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jai_bhardwaj 04-12-2010 12:13 AM

Re: छींटे और बौछार
 
रो रो के लजा करके डोली ने कहा हमसे
बाजार में लूटा है दुल्हन को कहारों ने
दुश्मन तो हैं दुश्मन ही क्या उनसे गिला कीजै
बरबाद किया हमको यारों के सहारों ने
काँटो में भी हँस हँस कर फूलों की तरह जीकर
तकदीर को मारा है तकदीर के मारों ने
उम्मीद की कलियों को बेरहमी से मसला है
अफ़सोस! नए युग के बेशर्म नजारों ने
मुँह मोड़ के मत जाओ, आना है सजन एक दिन
कल हँस के कहा हमसे गुस्ताख़ मज़ारों ने

Kalyan Das 04-12-2010 10:48 AM

Re: छींटे और बौछार
 
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Originally Posted by bhaaiijee (Post 12559)
तुम्हारे नयनों की जिह्वा
मुझे क्यों चाटती रहती ?
हृदय के बंधनों को वह
सहज ही काटती रहती /
भयंकर ज्वार लाती 'जय'
शिराओं में, लहू में भी,
प्रिये तुम दृष्टि तो फेरो
मुझे यह मारती रहती //


Kalyan Das 04-12-2010 11:16 AM

Re: छींटे और बौछार
 
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Originally Posted by bhaaiijee (Post 12558)
तुम्हारी अधखुली पलकों में,
ये कैसी मदिरा बहती है ?
तुम्हारे अधखिले अधरों में,
क्यों गुलाबी धारा बहती है ??
तुम्हारे 'जय' कपोलों के उभारों
की सतह स्निग्ध है कितनी !
तुम्हारी विस्तृत बाहें क्यों
सुखद सी कारा लगती हैं ???


jai_bhardwaj 04-12-2010 10:50 PM

Re: छींटे और बौछार
 
पंक्तियों को जीवंत करने के लिए हार्दिक आभार बन्धु !!

jai_bhardwaj 04-12-2010 11:23 PM

Re: छींटे और बौछार
 
तुम्हे जब चूमना चाहूँ तो मुंह क्यों फेर लेती हो
मेरी साँसों में बदबू है, या तुम्हारे दाँत गंदे हैं !:cry::cry::cry:
पलंग पर सिमटी हो ऐसे, कि जैसे जोंक हो कोई
कहाँ पर 'जय' तेरे घुटने, कहाँ पर तेरे कंधे हैं !! :bang-head::bang-head::bang-head:

ndhebar 05-12-2010 09:26 AM

Re: छींटे और बौछार
 
प्यार सामने होता है उससे इकरार सामने होता है,
हम जिससे मोहब्बत करते हैं उसका इन्तजार सामने होता है,

इस दबे हुए दिल मे भी तब आँसू कि लडी लग जाती है,
जब किसी गैर कि बाहों मे अपना यार सामने होता है|

Kalyan Das 05-12-2010 01:06 PM

Re: छींटे और बौछार
 
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Originally Posted by bhaaiijee (Post 23276)
तुम्हे जब चूमना चाहूँ तो मुंह क्यों फेर लेती हो !
मेरी साँसों में बदबू है, या तुम्हारे दाँत गंदे हैं ??:cry::cry::cry:
पलंग पर सिमटी हो ऐसे, कि जैसे जोंक हो कोई !
कहाँ पर 'जय' तेरे घुटने, कहाँ पर तेरे कंधे हैं ??? :bang-head::bang-head::bang-head:


jai_bhardwaj 05-12-2010 10:41 PM

Re: छींटे और बौछार
 
गुलशन के हर इक फूल की तकदीर है जुदा
है आँखों का नीर एक सा , पर पीर है जुदा
आज़ाद कौन है यहाँ हर सांस कैद है
बस सिर्फ इतना फर्क है कि ज़ंजीर है जुदा
गुजरे दिनों की याद में आहें न भरे हम
हर उम्र , वक्त , दौर की तासीर है जुदा

jai_bhardwaj 05-12-2010 11:07 PM

Re: छींटे और बौछार
 
हम विकट उच्छ्वास लेकर जी रहे हैं
हम हाथों में आकाश लेकर जी रहे हैं
आज हम खुशियाँ समेटे हैं मगर
कुछ सन्निकट संत्रास लेकर जी रहे हैं
क्या शत्रुओं से मित्रता हमने बढ़ा ली
अब मित्रों का उपहास लेकर जी रहे हैं
तुम हमें देखो न देखो, क्या हुआ !
तुम्हारे नेह का आभास लेकर जी रहे हैं
हमने कुछ दिन खूब लंगर थे छके
'जय' निर्जला उपवास लेकर जी रहे हैं

:bike::hi::bike::hi::bike:

Hamsafar+ 08-12-2010 10:52 AM

Re: छींटे और बौछार
 
चल पागल मोहब्बत करनी भी नहीं आती झूठे वादे करके वादा पूरा न करना, जन्मो के इंतजार की बाते करके इस जन्म में भी इंतजार न करना मुरझाये गुल को भी गुलाब बता देना खाली पास बुक अम्बानी की बता देना उधार की गाडी को अपना बना लेना ये हई आज का चलन और तू हई पागल मोहब्बत के नाम पे कुर्बान होता जाता है जान हलाल किया जाता है आँसू बहाए जाता है वफाओं को दुहाई दी जाती है यहाँ किसी को दर्द नहीं होता, यहाँ कोई किसी को नहीं मरता है आज तू, कल कोई और सही बस इसी तर्ज पर मुर्गा कटता रहता है|


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