Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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ज़रा उम्रे - रफ़्ता को आवाज़ देना |
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भरी महफिल में उसके बाद क्या गुजरी खुदा जाने........ |
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वो आये महफ़िल में इतना तो 'मीर' ने देखा फिर उसके बाद चराग़ों में रोशनी न रही. अब अन्ताक्षरी: नये मंसूर हैं सदियों पुराने .... शैखो-क़ाजी हैं न फ़तवे कुफ्र के बदले न उजरे-दार ही बदला |
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लाख हुस्न हो क्या खुदनुमा जब कोई माइल ही न हो, शम्अ को जलने से क्या मतलब जो महफिल न हो....... ____________________________________________ 1.खुदनुमा - अपने सौंदर्य अथवा हुस्न का प्रदर्शन करने वाली या वाला, 2.माइल - आकर्षित |
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चंद लफ़्ज़ों ही में जैसे कोई आग छुपा दी जाये |
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ये किस ख़लिश ने फिर इस दिल में आशियाना किया, फिर आज किस ने सुख़न हम से ग़ायेबाना किया......... - फैज़ अहमद फैज़ |
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तेरी सुब्ह कह रही है तेरी रात का फ़साना |
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न गुल अपना न खार अपना, न जालिम बागबाँ अपना, बनाया आह किस गुलशन में हमने आशियाँ अपना....... |
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जथा अनंत राम भगवाना, तथा कथा कीरति गुन गाना. |
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निर्बल को न सताइये जाकी मोटी हाय। मुए चाम की साँस से लौह भस्म होइ जाय॥ |
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