भू-पर्यटन
स्थान निदेशक
किसी भी पर्यटक के लिए यह सबसे महत्त्वपूर्ण है कि वह अपने पूर्व निर्धारित स्थान पर आसानी से पहुँच सके। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए स्थानीय प्रशासन महत्त्वपूर्ण मार्गों एवं स्थानों पर स्थान निदेशक सूचकों का निर्माण करता है। इस प्रकार के सूचक पर्यटकों के साथ-साथ बाहरी प्रदेशों से आ रहे वाहन चालकों के लिए भी लाभदायक होते हैं। इन सूचकों में स्थानों के नाम के अलावा बाहरी आगन्तुकों के विश्राम लिए सराय, आरामगाह, डाक बंगले, अस्पताल, दूतावास, प्रमुख इमारतें, हवाई अड्डे, रेलवे स्टेशन, पुलिस स्टेशन, पूजा स्थल, आदि के संकेत दिए होते हैं ताकि पर्यटक आसानी से इन महत्त्वपूर्ण स्थानों पर जा सके। |
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मापनी
पर्यटन पुस्तिका में छ्पे मानचित्र मापनी पर आधारित होते हैं । इन मानचित्रों पर दूरियाँ निरूपक भिन्न द्वारा प्रदर्शित की जाती हैं । निरूपक भिन्न, मानचित्र पर दो स्थानों के मध्य की दूरी तथा पृथ्वी पर उन्ही दो स्थानो की वास्तविक दूरी का अनुपात, जो एक भिन्न के रूप में व्यक्त किया जाता हैं । इसमें जो अंक होते हैं वे मानचित्र के दो बिन्दुओं की दूरी तथा पृथ्वी की सतह पर उनकी वास्तविक दूरी के प्रदर्शक होते हैं । यह मापने का कोई विशेष पैमाना नही हैं वरन मात्र इकाई हैं, उदाहरण के लिए १/१००,००० । मापनी पर आधारित मानचित्र पर्यटक को दर्शन किए जा रहे स्थल का लघु रूप दर्शाते हैं। पर्यटक इसकी सहायता से बिना गाईड के भी अकेला अवलोकन कर सकता है। बड़े माप पर छोटे-छोटे भागों को दिखाया जाता है, उदाहरण के लिए अगर हम दिल्ली के चाँदनी चौक को देखना चाहते हैं तो हमें बड़े माप पर बने मानचित्र की आवश्यकता होगी। इसी प्रकार बड़े भागों को छोटे माप पर दिखाया जाता है,उदाहरण के लिए हमें अगर संयुक्त राज्य अमेरिका का मानचित्र देखना हो तो हमें छोटे माप पर बने मानचित्र की आवश्यकता होगी । |
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नौसंचालन दिक्सूचक का दृश्य दिक्सूचक यह पर्यटक को दिशा सम्बन्धी सूचना प्रदान करता है। जागरूक और सजग पर्यटकों के लिए दिक्सूचक बहुत आवश्यक यंत्र माना जाता है। गाईड भी किसी स्थान का अवलोकन कराते समय पर्यटकों को दिशा सम्बन्धी जानकारी देना नही भूलते हैं। दिक्सूचक मुख्यतः दो प्रकार के पर्यटकों के लिए अधिक उपयुक्त है - 1.जो पर्यटक वैज्ञानिक पहलुओं का अधिक ध्यान रखते हैं। इस प्रकार के पर्यटक शोध एवं अनुसंधान करने वाले व्यक्ति होते हैं। 2.जो पर्यटक मनमौजी होते हैं। इस प्रकार के पर्यटक बिना किसी पूर्व योजना के घूमने निकल पड़ते हैं। इस प्रकार के पर्यटकों को प्रायः खोजकर्ता या रोमांच को पसन्द करने वालों की श्रेणी में रखा जाता है। |
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मानचित्रण प्रस्तुतिकरण
प्राचीन समय की तुलना में वर्तमान में मानचित्रण प्रस्तुतिकरण में क्रान्तिकारी बदलाव हुए हैं। आज के मानचित्र उन्नत भौगोलिक तकनीकों पर आधारित हैं। उपग्रहों के माध्यम से पृथ्वी के त्रिविम आयामी मानचित्रों का निर्माण किया जाता है। तकनीकों के द्वारा ही आकाश से तस्वीरें लेकर संसार के बड़े से बड़े और छोटे से छोटे भाग का सटीक मानचित्र तैयार कर दिया जाता है। तैयार मानचित्र पर सांख्यिकीय आँकड़ों का प्रदर्शन भी उन्नत भौगोलिक तकनीकों द्वारा कर दिया जाता है। ये मानचित्र पर्यटक आसानी से अपनी जेब में रख सकता है। इन मानचित्रों में रुढ़ चिह्न दिये होते है जिस कारण इन्हें समझना आसान होता है। प्रमुख प्रकार के मानचित्र जो पर्यटन उद्योग में योगदान देते हैं इस प्रकार हैं- १.भूवैज्ञानिक मानचित्र, २.स्थलाकृतिक मानचित्र, ३.मौसम मानचित्र, ४.ऐतिहासिक मानचित्र, ५.धार्मिक मानचित्र |
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सांख्यिकीय आँकड़ों का निरूपण
भूगोल में सांख्यिकीय आँकड़ों की सहायता से विभिन्न आरेख बनाए जाते हैं। इसके अन्तर्गत अनेक आरेखों द्वारा पर्यटन के भिन्न-भिन्न पहलुओं का अवलोकन किया जाता है। ये प्रस्तुत आरेख पर्यटन के अनेक पहलुओं का अध्ययन करने में सहायक सिद्घ होते हैं। इनके प्रमुख प्रकार हैं - एकविम आरेख 1.रेखा आरेख 2.दण्ड आरेख 3.पिरैमिड आरेख 4.जल बजट आरेख 5.वर्षा परिक्षेपण आरेख द्विविम आरेख 1.ईकाई वर्ग आरेख 2.वर्गाकार ब्लॉक आरेख 3.आयताकार आरेख 4.चक्र आरेख 5.वलय आरेख त्रिविम आरेख 1.गोलीय आरेख 2.घनारेख 3.ब्लॉक पुंज आरेख |
Re: भू-पर्यटन
बहुत-२ आभार.......अच्छी जानकारी ..आशा है आगे भी मिलती रहेगे...
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Re: भू-पर्यटन
अरे वाह भाई आपने तो बहुत अच्छा सूत्र बनाया है :bravo::bravo:
धत तेरे की :bang-head::bang-head:हमरा ध्यान ही नहीं गया लानत है हमरे ऊपर :bang-head::bang-head: |
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पर्यटन के अवरोधी भौगोलिक कारण
पर्यटन को बढाने और विकसित करने में विभिन्न भौगोलिक तत्त्वों का बहुत अधिक योगदान होता है। साथ ही कुछ भौगोलिक विनाशकारी घटनाओं के कारण पर्यटन उद्योग को ऐसा धक्का पहुँचता है कि किसी विशेष स्थान पर पर्यटन कुछ समय के लिए पूरी तरह समाप्त सा हो जाता है। ये भौगोलिक घटनाएं इस प्रकार हैं - |
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ज्वालामुखी
यह एक भौगोलिक घटना है, जिसमें पृथ्वी के भीतर का गर्म लावा, गैस, राख आदि भयंकर विस्फोट के साथ बाहर आ जाते है। इस प्रक्रिया में पृथ्वी के गर्भ से निकला लावा इतना गर्म होता है कि जो भी वस्तु इसके सम्पर्क में आ जाती है तत्काल नष्ट हो जाती हैं। इस गर्म लावे के अतिरिक्त ज्वालामुखी से निकली हुई गैस और राख भी स्थानीय पर्यावरण के लिए अत्यधिक हानिकारक होते हैं। ज्वालामुखी से निकली गैस जिसमे अनेक हानिकारक गैसें होती है जैसे कार्बन डाइआक्साइड , सल्फर डाइआक्साइड, हाइड्रो़जन सल्फाइड आदि और राख आसमान में छा जाते हैं। ये इतने सघन होते है कि कभी-कभी तो हफ्तों तक सूर्य की किरणें पृथ्वी तक नहीं पहुँच पातीं। तदुपरांत वर्षा होने के समय ये हानिकारक गैसें और राख पृथ्वी सतह पर आ कर व्यापक रूप से तबाही मचा देती हैं। इस प्रकार ज्वालामुखी उद्गगार के साथ ही स्थान विशेष पर हजारों वर्ग मीटर तक की सतह पर इंसान तो क्या पूरे जैवमण्डल के लिए जीने और विकसित होने के लिए कुछ समय तक अनुकूल वातावरण नही बन पाता। यदि किसी स्थान पर ज्वालामुखी फट पड़े तो वहाँ पर्यटकों की कमी हो सकती है। दूसरी ओर अनेक ऐसे सुप्त और जीवित ज्वालामुखी हैं जो पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र हैं, उदाहरण के लिए हवाई के ज्वालामुखी नेशनल पार्क। |
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