Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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हमीं ये दूध मगर सांप को पिलाते हैं |
Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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है कमज़ोर सीढ़ी मुहब्बत की लेकिन, ये चढ़नी पड़ेगी , संभलते -संभलते......... (हरकीरत हीर) |
Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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तिरी गली से गुज़रता हूँ इस तरह ज़ालिम कि जैसे रेत में......पानी की धार गुज़रे है (मिर्ज़ा मुहम्मद रफ़ी सौदा) |
Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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हौसलों से मंज़िल मिलती है चींटी की तरह गिर कर फिर उठना तो सीखो, मंज़िल मिलेगी ' प्रतिबिम्ब ' ज़रा परिंदो की तरह उड़ान भर कर तो देखो......... |
Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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खुशी भले पैताने रखना दुख लेकिन सिरहाने रखना जब तुम चाहो सच हो जाएँ कुछ तो ख़्वाब सयाने रखना |
Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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जो तेरे दिल में है उस बात पर नहीं आये (हफ़ीज़ होशियारपुरी) |
Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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यहाँ तक आते -आते सूख जाती हैं कई नदियाँ , मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा | :think: दुष्यन्त कुमार |
Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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गो हैं उन मासूम आँखों में हज़ारों खूबियाँ कुछ शरारत भी मगर हस्बे-ज़रुरत चाहिये (फ़िराक गोरखपुरी) |
Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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बजरे की चांदनी ,ये गंगा की धार | भीतर -भीतर टीसता ,पहला -पहला प्यार || कैलाश गौतम |
Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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बिंदु जी, यहाँ 'य' से शे'र आरम्भ होना चाहिए था जिसे आपने 'ब' से शुरू किया है. 'य' से शे'र अर्ज़ करता हूँ: ये भी दौरे हाजिर की हम पे महरबानी है पहले जैसी चेहरे पर अब हँसी नहीं होती (असरार नसीमी) |
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