प्रेरक प्रसंग
एक बार दो मित्र साथ-साथ एक रेगिस्तान में चले जा रहे थे. रास्ते में दोनों में कुछ कहासुनी हो गई. बहसबाजी में बात इतनी बढ़ गई की उनमे से एक मित्र ने दूसरे के गाल पर जोर से झापड़ मार दिया. जिस मित्र को झापड़ पड़ा उसे दुःख तो बहुत हुआ किंतु उसने कुछ नहीं कहा वो बस झुका और उसने वहां पड़े बालू पर लिख दिया
"आज मेरे सबसे निकटतम मित्र ने मुझे झापड़ मारा " दोनों मित्र आगे चलते रहे और उन्हें एक छोटा सा पानी का तालाब दिखा और उन दोनों ने पानी में उतर कर नहाने का निर्णय कर लिया. जिस मित्र को झापड़ पड़ा था वह दलदल में फँस गया और डूबने लगा किंतु दुसरे मित्र ने उसे बचा लिया. जब वह बच गया तो बाहर आकर उसने एक पत्थर पर लिखा "आज मेरे निकटतम मित्र ने मेरी जान बचाई " जिस मित्र ने उसे झापड़ मारा था और फिर उसकी जान बचाई थी वह काफी सोच में पड़ा रहा और जब उससे रहा न गया तो उसने पूछा "जब मैंने तुम्हे मारा था तो तुमने बालू में लिखा और जब मैंने तुम्हारी जान बचाई तो तुमने पत्थर पर लिखा.ऐसा क्यों ?" इस पर दूसरे मित्र ने उत्तर दिया " जब कोई हमारा दिल दुखाये तो हमें उस अनुभव के बारे में बालू में लिखना चाहिए क्योकि उस चीज को भुला देना ही अच्छा है. क्षमा रुपी वायु शीघ्र ही उसे मिटा देगी किंतु जब कोई हमारे साथ कुछ अच्छा करे हम पर उपकार करे तो हमे उस अनुभव को पत्थर पर लिख देना चाहिए जिससे कि कोई भी जल्दी उसको मिटा न सके." |
Re: प्रेरक प्रसंग
एक बार भगवान बुद्ध को प्यास लगी और उन्होंने अपने शिष्य आनंद को पास के झरने से पानी लेने भेजा. उस झरने में थोड़ी देर पहले कुछ पशु नहाये थे जिसकी वजह से उस झरने का पानी गंदा हो गया था. शिष्य आनंद बिना पानी लिये वापस आ गया और भगवान् बुद्ध को हाल सुनाकर बोला " मैं किसी और नदी से पानी ले आता हूँ "
किंतु भगवान बुद्ध ने उसी झरने से पानी लाने को पुनः कहा. पर पानी तो अब भी गंदा ही था इसलिए आनंद फिर से वापस आ गए और वही बात दोहरा दी किन्तु भगवान् बुद्ध ने फिर से उसी झरने से पानी लाने के लिए कहा. आनंद फिर से पानी लेने गए और वापस आ गए par तीन बार ऐसा करने के बाद जब चौथी बार आनंद पानी लेने गए तो पानी तब तक साफ हो चुका था और वो स्वच्छ जल लेकर भगवान् बुद्ध के पास आ गये. पानी पीते हुये भगवान बुद्ध ने कहा " आनंद, हमारे जीवन का जल भी कुविचार रूपी पशु लौटने से गंदा होता रहता है और हम उससे डरकर भाग खड़े होते हैं पर यदि हम भागें नहीं और मन के शांत होने की प्रतीक्षा करें तो सब कुछ साफ हो जायेगा. बिलकुल झरने के पानी की तरह. |
Re: प्रेरक प्रसंग
लाहौर कालेज का एक प्रतिभाशाली छात्र फारसी के साथ स्नातक परीक्षा देना चाहता था पर किसी ने जब उसे यह समझाया कि तुम ब्राह्मण के बेटे हो तुम्हें संस्कृत लेकर स्नातक करना चाहिए तो कम समय होने के बावजूद उन्होंने संस्कृत में स्नातक करने का विचार किया और निश्चय कर संस्कृत के अध्यापक को अपना विचार बताया तो उन्होंने कहा " इतने कम समय में तुम संस्कृत शिक्षा ग्रहण कर सकोगे ? , मैं तो तुम्हें पढ़ाने की चेष्ठा करुगा पर यह कैसे सम्भव हो सकेगा ?"
तब छात्र ने कहा "गुरुवर आपने शिक्षा देना स्वीकार कर लिया, मैं धन्य हो गया. मेरा प्रयास यही रहेगा कि आपको पछताना न पड़े." इसके पश्चात वे सर्वप्रथम श्रेणी में परीक्षा उत्तीर्ण हुए और आगे चलकर वे "स्वामी तीर्थराम" के नाम से प्रसिद्ध सन्त बने. |
Re: प्रेरक प्रसंग
एक सेठ जी कुए में गिर गए और मदद के लिए चिल्लाने लगे. तभी एक किसान ने उनकी आवाज सुनी और मदद के लिए जाने लगा. किसान ने एक रस्सी ली और बोला " तू चिंता मत कर, अपना हाथ इस रस्सी के फंदे में फंसा दे और फिर हम तेरे हाथ को रस्सी से बाँध कर ऊपर घसीट लेंगे "
सेठ जी अपना हाथ उस रस्सी के फंदे में डालने को तैयार ही नहीं हुए और समय निकला जा रहा था. तभी एक युवक वहां पर आया और बोला मैं कोशिश करके देखता हूँ और उसने उस रस्सी का एक सिरा अपने हाथ में लिया और दुसरे सिरे को गाँव वालों को पकड़ा कर वो खुद कुए में कूद गया और सेठ जी से बोला " अब आप इस रस्सी को पकड़ कर ऊपर चले जाएँ में बाद में आ जाऊंगा. " सेठ जी रस्सी को पकड़ कर ऊपर चले गए और बाद में वो युवक भी ऊपर आ गया. गाँव वालों ने उस युवक से पुछा कि उसको ये विचार कहाँ से आया ? तो युवक बोला " जो पहले से ही फंसा हुआ है उसको निकालने की वजाय अगर फंसने की बात करोगे तो वो तुम्हारे ऊपर कैसे भरोसा करेगा. मुसीबत के समय मुसीबत में फंसे हुए आदमी को आपके ऊपर भरोसा भी तो होना चाहिए. जो मैंने उसे नीचे जाकर दिया " |
Re: प्रेरक प्रसंग
एक बार गुरुदेव नानक जी अपने शिष्य के साथ भ्रमण पर जा रहे थे..वे एक गॉव में पहुँचे तो उन्होंने देखा की उस गाँव के सभी लोग हमेशा आपस में झगड़ते रहते है और कोई भी किसी का सम्मान नहीं करता है..गुरुदेव नानक जी गाँव से बहार निकले और बोले "सभी इक्कठे रहना"
कुछ दिनों के बाद वे दूसरे गाँव में पहुँचे और वहाँ पाया कि सभी गाँव वाले आपस में मिलजुल कर रहते है, सभी में प्रेम भाव है और वे लोग कभी एक दुसरे के बारे में बुरा नहीं बोलते हैं...गुरुदेव नानक जी गाँव से बहार निकले और बोले "सभी बिखर जाना " उनके शिष्यों में से एक ने बोला गुरुदेव जिस गाँव में सभी लोग आपस में झगडते थे,एक दूसरे के बारे में भला बुरा बोलते थे और हमेशा एक दूसरे की शिकायत करते थे, उन्हें आपने इक्कठे का आशीर्वाद दिया और यहाँ के लोग कितने अच्छे सभी में आपस में भाई चारा है, तो आप ने इन्हें बिखर जाने को बोला..ऐसा क्यूँ गुरुदेव..?? गुरूजी मंद मंद मुस्कुराते हुए बोले...बुराई को कभी फैलने नहीं देना चाहिए इसीलिए मैंने उन्हें इक्कठे रहने का आशीर्वाद दिया और अच्छाई फूल की खुशबू के समान होती है.. अत: उन्हें मैंने बिखर जाने का आशीर्वाद दिया ताकि उनकी सुगंध का सभी लाभ ले सके.. |
Re: प्रेरक प्रसंग
एक आश्रम में गुरूजी प्रवचन दे रहे थे. कुछ नए शिष्यों ने अभी कुछ दिन पहले ही आश्रम में प्रवेश लिया था और उनकी परीक्षा लेने के लिए उन सभी को गुरु जी ने अपने पास बुलाया और एक एक केला दिया और कहा
" इस केले को सबकी नजर से बचा कर खा कर आओ. धयान रहे कि कोई देख ना ले " सभी शिष्यों ने अपने अपने केले खाकर गुरु जी के सामने अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी पर एक शिष्य ने अभी तक वापस अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं करवाई थी. गुरु जी के आदेश पर उसको ढूँढा गया और गुरु जी के सामने पेश किया गया. पर उसने अभी तक केला नहीं खाया था. गुरु जी ने पुछा " क्या हुआ ? तुमने अपना केला क्यों नहीं खाया अभी तक ? " शिष्य बोला " गुरु जी आपने ही तो कहा था कि कोई देख ना ले " गुरु जी " तो आपको कौन देख रहा था " शिष्य बोला " गुरु जी ईश्वर तो सब कुछ देख रहा था " ( गुरु जी ने सबके सामने उस शिष्य को गले से लगाया और कहा कि सिर्फ तुमने ही मेरा प्रवचन ध्यान से सुना है और समझा है. ) |
Re: प्रेरक प्रसंग
एक बार कवि कालिदास बाजार में घूमने निकले.एक स्त्री घड़ा और कुछ कटोरियाँ लेकर बैठी थी ग्राहकों के इन्तजार में. कविराज को कौतूहल हुआ कि यह महिला क्या बेचती है ? तो पास जाकर पूछा " "बहन ! तुम क्या बेचती हो?"
महिला ने कुछ अजीब सी बात कही "मैं पाप बेचती हूँ. मैं लोगों से स्वयं कहती हूँ कि मेरे पास पाप है, मर्जी हो तो ले लो. फिर भी लोग चाहत पूर्वक पाप ले जाते हैं." कालिदास उलझन में पड़ गये। पूछा " घड़े में कोई पाप होता है ?" महिला बोली " हाँ... हाँ.. होता है, जरूर होता है. देखो जी, मेरे इस घड़े में आठ पाप भरे हुए हैं. 1. बुद्धिनाश, 2. पागलपन, 3. लड़ाई-झगड़े, 4. बेहोशी, 5.विवेक का नाश, 6. सदगुण का नाश, 7. सुखों का अन्त और 8. नर्क में ले जाने वाले तमाम दुष्कृत्य " कालिदास की उत्सुकता बढ़ गयी और बोले " अरे बहन ! इतने सारे पाप बताती है तो आखिर है क्या तेरे घड़े में ? स्पष्टता से बता तो कुछ समझ में आये. " वह स्त्री बोली " शराब ! शराब !! शराब !!! यह शराब ही उन सब पापों की जननी है. जो शराब पीता है वह उन आठों पापों का शिकार बनता ही है." कालिदास उस महिला की चतुराई पर खुश हो गये. |
Re: प्रेरक प्रसंग
एक बालक ईश्वर का परम भक्त था. एक रात उसने स्वप्न में देखा कि स्वयं ईश्वर उसके सम्मुख खड़े हैं. ईश्वर ने कहा " तुम मेरे भक्त हो इसलिए मैं तुम्हें एक कार्य सौंप रहा हूं. सुबह अपने घर के बाहर तुम्हें एक बड़ी चट्टान नजर आएगी. तुम्हे उसे धकेलने का कार्य करना है. " वह बालक ईश्वर में दृढ़ विश्वास रखता था, इसलिए उसने सोच-विचार किए बिना उनके आदेश को मानने की ठान ली. सुबह जब उठा तो उसने देखा कि उसके घर के बाहर वास्तव में एक बड़ी सी चट्टान थी. वह पूजा-पाठ करने के बाद चट्टान को धकेलने में जुट गया. आते-जाते लोग उसे आश्चर्य से देख रहे थे और समझा रहे थे " ये चट्टान नहीं खिसकेगी, तुम व्यर्थ प्रयास मत करो " 'पर वह बालक प्रभु के आदेश को मानकर नियमित यत्न करते हुए सालों तक इस कार्य में लगा रहा. इस दौरान उसका शरीर मजबूत हो गया | उसे लगा कि अब उसे यह कार्य बंद कर देना चाहिए. वह पछता रहा था कि बेकार ही स्वप्न की बात सच मान ली. संयोग से उसी रात उसे फिर ईश्वर के दर्शन हुए. बालक ने ईश्वर से पूछा कि उन्होंने उसे किस कार्य में लगा दिया है ?, चट्टान तो खिसक नहीं रही है, तो उसे इतने परिश्रम का क्या फल मिला ? इस पर ईश्वर मुस्कराए और बोले " कोई भी कार्य कभी व्यर्थ नहीं होता. तुम यह क्यों नहीं देखते कि पहले तुम शारीरिक रूप से कमजोर थे पर अब ताकतवर बन चुके हो. तुम्हारे जीवन से आलस्य जाता रहा और तुम परिश्रमी हो गए हो ".
" हम अपने हर प्रयत्न से प्रत्यक्ष लाभ की कामना करने लगते हैं लेकिन हम भूल जाते हैं कि हरेक प्रयास में कई परोक्ष लाभ भी छिपे होते हैं " |
Re: प्रेरक प्रसंग
एक साधू अपने शिष्य के साथ नदी में स्नान कर रहे थे. तभी एक बिच्छू जल की धारा में बहता हुआ उधर आया और साधू ने उसे पानी से निकालने के लिए अपने हाथ पर लेने की कोशिश की. बिच्छू ने साधू के हाथ पर तेज डंक का प्रहार किया और साधू के हाथ से छूट कर दूर जा कर गिरा. तभी साधू ने दोबारा उसे हाथ में लेकर बचने की कोशिश की पर बिच्छू ने एक बार फिर से तेज डंक का प्रहार किया और साधू के हाथ से छूट कर दूर जा कर गिरा. साधू ने उसे फिर बचने के लिए हाथ बढाया और बिच्छू ने फिर से डंक मारा और यह क्रम कई बार चला और अंततः साधू ने बिच्छू को किनारे पर पहुंचा दिया. पर इस क्रम में साधू के हाथ में कम से कम ६-७ डंक लग चुके थे. एक चेला जो ये सारा उपक्रम देख रहा था, बोला " महाराज जब ये बिच्छू बार बार आपको डंक मार रहा था तो फिर आपने उसे इतने डंक खाकर क्यों पानी से बाहर निकाला ? "
साधू बोले " बिच्छू का स्वभाव ही डंक मारने का होता है और वो अपने स्वभाव को नहीं छोड़ सकता " चेला बोला " तो फिर आप तो उसको बचाना छोड़ सकते थे " साधू बोले " जब बिच्छू जैसे प्राणी ने अपना स्वभाव नहीं छोड़ा तो फिर मैं क्यों साधू होकर अपना स्वभाव त्याग देता और बिच्छू को ना बचाता ?" |
Re: प्रेरक प्रसंग
महर्षि धौम्य वन में आश्रम बनाकर रहा करते थे. वे बहुत ही विद्वान महापुरुष थे. वेदों पर उनका पूरा अधिकार था तथा अनेक विद्याओं में वे पारंगत थे दूर-दूर से उनके आश्रम में बालक पढ़ने के लिए आया करते थे और शिक्षा प्राप्त करके अपने-अपने स्थानों पर लौट जाते थे. ऋषि धौम्य के आश्रम में आरूणि नाम का एक शिष्य भी था. वह गुरु का अत्यन्त आज्ञाकारी शिष्य था. सदा उनके आदेश का पालन करने में तत्पर रहता था यद्यपि वह अधिक कुशाग्र बुद्धि नहीं था परन्तु इस आज्ञाकारिता के गुण के कारण वह ऋषि धौम्य का प्रिय शिष्य था. एक दिन बड़े जोर की वर्षा हुई, जो लगातार बहुत देर तक होती रही. आश्रम में एक उसके चारों ओर पानी ही पानी हो गया. आश्रम के चारों ओर आश्रम के खेत थे जिनमें अन्न तथा साग-सब्जी उगी हुई थी. वर्षा की दशा देखकर ऋषि को यह चिन्ता हुई कि कहीं खेतों में अधिक पानी न भर गया हो. यदि ऐसा हो गया तो सभी फ़सल नष्ट हो जाएंगी. उन्होंने आरूणि को अपने पास बुलाया और उससे कहा कि वह जाकर देखे कि खेतों में कहीं अधिक पानी तो नहीं भर गया. कोई बरहा (नाली) तो पानी के जोर से नहीं टूट गया है. यदि ऐसा हो गया है तो उस जाकर बंद कर दें. आरूणि तुंरत फावड़ा लेकर चल दिया. वर्षा जोरों पर थीं पर उसने इसकी कोई चिन्ता न की. वह सारे खेतों में बारी-बारी से घूमता रहा. एक जगह उसने देखा कि बरहा टूटा पड़ा है और पानी बड़े वेग के साथ खेत में घूस रहा है. वह तुंरत उसे रोकने में लग गया. बहुत प्रयास किया परन्तु बरहा बार-बार टूट जाता था. जितनी मिट्टी वह डालता सब बह जाती. काफ़ी देर संघर्ष करते हो गई लेकिन पानी को आरूणि नहीं रोक पाया. उसे गुरु के आदेश का पालन करना था चाहे कुछ भी हो. जब थक गया तो एक उपाय उसकी समझ में आया, वह स्वंय उस टूटी हुई मेंड़ पर लेट गया अब उसके बहने का तो प्रश्न ही नहीं था. पानी बंद हो गया और वह चुपचाप वहीं लेटा रहा. धीरे-धीरे वर्षा कम होने लगी, लेकिन पानी का बहाव अभी वैसा ही था, इसलिए उसने उठना उचित नहीं समझा.
इधर, गुरु को चिंता सवार हूई. आख़िर इतनी देर हो गई आरूणि कहां गया ?. उन्होंने अपने सभी शिष्यों से पूछा, लेकिन किसी को भी आरूणि के लौटने का ज्ञान नहीं था. तब ऋषि धौम्य कुछ शिष्यों को साथ लेकर खेतों की ओर चल दिए. वे जगह-जगह रूक कर आरूणि को आवाज लगाते लेकिन कोई उत्तर न पाकर आगे बढ़ जाते. एक जगह जब उन्होंने पुनः आवाज लगाई "आरूणि तुम कहां हो?" तो आरूणि ने उसे सुन लिया, लेकिन वह उठा नहीं और वहीं से लेटे-लेटे बोला, "गुरुजी मैं यहाँ हूं " गुरु और सभी उसकी आवाज की ओर दौड़े और उन्होंने पास जाकर देखा कि आरूणि पानी में तर-बतर और मिट्टी में सना मेंड़ पर लेटा हुआ है. गुरु कर दिल भर आया. आरूणि की गुरु भक्ति ने उन्हें हिलाकर रख दिया. उन्होंने तुरंत उसे उठने की आज्ञा दी और गद् गद होकर अपने सीने से लगा लिया. सारे शिष्य इस अलौकिक दृश्य को देखकर रोमांचित हो गए. उनके नेत्रों से अश्रु बहने लगे. वे आरूणि को अत्यन्त सौभाग्यशाली समझ रहे थे, जो गुरुजी के सीने से लगा हुआ रो रहा था. गुरु ने उसके अश्रु अपने हाथ से पीछे और बोले "बेटे, आज तुमने गुरु भक्ति का एक अपूर्व उदाहरण किया है, तुम्हारी यह तपस्या और त्याग युगों-युगों तक याद किया जाएगा. तुम एक आदर्श शिष्य के रूप में सदा याद किए जाओगे तथा अन्य छात्र तुम्हारा अनुकरण करेंगे. मेरा आर्शीवाद है कि तुम एक दिव्य बुद्धि प्राप्त करोगे तथा सभी शास्त्र तुम्हें प्राप्त हो जाएंगे. तुम्हें उनके लिए प्रयास नहीं करना पड़ेगा. आज से तुम्हारा नाम उद्दालक के रूप में प्रसिद्ध होगा अर्थात जो जल से निकला उत्पन्न हुआ" और यही हुआ. आरूणि का नाम उद्दालक के नाम से प्रसिद्ध हुआ और सारी विद्याएं उन्हें बिना पढ़े, स्वंय ही प्राप्त हो गई. कमाल की गुरु भक्ति की वजह से ही ये सब कुछ संभव हो सका. |
Re: प्रेरक प्रसंग
मशहूर लेखक जोर्ज बर्नाड शा को एक दावत में आमंत्रित किया गया था और वो अपने काम से थके मांदे सीधे ही उस दावत में चले गए पर मेजबान ने उनको कहा " जोर्ज साहब यहाँ पर इतने बड़े बड़े मेहमान आपसे मिलने के लिए आये हुए हैं और आप सीधे ही यहाँ पर चले आये. पहले आप को घर जाना चाहिए था और कपडे बगैरह बदल कर फिर दावत में आना चाहिए था. "
जोर्ज साहब ने कहा " छोड़ो अब तो में आ ही गया हूँ " पर मेजबान ने उनकी एक ना चलने दी और अपने ड्राइवर के साथ उनको घर भेज दिया ताकि तैयार होने के बाद वो जल्दी से दावत में आ सकें. जब जोर्ज साहब वापस आये तो उनके शरीर पर नए कपडे जगमगा रहे थे और तुरंत ही मेजबान ने उनका स्वागत किया और उनसे जलपान के लिए अनुरोध किया. जोर्ज साहब तो जैसे इसके लिए उताबले ही बैठे थे. और उन्होंने अपने कपड़ों पर शराब उडेलना चालू कर दिया, उसके बाद एक एक करके वो खाने और पीने के सभी चीजों को अपने कपड़ों पर ही उड़ेलने लगे. मेजबान को जैसे ही ये दिखाई दिया वो तुरंत ही जोर्ज साहब के पास पहुंचे और बोले " जोर्ज साहब ये क्या कर रहे हैं ? " जोर्ज साहब बोले " अरे भाई तुमने मुझे तो बुलाया नहीं है इस दावत में. मेरे कपड़ों को बुलाया है तो खाना पीना तो उन्ही को खिलायूंगा ना ? " इतना सुनते ही मेजबान पर घड़ों पानी पद गया और उसने जोर्ज साहब से सबके सामने ही माफ़ी मांगी. |
Re: प्रेरक प्रसंग
बचपन से ही नानक साधु-संतो के साथ रहना पसंद करते थे. अपने गांव तलवंड़ी से कुछ दूर जंगल में घूमते थे. एक बार उनके पिता ने काम-धंधा करने के लिए उन्हें कुछ रुपये दिये. संयोंग से नानक को कुछ साधु मिल गये. ये साधु कई दिन से भूखे थे.
नानक के पास जो कुछ था, साधुओं के खाने-पीने पर खर्च कर दिया. सोचा " भूखो को भोजन कराने से बढ़कर ज्यादा फायदे की बात भला और क्या हो सकती है. यह सौदा ही सच्चा सौदा है.’’ |
Re: प्रेरक प्रसंग
भगवान श्रीराम वनवास काल के दौरान संकट में हनुमान जी द्वारा की गई अनूठी सहायता से अभिभूत थे. एक दिन उन्होंने कहा " हे हनुमान, संकट के समय तुमने मेरी जो सहायता की, मैं उसे याद कर गदगद हो उठा हूं. सीता जी का पता लगाने का दुष्कर कार्य तुम्हारे बिना असंभव था. लंका जलाकर तुमने रावण का अहंकार चूर-चूर किया, वह कार्य अनूठा था. घायल लक्ष्मण के प्राण बचाने के लिए यदि तुम संजीवनी बूटी न लाते, तो न जाने क्या होता? "
तमाम बातों का वर्णन करके श्रीराम ने कहा " तेरे समान उपकारी सुर, नर, मुनि कोई भी शरीरधारी नहीं है. मैंने मन में खूब विचार कर देख लिया, मैं तुमसे उॠण नहीं हो सकता " सीता जी ने कहा " तीनों लोकों में कोई ऐसी वस्तु नहीं है, जो हनुमान जी को उनके उपकारों के बदले में दी जा सके " श्रीराम ने पुन: जैसे ही कहा " हनुमान, तुम स्वयं बताओ कि मैं तुम्हारे अनंत उपकारों के बदले क्या दूं , जिससे मैं ॠण मुक्त हो सकूं ? " श्री हनुमान जी ने हर्षित होकर, प्रेम में व्याकुल होकर कहा "‘भगवन, मेरी रक्षा कीजिए, मेरी रक्षा कीजिए, अभिमान रूपी शत्रु कहीं मेरे तमाम सत्कर्मों को नष्ट नहीं कर डाले. प्रशंसा ऐसा दुर्गुण है, जो अभिमान पैदा कर तमाम संचित पुण्यों को नष्ट कर डालता है. " कहते-कहते वह श्रीराम जी के चरणों में लोट गए. हनुमान जी की विनयशीलता देखकर सभी हतप्रभ हो उठे. |
Re: प्रेरक प्रसंग
किसी गाँव में एक किसान को बहुत दूर से पीने के लिए पानी भरकर लाना पड़ता था. उसके पास दो बाल्टियाँ थीं जिन्हें वह एक डंडे के दोनों सिरों पर बांधकर उनमें तालाब से पानी भरकर लाता था.
उन दोनों बाल्टियों में से एक के तले में एक छोटा सा छेद था जबकि दूसरी बाल्टी बहुत अच्छी हालत में थी. तालाब से घर तक के रास्ते में छेद वाली बाल्टी से पानी रिसता रहता था और घर पहुँचते-पहुँचते उसमें आधा पानी ही बचता था. बहुत लम्बे अरसे तक ऐसा रोज़ होता रहा और किसान सिर्फ डेढ़ बाल्टी पानी लेकर ही घर आता रहा. अच्छी बाल्टी को रोज़-रोज़ यह देखकर अपने पर घमंड हो गया. वह छेदवाली बाल्टी से कहती थी की वह आदर्श बाल्टी है और उसमें से ज़रा सा भी पानी नहीं रिसता. छेदवाली बाल्टी को यह सुनकर बहुत दुःख होता था और उसे अपनी कमी पर लज्जा आती थी. छेदवाली बाल्टी अपने जीवन से पूरी तरह निराश हो चुकी थी. एक दिन रास्ते में उसने किसान से कहा – “मैं अच्छी बाल्टी नहीं हूँ. मेरे तले में छोटे से छेद के कारण पानी रिसता रहता है और तुम्हारे घर तक पहुँचते-पहुँचते मैं आधी खाली हो जाती हूँ.” किसान ने छेदवाली बाल्टी से कहा – “क्या तुम देखती हो कि पगडण्डी के जिस और तुम चलती हो उस और हरियाली है और फूल खिलते हैं लेकिन दूसरी ओर नहीं. ऐसा इसलिए है कि मुझे हमेशा से ही इसका पता था और मैं तुम्हारे तरफ की पगडण्डी में फूलों और पौधों के बीज छिड़कता रहता था जिन्हें तुमसे रिसने वाले पानी से सिंचाई लायक नमी मिल जाती थी. दो सालों से मैं इसी वजह से अपने देवता को फूल चढ़ा पा रहा हूँ. यदि तुममें वह बात नहीं होती जिसे तुम अपना दोष समझती हो तो हमारे आसपास इतनी सुन्दरता नहीं होती.” मुझमें और आपमें भी कई दोष हो सकते हैं. दोषों से कौन अछूता रह पाया है. कभी-कभी ऐसे दोषों और कमियों से भी हमारे जीवन को सुन्दरता और पारितोषक देनेवाले अवसर मिलते हैं. इसीलिए दूसरों में दोष ढूँढने के बजाय उनमें अच्छाई की तलाश करें. |
Re: प्रेरक प्रसंग
आचार्य तुलसी के सत्संग के लिए दूर-दूर से लोग पहुंचा करते थे. एक बार किसी जिज्ञासु ने उनसे पूछ लिया "परलोक सुधारने के लिए क्या उपाय किए जाने चाहिए ?" आचार्यश्री ने कहा "पहले तुम्हारा वर्तमान जीवन कैसा है या तुम्हारा विचार व आचरण कैसा है, इस पर विचार करो. इस लोक में हम सदाचार का पालन नहीं करते, नैतिक मूल्यों पर नहीं चलते और मंत्र-तंत्र या कर्मकांड से परलोक को कल्याणमय बना लेंगे, यह भ्रांति पालते रहते हैं."
आचार्य महाप्रज्ञ प्रवचन में कहा करते थे "धर्म की पहली कसौटी है आचार, और आचार में भी नैतिकता का आचरण. ईमानदारी और सचाई जिसके जीवन में है, उसे दूसरी चिंता नहीं करनी चाहिए. " एक बार उन्होंने सत्संग में कहा "उपवास, आराधना, मंत्र-जाप, धर्म चर्चा आदि धार्मिक क्रियाओं का तात्कालिक फल यह होना चाहिए कि व्यक्ति का जीवन पवित्र बने. वह कभी कोई अनैतिक कर्म न करे और सत्य पर अटल रहे. अगर ऐसा होता है, तो हम मान सकते हैं कि धर्म का परिणाम उसके जीवन में आ रहा है. यह परिणाम सामने न आए, तो फिर सोचना पड़ता है कि औषधि ली जा रही है, पर रोग का शमन नहीं हो रहा. चिंता यह भी होने लगती है कि कहीं हम नकली औषधि का इस्तेमाल तो नहीं कर रहे. " आज सबसे बड़ी विडंबना यह है कि आदमी इस लोक में सुख-सुविधाएं जुटाने के लिए अनैतिकता का सहारा लेने में नहीं हिचकिचाता. वह धर्म के बाह्य आडंबरों कथा-कीर्तन, यज्ञ, तीर्थयात्रा, मंदिर दर्शन आदि के माध्यम से परलोक के कल्याण का पुण्य अर्जित करने का ताना-बाना बुनने में लगा रहता है" |
Re: प्रेरक प्रसंग
लिंकन कभी भी धर्म के बारे में चर्चा नहीं करते थे और किसी चर्च से सम्बद्ध नहीं थे. एक बार उनके किसी मित्र ने उनसे उनके धार्मिक विचार के बारे में पूछा. लिंकन ने कहा – “बहुत पहले मैं इंडियाना में एक बूढ़े आदमी से मिला जो यह कहता था ‘जब मैं कुछ अच्छा करता हूँ तो अच्छा अनुभव करता हूँ, और जब बुरा करता हूँ तो बुरा अनुभव करता हूँ’. यही मेरा धर्म है "
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Re: प्रेरक प्रसंग
लिंकन और उनके एक सहयोगी वकील ने एक बार किसी मानसिक रोगी महिला की जमीन पर कब्जा करने वाले एक धूर्त आदमी को अदालत से सजा दिलवाई. मामला अदालत में केवल पंद्रह मिनट ही चला. सहयोगी वकील ने जीतने के बाद फीस में बँटवारा करने की बात की लेकिन लिंकन ने उसे डपट दिया. सहयोगी वकील ने कहा कि उस महिला के भाई ने पूरी फीस चुका दी थी और सभी अदालत के निर्णय से प्रसन्न थे परन्तु लिंकन ने कहा – “लेकिन मैं खुश नहीं हूँ! वह पैसा एक बेचारी रोगी महिला का है और मैं ऐसा पैसा लेने के बजाय भूखे मरना पसंद करूँगा. तुम मेरी फीस की रकम उसे वापस कर दो.”
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Re: प्रेरक प्रसंग
बात उस समय की है जब जवाहर लाल नेहरू किशोर अवस्था के थे. पिता मोती लाल नेहरु उन दिनों अंग्रेजों से देश को आज़ाद कराने की मुहिम में शामिल थे. इसका असर बालक जवाहर पर भी पड़ा. मोतीलाल ने पिंजरे में तोता पाल रखा था. एक दिन जवाहर ने तोते को पिंजरे से आज़ाद कर दिया. मोतीलाल को तोता बहुत प्रिय था. उसकी देखभाल एक नौकर करता था. नौकर ने यह बात मोतीलाल को बता दी. मोतीलाल ने जवाहर से पूछा "तुमने तोता क्यों उड़ा दिया ?" जवाहर ने कहा "पिताजी पूरे देश की जनता आज़ादी चाह रहीं है. तोता भी आज़ादी चाह रहा था, सो मैंने उसे आज़ाद कर दिया" मोतीलाल जवाहर का मुंह देखते रह गये.
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Re: प्रेरक प्रसंग
very nice
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Re: प्रेरक प्रसंग
प्रेरणा से ओतप्रोत प्रसंग हैं मित्र।
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Re: प्रेरक प्रसंग
एक बार अमरीकी राष्ट्रपति लिंकन को एक आवेदन पत्र मिला जिसमे एक लडकी ने अपनी शैक्षिक विवरण लिखते हुए उसने अंत में एक पंक्ति और जोड़ी थी,"महोदय, आपके दफ्तर के लिए जिस पद के लिए एक महिला की आवश्यकता है उसके लिए मुझसे बेहतर कोई भी आवेदक नहीं होगी। हाँ, मैं दफ्तर के सभी कार्यों को सुरुचिपूर्ण ढंग से संपन्न करने के साथ साथ वह सब कार्य भी करने के लिए सुलभ हूँ जिसकी आपको जब कभी आवश्यकता पड़े तो।" लिंकन ने मुस्कुराते हुए यह आवेदन पत्र अपनी पत्नी की तरफ बढ़ा दिया। पत्र पढ़ कर लिंकन की पत्नी ने उत्तर लिखा, "प्रिय महोदया, आपका आवेदन मिला। आप निश्चित ही अत्यंत योग्य महिला है। किन्तु जिस पद के आवेदन प्रतीक्षित था वह पद कल ही भरा जा चुका है। और हाँ, वो सब कार्य करने के लिए मैं सदैव लिंकन महोदय के पास पहले से ही हूँ। धन्यवाद।"
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Re: प्रेरक प्रसंग
Quote:
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Re: प्रेरक प्रसंग
बात उस समय की है जब जवाहरलाल नेहरू किशोर अवस्था के थे। पिता मोतीलाल नेहरू उन दिनों अंग्रेजों से भारत को आज़ाद कराने की मुहिम में शामिल थे। इसका असर बालक जवाहर पर भी पड़ा। मोतीलाल ने पिंजरे में तोता पाल रखा था। एक दिन जवाहर ने तोते को पिंजरे से आज़ाद कर दिया। मोतीलाल को तोता बहुत प्रिय था। उसकी देखभाल एक नौकर करता था। नौकर ने यह बात मोतीलाल को बता दी। मोतीलाल ने जवाहर से पूछा, 'तुमने तोता क्यों उड़ा दिया। जवाहर ने कहा, 'पिताजी पूरे देश की जनता आज़ादी चाह रही है। तोता भी आज़ादी चाह रहा था, सो मैंने उसे आज़ाद कर दिया।' मोतीलाल जवाहर का मुंह देखते रह गये।
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Re: प्रेरक प्रसंग
एक समय की बात है कि एक राज्य में चन्द्र नामक एक राजा राज करता था.. उसकी पशुशाला में अनेक पशु थे, जिनमें हाथी,घोड़े,ऊंट,गाय,बंदर,भेड़ आदि थे... पशुशाला के भेड़ों में एक भेड़ बहुत लालची थी.. वो रोज रसोई में घुसकर खाना खा लिया करती थी.. रसोई घर के भंडारी उससे बहुत परेशान रहा करते थे.. और कई बार उनके हाथ में जो कुछ भी रहता उसी से मारते भी थे, लेकिन भेड़ अपनी आदत से बाज नहीं आती थी.. इस कलह को देखकर बंदरों के मुखिया को बहुत चिंता हुई.. वह नीति-शास्त्र का महान ज्ञाता था.. और इसके परिणाम से अवगत था.. एक दिन उसने सभी वानरों को एकांत में ले जाकर उन्हें समझाते हुए कहा कि जिस घर में प्रतिदिन कलह होता है, उस घर को तत्काल छोड़ देना चाहिए... वहां रहना ठीक नहीं होता.. तब वानरों ने पूछा कि हे कपि श्रेष्ठ! हमारा तो किसी से कलह नहीं है, फिर भेड़ और भंडारियों की कलह से हमें क्या मतलब? और उससे हमारा विनाश का क्या प्रयोजन?
तब उनके मुखिया ने बताया कि ये भंडारी लोग यदि किसी दिन क्रोध में आकर चुल्हे की जलती लकड़ी से भेड़ को मार दिया तो उसके शरीर के बालों में आग लग जाएगी... जिसे बुझाने के लिए भेंड़ घुड़साल में घुसकर लोटने लगेगी... तब अस्तबल में भी आग लग जाएगी और राजा के प्रिय घोड़े आग के शिकार हो जाएंगे.. उसके बाद घोड़ों के उपचार के लिए राजा किसी अश्व चिकित्सक को बुलाकर उपचार पूछेगा... इतना कहकर कपि श्रेष्ठ चुप हो गए... फिर वानरों ने पूछा कपिवर! इन बातों में तो हमारा कोई अनिष्ट नहीं है... फिर आप चिंतित क्यों है? मुखिया बोला- आचार्य शालि होत्र द्वारा रचित अश्व चिकित्सा ग्रंथ में लिखा गया है कि जले हुए घोड़ों का इलाज वानर की चर्बी से किया जाता है.. ऐसा करने से घोड़ा तुरंत ठीक हो जाता है.. अतः इलाज के लिए राजा हम सबको मरवा देगा.. क्योंकि घोड़े राजा को बहुत प्रिय हैं.. तब अपने मुखिया द्वारा इस तरह की बात सुनकर सभी वानर हंसते हुए बोले कि- वृद्धावस्था के कारण आपकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई है.. जो केवल कल्पना के आधार पर अनिष्ट की रचना कर रहे हैं... मुखिया के लाख समझाने पर भी वानर नहीं माने तब मुखिया वहां से चला गया... और एक दिन हुआ वही जिस बात की मुखिया को डर थी- जलती लकड़ी भंडारी ने भेड़ को मारी... उसके बालों में आग लग गई, वो आग बुझाने अस्तबल में भागी.. अस्तबल भी आग की चपेट में आ गया.. घोड़े भी जलकर मरने लगे... किसी तरह आग पर काबू पाई गई.. उसके बाद राजा ने बैद्यराज को बुलाया, और घोड़े को बचाने का उपचार पूछा.. तब बैद्यराज ने कहा जले हुए घोड़ों को बचाने के लिए वानरों की चर्बी चाहिए.. राजा ने तुरंत सब वानरों को मारने का आदेश दे दिया और घोड़ों का उपचार शुरु कर दिया.. इस प्रकार कलहपूर्ण स्थान पर रहने के कारण बंदरों का विनाश हो गया... अतः मनुष्य को चाहिए की वो ऐसे स्थान पर रहें जहां शांति हो... |
Re: प्रेरक प्रसंग
विद्यालय में सब उसे मंदबुद्धि कहते थे । उसके गुरुजन भी उससे नाराज रहते थे क्योंकि वह पढने में बहुत कमजोर था और उसकी बुद्धि का स्तर औसत से भी कम था।
कक्षा में उसका प्रदर्शन हमेशा ही खराब रहता था । और बच्चे उसका मजाक उड़ाने से कभी नहीं चूकते थे । पढने जाना तो मानो एक सजा के समान हो गया था , वह जैसे ही कक्षा में घुसता और बच्चे उस पर हंसने लगते , कोई उसे महामूर्ख तो कोई उसे बैलों का राजा कहता , यहाँ तक की कुछ अध्यापक भी उसका मजाक उड़ाने से बाज नहीं आते । इन सबसे परेशान होकर उसने स्कूल जाना ही छोड़ दिया । अब वह दिन भर इधर-उधर भटकता और अपना समय बर्वाद करता । एक दिन इसी तरह कहीं से जा रहा था , घूमते – घूमते उसे प्यास लग गयी । वह इधर-उधर पानी खोजने लगा। अंत में उसे एक कुआं दिखाई दिया। वह वहां गया और कुएं से पानी खींच कर अपनी प्यास बुझाई। अब वह काफी थक चुका था, इसलिए पानी पीने के बाद वहीं बैठ गया। तभी उसकी नज़र पत्थर पर पड़े उस निशान पर गई जिस पर बार-बार कुएं से पानी खींचने की वजह से रस्सी का निशाँ बन गया था । वह मन ही मन सोचने लगा कि जब बार-बार पानी खींचने से इतने कठोर पत्थर पर भी रस्सी का निशान पड़ सकता है तो लगातार मेहनत करने से मुझे भी विद्या आ सकती है। उसने यह बात मन में बैठा ली और फिर से विद्यालय जाना शुरू कर दिया। कुछ दिन तक लोग उसी तरह उसका मजाक उड़ाते रहे पर धीरे-धीरे उसकी लगन देखकर अध्यापकों ने भी उसे सहयोग करना शुरू कर दिया । उसने मन लगाकर अथक परिश्रम किया। कुछ सालों बाद यही विद्यार्थी प्रकांड विद्वान वरदराज के रूप में विख्यात हुआ, जिसने संस्कृत में मुग्धबोध और लघुसिद्धांत कौमुदी जैसे ग्रंथों की रचना की। “ आशय यह है कि हम अपनी किसी भी कमजोरी पर जीत हांसिल कर सकते हैं , बस ज़रुरत है कठिन परिश्रम और धैर्य के साथ अपने लक्ष्य के प्रति स्वयं को समर्पित करने की। |
Re: प्रेरक प्रसंग
एक मकड़ी थी. उसने आराम से रहने के लिए एक शानदार जाला बनाने का विचार किया और सोचा की इस जाले मे खूब कीड़ें, मक्खियाँ फसेंगी और मै उसे आहार बनाउंगी और मजे से रहूंगी . उसने कमरे के एक कोने को पसंद किया और वहाँ जाला बुनना शुरू किया. कुछ देर बाद आधा जाला बुन कर तैयार हो गया. यह देखकर वह मकड़ी काफी खुश हुई कि तभी अचानक उसकी नजर एक बिल्ली पर पड़ी जो उसे देखकर हँस रही थी.
मकड़ी को गुस्सा आ गया और वह बिल्ली से बोली , ” हँस क्यो रही हो?” ”हँसू नही तो क्या करू.” , बिल्ली ने जवाब दिया , ” यहाँ मक्खियाँ नही है ये जगह तो बिलकुल साफ सुथरी है, यहाँ कौन आयेगा तेरे जाले मे.” ये बात मकड़ी के गले उतर गई. उसने अच्छी सलाह के लिये बिल्ली को धन्यवाद दिया और जाला अधूरा छोड़कर दूसरी जगह तलाश करने लगी. उसने ईधर ऊधर देखा. उसे एक खिड़की नजर आयी और फिर उसमे जाला बुनना शुरू किया कुछ देर तक वह जाला बुनती रही , तभी एक चिड़िया आयी और मकड़ी का मजाक उड़ाते हुए बोली , ” अरे मकड़ी , तू भी कितनी बेवकूफ है.” “क्यो ?”, मकड़ी ने पूछा. चिड़िया उसे समझाने लगी , ” अरे यहां तो खिड़की से तेज हवा आती है. यहा तो तू अपने जाले के साथ ही उड़ जायेगी.” मकड़ी को चिड़िया की बात ठीक लगीँ और वह वहाँ भी जाला अधूरा बना छोड़कर सोचने लगी अब कहाँ जाला बनायाँ जाये. समय काफी बीत चूका था और अब उसे भूख भी लगने लगी थी .अब उसे एक आलमारी का खुला दरवाजा दिखा और उसने उसी मे अपना जाला बुनना शुरू किया. कुछ जाला बुना ही था तभी उसे एक काक्रोच नजर आया जो जाले को अचरज भरे नजरो से देख रहा था. मकड़ी ने पूछा – ‘इस तरह क्यो देख रहे हो?’ काक्रोच बोला-,” अरे यहाँ कहाँ जाला बुनने चली आयी ये तो बेकार की आलमारी है. अभी ये यहाँ पड़ी है कुछ दिनों बाद इसे बेच दिया जायेगा और तुम्हारी सारी मेहनत बेकार चली जायेगी. यह सुन कर मकड़ी ने वहां से हट जाना ही बेहतर समझा . बार-बार प्रयास करने से वह काफी थक चुकी थी और उसके अंदर जाला बुनने की ताकत ही नही बची थी. भूख की वजह से वह परेशान थी. उसे पछतावा हो रहा था कि अगर पहले ही जाला बुन लेती तो अच्छा रहता. पर अब वह कुछ नहीं कर सकती थी उसी हालत मे पड़ी रही. जब मकड़ी को लगा कि अब कुछ नहीं हो सकता है तो उसने पास से गुजर रही चींटी से मदद करने का आग्रह किया . चींटी बोली, ” मैं बहुत देर से तुम्हे देख रही थी , तुम बार- बार अपना काम शुरू करती और दूसरों के कहने पर उसे अधूरा छोड़ देती . और जो लोग ऐसा करते हैं , उनकी यही हालत होती है.” और ऐसा कहते हुए वह अपने रास्ते चली गई और मकड़ी पछताती हुई निढाल पड़ी रही. दोस्तों , हमारी ज़िन्दगी मे भी कई बार कुछ ऐसा ही होता है. हम कोई काम start करते है. शुरू -शुरू मे तो हम उस काम के लिये बड़े उत्साहित रहते है पर लोगो के comments की वजह से उत्साह कम होने लगता है और हम अपना काम बीच मे ही छोड़ देते है और जब बाद मे पता चलता है कि हम अपने सफलता के कितने नजदीक थे तो बाद मे पछतावे के अलावा कुछ नही बचता. |
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एक स्त्री एक दिन एक स्त्रीरोग विशेषज्ञ के पास गई और बोली,
"डाक्टर मैँ एक गंभीर समस्या मेँ हुँ और मेँ आपकी मदद चाहती हुँ । मैं गर्भवती हूँ, आप किसी को बताइयेगा नही मैने एक जान पहचान के सोनोग्राफी लैब से यह जान लिया है कि मेरे गर्भ में एक बच्ची है । मै पहले से एकबेटी की माँ हूँ और मैं किसी भी दशा मे दो बेटियाँ नहीं चाहती ।" डाक्टर ने कहा ,"ठीक है, तो मेँ आपकी क्या सहायता कर सकता हु ?" तो वो स्त्री बोली,"मैँ यह चाहती हू कि इस गर्भ को गिराने मेँ मेरी मदद करें ।" डाक्टर अनुभवी और समझदार था। थोडा सोचा और फिर बोला,"मुझे लगता है कि मेरे पास एक और सरल रास्ता है जो आपकी मुश्किल को हल कर देगा।"वो स्त्री बहुत खुश हुई.. डाक्टर आगे बोला,"हम एक काम करते है आप दो बेटियां नही चाहती ना ?? ? तो पहली बेटी को मार देते है जिससे आप इस अजन्मी बच्ची को जन्मदे सके और आपकी समस्या का हल भी हो जाएगा. वैसे भी हमको एक बच्ची को मारना है तो पहले वाली को ही मार देते है ना.?" तो वो स्त्री तुरंत बोली"ना ना डाक्टर.".!!! हत्या करनागुनाह है पाप है और वैसे भी मैं अपनी बेटी को बहुत चाहती हूँ । उसको खरोंच भी आती है तो दर्द का अहसास मुझे होता है डाक्टर तुरंत बोला,"पहले कि हत्या करो या अभी जो जन्मा नही उसकी हत्या करो दोनो गुनाह है पाप हैं ।" यह बात उस स्त्री को समझ आ गई । वह स्वयं की सोच पर लज्जित हुई और पश्चाताप करते हुए घर चली गई । क्या आपको समझ मेँ आयी ? अगर आई हो तो SHARE करके दुसरे लोगो को भी समझाने मे मदद कीजिये ना महेरबानी. बडी कृपा होगी । हो सकता है आपका ही एक shareकिसी की सोच बदल दे.. और एक कन्या भ्रूण सुरक्षित, पूर्ण विकसित होकर इस संसारमें जन्म ले..... |
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बहुत बढिया प्रसंग हैँ अनिल भैया बहुत कुछ सीखने को मिलेगा
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बोले हुए शब्द वापस नहीं आते
एक बार एक किसान ने अपने पडोसी को भला बुरा कह दिया, पर जब बाद में उसे अपनी गलती का एहसास हुआ तो वह एक संत के पास गया.उसने संत से अपने शब्द वापस लेने का उपाय पूछा. संत ने किसान से कहा , ” तुम खूब सारे पंख इकठ्ठा कर लो , और उन्हें शहर के बीचो-बीच जाकर रख दो .” किसान ने ऐसा ही किया और फिर संत के पास पहुंच गया. तब संत ने कहा , ” अब जाओ और उन पंखों को इकठ्ठा कर के वापस ले आओ” किसान वापस गया पर तब तक सारे पंख हवा से इधर-उधर उड़ चुके थे. और किसान खाली हाथ संत के पास पहुंचा. तब संत ने उससे कहा कि ठीक ऐसा ही तुम्हारे द्वारा कहे गए शब्दों के साथ होता है,तुम आसानी से इन्हें अपने मुख से निकाल तो सकते हो पर चाह कर भी वापस नहीं ले सकते. इस कहानी से क्या सीख मिलती है: कुछ कड़वा बोलने से पहले ये याद रखें कि भला-बुरा कहने के बाद कुछ भी कर के अपने शब्द वापस नहीं लिए जा सकते. हाँ, आप उस व्यक्ति से जाकर क्षमा ज़रूर मांग सकते हैं, और मांगनी भी चाहिए, पर human nature कुछ ऐसा होता है की कुछ भी कर लीजिये इंसान कहीं ना कहीं hurt हो ही जाता है. जब आप किसी को बुरा कहते हैं तो वह उसे कष्ट पहुंचाने के लिए होता है पर बाद में वो आप ही को अधिक कष्ट देता है. खुद को कष्ट देने से क्या लाभ, इससे अच्छा तो है की चुप रहा जाए. |
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सफलता का रहस्य
एक बार एक नौजवान लड़के ने सुकरात से पूछा कि सफलता का रहस्य क्या है? सुकरात ने उस लड़के से कहा कि तुम कल मुझे नदी के किनारे मिलो.वो मिले. फिर सुकरात ने नौजवान से उनके साथ नदी की तरफ बढ़ने को कहा.और जब आगे बढ़ते-बढ़ते पानी गले तक पहुँच गया, तभी अचानक सुकरात ने उस लड़के का सर पकड़ के पानी में डुबो दिया. लड़का बाहर निकलने के लिए संघर्ष करने लगा , लेकिन सुकरात ताकतवर थे और उसे तब तक डुबोये रखे जब तक की वो नीला नहीं पड़ने लगा. फिर सुकरात ने उसका सर पानी से बाहर निकाल दिया और बाहर निकलते ही जो चीज उस लड़के ने सबसे पहले की वो थी हाँफते-हाँफते तेजी से सांस लेना. सुकरात ने पूछा ,” जब तुम वहाँ थे तो तुम सबसे ज्यादा क्या चाहते थे?” लड़के ने उत्तर दिया,”सांस लेना” सुकरात ने कहा,” यही सफलता का रहस्य है. जब तुम सफलता को उतनी ही बुरी तरह से चाहोगे जितना की तुम सांस लेना चाहते थे तो वो तुम्हे मिल जाएगी” इसके आलावा और कोई रहस्य नहीं है. |
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ज़िन्दगी के पत्थर, कंकड़ और रेत
Philosophy के एक professor ने कुछ चीजों के साथ class में प्रवेश किया. जब class शुरू हुई तो उन्होंने एक बड़ा सा खाली शीशे का जार लिया और उसमे पत्थर के बड़े-बड़े टुकड़े भरने लगे. फिर उन्होंने students से पूछा कि क्या जार भर गया है ? और सभी ने कहा “हाँ”. तब प्रोफ़ेसर ने छोटे-छोटे कंकडों से भरा एक box लिया और उन्हें जार में भरने लगे. जार को थोडा हिलाने पर ये कंकड़ पत्थरों के बीच settle हो गए. एक बार फिर उन्होंने छात्रों से पूछा कि क्या जार भर गया है? और सभी ने हाँ में उत्तर दिया. तभी professor ने एक sand box निकाला और उसमे भरी रेत को जार में डालने लगे. रेत ने बची-खुची जगह भी भर दी. और एक बार फिर उन्होंने पूछा कि क्या जार भर गया है? और सभी ने एक साथ उत्तर दिया , ” हाँ” फिर professor ने समझाना शुरू किया, ” मैं चाहता हूँ कि आप इस बात को समझें कि ये जार आपकी life को represent करता है. बड़े-बड़े पत्थर आपके जीवन की ज़रूरी चीजें हैं- आपकी family,आपका partner,आपकी health, आपके बच्चे – ऐसी चीजें कि अगर आपकी बाकी सारी चीजें खो भी जाएँ और सिर्फ ये रहे तो भी आपकी ज़िन्दगी पूर्ण रहेगी. ये कंकड़ कुछ अन्य चीजें हैं जो matter करती हैं- जैसे कि आपकी job, आपका घर, इत्यादि. और ये रेत बाकी सभी छोटी-मोटी चीजों को दर्शाती है. अगर आप जार को पहले रेत से भर देंगे तो कंकडों और पत्थरों के लिए कोई जगह नहीं बचेगी. यही आपकी life के साथ होता है. अगर आप अपनी सारा समय और उर्जा छोटी-छोटी चीजों में लगा देंगे तो आपके पास कभी उन चीजों के लिए time नहीं होगा जो आपके लिए important हैं. उन चीजों पर ध्यान दीजिये जो आपकी happiness के लिए ज़रूरी हैं.बच्चों के साथ खेलिए, अपने partner के साथ dance कीजिये. काम पर जाने के लिए, घर साफ़ करने के लिए,party देने के लिए, हमेशा वक़्त होगा. पर पहले पत्थरों पर ध्यान दीजिये – ऐसी चीजें जो सचमुच matter करती हैं . अपनी priorities set कीजिये. बाकी चीजें बस रेत हैं.” |
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गुरु-दक्षिणा
एक बार एक शिष्य ने विनम्रतापूर्वक अपने गुरु जी से पूछा-‘गुरु जी,कुछ लोग कहते हैं कि जीवन एक संघर्ष है,कुछ अन्य कहते हैं कि जीवन एक खेल है और कुछ जीवन को एक उत्सव की संज्ञा देते हैं | इनमें कौन सही है?’गुरु जी ने तत्काल बड़े ही धैर्यपूर्वक उत्तर दिया-‘पुत्र,जिन्हें गुरु नहीं मिला उनके लिए जीवन एक संघर्ष है; जिन्हें गुरु मिल गया उनका जीवन एक खेल है और जो लोग गुरु द्वारा बताये गए मार्ग पर चलने लगते हैं,मात्र वे ही जीवन को एक उत्सव का नाम देने का साहस जुटा पाते हैं |’यह उत्तर सुनने के बाद भी शिष्य पूरी तरह से संतुष्ट न था| गुरु जी को इसका आभास हो गया |वे कहने लगे-‘लो,तुम्हें इसी सन्दर्भ में एक कहानी सुनाता हूँ| ध्यान से सुनोगे तो स्वयं ही अपने प्रश्न का उत्तर पा सकोगे |’ उन्होंने जो कहानी सुनाई,वह इस प्रकार थी-एक बार की बात है कि किसी गुरुकुल में तीन शिष्यों नें अपना अध्ययन सम्पूर्ण करने पर अपने गुरु जी से यह बताने के लिए विनती की कि उन्हें गुरुदाक्षिणा में, उनसे क्या चाहिए |गुरु जी पहले तो मंद-मंद मुस्कराये और फिर बड़े स्नेहपूर्वक कहने लगे-‘मुझे तुमसे गुरुदक्षिणा में एक थैला भर के सूखी पत्तियां चाहिए,ला सकोगे?’ वे तीनों मन ही मन बहुत प्रसन्न हुए क्योंकि उन्हें लगा कि वे बड़ी आसानी से अपने गुरु जी की इच्छा पूरी कर सकेंगे |सूखी पत्तियाँ तो जंगल में सर्वत्र बिखरी ही रहती हैं| वे उत्साहपूर्वक एक ही स्वर में बोले-‘जी गुरु जी, जैसी आपकी आज्ञा |’ अब वे तीनों शिष्य चलते-चलते एक समीपस्थ जंगल में पहुँच चुके थे |लेकिन यह देखकर कि वहाँ पर तो सूखी पत्तियाँ केवल एक मुट्ठी भर ही थीं ,उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा | वे सोच में पड़ गये कि आखिर जंगल से कौन सूखी पत्तियां उठा कर ले गया होगा? इतने में ही उन्हें दूर से आता हुआ कोई किसान दिखाई दिया |वे उसके पास पहुँच कर, उससे विनम्रतापूर्वक याचना करने लगे कि वह उन्हें केवल एक थैला भर सूखी पत्तियां दे दे |अब उस किसान ने उनसे क्षमायाचना करते हुए, उन्हें यह बताया कि वह उनकी मदद नहीं कर सकता क्योंकि उसने सूखी पत्तियों का ईंधन के रूप में पहले ही उपयोग कर लिया था | अब, वे तीनों, पास में ही बसे एक गाँव की ओर इस आशा से बढ़ने लगे थे कि हो सकता है वहाँ उस गाँव में उनकी कोई सहायता कर सके |वहाँ पहुँच कर उन्होंने जब एक व्यापारी को देखा तो बड़ी उम्मीद से उससे एक थैला भर सूखी पत्तियां देने के लिए प्रार्थना करने लगे लेकिन उन्हें फिर से एकबार निराशा ही हाथ आई क्योंकि उस व्यापारी ने तो, पहले ही, कुछ पैसे कमाने के लिए सूखी पत्तियों के दोने बनाकर बेच दिए थे लेकिन उस व्यापारी ने उदारता दिखाते हुए उन्हें एक बूढी माँ का पता बताया जो सूखी पत्तियां एकत्रित किया करती थी|पर भाग्य ने यहाँ पर भी उनका साथ नहीं दिया क्योंकि वह बूढी माँ तो उन पत्तियों को अलग-अलग करके कई प्रकार की ओषधियाँ बनाया करती थी |अब निराश होकर वे तीनों खाली हाथ ही गुरुकुल लौट गये |गुरु जी ने उन्हें देखते ही स्नेहपूर्वक पूछा- ‘पुत्रो,ले आये गुरुदक्षिणा ?’तीनों ने सर झुका लिया |गुरू जी द्वारा दोबारा पूछे जाने पर उनमें से एक शिष्य कहने लगा- ‘गुरुदेव,हम आपकी इच्छा पूरी नहीं कर पाये |हमने सोचा था कि सूखी पत्तियां तो जंगल में सर्वत्र बिखरी ही रहती होंगी लेकिन बड़े ही आश्चर्य की बात है कि लोग उनका भी कितनी तरह से उपयोग करते हैं |’गुरु जी फिर पहले ही की तरह मुस्कराते हुए प्रेमपूर्वक बोले-‘निराश क्यों होते हो ?प्रसन्न हो जाओ और यही ज्ञान कि सूखी पत्तियां भी व्यर्थ नहीं हुआ करतीं बल्कि उनके भी अनेक उपयोग हुआ करते हैं; मुझे गुरुदक्षिणा के रूप में दे दो |’तीनों शिष्य गुरु जी को प्रणाम करके खुशी-खुशी अपने-अपने घर की ओर चले गये | वह शिष्य जो गुरु जी की कहानी एकाग्रचित्त हो कर सुन रहा था,अचानक बड़े उत्साह से बोला-‘गुरु जी,अब मुझे अच्छी तरह से ज्ञात हो गया है कि आप क्या कहना चाहते हैं |आप का संकेत, वस्तुतः इसी ओर है न कि जब सर्वत्र सुलभ सूखी पत्तियां भी निरर्थक या बेकार नहीं होती हैं तो फिर हम कैसे, किसी भी वस्तु या व्यक्ति को छोटा और महत्त्वहीन मान कर उसका तिरस्कार कर सकते हैं?चींटी से लेकर हाथी तक और सुई से लेकर तलवार तक-सभी का अपना-अपना महत्त्व होता है |’गुरु जी भी तुरंत ही बोले-‘हाँ, पुत्र,मेरे कहने का भी यही तात्पर्य है कि हम जब भी किसी से मिलें तो उसे यथायोग्य मान देने का भरसक प्रयास करें ताकि आपस में स्नेह, सद्भावना,सहानुभूति एवं सहिष्णुता का विस्तार होता रहे और हमारा जीवन संघर्ष के बजाय उत्सव बन सके | दूसरे,यदि जीवन को एक खेल ही माना जाए तो बेहतर यही होगा कि हम निर्विक्षेप,स्वस्थ एवं शांत प्रतियोगिता में ही भाग लें और अपने निष्पादन तथा निर्माण को ऊंचाई के शिखर पर ले जाने का अथक प्रयास करें |’अब शिष्य पूरी तरह से संतुष्ट था | अंततः,मैं यही कहना चाहती हूँ कि यदि हम मन, वचन और कर्म- इन तीनों ही स्तरों पर इस कहानी का मूल्यांकन करें, तो भी यह कहानी खरी ही उतरेगी |सब के प्रति पूर्वाग्रह से मुक्त मन वाला व्यक्ति अपने वचनों से कभी भी किसी को आहत करने का दुःसाहस नहीं करता और उसकी यही ऊर्जा उसके पुरुषार्थ के मार्ग की समस्त बाधाओं को हर लेती है |वस्तुतः,हमारे जीवन का सबसे बड़ा ‘उत्सव’ पुरुषार्थ ही होता है-ऐसा विद्वानों का मत है | |
Re: प्रेरक प्रसंग
स्वामी विवेकानंद बचपन से ही निडर थे , जब वह लगभग 8 साल के थे तभी से अपने एक मित्र के यहाँ खेलने जाया करते थे , उस मित्र के घर में एक चम्पक पेड़ लगा हुआ था . वह स्वामी जी का पसंदीदा पेड़ था और उन्हें उसपर लटक कर खेलना बहुत प्रिय था .
रोज की तरह एक दिन वह उसी पेड़ को पकड़ कर झूल रहे थे की तभी मित्र के दादा जी उनके पास पहुंचे , उन्हें डर था कि कहीं स्वामी जी उसपर से गिर न जाए या कहीं पेड़ की डाल ही ना टूट जाए , इसलिए उन्होंने स्वामी जी को समझाते हुआ कहा , “ नरेन्द्र ( स्वामी जी का नाम ) , तुम इस पेड़ से दूर रहो , अब दुबारा इसपर मत चढना ” “क्यों ?” , नरेन्द्र ने पूछा . “ क्योंकि इस पेड़ पर एक ब्रह्म्दैत्य रहता है , वो रात में सफ़ेद कपडे पहने घूमता है , और देखने में बड़ा ही भयानक है .” उत्तर आया . नरेन्द्र को ये सब सुनकर थोडा अचरज हुआ , उसने दादा जी से दैत्य के बारे में और भी कुछ बताने का आग्रह किया . दादा जी बोले ,” वह पेड़ पर चढ़ने वाले लोगों की गर्दन तोड़ देता है .” नरेन्द्र ने ये सब ध्यान से सुना और बिना कुछ कहे आगे बढ़ गया . दादा जी भी मुस्कुराते हुए आगे बढ़ गए , उन्हें लगा कि बच्चा डर गया है . पर जैसे ही वे कुछ आगे बढे नरेन्द्र पुनः पेड़ पर चढ़ गया और डाल पर झूलने लगा . यह देख मित्र जोर से चीखा , “ अरे तुमने दादा जी की बात नहीं सुनी , वो दैत्य तुम्हारी गर्दन तोड़ देगा .” बालक नरेन्द्र जोर से हंसा और बोला , “मित्र डरो मत ! तुम भी कितने भोले हो ! सिर्फ इसलिए कि किसी ने तुमसे कुछ कहा है उसपर यकीन मत करो ; खुद ही सोचो अगर दादा जी की बात सच होती तो मेरी गर्दन कब की टूट चुकी होती .” सचमुच स्वामी विवेकानंद बचपन से ही निडर और तीक्ष्ण बुद्धि के स्वामी थे . |
Re: प्रेरक प्रसंग
एक बार एक हंस और हंसिनी हरिद्वार के सुरम्य वातावरण से भटकते हुए उजड़े, वीरान और रेगिस्तान के इलाके में आ
गये ! हंसिनी ने हंस को कहा कि ये किस उजड़े इलाके में आ गये हैं ? यहाँ न तो जल है, न जंगल और न ही ठंडी हवाएं हैं... ! यहाँ तो हमारा जीना मुश्किल हो जायेगा ! भटकते २ शाम हो गयी तो हंस ने हंसिनी से कहा कि किसी तरह आज कि रात बिता लो, सुबह हम लोग हरिद्वार लौट चलेंगे ! रात हुई तो जिस पेड़ के नीचे हंस और हंसिनी रुके थे उस पर एक उल्लू बैठा था। वह जोर २ से चिल्लाने लगा. हंसिनी ने हंस से कहा, अरे यहाँ तो रात में सो भी नहीं सकते... ये उल्लू चिल्ला रहा है. हंस ने फिर हंसिनी को समझाया कि किसी तरह रात काट लो, मुझे अब समझ में आ गया है कि ये इलाका वीरान क्यूँ है ? ऐसे उल्लू जिस इलाके में रहेंगे वो तो वीरान और उजड़ा रहेगा ही....!! पेड़ पर बैठा उल्लू दोनों कि बात सुन रहा था. सुबह हुई, उल्लू नीचे आया और उसने कहा कि हंस भाई मेरी वजह से आपको रात में तकलीफ हुई, मुझे माफ़ कर दो. हंस ने कहा, कोई बात नही भैया, आपका धन्यवाद ! यह कहकर जैसे ही हंस अपनी हंसिनी को लेकर आगे बढ़ा, पीछे से उल्लू चिल्लाया, अरे हंस मेरी पत्नी को लेकर कहाँ जा रहे हो...?? हंस चौंका, उसने कहा, आपकी पत्नी? अरे भाई, यह हंसिनी है, मेरी पत्नी है, मेरे साथ आई थी, मेरे साथ जा रही है ! उल्लू ने कहा, खामोश रहो, ये मेरी पत्नी है...!! दोनों के बीच विवाद बढ़ गया और पूरे इलाके के लोग इक्कठा हो गये. कई गावों की जनता बैठी और पंचायत बुलाई गयी. पंच लोग भी आ गये ! बोले, भाई किस बात का विवाद है ? लोगों ने बताया कि उल्लू कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है और हंस कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है ! लम्बी बैठक और पंचायत के बाद पञ्च लोग किनारे हो गये और कहा कि भाई बात तो यह सही है कि हंसिनी हंस की ही पत्नी है, लेकिन ये हंस और हंसिनी तो अभी थोड़ी देर में इस गाँव से चले जायेंगे...!! हमारे बीच में तो उल्लू को ही रहना है, इसलिए फैसला उल्लू के ही हक़ में ही सुनाना है ! फिर पंचों ने अपना फैसला सुनाया और कहा कि सारे तथ्यों और सबूतों कि जांच करने के बाद यह पंचायत इस नतीजे पर पहुंची है कि हंसिनी उल्लू की पत्नी है और हंस को तत्काल गाँव छोड़ने का हुक्म दिया जाता है ! यह सुनते ही हंस हैरान हो गया और रोने, चीखने और चिल्लाने लगा कि पंचायत ने गलत फैसला सुनाया..!! उल्लू ने मेरी पत्नी ले ली ! रोते- चीखते जब वहआगे बढ़ने लगा तो उल्लू ने आवाज लगाई - ऐ मित्र हंस, रुको ! हंस ने रोते हुए कहा कि भैया, अब क्या करोगे ? पत्नी तो तुमने ले ही ली, अब जान भी लोगे ? उल्लू ने कहा, नहीं मित्र, ये हंसिनी आपकी पत्नी थी, है और रहेगी ! लेकिन कल रात जब मैं चिल्ला रहा था तो आपने अपनी पत्नी से कहा था कि यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ उल्लू रहता है ! मित्र, ये इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए नहीं है कि यहाँ उल्लू रहता है. यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ पर ऐसे पञ्च रहते हैं जो उल्लुओं के हक़ में फैसला सुनाते हैं ! शायद दुर्दशा का मूल कारण यही है कि हमने हमेशा अपना फैसला उल्लुओं के ही पक्ष में सुनाया है... इस बदहाली और दुर्दशा के लिए कहीं न कहीं हम भी जिम्मेदार हैं. |
Re: प्रेरक प्रसंग
एक औरत अपने परिवार के सदस्यों के लिए रोजाना भोजन पकाती थी और एक रोटी वह वहां से गुजरने वाले किसी भी भूखे के लिए पकाती थी ,
वह उस रोटी को खिड़की के सहारे रख दिया करती थी जिसे कोई भी ले सकता था . एक कुबड़ा व्यक्ति रोज उस रोटी को ले जाता और वजह धन्यवाद देने के अपने रस्ते पर चलता हुआ वह कुछ इस तरह बडबडाता “जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा ” दिन गुजर…ते गए और ये सिलसिला चलता रहा ,वो कुबड़ा रोज रोटी लेके जाता रहा और इन्ही शब्दों को बडबडाता “जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा ” वह औरत उसकी इस हरकत से तंग आ गयी और मन ही मन खुद से कहने लगी कि “कितना अजीब व्यक्ति है ,एक शब्द धन्यवाद का तो देता नहीं है और न जाने क्या क्या बडबडाता रहता है , मतलब क्या है इसका ? एक दिन क्रोधित होकर उसने एक निर्णय लिया और बोली “मैं इस कुबड़े से निजात पाकर रहूंगी “. और उसने क्या किया कि उसने उस रोटी में जहर मिला दीया जो वो रोज उसके लिए बनाती थी और जैसे ही उसने रोटी को को खिड़की पर रखने कि कोशिश कि अचानक उसके हाथ कांपने लगे और रुक गये और वह बोली ” हे भगवन मैं ये क्या करने जा रही थी ?” और उसने तुरंत उस रोटी को चूल्हे कि आँच में जला दीया .एक ताज़ा रोटी बनायीं और खिड़की के सहारे रख दी , हर रोज कि तरह वह कुबड़ा आया और रोटी लेके “जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा ” बडबडाता हुआ चला गया इस बात से बिलकुल बेखबर कि उस महिला के दिमाग में क्या चल रहा है? हर रोज जब वह महिला खिड़की पर रोटी रखती थी तो वह भगवान से अपने पुत्र कि सलामती और अच्छी सेहत और घर वापसी के लिए प्रार्थना करती थी जो कि अपने सुन्दर भविष्य के निर्माण के लिए कहीं बाहर गया हुआ था .महीनों से उसकी कोई खबर नहीं थी. शाम को उसके दरवाजे पर एक दस्तक होती है ,वह दरवाजा खोलती है और भोंचक्की रह जाती है , अपने bete को अपने सामने खड़ा देखती है.वह पतला और दुबला हो गया था. उसके कपडे फटे हुए थे और वह भूखा भी था ,भूख से वह कमजोर हो गया था. जैसे ही उसने अपनी माँ को देखा, उसने कहा, “माँ, यह एक चमत्कार है कि मैं यहाँ हूँ. जब मैं एक मील दूर है, मैं इतना भूखा था कि मैं गिर. मैं मर गया होता, लेकिन तभी एक कुबड़ा वहां से गुज़र रहा था ,उसकी नज़र मुझ पर पड़ी और उसने मुझे अपनी गोद में उठा लीया,भूख के मरे मेरे प्राण निकल रहे थे मैंने उससे खाने को कुछ माँगा ,उसने नि:संकोच अपनी रोटी मुझे यह कह कर दे दी कि “मैं हर रोज यही खाता हूँ लेकिन आज मुझसे ज्यादा जरुरत इसकी तुम्हें है सो ये लो और अपनी भूख को तृप्त करो " जैसे ही माँ ने उसकी बात सुनी माँ का चेहरा पिला पड़ गया और अपने आप को सँभालने के लिए उसने दरवाजे का सहारा लीया , उसके मस्तिष्क में वह बात घुमने लगी कि कैसे उसने सुबह रोटी में जहर मिलाया था .अगर उसने वह रोटी आग में जला के नष्ट नहीं की होती तो उसका बेटा उस रोटी को खा लेता और अंजाम होता उसकी मौत और इसके बाद उसे उन शब्दों का मतलब बिलकुल स्पष्ट हो चूका था “जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा। |
Re: प्रेरक प्रसंग
एक औरत अपने परिवार के सदस्यों के लिए रोजाना भोजन पकाती थी और एक रोटी वह वहां से गुजरने वाले किसी भी भूखे के लिए पकाती थी ,
वह उस रोटी को खिड़की के सहारे रख दिया करती थी जिसे कोई भी ले सकता था . एक कुबड़ा व्यक्ति रोज उस रोटी को ले जाता और वजह धन्यवाद देने के अपने रस्ते पर चलता हुआ वह कुछ इस तरह बडबडाता “जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा ” दिन गुजर…ते गए और ये सिलसिला चलता रहा ,वो कुबड़ा रोज रोटी लेके जाता रहा और इन्ही शब्दों को बडबडाता “जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा ” वह औरत उसकी इस हरकत से तंग आ गयी और मन ही मन खुद से कहने लगी कि “कितना अजीब व्यक्ति है ,एक शब्द धन्यवाद का तो देता नहीं है और न जाने क्या क्या बडबडाता रहता है , मतलब क्या है इसका ? एक दिन क्रोधित होकर उसने एक निर्णय लिया और बोली “मैं इस कुबड़े से निजात पाकर रहूंगी “. और उसने क्या किया कि उसने उस रोटी में जहर मिला दीया जो वो रोज उसके लिए बनाती थी और जैसे ही उसने रोटी को को खिड़की पर रखने कि कोशिश कि अचानक उसके हाथ कांपने लगे और रुक गये और वह बोली ” हे भगवन मैं ये क्या करने जा रही थी ?” और उसने तुरंत उस रोटी को चूल्हे कि आँच में जला दीया .एक ताज़ा रोटी बनायीं और खिड़की के सहारे रख दी , हर रोज कि तरह वह कुबड़ा आया और रोटी लेके “जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा ” बडबडाता हुआ चला गया इस बात से बिलकुल बेखबर कि उस महिला के दिमाग में क्या चल रहा है? हर रोज जब वह महिला खिड़की पर रोटी रखती थी तो वह भगवान से अपने पुत्र कि सलामती और अच्छी सेहत और घर वापसी के लिए प्रार्थना करती थी जो कि अपने सुन्दर भविष्य के निर्माण के लिए कहीं बाहर गया हुआ था .महीनों से उसकी कोई खबर नहीं थी. शाम को उसके दरवाजे पर एक दस्तक होती है ,वह दरवाजा खोलती है और भोंचक्की रह जाती है , अपने bete को अपने सामने खड़ा देखती है.वह पतला और दुबला हो गया था. उसके कपडे फटे हुए थे और वह भूखा भी था ,भूख से वह कमजोर हो गया था. जैसे ही उसने अपनी माँ को देखा, उसने कहा, “माँ, यह एक चमत्कार है कि मैं यहाँ हूँ. जब मैं एक मील दूर है, मैं इतना भूखा था कि मैं गिर. मैं मर गया होता, लेकिन तभी एक कुबड़ा वहां से गुज़र रहा था ,उसकी नज़र मुझ पर पड़ी और उसने मुझे अपनी गोद में उठा लीया,भूख के मरे मेरे प्राण निकल रहे थे मैंने उससे खाने को कुछ माँगा ,उसने नि:संकोच अपनी रोटी मुझे यह कह कर दे दी कि “मैं हर रोज यही खाता हूँ लेकिन आज मुझसे ज्यादा जरुरत इसकी तुम्हें है सो ये लो और अपनी भूख को तृप्त करो " जैसे ही माँ ने उसकी बात सुनी माँ का चेहरा पिला पड़ गया और अपने आप को सँभालने के लिए उसने दरवाजे का सहारा लीया , उसके मस्तिष्क में वह बात घुमने लगी कि कैसे उसने सुबह रोटी में जहर मिलाया था .अगर उसने वह रोटी आग में जला के नष्ट नहीं की होती तो उसका बेटा उस रोटी को खा लेता और अंजाम होता उसकी मौत और इसके बाद उसे उन शब्दों का मतलब बिलकुल स्पष्ट हो चूका था “जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा। |
Re: प्रेरक प्रसंग
एक संत थे। उनके कई शिष्य उनके आश्रम में रहकर अध्ययन करते थे। एक दिन एक महिला उनके पास रोती हुए आई और बोली, ‘बाबा, मैं लाख प्रयासों के बाद भी अपना मकान नहीं बना पा रही हूं। मेरे रहने का कोई निश्चित ठिकाना नहीं है। मैं बहुत अशांत और दु:खी हूं। कृपया मेरे मन को शांत करें।’
उसकी बात पर संत बोले, ‘हर किसी को पुश्तैनी जायदाद नहीं मिलती। अपना मकान बनाने के लिए आपको नेकी से धनोपार्जन करना होगा, तब आपका मकान बन जाएगा और आपको मानसिक शांति भी मिलेगी।’ महिला वहां से चली गई। इसके बाद एक शिष्य संत से बोला, ‘बाबा, सुख तो समझ में आता है लेकिन दु:ख क्यों है? यह समझ में नहीं आता।’ उसकी बात सुनकर संत बोले, ‘मुझे दूसरे किनारे पर जाना है। इस बात का जवाब मैं तुम्हें नाव में बैठकर दूंगा।’ दोनों नाव में बैठ गए। संत ने एक चप्पू से नाव चलानी शुरू की। एक ही चप्पू से चलाने के कारण नाव गोल-गोल घूमने लगी तो शिष्य बोला, ‘बाबा, अगर आप एक ही चप्पू से नाव चलाते रहे तो हम यहीं भटकते रहेंगे, कभी किनारे पर नहीं पहुंच पाएंगे। उसकी बात सुनकर संत बोले, ‘अरे तुम तो बहुत समझदार हो। यही तुम्हारे पहले सवाल का जवाब भी है। अगर जीवन में सुख ही सुख होगा तो जीवन नैया यूं ही गोल-गोल घूमती रहेगी और कभी भी किनारे पर नहीं पहुंचेगी। जिस तरह नाव को साधने के लिए दो चप्पू चाहिए, ठीक से चलने के लिए दो पैर चाहिए, काम करने के लिए दो हाथ चाहिए, उसी तरह जीवन में सुख के साथ दुख भी होने चाहिए। जब रात और दिन दोनों होंगे तभी तो दिन का महत्व पता चलेगा। जीवन और मृत्यु से ही जीवन के आनंद का सच्चा अनुभव होगा, वरना जीवन की नाव भंवर में फंस जाएगी।’ संत की बात शिष्य की समझ में आ गई। |
Re: प्रेरक प्रसंग
यह घटना उन दिनों की है जब फ्रांस में विद्रोही काफी उत्पात मचा रहे थे। सरकार अपने तरीकों से विद्रोहियों से निपटने में जुटी हुई थी। काफी हद तक सेना ने विद्रोह को कुचल दिया था , फिर भी कुछ शहरों में स्थिति खराब थी। इन्हीं में से एक शहर था लिथोस। लिथोस में विद्रोह पूर्णतया दबाया नहीं जा सका था , लिहाजा जनरल कास्तलेन जैसे कड़े अफसर को वहां नियंत्रण के लिए भेजा गया। कास्तलेन विद्रोहियों के साथ काफी सख्ती से पेश आते थे।
इसलिए विद्रोहियों के बीच उनका खौफ भी था और वे उनसे चिढ़ते भी थे। इन्हीं विद्रोहियों में एक नाई भी था , जो प्राय : कहता फिरता – जनरल मेरे सामने आ जाए तो मैं उस्तरे से उसका सफाया कर दूं। जब कास्तलेन ने यह बात सुनी तो वह अकेले ही एक दिन उसकी दुकान पर पहुंच गया और उसे अपनी हजामत बनाने के लिए कहा। वह नाई जनरल को पहचानता था। उसे अपनी दुकान पर देखकर वह बुरी तरह घबरा गया और कांपते हाथों से उस्तरा उठाकर जैसे – तैसे उसकी हजामत बनाई। काम हो जाने के बाद जनरल कास्तलेन ने उसे पैसे दिए और कहा – मैंने तुम्हें अपना गला काटने का पूरा मौका दिया। तुम्हारे हाथ में उस्तरा था , मगर तुम उसका फायदा नहीं उठा सके। इस पर नाई ने कहा – ऐसा करके मैं अपने पेशे के साथ धोखा नहीं कर सकता था। मेरा उस्तरा किसी की हजामत बनाने के लिए है किसी की जान लेने के लिए नहीं। वैसे मैं आपसे निपट लूंगा जब आप हथियारबंद होंगे। लेकिन अभी आप मेरे ग्राहक हैं। कास्तलेन मुंह लटकाकर चला गया। |
Re: प्रेरक प्रसंग
प्राचीन समय में वाराणसी के राज पुरोहित हुआ करते थे- देव मित्र। राजा को राज पुरोहित की विद्वता और योग्यता पर बहुत भरोसा था। राजा इसलिए उनकी हर बात मानते थे। प्रजा के बीच भी राज पुरोहित का काफी आदर था। एक दिन राज पुरोहित के मन में सवाल उठा कि राजा और दूसरे लोग जो मेरा सम्मान करते हैं, उसका कारण क्या है? राज पुरोहित ने अपने इस प्रश्न का उत्तर पाने के लिए एक योजना बनाई।
अगले दिन दरबार से लौटते समय उन्होंने राज कोषागार से एक स्वर्ण मुद्रा चुपचाप ले ली, जिसे कोष अधिकारी ने देखकर भी नजरंदाज कर दिया। राज पुरोहित ने दूसरे दिन भी दरबार से लौटते समय दो स्वर्ण मुद्राएं उठा लीं। कोष अधिकारी ने देखकर सोचा कि शायद किसी प्रयोजन के लिए वे ऐसा कर रहे हैं, बाद में अवश्य बता देंगे। तीसरे दिन राज पुरोहित ने मुट्ठी में स्वर्ण मुद्राएं भर लीं। इस बार कोष अधिकारी ने उन्हें पकड़कर सैनिकों के हवाले कर दिया। उनका मामला राजा तक पहुंचा। न्यायाधीश की कुर्सी पर बैठे राजा ने अपना निर्णय सुनाते हुए कहा कि राज पुरोहित द्वारा तीन बार राजकोष का धन चुराया गया है। इस दुराचरण के लिए उन्हें तीन महीने की कैद दी जाए ताकि वह फिर कभी ऐसा अपराध न कर सकें। राजा के निर्णय से राज पुरोहित को अपने सवाल का जवाब मिल चुका था। राज पुरोहित ने राजा से निवेदन किया, ‘राजन मैं चोर नहीं हूं। मैं यह जानना चाहता था कि आपके द्वारा मुझे जो सम्मान दिया जाता है, उसका सही अधिकारी कौन है, मेरी योग्यता, विद्वता या मेरा सदाचरण। आज सभी लोग समझ गए हैं कि सदाचरण को छोड़ते ही मैं दंड का अधिकारी बन गया हूं। सदाचरण और नैतिकता ही मेरे सम्मान का मूल कारण थी।’ इस पर राजा ने कहा कि वह उनकी बात समझ रहे हैं मगर दूसरों को सीख देने के लिए उनका दंडित होना आवश्यक है। |
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