Re: छींटे और बौछार
रो रो के लजा करके डोली ने कहा हमसे
बाजार में लूटा है दुल्हन को कहारों ने दुश्मन तो हैं दुश्मन ही क्या उनसे गिला कीजै बरबाद किया हमको यारों के सहारों ने काँटो में भी हँस हँस कर फूलों की तरह जीकर तकदीर को मारा है तकदीर के मारों ने उम्मीद की कलियों को बेरहमी से मसला है अफ़सोस! नए युग के बेशर्म नजारों ने मुँह मोड़ के मत जाओ, आना है सजन एक दिन कल हँस के कहा हमसे गुस्ताख़ मज़ारों ने |
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Re: छींटे और बौछार
पंक्तियों को जीवंत करने के लिए हार्दिक आभार बन्धु !!
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Re: छींटे और बौछार
तुम्हे जब चूमना चाहूँ तो मुंह क्यों फेर लेती हो
मेरी साँसों में बदबू है, या तुम्हारे दाँत गंदे हैं !:cry::cry::cry: पलंग पर सिमटी हो ऐसे, कि जैसे जोंक हो कोई कहाँ पर 'जय' तेरे घुटने, कहाँ पर तेरे कंधे हैं !! :bang-head::bang-head::bang-head: |
Re: छींटे और बौछार
प्यार सामने होता है उससे इकरार सामने होता है,
हम जिससे मोहब्बत करते हैं उसका इन्तजार सामने होता है, इस दबे हुए दिल मे भी तब आँसू कि लडी लग जाती है, जब किसी गैर कि बाहों मे अपना यार सामने होता है| |
Re: छींटे और बौछार
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Re: छींटे और बौछार
गुलशन के हर इक फूल की तकदीर है जुदा है आँखों का नीर एक सा , पर पीर है जुदा आज़ाद कौन है यहाँ हर सांस कैद है बस सिर्फ इतना फर्क है कि ज़ंजीर है जुदा गुजरे दिनों की याद में आहें न भरे हम हर उम्र , वक्त , दौर की तासीर है जुदा |
Re: छींटे और बौछार
हम विकट उच्छ्वास लेकर जी रहे हैं हम हाथों में आकाश लेकर जी रहे हैं आज हम खुशियाँ समेटे हैं मगर कुछ सन्निकट संत्रास लेकर जी रहे हैं क्या शत्रुओं से मित्रता हमने बढ़ा ली अब मित्रों का उपहास लेकर जी रहे हैं तुम हमें देखो न देखो, क्या हुआ ! तुम्हारे नेह का आभास लेकर जी रहे हैं हमने कुछ दिन खूब लंगर थे छके 'जय' निर्जला उपवास लेकर जी रहे हैं :bike::hi::bike::hi::bike: |
Re: छींटे और बौछार
चल पागल मोहब्बत करनी भी नहीं आती झूठे वादे करके वादा पूरा न करना, जन्मो के इंतजार की बाते करके इस जन्म में भी इंतजार न करना मुरझाये गुल को भी गुलाब बता देना खाली पास बुक अम्बानी की बता देना उधार की गाडी को अपना बना लेना ये हई आज का चलन और तू हई पागल मोहब्बत के नाम पे कुर्बान होता जाता है जान हलाल किया जाता है आँसू बहाए जाता है वफाओं को दुहाई दी जाती है यहाँ किसी को दर्द नहीं होता, यहाँ कोई किसी को नहीं मरता है आज तू, कल कोई और सही बस इसी तर्ज पर मुर्गा कटता रहता है|
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