Re: शायरी में मुहावरे
मुहावरा > खाक़ छानना
भावार्थ: किसी चीज की तलाश में भटकना उदाहरण: क्यों खाक़ छानता है दिला कू-ब-कू अबस मिस्ले-सबा है उसकी तुझे जुस्तजू अबस कू-ब-कू = हर दिशा में / अबस = व्यर्थ / मिस्ले-सबा = हवा की भांति (शायर: कोशकार स्वयं) |
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मुहावरा > खाला का घर नहीं
भावार्थ: आराम और शांति का ठिकाना उदाहरण: दिल देने पर है जी तो करो खानमाँ ख़राब ये आशिक़ी है शैख़ जी खाला का घर नहीं (शायर: मो. हसन ‘मोहसिन’) |
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मुहावरा > ख़बर-अतर
भावार्थ: किसी के बारे में (शुभ या अशुभ) सूचना उदाहरण: बादे-सबा से ज़ुल्फे-मुअत्तर की हम तलक मुद्दत हुई कि पहुंची नहीं कुछ खबर अतर (शायर: मीर सज्जाद) |
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मुहावरा > दांत निकालने
(इससे मिलता जुलता मुहावरा है- खीसे निपोरने) भावार्थ: 1. दीनता व नम्रता दिखाना 2. हँसना उदाहरण: 1. जुल्फों के जब उलझते हैं उस पास आके बाल देता है शाना आजिज़ी से दांत तब निकाल (शायर: मीर सज्जाद) 2. सुन ‘सोज़’ अबस देख के हैरां होगा, खूबां का जमाल दिल ज़ुल्फ़ में उलझेगा परेशां होगा, मत दांत निकाल (शायर: मीर सोज़) |
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मुहावरा > दोनों वक़्त का मिलना
भावार्थ: आम धारणा के अनुसार तीसरे पहर और संध्या के बीच का समय उदाहरण: न लेट इस तर्ह मुंह पर ज़ुल्फ़ को बिखरा के ऐ ज़ालिम ज़रा उठ बैठ तू इस दम कि दोनों वक़्त मिलते हैं (शायर: मीर हसन) |
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मुहावरा > दिन को दिन, रात को रात न जानना
भावार्थ: गहरी तल्लीनता / सारे संसार से बेख़बर होना उदाहरण: क्या कहिये कटी हिज्र में क्योंकर औक़ात नै ख्वाबो-ख़ुरिश ध्यान में, नै मौतों-हयात दिन रात ख़याले-ज़ुल्फो- रूखे- पेशे- नज़र जाना नहीं, आह, दिन को दिन रात को रात (शायर: मिर्ज़ा अली नकी ‘महशर’) |
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मुहावरा > दौड़ धूप करना
भावार्थ: किसी ख़ास काम के लिये कठिन प्रयास करना उदाहरण: तन्हा न एक चाँद है गर्दिश में तुझ हुज़ूर करता है आफ़ताब भी तुझ आगे दौड़ धूप (गर्दिश में तुझ हुज़ूर = तेरे आगे पीछे चक्कर लगना / आफ़ताब = सूरज) (शायर: मीर सज्जाद) |
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मुहावरा > दिल-गुर्दा
भावार्थ: शूरवीरों की तरह साहस दिखाना उदाहरण: नज़र आता था बकरी सा, किया पर ज़िब्ह शेरों को न जाना मैं कि ये कस्साब का रखता है दिल गुर्दा (शायर: मो. क़ायम) |
Re: शायरी में मुहावरे
एक से बढकर एक सुंदर मुहावरे......... |
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मुहावरा > धक रह जाना या धक हो जाना
भावार्थ: घबराहट से या कोई चिंताजनक समाचार सुन कर दिल पर अचानक आघात लगना अथवा डर जाना उदाहरण: एक बारी धक से होकर जी से फिर निकली न सांस किस शिकार अंदाज़ का ये तीर बेआवाज़ है (शायर: मीर सोज़) |
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