Re: छींटे और बौछार
मस्जिद तो हुई हासिल हमको, खाली ईमान गंवा बैठे ।
मंदिर को बचाया लढ-भीडकर, खाली भगवान गंवा बैठे । धरती को हमने नाप लिया, हम चांद सितारों तक पहुंचे । कुल कायनात को जीत लिया, खाली इन्सान गंवा बैठे । मजहब के ठेकेदारों ने आज फिर हमे युं भडकाया । के काजी और पंडित जिन्दा थे, हम अपनी जान गंवा बैठे । सरहद जब जब भी बंटती है, दोनो नुकसान उठाते है । हम पाकिस्तान गंवा बैठे, वो हिन्दुस्तान गंवा बैठ । |
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Re: छींटे और बौछार
सियासत में गिरावट का कुछ ऐसा बोलबाला हैं,
यॅूं लगता है सियासत धॉंधली की पाठशाला है। सियासत की कृपा से उंगलिया गुंडो की है घी में, मगर, जनता की किस्मत में वही सूखा निवाला है। कभी दो जून की रोटी को तरसते थे, वे नायक है, अब उनकी मेज पर व्हिस्की, चिकन है और प्याला है। सियासत जो कभी जनसेवकों की कर्मशाला थी, सियासत वो ही अब अपराधियों की धर्मशाला हैं। सियासत ने चाहा था उज+ाला छीनना मुझसे, अदालन की वजह से ही मेरे घर में उजाला है। |
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ग़ज़ल
श्री विन्ध्याचल पाण्डेय सच न कहेंगे, सच न सुनेंगे, इसलिए हम है आज़ाद। सुरा-सुन्दरी, भ्रष्टाचार........जिन्दाबाद, जिन्दाबाद। सुविधा-शुल्क और महंगाई, इसीलिए सरकार बनाई, कौन सुनेगा किसे सुनाएं अब जाकर जनता फरियाद। सूर, कबीर, निराला, तुलसी, गालिब, मीर मील के पत्थर, नई फसल के लिए शेष है अब तो केवल वाद-विवाद। सेण्टीमेण्ट विलुप्त हो रहा, इन्स्ट्रुमेन्टल प्यार हो गया, झूम रहे हैं, घूम रहे हैं, कौन करे इसका प्रतिवाद। क्षेत्रवाद, आतंकवाद को भाषा, धर्म से जोड़ा, सत्ता वाली कुर्सी खातिर, करते नए-नए इजाद। |
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गीत |
Re: छींटे और बौछार
कहना तो बहुत कुछ चाहती है ये निगाहें, लेकिन कुछ कहने से घबराती है ये निगाहें...
http://pravaaah.blogspot.in/2016/12/blog-post.html |
Re: छींटे और बौछार
यह सूत्र इस फोरम का सरताज है. धन्यवाद जय भारद्वाज जी.
सभी दोस्तों का शुक्रिया. :bravo: |
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