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abhisays 09-01-2011 06:57 PM

मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
 
हिंदी फिल्मों में मेरी काफी रूचि रही है, शायद ही कोई नयी और पुरानी फिल्म ऐसी है जो मैंने ना देखी हो. इस सूत्र में अपनी कुछ चुनिन्दा हिंदी फिल्मों के बारे में लिखूंगा और उसपर अपने विचार और समीक्षा भी दूंगा. आशा है फोरम के सदस्यों के यह सूत्र पसंद आएगा. अपने व्यस्त दिनचर्या में से समय निकाल कर मैं हर हफ्ते कम से कम एक हिंदी फिल्म का विवरण देने की कोशिश करूंगा.

धन्यवाद.

abhisays 09-01-2011 07:05 PM

Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
 
1 Attachment(s)
तो आज जिस फिल्म की मैं चर्चा कर रहा हूँ, उस फिल्म का नाम है
सोलवा साल


abhisays 09-01-2011 07:26 PM

Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
 
सोलवा साल १९५८ में रिलीज़ हुई थी. इस फिल्म के director थे राज खोसला. मुख्या किरदार निभाए थे देव आनंद और वहीदा रहमान ने. फिल्म का संगीत दिया था सचिन देव बर्मन ने और गीत लिखे थे मजरूह सुल्तानपुरी ने. फिल्म की कहानी फ्रांक कापरा की कॉमेडी फिल्म "It Happened One Night" से प्रेरित थी. आपको यह जानकर काफी आश्चर्य होगा की इस अमेरिकी फिल्म से प्रेरणा लेकर कई हिंदी फिल्मे बन चुकी है जैसे राज कपूर और नर्गिस की चोरी चोरी, आमिर खान की दिल है की मानता नहीं, शम्मी कपूर की बसंत आदि.

देव आनंद और वहीदा रहमान के शानदार अभिनय और पंचम दा के संगीत से सजी इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर बहुत ही अच्छा बिज़नस किया था.

khalid 09-01-2011 07:32 PM

Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
 
अच्छा सुत्र बनाया आपने सिर्फ पुरानी फिल्मेँ पसन्द हैँ या नई फिल्मेँ भी देखतेँ हैँ

ABHAY 09-01-2011 07:38 PM

Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
 
भाई मै भी पुराने फिल्मो का सौख रखता हू अच्छी सूत्र है भाई :bravo::bravo:

abhisays 09-01-2011 07:39 PM

Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
 
Quote:

Originally Posted by khalid1741 (Post 38461)
अच्छा सुत्र बनाया आपने सिर्फ पुरानी फिल्मेँ पसन्द हैँ या नई फिल्मेँ भी देखतेँ हैँ

नयी फिल्में भी देखता हूँ. उनका भी जिक्र यहाँ पर जल्द ही करूंगा.

abhisays 09-01-2011 07:43 PM

Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
 
मज़े की बात यह है की मैंने "It Happened One Night" भी देखी है और सोलवा साल मुझे इसके अंग्रेजी version से ज्यादा अच्छी लगी.

आइयें अब जरा फिल्म की कथा पर प्रकाश डालते है.

abhisays 09-01-2011 07:52 PM

Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
 
1 Attachment(s)
लाज (वहीदा रहमान) एक खुबसूरत और जवान लड़की है जो अपने पिता, २ बहनों और १ भाई के साथ रहती है. कॉलेज के साथी श्याम (जगदेव) से उसका प्रेम चल रहा होता है. किसी बात पर श्याम लाज से नाराज़ हो जाता है तो लाज "यह भी कोई रूठने" गा कर उसे मनाती है.


abhisays 09-01-2011 09:47 PM

Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
 
1 Attachment(s)
श्याम लाज को भगा कर अहमदाबाद ले जाकर शादी करना चाहता और वो एक नादान लड़की की तरह तयार हो जाती है. लाज के घर में कुछ और चल रहा होता है. उसके पिता उसकी शादी अपने एक दोस्त के बताये हुए लड़के के साथ करना चाहते है. अगले दिन सुबह उनका लड़के से एअरपोर्ट पर मिलने का प्लान होता है. वो लाज को सुबह ५ बजे उठाने के लिए कह कर सो जाते है.

लाज भी प्यार में एकदम पागल हो चुकी होती है वो अपनी माँ का खुबसूरत मोतियों का हार लेकर श्याम के साथ भागने के लिए स्टेशन के लिए रात में ही चोरी छुपे निकल लेती है.


abhisays 09-01-2011 09:54 PM

Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
 
पहले तो मैंने सोचा था फिल्म की पूरी कहानी लिखू, मगर शायद पूरी कहानी पड़ने के बाद फिल्म देखने का मज़ा कम हो जायेगा. फिर भी कुछ और जानकारी दे देता हूँ.

श्याम स्टेशन पर लाज का मोतियों का हार ले कर भाग जाता है और लाज स्टेशन पर अकेली रह जाती है. ट्रेन में ही फिल्म के नायक प्राणनाथ कश्यप यानि देव साहब की इंट्री होती है. प्राणनाथ श्याम और लाज की बात सुन लेता है और उसे शक हो जाता है की दाल में कुछ कला है.

इस बीच प्राणनाथ "है अपना दिल तो आवारा" गुनगुनाते हैं.


abhisays 09-01-2011 10:00 PM

Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
 
1 Attachment(s)
प्राणनाथ लाज और श्याम का पीछा करता है और इस बीच श्याम स्टेशन पर लाज का मोतियों का हार ले कर भाग जाता है और लाज स्टेशन पर अकेली रह जाती है.

पीछा करने की एक तस्वीर पेश करता हूँ. हिंदी फिल्मो में इस तरह के classic दृश्य कम ही देखने को मिलते है.


abhisays 09-01-2011 10:10 PM

Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
 
तो अब फिल्म की कहानी एक नया मोड़ लेती है.
  • श्याम लाज का कीमती मोतियो का हार लेकर भाग जाता है.
  • लाज प्राणनाथ के साथ स्टेशन पर अकेली रह जाती है.
तो अब कुछ सवाल ऐसे है जिनका उत्तर आपको फिल्म देखने के ही बाद पता चलेगा.
  • क्या लाज अपने घर सही सलामत पहुच पाएगी.
  • लाज को मोतियो का हार वापिस मिल पाएगा.
  • लाज अपने पिता को सुबह 5 बजे उठा पाएगी.
  • प्राणनाथ और लाज में क्या प्यार होगा?
  • लाज के पिता जिस लड़के से सुबह मिलने वेल है वो कौन है?
  • क्या श्याम को उसके धोखे की सज़ा मिलेगी?
  • एक ही रात में और क्या क्या होगा.

abhisays 09-01-2011 10:14 PM

Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
 
3 Attachment(s)
यह फिल्म आप क्यों देखे.

देव आनंद के शानदार अभिनय के लिए


प्यार के कुछ खास पलो के एहसास के लिए जो आजकल के नायक और नायिका तमाम हदें तोड़कर भी रुपहले पर्दे पर साकार नही कर पाते


प्यार और इकरार की शानदार कस्मकश के लिए

http://myhindiforum.com/attachment.p...1&d=1294597292

हेमंत कुमार के अमर गानो के लिए



abhisays 09-01-2011 10:39 PM

Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
 
2 Attachment(s)
अगली फिल्म जिसका मैं यहाँ जिक्र करने वाला हूँ उसका नाम है बासु चटर्जी की एक रुका हुआ फ़ैसला


"एक रुका हुआ फ़ैसला" 1957 की हॉलीवुड फिल्म 12 Angry Men से प्रेरित है.


pritam 10-01-2011 07:52 AM

Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
 
Quote:

Originally Posted by abhisays (Post 38445)
तो आज जिस फिल्म की मैं चर्चा कर रहा हूँ, उस फिल्म का नाम है
सोलवा साल


Solva Saal is one of my favorite Hindi Movies. It has got a good mix of comedy and romance supported by superb camera work and songs. Anyway, your presentation of this movie is really too good. I must say, I have started searching this movie on internet. Can you help me?

YUVRAJ 10-01-2011 07:57 AM

Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
 
वाह क्या बात है ... :clap:...:clap:...:clap:...:bravo:
एक दमदार सूत्र...:hurray:

abhisays 10-01-2011 07:59 AM

Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
 
Quote:

Originally Posted by pritam (Post 38505)
Solva Saal is one of my favorite Hindi Movies. It has got a good mix of comedy and romance supported by superb camera work and songs. Anyway, your presentation of this movie is really too good. I must say, I have started searching this movie on internet. Can you help me?

Thanks for appreciating this thread.You can watch this movie on YouTube. I am sharing the first part, rest you can easily find on youtube.


abhisays 10-01-2011 08:03 AM

Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
 
Quote:

Originally Posted by yuvraj (Post 38506)
वाह क्या बात है ... :clap:...:clap:...:clap:...:bravo:
एक दमदार सूत्र...:hurray:

युवराज जी आपको यह सूत्र अच्छा लगा, इसके लिए धन्यवाद

मैं कोशिश करूंगा और भी कई फिल्मो के बारे में लिखू. आप से भी आशा अपने पसंदीदा फिल्मो की यहाँ चर्चा जरुर करे.

ABHAY 10-01-2011 09:52 PM

Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
 
अभिषेक जी बहुत अच्छे जा रहे है सूत्र को आगे बढ़ाये !:bravo::bravo::bravo:

abhisays 10-01-2011 10:24 PM

Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
 
Quote:

Originally Posted by abhay (Post 39004)
अभिषेक जी बहुत अच्छे जा रहे है सूत्र को आगे बढ़ाये !:bravo::bravo::bravo:


जरुर अभय जी. मेरी पूरी कोशिश रहेगी की आप लोगो के लिए कुछ अच्छा पेश कर सकू.

abhisays 15-01-2011 09:35 AM

Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
 
तो आज मैं चर्चा करूंगा "एक रुका हुआ फैसला" फिल्म की

इस फिल्म में १२ पात्र थे जिन्हें कोर्ट ने फैसले की जिम्मेदारी सौपी थी और एक द्वारपाल भी था. कुल जमा १३ पात्र और एक कमरे में पूरी फिल्म शूट हुई थी. बासु चटर्जी ने फिल्म का निर्देशन किया था.

दीपक केजरीवाल जूरी सदस्य #1
अमिताभ श्रीवास्तव जूरी सदस्य #2
पंकज कपूर जूरी सदस्य #3
स. म. ज़हीर जूरी सदस्य #4
सुभाष उद्घते जूरी सदस्य #5
हेमंत मिश्र जूरी सदस्य #6
ऍम के रैना जूरी सदस्य #7
के के रैना जूरी सदस्य #8
अन्नू कपूर जूरी सदस्य #9
सुब्बिराज जूरी सदस्य #10
शैलेन्द्र गोएल जूरी सदस्य #11
अज़ीज़ कुरैशी जूरी सदस्य #12
दी संधू गेट कीपर

abhisays 15-01-2011 09:40 AM

Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
 
गूगल विडियो पर पूरी फिल्म आप देख सकते है. पता है.

http://video.google.com/googleplayer...68512416532465

abhisays 15-01-2011 09:46 AM

Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
 
जैसा की मैंने बताया फिल्म में मात्र १२ मेन किरदार थे. उन्ही के बीच संवाद चलता रहता था. मगर मजाल था जो दर्शक एक क्षण भी बोर हो, आज के फ़िल्मकार करोड़ों खर्च कर भी इतनी मनोरंजक और बढ़िया फिल्म नही बना पाते जो इस १२ किरदार वाली फिल्म ने कर दिखाया था

हालाँकि फिल्म भले ही रीमेक हो, लेकिन फिल्म के संवादों के ज़रिए वर्गीय पूर्वाग्रह को जो शानदार चित्रण किया गया है वह हमारे सामाजिक यथार्थ के बहुत करीब है.. और बारह के बारह कलाकारों ने क्या ज़बरदस्त अभिनय किया है... आप वाह-वाह किए बिना नहीं रह सकेंगे.. एक कमरे में फिल्मायी गई 15 मीटर रील की इस फिल्म को 2 घंटे 7 मिनट और 49 सेकेंड तक साँस रोके आप देखते रहते हैं.

abhisays 15-01-2011 09:53 AM

Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
 
फिल्म की कहानी कुछ इस तरह से है

सत्रह अठारह साल का एक किशोर पर अपने पिता की हत्या करने का मुक़दमा चल रहा है. वह झुग्गी-झौंपड़ी में जन्मा और बेहद गरीबी के बीच पल कर इतना बड़ा हुया है. उसका बाप शराबी और झगड़ालू है. बाप क्रूरता से बचपन से ही उसे पीटता रहा है. लड़का चाकूबाजी में माहिर माना जाता है. और लड़के पर आरोप है की उसने अपना बाप का चाकू से क़त्ल कर दिया है.

malethia 15-01-2011 10:12 AM

Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
 
मैं भी पुरानी फिल्मों का शौक़ीन हूँ,
आपने इन फिल्मों के बारे में अच्छी जानकारी दी इस् लिए धन्यवाद !

abhisays 15-01-2011 10:24 AM

Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
 
Quote:

Originally Posted by malethia (Post 40537)
मैं भी पुरानी फिल्मों का शौक़ीन हूँ,
आपने इन फिल्मों के बारे में अच्छी जानकारी दी इस् लिए धन्यवाद !

धन्यवाद malethia जी.

malethia 15-01-2011 10:30 AM

Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
 
Quote:

Originally Posted by abhisays (Post 40533)
गूगल विडियो पर पूरी फिल्म आप देख सकते है. पता है.

http://video.google.com/googleplayer...68512416532465

इस फिल्म को देखने के लिए कौनसे प्लेयर की जरूरत होगी ?

abhisays 15-01-2011 10:32 AM

Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
 
http://www.adobe.com/products/flashplayer/

malethia 15-01-2011 10:35 AM

Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
 
Quote:

Originally Posted by abhisays (Post 40548)

फ्लेश प्लेयर तो मेने पहले से इन्स्टाल किया हुआ है ,लेकीन फिर भी ये मूवी नहीं चल रही ?

abhisays 15-01-2011 03:26 PM

Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
 
Quote:

Originally Posted by malethia (Post 40549)
फ्लेश प्लेयर तो मेने पहले से इन्स्टाल किया हुआ है ,लेकीन फिर भी ये मूवी नहीं चल रही ?

मूवी तो चलनी चाहिए. क्या आपको मूवी का चित्र स्क्रीन पर दिख रहा है?

arvind 15-01-2011 03:29 PM

Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
 
अभिषेक जी, मेरा हर समय का पसंदीदा फिल्म "आनंद" के बारे मे जरूर लिखिएगा, मुझे इंतजार रहेगा।

khalid 15-01-2011 04:23 PM

Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
 
Quote:

Originally Posted by arvind (Post 40640)
अभिषेक जी, मेरा हर समय का पसंदीदा फिल्म "आनंद" के बारे मे जरूर लिखिएगा, मुझे इंतजार रहेगा।

भाई आप अपने तरफ से लिख दिजीए ....?

arvind 15-01-2011 04:31 PM

Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
 
Quote:

Originally Posted by khalid1741 (Post 40650)
भाई आप अपने तरफ से लिख दिजीए ....?

आपकी इच्छा के अनुरूप कुछ चेपता हूँ।

arvind 15-01-2011 04:33 PM

Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
 
यह हिन्दी सिनेमा का सबसे उत्तम रचनाओं में से एक है। यह मुंबई शहर और राजकपूर को समर्पित है। मुंबई शहर भारत का सर्वोत्तम महानगर है जिसमें पूरे भारत के लोग रहते हैं, वह भी शांतिपूर्वक। यह 1966 में शुरू हुए शिवसेना की राजनीति का प्रतिलोभ है। आनंद सहगल पंजाबी है, भाष्कर बनर्जी बंगाली है, प्रताप कुलकर्णी मराठी है, मुरारीलाल और उसकी नाटक मंडली की नायिका गुजराती है, पहलवान दारा सिंह और नौकर रामु काका उत्तर भारतीय हैं। मैट्रन डीसा गोवा की हैं। हृशिकेष मुखर्जी की फिल्मों में खलनायक या खलनायिका नहीं होते। यह फिल्म एक ठेंठ भारतीय फिल्म है जिसमें आनंद सहगल का जिंदादिल चरित्र राजकपूर के व्यक्तित्व से प्रभावित है। राजकपूर वास्तविक जीवन में हृशिकेष मुखर्जी को बाबू मोशाय ही कहा करते थे। दोनो 1959 से घनिष्ठ मित्र थे। हिन्दी की अधिकांश फिल्मों में ऐलोपैथिक डाक्टर को नायकत्व दिया गया है। मुखर्जी की फिल्म अनुराधा का नायक एक ऐलोपैथिक डाक्टर है। इस फिल्म में एक रोगी नायक है, और होमियोपैथी, मोनी बाबा, सिध्द पीठ आदि की भी सकारात्मक प्रस्तुति है। फिल्म आंधी की तरह इस फिल्म के संवाद भी काव्यात्मक हैं। आंधी की तुलना में इसमें कम गीत हैं - 3 गीत + एक कविता। फिल्म का हर दृष्य और हर संवाद अर्थपूर्ण है। यह भारतीय संस्कृति के बहुआयामी स्वरूप को सम्पूर्णता में प्रस्तुत करता है। यह ट्रेजडी होते हुए भी ट्रेजडी नहीं है। यह कॉमेडी भी नहीं है। इसमें हर तरह के रस मिले हुए हैं। इसमें बौध्द दर्शन और वैश्णव भक्ति का मिला - जुला रूप है। दसमें हर क्षण को आनंदमय बनाने का बौध्द दर्शन है। इसमें संसार एक दिव्य लीला है। इसमें ईसाई (मैट्रन डीसा) और मुस्लिम (ईषाभाई सूरत वाला) पात्र भी हैं। प्रारंभ में भाष्कर बनर्जी नास्तिक है लेकिन आनंद सहगल के सोहबत में वह आस्तिक हो जाता है। मौनी बाबा और आनंद सहगल पुनर्जन्म में विश्वास करते हैं। आनंद के प्यार में मैट्रन डीसा भी पुनर्जन्म के विश्वास का अनादर नहीं करती। ईषाभाई भी स्वर्ग में मिलने की बात करता है।

arvind 15-01-2011 04:37 PM

Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
 
इसमें दोस्ती की गरिमा है। मौत पर जिन्दगी की जीत है। इसमें पारंपरिक अखाड़ा है। जब आनंद को पता चलता है कि डाक्टर भाष्कर बनर्जी की प्रेमिका रेणु को मुहल्ले के शोहदे तंग करते हैं तो वह पास के अखाड़े के गुरू के पास फरियाद लेकर जाता है और गुरू शोहदों को डांट - डपट कर भगा देता है। इसके बाद शोहदे डर कर तंग करना छोड़ देते हैं।

इस फिल्म में मुंबई (बम्बई) केवल मराठियों का शहर न होकर सम्पूर्ण भारत का महानगर है जिसमें भारत के भिन्न - भिन्न इलाकों के लोग शांतिपूर्वक एक - दूसरे के साथ मिल - जुल कर रहते हैं। 1966 में शुरू हुए शिवसेना की संकुचित राजनीति का यह फिल्म बड़ी शालीनता से जवाब देती है। फिल्म 1970 के अंत में रिलीज हुई थी। यह मुंबई शहर को एक नये रूप में प्रस्तुत करती है। 1950 के दशक की शुरूआत में नव केतन बैनर के तले देवआनंद अभिनित टैक्सी ड्राइवर फिल्म में अलग तरह का बम्बई शहर दिखता है। 20 वर्षों में बम्बई काफी बदल चुका है। गगन चुंबी इमारतों के साथ झुग्गी झोपड़ी और चॉलों की समानांतर दुनिया भी आनंद फिल्म में दिखती है। जिसमें डाक्टर भाष्कर बनर्जी रोग और गरीबी के बीच अपना डाक्टरी जंग जारी रखता है।

arvind 15-01-2011 04:42 PM

Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
 
1 Attachment(s)

arvind 15-01-2011 04:45 PM

Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
 
1970 में बम्बई एक हरा - भरा खूबसूरत शहर था। समुद्र का पानी गंदा नहीं हुआ था। समुद्र का किनारा पानी और बालू पर पसरा एक खूबसूरत नजारा पेश करता है। उस पर मन्नाडे का गाया गाना 'जिन्दगी कैसी है सुहानी हाये, कभी तो हंसाये कभी ये रूलाये ' गाते हुए राजेश खन्ना का मस्त अभिनय। 1969 में राजेश खन्ना को सुपर सितारा का हैसियत प्राप्त हुआ था और हृशिकेष मुखर्जी के निर्देशन में आनंद उनके अभिनय का उँचाई प्रस्तुत करता है। अमिताभ बच्चन ने 1969 में जब अभिनय शुरू किया था तो राजेश खन्ना सुपर सितारा बन चुके थे। रमेश देव और सीमा, देव, सुमिता सान्याल और ललिता पवार, जॉनी वाकर, दुर्गा खोटे और दारा सिंह सभी ने अच्छा अभिनय किया है परन्तु आनंद मूलत: राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन की फिल्म है। दोनों ने बहुत अच्छा अभिनय किया है। जयवंत पाठारे की फोटोग्राफी कमाल की है। उनका कैमरा उतना ही काव्यात्मक दृष्य रचता है जितना हृशिकेष मुखर्जी, गुलजार, बिमल दत्ता और डी. एन. मुखर्जी की पटकथा। हमेशा की तरह हृशिकेष मुखर्जी के निर्देशन एवं संपादन में दोष निकालना मुश्किल है। आनंद हृशिकेष मुखर्जी की नि:संदेह सर्वश्रेष्ठ कृति है जिसकी कहानी उन्होंने खुद लिखी थी। इस कहानी की प्रेरणा हृशिकेष मुखर्जी और राजकपूर की मित्रता पर आधारित है। राजकपूर और आनंद सहगल के चरित्र में कई समानता है। केवल एक प्रमुख अन्तर है। आनंद सहगल कैंसर रोग का मरीज है और वह जानता है कि उसे जीने के लिए मात्र 6 माह मिला है। जबकि स्वभाव से भोले और मस्त राजकपूर को बचपन से प्रेम का रोग था। उन्होंने अपने बचपन से बुढ़ापा तक कई महिलाओं से पवित्र प्रेम किया और अंत तक भोले बने रहे। जिस तरह आनंद पूरी जिन्दगी अपने अनदेखे सोलमेट मुरारीलाल को खोजता रहा उसी तरह राजकपूर विवाहित होते हुए भी हर सुन्दर स्त्री में अपना सोलमेट खोजते रहे।

arvind 15-01-2011 04:47 PM

Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
 
आनंद सहगल और भाष्कर बनर्जी की दोस्ती मात्र 6 माह पुरानी दोस्ती है। जबकि भाष्कर बनर्जी और प्रताप कुलकर्णी की पुरानी दोस्ती है। ईषाभाई सूरतवाला और आंनद सहगल की दोस्ती तो मात्र कुछ सप्ताह पुरानी है। वास्तव में भारत के बंटवारे का मारा रिफ्यूजी आनंद सहगल एक अनाथ है जिसे परायों और अपरिचितों से दोस्ती और संबंध बनाना खूब आता है। उसके व्यवहार की मस्ती के पीछे न सिर्फ कैंसर के रोग के कारण अपनी छोटी जिन्दगी का अहसास है बल्कि अपनी प्रेमिका से बिछुड़ने की उदासी भी है। परन्तु वह मानता है कि जिन्दगी बड़ी होनी चाहिए लम्बी नहीं। वह मानता है कि उदासी भी खूबसूरत हो सकती है।

arvind 15-01-2011 04:49 PM

Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
 
आनंद फिल्म का एक प्रमुख थीम विवाह है। डा. कुलकर्णी की शादी का साल गिरह, डा. बनर्जी और रेणु का विवाह, आनंद की प्रेमिका का दूसरे व्यक्ति से विवाह और ईषाभाई सूरतवाला की विवाह की समस्या। इन विवाहों की कथा को बहुत मनोरंजक ढंग से प्रेम विवाह बनाम माता - पिता द्वारा ठीक किये गए अरेन्जड मैरिज का मनोरंजक कॉनट्रास्ट प्रस्तुत किया गया है। रेणु की मां कहती भी है कि अब माता - पिता से कौन पूछता है अब तो प्रेम विवाह का जमाना है। पूरा भारत 1970 में भले ही मूलत: पारंपरिक रहा हो, बम्बई महानगर में 1970 तक आते - आते प्रेम विवाह का चलन काफी बढ़ गया था। अत: 1960 के दशक से हिन्दी सिनेमा में टेक्नीकलर प्रेम और रोमांस की कहानियां 1950 के दशक के सामाजिक सन्दर्भों वाले कथानकों की तुलना में काफी बढ़ गए थे। 1957 में बने मुसाफिर से हृशिकेष मुखर्जी ने हल्की फुल्की मनोरंजन की भाषा में मध्यवर्गीय भारतीय समाज के सामाजिक पहलुओं को अपनी फिल्मों में जगह देना जारी रखा था। वे एक तरफ विशुद्ध कॉमेडी (चुपके - चुपके, बाबर्ची, गोलमाल बनाया) तो दूसरी तरफ अनाड़ी, सत्यकाम, आशीर्वाद, आनंद, अभिमान और बेमिशाल जैसी सोदेश्य सामाजिक फिल्में भी बनायी। आनंद उनकी फिल्मों का सरताज है जिसमें उनकी रचनात्मक ऊर्जा का विष्फोट हुआ है। लाइलाज बीमारी पर आनंद उनकी एकमात्र फिल्म नहीं है। इसी थीम पर 1975 में उन्होंने मिली नामक फिल्म बनायी थी जिसमें जया भादुड़ी और अमिताभ बच्चन की मुख्य भूमिका थी। यह फिल्म आनंद की तरह सफलता नहीं पा सकी तो उसका प्रमुख कारण यही था कि मिली की बीमारी फिल्म की केन्द्रीय वस्तु है जबकि आनंद की बीमारी उसके जीवन और संबंधों की मात्र पृष्ठभूमि है। आनंद एक बहुआयामी फिल्म है और मिली मूलत: कारूणिक फिल्म है। एक कारण और भी है आनंद राजेश खन्ना के सुपर स्टारडम के समय बनी थी जबकि मिली की नायिका जया भादुड़ी सुपर सितारा नहीं थी और न 1975 तक अमिताभ बच्चन सुपर सितारा के रूप में स्थापित हुए थे। 1973 में जंजीर आ चुकी थी। अभिमान आ चुकी थी। 1975 में मिली और दीवार आ चुकी थी। परन्तु शोले साल के अंत में आयी थी। अमिताभ बच्चन की सितारा हैसियत बनने लगी थी लेकिन 1975 के अंत तक धर्मेन्द्र, संजीव कुमार, मनोज कुमार, शशि कपूर और विनोद खन्ना उनसे उन्नीस नहीं थे। केवल राजेश खन्ना का पराभव होना शुरू हुआ था। 1973 में बॉबी के रिलीज से ऋषि कपूर का उदय हुआ था। अमिताभ सुपर सितारा 1977 में आयी मुकद्दर का सिकंदर तथा डॉन से बने। उससे पहले उनके नाम से फिल्में नहीं बिकती थी। निर्देशक, कहानी, पटकथा, गीत - संगीत की भूमिका तब तक सुपर सितारे से कम नहीं होती थी। 1969 से 1973 के बीच राजेश खन्ना अकेले सुपर सितारा थे। 1973 से 1977 तक कई सितारों के बीच प्रतिस्पर्धा थी जिसमें अमिताभ बच्चन अंतत: विजयी हुए। अमिताभ बच्चन को सुपर सितारा बनाने में जितना योगदान सलीम - जावेद द्वारा गढ़ा यंग्री यंग मैन की इमेज का है उससे कम योग दान मनमोहन देसाई और हृशिकेष मुखर्जी की फिल्मों का नहीं है। अमिताभ बच्चन यदि अंतत: अपने समकालीनों पर भारी पड़े तो उसका कारण ही यही था कि वे एक ही काल खंड में गंभीर, हंसोड और यंग्री यंग मैन तीन तरह की भूमिका एक समान दक्षता से कर सकते थे। और नि:संदेह यह कहा जा सकता है कि इस दक्षता के बीज फिल्म आनंद में नजर आये थे। इसीलिए उन्हें इस फिल्म के लिए बेस्ट सहायक अभिनेता का पुरस्कार भी मिला था।

arvind 15-01-2011 04:53 PM

Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
 
आनंद की पटकथा और कास्टिंग दोनों में एक संतुलित सम्पूर्णता थी जिसकी तुलना में मिली की पटकथा और कास्टिंग उन्नीस पड़ती है। आनंद का किरदार राजेश खन्ना के अलावे अगर किसी और ने किया होता तो यह फिल्म संभवत: इतनी स्वाभाविक नहीं बन पाती। कास्टिंग के मामले में इसकी तुलना 1970 के दशक की फिल्मों में संभवत: केवल शोले से की जा सकती है जिसका निर्माण 1975 में हुआ था रमेश सिप्पी के शोले में हर चरित्र की कास्टिंग और पटकथा में स्थान भी एक संतुलित सम्पूर्णता में है। शोले एक भव्य फिल्म है जिसमें स्पेकटेकल नैरेटिव पर भारी पड़ जाता है। आनंद में नैरेटिव और स्पेकटेकल का संतुलन है। आनंद एक मध्यम बजट की कारपोरेट फिल्म है। इसे एन. सी. सिप्पी ने निर्माण करवाया था। जी. पी. सिप्पी व्यावसायिक सिनेमा के एक बड़े निर्माता थे। शोले उनकी सर्वश्रेष्ठ कृति है जो उनके बेटे रमेश सिप्पी ने निर्देशित किया था। एन. सी. सिप्पी मध्यम बजट की सोदेश्य फिल्मों के निर्माता थे। उन्होंने हृशिकेष मुखर्जी और गुलजार जैसे संवेदनशील तथा कलात्मक निर्देशकों के प्रोजेक्ट को फाइनेंस किया। इस मामले में एन. सी. सिप्पी की तुलना भारत सरकार की संस्था नेशनल फिल्म डेवलपमेंट कारपोरेशन (एन. एफ. डी. सी.) और राजश्री प्रोडक्संन से की जा सकती है। 1970 के दशक में एन. सी. सिप्पी, ताराचंद बड़जात्या (राजश्री प्रोडक्संन के मालिक) और एन. एफ. डी. सी. के प्रयास से छोटे और मध्यम बजट की स्वस्थ मनोरंजन देने वाली कलात्मक फिल्मों की बहार आ गई थी जिसके प्रभाव में हिन्दी भाषी समाज के भीतर एक रचनात्मक विष्फोट हुआ था। हृशिकेष मुखर्जी निर्देशित आनंद इस रचनात्मक विष्फोट का स्वर्णकलश है।


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