हैं जो आपको खुशी देते हैं और उन कार्यों के लिये वक्त जरूर निकालें । रजत जी: मेरी दिव्यदृष्टि में तो "soul" की जगह कुत्ता दिखाई दे रहा है! कहीं आप एक कुत्ता पालने की बात तो नहीं कर रहीं? पवित्रा जी: "जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि".....अब समझदार को इशारा काफी ....आशा है आप समझदार होंगे...... >>>> रजत जी को मैं परामर्श देना चाहता हूँ की यदि उनके पास चर्चित विषय पर कोई स्तरीय सामग्री उपलब्ध नहीं है तो चर्चा को चुटकुलों में या लतीफेबाजी में भटकाने का प्रयास न करें. बेहतर होगा की वे इनसे परहेज़ रखें. लतीफ़ों को वह हास्य की किसी अन्य रचना में प्रयोग करें. दूसरी और सबसे महत्वपूर्ण बात की ओर आप सब लोगों का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ, वह यह कि सम्मानित महिला सदस्यों के साथ चर्चा करते समय शालीनता बनाये रखी जाये. उनके प्रति किसी प्रकार की अभद्रता को स्वीकार नहीं किया जाएगा. यह सभी सदस्यों का कर्तव्य है कि वे अन्य सदस्यों और विशेष रूप से महिला सदस्यों से मर्यादित व्यवहार करें. धन्यवाद. |
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आपका बहुत बहुत धन्यवाद रजनीश जी .....मैं भी इन्तजार में ही थी कि किसी और की तरफ से भी कुछ पहल हो , अन्यथा मुझे भी फिर समान स्तर पर उतर कर जवाब देना होता ..... मेरी कही बात के लिये मैं भी क्षमा प्रार्थी हूँ पर आशा है मुझे मेरी गलती पर माफ किया जायेगा....... और रजत जी भी कुछ सुधार करेंगे अपने व्यवहार में...... |
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मेरा कहना है की आप आपने दिमाग को बेकार की बातें लिखने के लिए जितना दौड़iते हो उतना यदि अच्छी अच्छी बातों के लिए दौड़ोगे तो आपकी मेहनत व्यर्थ न जाएगी हमारे पाठकों को उनके अमूल्य समय की कीमत मिलेगी . रजनीश जी को धन्यवाद देना चाहूंगी की महिला सम्मान का उन्होंने इतना ख्याल रखा है और अपने इस हिंदी फोरम की और महिला लेखकों की गरिमा को बनाएं रखने की,gujarish की है लेखकों से . |
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Everybody is gifted but some people never open their packages भगवान ने हम सभी को बहुत सी खूबियों से नवाजा है, हम सभी के पास कुछ ना कुछ विशेष गुण होता है । कुछ लोग अपने उस गुण को पहचान लेते हैं और उसे तराश लेते हैं और कुछ लोग ताउम्र अज्ञान रहते हैं अपनी खूबियों से। ये जीवन हमें इसलिये ही मिला है कि हम इसे समझें , खुद को जानें और एक बेहतर व्यक्तित्व की तलाश कर उसे तराशें । |
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अच्छाई की महक हम अक्सर ऐसे लोगों से मिलते हैं जो अपनी तारीफ करते हुए थकते नहीं हैं । वो कितने अच्छे हैं या कितने गुणी हैं ये वे लोग खुद ही बखानते रहते हैं । शायद वे लोग हमें नहीं ,खुद को ही ये विश्वास दिला रहे होते हैं कि वे अच्छे हैं । अच्छाई इत्र की तरह होती है । अच्छाई की अपनी ही महक है जो आप चाहें या ना चाहें आप से दूसरों तक और दूसरों से आप तक पहुँच ही जाती है। इसलिये यदि आप अच्छे हैं तो ये आपको बताने की जरूरत नहीं है , आपकी अच्छाई लोगों तक अपने आप ही पहुँचेगी , और अगर आप बार बार अपनी अच्छाई बता कर खुद को विश्वास दिलाना चाहते हैं कि आप अच्छे हैं तो ये हमेशा ध्यान रखें कि वास्तविकता ज्यादा दिन तक छुपी नहीं रह सकती । आप कुछ समय तक वो होने का नाटक कर सकते हैं जो आप नहींं हैं लेकिन अपनी असलियत हम ज्यादा दिन तक नहीं छुपा सकते । |
Re: ज़िन्दगी गुलज़ार है
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वैसे आज-कल सेल्फ मार्केटींग का ज़माना है। लोग अपने गुण खुद ही गाते फिरते है...चाहे वह ओफिस हो, चौपाल हो या फेसबुक हो। मज़े की बात तो यह है की ओर (दुसरे) लोगों को भी यह पता होता है की वास्तविकता क्या है...लेकिन गुणगान करनेवाले बेशर्मी पर उतर आए है। :giggle: |
Re: ज़िन्दगी गुलज़ार है
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आपका बहुत बहुत शुक्रिया ......:) यही तो खास बात है कि सामने वाले को भी असलियत पता होती है पर फिर भी आत्ममुग्ध लोग अपनी तारीफ करते नहीं थकते .....:giggle: |
Re: ज़िन्दगी गुलज़ार है
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सबसे पहले आपको बहुत बहुत धन्यवाद पवित्रा जी की आपने इतना सही विषय यहाँ रखा है और इसपर हम सब अपने अपने विचार प्रकट कर सकेंगे ... कई लोग स्वाभाव की वजह से खुद की तारीफों के पुल बांधते हैं तो कई लोग खुद को सबके बिच में अपना स्थान बनाने के लिए एइसा करते हैं और कई लोग सिर्फ और सिर्फ किसी को निचा दिखाने के लिए खुद को महान जताते हैं .... और.. कुछ समय के लिए सच में लोगो के लिए वो महान बन भी जाते है तारीफ भी मिलती है उन्हें समाज से . और कई बार बिना वजह किसी को निचा भी दिखा देते हैं एइसे लोग किन्तु जैसे की हमेशा से कहा गया है अंत में जीत सत्य की ही होती है, और अछे की ही जीत होती है और एइसे समय में झूटे दिखावेदार लोगो की पोल खुल ही जाती है और वो और ज्यदा लोगो की नजरो से गिर जाते हैं .इससे तो अच्छा ये होता है की आप जो हो वो ही रहो झूठ का सहारा लेकर खुद की तारीफ और महानता बताने का कोई अर्थ नहीं क्यूंकि एक न एक दिन सच तो सामने आना ही है दीप जी ने कहा आजकल खुद की तारीफ करके लोग सेल्फ मार्केटिंग करते हैं किन्तु ज्यदातर देखा गया है एइसे लोग हमेशा मजाक के पात्र बन जाते हैं लोग भले सामने कुछ न कहे पीछे से उनका मजाक ही बनता है . |
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Re: ज़िन्दगी गुलज़ार है
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जब स्वाभिमान ही खो दिया तो बाकि क्या रह गया ? दीप जी,.. इन्सान की प्रायोरिटी उसका स्वाभिमान है न,.. ना की सेल्फ मार्केटिंग ..और यदि आपमें गुण हैं तो वो छुपे तो रहेंगे ही नहीं सब को पता चल ही जाता है की कौन कैसा इंसान है फिर एईसी सेल्फ मार्केटिंग कौन से काम की ? |
Re: ज़िन्दगी गुलज़ार है
लोग कहते हैं कि जो दुख में आपका साथ दे वही आपका सच्चा मित्र होता है क्योंकि सुख में तो सभी साथ रहते हैं पर दुख में ही पता चलता है कि वास्तव में हमारे साथ कौन है .......मुझे लगता है बदलती दुनिया के साथ इस विचार में भी परिवर्तन आया है । आज के समय में आपको आपके दुख में दुखी होने वाले लोग तो शायद फिर भी मिल जाएँ परन्तु आपकी खुशी में खुश होने वाले लोग मिलना बहुत ही मुश्किल है । तो अगर आपकी जिन्दगी में ऐसे लोग हैं जो आपकी खुशी में अपनी खुशी तलाशते हैं या आपको खुश देख कर खुश होते हैं तो उन्हें सम्भाल के रखिये .......ऐसे व्यक्ति और ऐसे रिश्ते ही हमारी वास्तविक सम्पत्ति हैं । |
Re: ज़िन्दगी गुलज़ार है
जब बात रिश्ते में बँधने की होती है तो हम हमेशा उस व्यक्ति का चुनाव करते हैं जिसे हम पसन्द करते हों या जिसे हम प्यार करते हों। बहुत ही कम ऐसा होता है जब हम ये देखते हों कि जिसको हम पसन्द कर रहे हैं क्या वो भी हमें पसन्द करता है? और अगर करता है तो क्या उसी स्तर से पसन्द करता है जिस स्तर से हम उसे पसन्द करते हैं ?
रिश्ता कभी उस व्यक्ति से नहीं जोडना चाहिये जिसे हम पसन्द करते हों , रिश्ता हमेशा उस व्यक्ति से जोडना चाहिये जो हमें पसन्द करता हो , क्योंकि जो व्यक्ति हमें पसन्द करता है उसके साथ जीवन बिताना ज्यादा आसान होता है। जब हम उस व्यक्ति का चुनाव करते हैं जिसे हम पसन्द करते हैं तब उस व्यक्ति की खुशियाँ हमारी जिम्मेदारी हो जाती हैं , उसकी देख-भाल , उसकी चिन्ता सब हमारी जिम्मेदारी रहती है । जबकि जब हम उस व्यक्ति का चुनाव करते हैं जो हमें पसन्द करता है , हमसे प्यार करता है तब हमारी खुशियाँ उस व्यक्ति की जिम्मेदारी रहती हैं । यूँ तो रिश्ते दोनों ओर से ही निभाए जाते हैं , पर फिर भी कहीं ना कहीं एक पक्ष ज्यादा समर्पित होता है और दूसरा उस पर आश्रित , अगर पसन्दगी दोनों ओर से समान मात्रा में हो तो श्रेष्ठ परन्तु यदि ऐसा ना हो तो हमेशा उसी व्यक्ति का चुनाव करें जिसकी पसन्द आप हों , क्योंकि चाहे हम कितनी ही कोशिश क्यों ना कर लें पर जीवन के एक पडाव पर आकर हम खुद को कमजोर महसूस करते हैं , जब हमारे अन्दर इतना सामर्थ्य नहीं होता कि हम रिश्ते जोडे रखने का प्रयास कर सकें और तब हमें समझ आता है कि - जिन्दगी सच में गुलजार होती अगर हम उनके साथ होते जो हमारा साथ पाने के लिये हमेशा प्रयासरत रहते हैं । |
Re: ज़िन्दगी गुलज़ार है
परस्पर रिश्तों की पड़ताल व उनका मनोवैज्ञानिक विश्लेषण अद्वितीय है. व्यवहारिक पक्षों पर भी आपने अच्छे तर्क प्रस्तुत किये हैं जिसके लिए आपको धन्यवाद देना चाहता हूँ.
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Re: ज़िन्दगी गुलज़ार है
इन्सान की पहचान उसके द्वारा किये गये बडे बडे कारनामों से नहीं बल्कि उसके द्वारा की जाने वाली छोटी छोटी हरकतों से होती है । हम कई बार सोचते हैं कि हम चाहे कुछ भी करें , कौन देख रहा है या क्या फर्क पडता है ......पर सच तो ये है कि हम जो भी काम करते हैं वो लोगों की निगाहों में आता ही है और हमारी छवि को प्रभावित करता है । हमारी वास्तविक छवि उन कभी कभी किये जाने वाले बडे कारनामों से नहीं बनती बल्कि उन छोटी हरकतों से बनती है जो हम अपने दैनिक जीवन में करते हैं , क्योंकि उस समय हम अपने वास्तविक रूप में होते हैं ।
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Re: ज़िन्दगी गुलज़ार है
पवित्र जी इस थ्रेड को शुरू करने के लिए धन्यवाद, आपके बातो में ही शायद आपके सवालों का जवाब भी है. जाहिर है की जिंदगी अगर सीख देती है तो उसके लिए परीक्षा भी लेती ही होगी, बस यही जवाब है.मन जा सकता है की सीख देती है इसी लिए कठिनाइय आती है उसी सीख की झांच करने के लिए, उस परीक्षा में असफल होने पर वापस और कठिनाइय आती है ताकि उस सीख को हम आत्मसात करले.जिंदगी ऐसे तो कुछ नहीं देती पर हा वही अनुभव और ज्ञान देती है, हमारा मन्ना है की यदि जिंदगी को खुबसूरत बनाना हो तो एक आम नजरिया अपनाइए, चिन्ताओ से बचने के लिए ये फार्मूला सर्वोत्तम है, जहा हम घटनाओ को ज्यादा तवज्जो देते है वही चिंताए आती है, इसी से बचने के लिए नजरिया आम होना चाहिए.
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